Sunday, December 30, 2018

प्रिय तारीख़ में यह वक़्त जब दर्ज किया होगा
लिखेगा लिखने वाला हमने ये साथ जिया होगा


दर्द दिल में तो शायरी में उतर जाएगा

दर्द दिल में लिए बेचारा किधर जाएगा 

Friday, December 28, 2018

ख़्वाहिशों पर जोर नहीं हमारा - हम एक हो गए
राह ए ज़िंदगी में हमारे - रंज ओ गम एक हो गए 

Wednesday, December 26, 2018

गैर तुम तो क्या -
दिल में प्यार रखने में हर्ज क्या है
दिल मुझे -
प्यार रखने के लिए कुदरत ने दिया है

Tuesday, December 25, 2018

साथ नहीं हुए थे जब तक, हमारे काम किया करते थे
जब साथ कर लिया उनसे, हमसे काम लिया करते हैं

ये ज़िंदगी तू क्यूँ इतना मेरे लिए -
मेरे लिए, का शोर करती है
देख और भी हैं ज़िंदगी जो तुझसे -
अपने लिए उम्मीद रखती हैं

ख़ुशियाँ अगर कम हैं - चलो वे तुम्हें मिलें
बिन ख़ुश रहे भी हम- ज़िंदगी चला लेते हैं

Monday, December 24, 2018

मयस्सर हुई ज़िंदगी में जो इशरत जरा सी
गुमान यूँ हो गया जैसे ख़ुद हम खुदा हो गए
मयस्सर - लब्ध/प्राप्त  ,इशरत - भोगविलास/वैभव

ख्याल ए यार को फुर्सत हमें नहीं
शुबहा मगर
कि वह ख्वाब ओ ख़्याल में अपने
रखता हमें होगा


Sunday, December 23, 2018

गर बात वह ना रहे जिससे ज़िंदगी बेहतर लगती थी
तो बेहतरी यह कि 'औरों की ज़िंदगी की वजह' हो लें

Saturday, December 22, 2018

यह सफर बीत जाएगा - साथ मिलते, बिछड़ते
तुम याद वही रखना - जो दिल ख़ुश रखता है

यह ज़िंदगी मिली मुझे - सबकी ख़ुशी के सबब बनने को
माफ़ कर देना मुझे - गर मैं परेशानी का सबब बनता हूँ

ज़िंदगी से हासिल कुछ - साथ, क्या कोई कभी ले जाता है
ज़िंदगी में हासिल वह हो - जो इंसानियत को मिल जाता है 

Friday, December 21, 2018

किसी की कमी पर उलाहना दूँ मैं तो -
मेरी हिमाकत कहना
इंसान खुद मैं भी हूँ -
जानता हूँ इंसान में कमी हो सकती है

ख़ासियत आप में तो ख़्वाहिश मशहूरियत की होगी
महसूस किया भीतर इंसान तो पसंद इंसानियत होगी

Wednesday, December 19, 2018

उपयोगिता

उपयोगिता ..

समय आता है जब हमारी पारिवारिक और सामाजिक उपयोगिता लगभग समाप्त हो जाती है। तब हम एक तरह से भार होते हैं। ऐसे में हम अपने नखरे - फरमाइशें और अपेक्षायें ज्यादा रखें तो यह परिवार और समाज पर हमारा अतिरिक्त भार हो जाता है। इस भार को निर्वहन में परिवार और समाज से चूक होने की संभावना भी बढ़ जाती है , उस पर यदि हम चिढ़चिढ़ायें या गुस्सा करें तो पहले ही हुए भार को हम औरों के लिए असहनीय बना देते हैं। पूर्व में हम कितने भी प्रिय , सम्मानीय या जिम्मेदार रहें हों , आज की व्यस्ततायें हमारे करने वालों में विस्मृत हो जाती हैं।
अतः हम औरों के लिए कुछ न कुछ अपनी उपयोगिता ज्यादा से ज्यादा समय तक बनाये रख सकें यह कोशिश हमारी होनी ही चाहिए। फिर भी जब हम अनुपयोगी हो ही जायें तब अपने खर्चे , अपेक्षायें और क्रोध को नियंत्रित कर , हमें एक सरल व्यक्ति बन जाना चाहिए। यह सब करने के लिए हमें यह प्रमुख नहीं रखना चाहिए कि हम किसी के माँ - पिता हैं , अपितु यह स्मरण करना चाहिए कि एक बेटे या बेटी के रूप में हमने अपने माँ - पिता या  माँ - पिता तुल्य सासु जी , श्वसुर जी के लिए उनके ऐसे समय में कितना और कैसा किया है। 

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन 
20-12-2018

Tuesday, December 18, 2018

इक ही बुराई मुझमें - पर मुझे समझ न आती है
हर बुराई की वजह - मुझे औरों में नज़र आती है

#बेचैन_करती_है

बनी रहे मेरी नज़र के सामने - मोहब्बत की यह धुंध
साफ़ नज़र में - मंजर पर नफ़रत का साया दिखता है

तब
मर्माहत तो इंसानियत होगी ही
जब मरते दम तक
फ़क्त खुद की ख़ातिर हम जीते रहें

अपेक्षा - हमें, तुमसे कोई नहीं अपेक्षा - सिवा तुम्हारी ख़ुशी के कोई नहीं

Monday, December 17, 2018


राह ए ज़िंदगी में - हम उन्हें देखते खुश पड़े थे

संग-ए-राह कह - उन्होंने तरफ हमें कर दिया

मिली जिंदगी मेरी,
रंगहीन रेखाचित्र सी थी
मिला प्यार तुम्हारा,
खूबसूरत रंगीन तस्वीर हो गई

उसने एहसानों के बदले दरख़ास्त इक कर दी

कि मर जाऊँ जब मैं - अपने अश्क़ रोक लेना

Sunday, December 16, 2018

वह कलम जो बात बेबात चल दिया करती है
उसे बेच
अब चश्मा लिया
जिससे नज़र औरों के ख़ूबसूरत कलाम पढ़ा करती है

तुम्हें पसंद नहीं रह गया - मेरा लिखा,
पढ़ना
तुम्हारी ख़ातिरदारी में रहेंगे - वादा याद कर,
लिखना छोड़ दिया
एक आम ज़िंदगी अस्सी साल की होती है यानि लगभग 30000 दिनी। मुस्लिम की ज़िंदगी के अस्सी दिन ( बकरी ईद के) घटा दें तो 29920 दिनों में एक मुस्लिम और एक अन्य कौम के माँसाहारी इंसान में कोई फ़र्क नहीं रहता। ये 80 दिन मुस्लिम ज़िंदगी के ख़ास दिन हैं - वे उन्हें निजी तौर पर स्मरण रखें , और अन्य कौम के लोग उन्हें भुला सकें तो नफ़रत, रंजिश, ख़ूनख़राबा और दहशतगर्दी से इस दुनिया को काफी हद तक छुटकारा मिल जाएगा। 

Tuesday, December 11, 2018

वज़ूद को हम अपने
खुद जान जो लेते
हर इंसान को हम
सम्मान दिया करते 

Monday, December 10, 2018

मेरे कलाम यूँ - बेहतरीन होने से रह गये
आपकी नजरें इनायत हुईं नहीं - क़त्ल हो गये

हमारे क़त्ल का गुनाह हम -
माफ़ तुम पर करते हैं
हम जी रहे हैं जैसे -
उसे लोग ज़िंदगी नहीं कहते हैं

उस मुक़ाम से निकल आये हैं -
जिसे इश्क़ कहते हैं
अब मंज़िल है वह हमारी -
जिसे ज़िंदगी कहते हैं

