Sunday, May 31, 2015

भोग की वस्तु

भोग की वस्तु
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जीवन भर से परिवार के लिए करती माँ लगती जैसे बेटे से कहती है
जब से जन्मी स्नेह भाई से बहना रख ,लगती जैसे भाई से कहती है
पतिव्रता हो साथ बिताते समर्पिता पत्नी ,लगती जैसे पति से कहती है
पिता की लाड़ दुलारी प्यारी बिटियारानी, लगती जैसे पापा से कहती है

है हमारी भी कुछ इक्छायें कर दिखाना कुछ चाहते हैं
मन में भी हमारे सुंदरता है क्यों तन ही निहारे जाते हैं ?
रात नहीं जा सकते अकेले , बहुत से काम में बंधन हैं
हम निभते ,प्रेम रखते पुरुष से क्या इस हेतु पनिशमेंट हैं ?

निर्विकल्प पारिवारिक पुरुष असहाय प्रश्न समक्ष होता है
सात जन्मों के लिए जी- मरकर समाज सुधार शपथ लेता है

कहता माँ ,बहन ,पत्नी बेटी से सात जन्म बाद रिश्ते में मुझसे मिलना
हर जन्म में कुछ सुधार करते समाज में सात जन्म बाद दिन वे आयेंगे
रात सुनसान में नितांत अकेली होगी भी तुम ,तो पुरुष न तुम्हें छेड़ने आएंगे
तुम मनुष्य पुरुष जैसी ,तुम्हें भोग की वस्तु समझने के रिवाज विदा हो जायेंगे
--राजेश जैन
01-06-2015
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जयमाल पहनने में खड़े अकड़ते हैं


जयमाल पहनने में खड़े अकड़ते हैं
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हर्षित वर ,बारात सहित विवाह करने जाता है
वधुपक्ष को स्वागत में करबध्द समक्ष पाता है 
दोनों पक्ष में नवयुगल के सुखद भविष्य हेतु
आशा-अपेक्षाओं का हिमालय खड़ा हो जाता है

जिन हारों से वर वधु विवाह सूत्र में बंधते हैं
दोनों वह जयमाल पहनने में खड़े अकड़ते हैं
आज जो झुके तो जीवन भर को झुक जायेंगे
भ्रम अहं से जीवनसाथ की शुरुआत करते हैं

अकड़ से संभव क्या ? साथ निभाना होता है
नम्रता से सुख देना संभव, प्यार पाना होता है
घर में अकड़ विनम्रता बाहर प्रदर्शित करते हैं
घर में उपलब्ध प्यार उसे ,बाहर ढूँढा करते हैं

अरमानों से जोड़े रिश्ते यों कटुता में चलते हैं
चकाचौंध में सुख पीछे मृगतृष्णा से भटकते हैं
छुपाछुपी ,अवैध प्रेम रिश्तों में छल चलते हैं
बाहर बनते छलिया ब्याहता को भी छलते हैं
--राजेश जैन
31-05-2015

Saturday, May 30, 2015

ना बचेगी बहन-बेटी

ना बचेगी बहन-बेटी
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साठ करोड़ नारी हैं
सवा अरब के देश में
कुछ ही खुश जीवन से 
दुखी अनेक नारी वेश में

अनुकूल जीवन कुछ का
बाकि जूझती हैं देश में
संकट लाज पे
भेड़िया मिलता पुरुष भेष में

नारी सम्मान रखते कुछ
नहीं विवेक है शेष में
जब तक असुरक्षित है नारी
उन्नति नहीं है देश में

भ्रूण हत्यायें , छेड़छाड़ ,शीलभंग
नित होते हैं देश में
दृष्टि न होगी भाई सी तो
ना बचेगी बहन-बेटी देश में

पावन माटी , भव्य संस्कृति
बहती गंगा है देश में
धिक्कार , घोल दिया विष
स्वार्थियों ने परिवेश में
--राजेश जैन
30-05-2015

Friday, May 29, 2015

पुरुष जैसा ही सुख

पुरुष जैसा ही सुख
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जन्म के साथ सृष्टि जीव समक्ष जीवन चुनौतियाँ रख देती है
अनुभव से बने समाज में चली रीतियाँ जीवन का हल देती हैं

परिवार में जन्मता मनुष्य मर्यादाओं में जीवनयापन करता है
सुखी वह रहता जो दूसरों के सुख सुनिश्चय के प्रयत्न करता है

माँ,बहन,पत्नी,बेटी ,परिवार हो सुखी ,ममता ,समता रखती है 
लेकिन कुछ रूढ़ियों से होते शोषण से नारी दुखी स्वयं रहती है

धिक्कार रूढ़ियाँ ,गर्भ,समाज में नारी ,हत्या का शिकार होती है
आसपास नारी को दुःखी करते ,सुखी होने की नहीं विधि होती है

गलतियों का सुधार कर अब ऐसा विश्व ,समाज ,हमें बनाना है
पुरुष यदि नारी रूप जन्मे उसमें उसे पुरुष जैसा ही सुख पाना है
--राजेश जैन
30-05-2015
 

