Wednesday, October 30, 2019

तुम्हें पैदा करना भूल थी मेरी ...

तुम्हें पैदा करना भूल थी मेरी ...

दृश्य 1 - 
63 वर्षीय अमृतलाल की दाढ़ी बड़ी हुई है, उनकी गहराई में धँसी आँखों में पीड़ा और पश्चाताप प्रगट है, वे शैय्या पर पैर सिकोड़े लेटे हैं. पास में उनकी पत्नी रजनी बैठी हैं और 27 वर्षीय पुत्र अमरीश उनके सिर पर हाथ फिरा रहा है। अभी दवाई का असर है जिससे अमृतलाल कुछ चेतन से हैं। उनका, पुत्र से वार्तालाप हो रहा है अमृतलाल के स्वर में वेदना और पछतावा है, पुत्र के प्रत्युत्तर में स्वर ढाँढस देने का है और पत्नी श्रोता हैं तथा उनकी आँखें अश्रु पूर्ण हैं -
अमृतलाल : बेटा, मैं तुम्हारी शादी नहीं देख सकूँगा। 
 अमरीश : पिताजी, आज देश में 100 लड़कों पर, 86 लड़कियाँ ही तो हैं, 14 लड़कों को तो कुँवारा ही रहना है।    
अमृतलाल : नहीं! बेटा तुम्हारी एक  बहन, शादी नहीं करके न जाने मुंबई में क्या करती है, और एक ने भागकर गैर कौम में शादी की है, समाज में ऐसा फैलने से बदनामी के कारण, कोई हमारे घर में रूचि नहीं लेता है।   
अमरीश : नहीं पिताजी, इसका कारण मैं पकौड़े तलता हूँ, यह है। 
अमृतलाल : नहीं अमरीश, सब मेरे खराब कर्म और बेअक्ली का परिणाम है, तुम्हारी दादी की बातों में आया था और अपनी परिस्थिति के विपरीत हमने चार संतान पैदा कर लीं थीं।  
अमरीश : मगर पिताजी, माँ तो सबसे बड़ी हितैषी होती है, दादी की इक्छा का तो सम्मान तो आप का कर्तव्य था, ना!
अमृतलाल : सही है, मगर जिन बातों का विज़न नहीं होता माँ को, उनमें शुभेक्छु होकर भी वे हमारी भलाई नहीं कर पातीं हैं। अपढ़ होने से उन्हें ज्ञात नहीं था कि यूँ अधिक संतान पैदा करने से, हमारा देश जो एरिया में सातवाँ होकर दुनिया में आबादी में सबमें बड़ा देश हो जाएगा।   
अमरीश : मगर पिताजी, तब तो चार से भी ज्यादा संतान वाले परिवार हो रहे थे, ना?
अमृतलाल : होते थे मगर संपन्न परिवारों में एक , दो बच्चे पर सीमित करने की चेतना आ चुकी थी। तुम्हारी तीन बहनों के बाद मैंने और नहीं की सोच रखी थी,  तीसरी को आठ वर्ष हो गए थे, दादी कहने लगी, कुलदीपक नहीं है घर में।       
अमरीश : सही तो कहती थी वे, पिताजी!
अमृतलाल : अमरीश हमारा कौनसा राज वंश था जिसकी कुल परंपरा चलाये रखनी थी। दादा के पूर्व किसी पूर्वज का मैं नाम तक नहीं जानता। कौन से कुल का दीपक मैं हूँ, कोई अता पता नहीं है। कुलदीपक वाले तर्क पर मैंने चार संतान संतानें कीं. दादी और तुम्हारी माँ के भरण पोषण में मैं, क्लर्क ज्यादा कमाई करने की दृष्टि से भ्रष्टाचार में लिप्त और व्यस्त रहा. बच्चों के मनोविज्ञान और सँस्कारों का, थका हुआ घर लौटने से ध्यान नहीं रख सका था। तुम्हारी बहनों में इतनी समझ देने में मैं विफल रहा। वे ख़राब लोगों के फ़ुसलावों में आईं और उनके कारण तुम्हारे लिए जीवन चुनौती बढ़ गईं। इतने बच्चे और सच में, तुम्हें पैदा करना भूल थी मेरी. 
अमरीश : (बहनों के बारे में उनके कहे को अनसुना करते हुए) मगर पिताजी, सरकार वेतन कम देती थी, भ्रष्टाचार तो आपकी मजबूरी थी।
अमृतलाल : नहीं बेटे, सरकार पर बोझ तो हम ही बढ़ा रहे थे। संसाधनों और संस्कृति से लूट लिए गए इस देश के प्रति अपने कर्तव्य का बोध हमें होना चाहिए था। जिसमें हम विफल रहे हैं। मैं, यदि कम और पढ़ी लिखी सँस्कारी संतान देता तो परिवार को खुश एवं संपन्न तो रखता ही देश की उन्नति हेतु भी खुद को सहयोगी मानते हुए आज संतुष्ट भी होता। 
अमरीश : दुःख न करो पिताजी, इस अपेक्षा से असफल रहने वाले एक हमीं अकेले तो नहीं! 
अमृतलाल : बेटे, अगर हम कम बच्चों के छोटे परिवारों की अच्छाई वाली नकल नहीं कर रहे थे। तब भी ठीक यह होता कि हम बुराई की नकल तो ना करते। 
कहते हुए अमृतलाल रोने लगे थे रजनी अपने आँचल से उनके अश्रु पोंछ रही थीं। अमृतलाल के रोते हुए कहने से स्वर अस्पष्ट सा होने लगा था वे कह रहे थे - रजनी तुम और , बेटे तुम,  सब मुझे क्षमा करना, एक पति और एक बाप होने की पात्रता अर्जित किये बिना मैंने यूँ बच्चे पैदा कर दिए। तुम सभी को तो सँस्कार, शिक्षा और ठीकठाक आजीविका के अभाव तो दिए ही मैंने, साथ ही देश की समस्याओं को बढ़ा देने का अपराधी भी मैं हुआ हूँ। 
फिर उन्हें खाँसी का दौरा आया वे चुप हो गए अमरीश उनके सीने और पीठ पर हल्की मालिश करने लगा, रजनी मुहँ छुपा सिसकने लगी। 
दृश्य 2 -
तीन दिन बाद अमरीश रोते हुए अमृतलाल की अर्थी को कंधा देते हुए उनकी सीख का स्मरण कर रहा था. अमृतलाल के उठाये 'पिता होने की पात्रता' प्रश्न पर विचार करते हुए अन्य लोगों द्वारा तय किये जाए रहे श्मशान भूमि की ओर के मार्ग पर अमरीश के कदम अनायास उठ रहे थे।  उसके मन में आया 'कदाचित पिता होने की पात्रता वह है जिसमें अभिभावक अपने पाल्य में राष्ट्र और समाज निर्माता होने की भावना देने की योग्यता रखते हैं और उनके सही पालन पोषण से एक मजदूर पुत्र भी ऐसा हो सकता है जो गाली गलौज की भाषा के स्थान पर शालीन भाषा प्रयुक्त करते हुए अपने कार्य ईमानदारी पूर्वक करता है'.   तथा -
"पात्रता के बिना पति और पिता होना जीवन की अंतिम घड़ियों में ग्लानि बोध का कारण होता है"।   
--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
31.10.2019





Monday, October 28, 2019

दीपावली का दूसरा दिन ....

दीपावली का दूसरा दिन ....

हॉस्टल में मानसी की फ्रेंड्स ने हँसी-मजाक और शरारत में, छुपाये मोबाइल के माध्यम से वह वीडियो बनाया था, मानसी का जिसमें वॉशरूम में नहाते और कपड़े पहनते हुए शरीर का ऊपरी भाग झलक रहा था। हँसी ठिठोली के बाद मानसी की नाराजी दिखाने पर जिन जिन के पास वीडियो था, उनके द्वारा वह डिलीट कर दिया गया था। मानसी इसे विस्मृत कर चुकी थी, ऐसे में लगभग डेढ़ वर्ष बाद एक अननोन न. से उसके व्हाट्सएप पर यह वीडियो आया था। जिसे देख वह आग बबूला हो गई थी। ट्रू कॉलर में सर्च करने पर वीडियो करने वाले का नाम 'अरिहंत जैन' मालूम पड़ा था। व्हाट्सएप रिप्लाईज् में उसे ज्ञात हुआ था कि अरिहंत उसी के कॉलेज में उसका एक साल सीनियर स्टूडेंट था। फिर ज्यादा पूछताछ किये बिना अगले दिन वह अरिहंत से मिली थी, अरिहंत ने बताया था कि यह वीडियो उसे एक फेक आईडी पर फेसबुक में लगा मिला था। उसने वहाँ से इसे रिपोर्ट कर आईडी डीएक्टिवेट करवा दी थी। उसे यह दिखाई दिया था तो चेहरा परिचित लगने पर उसने मानसी का नाम और न. पता कर उसे सेंड किया था। वीडियो मानसी को सेंड कर खुद अपने पास से भी वह डिलीट कर चुका है।  

यह सब करने के पीछे उसकी भावना, मानसी को वीडियो के अस्तित्व से अवगत कराना था। मानसी ने तब यह वीडियो कैसे बना था, के संबंध में सब बताया था। अरिहंत ने तभी मानसी को यह कहा था कि अगर यह वीडियो कभी कोई और, उसके पास लाये और कुछ गलत के लिए दबाव बनाये तो उसके प्रभाव में उसे आना नहीं चाहिए। वीडियो में ऐसा कोई गलत नहीं है, और मूवीज आदि में तो फिल्माया जाने वाले यह एक साधारण सा ही दृश्य है। मानसी ने इस सब पर कृतज्ञता ज्ञापित की थी और उस दिन की उनकी भेंट खत्म हुई थी। 

