Friday, February 27, 2015

विनती

विनती
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मिताली को , पापा - मम्मी के बीच की , नौ -दस साल पूर्व की बातें स्मरण हो आई थी , जो उसने अधसोई स्थिति में सुन ली थी।
पापा - रागिनी , अपनी मीतू जब जायेगी , हम अधबूढ़े हो जायेंगे। मम्मी - हाँ जी , वो तो है। पापा - मै , जल्दी अधबूढा हो जाना चाहता हूँ। मम्मी - क्यों जी ? लोग जवान बने रहने को लालायित रहते हैं , आप उल्टा सोच रहे हो। पापा - हाँ , रागिनी , हमारी एकलौती बेटी के लिये जल्दी ही मै अपने कर्तव्य निभाना चाहता हूँ , जीवन में विपरीतताओं का आगमन... कब हो जाये ,कोई भरोसा है ?
स्मरण आते ही मिताली विदाई के रस्म में से वॉशरूम के बहाने , एकांत कमरे में आ , प्रार्थना में मग्न हो गई थी। मन में कह रही थी - हे ईश्वर , मैंने समझ आने के बाद से हर क्षण पापा -मम्मी को मेरे लिये , मेरी खुशियों के लिये चिंतित और समर्पित देखा है। उनके जीवन में मेरे विदाई के साथ निर्वात आ जायेगा। वे अब प्रौढ़ावस्था में हैं। कैसे सहन कर सकेंगे सूनापन ? हे ईश्वर कैसी निर्दयी सी रीत है ये ? उनकी -रक्षा करना। मुझे ससुराल में वह पदवी देना , मै ,उन्हें मिल सकूँ ,जब चाहे बुला सकूँ अपने पास। आपने क्यों बेटी को ऐसी निरीह बनाया ? उसे जन्म -घर छोड़ देने की मजबूरी दी। बेटी के प्रति पापा को ऐसी आसक्ति दी। क्यों बेटी को और बेटी के माँ-पिता को आपने समाज में ये कमजोर हैसियत दी है ?
हे ईश्वर , हाथ जोड़ विनती है - मै जा रही हूँ , मेरे मम्मी -पापा से दूर , अब आप पास रह कर ख्याल रखना ,उनका ……
--राजेश जैन
27-02-2015

Thursday, February 26, 2015

बहनें बेटियाँ

बहनें बेटियाँ
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भोग वस्तु सी नारी को मान कर 
अत्याचार नारियों पर किये इतने
कल्पना में जब बेटी पर होते देखे
बेटी जन्मने का साहस ही खो बैठे

छोडो गल्तियों पर गलतियाँ करना
सुधरो छोडो अब गलतियाँ करना
न तो ललचाओगे देखकर बहनें बेटियाँ
पछताओगे न मिलेगी शादी को कन्या 
--  राजेश जैन
26-02-2015

Tuesday, February 24, 2015

खोज आनंद की , मिलता अवसाद

खोज आनंद की , मिलता अवसाद
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नारी
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किसी उम्र की हो , किसी भी परिवेश में हो , पढ़ी -लिखी हो या न हो , उच्च कुलीन हो या न हो इनसे अंतर नहीं पड़ता , सभी श्रेणी में नारी एक सी चुनौतियों से घिरी है। जिन पुरुषों की रूचि अपने में होते नहीं देखना चाहती  वे पुरुष भी अनावश्यक रूप से उसमें रूचि लेते हैं। जिनसे कोई संबंध नहीं चाहती , वे भी उससे संबंध बढ़ाने को उत्सुक रहते हैं। जिनसे संबंध रखना चाहती है ,वे उसकी अपेक्षाओं को न समझ , उससे एक ही संबंध को उत्सुक होते हैं। और अगर छलावे में आ जाये तो समस्त दोषारोपण नारी पर ही (पुरुषों पर नहीं) करते हैं।
अपशब्द
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समाज में सारे के सारे अपशब्द , नारी को शामिल करते बनें हैं। पुरुष -पुरुष के बीच के प्रसंगों में उत्तेजित हो , किसी को किसी पर जब भी क्रोध आता है तो उसकी माँ -बहन और बेटी पर अप्रिय शाब्दिक प्रहार किया जाता है , क्यों ?
एक नारी
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पूरा , पराया समाज , एक नारी से शारीरिक संबंध को ही उतावला दिखता है। जबकि यदि यह ज्ञात हो जाये कि यह संबंध सिर्फ , वासना पूर्ती के लिए स्थापित किया जा रहा है तो , भारतीय समाज में आज भी 95% से ज्यादा युवतियाँ (नारी ) , ऐसे संबंध में नहीं पड़ना चाहती हैं।
नारी से छल
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जिन युवा नारी से , आगे साथ निभाने , विवाह करने के वायदे से संबंध स्थापित किये जाते हैं , उनमें 75% से अधिक में नारी को छल का सामना करना पड़ता है। संबंध बन जाने  बाद , पुरुष साथी , जिसने युवती को झाँसे में लिया होता है , वही उसको हल्के चरित्र की मान कर उससे किनारा करता है।
नारी , आज भी
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आज भी , जिन का विवाह हो चुका है , वे नारियाँ अपने पति के अतिरिक्त किसी से शारीरिक संबंध नहीं चाहती हैं। जिनके पति ,पर -स्त्रियों से संबंध नहीं रखते हैं , ऐसे पुरुषों की पत्नियाँ , ऐसे संबंध में नहीं पड़ती हैं। पति चरित्र ठीक न होने पर भी , कम ही हैं , जो प्रतिक्रिया में ऐसे संबंधों में लिप्त होती हैं।
भव्य संस्कृति
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इतनी भव्य संस्कृति , जब हमें मिली है , क्यों उसकी हम अवहेलना कर रहे हैं? हम भारतीय पुरुष ही , समाज और इतिहास के प्रति अपने उत्तरदायित्व भुलाकर उसे बदलने पर तुले हैं। नारी अच्छी है , उसे अच्छी रहने दें। पत्नी , बहन और बेटी में जो अच्छाई हम चाहते हैं , दूसरों की पत्नी , बहन और बेटी में उसे बने रहने दें। पुरुष का धर्म है , अशक्त नारी की रक्षा करना , क्यों उसे अपनी अनियंत्रित वासना का शिकार करना चाहते हैं ? और उन्हें अवसादपूर्ण जीवन को विवश करते हैं। 
नारी आज
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पढ़ना चाहती है। आत्म निर्भरता चाहती है , आत्मसम्मान चाहती है। पुरुष से विश्वास के संबंध चाहती है। अपने पति के अतिरिक्त , दूसरों से बहन सा , बेटी सा सम्मान चाहती है। उसे हम वह , दें और दिलवायें। मनुष्य वह भी है , उसे समतुल्य स्थान पर समाज में प्रतिष्ठित करें। उसे समानता दें। और संस्कृति से मिले उसके उच्च चरित्र को बनाये रखने में उसकी मदद करें। इस दृष्टि से नारी के समान स्वयं हम पुरुष बनें।
"आनंद की खोज को उत्सुक आज नारी को जीवन आनंद ही मिलना चाहिए , अवसाद नहीं " - यह परिवार में रह रहे पुरुष और हर वीर और न्यायप्रिय पुरुष का कर्तव्य है।
-- राजेश जैन
24-02-2015