क्यूँ कीजिये?
नफ़रत हमसे
इक इंसान के लिए मोहब्बत नहीं है?
दिल में तुम्हारे

Sunday, December 9, 2018

निहायत अविवेकपूर्ण व्यवस्था थी , भारत की आज़ादी देते हुए ब्रितानी हुकूमत की और आज़ादी लेते हुए महत्वाकांक्षी हमारे सियासत दारों और मज़हबी दृष्टि से अपने हित लोलुप धार्मिक ठेकेदारों की जिसके अंतर्गत आज़ादी के साथ ही यह मुल्क विभाजन को मजबूर हुआ। मानवता की दृष्टि से नितांत अदूरदर्शिता पूर्ण दृष्टि ने कितने नामी गिरामी शख्सियत को उनसे मूल से उखाड़ कर उन्हें अवसाद और गुमनाम हो जाने को बाध्य किया। कितने के जमे व्यवसाय - उद्योग सत्यानाश हुए उन्हें छोड़ कर किसी को इस तरफ और किसी को उस तरफ फिर अपनी ज़मीन बनाने के चुनौती पूर्ण काम मिले। कितने ही लोगों ने अपनी जानें गँवाई। और इस उपमहाद्वीप में बहन बेटी और बहुओं से मापी जाने वाली खानदान की इज्जत को क्या नहीं कलंक और मानसिक अवसादों का सामना करना पड़ा जब सभी कौम के मर्दों में सोया हुआ दरिंदा जाग उठा जिसने छोटी सी बच्ची से लेकर बूढी औरतों को अपनी हवस का शिकार बना उनकी आबरू तार तार कर दी , इनमें से अनेकों शरीर इस यातना और बेइज्जती के कृत्यों को सहन नहीं कर पाया कुछ मर गईं , कुछ को दरिंदों ने मार डाला। यह इस उप महाद्वीप का घिनौना इतिहास लिखा जाने वाला वक़्त था। अदूरदर्शी तब के नीति निर्धारकों ने भारत और पाकिस्तान का वह कारण दे दिया था जिससे उत्पन्न परस्पर नफरत से कई पीढ़ियों को बदले की तथा रंजिश की आग में जलते हुए एक दूसरे पर वह कहर बरपाना था जिसमें लोगों को दहशत के साये में जीना था। परस्पर सौहार्द या मोहब्बत की मधुरता से मिलने वाले ज़िंदगी के लुफ़्त से वंचित , नफ़रत दिल में रख उसकी जलन स्वयं को ष्ण और दूसरों की इसकी आग में झोंकना था। 
इस प्रकार कहें तो 1947 ईसवी तक का मानव इतना सभ्य नहीं हो सका था जो यह समझ सकता कि तोड़ना नहीं एक दूसरे को जोड़ना मानवता के हित में होता है। यही जुड़ना उस विश्वास और सहयोग की बुनियाद होती है जिससे हर ज़िंदगी को खुशहाली की बुनियाद और धरातल देती है। 
2018 ईसवी में अगर इस सच को हम पहचान लें और पूर्व इंसानी पुश्तों की गलतियों से उपजे परिवेश को बदलने की कोशिश की शुरुआत करें तो मानव सभ्यता की परिपक्वता साबित करेगा जिसमें हम वह धरातल बना सकेंगे जब भारत पुनः एक होगा और परस्पर विश्वास - सहयोग से ऐसा मुल्क बनना आरंभ करेगा जो दुनिया को इंसानियत की मिसाल और संस्कृति देगा। दुनिया को भारत पुनः संस्कृति और सभ्यता का नेतृत्व देगा जिससे पूरी दुनिया में भाईचारा और अम्न का साम्राज्य होगा। 
--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन 

Saturday, December 8, 2018

मोहब्बत की दरकार थी ज़िंदगी को
दहशत के साये में मजबूर है जीने को

हसरत हो कि
ज़िंदगी कोई मोहब्बत से बेजार न हो
तो आ जाना
अकेले ही मैं एक कारवाँ हो चल पड़ा हूँ 

इम्तिहान ..

इम्तिहान ..

किसी हादसे के ठीक पहले

वह लम्हा भी आता है

जिसमें दिमाग़ में

एक ख्याल कौंध जाता है

सामने इंसान या अपनी गाड़ी को बचाऊँ 

पशोपेश में दिल तेरा पड़ जाता है 

जिस दिन होने देगा गाड़ी का नुकसान

और इंसान को तू बचा लेगा

उस दिन इंसानियत का इम्तिहान

तू पास करके दिखा देगा 

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन 

08-12-2018

Friday, December 7, 2018

ज़िंदगी गुज़र रही है बाकि भी यूँ गुज़र जायेगी
ये सोच के चुप रहना ठीक नहीं
ज़िंदगी और परिवेश नई पुश्तों को ठीक मिले
मुनासिब है इसके लिए हम प्रेरणा बनें

यूँ तो करने से तुम्हारे कुछ भी फ़र्क पड़ना नहीं है
मगर इससे निराश हो तुम्हें लक्ष्य छोड़ना नहीं है 

Wednesday, December 5, 2018

मर्जी आपकी अपनी है ,
कोई जोर उस पर मेरा नहीं
एक उम्र है तब तक सब है ,
फिर जोर तुम्हारा मेरा नहीं

दुश्मन तो मेरे,
सभी दोस्त हो रहे थे
हैरत में मैं दोस्त मेरे,
तब तुम दुश्मन क्यूँ हो गए

उन पर तरस आया नहीं तुम्हें,
चलो कोई बात नहीं
हालात से लड़ने की मिसाल,
उनकी ज़िंदगी होगी



इस कदर तो ख़राबी हम में न थी
कि सुधर न सकें
यह जरूर कि
मरम्मत में ही उम्र एक गुजर गई

बेशक़ गिरा लेने दो दुश्मनों को हमारी राह में शोले
हमने जोर ए आज़माइश में ही उम्र एक गुजार दी है

दुश्मन कई आये थे - ज़िंदगी में हमारी
और बात है कि - अब ख़ैर ख़्वाह वे ही हैं हमारे

यूँ ही बेखुदी में
दिन गुजर रहे थे
पहले - फ़िक्र ए आज़ादी की मसरूफ़ियत में
अब - आज़ादी की खामख्याल गफ़लत में

मुस्कुरा लेना हमारा
कभी मुश्किल नहीं होता
ग़र हसरतें हमारी
फ़क्त ख़ुद के लिए नहीं होतीं 

Monday, December 3, 2018

हमारे अपने नहीं वे भी खुशियों में जियें
उनके अपने हैं जिनकी खुशियाँ उनसे है

अक्ल और मौके हर ज़िंदगी में मगर -
क़ामयाब वो है
जिसे वक़्त पर अक्ल और मौका पहचानना -
आया है 

Sunday, December 2, 2018

कौन होगा ?

कौन होगा ?

इंसान वह जो नफ़रत के कारण अपनी आगामी पुश्तों पर , आसन्न खतरों में ज़िंदगी जीते देखना पसंद करेगा। नफ़रत से ख़ौफ़ में जीती कई पीढ़ियाँ गुजरीं , क्या इनकी आपसी दुश्मनी में गुजरी ज़िंदगी , एक ज़िंदगी में मिलने वाले मजे से वंचित नहीं रही? हम नफ़रत में इस कदर गुस्साये रहें यह हम पर खुद ही अन्याय है। जो दायित्व हम पर है , हम नहीं तो आगे की पीढ़ियों को निभाना होगा। जो आनंद जीवन में प्रेम - सौहार्द से मिलता है वह फिजाओं में नफ़रत घोल कर नहीं प्राप्त किया जा सकता। इतिहास की कलंक बनीं इबारतों को फिर फिर याद कर के आपस में खून की होली खेलना या अपने किसी जूनून (मज़हबी या सियासती) में हिंसा और नफ़रत की तरफ पीढ़ियों को उकसाना कतई इंसानियत नहीं है वह भी उन बेचारों को जिनकी अभी मूँछे भी नहीं आईं हैं। हमें ठंडे दिमाग से विचार करना होगा। यह समझना होगा कि नफ़रत से दुष्प्रेरित हो किया हमारा एक काम - इसी तरह के नफ़रत दुष्प्रेरित अनेक काम को प्रतिक्रिया में पैदा करता है। यह भी नहीं कि यह सिर्फ मेरे पक्ष का ख्याल है - इस देश या उपमहाद्वीप में रहने वाले सभी पक्ष को इस पर गौर करना चाहिए। दुनिया में सभ्यता का उदहारण जापान ही क्यों ?, समृद्धि का उदाहरण ऑस्ट्रलिया या यूएस ही क्यों? , विकास की मिसाल अन्य ही क्यों और प्रेम भाईचारे से एक हो जाने का उदहारण जर्मनी ही क्यों ?- यह उपमहाद्वीप भी या भारतवर्ष भी ऐसी सभी मिसाल पेश कर सकता है। पूर्व की भाँति सँस्कृति और विव्दता में और मानवता में विश्व का नेतृत्व फिर हम कर सकते हैं। ऐसा सब हो जाए तो यह आश्चर्य नहीं होगा। क्षमा और पूरी विनम्रता से यह मेरे मन की बात है। जिस से सहमत होना आवश्यक नहीं। मैं खुद को बहुत बुध्दिमान मानने का भ्रम नहीं रखता हूँ।


--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन 

Saturday, December 1, 2018

लड़कपन के सपनों में अपने लिए सब सच्चा प्यार चाहते हैं
बड़े होकर मगर सब खुद ही सच्चा प्यार बनना भूल जाते हैं

वे महान बना गए थे , पावन ध्येय से कुछ सुपथ
पाखंडियों ने चल के उन पर , उन्हें भ्रष्ट कर दिए 

Friday, November 30, 2018

#बनो_ऐसे
फ़िक्र नहीं कोई - दुनिया को मालूम रहे ना रहे
वक़्त को मालूम रहे कि - इंसान कोई अच्छा था