Thursday, May 28, 2015

पति -पत्नी

पति -पत्नी
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घर गृहस्थी सजाई जाती मानव जीवन जिसमें सरल होता है
पति -पत्नी बीच निजता के रिश्ते का इसमें संयोजन होता है

गृहस्थी बोझ उठाती पत्नी से साथ मधुर लगता प्रेम होता है
पत्नी अप्रिय ,'वह' लगे प्रिय ,कामुकता है ,नहीं प्रेम होता है

जिसे न उठाना बोझ कोई ,उसके नखरे तुम सह लेते हो
गृहस्थी बोझ उठाती पत्नी के साथ तुम अकड़े रहते हो

अनेकों 'वह' मिलती साथ कोई नहीं जीवन भर चलती है
अपनी तो पत्नी होती सामंजस्य रख साथसाथ चलती है  

छोड़ो रोना ,पत्नी के नाम से ,देकर दुहाई उनकी कमियों का
छोड़ो 'वह' का चक्कर रे पति ,सदोष तुम्हें ,पत्नी निभाती है
--राजेश जैन
28-05-2015

Wednesday, May 27, 2015

विकल्प


विकल्प
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आज से ज्यादा अच्छा कल हो ,हमारा
इस विकल्प की तलाश जीवन होता है
अपना ही नहीं ,सभी के सुख में ,हमारा
सच्चे सुख से गुंथा-बुना जीवन होता है
नारी साथ से गुंथा-बुना जीवन ,हमारा
नारी सुखी तब ही सुखी जीवन होता है
लक्ष्य ,सम्मान नारी जीवन में ,हमारा
सम्मानित चलता मधुर जीवन होता है
सांस्कृतिक परंपरा के विकल्प रूप में
सिनेमा ने जैसा प्रस्तुत कर पाया है
नारी सम्मान की उड़ी धज्जियां देश में
बुरी दृष्टि से नारी ने अपमान पाया है
या बदलें सिनेमा के चाल चलन हम
या दिखाना बंद करें बच्चों को हम
स्वार्थ वशीभूत प्रसारित करते जो ये
नारी सम्मान करना भूल गये हैं हम 
--राजेश जैन
27-05-2015
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Tuesday, May 26, 2015

सुपर स्टार और फैन

सुपर स्टार और फैन(प्रशंसक)
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नब्बे के दशक में जन्मे ,अब नए रिक्रूटी आ रहे हैं। एक से किसी चर्चा में , मैंने कहा , सुपर स्टार रहे राजेश खन्ना जी का दुखद निधन बेहद अकेलेपन में हुआ . उसने पूछा - क्यों , उनकी शादी नहीं हुई थी, क्या ? मैंने कहा - डिम्पल कपाड़िया का नाम सुना है ? उसने कहा - नहीं (उस चर्चा में से इतना ही ) .राजेश खन्ना जी की आत्मा की शांति की प्रार्थना के साथ - कुछ काव्य पंक्तियाँ -
1970 में उनकी कार का रंग
लिपस्टिक छापों में छुप जाता था
2015 में नाम लबों से नदारद है
यह 45 वर्ष में अंतर ,अंतराल है
सच्चाई भूल इन स्टारों ने आज के
क्यों भूलों का सिलसिला चलाया है ?
अपनी भोगलिप्सा में भटका कर
समाज को बुरे मार्ग पे चलाया है 
भटका के समाज को गुमनाम होते हो
ठगा सा वह तुम सुपरस्टार ना रहते हो
फैन उनके, तुम मरते आज दीवाने होकर
स्टार भटकता अपने को अमर समझकर
नहीं मरा कोई सुपर स्टार के साथ
धोखे का ले-दे हुआ जीवन के साथ
--राजेश जैन
27-05-2015
https://www.facebook.com/narichetnasamman

