Monday, November 26, 2018

मानव सभ्यता

मानव सभ्यता 

जन्म और मौत अत्यंत कष्टदायी होते हैं. हर मनुष्य का जीवन में इन दो भीषण कष्टों से सामना होता ही है। हर बच्चा जन्म का कष्ट तो जीवन में याद नहीं रख पाता है किंतु मौत और मौत के पहले का डरावना अकेलापन और असहाय अवस्था जिसमें मरने वाले का कोई वश ही नहीं होता तो लगभग सभी मनुष्य को देखना होता है (कुछ मौतों को छोड़कर जो आकस्मिक हो जाती हैं) . ऐसे में हर जीवन को अर्थात हर मनुष्य को ज़िंदगी में इतना सुख तो मिलना ही चाहिए जो इन बेहद कष्टदायी (अप्रिय) पीड़ा की तुलना में अधिक ख़ुशी (प्रिय) की प्राप्ति रूप हो. यह 'हर मनुष्य का जन्म सिध्द अधिकार' है और जब तक हमारी सामाजिक व्यवस्था ऐसी नहीं बना दी जाती , तब तक हमें किसी भी उपलब्धि को मानव सभ्यता की पूर्णता निरूपित नहीं करना चाहिए। मनुष्य का ऐसा जन्मसिध्द अधिकार किसी धर्म , किसी नस्ल या किसी संप्रदाय विशेष से स्वतंत्र है। इसलिए सभी वर्गों का चाहे वे किसी- क्षेत्र के हों , चाहे देश के हों , चाहे किसी भाषाभाषी के हों यह कर्तव्य बनता है कि मानव सभ्यता की इस परिकल्पना पर काम करें। यह लेखक के मत में मिले मानवीय जीवन की सार्थकता भी है। 

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन 
27-11-2018

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