Saturday, March 31, 2018

किसी भी स्त्रीजात में "नारी गरिमा" अवश्य होती है
समझ न पाना नज़रों या दिमाग़ की ख़राबी होती है


किसी भी स्त्रीजात में "नारी गरिमा" अवश्य होती है
समझ न पाना नज़रों या दिमाग़ की ख़राबी होती है

देखते अश्लील दृश्य-फ़िल्में - जो नज़रें ख़राब करतीं 
याद रखते बेटी-बहन-माँ को - नारी गरिमा दिखाई पड़ती

घर या बाहर हमें - नारी का सम्मान रखना है
हैं तमन्नायें उनकी भी - समान हमें समझना है

खेल नहीं यह जीवन - नहीं प्रतिद्वंदी हम होते हैं
नारी-पुरुष हमेशा साथ ही - जीवन-यापन करते हैं

निजी उपभोगों पर परोपपकारों को - जब हम वरीयता देते हैं
निजी सुख कम नहीं अपितु बढ़ते हैं - और भी सुखी रहते हैं


परोपकारों में - तेरा भगवान ,मसीह या ख़ुदा है
भोगों में आसक्त तू - उन्हें ढूँढता कहाँ कहाँ है

आज तुम्हारी आँखें - कहीं नम तो नहीं ??
मुहँ फेरा तुमने - हमें फ़िक्र हो गई है

अपने मन की बात - हमें कहने की ज़रूरत क्या है
हैं सबके मन में - वही बातें हमारे मन में होती हैं

फेसबुक पर भले लोग मिलना भी किस्मत है
वरना इसमें भी छलियों की कोई कमी नहीं

नाराजी से हासिल नहीं होता कभी कुछ
अनुराग़ हो दिल में ख़ुशी ख़ुद ब ख़ुद होती है

कृत्रिम आज के ज़माने में - व्यवहार भी कृत्रिम हुए हैं
मुखौटे लगा बहुत तरह के - इंसान भी कृत्रिम हुए हैं

ख़ुशियाँ तनिक तुम ठहर जाओ ना
तुम्हारे अपने हैं हम मान जाओ ना

पनाह इस तरह दी कि - घर में नज़रबंद किया
एहसान कहते - हमारी ज़िंदगी पे शर्त लगा कर











 

Friday, March 30, 2018

हर किसी का कोई सपना होता है - जो साकार नहीं होता
यथार्थ में न हासिल जो सुख उसे - सपना दिया करता है

हर किसी का कोई सपना होता है - जो साकार नहीं होता
यथार्थ में न हासिल जो सुख उसे - सपना दिया करता है

सम्पूर्णता जिसे समझते - होने पर वह अपूर्ण लगता है
इंसानी कल्पना रूपी पंछी - नई नई मंजिल खोजता है

किसी का हम पर किया भरोसा तोड़ना
है इससे  बेहतर - हमारा मर ही जाना

अगर सत्य तुम हो - तुम्हारी ख़ामोशी भी बोलेगी
झूठी वाणी - बोल बोल जरूर कभी खामोश होवेगी


 

समय - अब ऑर्गनिक प्रॉडक्ट्स

समय - अब ऑर्गनिक प्रॉडक्ट्स
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50 - 60 वर्ष पीछे जायें तो सभी सामग्री ऑर्गनिक हुआ करतीं थीं। समाज में पैसे का बोलबाला बड़ा तो हमारा किसान , हमारा दूधवाला , हमारा व्यवसायी हर कोई अति व्यवसायी हो गया। जिसे पहले अपने कस्टमर अपने कंस्यूमर के हित , संतुष्टि और स्वास्थ्य की परवाह होती थी , उससे बेपरवाह वह लाभ लोभी ही रह गया। परिणाम जो ऑर्गनिक सामग्री सुलभ थी - वह बची नहीं। किसानों ने , दुग्ध और फल उत्पादकों ने अधिक प्रोड्यूस प्राप्त करने के लिए केमिकल फर्टलाइज़र ,पेस्टसाइड्ज़ और अन्य केमिकल्स का प्रयोग आरंभ कर दिया। इस तरह का उत्पादन व्यवसायिक हित तो सुनिश्चित करने लगा , सस्ती लागत से तैयार खाद्य (फ़ूड) सस्ता होने से व्यवसायी भी लाभ के चक्कर में इसे ही प्रमोट करने लगा। इसका परिणाम खतरनाक आया , जो रोग हमारे देश-समाज में अस्तित्व में नहीं थे , खतरनाक ऐसे रोग आम हो गए। केमिकल फर्टलाइज़र , पेस्टसाइड्ज़ और केमिकल्स का अति प्रयोग खेती , बागानों और दुग्ध उत्पादन में हो जाने से जल , वायु और जमीन विषाणु हो गई। डॉक्टर्स , दवाओं पर वक़्त और व्यय तो बहुत लगने ही लगा लेकिन जीवन का बहुत बड़ा हिस्सा हम स्वास्थ्य समस्याओं से जूझते , चिंता और तनावों में लगाने को बाध्य हो गए। कह सकते हैं - "जीवन में आनंद की खोज में हम इस तरह निकले , कि जीवन के आनंद ही खो बैठे"। हमें आज ही मान लेना चाहिए कि "समय - अब ऑर्गनिक प्रॉडक्ट्स" का है। उपरोक्त वर्णन से स्पष्ट हो गया होगा कि आखिर ऑर्गनिक प्रॉडक्ट्स हैं क्या?? कुछ सामान्य जिज्ञासायें निम्न उल्लेखित हैं -
1. ऑर्गनिक प्रॉडक्ट्स - वे खाद्य पदार्थ और कॉस्मेटिक्स हैं जिनका उत्पादन - केमिकल फर्टलाइज़र , पेस्टसाइड्ज़ और केमिकल्स के प्रयोग बिना किया जाता है।
2. ऑर्गनिक प्रॉडक्ट्स महँगे क्यों ?? - केमिकल फर्टलाइज़र , पेस्टसाइड्ज़ और केमिकल्स के प्रयोग के बिना किया जाने वाले उत्पादन में हासिल प्रोड्यूस (उपज-निर्माण) अपेक्षाकृत कम मात्रा में होता है। अतः लागत की तुलना में प्राप्त उत्पादन महँगा होता है , इस कारण ऑर्गनिक प्रॉडक्ट्स महँगे होते हैं। साथ ही जब (ऑर्गनिक प्रॉडक्ट्स) उत्पादन महँगा किया जाने वाला है तो उसमें वह बीज प्रयोग किया जाता है जिसकी पौष्टिकता या गुणवत्ता और स्वाद ज्यादा बेहतर होता है। उदाहरण गेहूँ का लें तो लोकमन की जगह शरबती बीज , ऑर्गनिक प्रॉडक्ट्स में प्रयुक्त करना औचित्यपूर्ण होता है।
3. क्यों अनुशंसनीय है सस्ता की जगह महँगा (ऑर्गनिक प्रॉडक्ट्स)?? - यहाँ महिलाओं के प्रयोग में आने वाली लिपस्टिक के उदाहरण से हम लेख करते हैं। लिपस्टिक की कुछ मात्रा पेट तक जाती है यदि ऑर्डिनरी लिपस्टिक प्रयोग किये जायें तो रोग की आशंका बढ़ती है। कोई रोग हो जाए तब सस्ते से बचा पैसा , डॉक्टर्स और दवाओं पर उससे ज्यादा व्यय तो होता ही है , समय व्यय होता है , चिंता और तनाव का असर सौंदर्य पर भी बुरा पड़ता है। अर्थात "सुंदर दिखने के उपाय में वह चूक हो जाती है - जो सुंदरता पर ही ग्रहण लगा देती है".
4. ऑर्गनिक प्रॉडक्ट्स का प्रमाणीकरण - रोग से बचने के प्रयास बतौर - पश्चिमी देशों में ऑर्गनिक प्रॉडक्ट्स जब लोकप्रिय होने लगे तो - भारत से उत्पादित शुरूआती निर्यातित ऑर्गनिक प्रॉडक्ट्स वहाँ स्टैंडर्ड में फेल होने लगे कारण कि उन्हें आर्गेनिक नहीं पाया गया। आर्गेनिक उत्पादकों ने समस्या क्या है जब खोज की तो मिला कि आसपास के खेतों से आया पानी और पशुओं का गोबर (खाद में प्रयुक्त) केमिकल युक्त था। पशु यदि ऑर्गनिक चारा और पानी नहीं खाएंगे-पियेंगे तो दूध और गोबर कैसे रसायनरहित होता। तब आर्गेनिक उत्पादकों ने खेती 200 - 400 एकड़ की बड़ी भू खंडों में आरंभ की जहाँ अन्य खेतों का पानी आने से रोका और पशुओं को ऑर्गनिक चारा खिलाया। अब ऑर्गनिक उत्पाद शंका रहित हैं और ऑर्गनिक प्रॉडक्ट्स का प्रमाणीकरण (गुणवत्ता सुनिश्चित करने वाली उत्पादन प्रमाणीकरण एजेंसी द्वारा) अत्यंत सूक्ष्मता से किया जाता है .
जबलपुर में ऑर्गनिक प्रॉडक्ट्स की उपलब्धता -
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श्री अनुराग अग्रवाल और श्रीमती संध्या बोरकर जी और सहयोगियों ने ऑर्गनिक प्रॉडक्ट्स उपलब्ध कराने का जिम्मा अपने ऊपर लिया है - जिसका उद्देश्य व्यवसायिक हित से अधिक सामाजिक हित है। श्री अनुराग अग्रवाल और श्रीमती संध्या बोरकर जी और उनके सहयोगी - रोगी समाज से करुणा रखते हुए , एक निरोगी समाज देखने का सपना रखते हैं। अपने सपने को साकार रूप देने के लिए वे जबलपुर में ऑर्गनिक डोलची (Organic Basket) की चैन निर्मित कर रहे हैं इसके तहत उन्होंने अब तक साउथ एवेन्यू मॉल और विजयनगर कचनार सिटी में दो आउटलेट्स आरंभ किये हैं। उनकी योजना जबलपुर में लगभग 8 आउटलेट्स निकट भविष्य में खोलने की है। ये आउटलेट्स कुछ उनकी कंपनी के निजी होंगें और कुछ उनके फ्रेंचाइजी के होंगे।
--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
30-03-2018