Monday, May 25, 2015

कन्या भ्रूण हत्या , ऑनर किलिंग

कन्या भ्रूण हत्या , ऑनर किलिंग
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नारी पुरुष के साथ विभिन्न रिश्तों में गुँथी हर परिवार की सदस्या है। ऐसे में हर वह ,चेतना /प्रेरणा जो नारी का सम्मान बढ़ाती है , नारी के प्रसन्न रहने से परिवार में खुशहाली लाती है। अपने परिवार की नारी का देश/समाज में सम्मान और सुरक्षा यदि सुनिश्चित होता है तो पुरुष सदस्य (पिता /भाई /पति) भयमुक्त हो जाता है , और ऐसे निर्भीक नारी- पुरुष राष्ट्र निर्माण में ज्यादा योगदान कर सकते हैं .समाज में सुनिश्चित नारी सम्मान , कन्या भ्रूण हत्या , ऑनर किलिंग की प्रवृत्ति कम कर सकता है। नारी पर प्रचलित अनेकों रोकटोक कम करने में सहायक हो सकता है। नारी के यथोचित सम्मान के माध्यम से , देश और समाज में सोहाद्र और परस्पर विश्वास बढ़ाया जा सकता है। अनुकूल परिस्थितियाँ मिलने से नारी परिवार और समाज में पुरुष जैसा ही असीमित योगदान करते हुए , मनुष्य होने से पुरुष जैसी समानता (अधिकार) प्राप्त कर सकती है।
ये सब हो सकता था ,यदि फ़िल्में  , टीवी प्रोग्राम और मीडिया से प्रसारित प्रस्तुतियों इस लक्ष्य से निर्मित होतीं । इनका प्रसारण घर-घर पहुँचता है। खेद , जो प्रसारित किया गया/ जा रहा है वह दुष्प्रेरित करता है। आज ,घर से बाहर ,पुरुष नज़रें नारी पर पड़ती है तो  उसमें सेक्स रिलेशन की संभावना खोजती है। यही -नारी विरुध्द बढ़ते अपराधों का मूल कारण है।
फ़िल्मी सेलिब्रिटीज को इस देश ने प्रतिष्ठा और बेहिसाब धन दिया है। किन्तु 'अहसानफरामोश' इन्होने बदले में - समाज में नारी के जीने को अत्यंत चुनौतीपूर्ण कर दिया है । अब गर्लफ्रेंड -बॉयफ्रेंड की परम्परा 6-8 वर्ष के बच्चों से लेकर 80 साल के बूढ़ों तक में पहुँच गई है। सेक्स प्रवृत्ति की इस अति से परिवार/समाज/देश अशांत है .
कब मोहभंग होगा , कब भ्रमित करती सेलिब्रिटीज के प्रति हमारा सम्मोहन टूटेगा ? कब इन्हें ऐसा पेश करने को हम बाध्य कर सकेंगे जो समाज हित में हो ?कब इन्हें इस तर्क की आड़ लेने से रोक सकेंगे ,कि जो दर्शक को पसंद , हम वह प्रस्तुत करते हैं ? कब ,इन्हें प्रदत्त ख्याति (हीरो) अनुरूप समाज उत्तरदायित्व निभाने को हम मजबूर करेंगे ?
--राजेश जैन
25-05-2015

Sunday, May 24, 2015

आश्चर्यजनक


आश्चर्यजनक
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एक जज के मुँह से कल टीवी पर सुना - आजकल 'इंडिया गॉट टैलेंट' में आर्टिस्ट कपड़े बहुत उतार रहे हैं। आश्चर्यजनक लगा सुन के , फिल्म से जुडी उस हस्ती ने यह नोटिस किया। पिछले 80 वर्षों में देश में , अनेकों ने (करोड़ों ने) यह दोष लगाया होगा कि फ़िल्में देश/समाज में नंगेपन को दुष्प्रेरित कर रहीं हैं । लेकिन फिल्मों ने अपनी चाल नहीं बदली बल्कि दिनोंदिन और खराबी उत्पन्न करते जा रही हैं।
अपनी कला को माध्यम बनाकर मंच पे जा रहा एक गुमनाम आर्टिस्ट भी फ़िल्मी नायकों एवं स्पोर्ट्स सेलिब्रिटी की तरह अपने गठीले बदन का प्रदर्शन करने को बेताब हो कर ये करता है। यह उसने ,इन्हीं से सीखा है। मालूम नहीं ऐसा इम्प्रैशन कैसे पड़ा इन के दिलोदिमाग पर ? कि इनके गठीले शरीर पर रीझ कर , सारी रूपयौवनायें इन्हें अपना सर्वस्व अर्पित करने को तैयार हो जायेगीं।
धिक्कार है -ये प्रोग्राम प्रिरिकार्डेड होते हैं।  अगर इन जज महोदया के ये आँसू मगरमच्छी न होते तो , टीवी पर टेलीकास्ट करने के पहले ही ये अंश , हटाये जाते।
आखिर कब तक ? हम ,"इनके नंगाई के आइकॉन होने" और फिर इस तरह "मासूम" बनने के छल के बीच छले जाते रहेंगे। हमारे व्यवहार से तो ऐसा लगता है, जैसे हम परायों के देश और समाज में जीवन निर्वाह कर रहे हैं।
--राजेश जैन
24-05-2015
 

Saturday, May 23, 2015

लिव इन रिलेशन

लिव इन रिलेशन
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हम स्वतंत्र ,कुछ करने को ,युवा-अधबूढ़े स्वतंत्र होते हैं
जीवन अपना ,अपने अंदाज से जीने को स्वतंत्र होते हैं
स्वतंत्र करने से दुःखी जीवन या समाज यदि बनता है
करें विचार ,दुःखी रहने-करने से बेकार जीवन होता है

होते त्वरित बदलाव अबके सकारात्मक हम ले लेते हैं
आधुनिक होते नारी-पुरुष रिश्तों को मान्यता दे देते हैं

कह गर्लफ्रेंड बदलते नारी,पचास तक निभाली जाती है
न मरी तब तक तो बूढी गर्लफ्रेंड ,क्या निभाई जाती है ?
आधुनिक दिखने वह शराब सिगरेट अपनाती जाती है
इनसे रोगी होने पर परछाईं बॉयफ्रेंड की छिप जाती है

परिवार में रहती थी बूढी-रोगी तक निभाली जाती थी
लिव इन रिलेशन - डिवोर्सी यह सुनिश्चितता पाती है ?

