Saturday, November 30, 2013

फेसबुक

फेसबुक
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फेसबुक का रचनात्मक ,सृजनात्मक ,ज्ञानवर्धक , प्रेरक , मानवता और समाजहित का प्रयोग ..
वर्त्तमान पीढ़ी को भाग्यवश मिली इस बेजोड़ ,शक्तिशाली और आधुनिक सुविधा का उचित सम्मान है ..
यही इसका लाभकारी उपयोग भी है ..

अन्यथा जैसे सोने को अन्य सस्ती धातु (लोहे इत्यादि ) में मिला कर हथोड़ी के रूप में प्रयोग करने से उसके मूल्यवान ,सुन्दर चमकीले
गुण को व्यर्थ करना है .और ऐसा सोने का यह प्रयोग कोई   विचारहीन ही कर सकता है .यह सोने जैसी बहुमूल्य धातु का असम्मान है
 वैसा फेसबुक का उपयोग मात्र समय जाया करने और बुराई और द्वेष बढ़ाने के लिए करना विचारहीनता का परिचायक  है. फेसबुक का असम्मान है

प्राप्त किसी निधि को निधि जैसा उपयोग ना कर सकें तो हम  या यह पीढ़ी /समाज इतिहास में दुर्भाग्यशाली ही वर्णित होगी .

--राजेश जैन
01-12-2013

Thursday, November 28, 2013

भारतीय मूल्य

भारतीय मूल्य
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यथा सँस्कार ,जीवन चुनौतियों को नेक और न्याय के मार्ग से अर्जित धन से पार करते जीवन यापन किया था . विवाह उपरान्त जीवन संगिनी का सहर्ष साथ इस तरह जीवन मार्ग तय करने के लिए मिला था . संतोषी उस पिता ने ,सपत्नीक बच्चों का लालन -पालन मितव्ययिता और गुणवत्ता की प्रमुखता के साथ किया था . बेटी की शिक्षा पूर्ण होने तथा विवाह योग्य वय होने के कारण ,बेटी का यह पिता आज योग्य वर ढूंढने निकला था . जिस प्रतिष्ठित घराने ने अपने चिरंजीव के लिए इस बेटी में रूचि दर्शाई वह सभी दृष्टिकोण से उपयुक्त था .

यह चिरंजीव गुणवान ,उच्च शिक्षित ,शालीन और सुलझे विचारों का था . माता-पिता भारतीय संस्कृति समर्थक तो थे ही आधुनिक उच्चता को भी जीवन और परिवार में यथा स्थान देने वाले थे . सभी कुछ अच्छा और अनुकूल था . हालांकि लड़के पक्ष से आर्थिक स्थिति पर महत्त्व नहीं दर्शाया गया था किन्तु किसी को ना कहते वह स्वयं हीनता बोध से घिरा हुआ था . वास्तव में आर्थिक दृष्टि से उसका स्वयं का स्तर दूसरे पक्ष से बहुत कम था .



स्वयं से वार्तालाप में उसने एक समाधान, हीनता दूर करने के लिए प्राप्त किया था . जिसमें उसका तर्क था उसकी बेटी आज के वातावरण में आधुनिकता से शिक्षित होते हुये भी भारतीय मूल्यों को निभा लेने का संकल्प रखती थी . बेटी के गुण और सुशीलता वह निधि थी जो आर्थिक स्थिति के अंतर को पाटने के लिए काफी थी .

 यह तर्क कभी तो आत्मविश्वास बढ़ा देता था . लेकिन अधिकांश समय अन्य विचार पुनः हीनता में उसे डालता था . दरअसल सफलता का जो पैमाना आज स्थापित है जिसमें अच्छा ,सभ्य ,उन्नतिशील और आधुनिकता का प्रमाण पत्र सुलभता से आर्थिक संपन्न को मिल जाता है इस पर वह असफल दिख रहा था .. पैमाने पर चढ़ी इस कंसनट्रेटेड केमिकल (-सान्द्र रासायनिक तत्व) की  मोटी परत को , भारतीय मूल्य का सॉफ्ट केमिकल ( तनु रसायन ) मिटा नहीं पा रहा था .

देखना है "भारतीय मूल्य" उस स्वाभिमानी बेटी के स्वाभिमानी पिता (स्वाभिमानी परिवार)  को आज के इस पैमाने पर समतुल्य कर पाते हैं अथवा नहीं ?

