Saturday, January 31, 2015

भारतीय सिने इंडस्ट्री - एक आलोचक दृष्टि

भारतीय सिने इंडस्ट्री - एक आलोचक दृष्टि
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पूर्व आलेख 'अब मैंने भी देखी पीके' के अंश से आज का आरम्भ है -
"मंदिर, देश में बहुत नारी-पुरुष , जाते हैं !
मस्जिद कुछ कम जाते हैं !
गुरद्वारे और चर्च और कम जाते हैं!
किन्तु सिनेमंदिर जिनमें ये "रोंग नंबर" बैठे हैं!
बडे -बूढ़े नारी पुरुष हर बच्चे जाते हैं "

सांस्कृतिक विधाओं के अस्तित्व लगभग लुप्त
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फिल्मों के आगमन के बाद , धीरे-धीरे वे सांस्कृतिक मंच , जिनकी रचनात्मकता - समाज और युवाओं को सृजन को प्रेरित करती थी धीरे धीरे सूने होते जा रहे हैं।
संस्कार मिटते जा रहे हैं
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बच्चों को परिवार -समाज से मिलने वाले संस्कार - जो समाज में अपनत्व , दया और करुणा का संचार करते थे अब फ़िल्मी प्रभाव में मिट रहे हैं। युवा होते तक युवाओं पर फ़िल्मी संस्कार चढ़ जाते हैं।
भ्रामक सपने दिए फिल्मों ने
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फ़िल्में - विवाह पूर्व प्रेम को प्रमुखता से परोसती रही हैं। फ़िल्मी नायक -नायिका को इनमें लिप्त होते और युगल गीत और नृत्य में लीन कर आकर्षक प्रस्तुति के साथ दिखाना फिल्म की सफलता की गॉरंटी रही है। इसमें अक्सर नायक को निर्धन और नायिका को धनवान (या इसके उलट) दिखाकर , दर्शकों में भ्रम फैलाया गया।  अब गरीब किशोर /युवक इसी तरह किसी धनवान लड़की/लड़कियों के पीछे इसी भ्रम में पड़ता है , उसे लगता है , किसी दिन फलानी फिल्म की तरह वह लड़की उसके प्रेमपाश में आ जायेगी।  गरीब लड़की तो और विषम स्थिति की शिकार हो रहीं हैं। वे भी फिल्म के तर्ज पर अपना प्रेमी अमीर लड़कों में ढूंढती हैं , फिर ऐसे रईसों के वासना की शिकार हो अवसाद में जीती और समाज के ताने -उलाहने झेलती , कठिन जीवन को शापित होती हैं। (अपवादों पर कहानियाँ यों गड़ी गईं -जैसे यही विधि -विधान है ).

तलाक को प्रोन्नत करती फ़िल्में -टीवी धारावाहिक
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विवाह संबंधों में कलह प्रदर्शित कर - उसे तोडा जाता है , फिर नए से और कभी तीसरे से भी जुड़ पति /या पत्नी होते दिखाया जाता है , जिनमें वैवाहिक जीवन की मधुरता सुनिश्चित हो जाती है।  ऐसा प्रस्तुत किया जाता है , जैसे जो पहले साथी के रूप में मिला सही नहीं था। जबकि अगला या उससे अगला उसका परफेक्ट मैच होता है। भ्रामक ये प्रस्तुतियाँ - विवाह संबंध तोड़ रही हैं। बचपने से आज की जेनेरेशन ऐसा देख - इसी मानसिकता की हो रही हैं। प्रस्तुतकर्ताओं को तो धन और प्रसिध्दि दोनों मिलती है। यथार्थ में - युवाओं का जीवन नरक होता है। जिसे निभाने की कला नहीं आई वो एक क्या , एक के बाद कई से न निभा पाता है न ही प्रेम पाता है। (अपवादों पर कहानियाँ यों गड़ी गईं -जैसे यही विधि -विधान है ).

अपने स्वार्थ के लिए ले ली समाज व्यवस्था की बलि
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निःसंदेह समाज और परिवार में सबकुछ ठीक नहीं हो रहा था। बेशक कुछ बुराइयाँ खत्म की जानी चाहिए थी। लेकिन बुराई मिटाने के झूठे उपाय देकर फिल्मों ने समाज और परिवार को उससे जटिल बुराइयाँ दे दी। जिसे - ज़माना अपना फेवरेट मानता है , उसका धर्म होता है , वह ऐसा कुछ भूल से भी प्रदर्शित न करे , जिससे अनुशरण करने वाला भ्रमित होता है। किन्तु ऐसा धर्म नहीं निभाया गया । सिने मंदिर में बैठे रोंगनंबर्स ने , सिर्फ अपने स्वार्थ सिध्द किये और देश -समाज की अच्छाइयों की बलि ले ली। अफ़सोस सिनेमंदिर में ऊपर पैरा वर्णित अनुसार आज बच्चा -बच्चा जाता है। मालूम नहीं कब मोह-भंग होगा ,इन रोंगनंबर्स में हमारे देश के नागरिकों का।
--राजेश जैन  
01-02-2015

Friday, January 30, 2015

गर्ल्स ही , गर्ल्स हित में अवरोध न बने

गर्ल्स ही , गर्ल्स हित में अवरोध न बने
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आज की गर्ल्स परिवार में अभी बेटी ,बहन और ननद है। कल वह किसी परिवार में पत्नी , भाभी , जेठानी , माँ और बाद में सास होगी। नारी के लिए "गर्ल्स" शब्द प्रयोग कर आलेख लिख रहा हूँ। आज ,परिवार में गर्ल्स के शोषण और प्रताड़ना पर उल्लेख केंद्रित है।
घर परिवार में गर्ल्स को जो विषम स्थितियाँ झेलनी पड़ती हैं , उनमें से अधिकतर में घर की गर्ल्स (विभिन्न नारी रूप ) का योगदान/दोष भी है, क्या हैं वे पारिवारिक कलह , शोषण और प्रताड़नाएं ?
1. नई दुल्हन पर , विभिन्न ताने -उलाहने , और दहेज की प्रताड़नाएं। इनमें दर्ज होने वाले केसेस में , सास जेठानियों और ननद के भी नाम , पुरुषों के साथ आते हैं। स्वयं गर्ल्स इन अत्याचारों में पुरुष सदस्यों का साथ न दें ।
2.  पत्नी के साथ पति द्वारा मारपीट। पति , गर्ल्स के ससुराल में बेटा और भाई होता है। परिवार की इस हिंसा में भले ही वह बंद शयनकक्ष में हो , जानकारी अन्य सदस्यों को होती है। माँ , जेठानियाँ और बहन द्वारा  अपने बेटे (,देवर और भाई) पर ऐसा न करने का दबाव  बनाया जाना चाहिए।
3.  बदले हुए परिदृश्य में , नई दुल्हन , हो सकता है , किसी अन्य से प्रेम की कोई हिस्ट्री के साथ इस घर में आई हो। ऐसे में पति के अपनी नवब्याहता के प्रति रोष हो सकता है। बहन , भाभी और माँ , अपने बेटे को इस तरह समझा सकती हैं कि बेटे (भाई) तुमने भी तो अन्य से फ्लर्टिंग की है , तुम्हारी वह भूलेगी तुम अपनी पत्नी की भूल जाओ।
4. कन्या भ्रूण हत्या के पीछे भी बहु पर सास , ननद (और ब्याहता बेटी की माँ भी ) के तानों और सलाह का भी हाथ होता है। ऐसा वे न करें।  इससे भी कन्या के भ्रूण रूप में ही मारे जाने के श्राप से मुक्त होने में सहायता मिल सकेगी।
आज की गर्ल्स , भविष्य का भारतीय समाज है। बेटे -भाई आदि द्वारा पत्नी पर ज्यादती में जब तक , किसी अन्य परिवार की बेटी (यहाँ की बहू) का साथ देने का साहस और मानसिकता वह नहीं बनाएगी , तब तक स्वयं गर्ल्स होकर गर्ल्स हित में अवरोध बनती रहेगी। और तब तक गर्ल्स इस देश में उन्नति की कहानी नहीं लिख सकेगी।
लेखक का मानना है , माँ , बहन और भाभी के साहसिक विरोध के बाद , पति या श्वसुर बना पुरुष किसी बहू पर अत्याचार नहीं कर सकता है। हमारे समाज में क्या अब तक हुआ उससे सबक लेकर , इस तरह निर्भीक होकर आज की गर्ल्स सामने आये । वह नया समाज और परिपूर्ण सँस्कार की ठोस नींव रख सकती है।
Note:-लेखक समाज बदलने में , गर्ल्स की सहायता का इक्छुक है। लेख से ऐसा आशय न निकाला जाए कि पुरुष को क्लीन चिट दी जा रही है , वह तो दोषी है ही। इस लेखक द्वारा , बहुत से आलेखों में सीधा लक्ष्य पुरुषों की बुराई पर भी किया जा चुका है।  ( परिवार के बाहर , इसी शीर्षक के प्रसंग पृथक लेख में लिखे जायेंगे ) .

--राजेश जैन
31-01-2015

Thursday, January 29, 2015

अभिवादन

अभिवादन
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चाचा , आर्मी में थे 1972 में परमवीर चक्र मिला था। परिवार गौरवान्वित था सम्मान से।  लेकिन चाचा के न रहने से , उनके बच्चों और पत्नी को जिस संघर्ष से जूझना पड़ा था।  परिवार ने सबक लिया था आर्मी में न भेजेंगे , बच्चों को।
1988 में जन्मी गरिमा ने यों तो कई अभाव बचपन से देखे थे। अपने साथ की अमीर लड़कियों के पास , तरह तरह के गैजेट्स और आलीशान कार , महँगे वस्त्र देखे थे। जो एक अमीर लड़की के पास था वह कई अमीरों पास था। उसे इस बात का भान था ,जो उसके पास था वह  किन्तु ,औरों के पास नहीं था. वह था -ऐसे परिवार के होने की ख्याति - जिसका बेटा राष्ट्र -रक्षा में प्राण न्यौछावर कर चुका था। बचपन से गर्वित करती इस अनुभूति के कारण 19 वर्ष की उम्र से वह सेना में विभिन्न पोस्ट के आवेदन करती थी . पापा उसे मना करते , तब भी न माना करती थी । जब चयन हुआ आर्मी में  उसका पापा ने आदेश सुनाया -गरिमा , आप नहीं ज्वाइन करेंगी , आपको मालूम ही है , चाचा की मौत के बाद कितने विषम दिन देखे हैं , हमने। गरिमा ने कहा था - पापा , चाचा की मौत अन्य किसी हादसे में भी हो सकती थी । उन सरीखे 'राष्ट्रवीर' के परिवार की बेटी, मै वीरांगना होना चाहती हूँ।
पापा ने गरिमा की दृढ़ता को अनुभव किया था। आर्मी ज्वाइन करने के बाद - उसका प्रशिक्षण संपन्न हुआ है । आज यूनिफार्म में अभिवादन करता प्रकाशित हुआ उसका फोटो देख परिवार अत्यंत प्रसन्न है । गरिमा के अभिवादन के उत्तर में , पापा नहीं , अपितु पूरा शहर - बेटी की उपलब्धि पर अपने हाथ -अभिवादन की मुद्रा में सिर तक ले जाकर गौरवान्वित है।
-- राजेश जैन
30-01-2015

Wednesday, January 28, 2015

आने वाला समाज चित्र

आने वाला समाज चित्र
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नारी विभिन्न अवस्थाओं में , विभिन्न प्रयोजनों से सबसे सुरक्षित स्थान अपने घर -परिवार से बाहर निकलती है
1. वह , स्टूडेंट के रूप में , अपने पापा ,अपने भाई जैसे व्यवसाय , उच्च पदों पर आसीन हो , परिवार के लिए धन अर्जन करने के सपने के साथ स्कूल /कॉलेज जा/आ रही होती है
2. वह वर्किंग लेडी के रूप में ऑफिस से थक हार के , और भूखी हो , तीव्र क़दमों से घर तरफ बढ़ रही हो सकती है। घर में उसका छोटा बच्चा है , तो ममत्व भी हो सकता है कि  जो उसके मन में हिलोरें ले रहा हो सकता है.
3. वह किसी रोग के उपचार की दृष्टि से जा /आ रही हो सकती है . उसे वक्ष आदि से सम्बंधित कोई तकलीफ हो सकती है , जिस से वह चिंतित और उदास हो सकती है।
4. वह ग्रामीण अंचलों में जल भर लाने या शौच आदि के लिए जा /आ रही हो सकती है।
5. वह पुरुष का हाथ बँटाने गृहस्थी के सामान खरीदने मार्केट जा /आ रही हो सकती है
6.  या - किसी उमंग , जिसमें बच्चे की उपलब्धि पर स्कूल , भाई के विवाह में , मंदिर जाने के लिए अथवा किसी उत्सव को मनाने लिए प्रसन्नता के साथ कहीं जा /आ रही हो सकती है।
नारी के हृदय और मन में उमड़ रही चिंता ,पीड़ा या उमंग से अनजान रह , पुरुष सिर्फ वासना पूर्ण दृष्टि से उसे घूरता ,छेड़ता (बहुतायात में होता है ) या भ्रम प्रेमजाल (फ्लर्टिंग ) में निभाने की गंभीरता बिना फँसाता है ( बहुधा होता है ) या उस पर रेप अटेम्प्ट या  रेप करता है।  तो नारी के उमंग /प्रसन्नता को तोड़ता है। चिंतित अगर वह है तो उसकी चिंता बढ़ाता है। रोगिणी गर वह है तो , जिस अंग के कष्ट से वह पीड़ित है उसी अंग पर वासना दूषित दृष्टि कर निहारता है। तब सभ्य मनुष्य समाज की पुरुष रीत पर नारी को गहन पीड़ा और हैरानगी होती है। उसे अपने आँचल में पाले पुरुष के इस रूप पर क्षोभ होता है।
पुरुष के सोचने /सुधारने के लिये उपरोक्त तथ्य पर्याप्त हैं। वह गहन विचार करें - पुरुष के उलट नारी - कभी अपनी वासना दूषित दृष्टि से न तो घर में और न ही बाहर कहीं भी पुरुष को इस तरह परेशान नहीं करती है। फ़िल्मी दृश्यों से लेखक ने सिर्फ रेडलाइट क्षेत्र में ऐसा होता पाया है। जो पढ़ा है -उस अनुसार भी नारी वहाँ दैहिक व्यापार , अपनी ख़ुशी से नहीं करती है . बल्कि वहाँ भी वह पुरुष जबरदस्ती से बिठा दी गई होती है। अति वासना की दृष्टि चाहे वह पुरुष या नारी की जिसमें न करुणा ,और न दया को स्थान और न ही किसी के सम्मान की रक्षा होती है , निंदनीय और त्याज्य है।
पुरुष अपनी दृष्टि में न्याय लाये , अन्यथा आने वाला समाज चित्र - पूरे विश्व को रेडलाइट क्षेत्र में परिवर्तित होने का बन रहा है.  जहाँ नारी तो मूलभूत आवश्यकताओं की बाध्यता में और पुरुष दिलजोई के लिये दैहिक व्यापार को तत्पर रहने को श्रापित होंगे।  जिसमें मनुष्य होने की श्रेष्ठता मिट जायेगी , मनुष्य पुनः जानवर के समकक्ष हो जायेगा।
--राजेश जैन
29-01-2015

'ये देश'

'ये देश'
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मरने से 'ये देश' किसी को  रोक नहीं सकता है
जीने को 'ये देश' सुखद वातावरण दे सकता है
कौन है 'ये देश' ?
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'ये देश' विक्रेता , 'ये देश' क्रेता है
'ये देश' वैद्य , 'ये देश' रोगी है
'ये देश' सेवा ,'ये देश' सेवभोगी है
'ये देश' पुरुष , 'ये देश' नारी है
'ये देश' बूढ़ा , 'ये देश' जवान है
'ये देश' झूठा , 'ये देश' सच्चा है
'ये देश' कर्मठ , 'ये देश' आलसी है
'ये देश' धनवान , 'ये देश' निर्धन है
सुखद वातावरण ?
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सब विविधता के साथ देश में
वातावरण सुखद हो सकता है
छल कपट न हो आपस में तो
सुखद वातावरण हो सकता है
कौन बनायेगा सुखद वातावरण ?
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देश या किसी को हम नहीं बुरा कहें
हमसे है 'ये देश' हम इसे अच्छा करें
विदा करें दुष्टता एवं  छल अपने से
हम सुखद वातावरण की रचना करें
-- राजेश जैन
28-01-2015