प्रगतिशील ,हमें दकियानूसी कहाना नापसंद होता है
विकल्प दो परिवार का अन्यथा न बदलो संस्कृति को
--राजेश जैन
24-05-2015

Friday, May 22, 2015

सुख -शरीर प्रधानता ?

सुख -शरीर प्रधानता ?
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छेड़छाड़ , छल संबंधों से
निकटता की कोशिश करते हो
हितैषी हुए बिना नारी के
मधुर चाहत उससे रखते हो

गलतफहमी है तुम्हारी
आनंद तुम इस से पाते हो
न दे सकते आनंद उसे ,स्वयं
सच्चे आनंद से वंचित होते हो

आत्मिक निकटता का संबंध
देह संबंधों से स्वतंत्र होता है
मिटा रहे आनंद जीवन के तुम
मनुष्य का ये नहीं धर्म होता है

सच्चा प्यार करने वाला, हमारे
आत्मिक सुख से प्रसन्न होता है
--राजेश जैन
23-05-2015
https://www.facebook.com/narichetnasamman

 

Thursday, May 21, 2015

साधारण नारी - नित जीवनसंघर्ष

साधारण नारी - नित जीवनसंघर्ष
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नहीं ,रहने को सुविधाजनक भवन
नहीं ,पहनने को कीमती परिधान
सपने अधूरे रहते बेटी-बहनों के
तुम इन्हें नहीं पूरा कर सकते हो

पढ़ने के पुरुष जैसे अवसर ,नहीं
उदर पूर्ति को फल और मेवा ,नहीं
इनसे रहती बहन बेटियाँ वंचित
तुम नहीं उन्हें स्वतंत्रता दे सकते हो

चलने के लिए पास गाड़ी उन्हें ,नहीं
हाथों में उनके झाड़ू साबुन बेलन है
आराम नहीं नारी के जीवन में
कामों से तुम मुक्त नहीं कर सकते हो

सम्मान से बात व्यवहार कर लो
यौन शोषण से उन्हें निर्भय कर दो
ज्यादा शारीरिक ,प्रसव वेदना उनको
तुम्हारी दी वेदनाओं से तो मुक्त कर दो

सृष्टि ने दी उन्हें धरा सी सहनशीलता
सदियों तुम उन्हें धर के मारते पीटते
अय्याशी के लिए नहीं ,सहज जीवन हेतु
नव युग में नारी को शोषणमुक्त कर दो
--राजेश जैन
21-05-2015

Wednesday, May 20, 2015

फेक आईडी

फेक आईडी
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छुपा पहचान ,रात में कुछ महाराजे घूमा करते थे
कुशलता एवं प्रजा कष्टों का संज्ञान लिया करते थे
लगा नकली चेहरा कुछ नटवरलाल घूमा करते थे
अति स्वार्थी होकर वे अन्य से ठगी किया करते थे 

फेसबुक पर फेक आईडी ने सिलसिला ये बढ़ाया है
महाराजों की नहीं इन्होनें छलिया परंपरा बढ़ाया है
नारी आईडी बनाकर अश्लील पोस्ट किया करते हैं
अन्य फेक आईडी इनपर भद्दे कमेंट किया करते हैं

स्वस्थ विमर्श मनोरंजन लक्ष्य जो एफबी पे आते हैं
अनायास वीभत्स ,अश्लीलता के दर्शक बन जाते हैं
दुष्प्रभाव इसके, कुछ स्टूडेंट पढ़ने से भटका करते हैं
कंधों पर जिनके समाज भविष्य ,भ्रष्ट हुआ करते हैं
--राजेश जैन
21-05-2015
 

चुनौती पुरुष-नारी समक्ष

चुनौती पुरुष-नारी समक्ष
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सिने सेलिब्रिटी ,देते प्रोग्राम जिस मंच से
धकधक गर्ल ,व्दिअर्थी हास्य दृश्य होते हैं
भाईसाहब ,बहनजी शब्द आदर के वहाँ पे ...
प्रशंसकों से संबोधन के शब्द नहीं होते हैं



दर्शक होते रोज इन दृश्यों के इसलिए तो
अब लड़की कोई कहे भाईसाहब लड़के को
या लड़का कहे बहन जी किसी लड़की को
ये प्रयोग में लगते उन्हें अपमान सूचक हैं


सेलिब्रिटी तो कमाते इन दृश्यों को दिखा के
सेलिब्रिटी तो रहा करते सुरक्षित बँगलो में
पुरुष दर्शक फ़िल्मी दृश्यों से होते बावले जो
देखते धकधक गर्ल ,हर जगह हर नारी में


