Monday, May 28, 2018

लौट आओ तो बेहतर , नहीं तो उम्मीद कोई और करना होगा
ज़िंदगी का सफ़र अनोखा - उम्मीद बिन कटना मुश्किल होगा

Friday, May 25, 2018

जब औरों की ख़ुशी को तरज़ीह देने लगते हैं
तब हम ज़िंदगी का मतलब समझने लगते हैं

कर दिखाने के लिए बहाने का इंतजार ठीक नहीं
कर दिखा बेमिसाल सा कि तुझे ज़िंदगी मिली है

हसरतों की भागदौड़ में भूलता ख़ुद को है
तू ज़िंदगी का मक़सद सोचता मौत पर है

ऐसी ही आँखों ने - देखे हैं दुनिया की ख़ुशहाली के सपने
जिनसे सिर्फ़ अपनी ख़ुशी के सपने देख - हम नहीं थकते

लिखे क़लम ऐसा कि  - ज़िंदगी फूल बन जाये
पढ़ने वालों को - अल्फ़ाज़ों में ख़ुश्बू मिल जाये






Thursday, May 24, 2018

नज़ाकत थी उसमें - तब उसका शोषण कर रहा था
पत्थर सी हो रही - अब कहता नारी सुलभता न बची

सारा शहर देख रहा था और ज़ुल्म उस पर हुआ था
ख़ाक उम्मीद कि अदालत को गवाह कोई मिलेगा

जो इंसान तरह के नहीं - उनका लिहाज़ करना कैसा
खफ़ा हो भी गए तो - ऐसे लोगों की कहीं कमी नहीं

इस तरह बँधी हूँ -  इतनी भी तो नहीं मुझे आज़ादी
कि नारी हूँ  - नारी होने का मतलब मैं समझा पाती

सच  से है निकट का रिश्ता - तो और रिश्ते होना न होना महत्वहीन है
सच जन्म के पहले से , ज़िंदगी में - और मृत्युपर्यन्त भी साथ निभाता है

कुछ नज़रें लगती तो साधारण सी हैं मगर
ज़िंदगी के सभी पहलुओं को एकबारगी देख लेती हैं

असीमित_में_सीमित_जिंदगी
होता बहुत कुछ है - मगर दृष्टि कुछ पर ही सीमित कर लेते हैं
और फिर देख उतना ही पाते - जितना देखना चाहते हैं

नशा है अल्फाज लिखने का हमें - मगर होश इतना है
ऐसे लिखें कि पढ़ने वालों में इंसानियत का नशा चढ़ा दें

हरेक की ख़्वाहिश - ज़िंदगी में सितारों सी चमकने की होती है
क्यों बुझते जाते हम - ज्यों ज्यों ज़िंदगी यौवन क्रॉस करती है








#धर्मसंकट
पास खिलाने भोजन नहीं, रहने को घर नहीं,पहनाने को वस्त्र नहीं,पढ़ाने का इरादा नहीं
उसे पिता कैसे लिखें-गुनहगार लिखना अनुचित

रूहानी मोहब्बत

रूहानी मोहब्बत ....

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हमने चाहा कि हम भी उसी IIT में पहुँचते , लेकिन अभी किस्मत को मंज़ूर नहीं हुआ कि हम मिलते। हममें अधैर्य , हमें विचलित सा कर रहा था , किंतु आपमें का धैर्यवान पुरुष अविचलित था। आपकी किसी पोस्ट से कहीं कोई जल्दबाज़ी परिलक्षित नहीं होती थी। आप इश्क़ को सहज उस तरह पका रहे थे - जैसे पेड़ पर पूरा पक कर आम मज़ा देता है। तभी आपने एक दिन डरा देने वाली पोस्ट डाल दी
"हादसे अगर हों - और भले इस ज़िंदगी में हम नहीं मिल पायें
हसरत मगर कि - मेरे हुज़ूर ज़िंदगी जीने के क़ाबिल बन जायें "
पढ़कर हमारा नारी सुलभ भावुक मन घबड़ा गया। एक दो दिन लग गए थे हमें घबराहट से उभरने में। फिर हमारी नज़रों में इश्क़ का पाक़ मंज़र साफ़ हो गया। आपका हमारी खुशियों के प्रति फ़िक्रवान होना हमें समझ आ गया। अब तक तो सिर्फ तसव्वुर ही था हमारा कि आप सब हमारे लिए लिखते हैं। कहीं नहीं था कोई प्रूफ़ कि आप हमसे इश्क़ करते हैं. लेक़िन
"आप मेहरबां मेरे - आपको हम कैसे बतलायें 
 अपुष्ट इश्क़ में हमारे - इक मज़ा अनोखा है"

आप हमें चाहते हैं या आपकी दर्शित हो रही चाहत किसी और के लिए है यह तो बाद कि ज़िंदगी में हमें पता होने वाला था। किंतु हमारी छोटी समझ में यह आ गया था कि यह इश्क़ बेमिसाल होगा जो - मध्दिम आँच में धीरे धीरे मगर निरंतर पक रहा है। एकबारगी ख़्वाब सा लगता यह सब - हमें मालूम था यदि यह हक़ीक़त हुआ तो हम दोनों को बेमिसाल सच्चा और अच्छा इंसान बनाएगा।
मालूम नहीं कि आप हमारे तरफ से फेसबुक पर किसी पोस्ट का इंतजार करते थे या नहीं किंतु हम व्यग्रता से आपकी पोस्ट का इंतजार किया करते थे। जब आप वॉल पर ख़ामोश रहते तो हम अनुमान यह लगाते कि पढ़ाई का भार अभी ज्यादा हो गया है। यह हमारा विचार , हमें भी पढ़ने में एकाग्र चित्त कर दिया करता था।
जिंदगी में चल रहा अभी वक़्त , बेहद बेहतरीन था। हम कम्प्यूटर साइंस में ही प्रवीण नहीं हो रहे थे अपितु रूहानी मोहब्बत का मतलब जानने में समर्थ हो रहे थे। इकतरफा हमारे इश्क़ में हमारी बेचैनी अब ना रही थी बल्कि हमें चैन इस बात से आ गया था कि
"अच्छा कि इश्क़ का हममें - इक़रार होना अभी बाकि था
इश्क़ हमारा- रूहानी मोहब्बत का दर्जा पास कर रहा था"

