Sunday, March 24, 2019

गर्ज़ रिश्तों की सदा, #राजेश तुम ही दिखलाते थे
#मूर्ख तुम जानते नहीं, गर्जी रुसवा किये जाते थे

शिकायत किसी से करके शिकायत #राजेश ख़ुद से होती है
मालूम कि याचक बनने से तुझे खीझ बहुत ख़ुद से होती है

अखरे न किसी को गर, #राजेश 'तुम्हारा नहीं होना'
बेकार चला गया जानना तुम, 'तुम्हारा कभी होना'

गर्ज़ रिश्तों की सदा, #राजेश तुम ही दिखलाते थे
#मूर्ख तुम जानते नहीं, गर्जी रुसवा किये जाते थे 

Saturday, March 23, 2019

ये ज़िंदगी पर नज़रिया #राजेश यूँ अजीब है
शुबहा होता कि पहले किया या आज करते, क्या अच्छा है

दुआ कि ऐसा नसीब सब को मिले
जब मिलें इक दूजे से भरपूर मिलें
ख़ुद में रहो मशरूफ़ #राजेश हर्ज कोई नहीं
मगर याद रखो समाज निर्माण सा फ़र्ज कोई नहीं

तेरे दर्द को #राजेश गर ज़माना भाँप जाएगा
कैसे फिर कभी तू ख़ुद को मर्द मान पाएगा 

Friday, March 22, 2019

इक बार फिर #राजेश ख़ुद ही सम्हलना होगा
ज़िंदगी के दिए झटके से खुद ही उबरना होगा

फिर हमसे #राजेश बेवकूफ़ी हुई होगी
फिर आज हमसे वे खफ़ा हुए लगते हैं

Thursday, March 21, 2019

एहसान किसी पे करके बाद वह काम कभी ना करना 
कि एहसानमंद ये सोचे कि मैंने क्यूँ एहसान ले लिया
मालूम- किसी की ज़िंदगी तराशने की कोशिशें नाकाम भी होंगी
मगर ख़ेद न होगा कि खुदगर्ज़ रहे हम- हमने कोशिशें ही न कीं

यूँ तो अपनी हद में रह लेना तारीफ़ की बात है
मगर दुःखदाई हों हदें तो तोड़ना बेहतर बात है
#ख़ुद_केलिए_नहीं_औरोंको_अच्छी_मिसाल_देना_फ़र्ज़

उफ़ ये इंसानी हदें - हमें कोफ़्त होती है खुद पर
जब चाह के भी - किसी के मददगार नहीं होते हैं



नाजायज ख्याल होते हैं - ज़ायज व्यव हार होते हैं
समाज मर्यादा में रहते - उनके गले में हार होते हैं

कोई चाहता है तुम्हें कितना - तुम्हें अंदाज रहता है
तुम चाहो या न चाहो उसे - वह नज़र अंदाज करता है

इस कदर किसी के दिल में तुम क्यूँ समाते हो
उसकी ज़िंदगी है उसे खुद के लिए तो जीने दो 

Wednesday, March 20, 2019

पापा का स्पष्टीकरण

पापा का स्पष्टीकरण 

बेटियों की लालन पालन को लेकर हम हमेशा सजग तो थे किंतु कभी भी हमारा उनके प्रति लाड़ दुलार का अतिरेक प्रकट नहीं था. उन्हें दिखता था हमारा सख्त अनुशासन प्रिय होना। उन्हें मालूम रहता कि पढाई में परफॉर्म न करने पर हम नाराज होंगे. वे जानती कि उनकी सभी जिद हम नहीं मानेंगे. वे अनुभव करतीं कि उन्हें बहुत परिधान नहीं दिलाये जायेंगे. उन्हें ज्ञात था कि रात पार्टियों में जाना हम पसंद नहीं करते. उन्हें कई अवसर पर हमसे शिकायत रहती कि हम उनके बचपन या लड़कपन सुलभ थोड़ी चंचलता भी उनमें पसंद नहीं करते. शायद उन्हें हम 'दंगल' वाले पापा लगते थे.