Monday, January 26, 2015

टर्निंग पॉइंट

टर्निंग पॉइंट
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बर्थडे पर , sms /fb के अब्ब्रेविएशंस में लिखा एक मैसेज , किसी भी पापा के जीवन में टर्निंग पॉइंट हो सकता है।  उस दिन से वह पापा ,सॉफ्टवेयर में कुशलता बढ़ाने के , विभाग में प्रमोशन की कामना के या जीवन में धन के गुणा -भाग के यत्न छोड़ कर कुछ नया -अच्छा कर सकता है । इसे पढ़कर वह बेटी के लिखे की सच्चाई , जाँचने का विचार कर सकता है कि  क्या वह , वास्तव में बच्चों का ऐसा मार्गदर्शक बन सकता है ? या ऐसा एक बेटी उससे सिर्फ सहज लगाव के कारण लिखती है ? वह पापा "प्रेरणा मानवता और समाज हित " और "नारी चेतना और सम्मान रक्षा " दो फेसबुक पेज के माध्यम से लेखन आरम्भ करता है । दोनों पेज लगभग 2 वर्ष के जाते हैं । उस बेटी के आज बर्थडे पर पापा इसे जीवन का अच्छा टर्निंग पॉइंट निरूपित करता है। इस जीवन दायित्व की प्रेरणा बनने के लिये बेटी को हृदय से धन्यवाद देता है। समाज में अनेक बेटी हैं , जिन्हें शिक्षा और अवसर समानता से नहीं मिलते हैं ,तब वह प्रसन्न है , आज युवा और वह भी बेटी , छोटी भी है , पुरुष और अपनों से बड़ों को भी को सच्चाई सिखाने की योग्यता अर्जित कर रही है। आप पढ़िये इस पेज के माध्यम से ऐसा एक मैसेज। जीवन में नेकी के लिए प्रेरित कर जो जीवन लक्ष्य बदल देता है ।जन्म दिन की शुभकामना बेटे ...
-- राजेश जैन
27-01-2015
Dearest Papa,
On dis very special day, i juz wanted to tell u how i feel havng a 'PAPA' lyk u!!!
Papa, almost evry daughter thinks dat she has d BEST father in d world...
But whenever i cum across any girl sayng dat, i simply start wonderng how can she have d best father in d world when d best father in d world is "MY PAPA"... :) :)

I m so fortunate to have ' U ' as my father. U give me strength, u r capapble of solvng al my problems, doubts juz by ur prominent words and thoughts. I m grateful to god who blessed me wid a perfect Papa, a perfct family.... :) :)
U knw papa, In my life, be it school, college, neighbours, nywhr nd evrywhr, i alwaz feel dat i m happier than d othr girls of my agegroup , simply bcoz dere parents have not given dem complete guidance. I am nt sayng dat dere upbringing or brought-up is defective or not upto-d- mark. But all i wanna highlight here is d word 'complete'. And the emphasis on dis word is bcoz u have guided us completely, in all ways ,U have shown us every aspect of life , u have given us morals,values that helps us to think above our own good and motivates us to do somethng for the society, poor nd needy. U have always been friendly.
Today,u have set a platform , where I can come upto u, and share and discuss any kind of problm, be it related to studies ,hostel ,college or even as silly as a guy followng me or proposing me. You r father, a friend, a protector ,a supporter, an instructor, evrythng a girl wants her father to be....
THANK U SO MUCH ♥ ♥
i shud thank god as well for makng me dat fortunate daughter.
Sumtyms sitting alone in sum corner of my rum, i used to spend my tym wonderng , y m i happier , more popular than others, Is is talent, beauty, looks, money, dresses,personality wht?? wht is it???
And den i got my answer, its ' U' , ' U and mumma', my parents (obvi my sweet sisy too :P)
In short, its a perfect, pure , immaculate, pristine FAMILY of ours....
People think i m perfect, actually its not just a perfect 'Daughter ' , its a perfect family, perfect brought up behind that.
"CHEERS TO OUR FAMILY" :P :P
I think I have written too much, but believe me, even dis much is not enough to xpress al my feelings nd gratitude.
HAPPY B'DAY 'Mele Pyale PAPA' :)
nd thnx (nd congrats as well)
U R THE BEST FATHER IN THE WORLD
(i m pretty sure that other daughters lie) :P
(Written on dt.13-08-2012)

मन में बैर नहीं चाहिये

मन में बैर नहीं चाहिये
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वही हाथ वही पाँव एवं
मनुष्य समतुल्य तन
पहनी गणवेश अलग
और मन में धारण बैर

प्राण लेने की पिपासा
लिये आमने सामने हैं
जिसके जायेंगे प्राण
माँ मर जायेगी जीते जी

माँ का क्या अपराध
सजा दे दी इतनी बड़ी
न चाहिए युध्द स्थल
नहीं चाहिये सीमायें

जन्म है जीवन वरदान
नहीं दी गई मौत चाहिये
नए लिखें हम अध्याय
नए शीर्षक होने चाहिए
सभ्यता की नई दिशा
नई मंज़िल हमें चाहिये
गणवेश रहें जुदा लेकिन
मन में बैर नहीं चाहिये

संतोष न सभ्यता अभी
सभ्यता परिपूर्ण चाहिये 
(बाघा बॉर्डर बीटिंग रिट्रीट - देखकर )
-- राजेश जैन
26-01-2015

Saturday, January 24, 2015

जयस्तंभ


जयस्तंभ
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तीन वर्ष विवाह के हो चुकने पर एक सुबह ,सुदृढ़ और गरिमा , घने कोहरे में घूम रहे हैं , कोहरा इतना घना है कि सामने जयस्तंभ भी नज़र न आ रहा है । सुदृढ़ ने कहा - गरिमा , लगता है , जयस्तंभ एनक्रोचमेंट में हटा दिया गया है। गरिमा (रुखाई से ) - सामने स्पष्ट दिखने पर कोई वस्तु न दिखे तब उसे हटाई गई कहना ठीक है।
सुदृढ़ - यह , मनोविज्ञान होता है , जिसे हम पसंद नहीं आते , उसकी बात में कमी देखते हैं। गरिमा चुप सुनती है। सुदृढ़ आगे कहता है - गिलास आधा भरा देखना , अनुकरणीय दृष्टिकोण होता है। गरिमा - यह , विषयांतर है। सुदृढ़ - नहीं , अगर तुम मुझमें अच्छाई न देख सकोगी - तो साथ और जीवन ,आनंददायी न होगा , यह गिलास को आधा खाली देखना कहलायेगा। गरिमा - लेकिन बात तो जयस्तंभ की थी , यह गिलास कहाँ से आ गया ?सुदृढ़ - मैंने तो वह हास्य के लक्ष्य से कही थी , तुमने हँसा नहीं,अगर तुम्हें मेरे साथ में आनंद आ रहा होता तो तुम इसे इस तरह न लेतीं । गरिमा - तब भी गिलास तो नहीं आता है।  सुदृढ़ -आता है , हम विवाहित हैं , साथ लम्बा है।  मेरे में 50% जो अच्छा है वह तुम देखना , तुममें 80% जो अच्छा है , मै , देख रहा हूँ। इससे आनंद मिलता रहेगा ,जीवनपथ पर हँसकर आगे बढ़ेंगे इस तरह। गरिमा - मुस्काती है। सुदृढ़ - अब ,बताओ गरिमा , जयस्तंभ के बाद गिलास आता है , न ? गरिमा प्रेमपूर्ण दृष्टि से देखते हुए  - हाँ , सुदृढ़ , बिल्कुल आता है , दोनों खिलखिला कर हँसते हैं , अब वे ,जयस्तंभ के पास हैं , जो कोहरे में भी दिखने लगा है   .......
--राजेश जैन  
25-01-2015

स्वयं का इंटरव्यू

स्वयं का इंटरव्यू
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Qu. 1- बिना स्पेक्स की 6/6 ज्योति?
Ans. 1 -10 वर्ष पूर्व तक 
Qu. 2- घनी काली दाढ़ी ?
Ans. 2- 18 वर्ष पूर्व।
Qu. 3- घने काले बाल ?
Ans. 3 -30 वर्ष पूर्व तक  .
Qu. 4- उच्च जीवन उमंग?
Ans. 4 -38 वर्ष पूर्व .
Qu. 5- निर्दोष जीवन दृष्टि ?
Ans. 5 -53 वर्ष पूर्व - बिना ज्ञान के .
Qu. 6- ज्ञान किन्तु दोषपूर्ण  जीवन दृष्टि ?
Ans. 6 -वर्तमान में - 54 वर्षीय होने पर.
Qu. 7- ज्ञान सहित दोषरहित जीवन दृष्टि ?
Ans. 7- सैकड़ों वर्ष लगें शायद , लेकिन जीवन उतने काल तक का नहीं है।
लेखक के इंटरव्यू को यदि आप पढ़ रहे हैं , तो कृपया लेखक को मार्क्स दीजिये 100 में से

--राजेश जैन
25-01-2015
 

Friday, January 23, 2015

गर्लफ्रेंड मन पर शासन

गर्लफ्रेंड मन पर शासन
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परिवार में नारी के साथ , हम पुरुष रहते हैं। उनके लिये हम कुछ करते हैं तो यह भी सच है वे भी हमारे लिये बहुत करती हैं। हमारे परस्पर कर्तव्य होते हैं।
अपने पुरुष कर्तव्य
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इस आलेख में नारी का साथ पुरुष की प्रेयसी (गर्लफ्रेंड) या पत्नी की भूमिका पर केंद्रित किया जा रहा है। इस भूमिका में पुरुष का नारी तन पर भी अधिकार होता है। भौतिक रूप से पुरुष -नारी साथ होते /रहते हैं। और सच्चे साथ में मन से भी निकट होते हैं। पश्चिमी सोच से दुष्प्रभावित पुरुष छिपे तौर पर अन्य नारी से भी दैहिक निकटता के लालायित हो रहे हैं। अगर पुरुष  के रसिक स्वभाव का है , तब नारी की छठी इन्द्रिय शीघ्र ही इसे भाँप लेने में समर्थ होती है। पुरुष के ऐसे किसी संबंध की जानकारी प्रेयसी(गर्लफ्रेंड) /पत्नी को लगने में ज्यादा विलम्ब न होता है।ऐसे में तब नारी मन से पति /प्रेमी(छद्म) का स्थान ,शीर्ष पर नहीं रह जाता है।
ऐसे में बाध्यता में नारी साथ तो शायद निभाती है ,दैहिक संबंध भी चाहे रहे आयें किन्तु उनके मन पर इस पुरुष से अधिक कोई/(कुछ) और पुरुष शासन कर सकता है। सुखी परिवार सुनिश्चित करने के लिये पति का अकेले नारी तन पर ही नहीं मन पर भी राज होना अपेक्षित होता है। इसलिये आवश्यक होता है कि पति -प्रेम संबंध में सच्चा हो। और अपनी पत्नी या प्रेयसी से (प्रेम सच्चा है तो एक ही होती है) अलग किसी अन्य से दैहिक संबंध के लिये न भटके। अपनी पत्नी या प्रेयसी के तन और मन पर तब वह राज करता है।
अन्य नारी के मन में अपने लिए आदर
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तन अपेक्षा को पृथक किया जाए तब पुरुष नारी से कई मानसिक संबंधों से गुँथा होता है।  माँ -बहन और बेटी के मन में भी उसके लिये आदर और स्नेह का स्थान होता है। परिवार की नारी के अतिरिक्त अन्य नारी से जब पुरुष माँ /बहन/ और बेटी सदृश्य पवित्रता  निकटता में होता है ,तब पत्नी /प्रेयसी (गर्लफ्रेंड) को शिकायत के अवसर नहीं होते हैं। निःसंदेह पुरुष अन्य नारी के लिए बेटे सा , भाई सा या पिता सा सहारा देकर , उनके मन में स्थान बनाये , इसकी सीमा नहीं है , एक से लेकर लाखों -नारी मन में वह अपने लिए स्थान अर्जित करे , समाज का भला ही करेगा।  लेकिन दैहिक रूप से एक से ज्यादा से जुड़ेगा तो पत्नी /प्रेयसी से ,स्वयं से और समाज से न्याय नहीं करेगा। सबके लिए बुरा ही करेगा।
चतुराई का बुरा परिणाम
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पुरुष कई बार चालाकी करता है। अपेक्षा करता है , पत्नी /प्रेयसी (गर्लफ्रेंड) उसके अतिरिक्त किसी से प्यार न करे। लेकिन स्वयं इधर-उधर ताँक -झाँक , और दैहिक निकटता अन्य से करता है। ऐसा पुरुष , अपनी ही नारी संगिनी के मन से गिरता है। घर और तन पर उसका शासन हो सकता है। किन्तु नारी मन पर बाह्य पुरुष छा जाता है। चतुराई से भौतिक प्रगति तो मिल सकती है। किन्तु प्राप्त रही उसकी आत्मीयता खो देता है। 
सच्चा प्रेमी ?
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सोशल साइट्स के आने के बाद स्थिति बदली है। नारी को अब , विश्व के किसी भी स्थान के (अपरिचित) पुरुष विचार पढ़ने /समझने मिल रहे हैं। कुछ अच्छे पुरुष निःसंदेह उनके पढ़ने में आ जाते हैं। जो उन्हें सच्चे प्रेमी लगते हैं। कौन होता है सच्चा प्रेमी ? सच्चा प्रेमी , वह होता है , जो प्रेम से हमेशा देता है , बदले में प्राप्ति अपेक्षा नहीं रखता है।  अपरिचित पुरुष , सोशल साइट्स पर नारी को सुलभ होता है। जो हमेशा ऐसा विचार -दृष्टिकोण देता है जिससे नारी का अवसाद दूर होता है ,उसे जीने का मनोबल मिलता है। और एक राह मिलती है ,जिसमें चलकर जीवन सार्थकता सुनिश्चित होती है।  नारी को बदले में इस अपरिचित को देना कुछ नहीं होता। प्रत्यक्ष में अपरिचित भी उससे कुछ नहीं लेता। प्रेम की उत्कृष्टता है यहाँ।
हम ही बनें सच्चे प्रेमी
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हम जैसा प्रेम प्रदर्शित करते हैं , वैसा मन से करें। प्रेम ,अपनी प्रिया को अधिक से अधिक ,सुख देने का यत्न करता है। ऐसे प्रेम को बदले की अपेक्षा नहीं होती है। लेकिन यह सच्चे प्रेम की विशिष्टता है , न चाहने पर भी लौट के मिला प्रेम उससे बढ़कर होता है। लेखक अनुभवी है - क्यों न हम करके देखें? सच्चा प्रेम।
नारी कर्तव्य
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मेरे पुरुष साथी जिन्होंने नारी से छल पाया है , सख्त आपत्ति करेंगे , उनकी शिकायत न रहे इसलिये नारी कर्तव्य की संक्षिप्त चर्चा करनी होगी।  यद्यपि नारी उल्लेखित दृष्टि से ज्यादा सच्ची है। तब भी ऐसे ही कर्तव्य जो पुरुष के नारी के प्रति बताये गए हैं , नारी को पुरुष के प्रति निभाने की चेतना धारण करनी चाहिए।
नारी -पुरुष समान (Gender Equality)
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नारी -पुरुष के समान है , यहाँ भी समान अपेक्षा नारी से भी है। पश्चिमी स्वच्छंदता से निष्प्रभावी रह वह भी पुरुष से भारतीय चरित्र अनुसार ही रिश्तों से जुड़े। 