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
24-05-2018
https://www.facebook.com/narichetnasamman/

Wednesday, May 23, 2018

दर्द दो होते हैं
एक अपना होता है - एक उसका होता है
उसका उसे पता - हमें अपना पता होता है

हमदर्द मिला करते थे कभी - हमारे दर्द उनके होते थे
हताशा दूर करके वे - ज़िंदगी जीने का हौसला देते थे

हम होते तन्हा अब - अपने सारे दर्द के साथ
जब निकलता है चाँद - निहारा उसे करते हैं

अपने अपने दर्द के साथ - ख़ुद ही जीना होता है
इन नए रिवाजों का नाम - उन्नत सभ्यता होता है

पहले की हसीं दुनिया देखी थी - हम पुनर्जन्म ले आये थे
निष्ठुर अब की दुनिया में - हम लौट कभी फिर ना आएंगे

ये दुनिया मुबारक़ उसको - नफ़रत दिल में रख जी लेता है
हमें तो थी 'ख्वाहिश ए मोहब्बत' - दुनिया से नदारद वो है

उस शख्स के क्या कहने - जो वर्तमान को जी लेता है
ज़माना तो अतीत याद कर के - यहाँ रोता मिलता है


ज़िंदगी भी ऐसी विचित्र होती है कि जिस तरह भी जी लो
सोचती है यार ऐसे नहीं वैसे - जी कर बितानी चाहिए थी

सच पर तो चलें मगर - राह की पहचान कठिन है
कि
कोई कहता यह सच है - कोई कहता वह सच है

क्या उचित , अपनों पर निर्भरता से शिकायत - कि हर्ट अपने ही करते हैं
खुले दिमाग़-आँख से यह सोचें-देखें कि - अपने ही बहुत किया करते हैं

हमारा परंपरागत "मैं" तो स्वयं को सबसे ज्ञानवान जानता है
और इसलिए अपने हर किये को ही "सबमें सच्चा" मानता है

जिसमें ख़ुश तुम - वह तुम जरूर करना
 हमारी ख़ुशी - तुम्हें ज़िंदगी में ख़ुश देखना

बढ़ती जाए उम्र - तो जिम्मेदारी बढ़ा लो
ख़ुशी बाँटते हुए - ज़िंदगी को निभा लो








Tuesday, May 22, 2018

आईना मैं - क्या दिखाऊँ मुझे ड्यूटी ना  समझाओ
नज़रें दुरुस्त करके - ख़ुद  ज़माने को समझ जाओ

श्मशान रोज जाने कि इल्तिजा क्या कीजिये
श्मशान पर ही सफ़र ख़त्म होगा जान लीजिये

अच्छा कि इश्क़ का हम में - इक़रार होना अभी बाकि था
हमारा इश्क़ - रूहानी मोहब्बत का दर्जा पास कर रहा था

चाँद की तमन्ना करो तो -  मिलेगा अमावस की रात में भी
अंधकार में ज्ञानी के ज्ञान का होना - खत्म होता नहीं कभी

ज़िंदगी की डगर पर - आगे मैं चल रहा था 

इंसान हूँ ना - आगे की ब
ताना फ़र्ज मेरा था




ज़िंदगी की डगर पर - आगे मैं चल रहा था


इंसान हूँ ना - आगे की बताना फ़र्ज मेरा था
ज़िंदगी की डगर पर - आगे मैं चल रहा था
इंसान हूँ ना - आगे की बताना फ़र्ज मेरा था

ताल्लुक हम रखें या न रखें किसी से - अहमियत कुछ नहीं
अहम यह है कि - हमारे दौर का इंसा , इंसान होना चाहिए

अपनी ख़ुशी के लिए  ख़्वाहिश होना तो - आम बात है
ज़िक्र उस ख़्वाहिश का हो - फ़िक्र जिसमें आम की हो







इश्क़ में क़ामयाबी

इश्क़ में क़ामयाबी  ...