 

Thursday, March 29, 2018



फ़र्ज औरों के याद दिलाने के चक्कर में लगे रहे
फ़र्ज अपने भी हमें बहुत निभाने थे ,ये भूल गए

फ़र्ज औरों के याद दिलाने के चक्कर में लगे रहे
फ़र्ज अपने भी हमें बहुत निभाने थे ,ये भूल गए

रूप और वैभव से बुरी तरह प्रभावित होने के रिवाज़ ने
कॉस्मेटिक और भ्रष्टाचार का बुरा रिवाज़ लाया है

रूप और धन लोलुपता ने आज
क्या होता इंसानी फ़र्ज भुलाया है

धन लोलुप - प्रख्यात और महान हो गए
शिक्षा ने - धन अर्जन का लक्ष्य बनाया है

शिक्षा का उद्देश्य नैतिकता होती थी - ज़माने लद गए
विद्यार्थी के मन में - धनवान होने के सपने लद गए

मुझे पढ़ना तुम बंद कर देना दोस्तों
ऐसा न हो कि तुम गुमनाम रह जाओ

अच्छा हुआ धन और रूप की दुनिया ने हमसे किनारा किया
किनारे खड़े रहकर हमने ज़िंदगी का मक़सद पता कर लिया

धन और रूप के जाल में हम उलझ जाते
बिना समझे ही ज़िंदगी को हम मर जाते

धन और रूप से इकदिन त्यागना इसी दुनिया में था
हासिल हमें वह करना था जो , शुद्ध हासिल रहना था

चाँद को वादों की झँझटों में फँसना क्यों है
आज़ाद इनसे उसे डूबना - निकलना रोज है

ज़माने की नक़ल पर सोच , कर के - ज़माना अच्छा लोग ला दिखलाते
अपने सोचने और करने में - वक़्त बर्बाद करने की फुरसत हमें कहाँ थी

जुदा उसने हमें किया - अपनी मंजिल के लिए
हम याद रखते दुआ में उसे - उसे मंजिल लिए

प्रकृति के बबंडर आने जाने कोई रोक सकता नहीं - परेशान न हों
इंसान लाते बबंडर - औरों के ख्व़ाब तबाह करते - रोक उस पर हो

पतझड़ में झड़ते पत्तों की जगह - नई कोपलें आकर नए पत्ते खिलते हैं
हम जीलें इंसानियत - अच्छा करने के मौसम ज़िंदगानी में कम मिलते हैं

बहुत से मासूम सपने अधूरे हैं - वे इससे बेपरवाह ऐश कर रहें हैं
कोई कमाने में व्यस्त बुरी कदर - कोई आतंक में मौत बाँटता है
विंडबना जिन्हें मुश्किल दो बच्चे पालना - वह छह औलादें देश समाज को दे रहा है
इन्हें शिक्षा-सँस्कार मुहैया न वे खुद - न समाज और न ही कोई परोपकारी करा पाते हैं
कुछ निष्फिक्र इन सबसे - और कुछ तरसने को बच्चों को दुनिया दिखाते हैं
कुछ दयाहीन दिखते - कुछ दयनीयता दिखा रहे हैं
मिली ज़िंदगी - जिसे ढोकर बेचारगी में इंसान मर रहे हैं


 
मोहब्बत है उससे - फिर बताना क्या है
ख़ुश देखो उसे - इसके लिए काम करो

कम या ज्यादा चाहने के उलाहने न दो हमें
चाहें हम - किसी को इतना भी नसीब नहीं


अच्छे पढ़े की प्रतिक्रिया अच्छी होती है
बुरे पढ़े की प्रतिक्रिया भी बुरी ही होती है
#अच्छा_पढ़ें_हमारा_लिखा_अच्छा_होगा

मैसेज का जबाब नहीं देने को उनका गरूर न ठहराओ
तुम्हारे छल ने जबाब न देने को मजबूर किया है उन्हें

जिस दिल में यादें हमारी रहती हैं
निराश नहीं ख़ुश रखने का फ़र्ज हमारा है

सच बोल के हमारा डूबना बेहतर था
झूठ बोल के जीना , जीना नहीं होता

 

Tuesday, March 27, 2018

पिछले दिन में उपजी निराशायें - निशा चादर से ढकती है
ऊषा की नव किरणें हृदय में - नई आशा संचारित करती हैं

किसी के निराश मन में मदद से
जब आशा का संचार करते
उदासीन पड़ी किसी कोने में
तुम भोली मानवता का प्रसार करते


बहुत सी व्याप्त बुराई मिटाने - क्रांतिकारी बदलाव जरूरी है
सुधार लाये क्रांति - मगर खूनी न हो यह सावधानी जरूरी है

हर खून ख़राबा सुन,देख,पढ़ कर - मन अवसाद से भरता है
हताहत हुए इंसान के अपनों का चेहरा - ज़ेहन में उभरता है

अपने कर्तव्यों को पहचानते नहीं - उनके प्रति समर्पित नहीं जब तक
जितना कहते - लिखते हम - सब शुद्ध बतोलेबाजी होती है तब तक

हमें सुविचार लिखने पढ़ने - गूगल पर ढूँढने से ज्यादा
उस पर अमल के तरीके - भीतर के इंसान में ढूँढना है

किसी की भली अपेक्षा की उपेक्षा - जब जब हमसे होती है
अपने कमजोर सामर्थ्य पर हमें - तब तब कोफ़्त होती है

सिर्फ अपने हित साधने पर हमने - जब ध्यान सीमित कर लिया
गुनाह इंसानियत पर किया - इंसानी सामर्थ्य संकीर्ण कर दिया

आप जब कोई भी बुरा काम नहीं करते तब भी - लोग , जगहें और ओछे कारनामे बहुत हैं
जो आपको हीनता का एहसास कराने की कोशिश करते हैं

आपसे कोई मुलकात नहीं - पर आप हो यह एहसास बहुत है
जिससे दुनिया में करने और जीने का जज़्बा - कायम रहता है

सिरदर्द में मगर - सिर को भी नहीं सहलाया
अपने होकर भी तुमने - सितम हम पर ढाया













 

Monday, March 26, 2018

ऐतबार तुम्हारा - ऐतबार ही कायम रहे
हमें ऐतराज जिससे - वह काम न करना

मिलते जिस अपनेपन से - उसकी भी कुछ हद होती हैं
उस हद में तुम रहना - एतबार जिससे क़ायम बना रहे

ख़्याल तुम्हारा ही नहीं - और भी अपनों का रखना है
मर्यादायें कुछ तय हैं - हमें उन मर्यादाओं में जीना है

हमें - तुम , अपनी ख़ातिर मर्यादा तोड़ने को नहीं उकसाना
तुम्हारी बनाई मर्यादा - कोई तोड़े तुम्हें अच्छा नहीं लगता है

मनमानी करने में मिलता मजा - थोड़े समय का होता है
पूरे जीवन के मज़े के लिए - मर्यादाओं  में रहना होता है

जिसे घर समझता था बेचारा , घर नहीं था
छोटा सा टुकड़ा जमीं का - साबित घर हुआ

तुमसे ही ज़िंदगी की चाहत - तुमसे ही दूर होना है
है ज़िंदगी का दस्तूर अजीब - यूँही मजबूर होना है

मेरे हर लिखे में - अगर मौजूद अपने को पाते हो
सार्थक तभी ये - अलग मगर एक अपने को पाते हो


Sunday, March 25, 2018


दुर्भाग्य है कि पुरुष अंधत्व - महत्व नारी भूमिका का देखता नहीं
नारी कहती अपनी करुण दास्तां जब - बहरा बन उसे सुनता नहीं

मिले आँख-कान की देख सुन हम सकें - भाषा बनी की वर्णित को समझ हम सकें
सब प्रदत्त ख़ूबियाँ , हाशिये पर क्यों - करें मंथन कि भलाई हेतु उपयोग कर सकें

काफ़िर मैं नहीं कि - सजदा नहीं करूँ
ख़ुदा बन मगर - कि मैं सजदा तेरा करूँ

ख़ून खराबा और मासूमों की जान तू लेता है
कहता है तू कि - इस्लाम को बढ़ावा देता है






 