Sunday, February 22, 2015

बेचारी

बेचारी
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कल की पोस्ट पर एक अप्रत्याशित आपत्ति ली गई , जिसमें पोस्ट के अंत में नारी को बेचारी लिखा गया था।
तर्क यह था , नारी आज जो भी कर रही है , समझबूझ के कर रही है , कोई उकसावा नहीं है। misguided भी नहीं है वह। आज की प्रोफेशनल यदि स्मोक कर रही है , या ड्रिंक कर रही है तो अपनी मर्जी से कर रही है।
लिव इन रिलेशन
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अगर वह लिव इन रिलेशन में है या नाईट आउट है तब भी आज की पढ़ी लिखी नारी की अपनी मर्जी है। उसे किसी की सहानुभूति की जरूरत नहीं है , वह सक्षम है। आज वह ,अपने हित -अहित की स्वयं जानकार है।
अल्प-अनुभव
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यह स्वर या ऐसी अभिव्यक्ति है उनकी जो अभी बीस -तीस वर्ष की हैं। बीस से तीस वर्ष की आयु का जीवन , छोटा ही होता है . रूप -यौवन शिखर पर होता है। इन अनुकूलताओं में उसे कल्पना नहीं होती है  स्वास्थ्य की समस्या आ सकती है , रूप फीका पड़ने पर उपेक्षा देखनी पड़ सकती है।
माँ -पिता
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दोनों ही प्यारे होते हैं - इन बेटियों को। परिवार के प्यार में और प्रेरणाओं के बीच पढ़ लिख कर वे आज जॉब में हैं। उन्होंने देखा है यह परिवार ही है , जिसमें सम्मान , रूप -सौंदर्य से निरपेक्ष है। माँ या पिता हैं , पति या पत्नी हैं पारिवारिक स्तर पर परस्पर प्यारे हैं। यह देखते हुए युवा ,इस मंज़िल पर पहुँचे हैं । कुछ अच्छे परिवर्तन अवश्य चाहिए , जिसमें नारी को ज्यादा सम्मान मिले। मनुष्य ही नारी भी है , उसे समतुल्य स्थान और अवसर चाहिए हैं , निश्चित।
शराब -सिगरेट - स्वछंद संबंध
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अनावश्यक विद्रोह सा लगता है - नारी इसे अपना रही है। ये तो पुरुषों के लिए भी उचित नहीं हैं - नारी के लिए भी समान रूप से नुकसान दायक हैं। बल्कि यह जीवनशैली शारीरिक कुछ जटिलताओं के कारण , पुरुषों से अधिक नारी के लिए खतरनाक है ।
निष्कर्ष -बेचारी
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प्रत्यक्ष कोई misguide करने वाला नहीं दिखता है। इसलिये उसे ऐसा प्रतीत होता है कि वह अपनी इक्छा से कर रही है। ऐसा नहीं है - अप्रत्यक्ष रूप से वह बाजार की शिकार हो रही है , जिसमें अपने लाभ के लिये घटिया - सामग्री की पैकेजिंग और प्रेजेंट करने की आकर्षक शैली से उसे शिकार बनाया जा रहा है। सम्मोहनों में उस से वह करवाया जा रहा है , जो नारी का नहीं उन स्वार्थियों का हित करता है।  पढ़-लिख कर भी यदि नहीं समझ रही तो - बेचारी ही तो शब्द है। (कृपया क्षमा करें। लिखे शब्द ऐसा अनुभव करा सकते हैं , जैसे दोष सभी को दिया जा रहा है। ऐसा नहीं है।  दोषी , कोई नहीं है।  सिर्फ जिन्हें चेतना जरुरी है , युवाओं को हितैषी भावना से प्रार्थना स्वरूप लिखा गया है )
-- राजेश जैन 
 22-02-2015

Saturday, February 21, 2015

नारी व्यथायें कैसे कम होंगी ?

नारी व्यथायें कैसे कम होंगी ?
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आज माँ -पिता अपनी बेटी को दूर पढ़ाने भेज रहे हैं। बेटी पढ़ लेती है , तो मेट्रोज में मल्टीनेशनल कंपनीज़ में जॉब को भेजते हैं। ऑफिसेस , आलीशान और आधुनिक होते हैं।

स्मोकिंग -ड्रिंक्स
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वहाँ - अपने माँ -पिता की लाड़ली बेटियाँ में से लगभग 30% , दिन में , स्मोक जोन में धुएँ के छल्ले उड़ाते मिलेंगी। और वीक एंड्स में लगभग 50 % ड्रिंक्स के सुरूर में मिलेंगी।

स्मोकिंग के खतरे
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1. एक्टिव या पैसिव स्मोकिंग के खतरों में उच्च पढ़ी लिखी , बहनें -बेटियाँ भी सम्मिलित हो गई हैं।

ड्रिंक्स बिना भी होता है , किन्तु ड्रिंक्स से बढ़ता है
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2. ड्रिंक्स के सुरूर में , जिसमें सार्वजनिक स्थलों पर कोई नारी किसी की बहन या बेटी है , यह ध्यान नहीं रहता है , और इस कारण नारी , ओछी हरकतों झेलने विवश होती हैं। अब स्वयं ड्रिंक्स लेगीं तो क्या होगा ?

बेचारी ?
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नारी - अपढ़ थी तब बेचारी रहीं थीं , क्या अब पढ़ने के बाद भी बेचारी ही रहेंगी ?
पढ़ना लिखना भी ,क्या नारी व्यथाओं को कम नहीं कर पायेगा ?

-- राजेश जैन
21-02-2015

अधिवेशन

अधिवेशन
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किन्नर समाज ने अधिवेशन बुलाया हुआ था। किन्नर विद्वान के साथ ही , बुध्दिजीवी स्त्री /पुरुष के ओजस्वी विचार मंच से प्रकट किये गए थे।
एक किन्नर विद्वान ने अपने उद्बोधन में कहा - हम , बिन बुलाये - माँगलिक आयोजनों में और बच्चों के जन्म में पहुँचते हैं। हमें - दान प्राप्त करने के लिये कई ढोंग करने होते हैं। कुछ ख़ुशी से कुछ जबरदस्ती करने से हमें दान देते हैं। हम मजबूर होते हैं। हम...
 धन जोड़ना होता है। कहाँ कोई हमारा अपना होता है , कहाँ कोई हमसे प्यार रखता है और कहाँ कोई हमारा करने वाला होता है। हर मुसीबत के लिए पैसे से खरीद ही हमें सुविधा ,उपचार आदि खरीदना होता है। सम्बोधित करने के उपरान्त हाथ जोड़ वे , तालियों की गड़गड़ाहट के बीच अपना स्थान ग्रहण करते हैं ।
फिर बारी -एक विद्वान पुरुष की होती है .... सभी का अभिवादन कर वे कहते हैं , आप की दुआयें , फलती हैं। शादी पर आप बधाइयाँ गाते हैं , किन्तु क्या हुआ न जाने अब , आपकी शुभकामनाओं होने से भी , साथ मधुर नहीं होते हैं एवं कई विवाह टूट जाते हैं। बच्चे के जन्म पर दुआयें देने आप आते हैं ,जिस बेटे के जन्म पर दुआओं के बदले पिता , आपको मनमाँगा ईनाम देता है , वही बेटा बूढ़े होने पर उस दानी पिता को उपेक्षित छोड़ देता है। आप की दुआयें बेअसर जाती देख , समाज इसके पहले यह समझ जाये कि आप की दुआयें अब ईश्वर नहीं सुनते हैं , मित्रों आप सभी को मेरी सलाह है , आप अपने रिवाज आज से बदल दें , आप अब सिर्फ बेटी के जन्म पर बधाइयाँ गाया करें , आप उसके लिये दुआयें किया करें। वही है , जो अब माँ -पिता को निभाती है , भगवान ने आपकी सुनी या न सुनी , किन्तु माँ -पिता को आजीवन लगेगा , आप की दुआयें निष्फल नहीं गई है
वक्ता भावावेश में कहता जा रहा था , लेकिन कटु सच्चाई सुनते हुए , उपस्थित श्रोताओं के चेहरों पर हवाइयाँ उड़ने लगी थीं ……
--राजेश जैन
20-02-2015

Thursday, February 19, 2015

नारी -कब सुरक्षित , कहाँ निःशंकित?

नारी -कब सुरक्षित , कहाँ निःशंकित?
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दो वर्ष की बच्ची
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हल्द्वानी में पिता के घर में थी .  पिता और मित्र शराब ने पी। पिता धुत्त हुआ , और मित्र हैवान हुआ  .  दो वर्षीय अबोध पर रेप किया और फिर फरार है.
मानसिक अविकसित युवती
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रोहतक में 26 वर्ष की युवती है , किन्तु मानसिक विकास 3 वर्ष के बच्चे सा है , अकेला पाकर 9 दुष्टों ने उस पर सामूहिक रेप  किया ।
कहाँ निःशंकित रहे नारी ?
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घर ,स्कूल , ऑफिस, आश्रम , हॉस्पिटल और लगभग हर स्थान में , रात हो या दिन उस पर रेप हो रहे हैं। कैसा यह समाज है ? क्यों इस तरह का सामान चहुँ ओर फैलाया है ? जिसके दुष्प्रभाव में पुरुष दिमाग में और दृष्टि में सिर्फ वासना ही हिलोरें ले रही हैं . ज्यों ही नारी देखी और नीयत बिगड़ी। कहाँ निःशंकित रहें ? कैसे उन्नति करें ? कहाँ अपने मनुष्य जीवन को सम्मान से जिये , नारी ? 
पहनावा कहाँ या स्थान गलत था ?
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दो वर्षीय मासूम बच्ची घर में थी , पहनावे का प्रश्न नहीं था। दूसरे प्रकरण में  दिमाग ही बच्चों सा था , गलतफहमी का प्रश्न नहीं था। इन निरीहों की ,वेदना और कराहट नहीं दिखी  ,नहीं सुनाई दी , दुष्टों को ? क्या बीतेगी बच्ची /अविकसित दिमाग की युवती और उनके परिवार पर ? कोई ख्याल है ? दुष्टता करने वालों के स्वयं के परिवार की बदनामी से  क्या बीतेगी , कोई विचार है ?
परतंत्रता
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देश परतंत्र था , तो आक्रमणकारी की दृष्टि और नीयत ख़राब थी , नारी पे। परदों में रहती थी , घर की देहरी के अंदर छिपी होती थी। तब भी धन दौलत की लूट के साथ , उसे उठा ले जाते थे। सब कहते थे पराये हैं , विदेशी दुष्ट हैं।
स्वतंत्रता
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1947 में देश स्वतंत्र हो गया।  अब हम देशवासी ही रहे देश/समाज में। अब सुरक्षित हो जाती नारी अपनों में ,  अब निःशंकित घूम, पढ़-लिख सकती और उन्नति करती नारी स्वतंत्र देश में ।  अपनों का यह देश और अपना ही समाज था।  खेद , अपने भी पराये से बढ़कर दुष्टता करते हैं। क्या नारी का कोई अपना होता ही नहीं ? सब पराये होते हैं ?
नारी कराहना 
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पुरुष तुम रहे आओ पराये , जहाँ प्रीत नहीं , नारी भी उत्सुक नहीं करीब होने को। पुरुष तुम रहे आओ पराये , दुष्टता हम पर न करो । पुरुष तुम  रहे आओ पराये , मनुष्य हो मनुष्य बनो । पुरुष तुम  बनते हो बन जाओ जानवर - लोमड़ी एवं कौऐ से धूर्त न बनों।
-- राजेश जैन
19-02-2015

