Wednesday, January 15, 2014

बड़े प्रश्न-साधारण मनुष्य सामर्थ्य

बड़े प्रश्न-साधारण मनुष्य सामर्थ्य
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आज थोड़े मैले से आवरण में रखी ,उच्च आदर्श की मिसाल के प्रति आकर्षण किसी को नहीं है .व्यस्तता और ग्लैमर-प्रियता के इस दौर में गन्दा चरित्र भी , सौंदर्य प्रसाधन की चमक और सुगंध के साथ प्रस्तुत कर दें तो वह सभी को प्रभावित कर देता है. अधिकाँश हम आकर्षित हो जाते हैं . उस पर लाखों लाइक आ जाते हैं. अधिकाँश सभी झाँक देख आते हैं .और फिर सबको यह भी बताते हैं कि वहाँ सब गंदगी है. 
एक विचित्रता आज के उन्नत और आधुनिक मनुष्य में घर कर गई है. जो , अपनों के लिए हमें पसंद है उससे साम्यता हमारे आचरण और कर्म में दृष्टव्य नहीं होती है. दोहरे मानदण्ड के शिकार हम वह करते हैं , जो कोई दूसरा हमारे साथ करे तो हमें अप्रिय होता है हमें एकांत में और एकाग्र हो यह सोचने की आवश्यकता है. हमें जो चाहिए वैसा समाज ,देश और मानव तब मिलेगा, जबकि वैसा हम स्वयं बनने और करने का यत्न करें .

कुछ व्यक्ति प्राचीन समय से ऐसा करते आये हैं ,किन्तु जब आज का इतिहास लिखा जायेगा तो ऐसे उल्लेख वाले पृष्ठों के लिए कुछ वैक्यूम सा निर्मित हो रहा है .ऐसे पृष्ठ जहाँ त्याग और आदर्श के धनी मनुष्यों को दिखाया और चर्चित करना है, उन पृष्ठों को प्राचीन समय को पलट कर उनमें से ही निकाल और दिखलाकर भरना और चर्चा करनी होगी.  

मनुष्य की सोच ,समझ और क्षमता पर हमें विश्वास है  निश्चित ही भविष्य में ऐसी मिसालें मिलेगीं भी ,लेकिन

क्या हमारी पीढ़ी समूचे मानव इतिहास के पृष्ठों पर ऐसा कोई उदाहरण पेश करने की महत्वाकांक्षी नहीं होगी ?
क्या हम समाज और मानवता के प्रति दायित्वबोध नहीं दर्शाना चाहेंगे ?
क्या न्याय , त्याग के निष्कलंक उदाहरण और योगदान मानवता विकास यात्रा में हम नहीं देना चाहेंगे ?


ये प्रश्न हमें (साधारण व्यक्ति) अपनी क्षमता से बड़े लगते हैं. इसलिए हम उदासीन हो इसके उत्तर नहीं खोजते हैं. अपना जीवन एक नियंत्रणविहीन और साधारण सम्मोहनों में ही जी जाते हैं.तब भी कुछ अपवाद होते हैं जो कुछ कदम इस पथ पर चलने का प्रयत्न करते हैं.

ये प्रश्न इतने बड़े कदापि नहीं होते हैं. ये हम नित्य देखते हैं किसी एक व्यक्ति से लाखों करोड़ों व्यक्ति प्रभावित होते हैं . लंबी अवधि तक यह प्रभाव बना रहता है. थोड़े ही समय में साधारण या छोटी सी हैसियत का व्यक्ति विश्व पटल पर चर्चिततमों में शामिल हो असाधारण हो जाता है.

ये उदाहरण इन बड़े माने जाने वाले प्रश्नों के उत्तर होते हैं. ये हमें बतलाते हैं कि एक मनुष्य की क्षमता कितनी अपार हो सकती है.  वस्तुतः हमें चकित करने वाले बड़े ये उदाहरण (और उपलब्धि ) भी मै समझता हूँ एक मनुष्य के सामर्थ्य से कम ही होती है.