अपने स्वर्गवासी दादा के सपनों को जीवंत करने वाली पोती

अपने स्वर्गवासी दादा के सपनों को जीवंत करने वाली पोती
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दादा मदनलाल जी जैन , चाहते थे उनके बच्चे उनका नाम रोशन करें - मरणोपरांत उनका नाम आज रोशन हुआ मुज़फ्फरनगर में। जहाँ उनकी पोती ने वर्धमान हॉस्पिटल के लक्ष्य अंतर्गत एक ऑय कैंप - अपने दादा जी की स्मृति में ऑर्गेनाइज करवाया। दादा जी का नाम रोशन करते हुए - उसने पीड़ितों की पुर्न-रौशनी में निमित्त होने का भला कार्य किया।
यह कैंप वहलना अतिशय क्षेत्र में आयोजित किया गया। जहाँ कैटरैक्ट (मोतियाबिंद) की 400 से अधिक पीड़ितों की निशुल्क जाँच की गई - और और 120 के निःशुल्क ऑपरेशन वर्धमान हॉस्पिटल गाज़ियाबाद से किया जाना तय किया गया। स्मरण रहे कि वर्धमान हॉस्पिटल गाज़ियाबाद पश्चिमी उप्र को मोतियाबिंद (cataract) मुक्त करने के अभियान पर कार्य करता है। मुज़फ्फरनगर में यह संभव हो सका - जैन मित्र मंडल और आदरणीय जोगेश्वर जी जैन , डॉ. हरेंद्र कुमार जैन ,  सर्वश्री कुलदीप जी जैन , महिपाल जी जैन एवं रत्नेश जी जैन और जैन मित्र मंडल के गणमान्य कार्यकर्ताओं के अथक परिश्रम से।
(किसी की स्वस्थ आँखों का न होना - जीवन को कठिन चुनौती कारक होता है)
--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
25-03-2018
 

टूटा हुआ सा लगना

टूटा हुआ सा लगना
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जिस तरह जिंदंगी में शारीरिक स्वास्थ्य का नरम-गरम पड़ना और फिर स्वस्थ हो जाना चलता है , वैसे ही मानसिक अवस्था के साथ भी होता है। सभी बच्चे , युवा (और बड़ों का भी) कुछ जीवन सपना होता है। बच्चों के मन में अपने पेरेंट्स को अपने अचीवमेन्ट से गौरव दिलाने की इक्छा होती है , स्वयं के मान प्रतिष्ठा और वैभव का कोई लक्ष्य होता है। अधिकांश लोग, ऐसा सब करने में सफल नहीं होते हैं। तब उन्हें डिप्रेशन भी होता है। यह मानसिक स्वास्थ्य का नरम-गरम पड़ना होता है। यह स्थाई नहीं होता। एक लक्ष्य का चूकना निराशा तो लाता है पर उस से उबर कुछ समय में ही हम संशोधित लक्ष्य तय करके उस पर जुट जाते हैं। डिप्रेशन में हम टूटे हुये से महसूस तो करते हैं। मगर ये अस्थाई होता है। अनेक बार जीवन में यह स्टेज सभी देखते हैं  लेकिन जीवन चीज ऐसी है कि हर सुबह इक नई आशा दिलाती है। और जो हौसले कायम रखते वे 'न पा सकने' (-) और 'पा लेने के' (+) कुल परिणाम में सफल कहलाते हैं।
अगर आपको टूटा (brokeup) सा लगता है तो यह टेम्परेरी स्टेटस होता है। आप वास्तव में महान बनने के लिए जन्मे हैं।
--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
25-03-2018


Saturday, March 24, 2018


जीने की हिम्मत रखनी होगी - मरना तो इक दिन होगा ही
फिर हो न हो जीवन और साथ तुम्हारा - जीना तो होगा ही


गहन अवसादों में - युवा क्यों ख़ुदकुशी करते हैं
अधूरे ख्वाबों से इतर हैं वजहें ख़ुशी ख़ुशी जीने की - मिस करते हैं

इस बड़ी दुनिया में लोग हमारे सपने - कैद कर लेते हैं
इक छोटी सी अपनी दुनिया में - आज़ाद हम रह लेते हैं

तारीफ़ के काम - जीते जी किये जाते हैं
मरते हम - तो जल्द भुला दिए जाते हैं

मज़हब के हवाले लिखें तो - ऐतराज करने वाले भी मिलेंगे
बात वही बिन मज़हब जिक्र के लिखें - तारीफ लोग करेंगे

कागज़ है क़लम है वक़्त भी है मगर - नहीं लिखता
कि दिल में आज निहायत निजी - तुम्हारा ख्याल है

जन-साधारण को - अब तक की सब से अच्छी सौगात है फेसबुक
अपने भाव ,अपने विचार ,अपनी योजना - बड़े दायरे में अभिव्यक्त कर सकते हैं हम  

Friday, March 23, 2018

ले बहाने कपड़ों के - मनमानी का दोषारोपण करता है
अपनी मर्जी के कपड़े भी - इंसान पहन नहीं सकता है

दो आँखों की दृष्टि के लिए - चश्मे बहुत बनवाता है
पर नारी भी इंसान ही है - ये देख पुरुष नहीं पाता है

जब तक हम राजी नहीं होते - आगे पीछे वक़्त खराब करते हैं
जब बहकावे में आ गए हम - आशिक ये वक़्त देने से बचते हैं

अपनी अनेकों नाकामियों का ग़म , हम करते रह सकते थे
मगर देख कि -
उनके लिए जग अच्छा नहीं , उसे ठीक बनाने में ग़म ग़लत कर लिया




 

Thursday, March 22, 2018

हम चीज़ नहीं हैं - ना ही मस्त मस्त हैं
हम अपनों की जान - किसी की बेटी - किसी की बहन - किसी की पत्नी और किसी की माँ होते हैं

हम चीज़ नहीं हैं - कि तुम उपयोग बाद अलग फेंक दो
हम तुम्हारी तरह ही इंसान - और हमारे भी ज़िंदगी में कुछ अरमान होते हैं

तुम करो ज़िंदगी से अपने लिए हासिल - हमें आपत्ति नहीं
हमें भी करना है अपने लिए हासिल - रोड़ा नहीं बनो तुम

तुम्हारे साथ रह  - हम ज़िंदगी तुम्हारी बनाते हैं
हमारे लिए भी करो समाज सुधार जिसमें - हम सम्मान को तरस जाते हैं

जो ख़ुश हम नहीं - परिवेश कभी ख़ुशहाल न होगा
ख़ुशफ़हमी बस कि - तुम ज़िंदगी ख़ुशी में जी लोगे


आवो-हवा में खुश्बू होगी तभी - महक ख़ुशनुमा होगी
भ्रम है तुम्हारा कि हमारी ख़ुशी बिन - परिवेश खुशहाल होगा

आदर्श निभते नहीं - तब भी उचित कि आदर्श पर चर्चा करें
जो थोड़ी भी हमने सद्प्रेरणा ले ली - बहुत सुधार ले आएगी

#इश्क़
कैच के लिए - हवा में स्ट्रोक आये चाहते हैं
जब ऐसा हो जाये - तो हम कैच टपकाते हैं

#इश्क़
जब हुआ इश्क़ - तो उसे जिम्मेदारी की तरह लो
रहे कोशिश कि - तुमसे इश्क़ में निराश वह न हो







 

Wednesday, March 21, 2018

धनवान में नहीं - रूपवान में नहीं और पहलवान में नहीं
मगर जब 'भला आदमी' का सवाल हो - याद हमारा नाम आये

धनवान में नहीं - रूपवान में नहीं और पहलवान में नहीं
मगर जब 'भला आदमी' का सवाल हो - याद हमारा नाम आये

देखने वाले की नज़र परफेक्ट होगी
आप परफेक्ट हैं - तभी देख सकेगी

हमारे परफेक्ट होने को वही जान सकेगा - जो खुद परफेक्ट होगा
वरना विराट ने बॉल ग़लत खेली - हर कोई यह दोष बता देता है

आप परफेक्ट होते हैं - और कसर कोई होती भी है तो
स्वयं आप ठीक कर सकते हैं - एक जीवन में इतना अवसर सभी को मिलता है

इक हसीं ख़्वाब ने - उलझनें ज़िंदगीं की भुला डालीं
कुछ लम्हों की झूठी ही सहीं - खुशियाँ दिखा डालीं

सच है कि पूरे नहीं होते - जागी आँखों के देखे हुए सपने
मगर मार्ग इनसे मिला करते हैं - जीवनकर्म के लिए अपने





 

Tuesday, March 20, 2018

हमारा मज़हब ओएस हो सकता था - मज़हब मगर वायरस हुआ है
लॉजिकल ब्रेन बना सकता था - ब्रेन को मगर ठस किया करता है

हमारा मज़हब ओएस हो सकता था - मज़हब मगर वायरस हुआ है
लॉजिकल ब्रेन बना सकता था - ब्रेन को मगर ठस किया करता है

जब कोई 'एक मजहब का नहीं' - सिर्फ़ इसलिए मारा जाता है
'मज़हब पर फ़ख्र' करें या छोड़ें - दिल में सवाल खड़ा होता है

नेक हो कर तुम दिखलाओ - नेक हो कर हम दिखलायें
सबकी हसरतों का लिहाज करके - एक हो कर दिखलायें

पसंद-नापसंद की उनकी आज़ादी का - हक़ देते
अपनी ज़िद में नहीं अड़ते - हम उन्हें जीने देते

इंसानी भीड़ बहुत - पर इंसान तन्हा क्यों है
नेक साथ की जरूरत - मगर वो बचा कहाँ है

तुमने नफ़रत की हम से - क्या वजहें मान लीं
आज़ाद हस्ती है हमारी - क्यों तुम्हें ख्याल नहीं

तुमसे जीतने की कोई होड़ न रखते हैं - अपने दिल में
जब बात तुम्हारी हो - सिर्फ मोहब्बत रहती है दिल में

अपने रोने की वजह हम - और शख़्स पर डालते हैं
जबकि कमज़ोरी उसके लिए - हमारे दिल में होती है



 

Monday, March 19, 2018

हमारा दिल ये बताता है - तुम्हारी खुशियों की परवाह हम करते हैं 
समकालीन तो हम हैं ना - एक दूसरे की परवाह हक़ होता है हमारा

देखते हैं वासना से - कहते गंदा नहीं - शराफ़त है ये??
तलाशते हैं मौका - मिलता मौका नहीं - शराफ़त है ये??