--राजेश जैन
24-01-2015

Thursday, January 22, 2015

गरिमा

गरिमा
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मैरिज को 10 माह हो चुके , तब चेतन (पापा) ने , गरिमा से पूछा , बेटी सुदृढ़ कैसे हैं , अच्छे निभाते हैं , तुम्हें ?
गरिमा - पापा , सुदृढ़ बहुत अच्छे हैं , थैंक्स , आप और ममा का सेलेक्शन बहुत अच्छा है।
चेतन (समझाने वाले स्वर में ) - बेटी , तुम्हारा जजमेंट भी तो शामिल है ,(कुछ रुककर) बेटी , अच्छा और बुरा सबमें होता है। तुममें भी होगा , मानती हो ?
गरिमा -हाँ , पापा।
चेतन - लेकिन हमारे सामने जब कोई अच्छा है , तो हम , व्यवहार में अपने बुरा का -उपयोग  करते हैं ?
गरिमा (प्यारे स्वर में ) -ना , पापा।
चेतन - सुदृढ़ , अच्छे हैं , अपनी अच्छाई से ही उन्हें निभाना , जैसा करती आई हो कोशिश करना। अच्छे व्यक्तियों के सर्किल में रहना , पता है क्या होगा ?
गरिमा (इठला कर ) - क्या , पापा ?
चेतन - बेटे ,जानती हो , मनुष्य की भी पूँछ , हुआ करती थी।
गरिमा - पापा , पढ़ा है।
चेतन - पूँछ का प्रयोग न करने पर , वह मनुष्य शरीर से लोपित हो गई।  वैसे ही अच्छे व्यक्तियों के सम्पर्क में हम रहेंगे , अपने में से बुरा का प्रयोग हमें न करना होगा तब , हमारे मन और स्वभाव से बुराई विलोपित हो जायेगी।
गरिमा (शंका मिश्रित स्वर में ) - ऐसा हो सकता है ?
चेतन - बल्कि , इससे अधिक हो सकता है , हमारा यह अच्छा सर्किल , बड़ा हो सकता है , और उतने में से , बुराई विलोपित हो सकती है।
गरिमा (लाड़ से )- मेरे प्याले पापा।
चेतन (दुलार से )  - मेरी , प्याली बेटी।
--राजेश जैन
23-10-2015

भारतीय से आगे बढ़ती पाश्चात्य नारी


भारतीय से आगे बढ़ती पाश्चात्य नारी
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लेखक ने अनेकों पूर्व पोस्ट और पंक्तियों में पाश्चात्य नारी की भर्त्सना की है। भारतीय नारी को उत्कृष्ट कहा है। लेकिन लगता है शीघ्र ही भारतीय नारी पर पाश्चात्य नारी , अग्रता ले लेने वाली है। अभी पाश्चात्य नारी हमसे पीछे है , सुविधा प्रलोभनों से दुष्प्रभावित है।  पुरुष से समानता के नारे में उसने , पुरुष से जिन बातों में समानता प्राप्त की है , वह पुरुष की अच्छाई से कम , उसके दुर्गुणों से ज्यादा की है । अभिप्राय यह है कि पाश्चात्य विश्व में नारी , पुरुष  दुर्गुणों से बराबरी करने में सफल हुई है। और इस कारण पुरुष की अतृप्त देह-भूख की पूर्ती का साधन (वस्तु ) बन गई है। इस बराबरी में वह आज आगे , और हमारे यहाँ की भ्रमित नारी पीछे है। बुराई में पीछे रहने के कारण , अच्छाई के दृष्टिकोण से देखने पर हमारी नारी अभी तक श्रेष्ठ है।


नारी भी मनुष्य मस्तिष्क रखती है इसलिए जो  पाश्चात्य नारी आज के प्रचलन में आगे है। वह बुराई से ठोकर खाने में भी आगे रहेगी और इस ठोकर से जीवन सीख पहले ग्रहण कर राह बदल कर भारतीय नारी से श्रेष्ठता छीन सकती है। भारतीय नारी(और पुरुष) की बुध्दिमत्ता की यहाँ परीक्षा है। अगर वह दूसरे के ठोकर से सबक लेकर , ठोकर खाने से बच सकेंगे तब भारतीय नारी श्रेष्ठ रह सकती है।  अन्यथा पाश्चात्य नारी अच्छाई में आगे हो जायेगी।


"नारी - पुरुष समानता" का लेखक का संकल्प है , लेखक का प्रबल समर्थन है। लेकिन शर्त यह है कि नारी , पुरुष के सद्गुणों में , और पुरुष , नारी के सद्गुणों में समानता की होड़ करें।


--राजेश जैन
22-01-2015

Tuesday, January 20, 2015

नारी चेतना और सम्मान रक्षा , अभियान


नारी चेतना और सम्मान रक्षा , अभियान
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सोये ज़माने को ,हम
झिंझोड़ के न उठायेंगे
लाड़ करते सबसे ,हम
दुलार से उन्हें जगायेंगे

सम्पूर्ण चेतना में उर्जित हो उठो
जीवन आज नवप्रभात ले आया है
परिपूर्णता अपने जीवन की निहारो
नवदिन आज नवप्रकाश ले आया है

नित दिन सूर्योदय हो जाता है। लम्बी अवधि चलते जाने से ,हम
यह मानने लगते हैं , यह जीवन अधिकार है-

रोज न आएगा प्रभात
क्रम यह टूट सकता है
करलें अच्छा जीवन में
भ्रम कभी ये टूट सकता है

आज का दिन मिल गया है , हमारे जीवन को हम भाग्यशाली हैं -

नवदिन के नवप्रकाश से
नई चेतना हम ले सकते हैं
समाज बुराई मिटाने में
योगदान हम दे सकते हैं

--राजेश जैन
21-01-2015
 

नारी परिधान

नारी परिधान
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 वास्तव में जीवन में रचनात्मक या अच्छा कुछ करने के लिये एक आत्मविश्वास का होना आवश्यक होता है।  अलग अलग व्यक्ति कई अलग अलग तरह से यथा - ज्ञान से , धन से , रूप से ,बल से , यौवन से और अन्य तरह से अपने में आकर्षण लाकर अपने लिये उस आत्मविश्वास की व्यवस्था करते हैं। आज कई तरह की एक्सेसरीज (बँगला ,गाड़ी , महँगे गैजेट्स आदि) भी व्यक्तित्व के आकर्षक दिखाने में सहायक होते हैं।  परिधान भी कुछ मूल आवश्यकताओं की पूर्ती के साथ ही , आकर्षण उत्पन्न कर सकता है।  
भारतीय नारी पहले ,मुख्य रूप से गृहस्थी और रसोई में सीमित थी। उनके पारम्पारिक परिधान , घर के उन कार्यों के अनुरूप होते थे। नारी अब ,घर से बाहर आई है।  ग्रह -परिधान में रहकर , व्यवसाय ,यात्रा और मार्केट असुविधाजनक होता है। लेखक थोड़ा पुराने परिधान में जैसे (साड़ी , चूड़ीदार ) आदि में नारी में पर्याप्त आकर्षण देख लेता है . अगर अपने स्वयं के लिये फील्ड वर्क में जीन्स सुविधाजनक अनुभव करता है । इस सुविधा दृष्टि से  पुरुष ने अपनी वेशभूषा बदली है .निश्चित ही , नारी भी आवश्यकतानुसार बदलने की अधिकारिणी होती है।
पुनः आत्मविश्वास पर बात करता हूँ।  नारी अपने कार्य /क्षेत्र अनुरूप जिस भी परिधान में आकर्षण के साथ आत्मविश्वास अनुभव करे , उसे छूट है। लेकिन सभी परिधान , सभी को उम्र , दैहिक गठन के कारण सूट नहीं होते हैं। सिर्फ देखा देखी में कुछ भी कहीं पर पहनने से आवश्यक नहीं की अपना आत्मविश्वास बढ़ता ही हो। लेखक ने देखा , कुछ ग्रामीण क्षेत्र की युवतियाँ ,नगरों में आने पर आधुनिक परिधान , नकल में पहन लेती हैं।  उन्हें नया होने से स्वयं में अजीब सा लगता है।  बार -बार वस्त्रों को सहेजने में लगी रहती हैं। नहीं लगता की , आधुनिक परिधान से उसका विश्वास बढ़ रहा है , बल्कि विश्वास डिग रहा होता है।
समय और स्थान भी परिधान की उपयुक्तता पर विचारणीय होते हैं। निश्चित ही समुद्र किनारे के कपड़े पहन कर कोई कार्यालय/मंदिरों में नहीं आयेगा। किन्तु आ जाये तो उचित नहीं लगेगा। हाँ क्रिकेट , पूरे कपड़े पहन कर खेला जाता है , लेकिन तथाकथित महान , शर्ट लहराकर ,  नग्नता दिखा ,प्रशंसकों को गलत सीखने को दुष्प्रेरित करते हैं। किसी के उकसाने पर या प्रतिक्रिया नहीं हों , सोच समझकर , यदि नारी अपने वस्त्र तय करती है , तब उनके सभी परिधान उचित ही हैं।
जो भी हो , धन अभाव , शिक्षा अभाव में या अन्य भ्रमों में नकल करते , कोई नारी जब अजीब वस्त्रों में दिखती है।  सच कहूँ , न वासना , न हास्य उपहास और न ही आलोचना लेखक की दृष्टि में आता है।  बल्कि , उनके अभाव से ,अजीब सी इस गलती से एक करुणा ही मन में उमड़ती है।
नारी के आधुनिक परिधान में होना , उसका कोई आमंत्रण नहीं है , इसे समझना चाहिये। अगर आकर्षक वह दिखना चाहती है या दिखती है। वह सिर्फ उसकी इक्छा और आत्मविश्वास के यत्न माने जाने चाहिए । जिस तरह आकर्षक पुष्प को पौधे से तोडना , बगिया की रौनक मिटा देता है। उसी तरह आकर्षक परिधानों में नारी पर ललचाई दृष्टि , उसपर छींटाकसी या उस पर अत्याचार , उसे कुम्हला देगा। सुंदर दिखती इस दुनिया की विशिष्ट सुंदरता मिटा देगा। आप ऐसी दुनिया में रहना चाहेंगे , जहाँ नारी लबादों सिमटी , डरी -उदास सी पड़ी है ?
नारी कुछ भी पहने , स्वतंत्रता उसे होनी चाहिये।  पुरुष की दृष्टि , अवश्य दोषरहित होनी चाहिये।

बिता के दिन जीवन के कहाँ स्वयं आया है ?
खोने को नहीं कुछ यहाँ क्या हमने पाया है ?
लक्ष्यहीन जीवनयात्रा बिन समझें न तय करें
जो दिलाया दूसरों को नेट वही हमने पाया है

सम्पूर्ण चेतना में उर्जित हो उठो
जीवन आज नवप्रभात ले आया है
परिपूर्णता अपने जीवन की निहारो
नवदिन आज नवप्रकाश ले आया है


 --राजेश जैन
21-01-2015

Monday, January 19, 2015

साथ कई-कई बार रेप हो चुका होता है

साथ कई-कई बार रेप हो चुका होता है
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नहीं, जो प्रतिक्रिया नारी उग्रता में है। पूरी सही अभी नहीं है। हर पुरुष अभी बुरा नहीं है। और जो बुरा है वह हर कहीं बुरा नहीं है। जो बुरा है , हर समय वह बुरा नहीं है।  पुरुष जितना अभी बुरा है , पूरी संभावना अभी शेष है।  उसकी बुराई को अशेष कर , उसे अभी अच्छा -सज्जन पुरुष बनाया जा सकता है।
हर पुरुष जब हर समय बुरा नहीं है तो , उस समय को रोका जा सकता है , जब वह बुरा बनता है। हर पुरुष हर कहीं अगर बुरा नहीं है तो पुरुष को वहाँ पहुँचने से रोका जा सकता है , जहाँ वह बुरा बन जाता है।
जो मनुष्य मन में बुराई बढ़ाते हैं उन स्त्रोतों को पहचान के हम , अभी बुराई नियंत्रित कर सकते हैं ।
आदरणीया तस्लीमा नसरीन के ये शब्द हर पुरुष पर सही नहीं हैं -
"बल्कि सभी लड़कियाँ रास्ते में होने वाली अश्लील घटनाओं को चुपचाप झेलने के लिए तैयार रहती हैं। वे यह भी जानती हैं कि उनके कपड़े पर पान थूककर अपने गन्दे दाँत चमकाता, हँसता कोई अनजान युवक निर्लिप्त भाव से चला जायेगा।"
इस पेज की एक एडिटर , सुश्री त्रिपाठी के द्वारा की गई पोस्ट के यह शब्द सभी बालिकाओं पर सही नहीं हैं -
"मन का भक्षण भी रेप है… जब तक एक लड़की इस दुनिया को समझ पाने के लायक बनती है तब तक उसके साथ कई-कई बार रेप हो चुका होता है… रेप उसके सपनों का, उसकी इच्छाओं का उसके अरमानों का"
लेखक ने बालिकाओं को अनेकों परिवार में खुश रहते देखा है।  सपने, अपने पूरे करते देखा है। बेटी के पिता हो , बेटी के साथ बचपन से मित्रवत रहते कभी , उसे इन बातों से व्यथित ,घबराया नहीं देखा है। अपवाद में ही , कभी ऐसी घटनायें मित्रवत पिता ने ,उससे सुनी है।  उपाय उसे , बता देने पर , सुरक्षा करना बेटी ने सीखा है।
आदरणीयाओं द्वारा उध्दृत अंश को भी झूठा नहीं माना जा सकता है।  नारी मन को नारी ही ज्यादा जानती है। माना कि ,दोष पुरुष व्यवहार और कर्मों में अनेकों हैं। लेकिन दोष चरम सीमा पर नहीं हैं।  लाज और स्वाभिमान जिसे कहने से परम्परा आपको  रोकती  आई थी । उससे पुरुष दृष्टि में महत्व आपका मूक प्राणी से ज्यादा नहीं रह गया था। अच्छा है , हमारी संगिनी नारी -आप मुखर हुईं हैं। अब जब पुरुष , ये प्रतिरोध पढ़ेगा , आप कहेंगी और वह सुनेगा। तब समझ लेगा।  नारी भी उसके समतुल्य ही मनुष्य है।
अतिशयोक्ति /अन्योक्ति में इस तरह की उग्र प्रतिक्रियाओं से यद्यपि लेखक असहमत है। किन्तु आपको , जिसने सब भुगता है , चुप रहने की सलाह नहीं देगा। घर -परिवार , बनाती आईं , जिसके केंद्र में आप स्थित रही हैं उससे आपकी रचनात्मकता के गुण का लेखक आदर करता है । आप , जैसे ही एक संतोषजनक स्थिति पर आ जायेंगी , निश्चित ही धीरता  -गंभीरता आपमें स्वयं परिलक्षित होने लगेगी।  आप निश्चित ही एक अच्छा समाज चित्र खींच लेंगी। लेखक धीरता रखेगा। आपके प्रयास से बनता सुंदर समाज चित्र , जिसमें नारी सम्मान भी सुनिश्चित होता है , तल्लीनता से देखेगा। जो सहायता के योग्य मानेगीं , उसे निभाने में स्वयं को भाग्यशाली मानेगीं। स्वयं सुधरेगा , पुरुष साथियों से अनुनय भी करेगा। अंत में स्वयं को प्रोत्साहित करने के लिए -शुभप्रभात -

सम्पूर्ण चेतना में उर्जित हो उठो
जीवन आज नवप्रभात ले आया है
परिपूर्णता अपने जीवन की निहारो
नवदिन आज नवप्रकाश ले आया है
--राजेश जैन
20-01-2015

क्षणिकायें निरंतर -निरंतर

क्षणिकायें निरंतर -निरंतर
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दामन पर दाग
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दामन पर दाग देने वालो
दामन पर दाग न लगाओ
गर लगाओ तो दृष्टि बदलो
दाग नीचे जीवन न दब जाए


तरक्की
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हमारी अपनी हो नारी , अतः
अपने लिए नहीं हम , तरक्की
तुम्हारे लिये ,तुम्हारी तरक्की
जिसमें मानव तरक्की चाहते है


हार
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आत्मावलोकन के कुछ अवसर होते हैं
 कुछ जगह हार के सब जीता जाता है
 जीवन में जीत से ही न जीता जाता है
 हारने की वीरता से जगजीता जाता है


परछाई
---------
दूसरे में दिखती बुराई कभी कभी
परछाई अपने मन की ही होती है


'नफरत'
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जो पाया दुनिया में
वही दुनिया को लौटाया जा सकता है
यदि धोखा मिले तो
बरबस ,'नफरत' ही लौटाई जा सकती है