क्योंकि अभी तक जितने भी मनुष्य हुए हैं वे कितने भी महान कहलाये या बन गए थे, भी चरम उत्कर्ष (मनुष्य सामर्थ्य के सापेक्ष) पर नहीं पहुँच सके हैं. क्योंकि लगभग सभी ही अपनी महानता की जीवन यात्रा में कभी ना कभी या कोई ना कोई संकीर्णता के शिकार हो गए थे .

हम सभी ने सैक रैस (बोरा दौड़ ) देखी या दौड़ी है. क्या होता है उसमें ? हमारे दौड़ने की क्षमता तो तेज होती है ,किन्तु हम एक बोरे (बैग) में अपने दोनों पैर डालकर, बैग कमर तक चढ़ा कर बांधते हैं , फिर दौड़ लगाते हैं. हमारे पग बैग की सीमित लम्बाई से बड़े नहीं हो पाते जो दूरी हम 2 मिनट में तय कर सकते हैं, उसके लिए हमें पाँच मिनट लगते हैं. यह सैक रैस तो मनोरंजन के लिए आयोजित होती है.
किन्तु "संकीर्णता किसी के भी सामर्थ्य के पैरों में बोरे के भाँति काम कर सामर्थ्य को सीमित कर देती है. " ऊपर वर्णित महान व्यक्तियों का सामर्थ्य भी, उन्होंने मानवता या समाज के लिए जो कर दिखाया उससे भी अधिक था. कुछ संकीर्ण सोच प्रेरित कर्म से उनका किया जा सकने वाला उत्कृष्ट प्रदर्शन दुष्प्रभावित हुआ. और उच्चता का कीर्तिमान बन ना शेष रह गया.
अतः मेरा विश्वास है मनुष्य के व्यक्तित्व और जीवन में जो सर्वश्रेष्ठ किया जा सकता है उसका उदाहरण वर्त्तमान या भविष्य में कभी अवश्य आएगा.

क्या हैं , वे संकीर्णता जो किसी के सामर्थ्य को जकड़ लेतीं हैं ? "वे वस्तुतः हमारे पूर्वाग्रह होते हैं जो राजनीति ,वैभव , यौवन ,समृध्दि , भाषा ,क्षेत्र ,नस्ल या धर्म को लेकर हो सकते हैं."  वर्तमान और इतिहास में सभी महान व्यक्ति को लेकर उनके जीवन , कर्म या विचार पर दृष्टि डालें तो उनके इस तरह के कोई ना कोई पूर्वाग्रह हमें दृष्टि गोचर हो जायेंगे.अपवाद में जो पूर्वाग्रहरहित थे , उनकी इस दिशा में प्रगति  तत्कालीन समाज की पूर्वाग्रहग्रस्त दृष्टि ने अवरुध्द की. इस तरह से देखें तो पूर्वाग्रहरहित आदर्श व्यक्ति द्वारा निर्मित किया जा सकने वाला कीर्तिमान स्थापित किया जाना शेष है ,ऐसा व्यक्ति जब आएगा तो समाज के ऐसे पूर्वाग्रहों को भी छाँट देगा जो कीर्तिमान की दिशा को अवरुध्द करती है।

क्या बातें हैं जो (हम) महान नहीं  हैं ,हमारे सामर्थ्य को प्रभावित करती हैं? उस पर चर्चा बिना लेख पूर्ण  नहीं होता है. ऊपर के चर्चित सारे पूर्वाग्रह तो हमें घेरे होते ही हैं , हम साधारण में तो यह भी साहस नहीं होता है कि अपने क्रियाकलापों को लोग या दूसरे क्या कहेंगे उस दृष्टि या भय से निरपेक्ष रख सकें . दूसरे क्या कहेंगे यह संकोच हमें भ्रमित (कन्फ्यूज्ड ) करता है, जिससे अच्छे  चरित्र और हमारे कर्म दुष्प्रभावित हो जाते हैं.  इसलिए हम अति साधारण ही रह जाते हैं. हर अच्छे या बुरे हमारे कार्य के प्रशंसक कुछ मिल जाते हैं. उन्हें ही अच्छा ,सच्चा और अपना हितैषी मान जीवनयात्रा तय करते जाते हैं और हमारा जीवन निर्दोष नहीं रह पाता है.