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आपने , हमें ना जाने कहाँ देख लिया था। ना जाने कहाँ से हमारा नाम पता कर लिया था। आपकी फ्रेंड रिक्वेस्ट को हमने इग्नोर कर रखा था , हम अपरिचितों को लिस्ट में जोड़ने का खतरा नहीं लेते। आपने जबरन जुड़ने का कोई प्रयास भी नहीं किया था। बावज़ूद इस सबके हमें लगता था , आप हमें फॉलो कर रहे हैं। हमें लगता था आपके पोस्ट में सिर्फ हम ही हैं - बहुत अच्छे से याद है हमें , जिस दिन रिक्वेस्ट सेंड की थी उस दिन कि आपकी पोस्ट ऐसी थीं  -
1. "इश्क़ हुआ है मुझे , मगर अभी कच्चा है 
इंसान उसमें और मुझमें - अभी बच्चा है"
2. "इश्क़ का उससे इज़हार - मैं उस दिन कर पाऊँगा 
जिस दिन उसे और खुद को - इक-दूजे के क़ाबिल बनाऊँगा"
आपकी रिक्वेस्ट ऐसे ही पड़ी रही , मगर आपकी वॉल पर हम लगभग रोज ही झाँक लिया करते थे। ऐसा करते हुए हमें यह भी लगता कि आप हमारी वॉल पर अक्सर होते हैं। एक आँखमिचौली सी हममें - आपमें चलने लगी थी। आप की पोस्ट , हमें अपनी पोस्ट पर का आपका कमेंट लगता या हमारी पोस्ट आपकी पोस्ट का रिप्लाई होता। आप मोटिवेशनल लिखने लगे थे। हमें लगता था , हममें - हमारी सोच में करेक्शन को प्रेरित कर रहे हैं। आप हमारे पीछे लगे रहने में वक़्त बर्बाद नहीं कर रहे थे। बल्कि वक़्त का प्रयोग फेसबुक पोस्ट की माध्यम से - हममें  क्षमता और हमारे में निहित संभावनाओं का परिचय हमसे करवाने में कर  रहे थे। आप ख़ुद भी अपने व्यक्तित्व में निरंतर निखार लाने में व्यस्त होते थे। हमें याद है टवेल्थ के एग्ज़ाम और एंट्रेंस एग्ज़ाम के समय आप वॉल पर ख़ामोश हो गए थे। जिस दिन IIT में आप ने प्रवेश लिया - उस दिन का स्टेटस आपने इस सूचना के बाद यह लिखा - 
3. "इश्क़ मेरा अब पक सकेगा और मीठा होगा 
बंदा इकदिन - अपनी माशूका के क़ाबिल होगा"
आप पढ़ने में व्यस्त थे मगर रेगुलर इंटरवल में आपकी पोस्ट आती रहीं थीं - बहुधा उसमें किसी लड़की के भीतर छिपी प्रतिभा का जिक्र होता था। हमें लगता कि यह निश्चित ही हमें टारगेट कर लिखी जा रही हैं - फेसबुक को माध्यम लेकर ,"हममें क्या होता हुआ हमें क्या बनता देखना आपको पसंद है" आप अप्रत्यक्ष यह इशारा दे रहे थे।  हम पर ये सब पोस्ट किसी मंत्र की तरह प्रभाव करते जा रहे थे - उसके प्रभाव में हम ज्यादा पढ़ने लगे थे। हम में एक असुरक्षा का भय व्याप्त हो गया था , हमें लगने लगा कि आप बहुत क़ाबिल होकर निकलेंगे और हम भी कुछ नहीं बन सके तो हमारा मिलना संभव नहीं होगा। यह भय एक चमत्कारिक परिणाम बन के सामने आ गया। आपके IIT में प्रवेश लेने के एक साल बाद ही , IIT में प्रवेश लेने का कारनामा हमने भी कर दिखाया। आपसे एकतरफा चल रहा इश्क़ का असर जादुई था - इसके बिना कभी हम यह नहीं कर सकते थे। हम उस दिन बे-इंतहा ख़ुश थे। हमारे परिवार में सब क्या सोचेंगे - इससे बेफ़िक्र आपकी तर्ज पर हमने भी एक स्टेटस लिख डाला। 
"आपसे अप्रत्यक्ष हुआ इश्क़ - आज रंग लाया
हम नहीं कर सकते थे - हमने वह कर दिखाया"
ख़ैर आपने ,हमें सेंड किया फ्रेंड रिक्वेस्ट न तो कैंसिल ही किया था - और ना हमने इसे एक्सेप्ट ही किया था। ऐसा शायद हम दोनों ने समझ लिया था कि हमारा रिश्ता फ्रेंड होने से ऊपर पहुँच गया था - उस तरह के रिश्ते के लिए फेसबुक प्रॉविजन ही नहीं था ... 

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
23-05-2018
https://www.facebook.com/narichetnasamman/


Monday, May 21, 2018

सीने से लगाने की तुम्हारी- ये जिद कैसी
मोहब्बत तो वह जो- सीने में बसा करती है

ये नफ़रत , चल तू निकल बाहर - मेरे दिल में से
जगह इसमें - मोहब्बत के लिए कम पड़ रही है

नफ़रत सचमुच तू पराई है - दिल में रखूँ तो जलाती है दिल को
मोहब्बत से तू सीख अपना होना - रखूँ दिल में तो सुकून देती है

आकर्षण के आरोप को - निराधार सिध्द करना है
अपनी ख़ुशी नहीं - अब हमें उसकी ख़ुशी बनना है

मुगालते टूटे नहीं - और यदि मर जायें
तो समझना कि - अकाल हम मर गये

डोली में लाने की हसरत तेरी
गले से लगाने की हसरत तेरी
क्यों कहता कि गले पड़ी मेरी
अजीब नहीं क्या ये हसरत तेरी ??