शादी
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"शादी को इतनी बड़ी , मुसीबत क्यों बताते हो ?
भाई तुम ,शादी बाद खोते नहीं ज़िंदगी पाते हो "


--राजेश जैन
19-01-2015

Sunday, January 18, 2015

तुम्हें आदरणीया मै कहता हूँ

तुम्हें आदरणीया मै कहता हूँ
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बालिकाओं पर अत्याचार की सुन मै रोता हूँ
उभर रहे वीभत्स समाज चित्र से मै डरता हूँ

संस्कृति में नारी तन एक के समीप होता है
कृत्यों से कई के, आहत उनका मन होता है

मन से जुड़ें अनेक से नहीं बुराई कोई होती है
मिलते मन तो साथ में नई मंज़िल मिलती है

आविष्कृत बेतार से सब बात किया करते हैं
तारों से मन पढने में असफल हुआ करते हैं

मन के जोड़ तार मनुष्य मन की मै पढता हूँ
पुरुष का आदर तुम्हें आदरणीया मै कहता हूँ

जगाऊँ चेतना नारी में नित चिंता करता हूँ
मानवता के आदर के लिए यत्न मै करता हूँ

सम्पूर्ण चेतना में उर्जित हो उठो
जीवन आज नवप्रभात ले आया है
परिपूर्णता अपने जीवन की निहारो
नवदिन आज नवप्रकाश ले आया है

--राजेश जैन
19-01-2015

स्वाभिमानी

स्वाभिमानी
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नारी इस देश की स्वाभिमानी है
संघर्षों से जूझने में वह मर्दानी है

सार्वजनिक रूप से सिसकती वह
बर्बरता समाज की व्यक्त होती है

कवि समझता असहनीय पीड़ा को
क्योंकि कवि भी तो स्वाभिमानी है

आव्हान करता बर्बरता छोड़ने का
पुरुष उसका स्वयं पर ललकारता है

मिटा दो कष्ट नारी के, अपनी ही है
भला अपनों को वीर कोई मारता है

--राजेश जैन
18-01-2015
 

Saturday, January 17, 2015

धुंध हटा दृष्टि से दो नारी को तुम आदर

धुंध हटा दृष्टि से दो नारी को तुम आदर
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क्या कहती पेज से घने कोहरे की चादर ?
धुंध हटा दृष्टि से दो नारी को तुम आदर

वासना दूषित दृष्टि पर पड़े पाले से तुम
भावुक नारी मन को देख नहीं पा रहे हो

मन में उनकी दयालुता और करुणा को
हे क्रूर  तुम अनुभव नहीं कर पा रहे हो

तन पर सीमित वासना दूषित दृष्टि से
तुम कोमल उनके मन पर दे रहे छाले हो

मनुष्य तुम पुरुष , नारी भी मनुष्य ही है
मन मिलने से मधुर संगीत ही बजता है 

मधुरता के मनु समवेत मन तार तरंगों से
सभ्यता की मंज़िलें नई तय होती आई हैं

संस्कृति में नारी तन एक के समीप होता है
प्रयासों से कई के, मन उनका आहत होता है

नारी मन तुम भाँपो त्याग उनके तुम देखो
क्षमता से करने के न्याय अवसर उसे दे दो

"नारी चेतना" पेज , सूर्य बन ऊष्मा ये लायेगा
गर्मी से वासना धुंध मनु दृष्टि में पिघलायेगा 

सम्पूर्ण चेतना में उर्जित हो उठो
जीवन आज नवप्रभात ले आया है
सम्पूर्णता अपने जीवन की निहारो
नवदिन आज नवप्रकाश ले आया है
--राजेश जैन
18-01-2015

Friday, January 16, 2015

'साहित्य साधन' है- 'साधना' नहीं

'साहित्य साधन' है- 'साधना' नहीं
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इस लेखक/कवि का 'साहित्य साधन' है, 'साधना' है -

1. नारी में चेतना और उनका सम्मान देखना
2. मानवता पोषित करते हुए समाजहित देखना
3. स्वयं और सभी को 'संभ्रांत' देखना 

समय -समय पर साहित्यिक दृष्टि से कमजोर प्रस्तुति से साहित्य में कमजोर होने का उल्लेख लेखक के ध्यान में लाया गया है। कविता की विधा भी पूँछी गई है। वहाँ लेखक इसे चुप्पी से स्वीकार करता रहा है .

लेखक , एक कला और सीख रहा है , इसमें भी प्रस्तुति अभी कमजोर है। यह है "शब्दों से भविष्य की तस्वीर खींचने की"। इसी प्रयास में पूर्व पोस्ट में

1. 2075 का समाज मॉडल दिया है ,
2. 2315 में क्या हो सकता है तस्वीर दी है।
3. शोषित नारी प्रतिक्रिया में अब गर्भ में कन्या भ्रूण नहीं , नर भ्रूण को मारने वाली शब्द तस्वीर खींची है।
4. बच्चे की प्रसव क्षमता पुरुष , में भी आना यह चित्र भी खींचा है।
5. पीके द्वारा दिया गया चित्र पढ़ उसकी ,समीक्षा प्रस्तुत की है।

सबका कुछ समर्थन और कुछ विरोध हुआ है। लेखक ने लालन पालन देखा है , 5-6 वर्ष की उम्र में दादी उसे कहती थीं , पीछे तालाब में हाथी डूब गया था , वहां न जाया करो (ममत्व). दादा 16 -17 की उम्र में कहते थे , बेटे , स्टेशन पर क्रॉस पुल पर से करना , पटरी से नहीं (अपनत्व). यह ,ममत्व है अपनत्व है , जो कम अनुभवी /मासूम को आगाह करता है , परामर्श देता है। दृश्य तो डरावना देखते हैं , वे बड़े , लेकिन बताते बच्चे को हैं। ताकि ऐसा कुछ बुरा बच्चे का न हो , जैसा उनके भय /कल्पना में आया है।

लेखक , समाज को अपना मानता है , राष्ट्र को अपना मानता है। मानवता -विश्व में पल्लवित होते देखना चाहता (अपनत्व) है। पुरुष है लेकिन माँ की ममता सी लिए आता (ममत्व) है. जिस भयानक परिदृश्य की कल्पना देखता है , उसकी भयानकता से समाज को बचा लेने की ,नारी की रक्षा कर लेने की बच्चे के हित कर लेने की कामना लिए प्रतिदिन लिख आप सब के समक्ष आता है .उद्देश्य संकट में डालने का नहीं , भयानक करने का नहीं। बुराई की भयानकता से बचने /बचाने का होता है।

10 नव. 2012 में साहित्यिक दृष्टि से हल्की प्रस्तुति के माध्यम से। नौसिखिया इस कवि ने प्रस्तुति दी थी। आज यह पुनः प्रस्तुत है ( यह लेखक /कवि के हृदय की यह तस्वीर है )

पीड़ा मुझे हो जाती है
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जब देखता चलकर बहुत ,थक जाता है कोई पथिक
पैदल चलने के सिवा नहीं ,पास उसके कोई विकल्प
व्यय नहीं कर सकता वह, लेने कोई वाहन सेवा में
प्रतिदिन देख कई दृश्य ऐसे ,पीड़ा मुझे हो जाती है

सार्वजनिक स्थलों में ,विक्षिप्त दिखते कई पड़े ,घूमते
हो जाने पर अवस्था ऐसी ,त्यागा उन्हें स्वयं अपनों ने
ठण्ड में सिकुड़े पड़े किसी कोने में ,तब भी रहें ठिठुरते ही
भूखे ही शायद वे हों ,द्रष्टव्य इनसे पीड़ा मुझे हो जाती है

मासूम कई किशोरवय में ही ,भटकते हैं प्लेटफार्मों पर
जन्मे कोख से नारी के, शिकार हुई किसी कामी की जो
या अनाथ हो अबोध उम्र में ,चल बसने से माता पिता के
शोषण होता देख इन मासूमों का ,पीड़ा मुझे हो जाती है

गीतकार कामना में धन की ,रचना देते हलके अर्थ की
रचते गीत नाम प्रयोग कर शीला ,मुन्नी और चमेली
निकले जब गृह से नारी ,लेकर प्रयोजन घर बाहर के
गाते मजनूँ लक्ष्य कर नारी को ,पीड़ा मुझे हो जाती है

सजती हैं दुकानें ,भव्य और सुन्दर कई सामग्रियों से
आता कोई क्रय करने जब ,जरुरत पर इन्हें अपनों की
सुनता जब कीमत ,पसंद होने पर लौटे वह मनमसोसे
विवशता पर ऐसे क्रयकर्ता की ,पीड़ा मुझे हो जाती है

ये हैं उदाहारण कुछ थोड़े ,पर दृश्य उत्पन्न रोज अनेक
विश्व में मानव संस्कृति विकसित हो गई जब इतनी
हैरान समाज व्यवस्था वंचित कोई क्यों? इस हद तक
बदल सकूँ सामर्थ्य नहीं अतः ,पीड़ा मुझे हो जाती है

'राजेश', कहते हैं लेखनी में कवि की ताकत बहुत है
इसलिए मै बना कवि ,क्या मिलता सामर्थ्य मुझे है ?
बदले इस परिदृश्य को ,जगा सकता हूँ ऐसी चेतना?
क्योंकि दयनीय ये दृश्य देख ,पीड़ा मुझे हो जाती है

--राजेश जैन
17-01-2015

आहत - पुरुष स्वाभिमान


आहत - पुरुष स्वाभिमान
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प्रतिदिन 6 किमी प्रभात भ्रमण (morning walk) कीलेखक की एक अच्छी दिनचर्या , पिछले 14 वर्षों से चलती है । इसमें अवसर आये हैं , जब किसी सीनियर सिटीजन या स्कूल कॉलेज जाती गर्ल्स /टीचर के बाइक /स्कूटी में पेट्रोल खत्म हुआ या खराबी आ गई।
पुरुष के रोगी ह्रदय पर , या नारी पर , स्कूटी /बाइक , पेट्रोल पंप /मैकेनिक तक खींच ले जाने में शक्ति से बढ़कर एनर्जी न लगे इस दृष्टि से ,लेखक हेल्प ऑफर कर दिया करता है। पुरुष तो अक्सर स्वीकार करते हैं , और उनकी बाइक दूरी अनुसार 1-2 कि मी , खींच लेखक प्रसन्नता अनुभव करता है। ऐसे ही अवसरों पर गर्ल्स /टीचर द्वारा भी हेल्प ले ली गई है। किन्तु , एक से अधिक मौके पर शक की नज़र से देखते हुये कुछ नारियों ने इसे अस्वीकार कर दिया है। और स्वयं अपनी स्कूटी खींचते पीछे रह गईं हैं। 


शायद ऐसा अनुभव करता है हर पुरुष ह्रदय
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इंकार कर नारी का ऐसा करना , लेखक को तब ऐसा अनुभव हुआ है , जैसे उसके सीने पर से कोई आरी चलाकर  , चला गया है। जी हाँ -पुरुष स्वाभिमान आहत हुआ है। पुरुष स्वाभिमान , शेर जैसा है। अब शेर घायल है। अब अधिकतम क्षमता से कार्य कर रहा है।
किसलिये ?
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नारी का , पुरुष पर से उठ गया विश्वास को पुनः स्थापित करने के लिए।
पुरुष चिंतन का विषय
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सोचो , पुरुष क्यों उठ गया नारी का विश्वास
नारी ना हो साथ तो ,है इसका तुम्हें आभास?
तड़पते रह जाओगे ,नारी बन गई शक्ति तो
भ्रूण में मारे जाओगे, है इसका तुम्हें आभास ?


--राजेश जैन
16-01-2015

Thursday, January 15, 2015

लिखना सार्थक

लिखना सार्थक
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वे कुध्द थे , पूछा -
आप क्या समझते हो आप सभी को बदल दोगे ?
सकपका तो गया था , लेखक …
लेकिन बाद में
प्रश्न की सच्चाई , अपनी क्षमता को पहचान कर
लक्ष्य छोटा कर दिया था ,
"सौ दो सौ ही बदल गये" तो
समझेगा लिखना सार्थक हो गया है ।

--राजेश जैन
16-01-2015
सफ़ेद धवल
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कोहरे की जबलपुर की सफेदी में मैंने
पीछे वृक्षों के हरे को काला सा देखा है
सफेद काला भी करता अजूबा कहता हूँ
चूँकि धवल सफेदी में मैंने काला देखा है

सम्पूर्ण चेतना में उर्जित हो उठो
जीवन आज नवप्रभात ले आया है
सम्पूर्णता अपने जीवन की निहारो
नवदिन आज नवप्रकाश ले आया है
--राजेश जैन
16-01-2015

भारत माँ

भारत माँ
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भारत माँ की उर्वरा भूमि में हाय
कैसा ? दोष यह उत्पन्न हो गया है
पुष्ट होता जब इसमें पल बढ़कर
अलग राज्य की माँग किया करता है

सम्पूर्ण चेतना में उर्जित हो उठो
जीवन आज नवप्रभात ले आया है
सम्पूर्णता अपने जीवन की निहारो
नवदिन आज नवप्रकाश ले आया है

--राजेश जैन
16-01-2015

नारी गरिमा

नारी गरिमा
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डॉ प्राची - लेकिन भ्रूण जाँच अपराध है। युवती , 50000/- की गड्डी सामने रखती है। कुछ समय बाद। डॉ प्राची - गर्भ में बेटा है।
डॉ प्राची , गरिमा  को भी सब जैसा , "बेटी भ्रूण नहीं है" , इसलिए बच गया सोचते हुए लौटते वक़्त , दो नोट , निकाल ,गड्डी ,युवती को लौटा देती है।
रात्रि , गरिमा ,सुदृढ़ से - आज मैंने परीक्षण करवाया है , बेटा है अपना। पर मै जन्म देने में ख़ुश शायद ही हो ,पाऊँगी।
 सुदृढ़ -ऐसा क्यों ?
गरिमा -मुझे तो संस्कारों पर भरोसा है ,अच्छे  पाऊँगी। लेकिन जब बेटे को अच्छा पढ़ाने भेजेंगे , वहाँ के वातावरण में जहर है। उसमें ,बेटा सही रह सकेगा ?
(रुककर) -  देखिये , कार में , बस में , खंडहर में और पार्क में जहाँ तहाँ अनाचार किया जाता दिखता है.
सुदृढ़ - गरिमा , आप निश्चिंत अपने बेटे को जन्म दो।  मै  "आई पी एस"एसोसिएशन के अधीन ,"निर्भया /दामिनी अब और नहीं" बैनर तले देश में बदलाव की अलख जगाऊँगा। जब तक बेटा अपना बड़ा होगा , तब तक वातावरण का जहर मुझे विश्वास है , बहुत हद तक निकल जाएगा।
गरिमा सोच रही है , पति से चर्चा लेने से ,जानने के बाद कि भ्रूण "नर" है , पहली भ्रूण हत्या टल गई है।
गरिमा (चेहरे पर प्रेम उमड़ता है  ) - आपने , मेरे डर को बहुत हद तक मिटा दिया , मुझे भी मौका देना , मै भी अग्रणी नारी को साथ ले , जिन्हें ठीक सँस्कार
नहीं मिल सके उन बच्चों को मनुष्योचित गरिमा का पाठ पढ़ाऊँगी।
सुदृढ़ , हम अपने बेटे का नाम , चेतन रखेंगे।
गरिमा सर सुदृढ़ के कंधे पर रखती है। सुदृढ़  हथेली उसके सर पर रखता है , दोनों के आँखों में भविष्य इंद्रधनुषी सा होता सा दिखता है।
--राजेश जैन
16 -01-2015