इतना सब पढ़ लेने के बाद प्रश्न मन में उठ सकता है क्या गलत है ? ऐसे साधारण रह जीवन जी लेने में , क्या यही जीवन स्वरूप नहीं है ? किसी को कुछ तो किसी को कुछ मिलता है , सभी को सभी कुछ नहीं मिलता है , बहुत सीमा तक इस तर्क से लेखक भी सहमत है

लेकिन आज जो समाज है आज जो विश्व है उसमें बहुत अच्छाई है क्या ? दुर्भाग्य उत्तर होगा बहुत अच्छाई तो नहीं है , कहीं भी देखो दुख दर्द की कमीं नहीं है , कहीं अधिकता तो कहीं अभाव मनुष्य मन को अशाँत कर रहे हैं.

इसलिये कह सकते हैं आज का समूचा समाज या विश्व बहुत कमियों और बुराई से भरा है जब यह ऐसा है तो निश्चित ही वैसा नहीं जैसा हमें चाहिए है. अर्थात समाज जो अच्छा होता है, वह अच्छे मनुष्यों के उसमें होने से बनता है. और अच्छा नहीं है तो निशंक हम अच्छे नहीं हैं . जब समाज में लोग अच्छे नहीं हैं तो उनकी टीका -टिप्पणी से हमारे कर्म और आचरण प्रभावित नहीं होने चाहिए. इसलिए हमें पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर व्यवहार करने का साहस होना चाहिए

अब तक के अपने जीवन को लेख में उठाये बिन्दुओं पर हम सभी परखें और आगे जीवन लक्ष्यों को संशोधित करें , अपने सामर्थ्य पर विश्वास कर जीवन जियें तो हमारी ही पीढ़ी , आज के युवा और बच्चे ही मानव इतिहास को महानतम मनुष्यों का योगदान दे सकेगा.

--राजेश जैन
16-01-2014

Friday, January 10, 2014

अच्छाई का जमाना हो सकता है

अच्छाई का जमाना हो सकता है
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मनुष्य में अच्छाई जब दिखती है तो वह संवेदनशीलता ,उदारता , त्याग भावना और मानवता की द्योतक होती है इसलिए उसकी प्रशँसा अवश्य देखी , कही और लिखी जानी चाहिए हालाँकि अच्छे मनुष्य तो प्रशँसा पाने की नियत से अच्छाई नहीं करते  अच्छाई तो उनका स्वभाव हो जाता है  . किन्तु जब हम यह विचार करते हैं कि " अच्छाई का जमाना नहीं रहा " (आज यह उक्ति छोटे बच्चे के मुँह से भी सुनी जाती है ) ऐसी स्थिति में अच्छाई का अस्तित्व बचाये रखने के यत्न किये जाने आवश्यक हैं इस दृष्टि से  अच्छाई के लिए प्रशँसा अनिवार्य हो जाती है  .

जब प्रशंसनीय दृष्टि से अच्छाई को देखा ,कहा और लिखा जाता है तो यह अच्छी बात का उत्साहवर्धन होता है जिससे अच्छाई पर चलने के लिए हमारी पीढ़ी ,बच्चे और समाज प्रेरित हो सकते  हैं ।

--राजेश जैन
12-01-2013

डॉ. , हॉस्पिटल और उत्कृष्ट भावना ऐसी भी

डॉ. , हॉस्पिटल और उत्कृष्ट भावना ऐसी भी
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जबलपुर में नेत्र अस्पताल में अपने पिताजी को दिखाने ले गया. रजिस्टर्ड करवाने के बाद फीस जमा करने के लिए पूछताछ की , उत्तर मिला बाबूजी की उम्र 60 वर्ष से अधिक है इसलिये कोई परामर्श शुल्क नहीं लगेगा .

चार स्टेज में विभिन्न परीक्षण किये गए , काउंसलिंग भी मिली , लगभग 3 घंटे में प्रक्रिया पूरी हुई , बीच बीच में कॉफी भी दी गई  . इस अवधि में डॉक्टर्स और सारे स्टाफ के व्यवहार और बोलचाल में आत्मीयता युक्त माधुर्य भी (ही ) मिला  .

