Sunday, September 30, 2018

अधूरी तमन्नायें ..

अधूरी तमन्नायें .. 

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विवेक , विचार , अनुभव , और कल्पना सभी के पास है। ऐसा होते हुए इन्हें तरतीबी देना सभी के लिए संभव नहीं होता है। इन्हें सिलसिलेवार अभिव्यक्त करने की क्षमता भी सबमें है , पर अव्यक्त रह जाती है। बेतरतीब बातें इसलिए ज़माने में बहुत होती हैं।जिनसे कुछ बनता नहीं है। इंसानियत बिरली होती जा रही है। समाज में नारी और सज्जनता से जीवन बिताने के इक्छुक लोगों के लिए सिर्फ "जी लेना" ही क्रमशः अधिक मुश्किल होते जा रहा है। कारण की जड़ खोजें तो यह पायेंगे कि हमने जीवन में दौलत और मज़हब को आवश्यकता से ज्यादा वरीयता दे रखी है। इसलिए विवेक , विचार , अनुभव , और कल्पना को सिलसिले से अभिव्यक्त करने वाले साहित्यकार बिरले हो चले हैं। साहित्यकार , वास्तव में समाज प्रेरणा दे सकते थे , जिससे मानवता पल्लवित रह सकती थी , और सद्प्रेरणा से हम इस समाज और विश्व को खुशहाल बना सकते थे। 

अभी की पीढ़ियाँ खुशहाल ज़िंदगी की तमन्ना तो करती हैं , मगर इसके लिए अपना कुछ देने को तैयार नहीं। एक बेसुध सा जीवन सबका है।  मजहबी लोग , धनवान लोग , राजनेता , सेलेब्रिटीस जिनके व्यभिचार , व्यक्तिगत भोगलालसायें अनेकों बार जग जाहिर भी हुए हैं किंतु सब उनके फेन होते हैं।
परिणाम - जिस खुशहाली की तमन्ना है , वह जीने नहीं मिलती। दुर्भाग्य इस दौर का -तमन्नायें अधूरी हैं। 

(नोट - उर्दू हर्फ़ , इंटेंशनली प्रयुक्त किये गए हैं )

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
01-10-2018

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