बदलाव

बदलाव
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अब बदलाव हमें साफ़ दिखाई देता है
अब जमाना बेटियों को पढ़ने देता है
मुक्त होना उन्हें अर्थ आश्रिता होने से
उन्हें व्यवसाय यह सफलता देता है

अब चुनौती कि सभी पढ़ने निकलें
बेटियाँ गर्भ से सुरक्षित जन्म ले लें
चुनौती कि बेटियाँ मॉडर्न होना सीखें
पुरुष फ़ुसलावों में नहीं आना सीखें

देर रात बाहर होना उनकी मजबूरी है
अकेले यात्रा करना भी होती लाचारी है
पार्टियों में नशेड़ी सामने उनके होते हैं
हैवानियत से बचना उनका जरूरी है

सोशल साइट्स में जमाना रूचि लेते दिखता है
कई तारीफ़ से निकट आने की जुगत करता है
यूँ तो सभी नहीं होंगे दगाबाज़ ऐसा लगता है
मगर किसका करें विश्वास समझना जरूरी है

बदलाव की सही दिशा जरूरी है
शोषण मुक्ति के उपाय जरूरी है
पढ़ना लिखना आधुनिकता उपाय तो सही
पर गलत सम्मोहनों में न फँसना जरूरी है
--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
19-03-2018

Sunday, March 18, 2018

बाँटें प्यार हम उनमें भी - जिनसे वापसी की आशा नहीं
प्यार के बदले में अपेक्षा रखें - ऐसी हमें अभिलाषा नहीं

हृदय में प्यार को अपने - वासनाओं से मुक्त करें
फिर करें यत्न कि - प्यार को कोई तरसते न रहें

धनी होने के बदले
परोपकारी हो जीवन जी लिया उन्होंने
शायद अमीर न होने का कभी पछतावा हुआ हो उन्हें
पर दुनिया अब उन्हें 'महान',कहती है

पत्नी ने कहा देखो ना,  क्या रूप था मेरा - क्या रूप हो गया
पति बोले मेरी हमसफ़र देखो - साथ आपके मैं भी तो ढल गया

रूप का ना रखो प्रिय तुम - अवसाद कोई
बाकि हैं कर्तव्य उनकी हो हमें - याद कोई


सजा इसे क्यों कहते - यह तो गुमान है मेरा
इश्क मैं करता उनसे - मुझ से इश्क उन्हें है

खोल के आँखे - उन्हें बेसाख्ता अपलक देखते हैं हम
विदा होते ही मूँदते आँखें - कि दीदार उनका बना रहे

पीठ पीछे ही करना है तो - तारीफ़ किया करो
पीछे से वार? - डरते हो तो वार करते क्यों हो 

 

Saturday, March 17, 2018




उसने दी सूरत और कहा - तुम सीरत खूब अपनी बनाओ
दिया इंसानी चोला तुम्हें - अब इंसान बन तुम दिखलाओ

उनसे , मैंने कहा - सूरत के अहं में मैं नहीं भूलूँगा
मेरे भगवान - इंसान हूँ , मैं इंसान होना याद रखूँगा


बनाऊँगा सीरत ऐसी मैं कि - बात जब मेरी होगी
खूबसूरत मैं था नहीं - याद मेरी खूब सीरत होगी

मिली अनुकूलतायें तो इतना मशग़ूल - उसमें न हो जाऊँगा
औरों के लिए जीवन वातावरण बनाना - मैं ना भूल पाऊँगा

मेरी हसरतों में तुम शामिल नहीं और - न तेरी हसरतें मुझे लेकर ही हैं
मगर रहे मालूम दोनों को , कि - ज़िंदगी की हसरतें सभी की एक सी हैं

जो किसी को अपने से कमतर आँकता है
मुझे लगता कि वो खुद को नहीं पहचानता है


मोहब्बत के गणित में - दो में से एक गया तो
बचे उस एक के दिल में - शेष मोहब्बत रहती है
 

Friday, March 16, 2018

चलो हम क्या हैं - हम स्वयं नहीं कहते हैं
वक़्त मिले तो ये पहचान तुम ही कर लेना

लिखने की कभी कोई ज़हमत हम नहीं उठाते
मेरे दोस्त तुम्हारे लिखने से ग़र हालात सुधर जाते

चलो हम क्या हैं - हम स्वयं नहीं कहते हैं
वक़्त मिले तो ये पहचान तुम ही कर लेना
तुम्हारे ही करने से यदि - सब बेहतर हो रहा होता
यूँ करने का दायित्व लेना हमें कभी ग़वारा न होता

हम भी औरों की तरह सैर-सपाटा , तफ़रीह किया करते
मेरे मित्र ग़र आप - मानवीय अपेक्षा पर खरे उतरते
 
इक कोठी आलीशान - उसकी ऊँची हदें हम भी बनाते
बाहर पास-पड़ोस हमारा यदि - वैभव संपन्न हुआ होता

जो भरोसा हो जाता - बच्चे हमारे मानवता बीच जीते हैं
मेरे मित्र हम भी वक़्त - दोनों हाथों दौलत बटोरने में लगाते

उस वक़्त से कोई शिकायत नहीं - जो अपने में मशगूल चला करता है
गिला उस रीत से , 'ख़राब करने वाला' - दुहाई ख़राब वक़्त की दिया करता है

अच्छा कि देखा है हमने - दुनिया से खाली हाथ जाते लोगों को
अच्छा कि देखा है सब याद करते - परोपकार करते गए लोगों को

दोष कहीं होता - आरोप कहीं और करते हैं
अपने नहीं देखते - दोष अन्य पर मढ़ते हैं

 औरों के चरित्र हनन में समय लगाना - जीवन निरर्थक करना है
अपना चरित्र निर्माण कर पाना - हमारा जीवन सार्थक करना है

निष्प्रभावित किसी बात से अपना हम कर दें
जो कर्तव्य हमारा - हम निष्फिक्र पूरा कर दें

पसंद जिन्हें आना होता - हमारा ये रूप भी उन्हें भाता है
भगवान हर इंसान को - चाहने वाला जरूर कोई बनाता है
विपरीत लिंगीय आकर्षण सहज - स्वाभाविक तथ्य है
यह अच्छा तब - जब इससे पुरुष , नारी की दशा सुधारने को प्रेरित हो

विपरीत लिंगीय आकर्षण सहज - स्वाभाविक तथ्य है
यह अच्छा तब - जब इससे पुरुष , नारी की दशा सुधारने को प्रेरित हो

 

Thursday, March 15, 2018



दुनिया की नज़र में हमारी कोई अहमियत नहीं
ग़र दुनिया के लिए हम कुछ करके नहीं देते हैं

प्यार जिसे आज कहते - वह उफ़ान है कुछ वक़्त का
जिसे कहते थे प्यार पहले - ताउम्र सलामती देता था

हमारी दुआ तुम्हारे लिए - तुम्हें ख़ुशनसीबी से प्यार ऐसा मिले
आज का बातों वाला नहीं - पहले सा ता-उम्र निभने वाला मिले

किसी की बराबरी - या उस से आगे की स्पर्धा क्यों ???
अपनी प्रतिभा से खुद बढ़ें - हासिल मंज़िल अनूठी होगी


स्वयं प्रकाशित हो हम - औरों का पथ-प्रदर्शन करें
सबकी भावनायें समझ हम - अपना आत्म-दर्शन करें

जो मोहब्बत उसकी गहरी होती
उसे कभी नहीं आपसे नफ़रत होती

मोहब्बत , नफ़रत में कभी बदल नहीं सकती
मोहब्बत में , ताकत नफ़रत को बदल सकती है



 

Wednesday, March 14, 2018


जिन्होंने चुनौतियाँ उठाईं हैं - ज़िंदगी की समझ उन्हें ही आई है
जिसे मिली भोग-विलासिता की बाहुलता - उसे समझ न आई है

पापा –
जितना करते हैं बदले में कोई और उसकी कीमत करोड़ों ले लेंगें
मगर
"पापा" बदले में तुम्हारी ख़ुशी के अतिरिक्त कुछ और नहीं चाहते

 
 
 
जब मनुष्य की प्रतिभा-सामर्थ्य से तुलना करता हूँ
किसी की कोई भी उपलब्धि मुझे खास नहीं लगती

आपकी दोस्ती पर जब - किसी दोस्त के मन में संशय आ जाये
समझना कि समय - उसके चुपचाप निस्वार्थ करने का आया है  

Tuesday, March 13, 2018


मेरे जीने की वजहें तो - हमेशा ही रहेंगीं
जियूँ मैं जब तक - न्याय तो करूँ उन पर

हित करना चाहते किसी का - पहले विश्वास जीतना होगा
आजकल ख़ाहमख़ाह किसी का - कोई अहसान नहीं लेता है

मुठ्ठी में मेरी - यह आसमाँ हो सकता है
देर मुझे बस - अपनी हस्ती पहचानने में है

दौलत के भूखे ये सेलिब्रिटी - अपनी हस्ती बताते हैं
उनके फैन बने रह कर हम - अपनी हस्ती भुलाते हैं

जो तुझसे है हासिल उसी पे गर्व है मुझे - जिंदगी
शिक़वा कोई नहीं तुझसे कि तू मेरी है - जिंदगी

देने वाले ने सबको इक दिल दिया - फिर उसमें हसरतें रख दीं
औरों की हसरतों का - फिर सख़्त परीक्षा का रिवाज़ क्यों है??