Tuesday, February 17, 2015

सॉफ्ट टॉरगेट

सॉफ्ट टॉरगेट
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दुर्भाग्य होता है , जब किसी परिवार का अर्निन्ग मेंबर , असमय छोड़ चला जाता है। तब निर्भर उनके परिजन , अबोध उम्र में , अल्प योग्यता और अल्प क्षमता के , सुरक्षा कवर के बिना , इस बड़ी और छली दुनिया में चुनौतियाँ झेलने विवश होते हैं।
सयुंक्त परिवार
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सयुंक्त परिवारों में ऐसी विपत्ति , तुलनात्मक रूप से कम कठिनाई से झेल ली जाती थी। लेकिन एकल परिवार में यह विपदा बन जाती है। विशेषकर बच्चे और नारी , असहाय हो समाज की बुरी नीयत और बुरी ताकतों के समक्ष होते हैं।
उदर पोषण
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परिवार की आर्थिक हालत ठीक रही हो तब बिगड़ने लगती है , और पहले ही ठीक न हो तो पेट भरने तक की समस्या हो जाती है।
पढाई - सँस्कार
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बच्चों की पढाई में व्यवधान संभावित हो जाता है। घर में सुरक्षा और मार्गदर्शन का अभाव होने से , अच्छे सँस्कार सुनिश्चित नहीं रह/ होने पाते हैं।
समाज -राष्ट्र
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उस समाज /राष्ट्र में जिनमें , ज्ञान और सँस्कारो की पर्याप्तता न हो , जीवन बुराइयों से अभिशप्त रहता है। जिन भाग्यशाली के पास ये अच्छे और पर्याप्त हों वे भी , प्रभावित रहते हैं , क्योंकि वे भी इन बुराइयों में ही घिर जाते हैं ।
उपाय
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ऐसे दुर्भाग्यशाली परिवार के , पढाई और अच्छे सँस्कारो की समस्या सिर्फ परिवार की नहीं , राष्ट्र /समाज की भी होती है। उन तक ज्ञान और सँस्कारो की सुलभता के समाज स्तर पर संगठन और राष्ट्र स्तर पर व्यापक योजना होने चाहिये , जो उनकी सहायता  सकें।
नारी और बच्चे
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नारी और बच्चों को अगर हम बुराइयों से बचा सकेंगे तो अप्रत्यक्ष रूप से हम स्वयं अपना ही भला करेंगे।  इसी समाज में हमें और हमारे बच्चों को जीवन यापन करना होता है।
समस्या
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हमारी नहीं प्रतीत होती /लगती , वास्तव में यह समस्या हमारी ही होती है।
--राजेश जैन
18-02-2015

Monday, February 16, 2015

नारी रूपान्तरण

नारी रूपान्तरण
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नारी का जीवन भारतीय परिवेश में कुछ ऐसे चलता है।
गर्भ में
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दुर्भाग्य से , कुछ परिवार में , यह पता चल जाये , कि संतान बेटी होने वाली है तो भ्रूण-हत्या की आशंका हो जाती है।
जन्म पर
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अभी भी कम ही परिवार हैं , जो बेटी जन्म पर प्रसन्नता से शुभकामनायें ले -दे रहे होते हैं। पटाखों और बैंड की गूँज तो कम ही देखने मिलती है।
बचपन
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अगर जन्म ले लिया है तो बेटी बचपन में प्यारी तो लगने ही लगती है। पिता की ज्यादा दुलारी हो जाती है। भारत में तो छोटी सी पुत्री के पाँव पढ़े जाते हैं।
कपड़े भी बेटी को एक से एक पहनाये जाते हैं।
आठ -दस वर्ष की बेटी
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ज्यों ही थोड़ी बड़ी होती है। भारतीय समाज में , दूसरों घरों के पुरुष की दृष्टि लड़की के प्रति दृष्टि बुरी होने लगती है। इसे भाँप कर , बेटी पर बहुत सी रोक टोक होने लगती है। विडंबना यह होती है , अपनी पे तो इस दृष्टि से बचाव के उपाय होते हैं और परायी पर इस बुरी दृष्टि के प्रहार होने लगते हैं।
हाई स्कूल -कॉलेज में
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अपनी बहन से अपेक्षा , अन्य के चक्कर में न पड़ने की होती है। और दूसरे की बहनों के चक्कर लगाते नहीं थकते हैं। लड़कियों का पढ़ना -बढ़ना तक मुश्किल कर दिया जाता है।
गर्लफ्रेंड
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आजकल , गर्लफ्रेंड बनाने की तो होड़ लगती है , कई कई बन जायें ये आरजू होती है। इनमें से थोड़ी कम सुंदर , विवाह की बात करने लगे तो , बहाने से पीछा छुड़ाने के उपाय करने लगते हैं।
विवाह
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हसरत तो विवाह की बहुत होती है , विवाह में दहेज कम मिल जाये तो ,मलाल दिल में होता है।
पत्नी
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दुल्हन बन आती है तो परी सी लगती है , कुछ ही वर्षों में सबसे बड़ी उपहास की वस्तु होती है। सबसे ज्यादा जोक्स पत्नी पर बनते हैं। पत्नी को तो पतिव्रता देखना चाहते हैं , अन्य की पत्नी के पतिव्रत को खंडित करने को पीछे लगते हैं।
माँ
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माँ , बनी नारी तो ईश्वर से अधिक पूज्या लगती है। पत्नी घर आये , तो वही समस्या सी लगती है।
निष्कर्ष
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भ्रूण रूप में अप्रिय , जन्मे तो अप्रिय , बचपन में परी -दुलारी , पढाई - व्यवसाय में जाये तो समस्या। बहन चरित्रवान होना चाहिए , अन्य की बहन  चरित्रवान क्यों? चक्कर में नहीं आती।  गर्लफ्रेंड रूप में सर्वप्रिय , पत्नी रूप में समस्या / उपहास। 20 -25 वर्ष तक माँ -पूज्या , और बाद में माँ -समस्या। एक ही वह नारी अपने जीवन में , कितने प्रिय अप्रिय रूपों में रूपांतरित होती है। कितनी परस्पर विपरीत अपेक्षाओं की चुनौती उनके जीवन में प्रस्तुत की जाती है।
अलग -अलग तरह से उन्हें प्रभावित करने , लुभाने और बहकाने के प्रयास समाज में होते हैं। जरा चूक अगर हो गई तो अपशब्द ढेरों। चूक गई तो शोषण अनेकों। हवस की शिकार हुई तब भी दोष अनेक उसी पर। पिता -माँ का घर छोड़ने की विवशता , बावजूद इसके दहेज प्रताड़ना को मजबूर , ससुराल में अकेली।
बदल दो भाई
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नहीं करो यह अत्याचार
मनुज सुधारो तुम व्यवहार
अशक्त अकेली है नारी
रखें उन्हें हम कर मनुहार
-- राजेश जैन
17-02-2015
 