-राजेश जैन
29-11-2013

Tuesday, November 26, 2013

दैदीप्यमान

दैदीप्यमान
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मनुष्य जीवन सर्दी -गर्मी ,बरसात के मौसम के कुछ आनन्ददायी तो कुछ कष्टकारी प्रतिकूलताओं में बीतता है . इसी तरह कुछ उपलब्धियों ,सफलताओं की ख़ुशी तो कुछ विपरीतताओं तथा असफलताओं की निराशा के बीच भी जीवनयात्रा चलती जाती है .और एक मनुष्य इस तरह अंदर बाहर से पकता जाता है .

जिस तरह कोई फल सूर्य प्रकाश चक्र ( रात्रि में सूरज के ना होने से ,सुबह और शाम हलकी तीव्रता की धूप ,दोपहर को प्रखरता एवं अलग अलग मौसम से ) के मध्य छोटे से बड़ा और फिर पकते हुए स्वादिष्ट (या मीठा ) और पौष्टिक तत्वों से भर जाता है . बड़ा होने पर तथा पक जाने पर वह किसी दिन अपने वृक्ष डाली से टूट (या तोड़ लिए जाने से ) धरती पर गिरता है . जिसे कोई प्राणी या मनुष्य भोज्य रूप में ग्रहण करते हुए रसा - स्वादन लेता है तथा पौष्टिकता से लाभान्वित होता है . फल में कोई वैचारिक शक्ति नहीं होने से उसका बढ़ना -पकना और स्वादिष्ट होना ना होना सबकुछ परिस्थितियों पर निर्भर होता है . इसलिए स्वादिष्ट और पौष्टिक तो मनुष्य ग्रहण करता है , लेकिन कड़वा -अधपका या अपौष्टिक फल तिरस्कारित होता है . उत्पन्न प्रत्येक  फल, किसी ना किसी दिन अस्तित्व खोता ही है . किन्तु इसके पूर्व वह भली तरह पकता है तो उसके स्वाद और पौष्टिकता से ग्रहण करने वाला आनन्दित होता है , लाभान्वित होता है .
ऐसे भी फल होते हैं जिनमे ना तो मिठास (स्वाद) और ना ही पौष्टिक तत्व होते हैं .ऐसे फल  जो प्रकृति से ही गुणहीन होते हैं . उन्हें मनुष्य अलग कर देता है . आजकल गुणकारी फलों को भी पेस्टीसाईड्स , रासायनिक खाद के उपयोग और अधिक उत्पादन की व्यवसायिक दृष्टि से , फिर कृत्रिम रूप से जहरीले रसायनों के उपयोग से पकाया जाने लगा है . जिससे आकार और मात्रा तो बढ़ाई जा रही है किन्तु पौष्टिकता पर प्रश्न चिन्ह लग गया है . इनका सेवन स्वास्थ्य दृष्टि से हानिकर हो जाता है .
स्पष्ट है कि उपयोगिता नहीं होने से या हानिकर होने से , कोई भी या कुछ भी धिक्कारा ही जाता है ..

मनुष्य भी पकते -बढ़ते किसी दिन अस्तित्व हीन हो ही जाता है . उसमें विचारशीलता विद्यमान होती है . वह यदि बढ़ते -पकते अपने आचरण कर्मों में ऐसी गुणवत्ता लाये जिससे अन्य को मधुरता प्रदान कर सके , उन्हें उनके जीवन संघर्ष में सहायक होते हुए सम्बल और स्नेह प्रदान करे तो शरीर से अस्तित्वहीन हो जाने के उपरान्त भी वह युगों तक मानवता की धारा प्रवाहित रखने में सफल होता है . इस धारा में समाज और साथी या आगामी मनुष्य का जीवन यापन अनुकूलताओं में आनन्द पूर्वक जारी रहने का मार्ग प्रशस्त करता है .

मनुष्य को जीवन में अवस्था के साथ बढ़ने  -पकने में फल जैसे ही किन परिस्थितियों में से निकलना पड़ा है , विचारशीलता से इस प्रक्रिया में उसने अपने गुण वृध्दि की है या गुण खोये हैं . इस बात पर मानवता और समाज के लिए उसकी उपयोगिता बनती है . उपयोगिताहीन धिक्कारे जाते हैं .