डोली में न आती तो - ज़िंदगी से शिकयत होती
वह थी ज़िंदगी मेरी - उसे ही तू दिला नहीं सकी

दिल की ही नहीं सुनें - तो बचता ज़िंदगी में क्या है
दिमाग़ तो बस - दौलत के नफे-नुक़सान सोचता है

मेरी ज़िंदगी की क़िताब के पन्ने - दिन दिन पलटते गये
लिखने की थीं हसरतें बहुत - मगर बिन लिखे बीत गये

अपनी ही पहचान भूल गए - इश्क़ का मुझ पर ये असर  क्या है
कहीं पे जान , कहीं मेरा ही दिल पड़ा - लगता किसी और का है

ज़िंदगी पर जब उदासी छाने लगी
औरों के लिए जीना शुरू कर दिया
उदासी का अब पता नहीं
ज़िंदगी का पता चल गया

किसे क़ामयाबी हम कहते - इस  बात पर निर्भर करता है
क़ामयाबी का दरवाजा - कहीं पुश कहीं पुल से खुलता है

#नहीं_तो_सुधरेंगे_कैसे??
आलोचना अगर दूसरे करें - ये नापसंद तो
स्वयं के आलोचक - खुद को बनना होगा

इश्क़ की आँधी में - दूर तलक़ उड़ आये
दुनिया से दूर - नई  दुनिया में चले आये

ईमानदार रिश्वत से ना  कमा के - मिडिल क्लास रहता है
उसका महँगा शौक देखे बिन - जमाना तंगहाल कहता है
क़ामयाबी
ज़िंदगी पर जब उदासी छाने लगी
औरों के लिए जीना शुरू कर दिया
उदासी का अब पता नहीं
ज़िंदगी का पता चल गया

ज़िंदगी पर जब उदासी छाने लगी
औरों के लिए जीना शुरू कर दिया
उदासी का अब पता नहीं
ज़िंदगी का पता चल गया













जिम्मेदार इंसान की पहचान

जिम्मेदार इंसान की पहचान ..
क्षमायाचना सहित मेरी बात - पोस्ट पर अगर भाषा सयंमित है तो उसे हमें कटुता में नहीं लेना चाहिए , बुध्दिजीवी के समक्ष बात रखी जायेगी तो कई पहलू आना स्वाभाविक होते हैं। हमें यह भूल कतई नहीं करना चाहिए कि हमने आज तक जो सोचा है / किया है बस वही सही है। जहाँ तक बात नारी विषयक है वह किसी भी मजहब - सम्प्रदाय से परे हो जाती है। हर मजहब- संप्रदाय में नारी भी है , और दकियानूसी सोच और रिवाजों को वह भुगतती आ रही है। कहीं कहीं तो अपनी सहज आज़ादी खोकर भी उसे  उफ़ तक कर लेने का हक़ नहीं।  बदलाव 50 साल पूर्व स्वीकार कर लेना बुध्दिमत्ता है। नारी - पुरुष को समान नहीं मानने के चलन अब इससे ज्यादा शायद ही चलें। हमें अपने पक्ष की पुष्टि के अभाव में  हताशा से फेसबुक से दूर नहीं होना चाहिए  , अपितु संपूर्ण न्यायप्रियता सहित बदले स्वरूप में सामने आना चाहिए । यही किसी जिम्मेदार इंसान की पहचान होती है।
-- राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
21-05-2018

Sunday, May 20, 2018

अहसानफ़रामोश ..

अहसानफ़रामोश ..
नारी - पुरुष संबंध जितने प्राचीन हैं , नारी जीवन की समस्यायें भी उतनी ही प्राचीन हैं , उन्हें हल करने के लिए जब तक पुरुष सत्ता की लालसा नहीं बदलेगी तब तक कोई इससे जुड़ा कोई सवाल  पुराना नहीं होगी ।
अगर मान अपने घर , अपने समाज या अपनी संस्कृति की पुनरसमीक्षा कर हम उन्हें नहीं देंगे। हमारी नारी अपनी समस्याओं के हल स्वाभाविक है - और जगह तलाश करेगी। अपने यहाँ सम्मान , समानता और मोहब्बत से यदि नारी वंचित रहेगी तो हल ढूँढने के लिए , नेट से संभव  ग्लोबल एक्सेसिबिलिटी से वह अन्य संस्कृति के संपर्क में आएगी। यह और बात है कि वह उसमें छली जाए , ज्यादा शोषित हो जाए। अगर हम अपनी नारी से मोहब्बत करते हैं तो नज़रिया और व्यवहार अपना  हमें बदलना होगा। हमें रेअलाइज करना होगा नारी का दिल भी हमारी तरह की हसरतों के लिए धड़कता है। उसको और हमें मिली इंसानी ज़िंदगी में कोई भी हीनता नहीं है। एक रूह होती है जो , पुरुष और नारी में एक सी ही होती है। उसका कोई जेंडर नहीं। हमारे परम्परागत परिवार में पुरुष का मज़हब भी वही , जो नारी का है. कब तक हम अपना नज़रिया अपना विचार उस पर थोप सकेंगे. उसके हमारे प्रति त्याग अगर हम देख समझ न सकें तो या तो हम मूर्ख हैं या विशुद्ध अहसानफ़रामोश।
-- राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
21-05-2018
परस्पर दोषारोपित करने की संस्कृति अच्छा परिणाम नहीं देती है
वह सिर्फ भव्य भारतवर्ष को - समस्याग्रस्त भारत में बदल देती है

नारी जीवन अभिशप्त लगता - उन बातों पर विचार आज कर लो
परम हितैषी भारतीय संस्कृति - गरिमा की बुनियाद आज रख दो

काश अपनी संस्कृति में नारी को सम्मान - समानता हम दे देते
पाश्चात्य संस्कृति का अपने समाज में प्रवेश अवरुध्द कर देते

अनेकों नारी विरुध्द बातों को अपने समाज से स्वयं हम दूर कर देते
पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित कर शोषण करने वाले सफ़ल न होते