छोटीं थीं वे नहीं समझ पाती थीं कि हम उन्हें जीवन की मजबूत वह बुनियाद देना चाहते थे जिस पर खड़ी होकर वे आत्म निर्भर बन सकें. जिसके होने से आज की दुनिया में मिलने वाली चुनौतियों में सहज जीवन यापन कर सकें. हमने देखा था पुरुषों पर संपूर्ण आर्थिक निर्भरता कभी कभी नारी पर शोषण का कारण होती है. जी हाँ हमारे लालन - पालन की इस विधि से उस समय प्रतीत यह होता कि हमारी बेटियाँ आजकल जितनी स्मार्ट नहीं बन रहीं हैं. हमारे कुछ करीबियों को लगता कि बेटियों को हम जितने आर्थिक कमजोर हैं नहीं उससे ज्यादा अभाव में पाल रहे हैं। ऐसा सब करने के पीछे हमारा उद्देश्य उन्हें घर-परिवार चलाने में अपना (आभासी) संघर्ष दिखाना होता था, जिसे देख वे घर-परिवार और समाज के प्रति ज्यादा उत्तरदायित्व के संस्कार ले सकें. हमारे करीबियों में कुछेक ऐसे चिंतित भी होते कि ऐसे में ये बेटियाँ हमसे मिलने वाले अनुराग अभाव को बाहर तलाश कर भटक सकतीं हैं. 

लेकिन नहीं, हालाँकि हमने डिग्री इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की ली थी मगर हम दक्ष लाइफ इंजीनियरिंग में हुए थे. हमने अपनी बेटियों का लड़कपन जाते जाते उन्हें अपना दोस्त बना लिया था. हम ऐसे दोस्त थे जिससे वे छोटी छोटी से लेकर हर किस्म की शंकाओं को डिसकस करने में संकोच नहीं करतीं. अब तक  दोनों ने यह अहसास कर लिया था कि पापा के परामर्श ही उनकी सबसे ज्यादा भलाई के होंगे. किसी समय स्मार्टनेस पर भी हमने उन्हें बताया था कि आज (पढाई करते हुए) भले ही तुम अपनी फ्रेंड्स जितनी स्मार्ट नहीं किंतु जब योग्यता तुममें स्वयं के बल पर होगी और धन तुम्हारे वॉलेट में होगा, स्मार्टनेस तुममें भी जल्द आ जायेगी. आज तुम दुनिया भ्रमण करने से वंचित हो, अपनी योग्यता ला सकीं तो भ्रमण करते थक जाओगी. हमारा उन्हें ऐसा आश्वस्त करना शायद तब उन्हें संदेह में भी डालता रहा हो.

 खैर साहब- अब बारी आनी थी दो मौकों कि जब हमें बेटियों के रिश्ते करने थे. इन मौकों पर हमें उन पर अपनी बंदिशें याद रहीं कि हमने अपनी- अति अनुशासन प्रियता , पढाई में परफॉर्म की अनिवार्यता, परिधान पर हदें, पार्टियों पर निषेध, बचपन या लड़कपन सुलभ चंचलता के लिए छूट नहीं देना, प्रकट में अनुराग अभाव, और भ्रमण पर रोक आदि से इन बातों के मजे से उन्हें वंचित रखा था. ऐसे में हमें अब इनके लिए वह परिवार चाहिए थे जिनमें सभी चीजें उन्हें उपलब्ध रहें. हमें उनके लिए ऐसे वर चाहिए थे जो उनकी योग्यता का सम्मान करें, उन पर विश्वास कर उनके निर्णयों को सहमत करें और उनसे भरपूर प्यार अपने लिए लेकर उन्हें भरपूर प्यार उन्हें भी दें। यहाँ हमें सही चयन की बुध्दि भी चाहिए थी और नियति का फेवर भी चाहिए था ताकि हमारी सभी बातों पर हमारी बेटियों का विश्वास सही सिध्द हो सके . 

अंत में यह भी लिखना न्यायोचित होगा कि अब तक लालन पालन में हमने मात्र अपने योगदानों का उल्लेख किया है. नियति की बात हम कर रहे हैं तो यहाँ स्पष्ट करते र्हैं कि नियति ने हमें हमारी पत्नी बेहद समझदार दिलाई थी. और उनकी समझदारी से संभव हुआ था कि हमारे बच्चों से हमारी एकतरफा अपेक्षा को वे संतुलित कर देतीं तथा बच्चों के मन में बावजूद सख्ती के हमारा सम्मान सुनिश्चित करतीं.

-- राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
21-03-2019

Tuesday, March 19, 2019

मालूम नहीं फिर यह वक़्त होगा न होगा
कि ज़िंदगी की हक़ीक़तें तुम से बयां करें
जब वक़्त तुम्हें होगा
फ़ना हम हो चुके होंगे

मजबूर कर के तुम को यही बस हम पायेंगे
अपराध बोध लिए इक दिन चले हम जायेंगे

बच्चे बड़े होकर तुम्हें - जॉब को जाना होगा
दुनिया यही होगी - पर आँगन मेरा सूना होगा 
किसी की मजाल नहीं हमें मिटाता या बनाता
शुक्र तब भी उनका जो हमें हमारे हितैषी मिले

Sunday, March 17, 2019

याद नहीं बनते तुम हक़ीक़त ही रहते
इस मतलबी जहां में हम खुश भी रहते

शिकायत कोई तुमसे, हम कभी कर नहीं सकते
मोहब्बत है तुमसे, तुम्हारे चेहरे पर शिकन देख नहीं सकते 

Saturday, March 16, 2019

दर्दनाक




हर कोई यहाँ जिसे जहान में अपना कोई मिलता नहीं
फिर मतलबपरस्ती के रिवाज़ क्यूँ कोई बदलता नहीं

#जोर_जबरदस्ती नहीं है समाधान
मज़हबी मक़सद गर हिंसा के जरिये तुम लाना चाहोगे
अपने साथ मासूमों को हिंसा के चक्र में फँसा जाओगे

वास्तव में इंसानियत का मिजाज अहिंसा है किंतु
दुःखद है कि
हम कहते खुद को इंसान हैं
मगर इंसान होने का सबूत हम देते नहीं हैं

Friday, March 15, 2019

खामखां दिल पर बोझ ले लिया था हमने
बोझ उतर गया जब मुस्कुरा दिया तुमने

Tuesday, March 12, 2019

मेरी ही मोहब्बत हो आप -
इज़हार सरेआम मुनासिब होगा
आपकी ज़िंदगी में मुश्किलें तो -
दूर करना फ़र्ज़ हमारा होगा

शुक्र कि आप जन्मी दुआ कि क़ायनात रौशन करें नफरत का अँधेरा मिटा मोहब्बत का उजाला करें मुबारक सालगिरह

Sunday, March 10, 2019

हम लोगों से डरते हैं और लोग अब हम से डरते हैं पढ़ लिखकर हम क्या डरपोक और धूर्त नहीं हो गए??

Saturday, March 9, 2019

मेरी वह मोहब्बत हो तुम - इज़हार नामुनासिब होगा
मुश्क़िलात ज़िंदगी में तुम पर - देखना नामंजूर होगा

Friday, March 8, 2019

#बुढ़ापे_की_तासीर
कमाई कम हो जाती - चीजें महँगी सूट करती हैं
महँगे फल , ऊँचे दर्जे का सफर , महँगी दवाई और दुर्लभ "आदर" की अभिलाषा

शुक्र, किसी के चाह बस लेने से नहीं कोई चीज अपनी होती

वर्ना
बेचारी खूबसूरत कोई लड़की न जाने कितनों की अपनी होती

क़ायम रहें ख़ुशनसीब भी ताकि मालूम रहे ख़ुशनसीबी भी कुछ होती है

यूँ न जलो ख़ुशनसीबों से कि कभी खुशनसीब तुम भी होगे

यूँ जलोगे ख़ुशनसीबों से तो ख़त्म तुम खुद ही होगे और ख़ुश हुए उन्हें देखके तो कभी खुशनसीब तुम भी होगे


ख़ुशनसीबों से हाथ मिलाने मिलता है हमें


यूँ किसी ख़ुशनसीब से क्या कम हैं हम
ख़ुद की गलती पर अपनी बुध्दि पर तरस नहीं आता है
मगर
उसकी गलती पर हमें उस पर बहुत गुस्सा आ जाता है

ज़िंदगी में बहुत अरसे तक - अक्ल आधी आई रहती है
अपनी गलती समझ न आती - औरों में दिखाई देती है

सबसे अलग हम कैसे हो सकते हैं
जब
मान और प्रशंसा से हम भी खुश होते हैं

Wednesday, March 6, 2019

#तासीर_ए_ताज 
फिर जिस शख्स की ताज़पोशी तुम कर दोगे
अहमक वो मगरूर हो ख़ुद को ख़ुदा मान लेगा

#अपवाद_बिरले_वर्ना
जिसकी ताज़पोशी कर उसे सदर तुम बनाओगे

उस एहसान फ़रामोश से बदले में लात खाओगे