यह हम पर है बढ़ते -पकते अपने जीवन और अस्तित्व को हम समाज पोषक बनायें अथवा निरर्थक करें . विचारशीलता अपने में है यह निर्णय हम स्वयं करें क्या हम साधारण के बीच में से आसमान पर सूर्य भाँति चढ़ते हुये "दैदीप्यमान " होना चाहेंगें जिसके आलोक से आगामी पीढ़ियों को सच्चा जीवन मार्ग मिल सके ?

या सत्तर -अस्सी वर्ष साधारण जीवन प्रश्नों को हल करते बिता देना चाहेंगे .

--राजेश जैन
27-11-2013

Wednesday, November 13, 2013

सज्जनों की भीड

सज्जनों की भीड
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हम स्वयं सज्जन बन कर
सज्जन संख्या बढ़ाएंगे
समाज सुहाना हो लक्ष्य से
इस तरह यह भीड़ बढ़ाएंगे

इस नियत से कुछ एकत्र कर
फेसबुक लिस्ट ये जुटाई है
ऐसे कुछ वर्ष जी सकें तो हम
एक दिन अच्छा आएगा

समाज हमारा है यह अपना
इसे सच्चा स्वयं बनायेंगे
यह है हमारा दायित्व और
इसे सफलता से निभायेंगे

सर्वत्र उल्लास व्याप्त होगा
नहीं नारी शोषित होगी
स्वाभिमान हर सच्चे का
आजीवन ही बना रहेगा

हम मनुष्य विशेष प्राणी हैं
सृष्टि में अपनी विशिष्टता
कर्मों से अपने दर्शाएंगे
मानव मानवता दिखलायेंगे

--राजेश जैन
14-11-2013

Monday, November 11, 2013

सज्जनता या मूर्खता

सज्जनता या मूर्खता
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वह राह पर जब भी निकलता , अपने विचार-मग्नता के मध्य इस बात के प्रति तत्पर रहता ,किसी बेटी -बहन (नारी - कम सामर्थ्यशाली) को किसी सहायता की आवश्यकता तो नहीं . ऐसे अवसरों पर समुचित और वाँछित सहायता कर अपने पारिवारिक -व्यवसायिक प्रयोजनों में फिर लग जाता .
आज कार्यालय से वापिस लौटते कोई पचास मीटर आगे जा रही बाइक पर से एकाएक एक युवती अचानक रास्ते में छाती के बल गिर गई . करुणा उमड़ आई पास जाकर कार खड़ी कर उतर गया . इस बीच बाइक सवार को हादसे का पता चल गया था उसने पीछे आकर अपनी सह-सवार को सहयता दे उठा कर किनारे बैठाने का उपक्रम चला लिया था . युवती रोई जा रही थी , कुछ अंदरूनी चोट से और कुछ उत्पन्न हुए दृश्य में अपमानित सी , लज्जा सी अनुभव करते हुए .
उसने कुशलक्षेम जानी और ज्यादा गम्भीर चोट नहीं अनुभव कर वापिस कार में आ बैठ "इग्निशन की" घुमाई . इस बीच स्थल पर एकत्रित भीड़ में कुछ हाथ उसे कार ना बढ़ाने का संकेत कर रहे थे . उसे लगा युवती को तो विशेष सहयता की आवश्यकता नहीं है . फिर क्यों रूकने कहा जा रहा है . भीड़ में से एक ने उसे कहा आप चले जाएँ यह भीड़ कम-अक्लों की है .
अभी तक तो उस पर पीड़िता के सहायता भाव हावी था , किन्तु भीड़ जो स्थल पर बाद में जमा हुई थी उसके लिए "एक कार का खड़ा होना और पाँच -सात मीटर सामने दुर्घटना" ऐसा दृश्य बन रहा था जैसे कार ही इस दुर्घटना का कारण है . खैर उसे वहाँ से निकलने का रास्ता मिला और वह गंतव्य कि ओर बढ़ गया था ...

