Sunday, December 2, 2018

कौन होगा ?

कौन होगा ?

इंसान वह जो नफ़रत के कारण अपनी आगामी पुश्तों पर , आसन्न खतरों में ज़िंदगी जीते देखना पसंद करेगा। नफ़रत से ख़ौफ़ में जीती कई पीढ़ियाँ गुजरीं , क्या इनकी आपसी दुश्मनी में गुजरी ज़िंदगी , एक ज़िंदगी में मिलने वाले मजे से वंचित नहीं रही? हम नफ़रत में इस कदर गुस्साये रहें यह हम पर खुद ही अन्याय है। जो दायित्व हम पर है , हम नहीं तो आगे की पीढ़ियों को निभाना होगा। जो आनंद जीवन में प्रेम - सौहार्द से मिलता है वह फिजाओं में नफ़रत घोल कर नहीं प्राप्त किया जा सकता। इतिहास की कलंक बनीं इबारतों को फिर फिर याद कर के आपस में खून की होली खेलना या अपने किसी जूनून (मज़हबी या सियासती) में हिंसा और नफ़रत की तरफ पीढ़ियों को उकसाना कतई इंसानियत नहीं है वह भी उन बेचारों को जिनकी अभी मूँछे भी नहीं आईं हैं। हमें ठंडे दिमाग से विचार करना होगा। यह समझना होगा कि नफ़रत से दुष्प्रेरित हो किया हमारा एक काम - इसी तरह के नफ़रत दुष्प्रेरित अनेक काम को प्रतिक्रिया में पैदा करता है। यह भी नहीं कि यह सिर्फ मेरे पक्ष का ख्याल है - इस देश या उपमहाद्वीप में रहने वाले सभी पक्ष को इस पर गौर करना चाहिए। दुनिया में सभ्यता का उदहारण जापान ही क्यों ?, समृद्धि का उदाहरण ऑस्ट्रलिया या यूएस ही क्यों? , विकास की मिसाल अन्य ही क्यों और प्रेम भाईचारे से एक हो जाने का उदहारण जर्मनी ही क्यों ?- यह उपमहाद्वीप भी या भारतवर्ष भी ऐसी सभी मिसाल पेश कर सकता है। पूर्व की भाँति सँस्कृति और विव्दता में और मानवता में विश्व का नेतृत्व फिर हम कर सकते हैं। ऐसा सब हो जाए तो यह आश्चर्य नहीं होगा। क्षमा और पूरी विनम्रता से यह मेरे मन की बात है। जिस से सहमत होना आवश्यक नहीं। मैं खुद को बहुत बुध्दिमान मानने का भ्रम नहीं रखता हूँ।


--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन 

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