#नज़रिया
तुम्हें अपने मतलब के नज़रिये से देखेगी दुनिया
तुम देखो कि वक़्त किस नज़रिये से जानेगा तुम्हें

#औरों_को_जगह_देना
सब चल रहे जिस राह पर - भीड़ बहुत है
मुझे पसंद इसलिए - कि थोड़ा हट के चलूँ

शुक्र कि
इंसानियत का इल्म कराया मज़हब ने मेरे
वरना
देर नहीं करता अपना मज़हब बदल लेता मैं



Thursday, November 29, 2018

कागज़ का पन्ना बदक़िस्मती पर रोता है
बन सकता वह 'पैग़ाम ए मोहब्बत'
लिखने वाला मगर
उस पर नफरत की इबारत लिख देता है

Wednesday, November 28, 2018


तेरी ख़ामोशी के पीछे क्या है? वही जानते हैं
इस जहान में जो थोड़े तुम्हें अपना मानते हैं

हमें अपना मानने से पहले तुम - दरियाफ्त ठीक कर लेना
अपना बताने के पीछे - मतलबी जहान में छुपे हैं कई धोखे

मासूम , कमसिन के लिए - ख़्वाहिशमंद बहुत होते हैं
चाँद अब कोई नहीं कहता - जिसे पहले बहुत कहते थे 

Tuesday, November 27, 2018

काश
कुछ वक़्त तुम , मैं - और मैं , तुम बन जायें
तो
हम दोनों - आपसी अपेक्षाओं को समझ पायें

बहुत मिला होता है-
बहुत मिल नहीं पाता है
मिले में जीवन होता है -
न मिला, सपना रह जाता है

Monday, November 26, 2018

शैतान को मारने में नहीं है जीत तेरी जीत शैतानियत के खात्मे की कोशिश में है तेरी शैतान भी बनाया है खुदा ने मगर दिया है काम - तू उसकी शैतानियत खत्म कर

मानव सभ्यता

मानव सभ्यता 

जन्म और मौत अत्यंत कष्टदायी होते हैं. हर मनुष्य का जीवन में इन दो भीषण कष्टों से सामना होता ही है। हर बच्चा जन्म का कष्ट तो जीवन में याद नहीं रख पाता है किंतु मौत और मौत के पहले का डरावना अकेलापन और असहाय अवस्था जिसमें मरने वाले का कोई वश ही नहीं होता तो लगभग सभी मनुष्य को देखना होता है (कुछ मौतों को छोड़कर जो आकस्मिक हो जाती हैं) . ऐसे में हर जीवन को अर्थात हर मनुष्य को ज़िंदगी में इतना सुख तो मिलना ही चाहिए जो इन बेहद कष्टदायी (अप्रिय) पीड़ा की तुलना में अधिक ख़ुशी (प्रिय) की प्राप्ति रूप हो. यह 'हर मनुष्य का जन्म सिध्द अधिकार' है और जब तक हमारी सामाजिक व्यवस्था ऐसी नहीं बना दी जाती , तब तक हमें किसी भी उपलब्धि को मानव सभ्यता की पूर्णता निरूपित नहीं करना चाहिए। मनुष्य का ऐसा जन्मसिध्द अधिकार किसी धर्म , किसी नस्ल या किसी संप्रदाय विशेष से स्वतंत्र है। इसलिए सभी वर्गों का चाहे वे किसी- क्षेत्र के हों , चाहे देश के हों , चाहे किसी भाषाभाषी के हों यह कर्तव्य बनता है कि मानव सभ्यता की इस परिकल्पना पर काम करें। यह लेखक के मत में मिले मानवीय जीवन की सार्थकता भी है। 

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन 
27-11-2018

Sunday, November 25, 2018

#आदर्श
हमारे अंत स्थल में उन सभी के लिए प्यार होना चाहिए
जो जीने की चाह रखते हैं
यह कठिन अवश्य होता है
मगर ध्येय यही होना चाहिए

#भ्रम
एक जीत भ्रम है - एक हार भ्रम है
जीत में हार - हार में, छुपी जीत है


Saturday, November 24, 2018

क्या पा लेना है - खो क्या देना है
पैदा हुए इंसान - इंसान बने रहते

जरा हुई हैसियत से ख़ुद को ऊँचा समझते थे हम
'दरबार ए इंसानियत' में मगर नाटे साबित हुए हम

थोड़ी उपलब्धियाँ मिली अपने को ऊँचा मान बैठे हम
मानवता के मंदिर में मगर स्वयं का बौना पाया हमने



Thursday, November 22, 2018

मर जाऊँ तो - तुम अफ़सोस करना नहीं
कि अब एक नेक ज़िंदगी - जी ली है मैंने

#राजेश
एक कंधे पर ज़िंदगी दूजे पर मौत लिए कब से चल रहा ,
'राजेश'
शुक्र मगर रूह पर ना ज़िंदगी , ना ही मौत कोई बोझ है

#गर्व
हमारे होने पर - गर्व करने वाली कोई बात नहीं
देखो ना - कितनी नफरत कितना ख़ूनख़राबा है हमारे होते हुए

#पहचानना
खुद को तो अभी तक - पहचाना नहीं हमने
झूठ है ग़र कहें - तुम्हें पहचान लिया हमने

#लम्हा
शुक्र ए ज़िंदगी - हमें बेहिसाब लम्हें दिए तुमने
मौत को हँस के मगर - आखिरी लम्हा हम देगें

दिल में उसके मोहब्बत है हमारे लिए - सुकून यह हमको है
कि
मर भी गये अगर हम तो क्या - दिल से याद तो करेगा वह
#बेकार_है_किसी_को_परेशान_करना
छोटी इक जान वह - उससे शिकवा-शिकायत क्यूँ हो
अपनी आरज़ूओं का बोझ - उस पर रखना ठीक नहीं

#आईना_है_हम_ही_झलकते_हैं
मुल्क़ न तेरा न मेरा - हम क्यूँ इसे बदनाम करें
हम से है मुल्क़ का चेहरा - हम ही इसे ठीक करें

#सोचना
जब अपने हित नहीं देखते - चट झगड़ने खड़े हो जाते हैं हम
देश में सब रहते हैं सर्वहित किस बात में - सोचा कभी हमने

#इंसान_का_मिलना
आज इंसान कोई मिलता नहीं - ये शिकायत नहीं कर
इंसान तू खुद हो के दिखा - इंसान तुझे मिलने लगेंगे

#खुदा_का_बंदा
बुरा देख तू खुद बुरा होने का बहाना न तलाश
खुदा ने भेजा तुझे - नेक जिंदंगी जीने के लिए

Wednesday, November 21, 2018

#ख़्वाहिश_ए_शोहरत
कभी ख़्वाहिश - ख़ुद के लिए शोहरत हुआ करती थी
मगर देखा , अच्छे लोग कम - जिन्हें आज शोहरत हासिल है

#परिवेश_यह_चाहिए
ज़िंदगी के हर मुक़ाम पर जरूरत , ख्वाहिशें अलग अलग हैं
हर मुक़ाम पर मगर ज़िंदगी की जरूरत , ख्वाहिश इज्जत है

#बच्चों_में_सँस्कार
ख़ुद नहीं कर सकीं इंसाफ़ - ऐसी पुश्तें अभी रहीं
इंसाफ़ के लिए हमें - इंसाफ़ पसंद पुश्तें लानी होगीं

#एक_का_जाना
जानते हैं हमारे चले जाने से तुम बेहाल हुए होगे
सोचना मगर कि बेबसी ही होगी जो हम चले गए

#ख़ुशी_दे_सकना_सरल_नहीं
उसकी हैसियत नहीं कि ख़ुशी देता
दर्द ही दे सका और वह चला गया 

Tuesday, November 20, 2018

नाकामयाबी को ख़ुद की - ख़ुदा की मर्जी न बताये तो
खुदा की दी ज़िंदगी - कोई नाकाम इंसान जिये कैसे

दिल में आपके - छुप के रहना हमारी मजबूरी है
ज़माना जलता है - गर प्रेमी बेइंतहा मोहब्बत से रहें


Monday, November 19, 2018

#Terrorist

ख़ुद तो हसरत तेरी - अपनी ख़ुद की शर्तों पर जीने की
बेगैरत तू - औरों को उनकी शर्तों पर जीने क्यूँ नहीं देता

तीरगी की तारीख़ का सिलसिला - कब तारीख़ होगा बता दिल तक तेरे - आफ़ताब का उजाला कब पहुँचेगा तीरगी - अंधकार , तारीख़ - इतिहास

मेरा समय , मेरा लिखना व्यर्थ है - मालूम है मुझे पर खेद नहीं कि - पैग़ाम ए अमन लिखा करता हूँ

Sunday, November 18, 2018

मालूम होता कि-उसका जाया शैतान बनेगा
ज़िंदगी नहीं-किसी की वह मौत बनेगा
नौ माह उसके लिए-न दर्द झेलती वह
इंसानियत,शर्मसार करती-जो तारीख बनेगा

रुलाते किसी माँ को
जो असलहा-हथियार ईजाद ना होते
ग़र उन्हें उठाने को
कोई हाथ तैयार नहीं होते


#दर्द_ए_मोहब्बत_के_नक़्श
ज़िंदगी है वह - उसे जलाना ख़ुदकुशी होगी
झुलस जायें तब भी - उसका होना ज़िंदगी होगी

कैसी अजीब फ़ितरत इसकी - कैसा ख़ुदगर्ज ये इंसा
ख़ुशी चाहता है ख़ुद के लिए - औरों पे सितम करके

ख़्वाब ए अमन - ज़िंदगी भर देखता रहा था वो
अरमां बाकि रह गया सीने में - जब दफ़न हुआ वो

तुम लिखो कि तुम्हें पढ़ना अच्छा लगता है
और लिखते हैं औरों में बुराई बताने के लिए





Saturday, November 17, 2018

नदीम को बचाना दायित्व ...