Wednesday, January 14, 2015

फ़िल्मकार -फिल्म बनायें

फ़िल्मकार -फिल्म बनायें
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कुछ प्राणी प्रजातियों में मादा , नर से शक्तिशाली होती हैं। और उनमें मादा -शासन करती है। मधुमक्खी इसका उदाहारण होती है. मनुष्य में परम्पराओं पर चलने की प्रवृत्ति होती है। कारण होते हैं , जब कुछ विद्रोही परम्परा से हट कर कुछ अलग करने लगते हैं।  पूर्व परम्परा में खराबी है , और अलग जो किया उस में अच्छाई होती है। तब पूर्व परम्परा ख़त्म होकर यह अलग किया गया , परम्परा बन जाता है।  मनुष्य की चिकित्सा क्षेत्र में भी उपलब्धियाँ नित दिन नये आसमान को छूती जा रही हैं। वह बहुत से ऑर्गन ट्रांसप्लांट करने में सफल हो रहा है।
मनुष्य सभ्यता की विकास यात्रा में अब तक नारी , पुरुष से छोटी बन रहना पसंद करती आई है , यह पाषाण युग से चली आ रही परम्परा है।  नारी , पर शोषण के क्रम जारी रहने से आज , नारी परम्परा से हट कर कुछ करने को उत्सुक है , जिससे नारी शोषण मुक्त हो सके। अगर अब भी पुरुष ने पुरुषोचित न्याय धारण नहीं किया तो । पूर्व परम्परा से हटकर अन्य प्राणी प्रजातियों जैसी नारी , पुरुष से शक्तिशाली होने का यत्न आरम्भ कर देगी। चिकित्सा विज्ञान भी सहायक हो जाएगा। पुरुष शोषण करने के अपराध बोध से स्वयं नीचे दब जाएगा।  गर्भाशय ट्रांसप्लांट सहित कुछ शारीरिक बदलाव कर चिकित्सा विज्ञान किसी दिन वह रीति दे देगा , जब कुछ पुरुष को भी बच्चे जन्मने की क्षमता मिल जायेगी।
तब कहीं नारी और कहीं पुरुष नई संतति को जन्म देकर , नारी -पुरुष समान हो जायेंगे. ऐसा न हो तो अच्छा होगा।  हम पुरुष -नारी प्रकृति में क्रांतिकारी ऐसे बदलाव   की सम्भावना रोक सकते हैं।  नारी को पुरुष समान , मनुष्य का स्तर देना परिहार्य है। उस पर शोषण की आशंकायें न रहें ऐसा समाज हम बना सकते हैं। अगर नारी , पुरुष साथ में , पुरुष पर निर्भरता में सुख मानती है , तो उसका अपने को ऋणी मानकर , नारी को यथोचित सम्मान दिए जाने की जरूरत है.
नारी , जब धन अर्जन नहीं करती थी ,तब भी पुरुष आश्रिता नहीं थी। हमेशा , पुरुष संगिनी थी , किसी से छल नहीं किया जाना चाहिये ,अपने साथी से तो कदापि नहीं। क्यों , हमने धन को इतना बडा बनाया है?  अगर वह धन अर्जित नहीं करती तो हम पर आश्रिता है ? भ्रामक सोच क्यों हम पाले हैं? घर में  गृहस्थी के  जो दायित्व नारी ने परम्परा से सम्हाल रखें हैं ,  उससे पुरुष ,कहीं ज्यादा नारी आश्रित है। नारी , माँ , पत्नी , बहन और बेटी एवं बहु  रूप में पुरुष के लिए  जो करती रही है , पुरुष कितना भी धनी हो जाए, वह ,धन से नहीं प्राप्त कर सकता है।
शांत चित्त हो एक बार सोच लें सब , जिस पर एकाएक हँसी आती ऐसी इस पोस्ट को हँसी में न उड़ायें ।  नहीं तो ,मनुष्य सर्वनाश , हँसेगा , कैसा दुरूपयोग किया ,मनुष्य ने ,दिये गए, उन्नत मनुष्य का .मुझे बुला लिया ,अपने ऊपर और अस्तित्व अपना खो दिया। 

--राजेश जैन
15-01-2015

चित्रकार ,एक चित्र बनायें
फिल्मकार फिल्म बनायें ,
दक्ष कवि इस कल्पना पर
सुंदर सी एक कविता बनायें


चित्रकार ,इसका  चित्र बनायें
फिल्मकार एक फिल्म बनायें ,
657000 घंटे के जीवन में से
आधा घंटे युवा ,चिंतन में जायें 
 
क्या मै दार्शनिक हो गया हूँ
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कहते हैं , "हारा मनुष्य दार्शनिक हो जाता है ,
और विजेता इतिहास बनता है। "


मेरा निवेदन -


"मै दार्शनिक हो गया हूँ ,
हारते चला जाने चाहता हूँ।
दर्शन कहता है ,
कुछ हार में जीत से बड़ा ,
आनंद मिलता है।
मै वैसा आनंद रस ,
 पा लेना चाहता हूँ
क्या मै दार्शनिक हो गया हूँ ?"


--राजेश जैन
14-01-2015

Tuesday, January 13, 2015

तब ही मै ,बेटे को जन्म दे सकूँगी

तब ही मै ,बेटे को जन्म दे सकूँगी
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डॉ प्राची - लेकिन भ्रूण जाँच अपराध है। युवती , 50000/- की गड्डी सामने रखती है। कुछ समय बाद। डॉ प्राची - गर्भ में बेटा है। युवती - इसे abort करवा दीजिये। डॉ प्राची (अचम्भे से ) - जाँच के बाद नर भ्रूण होने पर ,भ्रूण हत्या का पहला केस होगा यह देश में। युवती - होने दीजिये । डॉ प्राची- अविवाहित हो ?, युवती -नहीं।
लौटते वक़्त , डॉ प्राची कुछ नोट , निकाल ,गड्डी ,युवती को लौटा देती है।
अगली सुबह , सुदृढ़ , गहन दुःख से और रुआँसी आवाज ले बोल रहा है - लेकिन गरिमा तुम कैसे यह अत्याचार मुझ पर ,अपनी होने वाली संतान पर कर सकती हो ? गरिमा (चेहरे पर दृढ़ता दर्शित ) - मेरे , स्वयं पर भी ये अत्याचार ही है। सुदृढ़ - मै डॉ प्राची को अंदर कर देता हूँ , उसके नर्सिंग होम पर ताला लगवा देता हूँ। गरिमा - नहीं ,आप उस नारी पर पुरुष रौब न दिखाओ। आप आई पी एस हैं , देश में पुरुषों का संग़ठन बनाइये , आव्हान कीजिये -
 "निर्भया /दामिनी अब और नहीं"।
(कुछ रुककर) ....... तब ही मै बेटे को जन्म देने की मानसिकता बना सकूँगी। देश का , नारी आँदोलन , पुरुष छल , शोषण को रोकने में पर्याप्त नहीं हो पा रहा है।
सुदृढ़ , बहुत उदास , दुःखी , गहन सोचनीय मुद्रा में फर्श पर ही दीवाल के सहारे बैठ गया है।
--राजेश जैन
14-01-2015

Monday, January 12, 2015

car is bad for sex if Windows are not kept closed

car is bad for sex if Windows are not kept closed
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लेखक की पोस्ट एक मित्र ने शेयर की , फिर उसमें से ग्रेस्प कर , स्टॅट्स लिखा - जिस पर कमेंट सहित कॉपी -पेस्ट नीचे किया गया है।
PK is good to point out superstition in society but what about idea given by film to use car as a safe place to enjoy sex. What's message Amir has given to society. Remove one evil, then add one to maintain number of prevailing evils.
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You and 17 others like this.
Rajesh Jain very well said , sir
Yesterday at 8:58am · Like
Qasim Khan Why car is bad to hv sex,
22 hrs · Like
Mohit Vats car is bad for sex if Windows are not kept closed
19 hrs · Like
Mohammad Anas अरे मेरे भाई फिर नजरिया गलत है उस फ़िल्म मे इस हरकत को भी उजागर करने की कोशिश की गयी है लाइम लाइट में लाने की कोशी की गयी है
18 hrs · Like
Khush Bakht sex in car is being compared to the evil of religion? what a lul post
14 hrs · Like
Awadh Kishore Pateria Such type of films are needed more & more to remove the superstition from all of us too.
13 hrs · Like
Mohammed Aslam car was used as a symbol of rich people they use their wealth as cover.
देखिये समाज में क्या है , लोगों के मन में  :)
(मित्र का नाम छिपा लिया गया है , बाकि सही है।
--राजेश जैन
13-01-2015

पीके

पीके
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देखने के बाद घर लौटी 6 वर्षीय तनु ,अपनी मम्मी से पूछ रही है , ममा , खड़ी कार हिलडुल क्यों रहीं थीं? गरिमा - बेटे , आजकल कुछ कार , खड़ी रहने पर कभी कभी हिलने -डुलने वाली , बनने लगीं हैं। तनु - तो ममा , हम भी ऐसी कार लेलें न, मुझको अच्छी लगी। गरिमा चुप रह गई।  उधर कार , पोर्च में खड़ी कर , सुदृढ़ के साथ पीछे आ रहा नौ वर्षीय , मनु सुदृढ़ से पूछ रहा है - पापा , ये कार में  क्या होता है ? पीके देखकर , स्कूल में सब गंदी गंदी बातें करते हैं ?
सुदृढ़ , सोच रहा है , इस स्टेज में मनु को बताना उचित होगा या नहीं  कि , ये पति -पत्नी भी हो सकते  हैं.  या फिर कोई कॉल गर्ल के साथ हो सकता है , या कोई बॉय-गर्ल फ्रेंड जोड़ा हो सकता है।
--राजेश जैन
13-01-2015

पीके से मिलती अच्छी शिक्षा

पीके से मिलती अच्छी शिक्षा
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कल की पोस्ट लेखक ने आलोचक दृष्टि से लिखी थी । लेखक आज पीके पर प्रगतिशील विचारक की दृष्टि से लिख रहा है।
1. धर्म को पाखंड से प्रचारित करने वाले "रोंग नंबर" से मुक्ति ले कर , धर्म उपासना के समय की बचत लेकर लोग फ़िल्में देखने लगेंगे तो वहाँ से उन्हें प्रगति शील विचार मिल जायेंगे , देश उन्नति करेगा। और पाखण्डियों के बदले फ़िल्मी लोग ,जो भारत के सबसे बड़े हितैषी हैं के भक्त होकर लोग राष्ट्रसेवा करेंगे , देश उन्नति करेगा।
2. दो -दो घंटे की मुलाकातें , एक करोड़ पाकिस्तान के पुरुषों की एक करोड़ भारतीय नारियों से हो जायें , और फिर दूसरे दिन उनके विवाह हो जायेंगे तो भारत -पाकिस्तान का बैर हमेशा को ख़त्म हो जायेगा। 
3. कार में सेक्स , बस में कंडक्टर और ड्राइवर से निर्भया पर किये रेप से अच्छा होगा , कार मालिक तो पढ़े-लिखे होते हैं , गँवार -दुष्ट थोड़े होते हैं। और अपनी अनब्याही बहन -बेटी पढ़े -लिखे लोगों के साथ कार में है , तो बुरा क्या है।
4. सेक्स शादी के पहले सब लड़कियाँ भी करने लगेंगी।  तो चरित्र के प्रश्न स्वयं खत्म हो जायेगें।  सब एक जैसे  हो जायेंगे.
5. बहन, बेटी ,माँ और पत्नी भी ड्रिंक्स लेने लगेंगी ,तो कितना अच्छा हो जायेगा , ड्रिंक्स के लिए बाहरी कंपनी की जरूरत नहीं पड़ेगी।
6. बच्चे "किस सीन "   सहजता से लेने लगेंगे , तो पत्नी या फ्रेंड को किस लेने के लिए आड़ लेने का लगने वाला समय बच जाएगा , किसी ज्यादा उपयोगी कार्य पर खर्च किया जा सकेगा।

अब तक की भारतीय पीढ़ी तो रूढ़िवादी थी , यह पीढ़ी और आगामी पीढ़ियाँ इस तरह सिनेमा को सकरात्मक दृष्टि से लेकर बहुत सुखी  सभ्य हो जायेगी।
--राजेश जैन
12-01-2015
 

Saturday, January 10, 2015

अब मैंने भी देखी पीके

अब मैंने भी देखी पीके
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पी नहीं , फिल्म देखी। लेखक  की दृष्टि सिनेमा को, सिने कलाकार को बुराई का पिंड मानने के पूर्वाग्रह (Biased) से ग्रसित है , इस दृष्टि से देखने पर लेखक की निम्न प्रतिक्रियायें हैं -
1. पीके , का किस सीन अब बच्चे अपने पेरेंट्स  साथ सहजता से देख रहे हैं , जल्दी ही भारतीय सड़कों पर ये दृश्य आम हो जायेंगे।
2. कार का जो उपयोग अभी कम ही जानते हैं , इस फिल्म की लोकप्रियता  साथ सब जान जायेंगे। हाई स्कूल के बच्चे अब माँ -पिता  बाइक की नहीं कार की जिद करेंगे।
3. पीना तो पुरुष के लिए भी अच्छा नहीं , अनुष्का के माध्यम से वर्किंग लेडी में ड्रिंक्स को सामान्य रूप में लेने को पीके प्रेरित करती है।
4. विवाह पूर्व सेक्स भी सामान्य सी बात है,  फिल्म द्वारा यह ,पुनः इस रूप में दिखाया गया है।
5. 2 घंटे के साथ में ही , अंतरजातीय , अंतरराष्ट्रीय दो अजनबियों में ऐसा प्रेम हो जाता है कि दूसरे दिन विवाह कर सकते हैं। फिल्म ने यह परोसा है। जिसे फॉलो कर अनेकों युवा मुसीबत गले लगा चुके हैं।

आकर्षक पैकेजिंग -प्रेजेंटेशन
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अच्छी पैकेजिंग में सडा ,हानिकर भी हम  ,मजे से खा लेते हैं। अपना नुकसान करा के विक्रेता /निर्माता को मालामाल बना देते हैं।  ऐसा ही यहाँ है , करोड़ों की पैकेजिंग के साथ , लोकप्रिय कुछ कलाकारों के साथ , हमारे समाज को हानि देते षणयन्त्रों को छुपाकर हमें यही नहीं अनेकों फ़िल्में प्रेजेंट कर रही हैं।

पहली बार लेखक की अति आक्रमकता
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सब धर्मगुरुओं को "रोंग नंबर" बताने वाले , सबमें बड़े  "रोंग नंबर" यही हैं। जी , हाँ ये फिल्म वाले।

"मंदिर, देश में बहुत नारी-पुरुष , जाते हैं !
मस्जिद कुछ कम जाते हैं !
गुरद्वारे और चर्च और कम जाते हैं!
किन्तु सिनेमंदिर जिनमें ये "रोंग नंबर" बैठे हैं!
बडे -बूढ़े नारी पुरुष हर बच्चे जाते हैं "

क्या पाता है बच्चा वहाँ से ?
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माता पिता को भुला वहाँ से
"रोंग नंबर" फैन हो जाता है
और
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वासना लिए घूमता नज़रों में
मर्यादा नारी से भूल जाता है
और भी
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समय बर्बाद फेवरेट के पीछे ,
कर पढ़ने में पीछे रह जाता है

क्या देता , क्या लेता इनसे ?
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इनको प्रौन्नत धन व्यय से करता
स्वयं अभावों से जूझता रह जाता है।

कब तक हम  पैकेजिंग और प्रेजेंटेशन के अंदर के , घातक तत्वों को पहचानने की दृष्टि नहीं पायेंगे। कब तक अच्छे दिखते के प्रलोभनों में आ अपना जीवन , ख़राब करते जाएंगे? कब तक ?