उस दिन मगर भला सा लगा, ये 'अरिहंत', मानसी को अपने नाम के विपरीत एक दुष्ट व्यक्ति प्रतीत हुआ था जब मानसी ने उससे विवाह करने कहा और अरिहंत ने यह कह कर इंकार किया था कि मानसी की जाति, जैन से हीन है और आर्थिक रूप से भी मानसी का परिवार कमजोर है। मानसी को अरिहंत से यह सब सुनना इसलिए भी नागवार लगा था कि वीडियो वाले प्रकरण के बाद में उनमें अफेयर हुआ था और इतना कि चार बार उनमें संबंध भी स्थापित हुए थे। अरिहंत के इंकार से मानसी का दिल टूटा था। उसने अभिशाप सा देते हुए पूछा था कि 

"मुझसे संबंध की हद तक पहुँचने के बाद मुझे इंकार करने वाले, तुम्हें तुम्हारी ऐसी पत्नी मिलेगी जिसके पूर्व में संबंध किसी और से रहे हैं तो तुम कैसा अनुभव करोगे?" ,

तुम मुझे ऐसा करके छोड़ रहे हो कि जिससे मैं ऐसे हर मौके पर अपने पति के सामने आत्मग्लानि अनुभव करुँगी, जब जब विवाह पूर्व के संबंधों की ऐसी घटनायें टीवी, अखबार या पास पड़ोस में हमें सामने देखने मिलेंगी। 

अरिहंत ने बेपरवाही से कंधे उचकाए थे, फिर लगभग दो वर्ष हुए थे, उनमें कोई मुलाक़ात या बात नहीं हुई थी।  

इधर इस बीच अरिहंत जॉब में सेटल्ड हुआ था और घर वालों ने उनके परिचितों में से एक परिवार की बेटी, अनु से विवाह तय किया था। इसकी घोषणा के पूर्व अरिहंत ने अनु से एकांत में मुलाकात की थी। जिसमें अनु से साफगोई से यह बताया था कि विवाह बाद वह अरिहंत से संबंध में ईमानदार रहेगी, लेकिन अभी पूर्ण शीलवान वह नहीं रही थी। नासमझी की उम्र में एक परिचित परिवार के लड़के ने अनचाहे उसका दैहिक शोषण किया था। यह बताते हुए अनु ने अरिहंत से पूछा था, क्या यह जानकर अरिहंत उससे विवाह कर सकेगा? अरिहंत, शब्दहीन हो गया था. बात को यह कह कर टाल दिया था कि विचार करके जबाब दे सकेगा।   

इस घटना ने उसे मानसी का स्मरण करा दिया था। हृदय पर बोझ सा अनुभव होने पर उस रात उसने अपनी मम्मी अर्चना से मानसी और अनु को लेकर अपना सभी सच बताया था। माँ से ऐसी स्थिति में मार्गदर्शन देने कहा था। अर्चना ने कहा था 

"बेटे, मुझे इन दोनों लड़कियों के प्रति क्षमा है, मुझे बहू के रूप में दोनों में से कोई भी मंजूर रहेगी। हालाँकि अनु, जैन परिवार से है और उसके साथ हुआ हादसा उसकी नासमझी की उम्र का है. फिर भी मेरे परामर्श में तुम्हें मानसी से विवाह करना चाहिए। जिसके साथ तुम संबंधों की हद तक गए हो, ऐसी लड़की को धोखा अनुचित है. उस बेचारी का सोचो जो तुम्हारे से प्यार में ऐसी हुई है कि आजीवन अपने पति के समक्ष ग्लानिबोध में रहेगी। ", पता करो अगर मानसी का विवाह नहीं हुआ हो तो हम उसके मम्मी-पापा से उसका हाथ तुम्हारे लिए माँगेंगे। 

आज दीपावली का दूसरा दिन है. दीपावली में मानसी को जो उमंग-उल्लास अनुभव नहीं हुआ था, वह उसे आज अनुभव हो रहे थे। उसके मन में रँग बिरंगी फुलझड़ियाँ, अनार और रॉकेट की आतिशबाजी चल निकलीं थीं, जब अरिहंत सहित उसके पापा-मम्मी ने उसके घर आकर उसके पेरेंट्स से मानसी के विवाह का प्रस्ताव रखा था .....

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
28.10.2019

 



Friday, October 25, 2019

बेबसी की दीपावली

बेबसी की दीपावली ..

अकोला जाने के लिए सुरभि, पुणे स्टेशन पर देर से पहुँची थी. वह भाग दौड़ कर सेकंड एसी के कोच में किसी तरह चढ़ ही पाई थी कि ट्रेन चल पड़ी थी. पहले उसने अपनी बर्थ पर सामान व्यवस्थित किया था और बैठ कर अपनी श्वाँस नियंत्रित कर रही थी। तब उसे ध्यान हो आया कि अपने कोच तक पहुँचने की जल्दी में उसने एस-2 कोच में सवार होते जिसे देखा था शायद वह सुशील ही था। उसका विचार आते ही उसे 10-12 वर्ष पूर्व का समय याद आ गया।
सुशील के मेधावी होने से वह, उससे इम्प्रेस रहती थी। पढ़ाई में सहयोग लेने के विचार से एक बार वह बात करने के लिए जब उससे मिली थी तो सुशील ने बदनीयत से उसे छुआ था। सुरभि ने उसकी हरकत का प्रतिकार किया था और बिना आगे बात किये वह लौट आई थी। सुरभि ने तत्पश्चात उससे किसी अपरिचित जैसी दूरी बना ली थी और इस घटना का जिक्र किसी से भी नहीं किया था। बाद में सुशील के कुछ लड़कियों से संबंध के विषय में और ऐसे उसका चरित्र ठीक नहीं होने के किस्से, कॉलेज में चर्चा के विषय रहे थे। इस सबके बावजूद जब कैंपस  का वक़्त आया था तब सुरभि का प्लेसमेंट उसकी ड्रीम कंपनी में नहीं हो सका था, लेकिन आशा अनुरूप सुशील इनफ़ोसिस प्लेसमेंट में सफल हुआ था।
ऐसे में इनफ़ोसिस जैसी कंपनी में काम करने वाला सुशील, स्लीपर क्लास में क्यूँ ट्रेवल करेगा भला! उसे प्रतीत हुआ कि यह भ्रम ही होगा। उस व्यक्ति का गेटअप भी कुछ साधारण सा ही था अतः उसे यह अपना भ्रम ही लगा.
तब भी सुरभि जिज्ञासा नहीं रोक सकी थी और सहयात्री, ऑन्टी को अगले स्टेशन पर लौट आने का बताते हुए वह दौण्ड जँक्शन में उतर कर एस-2 कोच में चढ़ी थी। ढूँढ़ते हुए उसे सीट न. 33 पर वह व्यक्ति बैठा दिखा था। सुरभि उसके पास जा खड़ी हुई थी और उसे निहारने लगी थी, उस व्यक्ति ने उसे यूँ देखते महसूस किया तो उस पर गौर किया फिर अचरज से कह उठा, सुरभि? तब सुरभि का संदेह सच साबित हुआ। आजू-बाजू भीड़ होने से वह और सुशील दोनों साथ कोच के दरवाजे के पास खाली जगह पर आ गए थे। । कुछ बातें उनमें हँसी-ख़ुशी की हुई थी। तब उसके यूँ अव्यवस्थित से दिखने पर सुरभि ने प्रश्न किया था. प्रत्युत्तर में गमगीन हो सुशील ने जो बताया था वह यों था -
'बी टेक पूर्ण करने के उपरांत उस साल उसने इंफोसिस ज्वाइन किया था। अगले चार वर्षों में उसे दो प्रमोशन भी मिले थे। तब उसकी, अपनी जूनियर कुलीग रेखा से लव मैरिज हुई थी। हम बमुश्किल छह महीने साथ रहे थे कि उसके अन्य लोगों से संबंधों की जानकारी होने पर मैं अलग रहने लगा था। और रेखा को डिवोर्स का नोटिस दिया था। जिसके जबाब में रेखा ने मुझ पर और मेरे पेरेंट्स पर दहेज और गृह हिंसा संबंधी झूठे आरोप गढ़े थे। जिसके कारण मुझे लगभग साल भर जेल में भी रहना पड़ा। मैं, नौकरी से भी निकाल दिया गया और केस में हुए खर्चे और सेट्लमेंट के लिए पचास लाख रूपये देने से मेरी जोड़ी गई पूरी धन राशि भी खत्म हो गई। अब फिर रेप्युटेटेड तो नहीं मगर एक कंपनी में फिर जॉब मिला है, जिससे गुजर चल रही है। दीवाली है और माँ की तबियत कुछ ठीक नहीं इसलिए तीन दिनों के लिए अकोला जा रहा हूँ।
सुरभि ने उससे इस सब पर सहानुभूति जताई थी। सुशील को अपना कार्ड देते हुए यह भी कहा था कि किसी प्रकार की सहायता की जरूरत हो तो मुझे याद करना. तब तक अहमदनगर आ गया था। सुरभि ने विदा ली थी और अपनी बर्थ पर लौटी थी। फिर खाना खाया था और लेट गई थी. उस समय उसके मन में सवाल था -
"सुशील खुद जिस चरित्र का था वैसे चरित्र को लेकर उसका अपनी पत्नी रेखा पर प्रश्न खड़ा करना क्या तर्क संगत था"?
उसे साथ ही यह भी विचार आया कि - "उन दिनों अपने टैलेंट और स्मार्टनेस के सम्मोहन में लेकर कॉलेज की लड़कियों के साथ अय्याशी करते हुए सुशील को अपनी ज़िंदगी का हर दिन दिवाली प्रतीत होता रहा होगा, तब उसने ऐसी कल्पना भी न की होगी कि कभी वह ज़िंदगी में ऐसी बेबसी की दीपावली भी देखेगा"।
यह कदाचित समय प्रदत्त न्याय था, सोचते हुए सुरभि निद्रा के आगोश में चली गई थी।  

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
25.10.2019


Wednesday, October 23, 2019

पब ..