नदीम को बचाना दायित्व ...
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कश्मीर भी पूर्व भारत के अलग हुए हिस्से अफ़ग़ानिस्तान , पाकिस्तान और बँगला देश की तरह अलग किया जा सकता था। मगर इनमें से अलग हुआ हिस्सा ना तो खुशहाल है ना ही भारत के साथ भाईचारे से रहता है। वहाँ जनजीवन हमसे भी पिछड़ा है और वहाँ हिंसा व्याप्त है। एक ही कौम के होते हुए भी नफ़रत और हिंसा होना दुःखद आश्चर्य की बात है। अतः अगर कश्मीर के रहवासियों को अन्य कौम से कोई रंजिश भी है तो समाधान एक कौमी राष्ट्र में भी नहीं है। यह समझना होगा। एक छोटे राष्ट्र की अन्य पर निर्भरता भी दुःख दाई ही देखने में आती है। चीन जैसा साम्राज्यवादी देश अपनी चतुराई से और प्रलोभनों में फँसा कर , वहाँ के लोगों को आर्थिक रूप से ग़ुलाम बनाते चला जा रहा है (उदहारण - पाकिस्तान , नेपाल , श्रीलंका और इसी तरह के अन्य छोटे देश हैं). ऐसे में भारत जो की एक राष्ट्र के रूप में कश्मीर को समाहित रखता है। और उपलब्ध संसाधनों से कश्मीर में पर्यटन विकास की कोशिश करता है , कश्मीर की जनता के लिए इसी में बना रहना बेहतर विकल्प है। विभिन्न भडकावों में न भड़कते हुए , देश के लिए आतंक नाम की चुनौती को मदद पहुँचाना अगर वहाँ के लोग (कुछ ही हैं जिनके निज हित खून खराबे के जारी रहने में हैं जो सर्वथा उनका भ्रम मात्र है ) बंद करें तो उनसे बचाव में जाया हो रहा धन वहाँ और देश के विकास को ज्यादा गति देने में सहायक हो सकता है। साथ ही पिछले 30 साल से मचे अंदरूनी संघर्ष से भय के साये में जी रहे लोगों को भयमुक्त ज़िंदगी का लुफ़्त भी सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है कि वे यह पहचान कर लें कि कश्मीर को देश से तोड़ने की कोशिश करने वाले लोग वहाँ के राजा बनने की महत्वकाँक्षा पालते हैं , वे कश्मीर को सुनहरे भविष्य का सपना तो देते हैं किंतु सुनहरा भविष्य अपने लिए सुनिश्चित करने की फ़िराक में हैं। ये सारे वो लोग हैं जो अपने खुद की औलादों को ब्रिटेन या अन्य जगह बसा देते हैं और वहाँ आम जनता के मासूम युवाओं के ब्रेन वॉश कर उन्हें मरने और अपढ़ रहने को छोड़ रहे हैं।
नदीम का (मुखबिरी के कारण) मारा जाना या सेना और पुलिस में वहाँ के कई सपूतों का शहीद होना इस बात को साबित करता है कि है वहाँ एक बड़ा समुदाय जो भारत की सम्प्रभुता का समर्थक है लेकिन इस भय से चुप रहता है कि बोलने और सामने आने की कीमत उनकी अकाल मौत का कारण साबित हो सकता है। पाकिस्तान का एजेंडा ही गलत है कि हम खुशहाल नहीं तो भारत क्यों खुशहाल हो। नतीजा यह कि रक्षा व्यय दोनों के बहुत बड़े हुए हैं और जनता मुफलिसी में जीने को मजबूर।
ख़ुशहाली कौमी संकीर्णता में सिमटने में नहीं है अपितु ख़ुशहाली उदारता से सभी इंसान की स्वीकार्यता में है। हम अगर इंसान हैं तो अन्य भी इंसान ही हैं - यह समझना आज समय की जरूरत है। नदीम को बचाना किसी भी मजहब का दायित्व है , उसे मारना कोई मज़हब इजाज़त नहीं देता है।
--राजेश चन्द्रानी मदनलाल जैन
18-11-2018

Friday, November 16, 2018

क्या गैर -
क्या अपना
आवाज़ में मोहब्बत हो
सिर्फ एक यही सपना

दिल की धड़कन ही आवाज पर
सरोबार जो दिल हैं मोहब्बत से
नफ़रत तो दुनिया में ख़त्म होगी
ऐसे दिलों से निकलते अल्फ़ाजों से

मिलती विरासत मोहब्बत की - हमारा काम फिर क्या होता
मिली विरासत नफरत की - चलो मोहब्बत के लिए पीएचडी करें


Wednesday, November 14, 2018

हों सजींदा हम अमन की जुस्तजू करें
नफ़रत के सिलसिले का आज पार करें
तुम नफ़रत को चिता में राख करो
हम नफ़रत को सुपुर्द ए ख़ाक करें

अभी ही तो भरी थी वक़्त की रेत से मुट्ठी
अभी ही देखा कि काफ़ी रेत खिसक गई है




Tuesday, November 13, 2018

प्यार
आप अपने लिए - करना , सोचना
हम आपके लिए - करेंगे , सोचेंगे 

Monday, November 12, 2018

लियाक़त उसमें भी है - साबित करने के उसे मौके नहीं
आप बताओ - अपनी लियाक़त ज़ब्त रख जी सकते हो

सब कुछ हम ही हासिल कर लें तो-  ख़ुशी हमें कहाँ होगी
हासिल होने पर औरों के चेहरे की - ख़ुशी दिखलाई कहाँ देगी
हासिल कुछ आप
हासिल कुछ हम करें

मेरा उनमें खो जाना - यूँ बेहतर था
खो कर मैंने - अपना जहां पाया था

तोड़ ले जा सकें - मेरे पुष्पों को गुजरने वाले
खुशियों के पुष्प मेरे - जमीं के इतने करीब हों

Sunday, November 11, 2018

जीवन एक प्रयोगशाला - प्रयोग स्वयं करने होंगे
तुझे मिले भिन्न मसले - तुझे स्वयं खोजने होंगे

मुनासिब नहीं, कमी अपनी इल्ज़ाम औरों पर
मुनासिब है, हम मिज़ाज खुद का दुरुस्त करें

Saturday, November 10, 2018

'जान से ज्यादा चाहते हैं' - निबाहने की तुम हक़ीक़त पता करना
फिर तुम कह ना पाओगे - तुम्हारे लिए चाँद सितारे ला सकता हूँ

कहते थे ख़्याल ओ ख़्वाब में मेरा होना पसंद है तुम्हें
हम ख़्वाब से हक़ीक़त हुए अब तो तुम बदहाल क्यूँ हो

सीना ताने वो चल रहे हैं - जिनमें नफ़रत भरी हुई है
लिहाज़ , अदब में झुके हैं हम - सीने में मोहब्बत रखते हैं

वक़्त की बेरहमी नहीं कहेंगे कि - हम जुदा हो गए
शुक्रगुज़ार हैं वक़्त के - ज़िंदगी में मिलाया था हमें

होश सम्हाला और ज़िंदगी में मोहब्बत बनी पसंदगी
इक ख़्वाहिश पैदा हुई दिल में कि मोहब्बत से सब रहें

Friday, November 9, 2018

टुकड़े पचास तो -
नफ़रत से कोई भी कर देगा
है कुव्वत तुझमें? -
मोहब्बत से एक करके बता

ख़ुद के दिल की समझना ,
दिल की कर लेना आसान है मगर
कुव्वत तो जब ,
औरों के दिल की समझें - उनके दिल की कर दें हम