दूसरे दिन कार्यालय के लिए तैय्यारी कर रह था तब एक पुलिस सिपाही घर के सामने आया . उसने उसकी कार का क्रमाँक पूछा और फिर कहा आपकी गाड़ी से दुर्घटना की शिकायत थाने में आई है .थानेदार साहब ने कार सहित आपको बुलाया है .
थाने पहुँचने पर थानेदार ने बयान दर्ज करवाने कहा . जैसा पूछा गया वैसा सच उत्तर देते हुए अपने बयान दर्ज करवाये तब उसकी स्वयं की हस्तलिपि में उसे अपना पक्ष लिखने कहा गया .
उसने कागज़ ले इस तरह लिख दिया
"मै 'निर्दोष' आत्मज सिद्धान्त निवासी जबलपुर , कल अपनी कार से रास्ते में था तब एक महिला को सड़क पर गिरते देख सहानुभूति और सहायता के विचार से दुर्घटना स्थल पर रुका था . दुर्घटना महिला के असंतुलित हो कर अपने साथी की चलती बाइक पर से गिरने के कारण हुई थी ,जिसमें मेरी कार और मेरा कोई दोष नहीं है ,महिला के गिरते समय मेरी गाड़ी लगभग पचास मीटर दूर थी . फिर भी मेरे विरुध्द शिकायत /अपराध प्रकरण दर्ज किया गया है ऐसे में मेरा निवेदन है कि मेरा पक्ष पीड़िता को बताते हुए पुनः पूछताछ की जाये और यदि वह अपनी शिकायत वापिस नहीं लेती है तो
लगाये आरोप को सच मान उल्लेखित अपराध पर मेरे विरुध्द संविधान के दंड प्रावधान अनुसार कार्यवाही की जाये .
मै निर्धारित किये जाने वाला  दण्ड भुगतने को तैयार हूँ , "इसलिए नहीं कि मैंने उल्लेखित अपराध किया है  ,बल्कि इसलिये कि"  मै एक नारी को दुबारा झूठा सिध्द करने का प्रयास नहीं करूँगा . और दण्ड इस अपराध के लिए भुगतुंगा कि हमने अपने समाज को सच्चा बनाने , इतना संतोषी और सम्पन्न बनाने के अपने दायित्व का निर्वाह उचित तरह से नहीं किया है .जिससे अभाव के कारण , लालच के वशीभूत हो वंचित साथी मनुष्य कुछ धन की आशा में निर्दोष पर दोष मढ़ने को बाध्य हो जाते हैं "

अपने हस्ताक्षरित लिखा कागज़ थानेदार के समक्ष प्रस्तुत किया . थानेदार ने कहा अन्वेषण उपरांत  कार्यवाही की जायेगी .. अभी आप जा सकते हैं ..

 --राजेश जैन
12-11-2013

Sunday, November 10, 2013

विवाह पूर्व मिलान -जुलान

विवाह पूर्व मिलान -जुलान
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आजकल जब विवाह हेतु विवाह पूर्व मिलान -जुलान होता है
कोई मिलान करता है ..
*  टीपना (कुण्डली)   .
*  शिक्षा , पद ,आय .
*  रक्त समूह .. (अन्य स्वास्थ्यगत पैरामीटर )
*  धर्म-जाति और खानपान 
*  शरीर गठन और ऊँचाई  इत्यादि

ऊँचाई  पर से एक वास्तविक घटना का उल्लेख लघु -कथा रूप में कर रहा हूँ .

"विवाह हेतु बात चली उसकी, कन्या पक्ष जाति का था , परिवार संपन्न था , कन्या पढ़ी -रूपवान थी . उसको पसंद आ गई थी . अपने बेटे की ऊँचाई अधिक की तुलना में कन्या की कुछ कम लगने से पिता के मुख पर यह बात सम्बन्ध तय होने ,सम्बन्ध के समय और सम्बन्ध हो जाने के उपरान्त भी अनेकों बार सुनने में आई ..
विवाह हुआ उसका दाम्पत्य आरम्भ हो गया . कुछ ही अवधि में वह वास्तविकता से परिचित हो गया . ब्याही पत्नी सुशील ,गुणी ,सुघड़ और पति-परिवार समर्पिता है . जिसने असंयमित , कम -अनुशासन इत्यादि उसके गुणहीनता  को धीरे धीरे परिवर्तित करना आरम्भ कर दिया . दो बच्चे हुए . लालन-पालन में समर्पण देख वह अचंभित था . विवाहपूर्व के आर्थिक परिवेश की तुलना में उसे (पत्नी) यहाँ कमी थी . बिना शिकवे शिकायत के तंग-हस्त व्यय कर बिना किसी को कमी का आभास कराये किस सुंदरता से गृहस्थी चलाई एक आश्चर्य जनक सच था .
बच्चों की आवश्यकता , मनोविज्ञान की समझ थी . प्रथम दृष्टया कड़े अनुशासन से किसी को लगता कि बच्चों से लाड-दुलार ,प्यार कम है इस परिवार में .