पब .. 

अभिनव कुशाग्र बुध्दि का होने से, बी कॉम प्रथम वर्ष में क्लास टॉपर था। अतः सहपाठी उसे सम्मान देते थे, उससे करीबी चाहते थे। रीति भी ऐसे ही अभिनव से मित्रता रखती थी। वह अति संपन्न और खानदानी उद्योग घराने की बेटी है।  बी कॉम के दूसरे वर्ष में, रीति को अपने प्रति अभिनव के व्यवहार एवं दृष्टि  बदली सी लगने लगी थी। अभिनव उससे अकेले में बात करने के बहाने तलाशता लगता था। पिछली तीन बार के ऐसे एकांत में अभिनव उसे साथ पब चलने का आग्रह कर रहा था।  रीति ने मित्र की तरह सोचा तो उसे चिंता हुई कि अभिनव का इन चक्करों में परीक्षा परिणाम प्रभावित हो सकता है। अतः मम्मी अनुमति नहीं देगी कहकर उसे टालती रही। कोई सप्ताह भर बाद अभिनव ने ऐसा एकांत का अवसर पाया तो इस बार ज्यादा जिद करने लगा। रीति ने तब कहा कि देखो कोशिश करती हूँ, 10-15 दिन में जब भी कोई बहाना होगा, पब चलूँगी।
उसी दिन रीति ने एक प्राइवेट डिटेक्टिव की सेवा ली। उससे मिली सूचनाओं पर एक दिन, खुद से अभिनव को एक पब तय कर रात नौ बजे वहाँ पहुँचने का निश्चित किया। 

उस रात रीति पब में पहले ही पहुँच गई, और बाहर लॉन में प्रतीक्षा करने लगी। अभिनव, जब वहाँ आया तो एकदम बदले गेट अप में ज्यादा ही स्मार्ट लग रहा था। कुछ तलाशते हुई सी रीति उसके साथ अंदर पहुँची. वह अभिनव का हाथ पकड़ वहाँ ले गई जहाँ कुछ जोड़े ड्रिंक्स ले रहे थे। अभिनव ने वहाँ जैसे ही एक लड़की को, किसी लड़के के साथ देखा वह रीति का साथ छोड़ गुस्से में उस लड़की के सामने जा पहुँचा. वह लड़की उसे देख अचकचा गई। अभिनव ने उसका हाथ पकड़ा और लगभग खींचते हुए उसे पब के बाहर ले गया। रीति ने पीछा करते हुए अभिनव को आवाज दी, अभिनव कहाँ जा रहे हो? अभिनव ने उसे कोई उत्तर नहीं दिया। रीति ने लड़की को अभिनव से कहते सुना भैय्या, हाथ छोड़ो दुख रहा है। फिर अभिनव लड़की को बाइक पर बिठा वहाँ से चला गया। 

उसके बाद कॉलेज में अभिनव, रीति के साथ अपरिचित जैसा व्यवहार करने लगा। रीति ने बात करने की कोशिश भी की तो किसी तरह उससे बचते रहा। ऐसे में रीति ने एक दिन कॉपी के एक पन्ने पर कुछ लिखा और अवसर मिलने पर अभिनव के बेग में डाल दिया।
अभिनव को वह पन्ना अगले ही पीरियड में दिखाई दे गया। पीछे से, रीति ने अभिनव को पढ़ते हुए देखा, पन्ने पर लिखा था-
"अभिनव जिस दिन अपनी बहन के बारे में तुम यह तय करना बंद कर दो कि वह क्या करे क्या न करे, किसके साथ, कहाँ जाए कहाँ न जाए, उस दिन मुझे पब चलने कहना। ऐसे विषय मैं अभी, अपने मम्मी-पापा के उचित अनुचित तय किये जाने के अनुसार करती हूँ। अभी पढ़ रही हूँ, स्वयं ऐसे निर्णय नहीं करती हूँ।"
रीति ने देखा, पढ़कर अभिनव ने सिर झुका लिया था। तीन दिन बाद अभिनव ने अकेले में उसे पाकर सॉरी कहा था। तब से अभिनव लड़कियों के तरफ से उदासीन रहने लगा था। बाद में रीति को यह देख कर ख़ुशी हुई थी कि अभिनव बी कॉम के बाकि दो वर्षों में भी कॉलेज टॉपर रहा था। 

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
24.10.2019
  

Tuesday, October 22, 2019

उसे यूँ प्रतीत हुआ था, कठिन होगा जीना उसके बिना ...

उसे यूँ प्रतीत हुआ था, कठिन होगा जीना उसके बिना ...