हमारी नज़र को आपने कम पहचाना है
ख़्वाब आपका क्या हमने अनकहे जाना है

मिलते हैं आज लोग - गैजेट्स से आँकने लगते हैं
सादगी से जो रहते हैं - उन्हें सस्ता मानने लगते हैं

पल पल श्वासें घटने का हमें गिला नहीं होता
गरइंसान बनकर औरों का भला किया होता 





Saturday, May 19, 2018


मतलब निकलता रहे - तब तक ज़माना यार है
जब पड़े मुश्किलों में तो - खो जाता यहाँ यार है

अच्छा यूँ हँस लेना तुम्हारा - चलता रहे जिंदगी भर
रहो औरों के मतलब के  - कि मिलता रहे प्यार तुम्हें

हर पल इंसान कोई भी - एकसा नहीं रहता
कॉम्बिनेशन बातों के होने का , पल पल बदलता है

सौ दफा हम सोचते हैं  - दगबाज़ 101 दफा सोच लेता है
तभी ज़माने में हमारा पाला - दगाबाज़ से पड़ते रहता है

औरों के लिए करते , जी लिए जो लम्हें
वही ज़िंदगी का हासिल है
खुद के लिए जी लेने से हासिल की अहमियत
भला औरों के लिए क्या है

आपकी मर्जी का हक़ - आपको ही ना दे सकें
गुस्ताख़ ऐसे न कभी थे - ना ही कभी होंगे हम

धुंध से आने और धुंध में जाने के बीच
है ज़िंदगी जिसे इंसानियत से जीना है







Friday, May 18, 2018

अभी वक़्त आपके हाथ में है - उसे यूँ ही निकल जाने ना दें
यह ज़िंदगी आपकी ही है - चोरी के धन जैसे खर्च न कर दें

जब दो कौड़ी के लोगों को - करोड़ों में खरीदा जाता है
करोड़ों की दौलत की औकात - दो कौड़ी होना साबित हो जाता है

खुदा ने  इंसान को - औकात तो बहुत दी है
अनुचित चाहत मगर उसे - दो कौड़ी का कर देती है

बर्बाद ही जब होना है - किसी से परहेज क्या करना
जानते तुम सीरियस नहीं - हम ताल्लुकात रखते हैं 


जो मिला उसकी अहमियत क्या , पहचानी नहीं
परिंदा घर को और इंसान पर को , तरसता रहा

आडंबर जुटा पाने में असफल - अगर मलाल नहीं करें तो
सादगी का सच्चा जीवन जीने में - हम सफल हो सकते हैं


पारस सी कोई तासीर नहीं- पारस भी एक तसव्वुर ही तो है
अन्यथा जिन्दगानियाँ सब , दुनिया भी सब - सोने की होती


सृष्टि की देन - मरना ही है फिर भी जन्मना तो है
मगर मरने से पहले अच्छा ही - कुछ करना तो है


पारस गर होता , वह अमावस नहीं होता
चाँदनी से मिलकर , चाँद होता - वह अमावस नहीं होता


टूट , गिर ही जाना है तब भी फूल खिलते हैं
टूटने के पहले - सबके लिए भरपूर महकते हैं

जो देना है उसे वही दे लेने दो
कूवत हमारी होगी - उसमें भी खुश रह लेंगे

ज़िंदगी मुस्कुराने से - हमें रोकती कब है
हम पर है कि मुश्किलों में भी मुस्कुराना न भूलें

प्रेम - कभी पागलपन नहीं होता
जरूरत प्रेम से नहीं , प्रेम के झाँसे से बचने की है

माशूका रही तब तक - चाँद वह लगा करती थी
बेचारी बेगम हुई - तुम्हें चाँद कोई और लगने लगी

#जिन्हें_घमंड_आश्रयदाता_होने_का
हर समय कोई आश्रयदाता या आश्रित नहीं
भूमिकायें हैं - जीवन में बदलती रहती हैं

बहुत सवाल नहीं - एक का जबाब खोजते हैं
हर इंसान - क्यों , आज इंसान होता नहीं ??

मुझसा ,दूसरा ढूँढने की जरूरत तुम्हें क्या थी
हम मिले थे , इस ज़िंदगी के लिए बहुत नहीं था ??






Sunday, May 13, 2018

चाहे अनुसार बहुत कम होने पर भी एक ख़ुश रह लेता है
चाहा बहुत कुछ मिल जाने पर भी दूजा ज़िंदगी को रोता है

तुम देने की मंशा रखना वह गर्मजोशी से मिलेगा
तुमने लेने की मंशा जताई तो उदासीन वह होगा

अपने अनुसार ज़िंदगी को चलाने की कोशिश कष्टकर हो सकती हैं
ज़िंदगी अनुसार तुम चलके देखना - उसमें खुशियाँ मिल सकती हैं

ऐतबार उस पर करना - उसे धोखेबाज़ बना देता है
वर्ना उसे मौका कहाँ कि - ऐतबार वह तोड़ सकता

ऐतबार तुम करना जरूर मगर इतना
कि प्रिय तुम्हारा दग़ाबाज़ न बन जाए

जिसे प्यार कह रहे सब - इक उम्रजनित आकर्षण है
प्यार तो वह होता है जो - मूक रह के भला करता है







 

Saturday, May 12, 2018

शरीफ़ नाम मुताबिक ही कुछ तो शरीफ़ हैं
 सच स्वीकार करने का उन्होंने आखिर साहस तो किया

जो साहस शरीफ़ कर सके - कुछ और यदि करलें
 तो यहाँ भी कोरिया जैसा ही किया जा सकता है