बच्चे बड़े होते गए . उचित -अच्छी शिक्षा और मार्गदर्शन से अच्छे स्थिति में आ गए . उसे भय था , बच्चे अब कड़ाई की शिकायत कर सकते हैं . लाड-प्यार की तुलना अन्य मित्रों को मिले से कर उलाहना दे सकते हैं .

तब बच्चों के मुख से और उनके आदरभाव से अब यह साफ़ हो रहा है . माँ कितना चाहती हो आप , कितना कुछ किया आपने हमारे लिए और आप हमारी दुनिया में प्रथम आदर्श हो ..

वह सोचता है .. पत्नी का कद तुलना में दिखने में भले कम रहा .. किन्तु कितना ऊँचा व्यक्तित्व है उनका . बार बार समक्ष बौनेपन का अनुभव होता आया है ,बीते बरसों  में उसे . "

विवाह यदि लॉटरी है तो कामना ऐसी लॉटरी सभी की लगे ..
और इतनी चेतना नारी में हो तो सम्मान रक्षा समस्या ही ना बचे ..

नारी सम्मानित घर घर होगी..

--राजेश जैन
10-11-2013

 

Thursday, November 7, 2013

जीवन अनुसन्धान

जीवन अनुसन्धान
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जीवन पाकर , क्या है जीवन ,क्यों मिला जीवन , कैसे जियें जीवन ? और भी जीवन के अर्थ खोजते .. अन्य प्राणियों की तो नहीं कह सकते किन्तु मनुष्य जिसे उन्नत विचारशील मस्तिष्क मिला है , वह अनादि काल से इस हेतु अनुसन्धान करता आया है . और ऐसे अनंत मनुष्य तब से अपने मिले मनुष्य जीवन के पचास से सौ वर्षों (पंद्रह से बीस वर्ष तो सामान्यतः मस्तिष्क विकसित होने में लगता है ) तक अधिकतम "जीवन सुख " पाने के विभिन्न मार्ग तलाशता आया है।

किसी ने
* कला - साधना में
* धर्म में लीनता में
* भोग-उपभोग पाने में
* वैभव -सम्मान बटोरने में
* विज्ञान शोध में
* भौतिक ज्ञान बढाने में
* दुनिया और अंतरिक्ष में भ्रमण और खोज में
* समाज -व्यवस्था बनाने में
* चिकित्सा -सुविधा साधन आविष्कारों में
* आजीविका संघर्ष में
* और कुछ और तरीकों में

अपना मनुष्य जीवन लगाया . कुछ ने  जीवन के अलग अलग अवस्था में इनमें से कुछ मार्ग का अनुशरण किया . जीवन तो सभी का एक आयु तक पहुँचने के बाद पूरा हुआ या हो जाएगा .

जीवन जब समाप्ति पर आया /आएगा .. मिले जीवन सुख से तृप्ति किसे ज्यादा रही/होगी इस पर विस्तृत चर्चा  की जाए तो आशा है - बहुतों के शेष जीवन का मार्ग परिवर्तन और इस तरह जीवन-समाज निर्माण ,  सुख-शांति और स्वच्छता में सहायता मिल सकती है .

शालीन कमेंट्स आमंत्रित हैं ...

--राजेश जैन
08-11-2013

Wednesday, November 6, 2013

कविता

कविता
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कविता जब नाम नारी का
बूढी होती जैसी सबकी बारी
कविता है जब शब्द पंक्तियाँ
स्वरूप सदैव नव-यौवना का

कविता है अजब पहेली
बूढी होकर नारी कविता
जब रचती कोई कविता
बनती वह नवयौवना ही 

साहित्य का नारी रूप कविता
सम्मानित ज्यों साहित्य में
मानव में नारी कविता हमें
रचना अब है पुरुष सक्षम सा

--राजेश जैन
06-11-2013

नारी चेतना और सम्मान रक्षा


नारी चेतना और सम्मान रक्षा
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परिवार चलाने में महत्व मेरा
 नहीं पुरुष कोई तुम से कम है
 उत्पत्ति में नव संतति के लिए
 मेरी भागीदारी भी बराबर की है