नुसरत जहां को ये तो समझ आता था कि जिनका साथ होश सम्हालते ही सत्रह वर्षों से मिला (अब्बा, अम्मी, भाई आदि), उनमें से किसी का भी विछोह होने पर तो जीना दुश्वार हो जाएगा, लेकिन जिसे कॉलेज में आये तीन महीनों से ही जाना-पहचाना था। जिसका सामीप्य कुछ दिनों ही महसूस किया था, उसकी अपने प्रति उदासीनता से कैसे जी पायेगी वह?
नुसरत तब गर्ल्स स्कूल में पढ़कर, जुलाई में कॉलेज आई थी। जहाँ पहिली बार लड़के भी उसकी क्लास में थे। यहाँ, अनूप वह लड़का था जो उसे पहले कनखियों से देखा करता था. एक बार नुसरत के उसे देख हँस बस देने से अब सीधे ही लगातार निहारने लगा था। ऐसा होने से नुसरत को पहले तो डर सा लगा था। मगर कोई महीना ही बीता होगा। उसे, उसका यूँ देखना अच्छा सा लगने लगा था। दूसरे ही महीने उसके इशारे मिलने पर कॉलेज कैंपस में छिपकर किसी कोने में वह, उसे मिलने लगी। पहली पहली मुलाकातों में कुछ प्यार भरी बातें हुईं साथ जीने, मरने की कुछ कसमें दोनों ने लीं।  नुसरत का मन अब पढ़ाई में नहीं लगता था।वह क्लासेज में भी और घर में भी उसी के ख्यालों में गुमसुम रहने लगी थी। दूसरे महीने सिलसिला कुछ आगे बढ़ा अनूप और वह क्लासेज से बंक मार पार्कों और मॉल में जाने लगे थे। इस बीच अनूप मॉल से कुछ गिफ्ट दिलाने लगा थाऔर पार्कों के छिपे कोनों में उसके बदन को छूने लगा था। नुसरत को यह सब प्यारा तो लगता था मगर एक अपराधबोध से वह डरी भी रहती थी। घर में शिक्षा-सँस्कार में यह सब वर्जित बताया गया था। और गैर मुस्लिम को काफिर बताते हुए उनसे करीबी साथ न रखने की हिदायत भी थी। लेकिन दिल से मजबूर हुई नुसरत, नित अनूप से छिपे कोनों में मिलने लगी थी। पिछली तीन मुलाकातों में अनूप तो उसे चेहरे और होंठो पर किस भी करने लगा था। नुसरत मना करते हुए भी उसको धक्का दे दूर करने का प्रयास नहीं कर पाती थी। 
फिर वह हादसा हो गया था। अक्टूबर के महीने में अनूप ने गरबा कार्यक्रम में उसे बुलाया था। नुसरत ने अम्मी-अब्बा को, सहेलियों की जिद के बहाने से, इस हेतु बहुत मुश्किल से राजी किया था। नुसरत की ताकीद की गई थी कि घर से उसे गरबे के परिधान के ऊपर बुर्का ओढ़के जाना और आना होगा और हर हर हाल में रात साढ़े दस बजे तक घर लौटना होगा। उस रात साढ़े आठ बजे वह गरबा स्थल पर पहुँच गई थी। आधे घंटे अनूप के साथ गरबा किया था. फिर अनूप के कहने पर वह उसके साथ एक होटल रूम में पहुँची थी। अनूप की योजना का उसे अंदाजा भी हुआ था, डर भी लगा था मगर सम्मोहित सी वह अनूप का साथ देती जा रही थी। कमरे में उसे, अनूप ने बेड पर साथ लिटा लेने को दो तीन मिनट ही हुए थे कि दरवाजा भड़भड़ाये जाने से वे अलग हुए थे। नुसरत को वॉशरूम भेज अनूप ने दरवाजा खोला था।दरवाजे पर नुसरत के अब्बा थे। तमतमाये नुसरत के अब्बा ने अनूप पर घूसों से पीटा था. नुसरत को वॉशरूम से बाहर लाकर बुर्के में घर ले जाया गया था।   
अगले एक महीने फिर नुसरत कॉलेज नहीं आ सकी थी। बहुत अनुनय विनय और वादे किये जाने के बाद नुसरत के अब्बा ने उसे कॉलेज की अनुमति दी थी। अब अनूप उसकी ओर देखता भी नहीं था। घर में किये वायदों के अनुसार यह ठीक तो था मगर नुसरत को अचरज होता साथ ही दिल भी दुखता था कि अनूप जो साथ जीने मरने की कसम लेता रहा था कैसे बदल गया था। नुसरत ने घर में अनूप से, बात न करने और न मिलने का भरोसा तो दिलाया था। मगर उसके लिए प्यार रख कर पढ़ाई करने का उसका इरादा किया था। उन दिनों उसे यूँ प्रतीत हुआ था, "कठिन होगा जीना अनूप के बिना"  मगर ज़िंदगी को कुछ और मंजूर था। 
अब्बा से तो नहीं मगर अकेले में अम्मी से उसने तर्क किये थे, 'जिन बातों पर भाई को कोई बंदिशें नहीं उनके लिए उस पर क्यूँ बंदिशें हैं?' अम्मी ने कहा था - औलाद होने पर हम पेरेंट्स पर जिम्मेदारी और भार तो आता ही है, मगर बेटों के लिए जितना, उससे अतिरिक्त बहुत भार हम पर बेटियों के लिए आता है। 
"क्यूँकि बेटी को हम गैर कौम में निकाह करने नहीं दे सकते और निकाह के पहले बेटी के जिस्मानी रिश्ते किसी को बर्दाश्त नहीं है। इन मर्यादाओं के बाहर, ऐसा होने पर तुम्हारी ज़िंदगी सलामत नहीं होगी. हम भी कौम में गुजर नहीं कर पायेंगे। तुम इसे साफ़ समझ लो तो तुम्हें पढ़ने का मौका देंगे। अन्यथा तुम्हारे निकाह के लिए जल्दी दूल्हा देख लिया जाएगा।"
प्रेमी से धोखा और घर से लड़की होने के कारण एक तरफा पाबंदी किसी पर नैराश्य भाव और अवसाद का कारण हो सकती है लेकिन नुसरत की प्रकृति भिन्न थी। 
अनूप के अपने बदन पर स्पर्श, जो उस समय सुख देते लगते थे उनका स्मरण से अब उसे घिन होती। मुस्लिम लड़के को अन्य संप्रदाय की लड़कियों से प्रेम की अनुमति और लड़कियों पर इस हेतु पाबंदी, इस दोहरी कसौटी पर उसका तर्क आपत्ति करता। साथ ही अपने मजहब के अतिरिक्त अन्य धर्मी लोगों को काफिर ठहराने की सोच में भी उसे संकीर्णता दिखाई देती। नुसरत के मन में इन बातों से विद्रोह उत्पन्न हो गया। इसके परिणाम स्वरूप उसने मन ही मन एक संकल्प ले लिया कि वह घरवालों को शिकायत का कोई मौका दिए बिना पढ़कर अपनी ऐसी हैसियत बनाएगी जिसके होने से समाज से 1. बेटे-बेटी के लिए भेदभाव पूर्ण व्यवहार, 2. मजहबी आधार पर इंसान और काफिर ठहराने की संस्कृति इन  दोहरी कसौटियों से मुक्त करने के लिए वह काम कर सके। 
उम्र जनित आवेग जिसे अनूप के स्पर्श ने ज्वाला दी थी। किसी लड़की के लिए ऐसे में इस सुख को कड़ाई से त्याग देना आसान नहीं होता। अक्सर ऐसे में लड़कियाँ प्रेमी के धोखे की स्थिति में अन्य लड़कों के साथ को लालायित होती हैं। नुसरत ने मगर अपने संकल्प को विस्मृत नहीं होने देकर इन लालसाओं पर नियंत्रण कर लिया था।  
समय बीता, नुसरत के पढ़ाई में प्राप्त हर वर्ष के नतीजे परिवार के लिए चौंकाने और गौरव दिलाने वाले होते गए। जिनसे परिवार वाले अनूप के साथ नुसरत के किस्से भूल गए थे। अपने संकल्प अनुसार नुसरत ने आई ए एस किया। इस मुकाम पर पहुँच नुसरत, अपने तर्क अनुरूप काम को आज़ाद हो गई थी। बाद में उसने अपने साथी आई ए एस निखिल से विवाह किया तब घर में कोई एतराज नहीं कर सका। इसका उद्देश्य नुसरत का अपने मार्फत, समाज को यह संदेश देना है कि मुस्लिम लड़के ही नहीं अब मुस्लिम लड़की भी गैर संप्रदाय में शादी करने लगी है। नुसरत का मानना है इससे अंर्त-संप्रदाय सौहार्द्र कायम करने में मदद मिलेगी। 
साथ ही आज, डीएम अलीगढ होकर उसने मोबाइल ऍप के जरिये लड़कियों और युवतियों को अपने विरुध्द कहीं भी हो रही ज्यादतियों पर शिकायत करना सुलभ कराया हुआ है।  जिसमें छोटी भी ज्यादती करने वालों को नोटिस के जरिये परिवार सहित जिलाधीश कार्यालय के हाल में दिन दिन भर बिठाया जाता है। 
इससे दिन दिन भर कामकाज और पढ़ाई के होने वाले नुकसान को देखते हुए, साथ ही जगहँसाई के कारण लड़के और पेरेंट्स अपने और बेटों के व्यवहार को लेकर ज्यादा सावधान हो गए हैं। आज, अलीगढ़ में अब कोई शोहदा कॉलेज/स्कूल जाती किसी लड़की की स्कर्ट उठाने या अन्य छेड़छाड़ का दुस्साहस नहीं करता है  ....
--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
23.10.2019

     

Saturday, October 19, 2019

न हो किसी को परवाह तेरी
इससे बेपरवाह, औरों की तू परवाह कर
'राजेश' इंसान बनाया कुदरत ने
तुझे जिम्मेदार रहने की खातिर

अब नहीं ज़माना कोई मरे की कभी फ़िक्र करे
अब ज़माने में हर कोई अपने लिए फिक्रमंद है 

Thursday, October 17, 2019

शादी का झाँसा देकर .....

शादी का झाँसा देकर ..... 

गुलाबी गद्दे बिछे थे, सुनहरे गाव तकिये लगे हुए थे, चार लड़कियाँ और दो लड़के उन पर अपनी, अपनी जगह बैठ गये थे। परदा अभी खुला नहीं था। पर्दे के उस तरफ उद्घोषिका कह रही थी। इस वार्षिक साँस्कृतिक आयोजन में अब हम एक गोष्ठी का मंचन कर रहे हैं , जो नवयुवतियों और किशोरवया छात्राओं में चेतना जगाने की दृष्टि से मंचित की जा रही है। दैनिक अख़बारों को अगर आप पलट कर देखें तो ऐसा कोई दिन नहीं होता जिसमें 'शादी का झाँसा देकर दुराचार' तरह के शीर्षक से कोई घटना नहीं छपी हो। आज के 'समाज माडेल' की इस बड़ी बुराई पर गोष्ठी में भाग ले रहे छात्र-छात्राओं के नाम हैं क्रमशः - भारती, सुविधि, दीपा, नयना, प्रशांत और फारुख।
उद्घोषिका यह कहते हुए, जाती है. तब पर्दा उठता है ....
फारुख अपने मित्रों को अखबार की एक खबर दिखाते हुए कहता है - यार, तुम्हें अजीब नहीं लगता, कोई लड़की महीनों शारीरिक संबंध सहमति से करती है, फिर शादी का दबाव बनाती है, सफल नहीं होने पर दुराचार का आरोप लगा कर थाने में रिपोर्ट लगा देती है। 
नयना तीखी प्रतक्रिया में भृकुटि पर बल देकर कहती है - इसमें अजीब क्या है, अगर लड़के ने शारीरिक संबंध बनाये हैं तो उसे शादी करनी ही चाहिए।  हमारी सँस्कृति शारीरिक संबंध , सिर्फ पति-पत्नी में उचित कहती है। 

