Thursday, March 31, 2022

जीवन रस

 

जीवन रस 

थाली में परोसा दिया गया जो भोजन होता है, उसे मैं खा लिया करता हूँ। उसमें क्या पसंद, क्या नहीं पसंद उसका कोई विचार किए बिना, भोज्य का आदर सहित  सेवन से अपनी पेट पूजा कर लिया करता हूँ। मेरे परिवार में सभी इस बात को जानते हैं। 

कभी कभी कोई प्रश्न करता है तो मेरा उत्तर होता है कि मैं जीवन रस, भोजन से नहीं अन्य बातों से ग्रहण करता हूँ। पौष्टिक भोजन मैं अपने जीवन को पुष्ट करने के लिए ग्रहण करता हूँ। 

इतना बताने पर एक सहज प्रश्न उठता है कि क्या वे बातें होतीं हैं जिनसे मुझे अपने जीवन में रस मिलता है? ये बातें, विषय अनेक हो सकते हैं। उनमें से कुछ यहाँ लिख रहा हूँ। 

मुझे जीवन की अलग अलग अवस्था में अलग अलग विषयों में रस (आनंद) मिलता रहा है। बचपन में निश्चित ही मुझे स्वादिष्ट नाश्ता, भोजन एवं पेय और तरह तरह की खाद्-य सामग्री के माध्यम से रस मिल करता था। खेलना, बाल साहित्य पढ़ना, क्रिकेट कमेंट्री सुनना एवं समाचार पत्रों का खेल पृष्ठ एवं संपादकीय पढ़ने में भी मुझे रस आया करता था। 

किशोर वय में गणित के प्रश्न एवं अन्य विषयों के संख्यात्मक प्रश्न (Numericals) हल (Solved) करना भी मुझे किसी गेम खेलने जैसा आनंद देते थे। 17 वर्ष की उम्र में बुलेट (बाइक) चलाना भी मुझे रस देता था। तब स्कूल की पढ़ाई से समय निकाल कर उपन्यास पढ़ना भी मुझे पसंद था।  

किशोर वय से लेकर लगभग पचपन की आयु तक मेरा प्रमुख आनंद विषय, प्रेम रस था। विवाह उपरांत मैं अपनी पत्नी एवं बच्चों में मग्न रहने के पलों में प्रसन्न रहता था। 

37 से लेकर 58 वर्ष के बीच की उम्र में मुझे कंप्यूटर पर काम करने एवं कंप्यूटर सॉफ्टवेयर के ज्ञान वृद्धि के लिए पढ़ना अच्छा लगता था। इसी बीच मैंने अपनी कार मारुति ज़ेन ली थी। तब अवकाश में अपने परिवार के साथ गृहनगर जाना भी मेरे लिए रसमय अनुभव होता था। इसमें ड्राइव करते हुए सांसारिकता (Worldliness) से अलग होकर, अपने पत्नी-बच्चों के साथ रिलैक्स होकर बातें करना मुझे अच्छा लगता था। 

मुझे याद है, बच्चों ने मुझे इतने फुर्सत में एवं बिलकुल अलग तरह से बात करते हुए, ऐसे ही समय में देखा था। कभी आश्चर्य से पूछा भी था - पापा, आप इतने अनूठे तरह से विचार करते हो? 

शायद उनने यह तब कहा था जब एक बार कार चलाते हुए मैं उन्हें बता रहा था - 

एक सामान्य मनुष्य, जीवन में 70 हजार से अधिक बार खाकर भी अतृप्त रहता है। वह हर 4-5 घंटे में फिर भूखा हो जाता है। जब ऐसे ही अतृप्त हमें रह जाना है तो क्यों (यूँ तृप्त होने के असफल प्रयासों के बावजूद) हमें इस बात को अधिक महत्व देना चाहिए कि हमें खाने के लिए क्या क्या चाहिए है। हमें जो सर्व किया गया हो (हम शाकाहारी परिवार से हैं) या जो उपलब्ध हो उसी से उदर पोषण कर लेना चाहिए। तथा आजीविका कमाने में भ्रष्ट या अनैतिक नहीं होना चाहिए। 

यहाँ यह उल्लेख प्रासंगिक होगा कि मैंने आरंभ से ही अपनी दादी, माँ, बहनों सहित पत्नी रचना के द्वारा, इस विवेक से पाक सामग्रियाँ बनाते देखा है कि क्या और कब खाना स्वास्थ्य की दृष्टि से अच्छा होता है।     

मैंने अच्छी बहुत सी बातें पढ़ीं हुईं थीं। कभी एक प्रसंग यह भी पढ़ा था कि -

एक घर में पति, अपनी पत्नी के बनाए भोजन की अत्यंत प्रशंसा करते हुए, उस भोज्य का कम सेवन करता तो पत्नी शिकायत करते हुए कहती - आप जिस भी सामग्री की अधिक प्रशंसा करते हो उसे कम खाते हो। 

पति का उत्तर होता - मेरी प्राणप्रिया, मैं चाहता हूँ जो आपने अच्छा बनाया है उसका रसास्वादन का अवसर परिवार एवं पड़ोस के अधिक से अधिक लोगों को मिले। 

ऐसे ही एक और प्रसंग भी पढ़ा था कि -

एक ऋषि के पास एक माँ, अपने बच्चे की अधिक गुड़ खाने की आदत छुड़ाने का उपाय पूछने गई थी। 

तब ऋषि ने उसे सात दिन बाद आने के लिए कहा था। सात दिन बाद वह माँ फिर पहुँची तब ऋषि ने उसे उपाय बता दिया था। 

माँ ने कहा - आचार्य जी, इतनी सी बात तो आप मुझे उसी दिन बता सकते थे। 

ऋषि ने कहा - उस दिन तक मैं स्वयं, बहुत गुड़ खाया करता था। जब मैं ही कोई काम कर रहा था तब उसे छोड़ने का कोई उपदेश अन्य को कैसे दे सकता था। 

ऐसे छोटे छोटे अच्छे प्रसंगों से, मैंने अपनी आदत बनाई है कि मैं वही बात कहूँ या लिखूँ, जिसे अच्छी मानकर मैं स्वयं अपने आचरण एवं कर्मों में अंगीकार करता हूँ। 

अभी पिछले महीने 23 फरवरी से 7 मार्च तक रचना (मेरी पत्नी) अपनी माँ से मिलने गईं थीं। इस बीच मैंने बचपन से लगी चाय पीने की अपनी आदत त्याग दी है। कारण यह था कि रचना, चाय कुछ वर्ष पूर्व छोड़ चुकीं थीं और ऐसे में उन्हें अब चाय अलग से सिर्फ मेरे लिए बनाना होता था। रचना को तो चाय बनाने में परेशानी नहीं थी, मगर मुझे मेरे अकेले के लिए उन्हें यह करता देखना अच्छा नहीं लगता था। ऐसे जीवन की अंतिम चाय मैंने 23 फरवरी 2022 को पी है। 

बात रस की है तो मुझे अब उन बातों में भोजन से अधिक रस आता है जिनमें मेरे कारण, दूसरों को प्रसन्नता एवं आनंद मिलता है। यह भी एक कारण है कि मैं अब अच्छे साहित्य सृजन में रस लिया करता हूँ। 

मैं सोचता हूँ जीवन कभी तो ऐसा भी जिया जाए जिसमें हमारे लिए, अपनी प्रसन्नता से अधिक दूसरों की प्रसन्नता का महत्व रहे।