उपयोगिता ..
समय आता है जब हमारी पारिवारिक और सामाजिक उपयोगिता लगभग समाप्त हो जाती है। तब हम एक तरह से भार होते हैं। ऐसे में हम अपने नखरे - फरमाइशें और अपेक्षायें ज्यादा रखें तो यह परिवार और समाज पर हमारा अतिरिक्त भार हो जाता है। इस भार को निर्वहन में परिवार और समाज से चूक होने की संभावना भी बढ़ जाती है , उस पर यदि हम चिढ़चिढ़ायें या गुस्सा करें तो पहले ही हुए भार को हम औरों के लिए असहनीय बना देते हैं। पूर्व में हम कितने भी प्रिय , सम्मानीय या जिम्मेदार रहें हों , आज की व्यस्ततायें हमारे करने वालों में विस्मृत हो जाती हैं।
अतः हम औरों के लिए कुछ न कुछ अपनी उपयोगिता ज्यादा से ज्यादा समय तक बनाये रख सकें यह कोशिश हमारी होनी ही चाहिए। फिर भी जब हम अनुपयोगी हो ही जायें तब अपने खर्चे , अपेक्षायें और क्रोध को नियंत्रित कर , हमें एक सरल व्यक्ति बन जाना चाहिए। यह सब करने के लिए हमें यह प्रमुख नहीं रखना चाहिए कि हम किसी के माँ - पिता हैं , अपितु यह स्मरण करना चाहिए कि एक बेटे या बेटी के रूप में हमने अपने माँ - पिता या माँ - पिता तुल्य सासु जी , श्वसुर जी के लिए उनके ऐसे समय में कितना और कैसा किया है।
--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
20-12-2018
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