Sunday, February 15, 2015

नारी का उठ गया विश्वास

नारी का उठ गया विश्वास
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माँ -पिता
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नारी माँ रूप में , पुरुष पिता पद में कितने ज्यादा आदर्श होते हैं। जिनके समक्ष जगत के पालनहार भी पिछड़ जाते हैं।
परोपकारी
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संतान के लिए स्वयं भूखे रह उनके उदर पोषण को लालायित रहते हैं।
अनुराग
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इतना , प्यार संतान से करते हैं कि उनके लिये अपनी जीवन महत्वाकांक्षाओं को तज , संतान की महत्वाकांक्षाओं को पुष्ट करते हैं , उनकी पूर्ती में अपना सुख ढूँढ़ते हैं.
किसके होते हैं ऐसे गुण
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लेखक की लेखनी उस सीमा तक बखान नहीं कर सकती जितने गुण माँ -पिता में होते हैं। और सुखद आश्चर्य , इसे कह सकते हैं कि लगभग हर मनुष्य माँ या पिता हो सकता है। अर्थात ऐसे गुण प्रत्येक मनुष्य में निहित होते हैं।
दुःखद है यह
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हर मनुष्य इतने उत्कृष्ट गुणों से वरदानित है , लेकिन जहाँ वह माँ -पिता नहीं वहाँ छलों की , दुर्गुणों की और दुर्व्यसनों की खान हो रहा है। संत वेश में छल रहा है , दादा -परदादा की उम्र में नाती -पोती/बेटी की उम्र की नारियों के तन से खेल रहा है। पत्रकार बन , बेटी की मित्र को प्रणय निवेदन पेश कर रहा है। सिनेमा में हीरो के पात्र अभिनीत करने वाले , पिता उम्र के हो गए हैं , लेकिन फैन हुई किशोरी उन्हें मिलें तो , विलेन की दृष्टि और नीयत रख उन्हें मिलता है। नाम लिख दिये जायें तो उनके फैंस , लेखक के जानी दुश्मन बन जायें।
नारी का उठ गया विश्वास
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ऐसे , जो इस पीढ़ी के युवाओं की प्रेरणा बन सकते थे , जो उन्हें और देश को उन्नति की दिशा दे सकते थे , उनके कुकृत्यों का भांडाफोड़ समय -समय पर हुआ। जिसने नारी का विश्वास , पुरुषों पर से उठा दिया।
छोड़ दें
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छोड़ दें , युवा इन ग्लैमरस ,छद्मवेशी और तथाकथित सफल लोगों की अंधश्रध्दा और फैन हो जाने की प्रवृत्ति को । ये, युवाओं का समय , देश का भविष्य और समाज का सौजन्य , सोहाद्र ख़राब कर रहे हैं /मिटा रहे हैं।
साधारण भले
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आत्मविश्वास स्वयं पर रखें , हम साधारण ही उनसे भले हैं , उतना छल नहीं करते , उतना देश और समाज का नुकसान नहीं करते।
प्रतिभा
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हम में प्रतिभा है , हममें ही वे उत्कृष्ट गुण हैं , जो हमें माँ या पिता रूप में जाते ही , ईश्वर से भी महान बना देते हैं।
उपयोग करें
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अपनी प्रतिभा का एवं अपने में निहित उत्कृष्ट इन गुणों का हम आत्मविश्वास से उपयोग करें . कोई और नहीं हम स्वयं ही अपना जीवन बना सकते हैं , अपना राष्ट्र और समाज बना सकते हैं।
नारी -पुरुष
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अपनी करनी से आज ही की पीढ़ी(Generation)  , खोया परस्पर विश्वास (Mutual trust ) बना सकती है , और नारी -पुरुष बीच छल का नहीं ,एक बेहद मधुरता का रिश्ता स्थापित कर सकती है .
-- राजेश जैन

16-02-2015

Saturday, February 14, 2015

नारी - निर्दोष एवं आरोप

नारी - निर्दोष एवं आरोप
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नारी के पक्ष में तुला कुछ झुका कर लेखक लिखा करता है। कवि दृष्टि में कमजोर पड़ते तुलनात्मक सच्चे पक्ष को सपोर्ट न्यायोचित होता है। लेकिन इस प्रयास में नारी के सताये पुरुष साथियों की उग्र प्रतिक्रियायें मिलती हैं। उनसे नाराज न हो धन्यवाद ही देता हूँ , भाई तो वे भी हैं। आज निष्पक्ष वह दृष्टिकोण रखने का प्रयास है , जो स्वतः स्पष्ट करेगा , तुला , क्यों नारी पक्ष में झुकती है।
लड़की ?
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जिसे , लड़की देख रहा है , ज़माना ,
वह बेटी लाड़ली किसी की है
जिस पर नज़र बुरी करता ,ज़माना ,
वह इज्जत किसी घर की है

कैसे होती है , सुंदर ?
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माँ , गर्भ में कष्ट झेलते रखती
पिता , दुलार छाया में पलती है
पढ़ाते ,विपरीत परिस्थिति में उसे
एक दिन तब परी सी निखरती है

क्या दायित्व उस पर हैं ?
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खिलती कली सी सुंदर वह
पुरुष उसे तोड़ने उमड़ते हैं 
चरित्र निभाना दायित्व उसे 
पुरुष अनेकों छलने उमड़ते हैं

द्वन्द
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जिन्होंने जिया ,किया उसके लिए
परिवार अपेक्षा उस पर है
सपनों के आड़ में वस्तु बनाते
छद्म अभिनय करते उस पर है  

डबल स्टैण्डर्ड
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अपनी होती या अपनी मानते
उस नारी को परदों में रखते हैं
पराई और झाँसो में आ फँसती
उघाड़ उसे तमाशा बनाते हैं

अकेली
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सपने ,उसके भला मिले एक
उसकी पलकों में सजते हैं
सुंदर उसे देख मनचले कई
छलने उस पर टूट पड़ते हैं

नारी वेवफा ?
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किस किस से बचाये दामन
किस किस को दे वह सफाई
अपने पिया के साथ चली जाती
मनचले उपमा बेवफा देते हैं

नारी उपहास क्यों ?
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चिरौरी किया करते थे पीछे 
जब दुल्हन बना ले जाते हैं
पत्नी नहीं जैसे दुष्टा ले आये  
राक्षसी उसे निरूपित करते हैं 

निर्दोष
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चरित्र , परिभाषित किया पुरुष ने
पालन उसका ही जब करती है
सम्मान बचा सपने जीती ,निर्दोष
दुष्टता से संघर्ष विवश हो करती है

आरोप
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सम्मान रक्षा में सफल होती
और चेतना उसमें जब आती है
खिसियाये छली पुरुष दृष्टि में
निर्दोष 'त्रिया चरित्र' कहाती है

इस पेज से नारी पक्ष और भी रखा जाता रहेगा। हम रखें , अपनी शिकायत , प्रकट करें अपना आक्रोश। किन्तु , भाषा शालीन रखें। लेखक/कवि के सम्मान का प्रश्न नहीं है। प्रश्न उस मर्यादा का है , जो माँ से , बहन से और बेटी से निभाई जाती है। इस पेज के पाठक माँ /बहन और बेटियाँ भी हैं , अपनी नहीं भी हैं तो अपने किसी करीबी या मित्र की हो सकती हैं। 
--राजेश जैन
15-02-2015

 

Friday, February 13, 2015

नारी- निर्वस्त्र और निष्कर्ष

नारी- निर्वस्त्र और निष्कर्ष
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एक समूह पर एक किशोरवय बहन ने लिखा "यदि में निर्वस्त्र भी घूमूँ तो किसी को स्पर्श करने का हक नहीं ".
प्रतिक्रिया
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यह वाक्य , नारी की तीखी प्रतिक्रिया है , उस व्यवस्था /समाज पर , जिसमें उस पर अनेकों बंधन हैं।  और जहाँ पुरुष सरेआम निर्वस्त्र होने को स्वतंत्र है। क्रिकेट में प्लेयर अपनी शर्ट उतार अर्धनग्न हो जाता है। सिनेमा में हीरो अपने गठीले बदन की नुमाइश पेश करता है। और नारी पर रेप के क्रम अबाध चलते हैं। असफल व्यवस्था और पुरुष के , खिसियाया कुतर्क नारी के बदन दिखाऊ वस्त्र पर होता है।
दोषारोपण
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नारी पर ज्यादती  पुरुष करता है। उसमें दोष पुरुष का होता है। तब भी अपने दोष का दोषारोपण , नारी पर करता है। ऐसे में सहनशीलता की सीमा पार होने पर , नारी मुख से ऐसे विद्रोही स्वर निकलना स्वाभाविक हैं।
विद्रोह
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यध्यपि उक्त वाक्य विद्रोह प्रदर्शित करता है , किन्तु वह विरोध जताने के लिए उपयोग किया है। विरोध में ,कोई लड़की यह इसलिए नहीं करती /करेगी क्योंकि इसी समाज में उसकी माँ /बहन और पिता /भाई रहते हैं। जिनकी मर्यादा (आदर) के लिए वह ऐसा प्रदर्शन विरोध जताने के लिए नहीं करेगी।
विरोधाभास
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उस पोस्ट पर प्रतिक्रियायें , नारी के निर्वस्त्र न होने के पक्ष में होती हैं।  किन्तु यही समाज है , जिसमें नारी अपनी लाज की दुहाई देती है , तब भी उसे निर्वस्त्र कर दिया जाता है , और अशक्त नारी की लाज लूट ली जाती है। क्यों नहीं , हम नारी का ऐसा चरम अपमान नहीं रोक पाते हैं ? उस पर प्रताड़ना और दुष्टता के सिलसिले अविराम चलते हैं , हम साक्षी/श्रोता बने रह जाते हैं।
अपमानित
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उस पोस्ट पर बहस ने यह रूप लिया , एक दूसरे पर आरोप -प्रत्यारोप हुए।  कुछ ने ग्रुप में अपमानित अनुभव किया ग्रुप छोड़ दिया , कुछ ने शब्द पर नियंत्रण खोया , अमर्यादित भाषा उपयोग की , और ग्रुप आउट किये गये।
सभ्यता ?
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सभ्य हुए समाज में विसंगति देखने में आती है।  जहाँ -तहाँ , मान -अपमान के प्रश्न उत्पन्न होते हैं ,फिर भी अपमानित करने की परम्परा चलती है। अपमान वहाँ हमारा नहीं हो सकता , जहाँ हम अन्य के साथ सम्मान से पेश आते हैं। किन्तु नारी को हम समान नहीं मानते और उनका सम्मान नहीं करते तो हम शिष्ट नहीं हैं। नारी अपमान के क्रम बने हुये हैं।  निश्चित ही 'अपमानित वह' अब पुरुष का अपमान करेगी । शिष्ट हम बनें , अपमानित करने की परम्परा हम छोड़ें , हम अपना ही सम्मान सुनिश्चित करेंगे।
क्या कहेंगे इसे ?
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भोपाल में , फिल्म /टीवी से थोड़ा प्रसिध्द हुआ एक पुरुष कलाकार मुँह चला जाता है , "लड़की बिगड़ने पर उन्नति करती है " . अपने आगोश में पर नारी को पाने के लिए इस तरह के पुरुष कलाकार , ऐसी बेशर्मी पर उतारू हैं , कहाँ ले जा रहे हैं ये समाज को ?  इनके कुत्सित इरादों पर यह समाज /व्यवस्था क्यों कोई दंड नहीं लगाती है ? क्यों , इन्हें मंच /स्टेज पर बैठाते हैं ? इतने उदासीन क्यों हैं ? क्या सिर्फ इसलिये कि पीड़िता हमारे , परिवार की नहीं हैं ?
निष्कर्ष
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पुरुष बेशर्मी ऐसी चलती रही।  नारी यों ही अत्याचार भुगतती रही,  अपमानित होती रही , तो वह सचमुच , आदिमकालीन निर्वस्त्र वेश में आ जायेगी। अंतर सिर्फ यह होगा कि अब का निर्वस्त्र शरीर सौंदर्य प्रसाधनों से सजा होगा।  दुर्भाग्य ऐसी नारी , किसी पुरुष पिता की ही बेटी होगी।
-- राजेश जैन 
  14-02-2015