भाड़ में नहीं जाना तुम - मैं ही भाड़ में रह लूँगा
पर ख़फ़ा देखना तुम्हें - भाड़ से अधिक अप्रिय है




 

Monday, March 12, 2018

अब से जन्मने के लिए - चुनिंदा इंसान लाओ भगवान
अब तक बहुत जन्मे - सदियों की दुश्मनी ना भूलते हैं


दुश्मनी की याद जो रखते - खुद उनको ही चुभती है
चुभा के वही औरों को वे - नई दुश्मनी खड़ी करते हैं

ग़र करनी से मेरी - नफ़रत ये थम जाती
तो ख़्याति मेरी - पैग़म्बर की बन जाती

गुज़र जाती जो उम्र - उसके गुज़रने का मलाल करते हैं
पकी उम्र के भी होते फ़र्ज कुछ - औरों पे छोड़ मरते हैं



 

Sunday, March 11, 2018

दिल के तारों को तुमने - क्यों इस तरह छेड़ दिया
जहाँ बजता मोहब्बत का साज - तुमने बैर छेड़ दिया
 
 

चूक करके - पुश्तें फ़ना हो चुकीं
ग़लती अबकी नस्ल भी करे - जरूरी तो नहीं

भारत को तोड़ - नया मुल्क़ बनाया था
नहीं रह सके खुशहाल - वापिस मिल गए होते 

मासूमियत नहीं - बेवकूफ़ी है तुम्हारी
हमसे बैर के चक्कर में - वज़ूद खो दोगे


अज़ीब है मुद्दा सुलटा लेने का अंदाज़ - ये तुम्हारा
हमें परेशानी में डालने की क़ोशिश में - वज़ूद पर ख़तरा लेते हो
 
 

Saturday, March 10, 2018


मायूसी की रात गुजर कर 
सुबह नई आशा की किरण लाती है
जिंदगी इक मुक़ाम से आगे
नई मंज़िल की दिशा बढ़ जाती है

सिर्फ अपने लिए जिये ही क्यों - कि औरों को खटकें
जियो कुछ ऐसा करने के लिये - कि बच्चे ना भटकें

बच्चों को इक प्लेटफॉर्म दो तो उन्नति कर जायेंगे
जो छोड़ी समस्यायें तो बेचारे उसमें वक़्त गवाएंगे

जिन्हें साधारण माना जाता है - उनसे भी मैं दोस्त होता हूँ
प्रतिभा सबमें है , आशा होती है - मेरा दोस्त बेहतरीन कोई काम करेगा

मुस्कुराओ इस लम्हे में भी - साथ मिलकर कि
बीतने पर इसके - कभी इसकी क़सक याद होगी

इन इतवारों की भी रहते तक कद्र करलें
बीत जायेंगें फिर ये भी कभी ना आयेंगे

बहुत हुआ साथ - तो लगता कि हम उसे सबसे ज्यादा जानते हैं
चूक है- बिन जताये भी हमारे लिए करते हम वह कहाँ जानते हैं


 

आस्था का आदर


अब जो हमारे बच्चे जन्म ले रहे हैं वे अपने जीवन में 2100 ईसवी भी देखेंगे। इन के जीवन में सुख शांति सुनिश्चित करने के लिए हमें 2100 तक की फ़िक्र करनी होगी। और मुझे लगता है इस हेतु पहली योजना जो आवश्यक होगी वह ऐसे देश - समाज और परिस्थितियों का निर्माण करना होगा जिसमें धर्म - संप्रदाय - जाति और नारी-पुरुष का गहरा व्याप्त भेद को हल्का किया जा सके। धन -पैसा महत्वहीन होगा - लेकिन समाज सौहाद्र प्रमुख आवश्यकता होगी जिसमें खुशहाली की ज़िंदगी सुनिश्चित होगी। हम निभाते रहें अपने अपने मजहबी विश्वास पर औरों की आस्था का हमें आदर सीखना होगा।
--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन

Friday, March 9, 2018

यह कामना हमारी - क्या आप पर कोई ज्यादती है ???

यह कामना हमारी - क्या आप पर कोई ज्यादती है ???
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सर्दी हो , बरसात हो उजाला हुआ भी न हो , बिस्तर छोड़ उठ जाना , चाय - नाश्ता , बच्चों का , आपका टिफ़िन लगाना वर्षों वर्षों यह रूटीन जी लेना , स्वयं से पूछिए क्या आप यह विकल्प चुन सकेंगे??
मैड आई न हो घर की साफसफाई - बर्तन कपड़े की धुलाई , आप करना पसंद करेंगे?? पूछिए स्वयं से।
बच्चे क्यों नहीं आये स्कूल से अब तक , पतिदेव को क्यों देरी हो रही लौट आने में - यह फ़िक्र आये दिन करते रहना - ऐसी फ़िक्र में बेचैन होना आप चाहेंगे ???
ग़लती ख़ुद की न हो पर्याप्त धन घर चलाने को न हो फिर भी हर कमी के लिए बच्चों और पति की नाराज़ी - आहत होते स्वाभिमान लिए जीवन जी लेना - आप पसंद करेंगें ???
हम नहीं कहते कि अपने व्यवसाय , अपनी नौकरी में आपकी मनोवेदना और चुनौतियाँ कम हैं। मगर तनिक हमारी बेबसियों को भी तो आप समझो कि आपकी ख़ुशी के लिए जीते हैं हम - अपनी ख़ुशी और चाहतों को भी भूल चुके हम।
क्या हम समाज में अपने लिए थोड़ा आदर भी न चाहें ??
मनुष्य आप मनुष्य हम - हमें समानता से समाज देखे यह कामना हमारी - क्या आप पर कोई ज्यादती है ???
-- राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
10-03-2018
जब तक ख़ुद पे कोई दोष साबित ना होता - खूब अँगुली उठाया करते हैं
ख़ुद पे ही जब दोष साबित होता - तब अपना मुहँ छिपा लिया करते हैं


आज़ाद है वज़ूद मेरा - आपमें गुमाया - आप मालिक बन बैठे
इंसान तुम इंसान ही हम भी - इतना बताया तो ख़फ़ा हो बैठे

अनकही न समझो तुम - कह के बताना पड़े
दिल के जोड़े थे तार - तुमने क्यों तोड़ दिए ??


 

Thursday, March 8, 2018


ख़ुद बड़ो आगे - तुम इंसानियत में आगे निकल सकते हो
किसी के पिछलग्गू होकर - क्यों हैवानियत किया करते हो???

क्यों बुध्दू बने हो कि - तुमसे इंसानियत का कोई तकाजा नहीं??
मेरे भाई क्या - तुम ख़ुद को क्या इंसान नहीं समझते हो??

ख़ुदा नहीं तुम - किसी को ज़िंदगी दे सको
हैवान बनके - क्यों किसी की जान लेते हो

रोज के ख़ून-ख़राबा में क्या - तुम ज़िंदगी ढूँढ़ते हो ??
ग़लत है यह - ज़िंदगी की हसरत जिसे , मासूम अकाल मारा जाता है

हमें शिकायत होती कि - "आज ज़माना ख़राब है"
ज़रा हम खुद तो - 'ज़माने से कुछ हटके' बन जायें

जन्नत कहीं भी हो मगर - किसी के पहलू में नहीं
क्यों तुम - किसी सेलिब्रिटी के पिछलग्गू होने में समय गँवाते हो???