अस्पताल में 3 घंटे की अवधि में पचास प्रतिशत से ज्यादा रोगी 60 वर्ष से अधिक देखने मिले , अर्थात यदि वे सिर्फ विज़न जाँच करा के चश्मे का नम्बर प्राप्त करें और अस्पताल में चश्मा ना बनवायें (अस्पताल द्वारा ऐसी कोई बाध्यता नहीं ) या किसी तरह का ऑपरेशन ना कराएं ( जिसकी हर किसी को आवश्यकता नहीं होती ) तो पचास प्रतिशत रोगियों का उपचार बेहद स्वच्छ वातावरण में और सम्पूर्ण शालीन और मृदुता के साथ निशुल्क किया जाना मेडिकल प्रोफेशन की भावना की परिपूर्णता है  . धन के पीछे भागती दुनिया के लिए अनुकरणीय और विचारणीय मिसाल है , इस अस्पताल में एक स्थान पर यह भी पढ़ा डॉ. की स्पष्टीकरण " यह हमारा दुर्भाग्य है हमारी आजीविका आप के कष्टों (रोगों ) से चलती है " .

किसी  भी डॉ. के अपराधबोध का न्याय पूर्ण प्रतिदान है रोगियों और उनके परिजनों के लिए .वास्तव में जीवन सहज और रक्षा कर कोई डॉ  . लगभग ईश्वर सा होता है किसी रोगी के लिए जिसमें धन अपेक्षा गौड़ कर दी गई हो तो डॉ. एक वरदान हो जाता है .

इस अस्पताल की पहल अनुकरणीय और वंदनीय है . आयुर्वेद औषधालयों में तो ऐसे भाव और सेवा देखी जाती थी, लेकिन कम से कम भारत में एलोपैथी पध्दति के अस्पतालों के लिए यह, कुछ नवीन सा या कहें कम देखा जाने वाला उत्कृष्ट उदाहरण है .

--राजेश जैन
10 -01 -2013

Saturday, January 4, 2014

बरगद

बरगद
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भव्य रहा था बरगद यह
देता था छाया पथिक को
शीतल बयार जिसके तले
राहत देती रही पथिक को

अब बूढ़ा वह बरगद है
और गिरने को तैयार है
बच्चे आ रहे अब जो हैं
अनजाने भव्य इतिहास से

नहीं जानकार तो क्या
जीवन बरगद का बेकार था ?
बरगद गिरता अब है तो
पूरा कर कर्तव्य अपना

नहीं व्यथित वह है अब
कोई जाने ना माने उसे
जीवन में देखा था उसने
यों क्रम आने जाने का