Thursday, February 12, 2015

पढ़ना

पढ़ना
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सुदृढ़ , गरिमा से -पढ़ना क्या सिर्फ पैसे के उद्देश्य के लिये ,जरूरी है ? आज कॉलेज के विज्ञापन ऐसे हैं , "हमारे स्टूडेंट्स को अस्सी लाख का प्लेसमेंट"।
गरिमा -और मंदिर एवं धर्मालयों में धर्म का पढ़ने से बच्चों का सीखना , दूसरे धर्मावलम्बियों का निरादर ?
सुदृढ़ एवं गरिमा की बातें , सात वर्षीय बेटी गर्वोक्ति ने सुनली।  बातें मम्मी,पापा के बीच आगे क्या हुयीं उस से बेखबर , उसके बालमन ने कुछ समझा एवं कुछ ठान लिया था ।
अब लगभग एक साल हुआ है। केदारनाथ जलजले के बाद खंडहर हुये , इस घर में बच्चे सप्ताह में एकबार रविवार को जुटते हैं। पहले, गर्वोक्ति सहित चार आते थे। अब तेरह हो गये हैं।  वे विभिन्न धर्मी हैं. स्कूल और अपने धर्मालय से सप्ताह भर में पढ़े हुए की चर्चा करते है। इस उपाय को फिक्रमंद होते हैं  कि कैसे ? पढाई का एकमात्र उद्देश्य धन न रह जाए और कैसे ? धर्मालय में प्राप्त ज्ञान का प्रयोग अन्य धर्मी के अपमान ,ईर्ष्या या वैमनस्य में न हो जाये।
--राजेश जैन
13-02-2015

सफलता के पीछे

सफलता के पीछे
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एकाधिक बार , यह कहा गया है , सुना गया है , अनुभव किया गया है और पढ़ा गया है --
"हर सफल पुरुष की के पीछे , एक नारी होती है"।
लेकिन यह नहीं सुना है ---
नारी की सफलता के पीछे , पुरुष संबल या प्रेरणा रही है।
"नारी चेतना और सम्मान रक्षा " यह पेज , समाज /देश और विश्व में वह चेतना संचारित होते देखना चाहता है , जब कोई अत्यंत सफल नारी यह कहे -
"इस सफल नारी के पीछे एक पुरुष है "
या
"इस सफल नारी के पीछे एक और नारी ही है "
नारी के इस तरह सम्मान की प्रतीक्षा यह पेज कर रहा है।
-- राजेश जैन
13-02-2015

वैलेंटाइन वीक और लेखक


वैलेंटाइन डे और लेखक
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वैलेंटाइन डे - भारत में लोकप्रिय होने और समझने के पहले , लेखक का विवाह हो गया ,अन्यथा लेखक भी शायद इस तरह से , जीवनसंगिनी की खोज करता।

वैलेंटाइन पर संभावित स्पाउस की खोज
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भारत में , विशेषकर इस उद्देश्य से इस प्रथा को न जाने  कितने फॉलो करते हैं ? और न जाने कितनों को उनके स्पाउस वैलेंटाइन डे से मिलते हैं ? जिन्हें मिलते हैं उनके साथ से न जाने कितने जीवन में खुश रहते हैं ? उन युवाओं की प्रशंसा ही की जा सकती है जो वैलेंटाइन डे को इस गंभीरता से लेते हैं। अंततः  जीवनसाथी की तलाश किसी न किसी प्रकार से सभी को करना होता है।
वैलेंटाइन के बहाने फ़्लर्ट
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इस प्रथा को कई फ़्लर्ट के उद्देश्य से फॉलो करते हैं। उन्हें कुछ समय को भले ख़ुशी मिलती हो। किन्तु उन्हें अवश्य इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए कि उनकी ख़ुशी की कीमत किसी या कुछ को जीवन भर के मानसिक वेदना न दे जाये ।
वैलेंटाइन पर दोनों ओर से फ़्लर्ट
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मनोरंजन के ओर भी साधन होते हैं , फ़्लर्ट से समय और जीवन दोनों बर्बाद हो सकता है। अभिभावक - शिक्षा दिलाने / सर्विस में बाहर इस लिये भेजते हैं ताकि उनके बेटी/बेटे का जीवन सुखद हो सके। फ़्लर्ट के धोखे से बर्बाद हुआ बेटे  /बेटी का जीवन स्वयं उनके लिये ही नहीं , पेरेंट्स के लिए भी दुखदायी होता है।
दुखदायी से चिंता इसलिये
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अपनी करनी से कोई दुःखी है तो इस तर्क से उदासीन हम नहीं हो सकते हैं कि 'उसने किया वह भुगते' । हम व्यवस्था पर , कानून पर और समाज में अंधविश्वासों /रूढ़ियों को इसलिये कोसते हैं , सुधारे जाने की अपेक्षा करते हैं ,ताकि हम ही नहीं दूसरे भी देश और समाज में सुखी रहें। अतः कोई गलत करते हुए अपने जीवन पर संकट आमंत्रित करता है उसे रोकना , उचित परामर्श और प्रेरणा देना , हमारा ही दायित्व होता है।
लेखक की गर्ल -फ्रेंड्स
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लेखक की दो गर्लफ्रेंड हैं , एक पत्नी और दूसरी , बताऊँ आपको ? व्यक्तिगत है , किन्तु आपको जिज्ञासा है तो बता देता हूँ। "नारी चेतना और सम्मान रक्षा" यह विचार दूसरी गर्लफ्रेंड है। नारी की वेदना दूर करना आज समाज खुशहाली का सबसे बड़ा उपाय है।
इस वैलेंटाइन पर आप बनायें गर्लफ्रेंड /बॉयफ्रेंड
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जो पुरुष हैं , -"नारी चेतना और सम्मान रक्षा" -विचार को गर्ल समझें , जो नारी हैं इस विचार को बॉय समझें - इसे लाइक कर बनायें अपना एक अतिरिक्त गर्लफ्रेंड /बॉयफ्रेंड और न्यायप्रिय बन कर प्रवाहित करें , 'अपने जीवन', और समाज में सर्वदिशा परस्पर मधुरता - विश्वास और प्रीति ।
-- राजेश जैन
12-02-2015