मूर्ति पर विवाद -विरोध

मूर्ति पर विवाद -विरोध
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महान व्यक्तियों के विचार और उनके आदर्श कर्मों के उदाहरण प्रायः मेरे सामने आते हैं - मगर मुझमें बहुत पढ़ने या उन्हें जानने की रूचि उत्पन्न नहीं होने पाती। मेरा मन कहता है समय - परिस्थितियाँ थीं जिसमें उन्होंने कोई विचार दिया और कोई महान कार्य स्वयं किया अथवा उस समय के भले लोगों का विश्वास , साहस और परिश्रम लेकर मानव समाज के लिए करवाया। ऐसे ही आज के समय - परिस्थितियाँ की हैं , जो मुझे और आपको मिली हुईं हैं। आज की नई नई समस्यायें हैं जो पूर्व पीढ़ियों को या उपरोक्त कथित महानों के समय - समक्ष नहीं थीं। ऐसे में मुझे लगता है हम और आप पूर्व महानों की नक़ल कर उनका समाधान करने में सफल नहीं होंगे।
कहीं किसी की ऐसी मूर्ति है - जिससे प्रतिदिन आसपास से गुजरने वालों का कोई सरोकार नहीं है , उस मूर्ति का होना अगर किसी में सद्कर्म या सद्विचार प्रेरित करने में सक्षम नहीं तो ऐसी मूर्ति का होना या न होना - इस पीढ़ी के सुखद जीवन की दृष्टि से महत्वहीन है। उस मूर्ति को तोड़ने या बचाने को इशू बनाकर खून ख़राबा या अशांति मचाने से आम - जन-साधारण को न ही कुछ हासिल है न ही उसका कुछ खोना है। लेकिन स्वयं को चर्चित करने - अपने राजनीतिक हित साधने या अपनी पूर्व रंजिशें निकालने के दुष्प्रयासों से उपजी अफरा-तफरी में किसी मासूम को घाव लगता है , उसे संपत्ति या आर्थिक हानि होती है तो यह देश और समाज के लिए हानिकारक ही है। अतः मूर्ति पर विवाद या उसे लेकर आंदोलित होने की हमें भूल नहीं करनी चाहिए। अपितु ऐसी मूर्ति यदि दैनिक यातायात में बाधा डालती है तो उसे सार्वजनिक स्थल से हटाकर किसी - निजी भवन में , निजी जमीन पर शिफ्ट कर देनी चाहिए। उनके अनुयायी उस मूर्ति प्रेरणा लेने या उनके प्रति आदर भाव दर्शाने के लिए बिना रोक टोक वहाँ आये जायें किसी को कोई हानि नहीं ।
-- राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
09-03-2018

 

Wednesday, March 7, 2018

अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस पर किसकी गाथा लिखूँ ??

अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस पर किसकी गाथा लिखूँ ??
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मैं किसी चर्चित नाम पर लिख सकता हूँ , किंतु ऐसा नहीं करते हुए मैं आज उन्हें चुनता हूँ , जिन्हें महान होने पर भी कोई महान नहीं जानता। जिनका नाम नोबल या छोटे मोटे पुरस्कार के लिए कभी विचारा नहीं जाता। जो भारतीय उपमहाद्वीप में बहुतायत में पाईं जाती हैं। जो जीवन भर अपने घर-परिवार और बच्चे लिए अपने बिगड़े स्वास्थ्य में भी कार्यशील होती हैं , लेकिन जिन्हें वर्किंग तक नहीं कहा जाता। धन अर्जित करने वाला पुरुष तो इतना कमाता है - उतना कमाता है कह कर महिमामंडित किया जाता है लेकिन दिन रात पति और बच्चों की सेवारत उन्हें, आश्रिता बताकर हीन दर्जा दिया जाता है। अपने माँ पिता - भाई आदि को घर छोड़ विवाह कर पराये घर को आबाद करने के लिए भी उन्हें अपने साथ दहेज लाने की विवशता होती है। वे अपना जीवन स्वयं अपने में नहीं - पति और बच्चों के जीवन में जीतीं हैं लेकिन उनका यह महान समर्पण और महान त्याग भी - उन्हें साधारण से ऊपर जाना जाने में सहायक नहीं होता है। उनकी तमाम प्रतिभा को अपने थोड़े से रोकड़े कमा लाने की तुलना में हीन देख कर - अपने को 'पुरुष' और 'श्रेष्ठ' बताने का रिवाज़ पुरातन काल से स्थापित कर रखा है। तिस पर करुणामयी - ममतामयी इन देवी से , धूर्त पुरुषसत्ता स्वयं हीनता कुबूल करवा लेती है. आप समझ गए होंगे किसकी पहचान है यह - जी हाँ आप सही समझ रहे हैं - यह "भारतीय होम मेकर पत्नी" होती है। जिसे मैंने अपनी माँ - बहन और पत्नी में जीवन भर साक्षात देखा है। अपनी माँ - बहन और पत्नी को दर्पण जैसा रख - भारत की समस्त नारी की स्वच्छ - त्यागमयी - करुणामयी - ममतामयी और प्रेममयी , अप्रीतम सुंदर छवि को निहारता हूँ - हृदय में उनके लिए आदरभाव यूँ तो हमेशा है - आज महिला दिवस पर मैं प्रकट शत शत नमन करता हूँ।
--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
08-03-2018

मोहब्बत के दायरे में मेरी - क़ायनात समा जाए
ख़्वाहिश बड़ी मेरी - सामने क़ायनात भी हार जाये

प्यार की परिभाषा -
तुम संकीर्ण न करो
पहला या आख़िरी की फ़िक्र छोड़
हृदय में प्यार सब के लिए रखो

आज हुस्न की नई तस्वीर तो - कल पुरानी होती है
की इंसानियत में शिरक़त तो - यादगार कहानी होती है

हमारे दोषारोपण के कठघरे में - नस्ल-जाति-मजहब-पुरुष-नारी नहीं
कठघरे में हम सिर्फ अपने लिए हासिल - ये स्वार्थ-परता रखते हैं
 

तूफ़ान खड़ा कर दिया क्यूँ है???

तूफ़ान खड़ा कर दिया क्यूँ है???
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हर पल तो सहलाती रही हवायें -
समंदर के व्यग्र हृदय को
अहसानमंद फिर समंदर क्यूँ नहीं है??
हवा ने स्नेह से चूम बस लिया उसके रुख को
समंदर ने तूफ़ान खड़ा कर दिया क्यूँ है???
अब हवा पर भी सवार क़हर हो गया है
चपेट में जिसके बड़ा दरख़्त गिर गया है
हवा-समंदर के रिश्ते का आलम ये कैसा
सुकूं देते हैं दोनों कभी बिगड़ते क्यूँ हैं ???
--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
07-03-2018

Tuesday, March 6, 2018

 पल पल उलझने-सुलझने का नाम- ज़िंदगी है
उलझनों को सुलझाया उसने जी - ज़िंदगी है

हमारा प्यार ऐसा है तुमसे कि - तुम हमें अपना मानो या नहीं
 हमारा तुमसे अपनासा है जो - तुम्हें ज़िंदगी में खुश देखना चाहता है

किसी व्यक्ति-विशेष की - जब प्रशंसा मैं करता हूँ
अपराधबोध होता कि - अन्य से अन्याय मैं करता हूँ

निंदा में जब किसी की मैं कर बैठता हूँ
लगता है ऐसे जैसे खुद को मैं नहीं देखता हूँ

रोकर सहानुभूति बटोरूँ तुम्हारी अब इसमें विश्वास मुझे करना नहीं है
है बेटी मेरी तुमसे -उसे आत्मनिर्भर बनाने के लिए मुझे रोना नहीं है

पति होकर - तुम्हें नारी का सम्मान आया नहीं है
मैं देखूँगी कि नारी सम्मान की तमन्ना - बेटी के लिए करते हुए तुमको

कारवाँ -ए -ज़िन्दगी हसरतें हैं - कुछ पूरी , कुछ अधूरी
मिले का जश्न, न मिले का खेद बिन - जिंदगी जीनी है पूरी




 

Monday, March 5, 2018


जब अपने को सबसे बुद्धिमान समझते हैं
सबसे बडी गलती हम तब ही तो करते हैं
कभी बुध्दिमान होने का गुमान होता पर
भ्रम टूटेगा 'राजेश' कल्पना ही से डरते हैं

देखा हमने हर तरफ मशूका मायूस दिखा करती है
फ़िल्मी तरह की आशिक़ी दिल तोड़ दिया करती है

प्यार ही वह बात है - पति को दुनिया भर में दौड़ाती है
प्यार ही वह बात है - पत्नी तवे की ताप भी सह जाती है

मेरी लिखी पोस्ट मेरी ही हैं साबित करने की जरूरत क्या है
शायरी का सड़ी होना - इससे क्या यह साबित नहीं होता???

हाथ में रेखाओं का होना सहज होता है
मगर लोग न जाने क्या क्या समझते हैं

हाथों की रेखाओं पर नहीं जाओ - जीवन भर हाथों में होगीं
हर घड़ी का सदुपयोग करो - रेत माफ़िक हाथों से सरक लेंगीं





 

Sunday, March 4, 2018

चाहे नहीं दिखाओ तुम प्यारी सी सूरत अपनी
हमारी नज़र सारे अरमां तुम्हारे पढ़ सकती है

चाहे नहीं दिखाओ तुम प्यारी सी सूरत अपनी
हमारी नज़र सारे अरमां तुम्हारे पढ़ सकती है

एक भरोसा था तुम पर कि दिल दे दिया अपना 
अब जिम्मेदारी से इसकी सम्हाल तुम कर लेना 

दिल तुम्हें दे दिया - सिर्फ यह मेरी बात , मेरी फ़िक्र नहीं
दगा न देना कि - दिल लेने-देने के रिवाज़ ख़त्म हो जायें

ज़िंदगी अपनी तो हिसाब क्या करना - ज़िंदगी के ख़्वाब देखते रहिये
आँखों में दर्द हो तब भी - ये ख़्वाब ही हैं जो दिल को सुकून देते हैं