बावलों से बचे कैसे? चुनौती नारी समक्ष है
सम्मानीय जीवन की चुनौती नारी समक्ष है
ले रहा समाज ,सीख , फिल्म- सेलिब्रिटी से
इन्हें बदलें यह चुनौती पुरुष-नारी समक्ष है
--राजेश जैन
20-05-2015

Tuesday, May 19, 2015

वेदना में कराहती है ,नारी


वेदना में कराहती है ,नारी
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बनाया जिन्हें ख्यातिलब्ध व्यक्ति ,शारीरिक सौष्ठव ,रूप सम्मोहनों में हमने
न करके उनके कुकृत्य ,अपराध तिरस्कृत ,भुला दिये कर्तव्य समाज के हमने  

प्रशंसक होकर ,आँख मींच कर अनुशरण ,धनवान भी उन्हें बना दिया है हमने
समाज को क्षति पहुँची ,दम्भ बढ़ते गये उनके ,ये भी अनदेखा कर दिया हमने 

पथ जो दिखाया हमें उनने, नशा ,शराब और सेक्स में ही समझा जीवन हमने 
नारी की वहाँ हत्या ,आत्महत्या विवशता ,शोषण में उलझा देखा जीवन हमने   

देर से लेकिन समझी जो अभिनेत्रियां दुनिया में उनकी गुमनामी देखी है हमने
भुगता जो शोषण साहस न हुआ कहने का ,वे भटकाती पीढ़ी को देखी है हमने 

अय्याश पुरुष को चाहिए जो धन ,शबाब, शोहरत उसे स्थापित करदी है हमने 
मानवता के प्रत्यक्ष न सही परोक्ष अपराधी ,देखने की दृष्टि भी खो दी है हमने 

वेदना में कराहती है ,नारी ,एक अभिनेत्री की हत्या का समाचार देखा है हमने
अनेकों हैं शोषित ,उन्नति छलावों से ,परदे के पीछे का सच नहीं देखा है हमने
--राजेश जैन
19-05-2015

Monday, May 18, 2015

हमसफ़र

हमसफ़र
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महत्व बेटी ,बेटा का माँ हृदय में चाँद-सूर्य सा होता है
समाज इनमें जब भेदभाव करता माँ का हृदय रोता है
हमसे बनता है समाज ,क्यों हम दोष समाज को देते हैं ...
हम सोचते बुरे ढंग से ,माँ को दे चिंता उन्हें रुला देते हैं


बुरी दृष्टि ,छेड़छाड़ ,कुकृत्य अपराध हम नारी पे करते हैं
दहेज,कन्याभ्रूण हत्या,पुत्री हन्ता ,गृहहिंसा दोषी बनते हैं
सुरक्षित एवं सम्मान से यदि नारी को हम नहीं रखते हैं
दूध एवं संस्कार पे कलंक दे माँ मस्तक को झुका देते हैं

नानी ,दादी, माँ, बहन एवं बेटी नारी सभी परम हितैषी हैं
सब के त्याग एवं ममता के जीवन में आभारी हम होते हैं
ऐसे रिश्ते सभी नारी के दूसरों से होने को हम भुला देते हैं
कामांध-दुष्ट हो कर कुकृत्य ,शोषण हम नारी पे करते हैं

जान लेते इन ,दुराचारों के समक्ष नारी कमजोर पड़ती है
हत्यारे पिता होते कन्या-भ्रूण ,बेटी की जान पर बनती है

शोषक ,छली ,कुकर्मी ,लालची ना हमें तो मनुष्य होना है
नारी सुखी ,प्रगतिशील हो जिसमें वह समाज बना देना है
महत्वकांक्षा उनकी पूरी ,मनुष्य है नारी ये विश्वास देना है
हम मनुष्य प्रगतिपथ पे हमसफ़र प्रशस्त हो साथ होना है
--राजेश जैन
18-05-2015