इस पर प्रशांत पूछता है - फिर पति-पत्नी होने के पूर्व क्यूँ राजी होती है कोई लड़की, अजीब नहीं है यह?
सुविधि गुस्सा प्रदर्शित करते हुए - वाह, प्रशांत यानि जिम्मेदारी सिर्फ लड़की की है। लड़का प्रेम दिखावा करते हुए, क्यूँ फुसलाता है ऐसा करने के लिए?
फारुख हँसते हुए - आप क्या कहना चाहती हैं, लड़की संबंध के लिए कभी चिरौरी नहीं करती है?
भारती असहमति के भाव दर्शाते हुए - हाँ, ज्यादातर केसेस में लड़की शुरुआत नहीं करती, हमारे पारिवारिक सँस्कार आज भी हम लड़कियों के लिए इस मर्यादा में रहने के हैं।
प्रशांत - तो फिर लड़कियां क्यूँ मिलतीं हैं अकेले में लड़कों से?
दीपा, प्रशांत की ओर देखते हुए - अगर मुझे तुमसे प्रेम हो जाए और मेरा दिल प्रेम इजहार को चाहे तो क्या मैं, इतने दर्शकों के बीच कहूँ कि 'प्रशांत, मुझे तुमसे लव हुआ है?'
मंच और दर्शक सभी इस बात पर अनायास हँसते हैं। दर्शक दीर्घा के तरफ से एक कमेंट सुनाई पड़ता है, नहीं दीपा, मोबाइल पर कहना।
कमेंट अनसुनी करते हुए सुविधि, प्रशांत से पूछती है - अगर दीपा तुमसे प्रेमवश अकेले में मिलने लगे तो क्या इसका अर्थ तुम यह लगाओगे कि वह तुमसे संबंध को आतुर है?
प्रशांत - जी, बिलकुल नहीं। लेकिन नशे में मैं बहक जाऊँ और प्रतिरोध वह भी न करे तो, संबंध हो जाना आशंकित तो होगा।
नयना- प्रेमवश अगर दीपा अकेले में तुमसे मिले तो तुम नशा क्यूँ करोगे। तुम्हें उसकी भावना की कदर नहीं होनी चाहिए ?
सुविधि धिक्कार भरे स्वर में - वाह, अभी पिताजी के धन पर पलते-पढ़ते-बढ़ते हो उसमें नशा भी करोगे और बलात्कार भी करोगे, क्या कहूँ इस नीच सोच पर मैं? 
फारुख- जो प्रेम होने पर संबंध किया जाए उसे बलात्कार नहीं कहते।
दीपा - प्रेम है, संबंध भी है फिर विवाह की बात आये तो इंकार कैसा?
प्रशांत- प्रेम उस समय का सच होता है, बाद में उससे अच्छी लड़की से प्रेम हो जाने पर, विवाह से इंकार किया जाता है। आखिर विवाह तो एक से ही संभव होगा ना?
फारुख - और फिर लड़के के दिल में शंका भी तो आ जाती है कि मुझसे संबंध कर बैठी यह लड़की किसी और से भी संबंध कर सकती या कर चुकी होगी.
इस पर तीव्र प्रतक्रिया के साथ भारती ने कहा -  तुम तो चुप ही रहो फारुख, तो अच्छा है. अपनी बहनों को तो बुर्के से बाहर की आज़ादी नहीं देते हो, यहाँ विवाह पूर्व संबंधों पर सवाल करते हो कि जिसने तुमसे संबंध किया और किसी से भी रखती हो सकती है। तुम एक से अधिक संबंध करलो माफ़ है तुम्हें, लड़की ने किये, न भी किये पर तुम्हें संदेह होता है, धिक्कार है तुम पर।
प्रशांत - सुनो लड़कियों, तुम यही क्यों मानती हो कि विवाह पूर्व जिनमें संबंध हुए हैं, ऐसे सारे लड़के, उन लडकियों से शादी को इंकार करते हैं, सौ में से पचास ऐसे प्रेमियों के विवाह भी तो होते हैं।
दीपा - मालूम है तुम्हें प्रशांत कि ऐसे 100 प्रेम किस्से भी तो हैं जिनमें विवाह पूर्व कोई संबंध नहीं, फिर भी अस्सी में विवाह हो जाता है? तुम शादी पूर्व संबंध की वकालत में ही क्यूँ पड़े हुए हो?
प्रशांत - शादी पूर्व संबंध को वर्जित करनी वाली सँस्कृति, अब पुरानी है अब जीवन में पूरे मजे लेने की सँस्कृति है, हमारे सिने सितारों को देखो पचास पचास वर्ष तक खुद शादी किये बिना मजे लेते हैं, लिव इन रिलेशन में रहते हैं, बिग बॉस बना कमाते हैं।
नयना - फिर तुम ऐसी आजादी मुझे क्यूँ नहीं देते प्रशांत? कहते हुए प्रशांत की ओर देखती है।
प्रशांत कनखियों झाँकता है, उसे कोई उत्तर नहीं सूझता है।
तब नयना, कोई राज सा खोलते हुए कहती है, मालूम मित्रों प्रशांत मेरा जुड़वाँ भाई है. हम पहले दिन से एक ही परिवार में अपने बड़ों और मम्मी-पापा से एक सा लालन पालन और एक से सँस्कार पा रहे हैं। धिक्कार है कि मेरा यह भाई इतना गैर जिम्मेदार है, जो हमारे घर के गरिमामय संस्कारों को बिग बॉस तरह के प्रसारण को देख, भूल जाता है।
तब सुविधि खड़ी होती है, अब वह मंचासीन मित्रों से नहीं बल्कि दर्शक दीर्घा की तरफ मुखातिब हो कहती है - 

हमारे उपस्थित पालक और गुरुजनों और मेरे सहपाठी साथियों - हम सभी को मालूम है अगर पल्स पोलियो ड्राप न भी दी जाए तो 100 में से अस्सी बच्चों को पोलियो नहीं होता। लेकिन सभी 100 बच्चों को इसलिए वेक्सीनशन दिए जाते हैं ताकि 20% की आशंका खत्म हो सके. हमारा समाज आज भी अपने बेटों के दुष्कृत्यों पर शर्मिंदा नहीं होता। उसे शर्मिंदगी तब होती है, जब कोई बेटी प्रचलित मर्यादा को लाँघती है। माना कि हर उन प्रकरणों में धोखे नहीं जिनमें विवाह पूर्व संबंध हों, लेकिन 100 में से दस में भी धोखा होता है (अखबार के छपे समाचार को दिखाते हुए) जो हर दिन के समाचार से प्रमाणित है, तो हमें फुसलावों से बचना होगा। यह समाज विडंबना है कि जिंदगी के मजे लेना कहने वाले ऐसे प्रशांत या फारुख खुद तो इस नारे पर छह लड़कियों से संबंध रखेंगे। मगर अपनी पत्नी में उन्हें वह लड़की चाहिए होगी जो इस दृष्टि से सिर्फ उनकी हो। अतः तब हमें अपने जीवन पर मँडराती आशंका मिटाने के लिए विवाह पूर्व संबंधों के फुसलावों या फिसलन से बचना होगा। इस धोखे में हम न सिर्फ अपना जीवन अपितु अपने परिवार का जीवन अभिशापित करते हैं। हम इस प्रस्तुति में अदाकारा लड़कियाँ, यह आव्हान करते हैं कि इनके फुसलावों में ना आयें फिर देखें जीवन के मजे लेने को इच्छुक ये निपट स्वार्थी, कैसे मजे लेते हैं?
कहते हुए सुविधि अभिवादन की मुद्रा में हाथ जोड़ती है। सभी अन्य पात्र भी खड़े होकर यह करते हैं। दर्शक दीर्घा में तालियाँ की गूँज के बीच मंच पर पर्दा खिंचता है ....

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
18.10.2019






Wednesday, October 16, 2019

डिवोर्स

डिवोर्स ..

मुकेश जी, अमनदीप सिंह जी  (जो उनके घनिष्ट मित्र थे) से परामर्श दिलवाने अपने भतीजे ऋतिक को  लाये थे। एक वर्षीय पुत्र के पिता, ऋतिक ने दो वर्ष पहले ही प्रेम विवाह किया था और अब अजिता से विवाह विच्छेद की जिद में था। लगभग एक घंटे से ऋतिक अंदर था, जहाँ अमनदीप उससे वार्तालाप कर रहे थे। तभी अंदर से ऋतिक के गुस्से से चिल्लाने की आवाज से बाहर बैठे मुकेश तेजी से अंदर पहुँचे थे। अमनदीप उसे काबू कर कुर्सी पर बिठाने की कोशिश कर रहे थे। मुकेश जी को देखते ही ऋतिक ने शिकायत की चाचा, इस आदमी ने बेबात मुझे चाँटा मारा है। मुकेश जी के आने पर कुछ शाँत हुआ ऋतिक अब बैठ चुका था, मुकेश जी को भी बैठने का इशारा करते हुए अमनदीप अब अपनी कुर्सी पर जा बैठे थे। तमतमाये ऋतिक को पता था कि चाचा और अमनदीप मित्र हैं। अतः वह स्वयं को नियंत्रित किये हुए था। अमनदीप ने तब दोनों को संबोधित करते हुए कहा, मैंने जो टेस्ट और जानकारी करनी थी, करली है, आप कल ग्यारह बजे आइये। डिवोर्स लेने/ नहीं लेने के प्रश्न पर मेरा परामर्श कल दूँगा। तब मुकेश जी ने ऋतिक को संयत और चुप रहने का इशारा करते हुए अमनदीप से हाथ मिलाते हुए विदा ली थी।
दूसरे दिन अमनदीप जी ने मुकेश जी को भी ऋतिक के साथ बिठाया था और फिर कहा था, तुम्हारे और अजिता के बीच ऐसी कोई समस्या नहीं जिसका समाधान डिवोर्स हो। तुम्हें, तुम्हारी बताई जानकारी और तुम पर टेस्ट के परिणाम के आधार पर मैं छह बातें कहूँगा जिस पर विचार तुम्हें खुद करना है।
1. तुम्हें अपनी आय की तुलना अपने ज्यादा सफल साथियों से नहीं करनी है। जिससे तुम पर तनाव छाया रहता है और ऐसे तनाव में घर लौट तुम अजिता पर जरा सी बात का बहाना ले हाथ उठाते हो।
2. दुनिया में हर संबंध मानवीय विश्वास से निभते हैं। कल मैंने तुम्हें एक चाँटा तब मारा था जबकि तुम्हें मुझसे आत्मीय व्यवहार की आशा थी। तुम, अपने पर कल बीती इस घटना से समझ सकते हो तुम्हारी नित मार पीट से अजिता पर क्या बीतती होगी। अजिता ने तुमसे प्रेम विवाह किया था। उसे तुम्हारे प्रेम पर विश्वास था। यह आशा उसे नहीं थी कि तुम नित उसके साथ गृह हिंसा करोगे। जिससे कुपित वह बेटे के साथ मायके लौट गई है.
3. तुम उससे डिवोर्स लेकर कभी फिर शादी करोगे ऐसा कहते हो। यहाँ मेरा मत है, तुम्हें अति आशावादी नहीं होना चाहिए कि अगली लड़की अजिता से बहुत अलग मिलेगी. वैवाहिक जीवन आपसी सामंजस्य से चलता है। अगर तुम सामंजस्य बिठाने की खुद कोशिश नहीं करोगे तो अगला भी सफल होगा इसकी आशा व्यर्थ होगी। जबकि
यहाँ , अजिता से विवाह से पूर्व एक वर्ष का प्रेम अतिरिक्त फायदेमंद चीज है.
4. अगर तुम्हारा विवाह विच्छेद होता है तो क्या तुम्हें कल्पना है, तुम्हारे बेटे से कालांतर में पिता के बारे में प्रश्न होने पर उसका जबाब यह हो सकता है "मैं उस पिता की संतान हूँ जिससे पिता होने की पात्रता नहीं थी."
5. इस बात की पूरी संभावना है कि विवाह विच्छेद होने की स्थिति में, बाद में कभी तुममें परिपक्वता आने पर इस विवाह के टूटने पर तुम खुद को दोषी पाओगे। मगर तब पश्चाताप तो होगा पर चींजे तुम्हारे हाथ से निकल जाएंगी।
6. तुम इस भ्रम में न रहो कि तुम परेशानी से विवाह विच्छेद के जरिये मुक्त होने वाले हो। अजिता को ऐसे लोग और वकील मिल जाएंगे जिनके अदालती पैतरों से तुम और पूरा परिवार परेशानी में पड़ सकता है। 

