हाँ ,मैं खराब पापा था ....
और खराब पति भी था। अपनी जरूरतों में कमी और मन की न होने पर घर में कलह कर देना मेरी दिनचर्या थी। अपनी विभागीय महत्वाकाँक्षाओं के बोझ लिए ऑफिस से घर लौटता था तो विचार नही कर पाता कि बच्चे और पत्नी की मुझसे कुछ उचित अपेक्षायें हैं। उन्हें मैं प्यार करूँ उनकी कुछ जरूरतों की पूर्ति करूँ।
आभार सद्बुध्दि , एक दिन .. .
तुम लौटी मै विचार कर सका कि जिन बातों के लिए पत्नी को दोष देता हूँ , उसकी घर में व्यवस्था का दायित्व मुझ पर ही है क्योंकि मैं ही अर्निन्ग था। बच्चे अबोध थे , अन्य बच्चों की तरह कुछ सामान , कपड़े की जिद करते तो उनकी पूर्तियों का दायित्व भी मेरा ही था।
उस दिन से ...
चूँकि ,मैं भ्रष्टाचार के विकल्प पर नहीं जाना चाहता था और अपने परिवार की सुविधाओं का बोझ दूसरों के परिवार पर नहीं डालना चाहता था ,इसलिए अपनी जरूरतें सीमित करना आरम्भ किया। अपनी सारी महत्वाकाँक्षाओं को अलग किया एक महत्वाकाँक्षा बनाई कि मैं अच्छा पापा और एक अच्छा पति बनूँगा।
बाद में किसी दिन ...
मै यह भी सोच सका कि एक अच्छे पापा और एक अच्छा पति हो जाना , हमें एक अच्छा समाज सदस्य और एक अच्छा नागरिक बना देता है। साथ ही हम मानवता की राह पर भी चल पाते हैं।
--राजेश जैन
24-02-2016
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