Sunday, May 17, 2015

नारी -पुरुष अनुपात

नारी -पुरुष अनुपात
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माँ तो बेटे या बेटी दोनों से समान ममता रखती है। लेकिन समाज जो हमसे बना है , वह बेटी को सुखद जीवन की सुनिश्चितता नहीं देता है। ऐसे में माँ ( जो पहले किसी की बेटी भी है ) का चिंतित रहना सहज है। समाज हमसे है - समाज बदलना चाहिए , हमें लगता है तो हम स्वयं बदलें।
नारी को बुरी दृष्टि से न देखें , नारी से छेड़छाड़ न करें , नारी पर कुकृत्य न करें , कन्या भ्रूण या पुत्री हन्ता न बनें , दहेज को लेकर हत्या न करें , गृह हिंसा न करें। नारी को बाहर सुरक्षित और सम्मानीय वातावरण दें , जिससे वह विश्वास कर पाये कि वह भी एक मनुष्य ही है। अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरी करने के लिए बिना संकोच कदम बढ़ा सके। जिस दिन वह सुखी होगी - उस दिन ही हम सभी सुखी हो सकेंगे।
 नारी - हमारी नानी , दादी , माँ , बहन और बेटी भी है। इन सबने हमारे हित की कामना की है। हमारे लिए अपने सुख-चैन के भी त्याग किये हैं। जब हम उन्हें सुखी रखने में समर्थ होंगे - तब सच मायने में हम सुखी होंगे।
 जब हम नारी से अपने इन रिश्तों की बात करते हैं , उसी समय , हमें यह ध्यान भी रखना होगा कि जिस युवती आदि पर हम बुरी दृष्टि से रख , अवैध दैहिक संबंध का मंतव्य रखते हैं , वह (युवती) हमारे जैसे ही बहुतों से इन रिश्तों में पिरोई होती है। उससे भी ,उनके परिजन वही सब अपेक्षा ,सम्मान और मर्यादा रखते हैं , जो हमारे परिवार की नारी सदस्या से हमें अपेक्षित होते हैं।
यह स्वार्थ की हद है ,हमारी दुष्टता /क्रूरता है ,जब हम अपने यहाँ बेटी को जन्मने न दें , जन्मे तो मार डालें , या भटका दी गई हो तो गला घोंठ दें . और दूसरे ने जिन्होंने बेटी को जन्मा -बड़ा किया है उनकी बहन -बेटी पर हम वह अपराध करें , उनका वह अपमान करें , जिसकी अपनी बेटी पर कल्पना मात्र से हम हत्यारे हो जाते हैं।
 हमें - छिछोरा , छली , कुकर्मी , कामी ,लालची नहीं , मनुष्य बनना चाहिये। मनुष्य वह है , जो दूसरों के लिए जीवन के वही मार्ग प्रशस्त करता है , जैसे अपने जीवन के लिए चाहता है। हम नारी के चेतना , सम्मान ,प्रगति और सुखद जीवन के मार्ग प्रशस्त करें। उन्हें जीवन के पूरे अवसर दें। ऐसा होने से बिगड़ रहा नारी -पुरुष अनुपात भी ठीक किया जा सकेगा ।
--राजेश जैन
17-05-2015

Friday, May 15, 2015

क्या बेटी होना पाप है ?

क्या बेटी होना पाप है ?
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परिस्थितियाँ प्रश्न की बनीं अगर
"क्या बेटी होना पाप है ?"
इतना ही मात्र लिखेगी लेखनी यह
सभ्यता का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है

दुर्भाग्य को यदि बदल न सकें हम
मनुष्य होने की फिर महिमा क्या ?
--राजेश जैन
16-05-2015

Thursday, May 14, 2015

मुश्किल है

मुश्किल है
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मुश्किल नहीं है मेरे लिए
मुझे नहीं किसी और को तुम चाहो
मुश्किल है मुझे तब कि
किसी और के साथ तुम खुश ना हो

कुछ सुंदर को छोड़ शेष होती हैं उपेक्षित
चाहत को भी घर लाकर करते हैं उपेक्षित

हमारी ख़ुशी क्या , मालूम नहीं है तुम्हें
हैरत तुम्हारी ख़ुशी मालूम नहीं है तुम्हें

गर्भ में ही मारकर कम कर रहे हो हमें
ऐसे भी मारोगे मरने का गम नहीं हमें

गम इस बात का हमने जन्मा है जिसे
कैसा पिलाया दूध गुण न मिले हैं उसे

नारी को सम्मान और सुरक्षा देना नहीं आया है
दुःख की है बात , नारी के लिए भटकना पाया है

जीवन भर ख़ुशी के लिए ढेर साधन जुटाया करते हैं
कला नहीं ख़ुशी जीने की उनमें दुःख उठाया करते हैं
--राजेश जैन
15-05-2015

Wednesday, May 13, 2015

प्रतिभावान

प्रतिभावान
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क्या हुआ अब तक भुला उसे देना है
सभ्यता को यथा नाम रूप दे देना है
भय मुक्त हो समान मनुष्य है नारी
देश -समाज को अपने ये रूप देना है