अंत में मेरा तुम पर परीक्षण कहता है तुम हीनता बोध से ग्रसित हो. अपनी तुलना दूसरों से नहीं करते हुए तुम्हें खुद का आत्मविश्वास बढ़ाना चाहिए। आय बढ़ाने के बहुत दबाव में न रहते हुए तुम्हें परिश्रम से हुई आय में खुश रहना और उतने में अपने व्यय नियोजित करने चाहिए। मेरी शुभ कामनायें - निर्णय तुम्हें खुद लेना है। 
बाद में मुकेश जी के साथ विचारों में खोया ऋतिक घर लौटा था। और उसके अगले दिन ससुराल जाकर अजिता से क्षमा माँग उसे अपने साथ लौटा लाया था। 
तब मित्रों को उस दिन ऋतिक का फेसबुक स्टेटस कहती एक फोटो यूँ लगी मिली थी 
"विश्वास और प्यार इस चित्र में यूँ समाया था अपने ऐसे चलने पर खुद समय मुस्कुराया था" 

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
16.10.2019

Sunday, October 13, 2019

मर के भी मेरी रूह हर उस को सताएगी 
जिसकी पोस्ट नैतिकता हद छोड़ जायेगी 

उजाड़ रहे हरे भरे जंगलों को हम
कहते हमें शुध्द आवो हवा पसंद है
मसल रहे मन जिनमें भावना भरी कोमल

तिस पर शिकायत कि मानवता बची नहीं

अनुमोदना बुध्दि


अनुमोदना बुध्दि ..
"सौ बार आदमी, आदमी हुआ, ध्यान किसी ने न दिया
एक बार वह आदमी न रहा, ध्यान सबने उस पर दिया"

जो सादगी और सच्चाई पर रहता था, उसे गँवार कहने लगे। तब आदमी ने छल- कपट, भ्रष्टाचार से खुद को धनवान बना लिया. धन किस नैतिक/अनैतिक व्यवसाय/माध्यम से आया हमने उसे गौड़ कर दिया। महत्व किसी के धनवान हो जाने को दिया। सबका ध्यान और सम्मान धनवान को मिलने लगा। आदमी ने निष्कर्ष निकाल लिया, आदमी रहने की जरूरत नहीं, अपनी उपस्थिति बताना है तो उसे आदमी न रहना होगा।
धिक्कार हमारी अनुमोदना बुध्दि को. आज ज्यादा चर्चित, सिने दुनिया के व्यभिचारी हैं। और एक समाज दायित्व को निभाने वाला गुमनाम है.
--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
14-10-2019

Saturday, October 12, 2019

आत्महत्या (भाग -4) ..

आत्महत्या (भाग -4) ..

अगली सुबह साढ़े ग्यारह बजे शैलेष, प्रदीप जी के सामने बैठा था। कहने की शुरूआत प्रदीप जी ने की- शैलेष ऐसा होता है किसी किसी किशोर/नवयुवा के साथ जब उसका मर मर के देखा हुआ कोई सपना टूटता है. तब उसे प्रतीत होता है कि जीने के लिए कोई उद्देश्य ही नहीं बचा। लेकिन यह भ्रम होता है। हम ढूँढना चाहें तो जीवन में करने के लिए अनेक उद्देश्य हमेशा उपलब्ध मिलेंगे। एक टूटे सपने के बाद, अनेकों सपने मिल सकते हैं। जिनमें रंग भर कर हम अपना जीवन साकार कर सकते हैं। (फिर कुर्सी पर तनिक पहलू बदलते हुए)- मैं, आगे कुछ कहने के पहले आपसे जानना चाहूँगा कि कल रात यहाँ से जाने के बाद आप कुछ सोचते रहे या नहीं?
प्रत्युत्तर में शैलेष ने स्पष्टवादिता से बिस्तर पर लेटे उसे जो विचार आये थे ज्यूँ के त्यूँ  (भाग-3 में उल्लेखित-) प्रदीप जी को सुना दिए (इसी सब की प्रदीप जी को प्रत्याशा भी थी)। फिर उनसे प्रश्न किया सर, आप प्रतिदिन ई-रिक्शा का किराया मुझे 500 रु. देते थे शाम को मैं बदले में दिन भर में प्राप्त कभी 100 कभी 200 रु  आप को देता रहा। आप परामर्श भी देते हैं और इतनी हानि क्यों उठाते हैं?
प्रदीप जी ने इस पर उसे बताया कुछ एनजीओ हैं, जो मेरी माँग पर मुझे सहायता राशि उपलब्ध कराते हैं। एक ऐसी संस्था देश की प्रतिभा को कुंठा से बाहर निकालने पर खर्च करती है। जिनका लक्ष्य हर प्रतिभाशाली व्यक्ति को ऐसा सामर्थ्यवान होते देखना होता है जिसके कार्य इस समाज/देश की समृध्दि तथा खुशहाली प्रदान करते हैं. आपके लिए मेरी चाही धनराशि वहॉँ से प्राप्त हो रही थी। आप में मेधा का निहित होना और आपका शुक्रिया से मिलने के संयोग ने काम आसान कर दिया है। कहते हुए वे हँसे और उन्होंने शैलेष की तरफ देखा, शैलेष भी शर्माते हुए हँस दिया। 
प्रदीप जी बताने लगे- यह उम्र विपरीत लिंग की तरफ आसानी से आकर्षित होने की होती है। "कभी अवसाद में जाने और कभी अवसाद से निकलने में यह कारण बनता है"। मुझे विश्वास था कि अब तक आप पढ़ने में तल्लीन रहे इसलिए आप पर उम्र असर नहीं कर रही थी। लेकिन अवसाद से निकालने में मेरे द्वारा आपको सड़कों पर ई-रिक्शा ले भटकाया जाना कहीं तो तुम्हें किसी लड़की से मिलवाएगा जिससे आप में जीने की भावना और नए उद्देश्य पुनः संचारित होंगे। कुछ अवसादग्रस्त बच्चों का अवसाद मैंने ऐसे मिटाया है। आप लेकिन उनसे ज्यादा प्रतिभावान हैं। जो हर बात में से सार तत्व ग्रहण कर रहे हैं। आप को अब मेरी जरूरत नहीं। आपको मेरी और एनजीओ की ओर से शुभकामनायें- आप फिर लगन से पढाई करें, डॉक्टर बनें तथा डॉक्टर के रूप में आपके कार्य रोगियों के उपचार तथा अन्य डॉक्टर की प्रेरणा के कारण बनें। 
एक पल की चुप्पी के बाद- आप जब चाहें मुझसे संपर्क कर सकते हैं, कहते हुए प्रदीप जी खड़े हुए. उन्हें ऐसा करते देख शैलेष भी खड़ा हो गया तब प्रदीप जी ने स्नेह से उसे गले लगाया, शैलेष ने अनुग्रही भाव से उनके चरण छुये फिर शैलेष वहाँ से विदा हुआ .
अगले दिन से अपनी असफलता भूल शैलेष एम्स एंट्रेंस, ब्रेक करने की पढ़ाई में फिर जुट गया और यह शैलेष का दृढ़ निश्चय था जिसके समक्ष कठिन स्पर्धा, सरल सिध्द हुई और सफलता सूची में इस वर्ष शैलेष आठवें क्रम पर आया। 
इस बीच शैलेष और शुक्रिया का कोई संपर्क नहीं रहा लेकिन परिणाम घोषित होने के बाद शैलेष, शुक्रिया से मिलने ई-रिक्शा (शौकिया) से पहुँचा उसे मालूम हुआ कि शुक्रिया ने पेपर अब्बा की बीमारी के समय दिया था, तैयारी पूरी नहीं कर पाने से वह सफल नहीं हो सकी। शैलेष ने सहानुभूति दर्शाई। 
फिर चूँकि शुक्रिया ने उसे साधारण मगर दयालु रिक्शा वाला समझा हुआ था इसलिए अपने अवसाद और प्रदीपजी के परामर्श सहित पूर्ण ब्यौरा कह सुनाया साथ ही एम्स की प्रवेश सूची में अपना नाम आठवें स्थान पर होने संबंधी समाचार अखबार में दिखलाया. अपनी सफलता के पीछे उससे मिली प्रेरणा बताते हुए उसे शुक्रिया कहा। 
शुक्रिया और उसकी अम्मी-अब्बा और छोटी बहनें हैरत से सब सुनते रहीं. शुक्रिया इतनी मजेदार और ख़ुशी भरी खबर से अपना दुःख भूल गई। शैलेष ने अपने साथ लाई हुई मिठाई से शुक्रिया के घर में सभी का मुहँ मीठा कराया। उसके अब्बा-अम्मी के चरण स्पर्श कर सब से विदा हुआ और प्रदीप जी के ऑफिस के तरफ निकल पड़ा। 
समाप्त
--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
13-10-2019
  
बना सुंदर तन अपना , भले 'राजेश' कोई तन छू सको
मगर मन छूने के लिए, तुम्हें मन से सुंदर होना होगा

कर्तव्य भूल अपने, सबको कर्तव्य याद दिलाते हो
स्वार्थ सम्मोहित 'राजेश', तुम गलत राह चल जाते हो
 

आत्महत्या (भाग -3) ..