Sunday, February 8, 2015

उमराव

उमराव
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तरंग प्रेक्षागृह जबलपुर में ,"आरम्भ" - मुंबई (ग्रुप)  ने कल एक सशक्त प्रस्तुति दी।  जिसने दर्शकों का मन मोह लिया। इस मंचन में बड़े भावनात्मक प्रश्न - प्रभावशाली संवादों और दृश्यों के द्वारा उठाये गये। लेखक इस प्रस्तुति "उमराव" में से दो प्रश्नों को अपने ह्रदय में बसा ले आया है। आज उन पर , लेख आपके समक्ष है -
पिंजड़ा
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जब अमीरन , अपहृत होती है और तवायफ को बेच दी जाती है। तब वह मासूम बच्ची होती है।  वहाँ (कोठे में) खाली पिंजड़ा देख कर सवाल करती है।  पिंजड़े में कोई नहीं है ? क्यों लटकाया हुआ है ? वहाँ की तवायफें जबाब देती हैं , पिंजड़े में हम सब हैं। अमीरन , जिसका नाम वहाँ उमराव कर दिया जाता है, इसका अर्थ तब नहीं समझ पाती है।
आजादी
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तवायफों तक भी तब चल रहे आजादी के आंदोलन की सुगबुगाहट पहुँचती है।  अब बड़ी और मशहूर हो चुकी उमराव , तवायफों के इस पिंजड़े का दर्द अनुभव करते हुये तवायफ को कोठे पर पहुँचे एक बागी से प्रश्न करती है। हिंदुस्तान को आजादी मिल जाने पर हम लड़कियों को कहीं भी ,कैसे भी और कभी भी जाने आने को आज़ाद होंगी ? बागी कहता है - इतनी जल्दी नहीं।  उमराव व्यग्र हो पूंछती है - क्या 100 वर्षों में ये आजादी हमें होगी ? बागी कहता है नहीं। उमराव -150 वर्षों में ? बागी - हाँ 150 वर्षों में ऐसी आज़ादी होगी।
तवायफों की प्रबुध्दता
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यों तो तवायफें अपढ़ होती रहीं हैं , किन्तु उनके दीवाने , नवाब और समाज के कुछ बुध्दिजीवी भी होते थे। उनकी संगत और स्वयं अपने शापित जीवन से उनके जेहन में नारी बदहाली पर इस तरह के प्रश्न उमड़ते दिखलाये गये हैं। आज़ाद हो जाने पर आज़ाद भारत में अपेक्षा जब दूसरे देशवासियों को कई अन्य थीं , तब एक तवायफ 'उमराव' , नारी के लिये आज़ादी को चिंतित बताई गयी है। इस तरह निस्वार्थ भी , कि यह आज़ादी 100 -150 वर्षों में भी मिले , जितना उसका जीवन नहीं है , तो भी संतोष करने लायक है। बेहद मार्मिक सवाल -अभिव्यक्ति और प्रभावशाली मंचन , जिन्होंने देखा , तालियों से हाल गुंजायमान कर दिया।
अब का पिंजड़ा
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पिंजड़े में होने की पीड़ा , तब तवायफ अनुभव करती थी , अब पिंजड़े जिसमें यों तो कोई नहीं दिखता लेकिन अनायास बहुत फँसते जा रहे हैं। पिंजडे का विस्तार देश तो क्या दुनिया में बढ़ गया है। पहले प्रलोभनों और पैसे से तवायफों की देह के सौदे होते थे। अब गिफ्ट, वेलेंटायन डे के फूल और रात्रि पार्टियों और उनमें ड्रिंक्स एवं भोजन के झाँसों में कुलीन पुरुष /नारी भी आसानी से देह स्तर पर संबंधों में लिप्त हो जाते हैं। अब के उन्नत कैमरे और मोबाइल के द्वारा बने वीडियो और तस्वीरों से बाद में , कई ब्लैकमेल होते/चलते हैं. तवायफें तो कीमत वसूल लेती थीं।  आज तो मामूली गिफ्ट पर देह सौंप दी जाती हैं। बाद में तो ब्लैकमेल किये जाने पर कुलीन नारियाँ ,खासा धन भी देने को बाध्य होती हैं । देह भी दी , धन भी दिया और जीवन अनमोलता की अनुभूति /उपलब्धि सब चली जाती है। हाय , यह पिंजड़ा , कोई नहीं दिखता इसमें लेकिन अनेकों छिँक गये हैं अब इसमें। ( जो गिफ्ट ,वेलेंटायन डे के फूल और रात्रि पार्टियों और उनमें ड्रिंक्स एवं भोजन के चलन में भी अपनी गरिमा बचाये रखने की बुध्दिमत्ता रखते हैं , कृपया अपने ऊपर न लें , इन प्रहारों को।  अग्रिम क्षमा)
आज की आज़ादी
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पहले तो यह देश गुलाम था , उसमें तवायफ -'उमराव', नारी आज़ादी को व्यग्र थी। आज आज़ादी के नाम पर पूरी दुनिया की अनेकों नारी गुलाम होते दिख रही है। नारी के वीभत्स वीडियो , उन पर वल्गैर स्टोरीज , उन पर कमेंट के घिनौना परिदृश्य आम हो गये हैं । क्या नारी आज़ाद हो रही है ? या पहले  से ज्यादा गुलाम?
-- राजेश जैन
08-02-2015

Friday, February 6, 2015

निश्छल बचपन

निश्छल बचपन
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आकर्षक ,गरिमा अब कैसे पीछे पड़ने वाले लड़कों से नितदिन छुटकारे को संघर्ष करती है ? सुदृढ़ से बताती है - कोई रास्ते में कमेंट करता है।  कोई शॉप में कुहनी मारने का प्रयास करता है। कोई बेशर्मी से प्रोपोज़ करता है। अब तो , मोबाइल पर एसएमएस और फेसबुक पर अभद्र संदेशों की इस कदर बाढ़ आई है कि कोफ़्त होती है। लगता है मोबाइल फेक दे और फेसबुक ब्लॉक कर दे।
सुदृढ़ कहता है - नहीं यह उपाय नहीं है , ऐसी कायरता से तो दुनिया छोड़ने की सोचने लगोगी।
गरिमा - तो फिर तरकीब बताओ कि कैसे? दुनिया इतनी मेरे लिए निश्छल ऐसी हो जाये।  हम लड़के और लड़कियाँ बचपन में बिना छेड़छाड़ के साथ खेल लेते थे। बेखटके , आबादी में तो क्या एक दूसरे के साथ रेलगाड़ी , बना खंडहर तक में चले जाते थे। कहते हुये गरिमा की आँखों के समक्ष बचपन की रेलगाड़ी का दृश्य छा जाता है।
सुदृढ़ को गरिमा ,निर्वात में निहारती दृष्टि के साथ एक परी सी अनुभव होती है। गरिमा बचपन में खोई और सुदृढ़ उसकी सुंदरता में खो जाता है .... 
--राजेश जैन
07-02-2015

Thursday, February 5, 2015

प्राकृतिक रूप से सुंदर

प्राकृतिक रूप से सुंदर
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आज की दृष्टि
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एक्जाम्पल के लिए लिखा जा रहा है-  आज मनुष्य , अपने सामने की ओर - 10 मी. ऊपर ज्ञान को , 9 मी.ऊपर धन को , 8 मी. ऊपर दैहिक भूख को , 7 मी. ऊपर उदरपूर्ती को , 6 मी. ऊपर परिवार हित को और इन सबके ऊपर (11 मी. पर ) अपने स्वार्थ को ,दृष्टि रख जीवन जी रहा है।  साफ है , ज्ञान उसके स्वार्थ के नीचे है। ज्ञान उसे इतना चाहिये जिससे धन अधिक से अधिक उपार्जित किया जा सके , जिसके माध्यम से पहले तन , फिर पेट की भूख मिटा ले। और फिर अपने परिवार ( पिता , माँ , पत्नी , भाई -बहन और बच्चों के ) हित सिध्द कर ले।  कुछ प्रबुध्द , 9 से 6 मी. के क्रम में असहमति व्यक्त कर सकते हैं।
दैहिक भूख
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पेट भरने की सामग्रियों की उपलब्धता अधिकाँश मनुष्य को सुलभ हो गई है। अब बहुत कम उम्र से पुरुष ( नारी को भी लिप्त कर रहा है ) तन की भूख को जीवन में प्रमुखता दे रहा है। और उदाहरण पढ़ने मिले हैं , कब्र में पैर लटका चुके वृध्द (कुछ) , वृद्धावस्था में भी अपने शयन कक्ष में एकाधिक कम उम्र की युवतियों को साथ चाहता है।कई जगह तो , वेश संत का धारण कर लिया , किन्तु (शोषण) सेवन नारी देह का करता है। संतवेश भी अपमानित कर रहा है।
धन
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धन से 8 मी. के नीचे वाले उसके जीवन अभिप्राय , सिध्द होते हैं इसलिये धन कमाने को काफी उच्च स्थान दे दिया है (9 मी.)  .
ज्ञान
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ज्ञान उसे इतना चाहिए जिससे 9 मी.के नीचे के सारे प्रयोजन पूरे कर लिए जा सकें इसलिये दृष्टि में 10 मी. की ऊँचाई पर ज्ञान का महत्व दिया हुआ है।
निज स्वार्थ
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निज स्वार्थ , सहज और मनुष्य स्वभाव (बल्कि प्राणी स्वभाव भी ) है , इसलिये दृष्टि में सर्वोपरि 11 मी.पर इसे रखा हुआ है। ज्ञान भी इस उद्देश्य की पूर्ती के लिए इसके अंतर्गत 10 मी.पर कर लिया है। जबकि मनुष्य जीवन में ज्ञान सर्वोच्च ऊँचाई पर होना चाहिये।
प्राकृतिक रूप से सुंदर
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पुरुष और नारी में अद्भुत प्राकृतिक सुंदरता विराजमान है। जन्म से वे कोमलता और निश्छल होने से सुंदर होते हैं। यौवन में , ज्ञान , शिष्टता और शारीरिक
गठन से सुंदरता निखारती है। और उम्र बढ़ने के साथ , मनुष्य जीवन में अनुभव और ज्ञान मिल कर उसे सुंदर बना देता है। ज्यादातर मनुष्य वृध्द होने पर दया - करुणा और त्याग धारण कर समाज रचना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते आये हैं। कुछ इनसे भी ऊपर बढ़कर संत और समाजसेवी हो जाया करते हैं। इस परोपकारी भावना में चिंतनीय/विचारणीय कमी आई है। जो मानवता और नारी सम्मान को भी कम कर रही है।
कृत्रिम साधनों की अधिकता
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नारी -पुरुष (नारी -नारी और पुरुष -पुरुष भी ) परस्पर संबंध में भी प्राकृतिक सुंदरता विध्यमान है। ऊपर वर्णित अनुसार मनुष्य स्वयं भी प्राकृतिक रूप से सुंदर है। इसलिए कृत्रिम साधनों के अत्यधिक उपयोग की आवश्यकता नहीं होती है। धन का व्यय ज्यादा करना , और इस कारण से धन उपार्जन में अधिक जीवन समय देना , जीवन व्यर्थ करना है। कृत्रिमता की अधिकता बिना हम अधिक सुंदर और सार्थक जीवन जी सकते हैं। अपना यथोचित मान सुनिश्चित करते हुए एक सुंदर समाज , सुंदर राष्ट्र और सुंदर विश्व वातावरण की रचना कर सकते हैं।
-- राजेश जैन
06-02-2015
(आज का लेख , लेखक के आदरणीय "फादर इन लॉ " का आज जन्मदिन होने पर शुभकामनाओं सहित उन्हें समर्पित है )