इत्मीनान है कि आलम मोहब्बत का होगा
सबमें इंसान ही तो है यह जागेगा भी कभी

रिश्तों में तल्ख़ी की वज़ह फक्त एक
भूलनी थी जो बातें दिल में रख बैठे हैं

लफ्ज़ तो हमने भी लिखे लाज़वाब थे
गर लब आपके पाते मिसाल हो जाते 
अपनी मोहब्बत में वह मुक़ाम हमने पाया है
आपकी हर भूल को नज़रअंदाज हमें करना आया है

काश! आबशार मोहब्बत के हम हर जगह बना सकते
नहाते  सब जिसमें और नफ़रत दिल से मिटा सकते
आबशार - झरना

शिकायतें, अज़ीयतें तुम पर करें कैसे कि- हम तुमसे प्यार करते हैं
मजबूरियाँ, परेशानियाँ तुम्हारी समझें कि- हम तुमसे प्यार करते हैं
अज़ीयत - अत्याचार

Wednesday, November 7, 2018

अपनी मोहब्बत में वह मुक़ाम हमने पाया है
आपकी हर भूल को नज़रअंदाज हमें करना आया है

काश! आबशार मोहब्बत के हम हर जगह बना सकते
नहाते  सब जिसमें और नफ़रत दिल से मिटा सकते
आबशार - झरना

शिकायतें, अज़ीयतें तुम पर करें कैसे कि- हम तुमसे प्यार करते हैं
मजबूरियाँ, परेशानियाँ तुम्हारी समझें कि- हम तुमसे प्यार करते हैं
अज़ीयत - अत्याचार

#निजी_दुनिया
"ख़्वाब ओ ख़्याल" की बेहतर दुनिया है
जिसमें सब हम से मोहब्बत करते हैं 
अरमां है जिसके सब के सब
औरों के लिए
शिकस्त या जीत भी उसकी
होती नहीं खुद के लिए 

Monday, November 5, 2018

#निजी_दुनिया
"ख़्वाब ओ ख़्याल" की बेहतर दुनिया है
जिसमें सब हम से मोहब्बत करते हैं 

Sunday, November 4, 2018

ना तुम्हारी शबीह पास - ना ही तुमसे मिलने के सिलसिले हैं
ख़्वाब ओ ख़याल में नाम रह गया - तुम्हारी शक़्ल नदारद है
शबीह- तस्वीर\\

हमारे इतराने की फक्त इक वजह
कि तुम हो इस जहां में हमारे लिए




डाई, लिपस्टिक, पावडर, विग और ये मॉडर्न मुखौटों का फैशन
फिर क्यूँ है हमें शिकायत कि- आज इंसान असली नहीं मिलता

न भीड़ में होना है मुझे - न गिर्द भीड़ लगाना ही , है पसंद मुझे
बस सरल सादा इक इंसान हूँ - इंसान रहना ही , है पसंद मुझे

बदहाल कहना ठीक नहीं
हाल इश्क़ में यह हुआ है


Thursday, November 1, 2018

किसी की औलाद , किसी के भाई - किसी के शौहर , किसी के बाप
ऊपर एक इंसान तुम - दायरे में रहने के लिए , क्या इतना काफी नहीं?

कतरा कतरा करके समंदर हो जाये - मगर कतरे को नाज़ करने की जरूरत क्या - जैसे अनेकों हैं

मिलना क्या है आप को , हमसे और हमें , आप से
हमें पसंद कि , आपमें इंसान का परिचय मिलता है

Wednesday, October 31, 2018

ऐसी भी आपकी
जद्दोजेहद क्या है
सिवा मोहब्बत के
ज़िंदगी से चाहिए क्या है

होता तो सोचा हुआ भी है - याद वह रखता नहीं
याद रखता वह इंसान - सोचा हुआ जो होता नहीं

मालूम नहीं क्यूँ नफ़रत बाँटने वालों को - हम सुर्खियाँ देते हैं ख़ुद के लिये जबकि - हम अमन और सबसे मोहब्बत चाहते हैं

Tuesday, October 30, 2018


नज़रों में चढ़ना उनकी - हम पर नहीं उन पर  है
नज़रों से गिरना उनकी - उन पर नहीं हम पर है

हमें एकतरफ़ा मोहब्बत है तुमसे -
तुम्हारी हर ख़ुशी में हम खुश हैं
तुम करते हो जिससे मोहब्बत -
ऐसे ही उसकी ख़ुशी में तुम ख़ुश होना


दिल में कोई - एकबारग़ी बस जाता है
दिल से जाने में - मगर वक़्त लगता है


नज़रों में इक़रार - लबों पर मुस्कुराहट , एक फ़रेब था
हमारी ज़िंदगी गुजर रही है - एकतरफ़ा मोहब्बत में


नाराज होकर रहने में मज़ा नहीं जीने का
ज़िंदगी में मज़ा तो ख़ुशी के देने लेने से है

नियम -
ज़िंदगी है जिसमें
जो न हो वह कम है

हम कोई चीज नहीं खुद को - अच्छी पैकेजिंग में पेश करें
अदने से एक इंसान हैं हम - जैसे हैं सामने हाजिर हैं


वफ़ा साथ रहे न रहे - बेवकूफियाँ साथ होंगीं जरूर
यह ज़िंदगी हमारी चूँकि - खास नहीं आम है


जब हमें समझ आती है - हँसने के लिए बाहरी मटेरियल की जरूरत नहीं होती
अपनी रहीं बेवकूफ़ियों पर विचार ही - हँसने के लिए काफी होता है

ये कमी हमारी है - तुम अच्छे न हो सके हमसे
हम में गर खासियत होती - तुम में तो तारीफ़ बहुत हैं

Monday, October 29, 2018

चलो कि
अब फिर नई सुबह आई है
सब जियें मोहब्बत से
हम उस सुबह के लिए काम करें


मुख़्तसर सी हयात की हसरत है हमारी
लेना देना सिर्फ मोहब्बत का हो जिसमें
(मुख़्तसर - संक्षिप्त , हयात - ज़िंदगी)

हैसियत कुछ भी बनी हो सब खो जानी है
हैसियत इतनी बने कि खोने का रंज न हो




Sunday, October 28, 2018

चलो , हम बेवफ़ाई तुम पर माफ़ करते हैं
तुम मगर , ख़्वाब अपने पूरे जरूर करना

अपने ही लिए जी के गुजर जायें - हम ऐसे इंसान नहीं
रवायतें हैं औरों के लिए जीने की उन्हें कायम रखना है

एहसान करके जीना भी ख़ुद के लिए जीना है
करना पसंद इसलिए तो एहसान हम करते हैं

दिल में दर्द छिपा के - कोई खुश नहीं रह सकता 
औरों का हमदर्द हुआ जो - वही खुश रह सका है


इंसान को रोना पैदाइशी मिला हक़ है
रोने तो दो बेचारे को जो दर्द का मारा है


जिसे देखो अपनी आखों में आँसू छुपाये बैठा है
रोते की ख़बर वह लेता नहीं कि खुद ही रो देगा

Saturday, October 27, 2018

मिसाल ए मोहब्बत हमारी - फ़िजा में कुछ यूँ बिखरे दिलों में नफ़रत है जिनके - मोहब्बत में बदल जाये नेकनियत नज़रों ने उनकी - शराबोर यूँ किया अज़नबी हम थे , उन्होंने हमें अपना बना लिया



जी

जी तो ली ज़िंदगी हमने - चारों तरफ नफ़रत की आग में
बच्चों के लिए अपने - मोहब्बत जिसमें वह जहां चाहिए है


बढ़ी उम्र में तराशने से खूबसूरती बरकरार रहती नहीं
देख उसने खुद में इंसानियत तराशना शुरू कर दिया 

Friday, October 26, 2018

कैसे बुध्दू हैं कि - दर्द अपने जानते हैं हम
फिर भी औरों के दर्द से - अनजान हैं हम

कुछ हैं जिन्हें जीने का अंदाज आता है
और कुछ हैं जिन्हें बयां करना आता है
हम हैं जद्दोजेहद में इसलिए कि हमें
न जीना और न ही बयां करना आता है

Wednesday, October 24, 2018

मुश्किल होगा किसी में - भले होने की चेतना जगा देना
प्रेरणा बनने के लिए स्वयं ही - पहले भला होना होता है

दिल को सुकून नहीं
बेचैनी को तसल्ली नहीं
कहते इंसान हैं हम
इंसानियत मिलती नहीं

नया तो तब है - जब तुम हमें भला मानो
और जो भला नहीं - उसे बदलने की प्रेरणा दे डालो

तुम्हारा , हमें बुरा समझने में नया कुछ नहीं
आज , कोई किसी को भला मानता ही कब है

हम ने खुद को तो इंसान समझ लिया
और भी इंसान ही हैं मगर हम ने भुला दिया



Saturday, October 20, 2018

इसे हासिल कहें या खोना हम कहें
जो हासिल है वही तो हम खोते हैं

हासिल की तमन्ना न रखें - बाँटने का काम करें
हासिल तो खोता है - बाँटा ज़माना याद रखता है