अगर अपने परिवार की नारी सदस्या को लेकर गहन विचार करें तो हममें से अनेकों इस बात से सहमत होंगे कि हमारे अपने परिवार में 1. माँ ,पिता से ज्यादा या  2. बहन , हम से ज्यादा या 3. पत्नी , पति से ज्यादा या 4. बेटी ,बेटे से ज्यादा - प्रतिभाशाली रहीं हैं। लेकिन जीवन भर पुरुष से ज्यादा परिवार के प्रति समर्पित होते हुए भी , जिसे आज जीवन में ज्यादा सफल होना कहते हैं , उसमें पुरुष से नारी पिछड़ गईं हैं। ज्यादा प्रतिभावान होने पर भी भौतिक उपलब्धियाँ उनके हिस्से में कम आईं हैं। यही नहीं अगर उन्होंने इस स्पर्धा में हिस्सा लिया है तो उनका उत्साह वर्धन नहीं किया गया है एवं अनेकों जगह उनसे छल किया गया है।  क्यों ऐसा हुआ है ? हमारी समाज व्यवस्था में कुछ दोष रहे हैं। हमारे पुरुषत्व अहं उनके प्रगति में अवरोध बनें हैं। ऐसे में नारी - समाज व्यवस्था के प्रति उग्र प्रतिक्रिया को बाध्य हुईं हैं। कई आज - पुरुष प्रकार के मनुष्य से चिढ गई हैं।
हममें से जिनको भी ऐसा लगता है , उनसे आव्हान है नारी का साथ देकर - समाज व्यवस्था के दोष दूर करने के लिए और पुरुषत्व भ्रम को मिटाने के लिए अपने अपने सामर्थ्य से अपने अपने स्तर से और अपने अपने तरीके से प्रयास करें।
प्रतिभावान ,उसके हिस्से में भी आयें उपलब्धियाँ 
समान अवसर एवं न्याय से सब पायें उपलब्धियाँ 
हो विस्तृत पुरुष सोच ,न्याय ,और समाज हमारा
अधिक प्रतिभावान गर नारी वह पायें उपलब्धियाँ 
--राजेश जैन
14-05-2015

Tuesday, May 12, 2015

आपसी सम्मान

आपसी सम्मान
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पुरुष नारी की नियति उन्हें साथ होना है
दीर्घ यह साथ तो काहे का रोना धोना है ?

आरोप-प्रत्यारोपों में क्यों जीवन खोना है ?
मधुरता के साथ से जीवन सुमधुर होना है

रख परस्पर सम्मान ,अपनों सा रहना है
पीड़ाकारी भाषा-व्यवहार से हमें बचना है

साक्षर मनुष्य होने का परिचय हमें देना है
व्यवहार ,भाषा,कर्मों में शिष्ट हमें होना है

कमजोर अगर नारी तो धर्म, सहारा देना है
उत्कृष्ट उनके गुणों को हमें संरक्षण देना है

सुरक्षा-विश्वास रीत निर्मित हमें कर देना है
उच्च संस्कार, रिश्तों में हमें मर्यादित होना है

परस्पर न शत्रु हम , मित्र भाव में हमें रहना है
प्रणय ही न एक, अनेक रिश्तों में हमें जीना है

मरने से किसी के कभी न भूचाल आ जाना है
मरा आपसी सम्मान ,आकाश ही खो जाना है
--राजेश जैन
13-05-2015

Monday, May 11, 2015

मदर्स डे पश्चात (Post Mothers Day)


मदर्स डे पश्चात (Post Mothers Day)
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बेटे के जन्म के साथ पीयूष जिन अंगों में भर आया है
आँचल लेट जिन सोतों से बेटा पीयूष पान कर पाया है

पीयूष भरे इन सोतों से ही तो बचपन ने बाँकपन पाया है
युवा हुआ कामुकता में नारी लाज विचार ना कर पाया है

माँ ,नारी है , नारी माँ हो सकती विचार ना उसे आया है
आहत ,अनादर नित करता पीयूष ऋण न चुका पाया है

भूल ये शाश्वत सच को ,नारी किसी की बेटी या माँ भी है
मादक रूप दे उनके अंगों को ऐसे सब तरफ उकेर डालें है 

निज होते उन मादक अंगों को वीभत्स रूप में उकेर डाले हैं
माँ बेटी का सम्मान ,तन ही ना मन भी होता भुला डाले हैं

अनादर हुआ मातृत्व का , आहत हुआ नारी सम्मान है
सुरक्षा चुनौती उनको , आहत हुआ नारी स्वाभिमान है

फिर भी पीयूष पान कराती बेटे को, अपमानित ,वह माँ है
मैं नारी हूं या महज स्तनों का एकजोड़ा? पूछती वह माँ है
--राजेश जैन
11-05-2015
https://www.facebook.com/narichetnasamman

Saturday, May 9, 2015

मातृ दिवस (Mother's Day)

मातृ दिवस (Mother's Day)
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अनुपमा
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माँ के प्राण बच्चों में बसते रहते हैं
माँ दुआ के हाथ मशीन से चलते हैं
भगवान
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भगवान के गुण , माँ से मिलते हैं
साक्षात भगवान ,माँ में मिलते हैं
माँ की वृध्दावस्था
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मातृ दिवस से झलकता प्यार हमारा दिखावा सा लगता है
सब देखते ,माँ का बुढ़ापा उपेक्षित कोने में सिमटा रहता है

प्राण उनके हम में बसते हैं
हम उन्हें कोने में रखते हैं
--राजेश जैन
10-05-2015

मदर्स डे


मदर्स डे  (पूर्व संध्या पर माँ -बेटे से )
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तन अंश, बेटे हो ,गोद आये थे
तुम घर आँगन में खेल रहे थे
नित दिन नई आशा से सजकर
लगते कल ही ,मेरे बीत गए थे