Wednesday, February 4, 2015

I Love You

I Love You
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सर्वाधिक प्रयुक्त
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जिसे लिखना भी नहीं आता , जिनकी मातृभाषा इंग्लिश नहीं वे भी , और 4 -5 वर्ष के बच्चे से लेकर 85 -90 वर्ष के बूढ़े तक इस वाक्य का प्रयोग कर रहे हैं। आश्चर्य नहीं की अफ्रीकन फारेस्ट में कुछ जानवर भी ये सेंटेंस बोलने लग गए हों। तोते तो बोल ही रहे होंगे।
इनबॉक्स
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गर्ल्स इनबॉक्स में तो सैकड़ों द्वारा , हजारों बार , और सेल फोन पर sms द्वारा भी हजारों बार यह संदेश भेजा गया होगा। जो सुंदर और धनी होंगे , उन्हें अच्छा लगे या नहीं इससे भी ज्यादा लोगों ने इससे भी ज्यादा बार भेजा या यह कहा होगा।
झूठ
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कई बार जब यह कहा /लिखा गया है , तो हर बार यह झूठ तो नहीं होता। किन्तु समय के साथ यह झूठ बन जाता है। अपोजिट जेंडर के बीच एक सहज आकर्षण को 'लव' का नाम दिया जाने लगा है। जब ज्यादा आकर्षक कोई दूसरा मिल जाता है या समय निकलता है , तो एक के प्रति आकर्षण नहीं रह जाता है तब "I Love You" झूठ बन जाता है।
झाँसा
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झूठी कसमों और प्रलोभनों से कई किशोरियों /युवतियों को इस वाक्य के साथ इतना तक फाँस लिया जाता है कि वे घर-परिवार तक छोड़ चली जाती हैं। कई दैहिक शोषण की शिकार होती हैं। कुछ दुर्भाग्यशाली कॉलगर्ल /बारगर्ल बनने को विवश होती हैं। कुछ दुर्भाग्यशाली आत्महत्या करती हैं। कुछ की हत्या तक हो जाती है। इस वाक्य के झाँसों में कई अनमैच विवाह हो जाते हैं , जो साल -दो साल में टूट जाते हैं।
पढाई
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को -एड में पढ़ने वाले कुछ बच्चे शायद अब प्राइमरी से ही आपस में यह सेंटेंस प्रयोग करने लगे हैं। इस में अगर उलझे तो 100 % स्कोर कर सकने वाला बच्चा 60 -65 % तक स्कोर पर सिमट जाता है। IIT की योग्यता वाला , साधारण प्राइवेट कॉलेज तक पहुँच पाता है। और IAS /IPS आदि की योग्यता वाला , ऑपरेटर बना रह जाता है।
क्या है प्यार ?
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जिस सुंदर अनुभूति का नाम है , वास्तव में उसकी अभिव्यक्ति के लिये "I Love You" कहने /लिखने की अनिवार्यता नहीं होती। यह मूक प्राणियों तक में , बॉडी लैंग्वेज के द्वारा प्रदर्शित कर ली जाती है। दैहिक संबंध भी "I Love You" का शुध्द प्रयोजन नहीं होता। "I Love You" तो वह अनुभूति है , जिसमें अपेक्षा रहित (या बहुत कम अपेक्षा के साथ ) कोई एक ,दूसरे के लिए प्यार रखता है।  उसकी प्रगति उसकी ख़ुशी के लिये कार्य करता है। उसकी उन्नति और प्रसन्नता में अपने लिए प्रसन्नता अनुभव करता है। प्यार प्रेरणा है।  प्यार प्रगति है।  प्यार प्रवाह है। "दैहिक संबंध" अपेक्षा में सिमट जाये वह प्यार नहीं है। जीवन को नरक बना दे वह प्यार नहीं है। प्यार वह प्रसन्नता भी है , जो अपने प्यार को किसी और सहारे के साथ भी पनपते देखने पर मिलती है।
I Love You
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यह वाक्य धोखा सा बन रहा है।  सच्चे प्यार में "I Love You" प्रयोग न किया जाये। स्मरण रखें - प्यार बनाता है , जीवन उत्कर्ष पर पहुँचाता है , जीवन भर कायम रहता है और सम्मान दिलवाता है। जहाँ लेने का अभिप्राय छिपा होता है , वहाँ प्यार की शुध्दता शंकित हो जाती है। "I Love You" कहना -सुनना इसलिए सत्य ही हो , सम्भावना कम ही होती है।
प्यार प्रवाह जीवन बाद भी
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जीवन बाद भी प्रवाहित होता है वह प्यार है। पूर्वजों के लगाये फलदार /छायादार पेड़ प्यार की महिमा कहते हैं। प्यार पावन अनुभूति भी है , जिसके फलस्वरूप मनुष्य पाषाण काल की विपरीत परस्थितियों से आज की जीवन उन्नति तक की यात्रा कर सका है।
जीवन से करें प्यार
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प्यार से अपना जीवन निर्माण करें।  प्यार के छल से जीवन शापित न कर लें। जो छल जाए वह प्यार नहीं।  छलियों के झाँसे में आना छलियों की धूर्तता और अपनी मूर्खता है।  

--राजेश जैन
05-02-2015

Tuesday, February 3, 2015

भारतीय सिने इंडस्ट्री - एक आलोचक दृष्टि -2

भारतीय सिने इंडस्ट्री - एक आलोचक दृष्टि -2
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जबलपुर में
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हमारे , जबलपुर में , विशेषकर उन शॉप पर जहाँ , लेडीस सामग्री और परिधान मिलते हैं , अनुकरणीय परम्परा देखने मिलती है। वहाँ के सेल्समेन और मालिक - सामग्री लेने पहुँची नारियों से मधुरता से दीदी संबोधन से बात करते हैं। साफ है -प्रत्युत्तर में भैया सुनना भी उन्हें पसंद होता है।
यह नारी सम्मान है ?
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टीवी मंच पर ,एक 63 वर्षीय फ़िल्मी सितारे को एक लगभग 65-70 वर्षीया महिला ने भैय्या संबोधित किया , तो उस सितारे को नागवार लगा।  महिला तो पहली बार ऐसे मंच पर थी , भावातिरेक में असहज थी , स्टार जिसे ऐसे मंच मिलते रहते हैं , ने उसे उपहास बनाया और बैठे अपने फैंस को बहुत हँसाया। क्या -यह नारी सम्मान है ? क्या अनुकरणीय है?
फ़िल्मी कॉलेज
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फिल्म में कॉलेज दृश्य फिल्माये जाते हैं , 35 से 55 वर्ष का स्टार ( और एक्ट्रेस ) वहाँ के स्टूडेंट होते हैं। दृश्य ऐसे होते हैं , ज्यों कॉलेज , नर -नारी के प्रेमालाप की शिक्षा के लिये होते हैं ।उनमें प्रेम त्रिकोण या बहुकोणीय होता है। स्त्री -पुरुष बीच बहन -भाई का रिश्ता तो कॉलेज में हो ही नहीं सकता। क्लासेज में प्रोफेसर (चाहे पुरुष या नारी ) उपहास का पात्र होता है।
यही सीख लिया - बच्चों /युवाओं ने
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कॉलेज पढ़ने जायेंगे तो गर्लफ्रेंड मिलेगीं , बॉयफ्रेंड मिलेगा। पेरेंट्स जो बीस -बीस साल पुराने वस्त्र पहन कर , अपने जरूरत घटा कर , बच्चों के फीस का , परिधानों का और बाइक -मोबाइल्स के पूर्ती करते हैं , इस ख्याल से बेटा /बेटी पढ़ेगा तो जीवन में खुश रहेगा। फ़िल्मी शिक्षा ने वहां उसके लिये पढ़ना -लिखना सेकंडरी कर दिया होता है। प्राइमरी -मौज -मजा होता है। किसी ने भैय्या या बहन कह दिया तो यों लगता है , जैसे बिच्छू का डंक लग गया हो ।
गर्लफ्रेंड -बॉयफ्रेंड
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क्या पढ़ा ? क्या बने ? पेरेंट्स को ख़ुशी मिल सकी ? इन प्रश्नों को अलग करते हैं।  बाद में विवाह हुआ , किसी के पति या पत्नी हुए। निहित बॉयफ्रेंड , पति में होता है। गर्लफ्रेंड स्वयं पत्नी में विध्यमान होती है। लेकिन वर्षों गर्लफ्रेंड -बॉयफ्रेंड ढूंढने की आदी दृष्टि इस कदर दोषपूर्ण हो जाती है कि पति /पत्नी में ये दिखते नहीं।