कल देखी #सीक्रेट_सुपरस्टार

कल देखी #सीक्रेट_सुपरस्टार -
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 बेबाक़ कमेंट
1. देखना अच्छा लगा कि इंसिया का मुस्लिम परंपारिक तरह का अब्बा भी - उसे पढ़ाना चाहता है।
2. नज़मा का शौहर उसे एक फ़ंक्शन में बिना बुर्क़ा पहने चलने कहता है.
3. यह देखना अच्छा है कि इंसिया को गर्भ में मारने की अपेक्षा शौहर से बग़ावत करने का साहस कर नज़मा भागती है और इंसिया को जन्म देती है।
4. अम्मी वैसे तो अच्छी होती हैं किंतु कम पढ़ी लिखी नज़मा को इस बात का विज़न है कि उसकी बेटी की भलाई शिक्षा में है - इसके लिए वह खतरा उठा कर भी गले का हार बेच उसे लैपटॉप दिलाती है।
 5. यूँ तो मुस्लिम परिवार में शौहर द्वारा बीबी को तलाक़ देते देखा जाता है - मग़र अपने ज़िगर के टुकड़े औलाद की तमन्ना और उसके भविष्य की ख़ातिर वह तलाक़नामा पर दस्तखत करने का साहस दिखाती है।
6. बूढ़ी खाला यूँ तो उदासीन सी दिखती है मगर मुस्लिम महिलाओं के दर्द को बयान करते हुए वह इंसिया और नज़मा की हमदर्द दिखती है।
उपरोक्त बातें तो सही परिप्रेक्ष्य में ग्रहण की जानी चाहिए - जिसके लक्ष्य आमिर ने यह मूवी बनाई है। किंतु इसे देख यह प्रेरणा नहीं लेनी चाहिए कि
7. इंसिया की तरह कोई बेटी मुंबई नहीं पहुँचे - मुंबई सिने इंडस्ट्री में कोई सिनेकर्मी ऐसा नहीं मिलेगा जो शक्तिकुमार की तरह एक 17 सालाना लड़की को बाप की तरह सीने से लगाएगा.
8. नज़मा की तरह किसी आम मुस्लिम परिवार की महिलाओं को - शौहर की यूँ खिलाफत करने की जरूरत नहीं - पीढ़ियों से चले आ रही मर्द की सोच वह रातोंरात नहीं बदल सकेगी। उसे कुछ और वक़्त का इंतज़ार करना होगा . कुछ और समय शौहर के ज़ुल्म सहने होंगे। मर्द भी इंसान हैं - मौका देना होगा कि #सीक्रेट_सुपरस्टार और #लिप्स्टिक_अंडर_माय_बुरका तरह की पेशक़श देखते हुए अपने परिवारों की ज़नानाओं के अरमान और ख़्वाहिशों को समझ सकेंगे.
9. इंसिया की तरह लैपटॉप तरह की वस्तु कोई ऊपर से ने फेंके - हो सकता है किसी इंसान के सिर वह जा लगे।
अंत में आमिर खान को धन्यवाद कि पिछले कुछ समय से वे सामाजिक समस्याओं पर मूवीज़ दे रहे हैं। इस बात के लिए भी आमिर का आभार कि उन्होंने मुस्लिम होते हुए - मुस्लिम ज़नाना के हक़ में बात रखने की हिम्मत दिखाई। आमिर को यह बिन माँगे की मेरी सलाह है कि सामाजिक मुद्दे पर बनाई फ़िल्म में वे फ़िल्मी मसाले न दें। क्यों वे मॉडल या मूवीज में काम करने वालों की फूहड़ हरकतों को सहज देख लेने की आदत दर्शक में भर देना चाहते हैं??? अभी भी हमारा समाज इतनी ओपननेस को सहज नहीं लेता है। अनेकों कॉलेज में पढ़ने वाले बच्चे - युवा इसे देख इस तरह की ओपननेस की नकल करते हुए अपनी ज़िंदगी बदरंग करने को विवश होते हैं।
मेरी पीके पर लिखी आमिर पर टिपण्णी से यह अच्छी है , अगर आमिर अच्छा करेंगें तो मैं उन्हें अच्छा ही कहूँगा मैं किसी से कोई दुराग्रह नहीं रखता।
-- राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
05-03-2018


 

Saturday, March 3, 2018

यहूदी ... ???

यहूदी ...  ???
एक बच्चा गर्भ में गर्भस्थ शिशु बस है। वह जन्मते ही भारतीय , अमेरिकी , चीनी , अफ्रिकन या हिंदू , ईसाई , यहूदी , मुसलमान हो जाता है। सिर्फ रोते हुए जन्मने वाला - बालावस्था में ही , अँग्रेज , उर्दू या हिंदी भाषी हो जाता है। जिसका पहला भोज्य माँ की छातियों का दूध होता है - कुछ ही महीने में वह शाकाहारी या माँसाहारी हो जाता है। अभी अक्ल भी नहीं होती उसे कि हम इस्लाम , ईसा , राम या बुध्द का अनुयायी बताने लगते हैं।
जबकि इनमें से कुछ भी हो उसे जीना इक इंसानी ज़िंदगी होता है। इंसान का फ़र्ज इंसानियत होता है - लेकिन जब उसे समझ भी नहीं होती है तब से ही जुड़ गए उपरोक्त विशेषणों वह ऐसे जीने को विवश होता है कि उस जैसे जन्मे इंसान का वह जानी दुश्मन होता है।
आलम आज ऐसा है जिसे हम सभ्य कहने लगे हैं - अब तक के उस इंसान का सभ्य होना अभी बहुत दूर की बात है। हम सभ्य तब कहे जायेंगे - जब अपने से पहले हमें अन्य की जान की फ़िक्र होगी। हम अपनी ही तरह किसी माँ के जन्मे इंसान के , मारने वाले नहीं बचाने वाले होंगे। हमारे विश्वास कुछ भी हो सकते मगर - प्रथम विश्वास हमारा मानवता पर होगा। उस दिन हम सभ्य होंगे।
-- राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
04-03-2018
मेरी हथेली - इक अँगुली अन्य पर उठाने पर विद्रोह करती है
मेरी आँखे - मेरे तरफ उठीं , मेरी ही तीन अँगुलियाँ देखती हैं

मेरी हथेली - इक अँगुली अन्य पर उठाने पर विद्रोह करती है
मेरी आँखे - मेरे तरफ उठीं , मेरी ही तीन अँगुलियाँ देखती हैं

just create - whether it is an oppotunity or an example

अफ़सोस जिन पूर्व करनी का - उनका तो कुछ होगा नहीं
अबसे ठीक हुईं करनी तो - अफ़सोस हमें फिर होगा नहीं


अपने बारे में सोचें तो लगता है हम सब एक से हैं
मुसाफ़िर हैं बस दुनिया में मुक़ाम कुछ दिनों का है

इस चार दिन के मुक़ाम में चालाकी से बाज नहीं आते
करते जोर आज़माइश आपस में फिर धराशाई हो जाते
 

Friday, March 2, 2018

राष्ट्रहित में स्वहित नहीं??

राष्ट्रहित में स्वहित नहीं??
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देशहित में स्वहित नहीं देखना ही मुख्य कारण है कि देश में सभी बातों में अफरा तफरी मची रहती है। हम जानते हैं कि के कम क्षेत्र में रहने वाली हमारी आबादी दुनिया में दूसरे क्रम पर है। इन हालात में - हमारी सर्वाधिक युवा आबादी को उनके प्रतिभा अनुरूप प्रोफ़ेशन के लिए बाहरी देशों में जाना होता है। उनके हित में देशहित है , देश को (अपने परिवारों के माध्यम) वे दुनिया से बहुत बाहरी करेंसी अर्जित कर पहुँचाते हैं। जो हमारी अर्थव्यवस्था का 1 आवश्यक कम्पोनेंट है। यह उनके स्वहित में देशहित है।

हाल ही के वर्षों में अमेरिका और कुछ यूरोपीय देशों ने कुछ बाहरी देश के आ रहे युवा - प्रोफ़ेशनल्स प्रतिबंधित किये हैं , जिनकी छवि उन्हें विश्वसनीय नहीं लगती। ऐसे में यह भारत के लिए उपलब्धि है कि उसकी छवि बाहरी दुनिया में विश्वसनीय बनी हुई है। ऐसे में हम कह सकते हैं कि देशहित में हमारा स्वहित या सर्वहित है।

विजय माल्या , नीरव मोदी , या दाऊद इब्राहिम आदि जिन्होंने अपना हित , देशहित से पृथक समझा , आर्थिक ठगी अथवा आतंकी गतिविधियों से देश को नुक़सान पहुँचाया। आज भगोड़े होकर अन्य देशों में रहने को मजबूर हैं। मालूम नहीं बची अपनी ज़िंदगी में क्या मिसाल क़ायम करेंगे और क्या अपने साथ ले जायेंगे। यह ना तो देशहित है ना इसमें उनका स्वहित ही है।

हित जनसंख्या में भी नहीं - दुनिया में विभिन्न धर्मों के मानने वालों का अनुपात है उससे लगता नहीं की कभी सारी दुनिया पर एक मज़हब का प्रभुत्व होगा. इसलिए इस इरादे से अपनी औलादों की संख्या अधिक रखने का उपाय व्यर्थ है। इससे हमारी सीमित आय में अधिक आश्रित का लालन-पालन अभाव में होता है ,  जिससे उन पर कम शिक्षित और कम कमाऊ रह जाने का खतरा भी होता है। अभाव में जीवन यापन करने की मजबूरी हमारी संतानों को गलत कामों की तरफ दुष्प्रेरित भी कर सकती है। इसमें न तो हमारा स्वहित और न देशहित ही है।