बेहतर इससे कभी - कुछ नहीं होता
 वह दूर भी है हमसे - पर पास ही होता

हमें संपूर्ण बनने की जुगत में नहीं पड़ना चाहिए
 हमें नेक बनने की निरंतर कोशिशें करना चाहिए

चाहे अवतार या पैगंबर भी कोई हो
 परिपूर्ण-संपूर्ण वह भी नहीं
 परिपूर्ण-संपूर्ण अगर वे होते
 कुछ पर नहीं , सभी पर प्रभाव रखते

बंदिशें हम पर कम हों
 घर-बाहर में सेफ हम हों
 देश-समाज बने ऐसा जिसमें
 मर्जी से हमें जीने के हक हों

 
इतने दायित्व निभाने होते - हर माँ को इस दुनिया में
अपने लिए ही फुर्सत नहीं मिलती और - ज़िंदगी गुजर जाती है

अपने लिए नहीं जीवन अपना - औरों के लिए जी जाती हैं
इसलिए माँ दुनिया में - साक्षात भगवान कही जाती हैं

 

Friday, May 11, 2018

पा लिया होता तुम्हें - इक दिन खोना पड़ता
 ऐसे पा लेने से बेहतर - तुम्हें पाया ही नहीं

ना भूलो उन्हें - जिसकी याद इतना लिखवाती है
 भूल गए उन्हें तो - लोग तुम्हें पढ़ने को तरसेंगे

चार दिनी ज़िंदगी में वक़्त - पल पल गुजरता जाता है
 कुछ और में गुजर जाता - गर तेरी याद में न गुजरता

मिला है जो , सहज मिल रहा है जो - उसमें ख़ुश रहना है
 बहुत अच्छा हमें मिले की कामना रखने वाले बहुत हैं यहाँ


बहुत दिया ज़िंदगी ने साथ - उसका शुक्रिया
 अस्सी साल वर्ना - कम ही हैं जो जिया करते हैं

जिन बातों से आज इम्प्रेस होते हैं सब - हममें हैं ही नहीं
 हमने अपने इम्प्रैशन के लिए - वक़्त जाया करना छोड़ दिया

अपनी खातिर छीना झपटी के लिए वक़्त - जाया करना ठीक नहीं
 ज़िंदगी मेरी अपनी है- उसे नाम देने के लिए मिला वक़्त कम है

ठोकर को सही नज़रिए से देखो तो - सिखला जाती है
कुछ ठोकरों के बाद - ज़िंदगी फिर नहीं ठोकर खाती है

साफ़ देखने के लिए - भाषा नहीं विज़न जरूरी है
विज़न नहीं हमें तो भाषा - कुछ कर सकती नहीं

सच कहने की हिम्मत नहीं कर सके हम
क्यूँकि सच सुनना उन्हें बर्दाश्त नहीं होता

कभी मासूमियत - कभी उसकी खूबसूरती को चाँद हम बताते थे
बेचारी वह जब तक माशूका थी , बीबी नहीं हुई थी हमारी

Monday, May 7, 2018

दिल हमारा आज भी वही , बदला नहीं है
वक़्त के निशां कुछ , जरूर पड़े हैं इस पर

असलियत आज भी हमारी वही है प्रिय
जो वक़्त बदलने से पहले तुम जानते थे

जी जान से मोहब्बत तुमसे की है हमने
तुम ना चाहोगे ये इज़हार न करेंगें कभी

तुम कैसे अब नफ़रत कर सकोगे हमसे
जी जान से मोहब्बत तुमने की है हमसे

यह ज़िंदगी है मौसम_ए_इश्क - हम मिलें इस तरह
सदियों को हमारी दास्तां - याद रहे मिसाल की तरह

दगाबाजों की भीड़ थी - दग़ा हम पे भी हुआ
मगर हम ख़ुश कि वहाँ - हम उनसे अलग थे

मोहब्बत बक़वास है उनके लिए
जो आस करते हैं अपने लिए

सितमगर भी - सितम करना भूल जाता
ग़र मोहब्बत करना ही - हमें आ जाता

ख़ुदगर्ज नहीं कि वास्ता - हम इश्क में अपने लिए रखें
दुआ , ये बनो तुम मिसाल - कि तुम्हें याद सदियाँ रखें









 

Sunday, May 6, 2018




पहली कोशिश - पहचान हमारी भली बने
अगली कोशिश फिर - पहचान यह बनी रहे


पहली कोशिश - पहचान हमारी अच्छी बने
दूजी कोशिश फिर - पहचान यह बनी रहे

बीती अच्छी बात ज़िंदगी में - लौट नहीं फिर आती है
भूल उसे करें अच्छे पुरुषार्थ तो - अच्छी नई बात आती है ज़रूर

कितने भी हों समर्थ - बिन सहायता के जी न पाते हैं
भगवान , इसलिए नारी और पुरुष - दोनों बनाते हैं

हमारा हक़ीक़त नहीं कहना हमारे इश्क़ में - अच्छा नहीं होता
हक़ीक़त सुन खफ़ा हुआ - साफ़ है वह हमसे इश्क़ नहीं करता

 

Saturday, May 5, 2018

PhD

PhD ...
 