समाज किधर पहुँच गया ?
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डिवोर्स बढ़ गए समाज में , किसी को कुछ मिल सका अथवा नहीं , समाज किधर पहुँच गया ? कोई मतलब नहीं। लेकिन फ़िल्मी लोग स्टार हैं ,धनवाले हैं ,सम्मानीय हैं , पद्म विभूषण हैं।  भारत रत्न भी होंगे , नोबल भी मिल जाएगा , गिनीज बुक में भी होंगे। फिल्म देखने वाले कहाँ होंगे ? जीवन के अंधेरों में भटक गये होंगे।
-- राजेश जैन
 04-02-2015

Monday, February 2, 2015

भारतीय सिने इंडस्ट्री - एक आलोचक दृष्टि -1

भारतीय सिने इंडस्ट्री - एक आलोचक दृष्टि  -1
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ऊपर से नीचे उतरेंगे ?
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दो प्लेटफॉर्म्स हैं , एक नीचा , एक ऊँचा। ऊँचे पर ज्यादा अच्छाई हैं , नीचे पर बुराइयाँ ज्यादा हैं। हम ऊँचे पर हैं, नीचे वालों से क्या व्यवहार रखेंगे ? हम उन्हें सहारा देकर ऊपर लायेंगे या उनकी बुराइयों में मिल जाने को स्वयं ऊपर से नीचे उतरेंगे ?

अपने, हम संस्कार खोते ?
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सिनेमा आया , आरम्भ में वे लोग ज्यादा आये , जिनकी सामाजिक पृष्ठभूमि हीन थी।  जो समाज में सम्मानीय नहीं थे। लोकप्रियता और आय की सुलभता ने बाद में , संभ्रांतों को भी इसमें आकर्षित किया, वे सिने इंडस्ट्री में सम्मिलित हुये।  वहाँ चित्र बना , उच्च संस्कारी का हीन संस्कारों से सानिध्य का। क्या -अपेक्षित था ? उच्च संस्कारी अपनी संगत में उन्हें सुधारते या निम्न के साथ मिल अपने, संस्कार खोते ?

जो न होना चाहिए था, वह क्या हुआ यहाँ ?
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उच्च संस्कारों में उन्हें प्रोन्नत करने की जगह , निम्न के व्यसन और बुराइयाँ ग्रहण की गईं। ऊँचे पर खींच ले जाने का पुरुषार्थ न कर , सरलता से नीचे उतरने का विकल्प चुन लिया। कम चिंता की बात होती अगर इतना सिने इंडस्ट्री वालों के बीच ही घटता रहता। लेकिन इस घटिया ऐतिहासिक घटना के परिणाम इसलिए घातक रहे , क्योंकि यहाँ की प्रस्तुतियों (फिल्मों) को समाज में अविश्वसनीय लोकप्रियता मिली।  समाज के दैनिक व्यवहार , रीति -रिवाज घटिया फिल्मों से दुष्प्रभावित हुए। उत्कृष्ट साहित्यिक और साँस्कृतिक सृजन /रचनायें हाशिये पर चले गये।

भाषा में अश्लीलता और गालियाँ
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मनोरंजन - और हास्य शिष्ट -शालीन तरीकों से प्रस्तुत किया जा सकता था। इन्होनें फ़ूहड़ ,व्दिव -अर्थी संवादों और दृश्यों से इन्हें समाज /दर्शक के सम्मुख परोसा। समाज के निचले तबके की भाषा और रंगढंग को अच्छी दिशा दे सकते थे। फिल्मों ने शिष्ट व्यक्तियों की भाषा में अश्लीलता और गालियाँ समाविष्ट कर दी। द्रुव्यसनों को फैशन की तरह प्रस्तुत कर दिया।

दिमाग नहीं था क्या ?
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बचाव में कह सकते हैं , हमारे कहने पर सब क्यों कूद गये कुओं में ? स्वयं का चरित्र और दिमाग नहीं था क्या ?
देखने वाला बच्चा /किशोरवय और युवा भी था , जिसका चरित्र निर्माण होना चल रहा था। दर्शक गरीब -अपढ़ भी था , परिश्रम से चूर उनका दिमाग , गहन चिंतन उचित /अनुचित के भेद को जानने को पर्याप्त सक्रिय न रह पाता था ।

देश और समाज बिगाड़ के रख दिया
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बहुत फ़िल्मी नायक -नायिकायें सो चुकी चिर निद्रा में , समाज उत्कृष्ट परम्पराओं और उच्च सँस्कारो को लीलने का कलंक अपनी छाती पर रखके। जो वर्तमान हैं वो सुधर जायें।

दूध और यौवन
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दूध आँच पर गर्म करने पर एक अवस्था में उफनने को होता है। तब आँच कम कर उसके उफान पर नियंत्रण किया जाता है। ऐसा न करने पर उफनकर बाहर गिर कर बर्तन , गैस और प्लेटफॉर्म ख़राब करता है।  ठीक उस भाँति , सभी की अवस्था आती है , जब यौवन का उफान उठता है। यह उफान नियंत्रित न किया जाये तो स्वयं का भविष्य , परिवार की प्रतिष्ठा और समाज को ख़राब करता है। नियंत्रण को सँस्कार और संस्कृति भी कहा जा सकता है।

अधेड़ भी बौराये
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फिल्मों ने इस उफान को और आँच दी है।  यौवन उफ़नकर समाज को ख़राब करता है। इसकी परिणीति , नारी से  अश्लील कमेंट , गंदी दृष्टि , छेड़छाड़  और कहीं रेप के रूप में देखने में आते हैं। पाश्चात्य विश्व की जिस बात को लेखक प्रहार करता आया है , उसमें पोर्नोग्राफी प्रमुख है।  इसने यौवन को ऐसे उफनाया हुआ है कि पूरा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया गन्दा हो गया है। पोर्नोग्राफी और फिल्मों की आँच से अब युवा तो क्या अधेड़ भी बौराये हुए हैं , जहाँ देखो नारी अपमानित की जा रही है।
अपने 50 -60 वर्ष के मौज मजे के लिए , क्यों पूरा समाज परिदृश्य और राष्ट्र -जीवन का अहित करते हो ?

विष बेल स्वयं मुरझायेगी
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इनका साथ कई औरों ने दिया यद्यपि वे भी दोषी गिनाये जा सकते हैं , किन्तु लेखक का प्रहार बुराई की जड़ पर है , जड़ मिटेगी विष बेल स्वयं मुरझायेगी।
--राजेश जैन
03-02-2015

Sunday, February 1, 2015

नारी का पुरुष पर अत्याचार

नारी का पुरुष पर अत्याचार
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500 में से एक नारी रेप का केस करती हैं , जिनके वन थर्ड में झूठे प्रकरण निकलते हैं , या 100 में एक दहेज (498 a ) का केस कोर्ट में जाता है उसमें से 78 % मामले गलत होते हैं इस आधार पर यह नहीं माना जा सकता कि नारी , पुरुषों पर आमतौर से अत्याचार करने लगी है।
वह समाज में नारी के एक परसेंट का लगभग आधा होता है।  अर्थात 200 में से एक नारी , पुरुष पर झूठे आरोप करती है। जो पुरुषों के नारी पर के अत्याचारों की तुलना में नेग्लिजिबल (नगण्य) है  .भारतीय समाज में नारी अत्याचारिणी नहीं है।  परिस्थितिवश कभी झूठ का सहारा लेने को विवश है।
--राजेश जैन
02-02-2015

ऐसे जीते ,जाते हैं पापा


ऐसे जीते ,जाते हैं पापा
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आपको ऐसे चले जाना था
लौट फिर कभी न आना था
स्वयं के लिये जी लेते कभी
हमारे लिये न जी जाना था

हमारा हँसना पसंद इतना था
हममें सुख आपका इतना था
तो कभी लौट न आने के लिए
जाके हमें न रुलाना इतना था

हममें जीवन मानते इतना था
जीवन मिलना छोटा इतना था
अपनी निजी खुशियों के लिये
भी जीके आपको चले जाना था

आप यों चले गये पापा
मेरे अच्छे चले गये पापा
क्यों ,कहाँ चले गये पापा ?
हमें आप रुलाके गये पापा

--राजेश जैन
01-02-2015