Thursday, October 18, 2018

दिल है नाजायज़ भी कुछ आता है - इसमें
पर इंसान हैं हम - जायज़ ही सब करना है


गंगा सी पाकीज़गी तो रहे दामन में मगर
ज़हानत भी रहे कि 'गंगा मैली न होने पाये'

Tuesday, October 16, 2018

गम हैं तो गमज़दा रहना फितरत है सबकी
और बात है कि दिखते हैं हम मुस्कुराते हुए

बर्दाश्त बाहर कभी - गम होता भी है
ना चाहते हुए भी - इंसान रोता भी है


अपनी खुशियों का इज़हार - हम नहीं करते हैं कि
नज़र आते यहाँ लाखों - रंजीदा और अफ़्सुर्दा हमें

गम जदा नज़र आना हमें यूँ मंजूर नहीं कि
कोई नहीं ऐसा जिसे हमारे ग़म की फ़िक्र है

अच्छे हों हालात - ख़्वाहिश सबकी होती है
अच्छे हालातों से मगर - उम्र लंबी होती है

ख्वाहिशें चाहे - अधूरी छूटतीं हैं
उम्र मगर - इकदिन पूरी होती है




गम जदा नज़र आना हमें यूँ मंजूर नहीं कि
कोई नहीं ऐसा जिसे हमारे ग़म की फ़िक्र है

अपनी खुशियों का इज़हार - हम नहीं करते हैं कि
नज़र आते यहाँ लाखों - रंजीदा और अफ़्सुर्दा हमें




Monday, October 15, 2018

दुनिया , जहन्नुम भी है गर - शिकायत नहीं है
अच्छा लगता है वहाँ रहना - जहाँ , तू रहती है 

Sunday, October 14, 2018

भला क्या होता है - किसी से किसी को हासिल ?
बस किसी के होने से - दुनिया में दिल लगता है

हासिल रख के भी कुछ - ले जाओगे कहाँ ?
यहाँ से ही हासिल - प्यार ही बाँट दो यहाँ

बेचैन रहना भी हमें नेमत होती है
दिल और यादों में वो रहा करती है


Saturday, October 13, 2018

औरों में खराबियाँ देखने की आदत - यूँ ठीक नहीं कि
अच्छाई से नहीं हमारा - ख़राबियों से परिचय रहता है

चल रहे हैं इसलिए कि - ज़िंदगीं ने चलाये रक्खा है
ये बताती भी नहीं कि - किस मंजिल पर पहुँचना है

तुम्हारी उम्मीदों का घर , दोस्त -
गर टूट जाए सख़्त हकीकतों से
बनाना उम्मीदों का आशियाना फिर नया -
ज़िंदगी के लिए जरूरी है 

Friday, October 12, 2018

जीवन में बहुत कुछ नहीं मिला तो - बहुत कुछ मिला भी होता है
ऐसे में नहीं मिले की शिकायत - मिले हुए की अवमानना होती है

मुफ़्त में हासिल की तमन्ना न कीजिये , ज़नाब
मुफ़्त में हासिल , ख़ुशी कम - ग़म ज्यादा होते हैं

लब, कमर, जुल्फ ,नाफ, गेसू आरिज पे जान देने से - ख़ुशी दे न पायेंगे
उनकी रूह की समझ सके तो - उन्हें खुद का मुरीद पायेंगे

एक ही चीज है - जो बूढी होकर भी जवान हो सकती है
वह चीज है उम्मीद - आप उम्मीद का दामन ना छोड़ें

ज़िंदगी में इश्क़ होने का - अंजाम यह रहा
इश्क़ न हुआ इसका - हमें शिकवा न बचा

बताओ , हँसे न तो करें भी क्या हम
हमारे दर्द से तुम्हें मतलब जो नहीं

मेरी कोई हस्ती नहीं - मुझे ये बताने की तुम्हे जरूरत नहीं 
हैं कुछ अपने - जिनके लिए हैसियत मेरी दुनिया से बढ़कर है


Wednesday, October 10, 2018

जो किया
उसे हम - खा मखां का करना क्यूँ कहें
उस वक़्त
वही पसंद , वही इख्त़ियार इसलिए किया

Tuesday, October 9, 2018

नज़रों से हुईं हमारी 'गुफ्तगू'
अच्छा है लफ्जों में बयां नहीं होतीं
वर्ना ज़माने का इल्ज़ाम आता
हम पर कि ये हद करते हैं

हमारी चाही मगर तुम्हारी अनचाही
'गुफ्तगू' की इंतहा हो गई
चाहेंगे तुम्हें मगर अब तभी होगी जब
'गुफ्तगू' तुम करनी चाहोगे

माना कि उस मुकाम पर पहुँचता तो बेमिसाल तू करता
काबिलियत यहाँ भी है साथ यहीं बेमिसाल तू कर गुजर


उनकी नज़रें न पड़ी थीं हम पर - हम खुद से बेपरवाह थे
उनकी नज़रों का जादू - अब हम परवाह करते हैं अपनी

Monday, October 8, 2018


दोष तुम में कह देना - हमारे लिए सरल काम था

खुद में दोष देखने का - हम कठिन काम करते हैं 

Sunday, October 7, 2018

गुरबत-ए-इश्क - मर्ज यूँ लाइलाज़ है
दवा-ए-महबूब - है मगर मिलती नहीं है

बड़े मन से इक आशियाना बनाया था
आशियाना बदस्तूर रहा हम चल दिये

Friday, October 5, 2018

हम खुश तब होते जब - बच्चे हमारे खुश रहते हैं
अपनी लाद कर उनपर - क्या हम खुश रह सकेंगे ?

माँ-पापा होकर औलाद भी - वही करेंगे जो हमने किया है
हमें एहसान जैसा कुछ उन्हें बताने की - जरूरत ही क्या है

माँ-पापा , अपने फ़र्ज़ की करते है - कोई कहता उन्हें नहीं
औलाद की ज़िंदगी की अपनी वरीयतायें - उन्हें उनकी करने दें



मौत आने पर मारता है खुदा , कहते हैं - धोख़े से हम मारे गए
मरते अपनी हसरतों के पीछे ,कहते हैं - आशिक ने मारा है हमें 
मैं कब राख़ - कब ख़ाक होता हूँ ?
मैं सदा कायम - मैं तो इक रूह हूँ

गनीमत
ख्वाब की लाश दफन करने को जमीं नहीं लगती
वर्ना
हमारे ख़्वाबों को दफन करने को जमीं कम पड़ती


उनके लिए हमसे इश्क़ का मतलब तो - वही जानते होंगे
हम उनसे इश्क का मतलब - ज़िंदगी उनके नाम जानते हैं

जिन्हें
ख़ामोशी में हाल - बयां करना आता है
उन्हें
इश्क़ जताने के लिए - गुप्तगू जरूरी नहीं


गुप्तगू में बयां किया इश्क - बदलते हुए देखा है
खामोश जो इश्क करते - उन्हें बदलते नहीं देखा

उसे
इश्क़ में ना घसीटो - हया में रहने दो
उसे
दिल की मानने की - आज़ादी कब थी 

Thursday, October 4, 2018

तुम्हारे दिल को पढ़ लिया - मगर लिख नहीं सकते

खुद को गुनाहगार दिखाने की - हमें हिम्मत नहीं है

हम दोनों ही एक दूसरे ख़ुश रखना चाहते थे
मगर
बीती ज़िंदगी आपसी आरोपों के सिलसिले में

Wednesday, October 3, 2018

हमारी यूँ उपेक्षा करना - संगीन जुर्म है तुम्हारा
दिल की कोमल भावनाओं को - क़त्ल करता है 
शुक्र, ये जख्म सही , हमें - तुमसे मिले हुए हैं
बेशक़ीमती इक चीज़ , हमें - तुमसे मिली हुई है

बे-हिसी से हमें यूँ - ज़िंदगी जी लेना गँवारा नहीं
ऐसी ख़ुशी भी क्या - जो औरों के ग़म महसूस न होने दे

सुकून की हसरत लिए - दिल इश्क में पड़ता है
जूनून ए इश्क का सिला - धोखे में मिलता है

फ़ना हो जाये उसे हम मोहब्बत क्या कहें
मोहब्बत वो जो हमारे बाद भी जिंदा रहे

सफाई देते हम तो इल्जाम - हमारे अपनों पर ही आता
इल्जाम अपने पर ले - इसलिए हम गुनाह कुबूल करते हैं

दिल को करार - लफ्जों से नहीं मिलेगा
तुम ही आओ - तो हमें करार मिल जाये







Monday, October 1, 2018

चेहरों को पढ़ने में बहुत अंतर दिखाई पड़ते थे
रूह को जब महसूस किया सब एकसे लगे हमें



मेरी मोहब्बत के - मतलब और न लेना 
रूह की खूबसूरती से है - ज़िस्म से नहीं
जो खुद को समझ लेगा हमें समझ सकेगा
सभी इंसान के बनने की माटी एक होती है

तुम नहीं तो - हम तस्वीर से ही बात कर लेते
तुम जुल्मी मगर - अपनी तस्वीर ही नहीं देते





Sunday, September 30, 2018

अधूरी तमन्नायें ..