सिने मंदिर की सच्चाई
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ये सिने मंदिर कोई जाये न जाये। सबमे बड़े ये "रोंग नंबर" , टीवी के माध्यम घर घर पहुँचे हुए हैं , करोड़पति बनाने के सपने और सत्य दिखलाने के धोखे में , गर्ल फ्रेंड -बॉयफ्रेंड चक्कर , नारियों में ड्रिंक्स , विवाहेत्तर संबंध आदि  जिसने  भारतीय समाज तंत्र की बुनियाद हिलाकर  रख दीं हैं। धन बटोर कर ये "रोंग नंबर", अपने हरम गरम रख रहे हैं। और पाखण्ड के पोल खोल देने के अभिनय कर स्वयं सबसे बड़ा पाखण्ड या करते हैं।

लेखक ने पहले भी लिखा है
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दुनिया भर की बुराई से आगाह करने के अभिनय करने वाले , सिने और सिने सोसाइटी की बुराई तो बताओ ।

--राजेश जैन
11-01-2015

Friday, January 9, 2015

क्षणिकायें -संकलित

क्षणिकायें -संकलित
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नत मस्तक
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"नत मस्तक हूँ , सत्य सम्मुख
 गर्दन सामने होती है
 जिस दिन लगे छल तुम्हें
यह गर्दन उतार सकती हैं "
 _/\_
आत्म विश्वास
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"आत्मविश्वास से जब बढ़ते
 वह प्रगति हमें देता है
 अतिविश्वास में लेकिन
खतरा ठोकर का होता है "
बारात और अंतिम यात्रा
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"ख़ुशी देती है उमंग उत्साह
 इसलिये पर लग जाते हैं
 उड़ने की गति चलने से तेज
अतः ख़ुशी में आगे हो जाते हैं
दुःख करता हतोत्साहित
 वेदना से गति थम जाती है
 न मिलते शब्द संवेदना को
 कदम स्वमेव थम जाते हैं "

सठियाना
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"साठ साल की पकी उम्र में
 आशिकी पे कविता लिखेंगे
 युवा आशिकी पर डाका देख
 'मित्र', इसे सठियाना ही कहेंगे "

कोलम्बस नहीं पति महान है
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"जिम्मेदारी नहीं थी तो
 अमेरिका की खोज कर दी
 परिवार बना तो हमने
पत्नी प्रति जिम्मेदारी निभा दी
कभी न कभी तो आता
 अमेरिका दुनिया के सामने
 फ़ालतू रहे कोलम्बस ने
 पहले स्मार्टनेस दिखा दी "

यह दृष्टिकोण भी बनता है
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लड़कियों को भागने को उकसाते हो
 उन पर कलंक लगाकर
 अपने माँ -पिता के मस्तक पर
कलंक का टीका लगाते हो
बदलाव
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"ज़माना , विशाल वस्तु है ,
पूरा एक साथ न बदलेगा
 बदलाव तो होता आया है
सही दिशा इसकी जरुरी है
कमर हम कसलें करने की
 कुछ सही बदलाव हम देखेंगे
 आगामी पीढ़ियों के समाज में
 शेष हम सभी के बच्चे देखेंगे "

बेटी
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"ना जलायें हम अपनी बहुओं को ,
सयानी एकदिन बेटी हमारी होगी "

संवेदना
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"आँसू देने वाला करीब नहीं
 दुश्मन इसलिये दूर होता है
 आँसू पोंछने वाला संवेदना से
प्रभावित कर करीब होता है "
सीखना
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"सीखने की दृष्टि है अगर
 सीखा किसी से भी जा सकता है
 अहं अपना त्यागे तो
छोटों से भी सीखा जा सकता है "
--राजेश जैन
10-01-2015

नारी - पुरुष परस्पर शत्रु ?

नारी - पुरुष परस्पर शत्रु ?
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मंतव्य बहुत स्पष्ट हैं
विचार बेहद स्वच्छ हैं
रिश्तों को बचाने के लिए
अत्यंत सुदृढ़ संकल्प हैं


"नारी चेतना और सम्मान रक्षा " फेसबुक पेज ,  समाज हित और नारी गरिमा की पताका लिए चलने के लक्ष्य से बनाया गया था।


माँ का पुत्र से रिश्ता
पिता का बेटी से रिश्ता
भारतीय पति-पत्नी का रिश्ता
अनायास ही निभता है


गर्लफ्रेंड नाम का रिश्ता
बॉयफ्रेंड जो बनते हैं
रिश्तों की गरिमा की रक्षा
वे कम ही कर सकते हैं


नारी , लगातार छली जाने से , आज उग्र प्रतिक्रियाओं के साथ आ रही है - उनसे एक निवेदन


युध्द नहीं है ,शत्रु को मिटा डालें
खेल नहीं है विरोधी को हरा डालें
संघर्ष नारी शोषण विरुध्द हमारा
शोषण वायरस को हम मिटा डालें


जी हाँ , हम ना तो नारी को और ना ही पुरुषों को मारेंगे
हम प्रबुध्द ,बुद्धिमत्ता से मन में आ बैठी बुराई को मारेंगे


नारी , घर घर व्यथित है, पुत्री की माँ है तो , पत्नी है तो। चालीस , पैतालीस की हो जाने पर  , उनमें से अनेकों अपने गृहस्थी में मन लगा संतुष्ट हो गईं हैं (जॉब  करती हैं ,अतिरिक्त जिम्मेदारी से अतिरिक्त व्यस्त हैं )। नई उम्र की युवती /किशोरी शोषण विरुध्द अति आक्रमकता से आगे आईं हैं। पेज को लोकप्रिय बनाने के लिए ताकि ,अच्छे संदेशों का प्रसारण ज्यादा कर कुछ नारी हित और समाज हित उद्देश्य पूर्ण किये जा सकें , पेज एडिटर की हमें आवश्यकता है।
दोनों तरह की नारियाँ , पाठक तो मिल रही हैं। पेज एडिटर नहीं।  जो , मनीषी नारियाँ हैं , दूसरे के सुख में मिलते आनंद के अलोकप्रिय हो चले तरीके में जिनका विश्वास है , उनमें से पेज द्वारा और एडिटर तलाशें और तराशें ,जायेंगे। इस कार्य में धन नहीं मिलेगा ,समय अपना खर्च होगा। बदले में सिर्फ सामाजिक अपने दायित्वों के निर्वहन का सुख मिलेगा। कैंडी-क्रश /टेलीविजन से बेहतर गेम /मनोरंजन इसमें है। बिगड़ते कुछ सही राह पर आयेंगे।
नारी , पुरुष कोई शत्रु नहीं हैं , विरुद्ध पक्ष मान कर न तो उन्हें तहस -नहस करना है , न ही हराना है। अपनी बुध्दिमानी से ठीक कर परस्पर अनुकूल बनाना है।


--राजेश जैन
09-01-2015

Thursday, January 8, 2015

नारी द्वारा पुरुष पर अत्याचार

नारी द्वारा पुरुष पर अत्याचार
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लेख भारतीय नारी पर ध्यान में रख लिखा जा रहा है , विदेशों में नारी अलग तरह की है। पूर्व आलेखों में , नारी का पक्ष रखने से इस लेखक से ,सभी नहीं किन्तु कुछ पुरुषों ने बहुत पीड़ा अनुभव की है। विशेषकर उन्होंने जिन्होंने विवाह के बाद पत्नी से सामंजस्य ने बैठने पर पत्नी द्वारा न्यायालय में प्रकरण डाले हैं। नारी से इस देश में मुख्यत:, पुरुष दो तरह से पीड़ा पाता है। 
1. 498a में झूठे केस
झूठे केस जब डाले जाते हैं तो आरोप सिर्फ पुरुषों पर नहीं होता है , बल्कि ससुराल पक्ष की नारी (सासु माँ , ननद आदि ) पर भी आरोप होते हैं। अतः यह सिर्फ पुरुष विरुध्द होते हैं ऐसा नहीं है। क्यों उत्पन्न होती हैं झूठे प्रकरणों की संभावना ? कुछ समय पूर्व समाज में दहेज़ प्रताड़ना , उसमें नववधू की हत्या या आत्महत्या को प्रेरित करने के प्रकरण बढ़ गये थे।   तब कानून बनाया गया था । सामाजिक जागृति से और क़ानून के डर से वास्तविक दहेज़ प्रताड़ना के प्रकरणों में अब कमी  है। नई जेनरेशन के युवा भी, अब दहेज़ विरुध्द होते जा रहे हैं। लेकिन क़ानून है और दहेज़ प्रताड़ना के केस अभी भी दर्ज होते हैं , जिसमें ज्यादातर झूठे भी सिध्द हो जाते हैं।
वास्तव में झूठे प्रकरण के पीछे नववधु के चरित्र पर शंका या पति की अति रसिकता में दूसरी युवतियों से संबंध वह कारण होता है , जिसमें नवयुगल के बीच सामंजस्य नहीं बन पाता है। और मारपीट , डाँट डपट और अपमान से वधु मायके चली जाती है , जहाँ बदले की भावना से ,और परिचितों के उकसावे से ससुराल पक्ष पर केस दर्ज हो जाता है। अर्थात नारी द्वारा, जिसे पुरुष पर अत्याचार जिसे कहा जाता है , उसके मूल में फिर दोष पुरुष पर ही सिध्द होता है। क्यों पति , अति रसिक है , विवाह बाहर संबंध रखता है ? यदि पत्नी चरित्र हीन है , तो उसका भी चरित्र , पुरुषों ने ही तो निबटाया है। भले उसके लिए जिम्मेदार पति नहीं , किन्तु अन्य "पुरुष ही" तो हैं।
2. पुरुष अगर नारी से पीड़ित हो तो कोई कानून का और सुनवाई का न होना।
नारी भी कई अपराधी हो जाती हैं।  छोटे मोटे अपराध करती हैं।  वह पुरुषों से तो ताकत में जीतती नहीं , हत्या नहीं करती , पुरुष से जोर जबरदस्ती का सेक्स भी नहीं करती। इसलिए नारी प्रताड़ना का स्पेसिफिक कानून नहीं बना है । सचाई यह है नारी अत्याचार जितने भी होते हैं , उससे सैकड़ों गुणे ज्यादा पुरुष द्वारा अत्याचार होते है , और निर्ममता में भी वे नारी अपराधों की तुलना में हजार गुना होते हैं ।
--राजेश जैन
08-01-2015

पेज एडिटर

पेज एडिटर
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पंख मिले, फड़फड़ा कर ,
उड़ने की चेष्टा करता है
देखें यह उड़ पाता या
जमीं पर ही रह जाता है


पंख कमजोर तन वजनी हो
तो मुश्किल उड़ना होता है
तन हल्का पंख मजबूत तो
उड़ना ऊँचा संभव होता है

नारी चेतना के लक्ष्य से
नारी सम्मान रक्षा के लिए
पंख को मिल रही मजबूती
देखें पेज कितना उड़ पाता है


सच्चाई रही कायम और
निज अपेक्षा नहीं जोड़ी तो
पंख मजबूत तन हल्का हो
ऊँचें गगन तक उड़ पायेगा


लेते हुए प्रबुध्दों को साथ
पेज ये उड़ता ही जायेगा
सन्देश प्रीत , भलाई के दे
नारी-पुरुष मन करीब लाएगा
--राजेश जैन

जी हाँ , साथियों , सच्चे संदेश और आपसे  स्वस्थ चर्चा रखते हुए अब पेज पर हजार से अधिक लाइक आ चुकी हैं।  यानि प्रबुध्दों की रूचि -उत्सुकता जागृत हुई है। यह पेज अपनी आगामी योजना अंतर्गत , आगे के चरण में , मिसगाइड की गई , भोली युवतियों -बहन बेटियों की पीड़ाओं को "नारी चेतना और सम्मान रक्षा "पेज के मैसेज इन बॉक्स में आमंत्रित कर (गोपनीयता साथ उन्हें सन्देश /चर्चा से मार्गदर्शन देने के यत्न करेगा। जिससे उनके अवसाद दूर हो सकें , खो गया उनका आत्मविश्वास फिर वापिस आ सके। जितना भी नुक्सान परिवार और उनकी प्रतिष्ठा को हो चुका , उससे आगे न होने पाये  , उसके उपाय करने की कोशिश करेगा।
 इस तरह की , कॉउंसलिंग के लिये , प्रबुध्द और प्रगतिशील इक्छुक मनीषियों को ,एडिटर रूप में जोड़ेगा। यह प्रोसेस , वर्तमान एडिटर ने अपने अनुभवों से जिन्हें पात्र माना है , उनकी रिकमेंडेशन पर एडिटर बना जाएगा । जो एडिटर के दायित्व को स्वेच्छा से ग्रहण करना चाहते हैं , वे भी मैसेज से इंटरेस्ट प्रेषित कर सकते हैं। नारी वेदना अत्यंत कोमल विषय है , इसलिए इसमें सरल ,छल रहित व्यक्तित्व ही योग्यता होगी। प्रथम चरण में प्रगतिशील नारी एडिटर्स को प्राथमिकता रहेगी।
 इस पेज से स्नेह रखने के लिये धन्यवाद -


--राजेश जैन
08-01-2015

Tuesday, January 6, 2015

कनॉट प्लेस

कनॉट प्लेस
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दिल्ली का हृदय स्थल कनाट प्लेस , एक एम्स में पढ़ती , बेटी के साथ ऐसा होता है वहाँ . उस बेटी की पोस्ट से अंश (निम्न पैरा) लिए हैं , साभार 
"अभी मैं कनाट प्लेस में एक रेस्टोरेंट में बैठी थी. बस थोड़ा सा कुछ भी हल्का-फुल्का खाने का मन था. तभी मेरे सामने वाली सीट पर जिस पर दो लोगों के बैठने की जगह थी वहॉ दो बड़े ही शरीफ से दिखने वाले लोग आके बैठ गए. मैं सोच भी नहीं सकती थी कि वे कोई गलत हरकत करेंगे. आप को जान के अजीब लगेगा कि उनमें से एक ने बहुत तेजी से मुझे इशारा किया जैसे मैं कोई कॉलगर्ल हूं. दूसरा धीरे से बोला कि चलेगी क्या, कितना लेगी..........
सुनकर मई एकदम स्तब्ध रह गयी तभी पहला लड़का फिर बोला बस एक बार हमें खुश कर दो फिर हम तुम्हे मुंहमांगे पैसे देकर खुश कर देंगे।"
राजधानी का हृदय स्थल
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शायद ऐसा कहा जा सकता है , कनॉट प्लेस को।  और उसमें रोग , उपरोक्त पैरा से साफ परिलक्षित होता है। सोच सकते हैं , राजधानी में हाल ये है , देश के हृदय का हाल ये है , कैसे उन्नति कर सकती हैं ? ऐसे देश में नारियाँ।
आधुनिकता
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पाश्चात्य देशों के अनुकरण में , नई जेनरेशन ने आधुनिकता मानी है।  लेखक गया नहीं , कुछ नॉवेल और कुछ फिल्मों से ऐसा ध्यान है , वहाँ , बहुत सहजता से  ऐसे प्रस्ताव कर दिये जाते हैं , लेकिन , न सुनने के बाद पीछे भी नहीं पड़ता कोई। हाँ , सामने पक्ष भी 'यूज़ड टू' होता है , उसको ध्यान नहीं देता।
सँस्कार
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हमारे यहाँ ,ऐसा सुनना ,आहत करता है , युवती को ,  सँस्कार हमारे ऐसे हैं। अपनी बहन -बेटी में हम यही देखना चाहते हैं।
बनायें बहन -बेटी को आधुनिक
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पुरुषों ने स्वयं के लिए पाश्चात्यता अपना ली , खुले आम डिमांड रख दी , लेकिन अपनी पत्नी ने /बहन ने या बेटी ने , किसी लड़के से बात करली तो बुरा मान गये। ऐसा , ज्यादा दिन नहीं चल सकेगा। पुरुष , अपनी संस्कृति की सीमा में आ जाये , नहीं तो नारी ने , पश्चिमी संस्कृति अपना ली तो पछतावे के सिवा कुछ न बचेगा , जब चिड़िया चुग जायेगी खेत।
कॉल गर्ल
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फुसलावे से , प्रलोभनों से , कम पढ़ी -लिखी को , अभावग्रस्त को , या घर से भाग आई को , धनवान पुरुषों ने , (कुछ) भारतीय नारी को ,कॉल गर्ल' बना दिया है। यह आत्मघाती है। कालांतर है ,अब उन्हीं के परिवार से , कोई युवती  , कनॉट प्लेस या ऐसी ही पॉस लोकेशन पर ,कहीं अकेली हो तो उन्हें इस तरह के प्रस्ताव से , अपमानित होना पड़ता है। नारी के हौसलों को हम यदि बढ़ा नहीं सके , नारी उसकी दिशा ठीक न रख सकी तो परिणाम , अत्यंत निराशाजनक भविष्य के रूप में सामने होगा।
--राजेश जैन
07-01-2015