अब दृष्टि इस तथ्य पर भी डालिये कि - भारत में पारसी आबादी बहुत कम है। पारसी अपने मजहब और अपने सिध्दांतों के प्रति कट्टर भी हैं। वे अपनी इबादत इस तरह करते हैं कि किसी अन्य मजहब को कभी उनसे डिस्टर्बेंस नहीं। वे कभी साम्प्रदायिक संघर्षों में भी नहीं देखे जाते। अफरा तफरी के आज के सामाजिक और राष्ट्रीय वातावरण में भी उनकी सुख समृध्दि और धार्मिक विश्वासों पर कतई प्रभाव नहीं पड़ता। उनका छोटा परिवार या छोटा जन समूह होने पर भी वे किसी धौंस में रहने को अभिशप्त नहीं। वे आर्थिक रूप से समृध्द भी हैं , उच्च शिक्षित भी हैं. उनका इस जीवन शैली में स्वहित भी , धार्मिक स्वतंत्रता भी है और यह सब राष्ट्रहित भी है। पारसी मिसाल हैं इस बात की , कि बिना संघर्ष के , बिना बड़ी आबादी के किसी भी देश में खुशहाली और आर्थिक समृध्दि सहित शिक्षित - सुलझा जीवन कैसे सुनिश्चित किया जा सकता है।

हमसे अब तक चाहे जो भूलें हो गईं हों उन्हें भूलते हुए खुली आँखों और खुले दिमागी कपाट से हम अच्छे विचारों को ग्रहण करें - बिना संघर्ष , बिना खून खराबा के और बेखटक अपने धार्मिक विश्वासों को अपने में जीते हुए व्यक्तिगत ,पारिवारिक , धार्मिक और राष्ट्रहित भी सुनिश्चित करते हुए अपने जीवन से सम्पूर्ण आनंद हम निकाल सकने में समर्थ बनें।
--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
03-03-2018


 
किसे फ़ुरसत आज किसी का हमदर्द दिखने की
मगर इंसानों की बस्ती है हमदर्द मिल जाया करते हैं


बेवज़ह मलाल करने की तुम्हारी - ख़राब आदत है
वरना मज़ाल किसकी  हाथ में ग़ुलाल लिए - गाल मेरे छू सके

कितनी ही करूँ बयां मैं बात - मेरी अपनी
तुम्हारी भी करूँ तो लगतीं हैं - मेरी अपनी

मुझे चाहिए कोई सज्जन सा 
बेहतर या हीन महत्वहीन है

मेरे खत में यह होता है कि मुझे
अपने या तुममें नहीं फ़र्क लगता है

यह कि मन में हमारे जीवन कामनायें सब एकसी हैं
फिर भी हम हिंदू-गैरहिंदू या नारी-पुरुष भेद करते हैं

ग़र यार - दिलदार तो ख़त ही की ज़रूरत नहीं
दिल के तार जुड़े होते - अनकही समझ लेते हैं

हाजिर ज़बाब ही मुझे न समझ लेना
मैं तो इक इंसान - थोड़ा इंसान सा हूँ

ख़ामोश लफ़्जों को मेरे - आप सुन लीजिये
सुनना आपकी तारीफ़ - किसी को पसंद आये न आये

प्यार है तो शेष - हमेशा प्यार रहेगा
जो खत्म हो जाये - चीज प्यार नहीं

उम्र अभी छोटी है - मुहब्बत तुम्हें समझनी होगी
ज़िस्मानी नहीं - रूहानी को मुहब्बत कहनी होगी

"सभी इंसानों में भीतर - रूह एकसी अरूपी निर्मल है
परिवेश से दुष्प्रेरित हो - मलिनता नज़रों में चढ़ती है"







 

अमन की संभावना

आज़ादी के समय हम नहीं थे , याद नहीं करना चाहते कि कौमी ज़ुल्म एक-दूसरे पर क्या हुए। एक देश था - जिसके आज तीन टुकड़े हैं। हमारी पूर्व पीढ़ियाँ इस सरजमीं पर पैदा हुईं और जमींदोज भी यहीं हुईं। हमारा कोई दोष नहीं था कि किसी ने भारत या पाकिस्तान में रहना विकल्प चुना। लेकिन जिनके पूर्वजों ने भारत में रहना पसंद किया। आज जब उनमें से कोई इस बात के लिए पछतावा रखता... है तो एक टीस ,एक आत्मग्लानि , एक अपराध बोध हमें होता है कि
1. क्या है जो , हम किसी मुस्लिम को नहीं दे पाते जिससे वे भारत में अपनापन का अहसास कर सकें??
2. हमारी तरफ से क्या वज़ह हैं जिससे उनको तरक्की की गुजांईश नहीं मिलती??
3. हमारी कौनसी खराबियाँ हैं जिनमें उन्हें अपनी और अपने भाई , औलादों और बहन बेटियों की ज़िंदगी पर ख़तरा नज़र आता है??
4. क्या और कारण हैं कि जिनसे देश में जहाँ उनकी पुश्तें दर पुश्तें गुजरीं हैं , उस भारत में उन्हें परायापन लगता है??
इन प्रश्नों का उत्तर तथा अमन की संभावना ढूँढता है - हमारा बेचैन दिल .....

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
02-03-2018

दिमाग़ ख़राब नहीं करना होगा ...
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किसी भी सरकारी अथवा अदालती व्यवस्था का नियम और न्याय यह मानकर शिरोधार्य करना चाहिए कि यह देश समाज हमारा है. हिंदू हो या मुसलमान उसे जीवन यापन यहीं करना है - और शांतिपूर्ण तथा सुखद जीवन यापन सुनिश्चित तभी हो सकता है जब हम संघर्ष या भड़कने के बहाने नहीं ढूँढे , और न ही भड़काऊ किसी लेख कथन से उत्तेजित प्रतिक्रिया दें।
वस्तुतः भड़कने में पहले खुद का दिमाग़ ख़राब होता है - बाद में किसी का। जीवन में खुशहाली की अभिलाषा है तो दिमाग़ में सुखद बातें रखनी होगीं , दिमाग़ ख़राब नहीं करना होगा। खोजना होगा कि - हो रही किन बातों में ही हमें ख़ुशी मिल सकती है. यथा वर्तमान में ही देखें तो अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत निरंतर मजबूत होता जा रहा है। यह सभी भारतवासियों के लिए हर्ष और गौरव का विषय है चाहे वह किसी कौम / समुदाय का ही क्यों न हो।
--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
02-03-2018


ज़िन्दगी का हरेक लम्हा हमारा है
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आज भारत की युवा आबादी - दुनिया में सर्वाधिक है . ग़ुलामी से मुक्ति को ज्यादा समय न होने से देश में ही  उनके टैलेंट अनुरूप - उन्हें आजीविका अवसर वर्तमान में कम है . इन हालातों में हमारी विश्वसनीयता बढ़ने पर दुनिया में यह अवसर उपलब्ध होते हैं। सरकारी प्रयासों के समानांतर हममें से प्रत्येक का यह कर्तव्य है कि जातिगत मनमुटाव से दूर हो एक दूसरे में मोहब्बत - सहयोगी और कपटरहित भाव रखते हुए , हम दुनिया के सम्मुख आएं। जब औरों के सामने इस देश के नागरिक की विश्वसनीय छवि कायम होगी हम ज्यादा तरक्की करेंगें।
जहां तक आज की नीतियों का प्रश्न है , अगर हम सहमत नहीं तो कल और सरकारें थीं और कल और आयेगीं . पिछले के हासिल कुछ और हैं , आज के भी हासिल कुछ हैं ही। जो हासिल है , उसमें ख़ुशी अनुभव करना होगा . ज़िन्दगी का हरेक लम्हा हमारा है , उसे अवसाद नहीं ख़ुशी से भरना होगा। और जो हम खो रहे हैं , वह खोएं नहीं इस हेतु हमें अपने स्तर पर ही उपाय करने होंगे। हम दूसरों पर दोषारोपण करने की आदत रखेंगे तो अपने जीवन के आनंद से भी स्वयं ही वंचित होंगें। इस पल में आपकी दिलीय अपेक्षा का ख्याल हम करें , और 'और' हमारी अपेक्षा पर न्याय से पेश आये यह प्रेरित करना - जीवन को सकारात्मकता देना होगा ...
--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
02-03-2018



Thursday, March 1, 2018


उचित है जो - बिन चाहत के
मैं वह करना चाहता हूँ
ना अवरुद्ध होना चाहता हूँ
ना मैं बुद्ध होना चाहता हूँ

महावीर है सब में जो समझे वह शम्शीर नहीं उठाया करता
जीता स्वयं, औरों के जीवन अवसर सुनिश्चित किया करता

आत्मरक्षा हेतु शमसीर उठाना - अस्थाई विकल्प है
शत्रु स्वयं शमसीर रख दे प्रेरणा - स्थाई विकल्प है

धुंध आँखों की दूर करनी होगी जिसमें
औरों की अच्छाई नज़र नहीं आती
वह दृष्टि दोष दूर करना होगा जिससे
हमें अपनी बुराई नज़र नहीं आती

चलो हम अपनत्व के रंग की बरसात तुम पर करते हैं
चलो कि आज होली के पीछे छिपे भाव हम समझते हैं

मंदिर गिरा तुम मस्जिद बनाओ या मस्जिद गिरा तुम मंदिर बनाओ
बात तो एकही होगी - दिलों में दुश्मनी की इमारत और मज़बूत होगी