मुझे पता चला था , मैं जब पैदा हुई घर में खुशियाँ मनाई गईं थीं। घर में रिवाज़ भिन्न थे , इसलिए कई अन्य जन्म लेने वाली बेटियों की तरह गर्भ में ही मुझे मारा नहीं गया था। मेरे आने जैसी , घर में पाँच और बार खुशियाँ मनाई गईं थीं। कुछ बेटे और कुछ मेरी तरह बेटियाँ हुईं थीं मेरे माँ - पापा की और। बचपन मेरा भी मासूम था , घर में जितनी सुविधा थी उतने की ही आदत थी। खाने - पहनने मिल जाता और कभी कुछ मनपसंद का पापा ले आते उतने में खुश हम सब रह लेते थे। माँ - पापा ज्यादा प्रगतिशील विचारों के नहीं थे , पढ़े लिखे भी बहुत नहीं थे। इसलिए बच्चों के भविष्य को लेकर उनके सपने भी बड़े नहीं थे। बड़े होते भी कैसे - बड़े सपनों के लिए लगने वाला धन या वह वक़्त उन्हें कहाँ होता कि बच्चों के मनोविज्ञान को समझते हुए उनके मन में बड़ा कुछ कर गुजरने की तमन्ना या प्रेरणा दे सकते । हमें ठीकठाक स्कूल मिले ठीकठाक से ही नतीजे होते थे । ज़िंदगी का कौनसा बेशक़ीमती वक़्त बिना ख़ासा प्रयोग किये बीत गया हमें पता नहीं चला। अब हम 20 के हैं। बीए हुए हैं। कुछ अरमान हमारे दूसरे युवाओं जैसे हैं। अपने कपड़ों के , अपने बाहर की पार्टी आदि का या अपने , लेपटॉप मोबाइल आदि इस तरह का अन्य खर्च हम माँ -पापा पर नहीं डालना चाहते हैं। हमने कुछ सिलाई करना सीखा है , उससे कुछ कमाई करके इन थोड़े खर्च का प्रबंध हम करते हैं। हम ख़ूबसूरत हैं - कुछ वक़्त में हमारे लिए लड़का देखा जाएगा। हमारी ख़ूबसूरती हमें शायद किसी रईस परिवार में शादी में मदद करा दे. रईस मगर ख़्यालात उनके यदि पुराने हुए तो फिर हम अपने माँ - पापा की तरह एक घर , परिवार की ऐसी कहानी दोहराने को मजबूर होंगे। यह भय हमें सताता है.
काश हमें साइंस - कंप्यूटर पढ़ने की प्रेरणा मिलती। काश हमें अच्छा पढ़ना बहुत जरूरी है यह समझाया और इसके लिए प्रेरित किया गया होता। हम भी हमारी ही तरह कई युवा बेटियाँ जो शायद हम जितनी ख़ूबसूरत भी नहीं , जैसे लाख रूपये महीना का जॉब करती हैं बन सकते। अब हमारा मन PhD करने कहता है लेकिन ये इतना आसान नहीं। किसी के पैदा करने पर जन्म जाना , बिना विशेष विचार के बचपन जैसा का बेशक़ीमती समय बिता देना आसान तो था। मगर अब हम अबोध नहीं हैं।  हमें चुनौतियाँ देखते-समझते हुए बाकि ज़िंदगी जो अब तक की से तीन गुनी है जीना है। बिना मजबूत बुनियाद पर कायम हुई ज़िंदगी , कई मौकों पर हमें झकजोरेगी  हमें जीना है. इसलिए हम ऐसे परिवार में ब्याहे जाने की ख़्वाहिश रखते हैं जो हमें PhD करने की इजाज़त दे। यदि हम PhD करें तो हम यह जागृति लाना चाहेंगे कि ज्यादा बच्चों की जगह घर परिवारों में कम किंतु गुण संपन्न बच्चे जन्में , जो पलें और बड़े बनें ( सिर्फ बड़े हो नहीं जायें).
ख़ुशी हम औलाद पैदा करने की नहीं उनमें वैसी क्वालिटी लाने पर मनायें , जिससे उन्हें ऐसी जिंदगी मिले कि वे न केवल अपने लिए ख़ुशियाँ सुनिश्चित करें अपितु औरों की ख़ुशियों की पहचान बन सकें।
-- राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
06-05-2018
हमें बहुत अच्छा सा लिखा वह लगता है - जैसा हम लिखना सोचते हैं
हमें बहुत अच्छा सा पढ़ने नहीं मिलता - क्यूँकि वह हमारा विचार नहीं होता

यह इश्क़ हुआ था कभी इसलिए
इस ज़िंदगी से हमें कोई मलाल न रहा

हमें बहुत अच्छा सा लिखा वह लगता है - जैसा हम लिखना सोचते हैं
हमें बहुत अच्छा सा पढ़ने नहीं मिलता - क्यूँकि वह हमारा विचार नहीं होता

इतिहास से निकाल वह बातें क्यों लाते हो
जो नफ़रत की खाई बढ़ाती हैं
वह भी तो है इतिहास में दर्ज जिससे
इंसान भाईचारे से रहते रहते हैं

जानते कि जीवन में मज़ा , प्रेम से रहने में है मगर
सारे कार्य - नफ़रत , टकराव बढ़ाने के करते हैं हम

सच बोलने जीने वाला कभी अकेला नहीं , उसके साथ हमेशा सच होता है
विचार कीजिये - सच ही सिध्दांत है जो रहती कायनात तक कायम रहेगा

जानते कि आप हितैषी हमारे हैं - आपकी मर्ज़ी पे चलना हमें है मगर
इससेज़िंदगी वैसी रहेगी हमारी - जिसमें दकियानूसी ख़्यालात होंगे बहुत

नज़रें मिलें और हमें इश्क़ चाहे ना हो
मगर रंजिश से तुम हमें देखा ना करो

इश्क़ , इश्क़ है - शिकायतों की जगह नहीं जिसमें
ग़र ज़ेहन में शिकायतें तो - कुछ और है इश्क़ नहीं