एसिड अटैक



एसिड अटैक
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वर्ष 1985 में , गर्मी की एक रात में 19 वर्ष का एक लड़का , आँगन में सोया था , तब कोई उसके चेहरे पर एसिड डाल गया। अभी उसकी दृष्टि दुनिया देखने की बन ही रही थी , इस अटैक से जीवन भर के लिये उसकी दुनिया अँधेरी हो गई। नेत्र ज्योति खत्म हो गई और चेहरा भी बिगड़ गया। रिज रोड , जबलपुर पर पिछले आठ , नौ वर्ष से वे नियमित किसी-किसी का साथ ले , वॉक पर नियमित आते हैं।
राजकुमार कुरील
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जी -हाँ , लेखक को उन्होंने अपना नाम ये बताया।  आज वे लकड़ी से टटोल अकेले ही वॉक करते दिखे , तब लेखक ने पूँछकर उनका , हाथ थामा। लगभग तीन किमी , चलने के बाद , उनके मित्र मिले ,वे उनके साथ हुए , तब तक उनसे हुये वार्तालाप से ऐसी प्रेरणात्मक बातें पता चली जो ,लिखने के लिए , लेखनी मचल गई।
सुबह सवा चार बजे
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वे जागते हैं , बच्चों के लिए पानी , गर्म करने रखते हैं ,चाय बना लेते हैं , घर आँगन सफाई करते हैं । दैनिक स्नान इत्यादि से निवृत हो , वॉक को निकल जाते हैं।  आठ किमी , घूमते हैं , कहते हैं रिज रोड पर अच्छे लोग मिलते हैं . उनके मित्र , बने लोग रईस हैं . मित्रों को आवाज से पहचान लेते हैं। मैंने  पूछा कौन ने आवाज दी अभी , बोलते हैं -राजीव गुप्ता , ठेकेदार हैं। मैंने पूछा -क्या शौक हैं , कहा विशेष कुछ नहीं , फिर हंसकर बोले -रात में कभी कभी , मित्रों के साथ  बैठ जाते हैं।
शादी
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पूछा , शादी कब हुई ? बोले ,मैंने -शादी नहीं की। पूछा , अभी आप बच्चों की -कह रहे थे ? बोले -भाई के साथ रहता हूँ , उनके हैं। मैंने पूछा -घटना के पहले क्या , किया करते थे ? बोले - टेलरिंग करता था , फिर दुर्घटना के बाद , सदर में स्टैंड चलाकर , तीन भाइयों की शादी करवाई।
29 साल
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पूछा -लम्बा अरसा संघर्ष में गुजारा ? बोले -बैठ जाने से नहीं निकलता। अच्छा -बुरा चलता रहता है। अच्छे ,लोग मिलते हैं। सहारे की बात पर -हँसकर बोले , "तुम बेसहारा हो तो ,किसी का सहारा बनो , तुमको अपने आप ही सहारा मिल जाएगा"
मिसाल
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सबकुछ होकर भी ,नहीं होने का दुखड़ा रो रही दुनिया - सीखे राजकुमार साहब से , आँखे नहीं है , किन्तु निराशा में डूबों के सामने, अपनी कर्मठता से पथ प्रदर्शन का हौसला रखते हैं। आँखे नहीं हैं , साधारण है , रईसों से मित्रता प्राप्त है उन्हें। दोनों बातें सब में हैं ,अच्छाई और खराबी , लेकिन स्वयं मै अच्छा तो मेरे साथ अच्छाई ही करेंगे। आँखे ,न रही ,तब भी जीवन तो है।
हम
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देख नहीं पाते , 1985 की दुनिया ही , लड़कपन की नज़रों की ,तस्वीर बन रह गई . मोबाइल उपयोग करते उन्हें देखा ,फिर  भी नहीं जानते होंगे , कैसा दिखता है।  मैंने कहा फेसबुक पर लिखता हूँ।कहते हुए मैंने सोचा  क्या जानें वे ?-क्या होती है फेसबुक। इतना जान लिया - मै अच्छा हूँ। एसिड फेंकने वाले ने न जाने किस रंजिश का बदला लिया था . आज अगर इन्हें देखता होगा तो अपने किये पर ग्लानि से भरता होगा . किसी भी गलती की इतनी बड़ी सजा शायद नहीं होती . 29 साल का और न जाने कितना और चलेगा अँधेरा यह।   हम अच्छा बर्ताव कर , अनुभव करा सकें कि दुनिया अच्छी है , तो जब वे जायेंगे , यह तो रहेगा उन्हें स्मरण - दुनिया भली भी थी।
--राजेश जैन
06-01-2014

Monday, January 5, 2015

गर्लफ्रेंड -एक चरित्र चित्रण

गर्लफ्रेंड -एक परिभाषा
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लेखक पुरुष है इसलिये बॉयफ्रेंड पर लिखना सरल था। इस पेज का एडमिन होने से मैसेज बॉक्स में आई माँग कि "गर्लफ्रेंड चरित्र चित्रण" करूँ , लेखक ने पढ़ी। पुरुष लेखनी से ऐसा किया जाना , खतरों से भरपूर है। लेखक के लिए खतरे नहीं हैं , लेकिन नारी -पुरुष संबंध , जो परस्पर दोषारोपण से कटु बन रहे हैं , उनमें कटुता और बढ़ जाने के खतरे हो सकते हैं।
नारी सदियों से ,परिवार में पुरुष साथ निभा रही है। सभी नारी , न मानती हों किन्तु अधिकाँश ,पुरुष साथ (पिता,भाई ,पति और पुत्र ) में अपनी सुरक्षा मानती हैं। सुरक्षा की ऐसी निर्भरता , के कारण कहीं-कहीं पुरुष द्वारा ,  नारी पर कई तरह का शोषण किये जाते हैं । कहीं-कहीं , दुष्टता में पुरुष नारी का दैहिक शोषण कर रहे हैं , कहीं उसे आत्महत्या -करने तक पर विवश कर रहे हैं , कहीं उसकी हत्या तक करते हैं । नारी को देह व्यापार से आजीविका को बाध्य करना भी किसी भी सभ्य मनुष्य समाज के लिये कलंक ही है।
"नारी -अपनी सामाजिक दशा से आहत है " , जो शोषण की सीधा शिकार है वह तो है ही , जो सुरक्षित है , घर -परिवार ,समाज और वर्कप्लेस में सम्मान पा रही है , वह भी , क्योंकि नारी पर शोषण के बनते नित नये समाचार , उसे अपनी सुरक्षा को सशंकित करते हैं। इसलिये भी कि नारी जीवन की कठिनाई वह अनुभव करती है , किसी नारी पर ऐसा अत्याचार , उनके जीवन को कितना अभिशापित कर देगा , इसकी कल्पना वह सरलता से कर सकती है । नारी , पुरुष की तुलना में ज्यादा दयालु भी है , करुणा उसके स्वभाव में है।
जब कोई आहत है तो उसका उपचार आवश्यक होता है। उपचार का उद्देश्य हमेशा सुधार का होता है। उपचार में सावधानी आवश्यक है , उपचार के प्रयास में ,घाव ज्यादा बिगाड़ देना या ज्यादा आहत कर देना , वाँछित नहीं है।  इतनी भूमिका के बाद अब -
फोकस , किशोरी और अविवाहित युवतियों (Teen agers & Unmarried young women ) पर करूँगा । गर्लफ्रेंड , उन्हें ही कहा जा रहा है . जो नहीं हैं तो उन्हें गर्लफ्रेंड बनाने की कोशिशें जारी रहती हैं।
कौन हैं ये किशोरियाँ , या अविवाहित युवतियाँ ?
निश्चित ही किसी परिवार की पुत्री या बहन हैं।
परिवार इन्हें शिक्षा को और व्यवसाय को किस उद्देश्य से स्कूल /कॉलेज या जॉब में भेजता है? 
वे किसी की गर्लफ्रेंड बनें ?
या इसलिये कि वे उन्नति करें , स्वयं सक्षम बने , जीवन में अपना सम्मान सुनिश्चित करने की योग्यता अर्जित करें। तथाकथित गर्लफ्रेंड होना , स्वयं किशोरियों और युवतियों (Teen agers & Unmarried young women ) की उन्नति में बाधक है . परिवार जिस लक्ष्य से उन्हें अवसर देता है , उसकी पूर्ती में बाधक है। 
क्योंकि गर्लफ्रेंड बन जाना , शिक्षा से उसका ध्यान बाँटता है। समय ख़राब करता है। गर्लफ्रेंड होने पर  असमय उन्हें दैहिक संबंधों में उलझना है। उसके बाद अधिकाँश ऐसे संबंधों का टूट जाना है। उसमें से अनेकों , में ब्लैक मेलिंग है। ब्लैक मेलिंग नहीं है तब भी , भविष्य में उनका भेद खुलना आशंकित होता है। जो वैवाहिक संबंधों के सुखदता पर खतरा है। अन्य का बॉयफ्रेंड रहा , अब पति होकर -अपनी पत्नी का पास्ट में किसी की गर्लफ्रेंड होना सहजता से स्वीकार नहीं करता।
नारियों और पुरुषों का तर्क हो सकता है , गर्लफ्रेंड का मतलब , दैहिक रिलेशनशिप में पड़ना है ही , नहीं। तब लेखक कहता है गर्लफ्रेंड ऐसी है तो यही उसका सम्पूर्ण चरित्र चित्रण है। वह जॉब में /शिक्षा में और साथ में दैहिक अपेक्षा के बिना , इन्वॉल्वमेंट के बिना पुरुष साथ उसी सहजता से लेती है जैसा की कोई गर्ल - अपनी सहेली से लेती है। 
अगर सभी को गर्लफ्रेंड का यह चरित्र स्वीकार है तो इसे ऐसा परिभाषित करते हैं। "किसी बॉय का फ्रेंड जब कोई गर्ल होती है तो वह गर्ल होने से गर्लफ्रेंड कही जाती है। जहाँ लड़के -लड़के के बीच जैसा ही दैहिक संबंध प्रश्न से परे होता है । जिसमें गर्ल और बॉय के बीच सहज आकर्षण से कोई ऐसा दैहिक संबंध न बने इसका पूरा नियंत्रण रहता है। गर्ल जब इन मर्यादाओं में बॉय से फ्रेंडशिप रखती है तो वह गर्लफ्रेंड कहलाती है। "
अन्यथा वह स्वयं मूर्ख बन कर , अपने परिवार , माँ -पिता ,भाई और बहन के उस पर रखे विश्वास को छल लेती है। स्वयं को संकट में डाल , पूरे परिवार के मान और जीवन को भी संकट में डालती है।  वह गर्लफ्रेंड नहीं होती है। छली गई एक मनुष्य होती है , जिनसे लेखक को वही सहानुभूति होती है जैसी उसे एक पिछड़े -अभावग्रस्त मनुष्य से होती है .
गर्लफ्रेंड की परिभाषा में एक विस्तार और जो आलेख को पूर्ण करता है।
"जब परिवार सहमति से अथवा वयस्क होने पर , किसी गर्ल/युवती का किसी पुरुष से उनके बीच मित्रता संभावित विवाह के लिये एक दूसरे को जानने /समझने के लिए होती है। जिसमें विवाह होने तक दैहिक इन्वॉल्वमेंट नहीं होता है। तब ऐसी गर्ल की ऐसी मित्रता को गर्लफ्रेंड होना कहा जा सकता है।
यह 'बात भी टूट जाने' की सम्भावना रहती है . इसलिए इसमें भी यौन संबंध निरापद (Safe)  नहीं होते हैं।
बिना किसी शर्तों की गर्लफ्रेंड , "पत्नी" ही अपने पति की होती है।

जो युवतियाँ किसी की गर्लफ्रेंड हो इन सीमाओं को पार कर चुकीं हैं , वे शायद पढ़कर लेखक से असहमति रखेंगी । इस असहमति के कारण , उनका मन लेखक को खरी-खोटी ,सुनाने का हो सकता है। स्वागत है ,अपनी भड़ास ,अवश्य निकालें। किन्तु तब भी लेखक की सलाह यही होगी , कि वे तुरंत भूल सुधार करें ,आत्मनियंत्रित हों , सीमाओं के अंदर लौटें। सुबह का भूला शाम को घर लौटे , तो समाज शायद उसे भूला न कहे।
--राजेश जैन
05-01-2015
 

Sunday, January 4, 2015

क्षणिकायें -निरंतर

क्षणिकायें -निरंतर
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तूफ़ान
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"झूठे , क्यों पत्नी को तूफ़ान
यहाँ -वहां जतलाते रहते हो
भागते जब तूफ़ान आता है
पर पत्नी को आँख दिखाते हो "
राजेश जैन
पुरुष -नारी
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"पुरुष नारी के अंतर खोजती ?
दोनों ही मनुष्य एक समान हैं
कभी पुरुष , नारी सा करता
कहीं नारी पुरुष से आगे होती हैं "
राजेश जैन
04-01-2015
प्यार
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"रोना, रुला लेना जरुरी नहीं
की सच्चा प्यार ही होता है
साथ दे बुलंदी पर पहुँचाना
प्रिय ,सच्चा प्यार होता है "
राजेश जैन
04-01-2015
सच
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"सच ही एक ऐसी शक्ति है
दबके भी खड़ी हो सकती है
झूठ कितना कह लिया जाए
झूठ पे सच की जय होती है "
राजेश जैन
04-01-2015
भीड़
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"भीड़ से अलग दिखने की चाहत
हमें भीड़ से अलग नहीं करती है
विश्वासपूर्वक अच्छे पथ चलना
धैर्य ,हमें भीड़ से अलग करती है "
राजेश जैन
04-01-2015
खता
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"खता जरुरी नहीं आपकी
जिससे कोई चुप होता है
खता अपनी अनुभव कर
दिल मेरा जार जार रोता है "

--राजेश जैन
04-01-2015


 

Saturday, January 3, 2015

पपीता


पपीता
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हम घर में , या किसी के यहाँ जाते हैं। अगर पपीता हमारे सम्मुख रखा जाता है , तो कैसे ?
उसके बीजे ,हटाकर , और उसका छिलका उतार कर , है ना ?
अगर छिलका नहीं भी उतारा गया हो तो हम , उसे कैसे खाएंगे ?
छिलका , बचाकर , उसका दल , है ना ?
अर्थात ग्रहण कर लेने वाली भाग , हमने ग्रहण किया , अग्रहणीय छोड़ दिया।
जबकि पपीता में तो दोनों ही हैं।
फेसबुक
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पपीता भाँति फेसबुक में (बल्कि लगभग सारी चीजों में ) भी दोनों तरह की वस्तु हैं , कुछ ग्रहण करने योग्य , जो हमारी उन्नति में सहायक होती हैं , हमें अच्छा मनुष्य बनाती हैं।  और दूसरी ,अग्रहणीय , ख़राब वस्तु , जो हमारी प्रगति रोकती हैं , समय ख़राब करती हैं , और हमें दुर्जन मनुष्य बनाती हैं।
बच्चों से
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लेखक अपने बच्चों को शिक्षा को जाते , यह कहता आया है , पपीता के तरह स्कूल /कॉलेज में भी पपीता की तरह दोनों ,बातें उपलब्ध मिलेंगी , तुम ज्ञान ,और मोरल वहाँ से ग्रहण करना , और दूसरी बातें , जो तुम्हें , साथी बच्चों द्वारा आधुनिकता के नाम पर ,और मजे के नाम पर बताई जायेंगी (ड्रग,स्मोक,ड्रिंक्स , जुआं और फ्लिर्टिंग ) उसे पपीता के छिलके जैसे अलग करना।
नारी चेतना और सम्मान रक्षा
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गर्ल्स , वर्किंग वीमेन और समस्त नारी जाति को इस पेज से , देशो-दुनिया और समाज की सारी वस्तुओं के सभी पक्ष शालीन और संयत भाषा में प्रस्तुत करने के प्रयास किये जाते हैं।  अच्छाई और बुराई , पृथक -पृथक कर बताने के प्रयास किये जाते हैं। सभी सामग्री / बातों या वस्तुओं में हमें लाभ देने वाले और हानिकारक या अरुचिकारक तत्व विध्यमान मिलते हैं। नारी अपने सम्मान रक्षा को संघर्षशील है। उसे चेतना दिए जाने के प्रयास निरंतर रखे जाते हैं , ताकि नारी सम्पूर्ण गरिमा से जी सके , परिवार और समाज का बेहतर ढंग से सहारा बन सके।
परिचित नारी
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लेखक की एक परिचित नारी , जो अच्छा अनुभव रखती हैं , नारी होने के साथ , नारी जगत को अच्छा मार्गदर्शन दे सकती हैं , लेखक से कहती हैं , कुछ सुधरने वाला नहीं समाज में , व्यर्थ जायेंगे एफर्टस सारे। फेसबुक पर थीं ,डीएक्टिवेट कर लिया ,कहती हैं डीपी ही इतनी गन्दी देखने मिलती हैं , पति कहते fb ना करो , अच्छी बात है जीवनसाथी की सलाह से कार्य करना। किन्तु , इस निराशा से , वंचित हैं ,बच्चे -एक अच्छे मार्गदर्शक से।
एनआरआई
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पोस्ट लगाई लेखक ने कवि बनकर ,एनआरआई मित्र ने प्रश्न लगाया
पोस्ट -
इस देश की माटी में पले
माटी का कर्ज भुला गए
शिक्षित तो इस देश हुए
परदेश प्रगति में जुट गए
--राजेश जैन ...
03-01-2015

कमेंट -iss main iss desh kee kami hai. iss desh ka system barbaad hai
16 hrs · Unlike · 1
  •  Rajesh Jain कौन बर्बाद को सुधरेगा ?
    15 hrs · Like
    (प्रति कमेंट )

  • हमारे देश की समस्या हल करने और सिस्टम सुधारने , अमेरिका वाले आएंगे या फ्रांस वाले ?
    या हमें करना होगा।  ना करें हम! विश्वास रखें हमारी अगली पीढ़ी कर लेगी , सब ठीक --- अच्छी बात है ?