आत्महत्या (भाग -3) ..

शैलेष, उस रात नींद लगने के पहले बिस्तर पर लेटे हुआ पिछले 15 दिनों के घटनाक्रम पर सिलसिले से सोचता रहा। उसने समझ लिया कि दुनिया में शायद ही कोई व्यक्ति होगा जो आत्महत्या करने को उत्सुक किसी व्यक्ति को आत्महत्या करने में मदद देगा।

उसकी कुशाग्र बुद्धि ने उसे स्पष्ट कर दिया कि प्रदीपजी ने पहली भेंट में क्यों ये आदेश दिए हैं, जिनके अंतर्गत उसे प्रतिदिन ई-रिक्शा लेना होता है। फिर उन लोगों की पहचान करना होता है, जो पैदल चलने में रोगवश, ज्यादा सामान के होने से या ज्यादा दूरी चलने में कष्ट में हैं। और जो ऑटो का खर्च उठाने में असमर्थ हैं. जिन्हें उनके मार्ग में सिटी बस भी नहीं मिल रही है. शैलेष को उनसे बिना शुल्क या टोकन राशि 10-20 रु. लेकर अस्पतालों के सामने से या अन्य जगह सड़कों से उनके गंतव्य तक पहुँचाने का कार्य करना है।

वह अब समझ सका कि निश्चित ही इसके पीछे उनका इरादा मुझे व्यस्त रख कर जो असफलता के ख्याल मुझे दुःख दे रहे हैं उनसे दूर रखने का होगा। उसे यह भी अनुमान हो गया कि उनका उद्देश्य- 

"अपनी उपलब्धियों पर ही नहीं, ख़ुशी किसी जरूरत मंद व्यक्ति की सहायता करने के परोपकार में भी मिलती है" 

का अहसास मुझे कराने का रहा होगा।
शैलेष को ख्याल आ गया उस दिन मैं मरना चाहता था, तब प्रदीप जी ने कहा था कि आप अपने को मरा हुआ मान लो। मर जाने के बाद किसी को हासिल कुछ नहीं और खोना भी कुछ नहीं होता है । मैं मरा नहीं था मगर मुझे स्वयं को मरा होने का स्मरण रखना था। इस स्थिति में मुझे अपने लिए कुछ न लेना था (मरे को क्या मिलना है). चूँकि वास्तव में मरा नहीं था इसलिए करने का सामर्थ्य मुझमें बरकरार था जिससे मुझे औरों की सहायता करते जाना था।
कहते हैं सद्कार्यों के लक्ष्य हों तो ईश्वर भी सहायक होता है। शायद इसी ईश्वरीय संयोग में पिछले दिन, शुक्रिया सड़क पर ओढ़ने बिछाने के कपड़ों की गठरी और एक थैले में टिफिन आदि का भार उठाये सड़क पर बेचैन सी चलती मिली थी. उसने शुक्रिया के सामने अपना ई-रिक्शा खड़ा कर, कहाँ जाना है? पूछा था। शुक्रिया पैसे बचाना चाहती थी इसलिए उसने उदासीनता दिखाते हुए चलना जारी रखा था। तब शैलेष ने कहा था जहाँ भी जाना चाहती हो, बहन सिर्फ 10/ में पहुँचा दूँगा। इस पर शुक्रिया अस्पताल का पता बता कर सवार हुई थी। अस्पताल पहुँच कर 10/ देने के साथ शुक्रिया कहते हुए उतर गई थी। आज फिर संयोग हुआ था. आज वह अस्पताल से निकल रही थी, तब उसने शैलेष को देखा था। आज बिन हिचक घर का पता बता कर उसके साथ आ बैठी थी। पिछले दिन के एहसान से उसने खुद होकर ही शैलेष से इतनी सब बातें की थीं। ( भाग-2 में उल्लेखित). जिसने शैलेष के ज्ञान चक्षु खोल दिए तथा प्रदीप जी के दायित्व को आसान कर दिया।
सारी कवायद ने शैलेष को रियलाइज करा दिया कि परोपकार करना आसान तब हो जाता जब व्यक्ति खुद के लिए मर कर औरों के लिए जीता है। अब शैलेष यह सोच रहा था कि इतना गहन रहस्य प्रदीप जी के समक्ष खुला कैसे होगा? कदाचित ऐसा तो नहीं मेरे जैसे अवसाद में कभी उन्हें खुद आत्महत्या का ख्याल आया होगा। जिससे उबरने के लिए उन्होंने "परोपकार के मार्ग को अपनाया और इसमें निहित अद्-भुत सुख को स्वयं अनुभूत" किया होगा।
सब सोचते हुए शैलेष को समझ में आ गया प्रदीप जी जो चाहते थे, उन्होंने वह मंतव्य प्राप्त कर लिया है। इसी कारण कल उन्होंने रोज जैसे काम के समय पर नहीं अपितु अन्य समय बुलाया है। प्रदीप जी कल जो कहने वाले होंगे उसके पूर्व ही उसके ह्रदय में एक संकल्प उभर आया वह एम्स में प्रवेश की फिर कोशिश करेगा और सफल होकर डॉक्टर बनेगा। 

"वह देश/समाज को सप्ताह में छह दिन खुद के लिए मर कर सेवा देगा। एक दिन अपने लिए जीकर परोपकार के आनंद को अनुभव किया करेगा। "
यह संकल्प आया शैलेष के मन में तब ही उसे निद्रा ने अपने आगोश में ले लिया ...

.... आगे जारी
--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
12-10-2019

Thursday, October 10, 2019

शायरी में लगी साड़ी में किसी सुंदर नवयौवना की चुराई तस्वीर थी
क्या करे शायर भी कि अपनी माशूका उसे बुर्के में हसीन लगती थी

Tuesday, October 8, 2019

राम हुए बिना कोई, रावण वध नहीं कर सकता था
पुतला है, 'रावण से घटिया' हर कोई, दहन करता है

आत्महत्या (भाग -2) ..

आत्महत्या (भाग -2)  ..