--राजेश जैन

Thursday, January 2, 2014

नारी चेतना और सम्मान रक्षा

नतमस्तक
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पिछले दिनों हम ( सपरिवार ) एक पारिवारिक सगाई कार्यक्रम के हिस्सा हुए . वर पक्ष परिवार के लिए हाल में ही परिचय से बिल्कुल नया सा था. सभी अतिथि की उपस्थिति बहुत ही गरिमा पूर्ण थी , उनके लिये "संभ्रांत" विशेषण का प्रयोग  उचित है.
जैसा होता है पुरुष और नारी दोनों ही हमारे अतिथियों में सम्मिलित थे. सभी में उल्लेखनीय और प्रेरक गुणों की विद्यमानता है.  वर की बुआ जी का उल्लेख विशेष रूप से इस लेख का केंद्र बिंदु है. उन्होंने वार्तालाप में अवगत कराया कि वर्षों पूर्व जब अपने भाई के लिए वे कन्या देखने जा रहीं थीं तो उनके घर के बुजुर्ग सदस्यों ने उन्हें यह कहा कि  "वहाँ जाने पर वे कन्या के हाथ और पाँव विशेषरूप से देखें , जिनके हाथ और पाँव सुन्दर होते हैं वे लड़कियाँ ससुराल में निभती और निभाती हैं".
बाद में जब कन्या उनके समक्ष उपस्थित हुईं तो उसके चेहरे की मासूमियत उन्होंने देखी उसी  क्षण उन्हें घर से मिले निर्देश भी स्मरण हो आये. समक्ष उपस्थित कन्या में उन्हें अपनी ही बेटी की छवि दिखी उनके विवेक ने उन्हें कन्या के हाथ , पाँव किसी वस्तु की तरह अवलोकन करने से इंकार किया . कन्याओं को इस दृष्टि से देखा जाना उन्हें अन्याय सा लगा ,स्वयं वे नारी ही हैं  उनका ह्रदय द्रवित हो आया और उनकी पलकें तब अश्रुओं से भीग गई.
बुआजी ने आगे यह भी बताया कि पहले यह  रिवाज भी रहा है कि नववधु के मायके से आये दहेज़ सामग्री को एक कमरे में सजा कर समाज के आमंत्रितों के अवलोकन को रखा जाता था.  ऐसे एक अवसर पर घर के बड़ों ने सामान के सजावट का दायित्व उन्हें दिया.  उन्होंने निर्देश का पालन किया और दहेज़ सामग्री एक कमरे में सजा  दी और कमरे में ताला लगा दिया.  जब आमंत्रित आने आरम्भ हुए तो उस कमरे को खोलने के आदेश उन्हें मिले. उन्हें इस चलन से असहमति लगी और उन्होंने चाबी खो गई कहते हुए उस कमरे को बंद रहने दिया.
ये घटनाएं तो उन्होंने अतीत से स्मरण कर हमें बताई लेकिन वर्णित कार्यक्रम में वे वर पक्ष से सम्मिलित थी , जब कार्यक्रम में कन्या पक्ष से भेंट दी जाने लगी तो उन्होंने हाथ जोड़ लिए और अवगत कराया कि ऐसी भेंट ग्रहण ना करने का उनका नियम है. उनके कथन और आचरण दोनों में सामन्जस्य दर्शित था. इसे देख उनके समक्ष हम नत मस्तक हुए .
नारी की समाज में दयनीय सी दशा से बचाने स्वयं नारी में ऐसी चेतना आवश्यक है. ऐसी नारी मूर्तरूप जब सम्मुख है तो "नारी चेतना और सम्मान रक्षा " यह पेज ही नतमस्तक होता है.

देखें कितनी  नारी ही नहीं, पुरुष भी पढ़ और आगे बढ़ कर इस तरह का नियम शिरोधार्य कर सकते हैं ? जिससे समाज से नारी को दयनीयता से निकाला जा सके.

राजेश जैन
03-01-2014

Wednesday, January 1, 2014

वर्ष 2013 - और मेरी उपलब्धियाँ


वर्ष 2013 - और मेरी उपलब्धियाँ
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बीते वर्ष 2013 के दिसंबर माह में जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धियाँ मुझे मिली इस समय मैंने
"अपने अहं से ऊपर उठ अपनी कमियों ,भूलों और गलतियों को देखना सीखा " 
फिर
"जिनके समक्ष मैंने कमियाँ  ,भूल और गलतियाँ  की उनसे क्षमा प्रार्थना की "
जिनमें
"मेरे पिता ,मेरा छोटा भाई और कुछ आदरणीय नए परिचित भी हैं "
परिणाम
"उन्होनें क्षमा प्रार्थना पर मुझे क्षमा किया अथवा नहीं , ये उनका अधिकार है "
लेकिन मैंने अनुभव किया
"भले आप क्षमा प्रार्थना कर लें , अपनी ग्लानि मिटती नहीं "
अतः
"सोच विचार कर ही व्यवहार ,वार्तालाप ,आचरण और कर्म हमें रखने चाहिए "
और इस हेतु सम्भव हो तो
"अपनी व्यक्तिगत महत्वाकाँक्षाओं को भी तजना चाहिए "
क्योंकि
"व्यक्ति विशेष का अस्तित्व तो मात्र 70 -80 वर्ष का होता है "
किन्तु
"मानवता और मनुष्य समाज जिसमें किसी व्यक्ति का अस्तित्व होता है , अनंत है जहाँ  आपसी सौहाद्र और भाईचारा नितांत आवश्यक है "
--राजेश जैन