सज्जनता या मूर्खता
-----------------------वह राह पर जब भी निकलता , अपने विचार-मग्नता के मध्य इस बात के प्रति तत्पर रहता ,किसी बेटी -बहन (नारी - कम सामर्थ्यशाली) को किसी सहायता की आवश्यकता तो नहीं . ऐसे अवसरों पर समुचित और वाँछित सहायता कर अपने पारिवारिक -व्यवसायिक प्रयोजनों में फिर लग जाता .
आज कार्यालय से वापिस लौटते कोई पचास मीटर आगे जा रही बाइक पर से एकाएक एक युवती अचानक रास्ते में छाती के बल गिर गई . करुणा उमड़ आई पास जाकर कार खड़ी कर उतर गया . इस बीच बाइक सवार को हादसे का पता चल गया था उसने पीछे आकर अपनी सह-सवार को सहयता दे उठा कर किनारे बैठाने का उपक्रम चला लिया था . युवती रोई जा रही थी , कुछ अंदरूनी चोट से और कुछ उत्पन्न हुए दृश्य में अपमानित सी , लज्जा सी अनुभव करते हुए .
उसने कुशलक्षेम जानी और ज्यादा गम्भीर चोट नहीं अनुभव कर वापिस कार में आ बैठ "इग्निशन की" घुमाई . इस बीच स्थल पर एकत्रित भीड़ में कुछ हाथ उसे कार ना बढ़ाने का संकेत कर रहे थे . उसे लगा युवती को तो विशेष सहयता की आवश्यकता नहीं है . फिर क्यों रूकने कहा जा रहा है . भीड़ में से एक ने उसे कहा आप चले जाएँ यह भीड़ कम-अक्लों की है .
अभी तक तो उस पर पीड़िता के सहायता भाव हावी था , किन्तु भीड़ जो स्थल पर बाद में जमा हुई थी उसके लिए "एक कार का खड़ा होना और पाँच -सात मीटर सामने दुर्घटना" ऐसा दृश्य बन रहा था जैसे कार ही इस दुर्घटना का कारण है . खैर उसे वहाँ से निकलने का रास्ता मिला और वह गंतव्य कि ओर बढ़ गया था ...
दूसरे दिन कार्यालय के लिए तैय्यारी कर रह था तब एक पुलिस सिपाही घर के सामने आया . उसने उसकी कार का क्रमाँक पूछा और फिर कहा आपकी गाड़ी से दुर्घटना की शिकायत थाने में आई है .थानेदार साहब ने कार सहित आपको बुलाया है .
थाने पहुँचने पर थानेदार ने बयान दर्ज करवाने कहा . जैसा पूछा गया वैसा सच उत्तर देते हुए अपने बयान दर्ज करवाये तब उसकी स्वयं की हस्तलिपि में उसे अपना पक्ष लिखने कहा गया .
उसने कागज़ ले इस तरह लिख दिया
"मै 'निर्दोष' आत्मज सिद्धान्त निवासी जबलपुर , कल अपनी कार से रास्ते में था तब एक महिला को सड़क पर गिरते देख सहानुभूति और सहायता के विचार से दुर्घटना स्थल पर रुका था . दुर्घटना महिला के असंतुलित हो कर अपने साथी की चलती बाइक पर से गिरने के कारण हुई थी ,जिसमें मेरी कार और मेरा कोई दोष नहीं है ,महिला के गिरते समय मेरी गाड़ी लगभग पचास मीटर दूर थी . फिर भी मेरे विरुध्द शिकायत /अपराध प्रकरण दर्ज किया गया है ऐसे में मेरा निवेदन है कि मेरा पक्ष पीड़िता को बताते हुए पुनः पूछताछ की जाये और यदि वह अपनी शिकायत वापिस नहीं लेती है तो
लगाये आरोप को सच मान उल्लेखित अपराध पर मेरे विरुध्द संविधान के दंड प्रावधान अनुसार कार्यवाही की जाये .
मै निर्धारित किये जाने वाला दण्ड भुगतने को तैयार हूँ , "इसलिए नहीं कि मैंने उल्लेखित अपराध किया है ,बल्कि इसलिये कि" मै एक नारी को दुबारा झूठा सिध्द करने का प्रयास नहीं करूँगा . और दण्ड इस अपराध के लिए भुगतुंगा कि हमने अपने समाज को सच्चा बनाने , इतना संतोषी और सम्पन्न बनाने के अपने दायित्व का निर्वाह उचित तरह से नहीं किया है .जिससे अभाव के कारण , लालच के वशीभूत हो वंचित साथी मनुष्य कुछ धन की आशा में निर्दोष पर दोष मढ़ने को बाध्य हो जाते हैं "
अपने हस्ताक्षरित लिखा कागज़ थानेदार के समक्ष प्रस्तुत किया . थानेदार ने कहा अन्वेषण उपरांत कार्यवाही की जायेगी .. अभी आप जा सकते हैं ..
--राजेश जैन
12-11-2013