प्रदीप जी, उस रात सोचते हुए कि वे, शैलेष पर हावी आत्महत्या के जूनून वाले पलों को टाल चुके हैं, अपने एक रूम के कार्यालय को बंद कर संतुष्ट हो घर लौटे।
अगले दिन - शैलेष ने प्रदीप जी के निर्देश अनुसार घर में सभी को बताया कि वह एक महीने का जॉब कर रहा है, जिससे वह असफलता के सदमे से उबर सके. पापा, माँ और जीवनी को यह सुन राहत मिली। सबने बिना ज्यादा विवरण लिए ख़ुशी से शैलेष को इसकी अनुमति दी।
फिर नौ बजे सुबह, प्रदीप जी के बताये पते पर पहुँच, शैलेष ने 500 रू भुगतान करके किराये पर ई-रिक्शा प्राप्त किया और दिन भर उनके निर्देशों अनुरूप कार्य किया। रात आठ बजे थका माँदा वह प्रदीप जी के ऑफिस पहुँचा. वहाँ उन्हें दिन भर का ब्यौरा दिया और घर लौटा।प्रदीप जी आज पुनः संतुष्ट हुए कि शैलेष अपेक्षा के अनुरूप प्रतिक्रिया दे रहा है.
उसके बाद हर अगले दिन शैलेष जिन्न जैसी आज्ञाकारिता से , प्रदीप जी के प्रथम दिन दिए निर्देशों/ योजना अनुसार कार्य करने लगा और हर रात 8 बजे, आकर उन्हें विवरण देता गया। प्रदीप जी, शैलेष में अपने अनुमान से ज्यादा तीव्र गति से सुधार होते पाकर खुश थे। हर अगली बार शैलेष पिछले दिन से कम थका दिखाई देता (अभ्यस्त होते जाने से) , ज्यादा सामान्य दिखाई देता (दिन भर की व्यस्तता में अपनी असफलता पर ध्यान नहीं जाने से) और दिन प्रति दिन उसके मुखड़े पर संतुष्टि परिलक्षित होने लगी (मनुष्य जब दूसरे की मदद करता है तो उसे सहज ही संतोष मिलता है कि वह किसी के काम आ सका है).
आठ दिनों में प्रदीप जी अपनी योजना के व्दितीय चरण कि "शैलेष को यह विश्वास दिलाना कि वह शारीरिक रूप से पूर्ण सक्षम होने के साथ ही मानसिक क्षमताओं में अधिकाँश ह्मयुवाओं से ज्यादा श्रेष्ठ है" की पूर्ति से निश्चिन्त तथा आगे के लिए आशान्वित भी हो गए।
तेरहवें दिन जब शैलेष लौटा तो आज उसके मुख पर संतोष के अतिरिक्त प्रसन्नता भी दर्शित थी। प्रदीप जी ने पूछा - शैलेष कुछ विशेष बात है, आप कुछ अलग दिख रहे हो। शैलेष एक पल सकुचाया फिर बोला - सर, आज अपने काम में ही मेरी भेंट एक लड़की से हुई. उसने यह बताया कि वह इस वर्ष एआईआईएमएस एंट्रेंस में एप्पिएर हुई थी किंतु 4 मार्क्स कम आने से सफल नहीं हो सकी. उसने यह भी बताया कि वह आर्थिक रूप से कमजोर परिस्थिति की है. उसका नाम शुक्रिया है।
प्रदीप जी, अपनी आशा से ज्यादा अच्छे घटनाक्रम की जानकारी मिलने से अत्यंत प्रसन्न हुए, मगर इसे बिना दर्शाये उन्होंने पूछा - शैलेष उसने क्या बताया, अब आगे वह क्या पढ़ाई करेगी। शैलेष बोला - सर वह बता रही थी कि अब वह तैयारी कर फिर अटेम्प्ट करेगी। सर, उसने बड़ी अच्छी बातें भी कीं कि इस बार वह जरूर पास कर लेगी। उसके ऊपर परिवार सम्हालने की जिम्मेदारी है, जो उसकी प्रेरणा बनती है कि वह दृढ संकल्प से सफलता प्राप्त करे।
शैलेष यह कह के चुप हुआ। प्रदीप जी ने उस समय उसकी आँखों में विशेष चमक देखी जो शैलेष के मन में किसी दृढ निश्चय की ध्योतक थी। उन्होंने शैलेष से प्रश्न किया- बस इतना ही?
तब शैलेष ने बताया - सर, मैंने उससे तब यह पूछा कि अगर दूसरी बार भी सफल नहीं हुई तो शुक्रिया क्या करेगी? सर इस पर उसने जिस हौसले से जबाब दिया उससे मैं खुद पर शर्मिंदा हुआ।
प्रदीप जी - क्या?
शैलेष - सर, उसने बताया - उसके अब्बा टैक्सी चलाते हैं, उनके आँतों में तकलीफ़ के कारण कई बार उन्हें अस्पताल में भर्ती होना पड़ता है. आज भी वे हॉस्पिटलाइज़्ड हैं। शुक्रिया और सभी आशंकित रहते हैं कि वे पाँच सात साल भी जी सकेंगे या नहीं। शुक्रिया की तीन छोटी बहनें हैं, माँ - घर में सिलाई से कुछ कमा लेती हैं। अगर अब्बा को कुछ होता है तो उनकी परवरिश के लिए उसे कमाने योग्य बनना होगा। अगर दूसरी बार भी असफल रहती है तो वह कोई अन्य कोर्स करेगी। एआईआईएमएस में न भी पढ़ने पर उसकी योग्यता समाप्त नहीं होगी। उसके जीवन को - परिवार की जिम्मेदारी उठाने का उद्देश्य मिला है। वह जैसे भी संभव है उसे पूरा करेगी।
प्रदीप जी- उससे तुम्हें प्यार तो नहीं हो गया है?
शैलेष ने दृढ़ता पूर्वक उत्तर दिया - नहीं सर उसमें मुझे मेरी प्रेरणा दिखाई पड़ी है, वह मेरा प्यार नहीं, प्रेरणा है।
प्रदीप जी- क्या वह सुंदर है?
शैलेष कुछ खेद मिश्रित स्वर में - सर ,ऐसी बात नहीं, वह बुर्के में थी. लेकिन कोई अंतर नहीं उसके सुंदर होने न होने में जिसका मन इतना सुंदर हो।
इतना सब सुनते-विचारते हुए, शैलेष को और न छेड़ते हुए, प्रदीप जी ने शैलेष के द्वारा आज अनुभूत की गई बातों को पर्याप्त और उसे रात्रि अपने अंर्तद्वंद से जूझते छोड़ने को उपयुक्त मानते हुए कहा - शैलेष कल आप नौ बजे नहीं, साढ़े ग्यारह बजे आइये. कल के लिए आपको मेरे नए आदेश रहेंगे.
शैलेष विदा हुआ और प्रदीप जी सोचने लगे - लगता है भगवान ने, शैलेष को कुछ विशेष करने के लिए बनाया है. इतना कुशाग्र बुध्दि होने के बावजूद उसे प्रवेश परीक्षा में असफलता दिलवाई है, फिर मुझसे परामर्श को मिलवाया है और उस पर शुक्रिया के माध्यम से सच्ची प्रेरणा का संयोग कराया ...

.... आगे जारी
--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
08-10-2019

Sunday, October 6, 2019

ख़ुद के लिए मर कर 'राजेश', औरों के लिए जो जीता है
लोगों के नज़रिये हारा वह, मानवता के नज़रिये जीता है

वह सूरज बनकर न छा जाना 'राजेश', कि दीपक को हीनता बोध हो
नन्हा दीपक ही है जो सूरज के न होने पर, गहन अंधकार मिटाता है

Saturday, October 5, 2019

आत्महत्या ..

आत्महत्या ..

एम्स एंट्रेंस में असफल होने पर अवसाद ग्रस्त हो शैलेष चार दिनों में घर में और ज्यादातर अपने कमरे गुमसुम पड़ा रहा. पापा, माँ और बड़ी बहन जीवनी ने प्यार दुलार से बहुत समझाया था मगर शैलेष कोई जबाब ही नहीं देता था। डॉकघर में क्लर्क पापा हर वक़्त कहते आये थे, 'शैलेष', मैं नहीं हासिल कर सका वैसी उपलब्धियाँ तुम्हें हासिल करना है। 12 वीं में 98% स्कोर करने वाले शैलेष से एम्स में प्रवेश लेने में सफल होने की उम्मीदें पूरे घर को हो गईं थीं। इस सब में शैलेष को ग्लानि और गहन दुःख हो रहा था कि उसने सब को निराश किया है। वह किसी से अपनी मानसिक हालत भी नहीं बता रहा था। पाँचवे दिन शाम को उसे तैयार हो बाइक से घर के बाहर निकलते देख घर में सभी खुश हुए थे कि चलो, बाहर घूम के आएगा तो मन बहलेगा और वह सामान्य हो सकेगा। इधर शैलेष निरुद्देश्य शहर की सड़कों पर बाइक दौड़ाता रहा, फिर एक शॉप में 'परामर्श' का बोर्ड पढ़ वहाँ रुका, बाइक पार्किंग में खड़ी कर शॉप में प्रवेश किया तो एक साधारण टेबल के पीछे एक साधारण से दिखने वाले प्रौढ़ व्यक्ति को अकेले बैठे देखा। उनसे संकेत मिलने पर सामने रखी फाइबर कुर्सी पर बैठा और प्रौढ़ व्यक्ति की अपने पर निहारती प्रश्न वाचक दृष्टि को भाँप शैलेष ने उनसे पूछा, सर आप परामर्श देते हैं?  प्रौढ़ व्यक्ति ने हाँ में सिर हिलाते हुए अपने परिचय में बताया, मैं प्रदीप सिंह हूँ, बताइये आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ? शैलेष ने अपना नाम बताते हुए कहा मैं आज ही सुसाइड करना चाहता हूँ, आप मुझे इसका सबसे अच्छा और आसान तरीका बताइये.

प्रदीप अप्रत्याशित इस बात को सुन एक पल हतप्रभ रह गए फिर स्वयं को नियंत्रित कर जबाब में बोले हाँ, सुसाइड के आसान तरीके का परामर्श मैं आपको दूँगा।
अब चौंकने की बारी शैलेष की थी. प्रश्न पूछते हुए उसे आत्महत्या न करने के संबंध में समझाये जाने के प्रत्युत्तर की प्रत्याशा थी। कुर्सी में तनिक पहलू बदल कर शैलेष ने अधीर हो, फिर कहा- बताइये सर तरीका क्या होगा?
तब प्रदीप बोले - सब में आसान तरीका है - आप इसी समय अपने को मरा हुआ मान लीजिये। इस प्रकार अब जो मेरे समक्ष बैठा है वह शैलेष नहीं, शैलेष का जिन्न है जो प्रदीप सिंह के आदेश के अधीन काम करता है।
इस जबाब से उस घड़ी शैलेष को अपना अवसाद विस्मृत हो गया. उसे प्रदीप सिंह का अंदाज बेहद रोचक लगा उसकी उत्सुकता प्रदीप आगे क्या कहते हैं, इस बात की तरफ बढ़ी। उसने थोड़े परिहास मिश्रित मुद्रा में कहा - हुक्म दीजिये मुझे, मेरे आका।
तब प्रदीप जी ने कहा आगे मैं आपको जो कहने जा रहा हूँ उसके एक एक  शब्द को ध्यान से सुनो। अगले एक महीने तुम्हें इस अनुसार रहना और करना है।
हर रात 8 बजे आपको दिन भर का ब्यौरा मुझे आकर बताना है फिर अपने घर जाना है और हर सुबह 9 बजे काम पर निकलना है. महीने भर यह स्मरण रखना है कि शैलेष आत्महत्या कर चुका है और मेरे आदेश के अधीन जो काम कर रहा है वह मरने के बाद शैलेष, जिन्न अवस्था में है। प्रतिदिन 9 बजे सुबह से रात 8 बजे तक आपको करना ये काम है , फिर प्रदीप सिंह कहते गए और मंत्रमुग्ध शैलेष सुनता रहा ...

.... आगे जारी
--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
30-09-2019