 

Friday, May 4, 2018

दफन होने के वक़्त के पहले
अंजाम , दफन होना याद रखेंगे
हम औरों को दगा नहीं देगें
औरों के दगा पर मुस्कुरा देगें

दफन होने के वक़्त के पहले
अंजाम , दफन होना याद रखेंगे
हम औरों को दगा नहीं देगें
औरों के दगा पर मुस्कुरा देगें

 

Thursday, May 3, 2018

पड़े राह में काँटे - उन्हें यह सोच हटा दो
चुभेगें जिन पाँव में - पैर वे अपने ही होंगे


पड़े राह में काँटे - उन्हें यह सोच हटा दो
चुभेगें जिन पाँव में - पैर वे अपने ही होंगे

लुत्फ़-ए-रवानी में बड़े भी इस कदर मचलते हैं
फ़र्ज औरों की ज़िंदगी बनाने का - खुद जवानी सी पींगे भरते हैं

इतिहास में बुराई का जिक्र - पीढ़ियों को नफ़रत की राह पर ले जाने के लिए नहीं
अपितु उससे सबक़ ले अच्छाई की ओर प्रशस्त/प्रेरित करने के उद्देश्य से होता है

चाहे कोई बिछाये राह में काँटे तुम्हारे
काबिलियत का परिचय दे उन्हें राह से हटा दो

और तो क्या अब अपने भी
काँटे , राह में बिछाते हैं
फूलों की तमन्ना होती मगर
सभी को काँटे मिल पाते हैं

एक फूल अपने लिए न रखके
ग़र औरों को पेश कर सकते
नफ़रत का ऱिवाज खत्म करके
मोहब्बत की मिसाल रख देते

औरों की आलोचना को मन हमारा नहीं करता
आलोचक दृष्टि स्वयं हमारी अपने पर होती है


न जाने क्यों अक्ल हमारी मारी गई है
औरों को काँटों से आहत करते हैं
फ़ूल पेश कर सकते ग़र
रिश्तों में मिठास रहा करती

नज़रों पर पड़ा परदा
हमें ऐसे हटाना है
वह नहीं , जो देखना चाहते
देखना चाहिए वह , हमें देखना है


नज़रें कमजोर तो , है चीज़ मगर दिखती नहीं
अज्ञान के अंधेरे मेँ , सच्चाई पता चलती नहीं

अपने ज्ञान का 'सच्चा है' , हमारा अहंकार उचित नहीं
ज्ञान चक्षु खोलें तो दिखेगा , बहुत हम जानते ही नहीं

ये ज़िंदगी हमारी अपनी - हमें ही इसे जीना है
निराश करे छोड़ उसे - हमें आगे को  बढ़ना है












 

Wednesday, May 2, 2018

मुझे करना क्या है -
आज मैं तय कर लूँ
कि इश्क कर लूँ -
या मैं ज़िंदगी जी लूँ

इश्क़ करूँ तो
ज़िंदगी उसके नाम करना होगा
ज़िंदगी जियूँ तो
सबके लिए काम करना होगा



 

Tuesday, May 1, 2018

निर्धन को निर्धन रहने में भय नहीं लगता है
धनवान मगर निर्धन होने से भयभीत रहता है

छिपकली का नहीं - डर तो हमारे अंदर बैठा है
 छिपकली तो बेचारी कहीं अधिक हमसे डरती है

हैरत की बात ये कि निर्धन भ्रष्टाचार कम करता है
 जो धनवान हो जाता वह भ्रष्टाचार अधिक करता है

उनको फ़िराक में देख - हमने मुश्किलें उनकी आसान यूँ की
 कि तोड़ लिया अपना ही दिल - और बीच फासले बढ़ा लिए

किसी का बुरा न चाहना अच्छी बात है किंतु इसके साथ बेहतर -
किसी की प्रेरणा बनना उसको ज़िंदगी का हौसला देना होता है



ख़ामोश रहने वाले अक्सर बुध्दिमान हुआ करते हैं
 रोज होते क़त्लेआम रोकने के उपाय किया करते हैं

यदि हम धनवान हो रहे हैं तो एक बात तय है
कि हम निर्धन जी सकने की हिम्मत खो रहे हैं

निर्धन के कपड़े आकर्षक न हों - चेहरा जल्द आकर्षण खो सकता है
पास आकर्षक गैजेट्स न हों - तब भी उनका मन सुंदर हो सकता है

अच्छा है आप चर्चित-प्रतिष्ठित व्यक्ति नहीं हैं
अन्यथा-बहुतों को आपसे हित प्रभावित होते लगने लगेंगे
जिससे आपके कई दुश्मन हो जायेंगे

सारी चीजें हमारी इक्छा अनुसार घटित नहीं होगीं
हमें इससे निराश होने की जरूरत नहीं - अगर इरादे नेक हैं तो निरंतर कदम आगे बढ़ाने होंगे

मेरा देश बदल रहा है??
हाँ -
दिनोंदिन नैतिकता खो रहा है

किसी गाड़ी को किसी पथ पर चलाना कठिन नहीं
कठिन मन को सही पथ पर बनाये रखना होता है

जरा जरा से भड़कावों में भड़क कर आज
हमारा मन मानवता पथ से भटक रहा है

मज़हब निभाने के हमारे ढंग - अब गहन समीक्षा माँगते हैं क्यूँकि
मज़हब के ख़ुशहाली के संदेशों का प्रयोग - हम नफ़रत प्रसारण के लिए करते हैं