संरक्षण परिवार को देने यदि
 कठिनाई हे पुरुष तुम झेलते हो
 तब कठिनाई में तुम्हें देखकर
 प्रेम-दुलार,धीरज तुम्हें देती हूँ

मैं इस विवाद में नहीं उलझती
 भूमिका मेरी तुम से अहम् है
 हे पुरुष किन्तु जितना सहारा
उतना देती मै भी परिवार को

पुरुष ने बनाये लच्छेदार बोल
भारतीय नारी के सम्मान के
रहे सिर्फ मंच से भाषणों के लिये
यथार्थ मिलता उल्टा असम्मान हमें

लिया जन्म हमने भी मानव का
समाया उसमें मन पुरुष जैसा ही
हूँ समतुल्य, उठता प्रश्न बहुधा ही
प्रयोग नारी क्यों होता वस्तु सा

आओ पुरुष सहायता करो मेरी
चेतना हममें जाग सके सहज सी
स्वाभिमान बचायें अपने जीवन में
रक्षा सक्षम बन, पायें सम्मान नारों सा 

--राजेश जैन
06-11-2013

Monday, November 4, 2013

ये व्यवस्था हमारी ही हैं

ये व्यवस्था हमारी ही हैं
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दृष्टि शिकायती ही ना रह जाए . व्यवस्था के लिए और स्वयं के लिए यह हितकर नहीं . दो दिन बेटी के साथ पुणे प्रवास पर था . रात्रि 11.25 बजे पहुँचा था लम्बे सफ़र की थकान और पुणे बहुत बार गया भी नहीं था . रात्रि के उस समय हिम्मत नहीं हो पा रही थी ,सामान और बेटी सहित होटलों को भटकूँ . पूछताछ में पता हुआ रेलवे विश्रामालय में एसी कक्ष उपलब्ध है किन्तु 1 घंटे बाद बुक हो पायेगा . अभी बुकिंग साईट अवेलेबल नहीं होती है . हमने प्रतीक्षा की और फिर लगभग एक बजे कक्ष में पहुँच सके . रूम बहुत अच्छा था थोड़ी सफाई की कमी के अतिरिक्त सब बहुत अच्छा था .

 दूसरे दिन मुझे रात्रि के लिए अकेले ठहरना था ज्ञात हुआ की मेरी आने की टिकट पर आगे बुकिंग नहीं हो सकती और एसी कक्ष अब उपलब्ध नहीं है .नई टिकट पर बुकिंग तो हो सकती है पर एसी डॉरमेट्री में उपलब्धता है . मेरी सहमति पर एसी डॉरमेट्री में बुकिंग करते समय ही स्टेशन मास्टर (वाणिज्य ) ने अवगत कराया , इसमें कभी खटमल की शिकायत भी होती है . मैंने दूसरी व्यवस्था करने के स्थान पर इस समस्या को देखेंगे सोच कर बुकिंग करा ली .

दूसरे दिन पूणे से निकलने के पूर्व दो मिनट का समय देकर मैंने ड्यूटी स्टेशन मास्टर (वाणिज्य ) को अवगत कराया कि जैसी चेतावनी बुकिंग के समय दी गई थी वैसा नहीं है ,मुझे रात्रि विश्राम में खटमल समस्या देखने नहीं मिली . सुनकर उनके चहरे पर आश्चर्य मिश्रित प्रसन्नता स्पष्ट झलक रही थी . उन्होंने मुझे धन्यवाद कहा और बताया कि हम हर दो -चार दिनों में खटमल ट्रीटमेंट करते हैं किन्तु ऐसा फीडबैक हमें मिलता नहीं है .

वापिस आते समय मै सोच रहा था . नौकरी पेशा ये भी हमारे ही अपने हैं . इन तक सिर्फ हमारी शिकायत ही क्यों पहुँच पाती हैं . ये व्यवस्था भी हमारी ही हैं . कोई समस्या है तो दोनों ही ओर से सकारात्मक दृष्टिकोण से उन्हें हम ही सुलझा सकेंगे , अन्यथा कोई अन्य इन्हें सुधारने क्यों आएगा . आये भी तो क्या हमारे स्वाभिमान को ऐसा स्वीकार्य होना चाहिए  ?

--राजेश जैन
05-11-2013