    --राजेश जैन
    04-01-2105

     

    क्षणिकायें

    क्षणिकायें
    लक्ष्य
    -------
    लक्ष्य अगर नज़र में है
    मंज़िल पास ,नहीं दूर है
    पहुंचेंगे भव्य मंज़िल पे
    अहं रखना नियंत्रण में हैं

    --राजेश जैन
    04-01-2015


    जिक्र -फ़िक्र
    -------------
    फ़िक्र छोडो उस बन्दे की
    जिक्र हमारी न कर सकता
    फ़िक्र करो अपने जीवन की
    अनेको सम्भावना जो रखता

    --राजेश जैन
    03-01-2015


    प्रगति
    -------
    इस देश की माटी में पले
    माटी का कर्ज भुला गए
    शिक्षित तो इस देश हुए
    परदेश प्रगति में जुट गए

    --राजेश जैन
    03-01-2015


    ठोकर
    -------
    "ठोकर खाकर सीखने को तो
    मौके अनायास आ जाते हैं
    सीखे अनुभव ले अन्य से, वे
    जीवन घाव कम ही खाते हैं "

    --राजेश जैन
    04-1-2015


    समय
    -------
    "रोना समय का बहुत होता है
    समय सभी का होता,आता है
    उसमें जब कर गुजरे कोई
    वह समय सदुपयोग कहाता है "

    --राजेश जैन
    04-01-2015


    सपना
    -------
    उठ गये फिर लो हम आज सबेरे
    नया सपना लिए जागी आँखों में
    पूरा करने लो हम जुट गए सबेरे
    उपलब्धि शाम तक होगी बाँहों में

    --राजेश जैन
    04-01-2015

    Friday, January 2, 2015

    यज्ञ करेंगे , यज्ञ करेंगे

    यज्ञ करेंगे , यज्ञ करेंगे
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    लड़का और लड़की नहीं कोई ख़राब होते हैं
    सब अपने माँ-पिता की जीवन आस होते हैं
    माता-पिता का जिन्हे न मिला प्यार होता है
    दुर्भाग्यशाली ऐसा वह सहानभूति पात्र होता है

    मनुष जीवन सृष्टि प्रदत्त वरदान एक होता है
    इसलिए सब अच्छे हैं ये सन्देश हमारा होता है
    सबके मन में सजे ,सुखद जीवन सपने होते हैं
    सपनों से सद्प्रेरित ही जीवन विकसित होते हैं
    घुले अति कामुकता सपनों मे ये ख़राब होते हैं
    अति कामुकता के बने स्त्रोत ही ख़राब होते हैं
    स्त्रोत बने मनुष्य में विचार ये ख़राब होते हैं
    दूषित विचार मिटायें ये आव्हान हमारे होते हैं
     
    काव्य पंक्तियों के माध्यम से , मनुष्य श्रेष्ठ है ऐसा बताने के उपरान्त उन्हें ख़राब कहने का औचित्य नहीं होता है। ऐसे में समाज में खराबी हम देखते हैं तो वह , मनुष्य होने की खराबी नहीं है . अपितु वह मनुष्य मन पर हावी होने वाली किसी बात की , "अति" की खराबी है। संक्षिप्त लेखन समझदारों के लिए पर्याप्त होता है ,अतः अब सीधे विषयवस्तु पर लिखता हूँ -
    नारी ,  "अति कामुकताधारी " पुरुष एवं नारी स्त्रोतों  द्वारा फैलाये गए जालों में उलझ रही है।
    विडंबना यह है , कि ऐसे जाल को बुनने में , नारी का ही उपयोग किया जा रहा है .
    ऐसे 'जाल के बिछाने' का षणयंत्र करने वाले "अति कामी "के मन में कामुकता की उनकी तृप्ति ही अकेला उद्देश्य नहीं होता है। उससे अनेकों व्यावसायिक लाभ भी उनके उद्देश्य होते हैं। कामुकता प्रसारित करने में छिपे लाभ निम्नानुसार हैं .



    1. कामोत्तेजक आधुनिक परिधानों के निर्माण और व्यापार से लाभ।
    2. कामोत्तेजना बढ़ाने वाली औषधियाँ उत्पादन  और व्यापार से लाभ।
    3. कामुकता जनित रोग की दवा निर्माण से लाभ।
    4. ड्रिंक्स और नशीले ड्रग्स , उत्पादन और उसके व्यवसाय से लाभ।
    5. परफ्यूम और सौंदर्य प्रसाधन के निर्माण बढ़ोतरी और व्यापार से लाभ।
    6. कामुकता के प्रति दर्शक उत्सुकता बढ़ा कर , फिल्म /वीडियो निर्माण से लाभ।
    7. कामुकता के एम्बेसेडर(सिने हीरो) एवं अन्य सेलिब्रिटी को प्रतिष्ठा का लाभ।
    8. कामुकता के विचारों में उलझाये रख , सामान्य व्यक्तियों का ध्यान हटा , ख़राब कारनामों से, अपनी प्रतिष्ठा हानि बचाने में सुविधा। 




    इन व्यक्तिगत लाभों से समाज को क्या क्षति हो रही है , इस बात का षणयन्त्रकारियों को कोई यह लेना देना नहीं है। इस उकसावे से मनोरोगी हो , कोई दुष्ट बन , नारी पर कोई पुरुष अपराध कर बैठता है , उसको फाँसी दे देना हल नहीं है।  कहाँ-कहाँ ,कितनों-कितनों  को फाँसी दी गई है,कितनों को दी जा सकती है ?यह तो बार बार उग आती विष बेल की तरह है  यदि सतह के ऊपर से इसकी सफाई की जाती है तो  यह श्रम तो जीवन भर उलझाये रखेगा , व्यर्थ जाता रहेगा। हर अगले पल , खुलेआम या छिपे तौर पर नारी विरुध्द अपराध होता रहेगा। इसका स्थायी उपचार , जड़ पहचान कर , उसे ही नष्ट करने में है।
    प्रबुध्द नारी एकजुट हो कर  और वे पुरुष जो अपने को माँ (नारी) की भी संतान मानते हैं , आगे आयें।  एक बार ही , सही श्रम करके , बार -बार की इस झंझट से छुटकारा पायें। इस विषबेल की जड़ भूमि के भीतर ही रोक दें।  इस तरह अपनी, माँ ,पत्नी, बहन और बेटी के लिए सुरक्षित और सम्मान का जीवन सुनिश्चित करें।
    लेखक का प्रयोजन , अश्वमेघ का है , जिसे सबके सयुंक्त प्रयास से संपन्न किया जा सकता है। 
    हम सब समवेत हो यह यज्ञ करें । अपने में जन्मी अति कामुकता की आहुति दें। षणयंत्रकारियों के सम्मोहन जाल में फँसने की अपनी नादानी की  आहुति दें। यह यज्ञ सफल हो सकता है।  इस सम्बन्ध में  इस लेखक / नौसिखिये कवि की निवेदित फिर चार काव्य पंक्तियाँ और कृपया पढ़ लें   -

    अपनी अपेक्षाओं का अश्व ,रोक दिया जाता है
    सहायता को दौड़े अश्व ,कोई रोक नहीं पाता है
    अपार हर्ष से स्वागत उसका, अभिनंदित अश्व
    अश्वमेघ में विश्व विजय पताका ,ले , आता है

    --राजेश जैन
    03-01-2015



     

    Thursday, January 1, 2015

    रिस्पेक्ट गर्ल्स

    रिस्पेक्ट गर्ल्स
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    लेखक तीन वर्ष पहले ,फेसबुक पर आना समय की बर्बादी , मानता था। फिर , बड़े हो रहे पुत्र ,बहन -बेटी को , दुनिया की अच्छाई -बुराई से परिचित कराने के लिए फेसबुक पर क्या होता है , अवलोकन करने के प्रयोजन से फेसबुक पर आईडी बना फेसबुक पर आ गया। । भूमिका इतनी ही पर्याप्त है। अब आज का लेख -
    फेसबुक पर , युवा (और शायद अधेड़ पुरुष भी ) फेक , गर्ल्स आईडी साथ आ बैठे हैं। जिन्होंने अच्छे अच्छे नामों से ग्रुप बना रखें हैं , यथा , "रिस्पेक्ट गर्ल्स ", "सेव गर्ल्स" ,"बेटी अनमोल" आदि (एक उदाहरण ऐसे कुछ पेज अच्छे भी हैं )। पेज भी लड़कियों की सुंदर तस्वीरों के और सुंदर नाम के बना लिए हैं। नाम और तस्वीर से आकर्षित हो ,कोई माँ -बहन ,पत्नी या बेटी युवा ,और नये बच्चे इन पर जब जाते हैं , वहाँ के कंटेंट (नारी देह के घिनौने जुलूस में से ) , घिनौनी तस्वीर होते हैं। मन में भरी कुंठा और मनोविकृति से निकले भद्दे कमेंट्स होते हैं। इतनी अश्लील कहानी होती हैं , जिनमें पवित्र रिश्तों  (भाई-बहन , माँ-पुत्र , पिता-पुत्री इत्यादि ) तक में कामवासना का विष घोल दिया होता है।
    बहन -बेटियाँ या संभ्रांत , प्रबुध्द वर्ग ना चाहते हुए , इनका साक्षी हो जाता है। संस्कारों में पले बच्चे , विशेषकर गर्ल्स , अपने ही से प्रश्न करने लग जाती हैं -क्या हम ज़माने से बहुत पीछे रह गए हैं।उनका संस्कारित मन , निरर्थक द्वन्द में पड़ जाता है।
    इस माटी का भव्य भारत पुत्र , किसान हुआ करता था। वह अनाज बोकर ,अनाज पैदा करता था , सबको उपलब्ध करा अपना भरण पोषण करता था। उस दयालु किसान के ने अपने बेटे-बेटियों को पढ़ाने -लिखाने , उन्नति करने बड़े कॉलेज /बड़े शहरों में भेजा। बच्चे षणयंत्र और सम्मोहनों में इस तरह मनोव्याधि ग्रस्त हो गए , बहरूपिये बन गए। जन्मे तो पुरुष , लेकिन मनोग्रंथि के शिकार हो नारी आईडी से नारी पहचान बना रहे हैं।
    "स्वयं नहीं मालुम क्या बो रहे
    क्या उपजायेंगे ,वे क्या काटेंगे
    पत्नी -बहन के संस्कार बिगाड़
    पत्नी ,बेटे-बेटी में क्या पायेंगे "
    भव्य भारत , जिन संस्कारों और जिन मानवीय आदर्शों के लिए जाना जाता था , आज वह लुप्त हो रहे हैं . शेष विश्व खुश हो रहा है कि हमारी एक आँख फूटी थी , हमने आँखों वालों की भी एक आँख फोड़ ली।
    इस पेज से जुड़ने वाले पुरुष ,आत्मलोकन करें , गर्ल्स कहीं दिग्भ्रमित ना हों , उनकी -अपरिचित साथी गर्ल्स क्या कर रही हैं? इतना घिनौना कर रही हैं? ,देख व्यग्र और भ्रमित न हों। ये गर्ल्स नहीं जो इस तरह लिख और दिखा रही हैं , ये बहरूपिये विकृति के शिकार हमारे भाई और चाचा हैं , यदि गर्ल्स भी हैं तो वे हैं , जिनका मनोमस्तिष्क शोषण और धन प्रलोभन से हिला दिया गया है।  आत्मविश्वास रखें , भारतीय गर्ल्स अभी भी विश्व की सब से ज्यादा संस्कारित गर्ल्स हैं।
    "आत्मविश्वास से पढ़ जाने का लाभ सही लें ,
    भारती अपने कार्यों से चलन की दिशा मोड़ दें
    उन्हें जरूरत पाश्चात्य नारी सी बनने की नहीं
    वे गंगा ,पाश्चात्य नारी में निज पवित्रता घोल दें "

    कल इस पेज का लक्ष्य शोध और डॉक्टरेट निरूपित किया गया है।  आज इस का अभिप्राय एक यज्ञ बताया जाता है , कैसा यज्ञ आगामी लेख में।
    (नोट - लेखक स्थापित साहित्यकार नहीं है , ऐसे साहित्यकार के मन में पढ़ यह प्रश्न आता होगा , यह लेखक , कभी कवि बन जाता है , और न जाने किस विधा को निभाता काव्य लिखता है ? हर एक मौलिक पंक्ति की प्रस्तुति के साथ  इस आधे अधूरे कवि का विनम्र और मासूम उत्तर इसे "भाव विधा" ठहराता है )
    --राजेश जैन
    02-01-2015

    माँ के सोने के गहने

    माँ के सोने के गहने
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    सुदृढ़ , तुम्हें , मालूम है न, हम ग्रामीण पृष्ठभूमि के गरीब किसान हैं … पिता , कह रहे थे , सुदृढ़ , पुणे में जॉब ज्वाइन करने जाने की पैकिंग करते हुए सुन रहा था। तुम्हारी , इंजीनियरिंग की फीस के लिये , तुम्हारी माँ के सोने के गहने बिके हैं , तुम्हें मालूम है न सुदृढ़?
    सुदृढ़ -हाँ , बाबा , मै जॉब से कमा कर उन्हें बनवाऊँगा ,सोने के गहने।
    पिता - मै ,ऐसा करने नहीं कह रहा ,बेटे ! .......  कुछ रुक के पुनः कहते हैं - इसलिए कह रहा हूँ , इतनी दूर जा रहा है , कोई ख़राब काम न करना बेटे , इतनी दूर से हमें पता भी न चलेगा।   सुदृढ़ , हाथ का काम छोड़ , बाबा के पास , आता है , कहता है  .... बाबा , विश्वास रखो , मुझे माँ और आपके लिये अपनी जिम्मेदारी का अहसास है , कहते हुए , बाबा और पास बैठी , माँ के चरण स्पर्श करता है।
    इस बात को लगभग ढाई महीने हुए ,सुदृढ़ ने पुणे में आ जॉब ज्वाइन किया है। आज ,नये वर्ष के सेलिब्रेशन में , सभी कंपनी एम्पलॉयी पी -खा रहे थे।  सुदृढ़ , ड्रिंक नहीं करता था वह चाय पी रहा था। तब जबरन फ्रेंड्स उसे उठा , खींच ले गये यह कहते , नये वर्ष में पियेगा नहीं तो वर्ष भर खाक , मजा करेगा।
    सुदृढ़ के मन में पापा की कहते हुए वह छवि घूम रही थी , अनमना वह जाकर , पहली बार ड्रिंक शिप कर रहा था , और छूटा ये चाय का गिलास , सुदृढ़ के बदलने का दृश्य देख तनहा ही जैसे खेद कर रहा था।  
    --राजेश जैन
    -०१-०१-२०१५