अधूरी तमन्नायें .. 

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विवेक , विचार , अनुभव , और कल्पना सभी के पास है। ऐसा होते हुए इन्हें तरतीबी देना सभी के लिए संभव नहीं होता है। इन्हें सिलसिलेवार अभिव्यक्त करने की क्षमता भी सबमें है , पर अव्यक्त रह जाती है। बेतरतीब बातें इसलिए ज़माने में बहुत होती हैं।जिनसे कुछ बनता नहीं है। इंसानियत बिरली होती जा रही है। समाज में नारी और सज्जनता से जीवन बिताने के इक्छुक लोगों के लिए सिर्फ "जी लेना" ही क्रमशः अधिक मुश्किल होते जा रहा है। कारण की जड़ खोजें तो यह पायेंगे कि हमने जीवन में दौलत और मज़हब को आवश्यकता से ज्यादा वरीयता दे रखी है। इसलिए विवेक , विचार , अनुभव , और कल्पना को सिलसिले से अभिव्यक्त करने वाले साहित्यकार बिरले हो चले हैं। साहित्यकार , वास्तव में समाज प्रेरणा दे सकते थे , जिससे मानवता पल्लवित रह सकती थी , और सद्प्रेरणा से हम इस समाज और विश्व को खुशहाल बना सकते थे। 

अभी की पीढ़ियाँ खुशहाल ज़िंदगी की तमन्ना तो करती हैं , मगर इसके लिए अपना कुछ देने को तैयार नहीं। एक बेसुध सा जीवन सबका है।  मजहबी लोग , धनवान लोग , राजनेता , सेलेब्रिटीस जिनके व्यभिचार , व्यक्तिगत भोगलालसायें अनेकों बार जग जाहिर भी हुए हैं किंतु सब उनके फेन होते हैं।
परिणाम - जिस खुशहाली की तमन्ना है , वह जीने नहीं मिलती। दुर्भाग्य इस दौर का -तमन्नायें अधूरी हैं। 

(नोट - उर्दू हर्फ़ , इंटेंशनली प्रयुक्त किये गए हैं )

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
01-10-2018

इस जहान में दो चार ही अपने होते - ज़िंदगी गुजार सकते थे
कई अपने नहीं जो अपने से होते हैं - जहान इसलिए प्यारा है 
हम इंसान हैं - ज़िंदगी के लिए मकसद तय करलें
मारकाट ,बिन मकसद के - जानवर भी जी लेते हैं


भले हम हो जायें कत्ल - मीठी जुबां का चलन रहने दें
तीखी जुबां से मरने का - ग़म बर्दाश्त नहीं कर सकेंगें

जो है इंसान - उससे मोहब्बत करना बस सीख ले
कौमी नफ़रत का जहर - मिटाने के लिए काफी है 

Friday, September 28, 2018

मौत आई तो वजह बस बहाना था
सच तो यह कि सब छोड़ जाना था

यूँ तो
ज़िंदगी तो कुछ भी न होने से चलती देखी है
मगर
कुछ के न होने से ज़िंदगी सी लगती नहीं है

न चाहो भी ज़िंदगी का खेल तो चलना है फिर क्यूँ न हम इसमें मजा लेना सीख लें

कह के कि 'अच्छा हम कहते हैं' - यह शौक पूरा कर लें हर दौर में मगर - आगे बढ़ के कहने वाले हुआ करते हैं

ज़िंदगी , क्यूँ मासूम मैं - तुझसे शिकायत किया करता हूँ तेरी मर्जी है , जो देना - तू वही बस तो मुझे दिया करती है

Thursday, September 27, 2018

प्यार , दया-करुप्यार , दया-करुणा आधारित हो सच्चा प्यार होता है
 उसमें दैहिक आकर्षण प्रमुख हो जाए वासना हो जाता है

मोहब्बत की भाषा भी नहीं समझते तुम
इतना नासमझ तुम्हें खुदा ने बनाया क्यूँ

बेवफ़ा हम होते तुरंत शिकवा कर देते तुम
वफ़ा हमने निभाई जिक्र ही नहीं करते तुम

उनकी हम - सिर्फ शिकायत किया करते हैं
तारीफ़ भी हैं उनमें - क्यूँ अनदेखी करते हैं

न हो उसका नुकसान कोई - जिन्हें हमारी कदर नहीं
हो ज़िंदगी के मंसूबे पूरे उनके - हमें उनकी कदर है

जो चीज खो गई - आज ज़माने भर से
कद्र करो कि हममें - वह सादगी बाकी है

मोहब्बत है - फासलों की अहमियत नहीं
फासले गर अखरें - उसे वासना समझना



णा आधारितप्यार , दया-करुणा आधारित हो
सच्चा प्यार होता है
उसमें दैहिक आकर्षण प्रमुख हो जाए
वासना हो जाता है
हो
सच्चा प्याप्याप्यार , दया-करुणा आधारित हो
सच्चा प्यार होता है
उसमें दैहिक आकर्षण प्रमुख हो जाए
वासना हो जाता है प्यार , दया-करुणा आधारित हो 
सच्चा प्यार होता है 
उसमें दैहिक आकप्यार , दया-करुणा आधारित हो 
सच्चा प्यार होता है उसमें दैहिक आकर्षण प्रमुख हो जाए वासना हो जाता हैर्षण प्रमुख हो जाए 
वासना हो जाता है

र , दया-करुणा आधारित हो
सच्चा प्यार होता है
उसमें दैहिक आकर्षण प्रमुख हो जाए
वासना हो जाता है र होता है
उसमें दैहिक आकर्षण प्रमुख हो जाए
वासना हो जाता है
इश्क़ और ख़ुदा समान हैं यारों
जितना भी दे दें कमी लगती है

बेजुबां नहीं है मोहब्बत मेरी
कान हैं मेरे उसकी सब सुनता हूँ

उसके रुखसार पर तिल - तिनका साबित हुआ
दिल को आया चैन - ज़िंदगी () डूबने से बच गई
(अवसाद में)

Wednesday, September 26, 2018

हवा से कह दो कि - वह कोई और काम करे

चिराग करते रोशन जहां - उन्हें बुझाये नहीं


वादा निभाना , जिसकी फितरत ही नहीं 
'बेवफ़ाई क्या' , वह समझा के ही जाएगा

जिन आँखों को आपने रुलाया था - ज़िंदगी भर 
आपकी तस्वीर रही बंद उन आँखों में - रुखसत होते हुए 


तुम चाहो कि तुम्हारे अलावा और भी कोई ज़िंदगी जी ले
मुस्कुराना , तुम्हारी मुस्कुराहट किसी का जीवन है , प्रिय

चेहरे पे सौम्यता यदा कदा अब दिखाई देती है

हर चेहरा आज मतलबपरस्त दिखाई पड़ता है


किसी की फ़िक्र रखना गैर जरूरी नहीं होता

फ़िक्र औ' मदद किसी को अपना बना लेते हैं


संशय ही हमारे जीवन का बहुत समय व्यर्थ करता है

विश्वास हो , विश्वासी हों तो संयुक्त प्रयासों से बहुत भले कार्य किये जा सकते हैं

उन हसरतों को बुरा कहना मुनासिब नहीं
जिनके होने से हमारी ज़िंदगी बेजान नहीं

Saturday, September 22, 2018

खुशियाँ आज लफ़्जों में सिमट रह गईं
हक़ीक़त बयां आज आँसू किया करते हैं

हर घर में -
चिराग मुझे कहा गया
तब भी -
देश में उजाला न ला सका

घर घर -
चिराग मुझे कहा गया
किंतु -
औरों की रोशनी को खतरा हूँ


क्यूँ किसी के नींद उड़ने का सबब हम बनें
हम तो हैं इसलिए कि वे सुख से सो सकें

इंतकाम कोई - हम किसी से नहीं लेते
आज का इंसान - क्या कम परेशान है


Thursday, September 20, 2018

आर्ट मूवीज़ की तरह , "फ्लॉप" - स्टोरी

आर्ट मूवीज़ की तरह , "फ्लॉप" - स्टोरी 

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समीना ,चार-छह वर्ष की होगी तब ही उसे , औरों के कहने और आईने की गवाही से पता हो गया था कि वह औरों से ज्यादा सुंदर है। पहले-पहल उसे सुंदर दिखना और होना , भला लगता था। लेकिन ज्यों ही बड़ी होने लगी , उसे सबकी तरफ से मिलता विशेष व्यवहार और अतिरिक्त तवज्जो अजीब लगती। अभी 12-13 वर्ष की ही हुई तो , आसपास के भैय्या - चाचा टाइप के लोग उससे बात के बहाने कर लेते। और तो और आस -पड़ोस के ड्राइवर और नौकर तरह के लोग भी अपने में इंटरेस्ट लेते लगते। माँ - पापा से पढ़ने की मिलती प्रेरणा से वह अपनी पढ़ाई में ध्यान केंद्रित रखना चाहती थी। इन सबसे बचती , अपने ध्यान से सब ऐसी बात झटकती रहती।
अठारह की हुई तो प्रतिभाशाली छात्रा होने से मेडिकल कॉलेज में उसे  दाखिला मिला। कोएड होने से यहाँ लड़के बहुत थे और प्रोफेसर भी पुरुष ज्यादा। उसके रूपवान होने से छात्र तो छात्र , प्रोफेसर्स की भी उसकी तरफ उठी निगाहें बदनीयती की होती।  सब उसकी पढ़ाई में मदद के बहाने करते , उसकी करीबी हासिल करने के कोशिशों में लगे रहते। उनसे भी उसे दूरी रखने का तरीका ढूँढना होता। साथी गर्ल्स उसे चिढ़ातीं , परेशान करतीं कि किसी एक को बॉयफ्रैंड बनालो - फेमस करदो तो औरों से पिंड छुड़ा सकती हो। समीना , अलग तरह की लड़की थी। वह इन चक्करों से दूर ही रहना चाहती थी। चक्करों में नहीं पड़ती तब तो पढाई से इतनी  अन्यमनस्कता (distraction) का खतरा। बॉयफ्रेंड बनाया तो मालूम नहीं क्या हो। 

अभी तो वह कॉलेज तक पहुँची है। उसे आगे , अपनी सुंदरता की कितनी और चुनौतियों को झेलना होगा , आभास भी नहीं। उसे हॉस्पिटल के स्टाफ , पेशेंट और तो और शादी के बाद पति के मित्रों की भी ऐसी  नज़रों  से बचते रहने होगा।
सुंदरता के कारण पूरी ज़िंदगी ना जाने कितनी एनर्जी इन सब से बचाव में खर्च करने होगी। बच सकी तो अनेकों को रुखाई की शिकायत रहनी थी। कहीं फिसली तो लोगों की अँगुली - चरित्र पर उठ जानी थी। 

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
21-09-2018


Wednesday, September 19, 2018

कोई नहीं जो औरों के हित के लिए लड़ता मिला
जो मिला वह सिर्फ अपने हितों को लड़ता मिला


औरों के हितों में अपने हित थे निहित
यह विज़न किसी में देखने नहीं मिला

आज
तकनीक़ बना रही - मशीनी रोबोट
और
हम ईश्वर बनाए - रोबोट हो रहे हैं

आइना दिखलाये हमें कि - हम खूबसूरत नहीं
तब भी एक खूबसूरत ज़िंदगीं - हम जी सकते हैं 

किसको क्या हासिल ?

किसको क्या हासिल ?

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दीपिका की टीम ने राज्य स्तरीय कबड्डी प्रतियोगिता जीती थी। पुरस्कार कप्तान होने के नाते उसने लिया था , राज्यमंत्री चंद्रमोहन जी के हाथों। चंद्रमोहन जी ने कंधे पर हाथ रखकर कुछ ज्यादा ही दबाव से उसे भींचा था। बाद हाथ मिलाते हुए उसके हाथों को दबाया था , त्वरित शरारती उत्तर में दीपिका ने भी उनके हाथ में नाख़ून चुभोये थे , मुहँ पर मुस्कराहट के साथ। दीपिका 25 वर्ष की थी , गरीबी में बचपन बिताया था। धन के प्रति ज्यादा ही आसक्ति उसके स्वभाव में थी। चंद्रमोहन जी 62 वर्ष के थे , तीन वर्ष पहले पत्नी स्वर्गवासी हो चुकीं थीं। धन बेहिसाब था उनके पास। उम्र हो गई थी , यौवन क्षीण हो चुका था पर वासना अतृप्त रही थी। चंद्रमोहन जी ने उसी दिन रात में दीपिका को फोन किया परिचय दिया और बातें की और गोपनीय तरह से दूसरे दिन मिलने का स्थान और समय तय कर लिया। 

दूसरे दिन मिलने पर चंद्रमोहन जी ने दीपिका के समक्ष विवाह प्रस्ताव रख दिया। दीपिका को ऐसी आशा कतई नहीं थी। उसने इस मुलाकात से यह उम्मीद बस लगाई थी कि राज्य मंत्री जी शारीरिक लिबर्टी लेंगें , बदले में वह अपनी उन्नति के लिए उनका फेवर हासिल करेगी।  अप्रत्याशित इस पेशकश पर दीपिका ने तनिक गौर किया , फिर सीधे सौदेबाजी पर आ गई। पूछा - इससे मुझे हासिल क्या होगा? एक युवती को जो चाहिए , आप वैसा सुख दे नहीं सकेंगे. विवाह के बाद जीवन भर का साथ कब टूट जाएगा भरोसा नहीं . मुझे बहुत जीना है , आप बहुत जी चुके हो . चंद्रमोहन ने जबाब दिया , मेरी बेशुमार दौलत में से  शादी के बाद तुरंत एक कोठी तुम्हारे नाम होगी। तुम इस शादी से इतनी चर्चा में आओगी कि जीवन भर , ऐशो आराम के साधन इकट्ठे करने में सुविधा होगी। हाँ , अवश्य वासना पूर्ति के नज़रिये से मैं उतना सक्षम नहीं किंतु मेरे में अतृप्त रही वासना है , जिसके उपाय करने से बहुत हद तक तुम भी संतुष्ट रहोगी।अभी तुम दस वर्षों की ही सोचो। बाद में तुम्हारे पास बहुत सारे सुविधाजनक विकल्प होंगें। मैं यौन सुख का भूखा हूँ , तुम दौलत की भूखी हो। तुम्हें मुझसे दौलत और मुझे तुमसे यौन सुख का हासिल होना , क्या पर्याप्त न होगा ? बात पूरी करते हुए चंद्रमोहन ने उल्टा प्रश्न कर दिया। तब दीपिका विचार मुद्रा में दिखाई पड़ी। 

जल्द ही उनकी शादी हो गई , चंद्रमोहन ने अपने कहे अनुसार लगभग चार करोड़ की एक कोठी , दीपिका के नाम रेजिस्टर्ड करवा दी। उनकी शादी न्यूज़ चैनल - अखबारों में सनसनीखेज चर्चा में शुमार हुई। सबकी आलोचनात्मक दृष्टि के बावजूद , जैसा चंद्रमोहन ने दीपिका से कहा था , दीपिका शीघ्र ही आम से खास चर्चित पर्सनालिटी बन गई।
इस सबमें समय के समक्ष , यक्ष प्रश्न उत्पन्न हो गया। चंद्रमोहन जैसा जिस देश में मंत्री /राजनीतिज्ञ हो जिसे जनता की नहीं अपने काम सुख की पड़ी हो।  देश के न्यूज़ चैनल - पत्रकार , दीपिका जैसे चरित्र को चर्चा में ले आते हों , और ऐसी देश की जनता हो जो दीपिका जैसी को सेलिब्रिटी बना देती हो , और सेलिब्रिटी के लाखों करोड़ों फेन बनने का आज का चलन हो। उस देश की संस्कृति - सभ्यता क्या विनाश की ओर अग्रसर नहीं ? समय ही इसका उत्तर दे सकेगा ......

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन 

19-09-2018





Sunday, September 16, 2018

ग़म ना करो कि रिश्ता - आसमां की ऊँचाई ना छू सका
हमारी तो पुरजोर कोशिश रही - इसे बेमिसाल बनाने की

अप्रिय प्रसंग को भुला देना ही - बेहतर होता है
जिंदगी का मजा - प्रिय को याद रखने में होता है

Saturday, September 15, 2018

'नहीं समझने का' आरोप -
यूँ , उन पर ठीक नहीं
कि हम ही नहीं समझते
कि उन्हें हम से मतलब नहीं

जिंदगियाँ सभी , कायम उम्मीदों पर हैं
तुम बनो उनकी उम्मीदें - बेहतर होगा

फेसबुक पर नहीं तो - दीदार बगीचे में होगा दोनों ही उम्मीदों ने दम तोड़ दिया - लेकिन
जब समझ क्षीण - तब काया बलिष्ठ
और
जब काया क्षीण - तब समझ परिपक्व
अजब संयोग हैं - जीवन में \\

क्यों वह सब कह देना चाहते हो - तुम
जो वे समझना ही नहीं चाहते - नादान