ये घर आँगन हुए अतीत तुम्हारे
कदम भविष्य ओर बढ़ा चुके हो
पढ़ लिख गए तुम अच्छा ,और
नव निर्माण दायित्व ले चुके हो

करती स्मरण उन पूर्व दिनों को
अश्रु से अँखिया मेरी भीग रही हैं
इतना प्यारा था बचपन तुम्हारा
स्वार्गिक सुख अनुभूति हो रही हैं

तुम ,जैसे ही ,जॉब करने को
वहाँ कई बेटियाँ आई होंगी
तुम्हारे ही तरह छोड़ घर को
वे माँ की दुलरियाँ आईं होंगी

बेटे, स्मरण रखना मुझे तुम
जानना उनकी भी एक माँ है
फ़िक्र बेटी सुरक्षा की उसको
जैसी सताती तुम्हारी माँ को है 

मदर्स डे पे मेरा स्मरण आएगा
मेरे प्रति सम्मान उमड़ आएगा
सम्मान तुम करते नारी का यदि
तो मातृत्व मेरा सम्मान पायेगा
--राजेश जैन
09-05-2015
 

Friday, May 8, 2015

जानना जरूरी है - यह हक़ीक़त

जानना जरूरी है - यह हक़ीक़त
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डायलाग - तू , मुझे क्या जेल देगा , मैंने अपराध किया है , जेल मै खुद जाऊँगा (ऐसा होगा फिल्म में)
अपील - मुझे दिल की बीमारी है , जज साहब , मुझे बेल दे दो (वास्तविक ज़िंदगी में)
फिल्मों में , हीरो बन हमारे दिल पर राज करने वालों के , फ़िल्मी परदे पर के आदर्श और वास्तविक ज़िंदगी के झूठ (गाड़ी ड्राइवर चला रहा था) के डबल स्टैंडर्ड हमें समझ लेने चाहिये।
फ़िल्मी चमक से प्रभावित देश के अनेकों भाई -बहनें , घर छोड़ ,भाग कर सिने-दुनिया में पहुँचते हैं। लड़के -लड़की दोनों का शोषण वहाँ होता है। लड़की , कॉलगर्ल , बारगर्ल बाद में होती है। पहले यहाँ स्थापित शौक़ीन-तबियत के लोगों की खलनायकी भुगतती है। इन लड़कियों की पहले पहचान , किसी घर की बहन -बेटी होने की रहती है। जो खत्म होकर फिर सिर्फ पहचान कॉलगर्ल-बारगर्ल रह जाती है। 
स्थापित सफल सिने कलाकार हजार -हजार करोड़ की दौलत ,  कुछ कम सफल कुछ करोड़ की दौलत बना लेता है। देश और समाज में सुप्रसिध्द हो जाता है। उनके पीछे ,सिनेमा टिकिटों में हम रुपये और प्रशंसक (फैन) होकर अपना मूल्यवान समय व्यय करते हैं।  मनोरंजन प्रदान करने के रास्ते ,सपनों के राजकुमार और ड्रीमगर्ल की तरह हमारे मनोमस्तिष्क में छा जाते हैं।  दुर्भाग्य होता है वे वास्तविक जीवन में हीरो बन सकने में, विफल होते हैं । समाज को एक स्वस्थ प्रेरणा देने तक में विफल रहते हैं। नैतिकता में अपने से हो गए अपराध को स्वीकारने का साहस नहीं करते हैं।
इनका अनुशरण कर ना तो अपना देश -समाज हम बना पायेंगे , न ही अपना मनुष्य चरित्र ही बचा पायेंगे।
 -- राजेश जैन
08-05-2015

Thursday, May 7, 2015

संत ,नेता ,अभिनेता ,मीडियाकार - सभी ने न्यायलय में झूठ बोला है

संत ,नेता ,अभिनेता ,मीडियाकार - सभी ने न्यायलय में झूठ बोला है
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अपराध हुआ उसकी सजा माँगने का साहस लायेंगे
अपराध कम होंगेस्वतः ही समाज शांति ला पायेंगे  
अनुशरण कर मान की पगड़ी जैसे सिर पर अपने धारण किया है
दायित्व समाज प्रति होते उनके अनुकूलतायें इनसे प्राप्त किया है 
भूल हुई मुझसे न्यायलय समक्ष गर स्वयं स्वीकार कर पायेंगे
स्वस्थ परम्परा अपने समाज को दे ऋण राष्ट्र का चुका पायेंगे
कैसी माटी हो रही देश की ,कैसा नमक इसका हो गया है
संत ,नेता ,अभिनेता मीडियाकार बना झूठों का पुतला है
दो आँखों के होते हुए भी क्यों हम पर ऐसा अंधत्व छाया है
दिख जाए जो अंधे को वह ,सच ढोंग हमने न देख पाया है
ऐसे स्वार्थ ऐसी लाचारी अपने में गर पैदा कर ली है
हक ना रह गया रोने का गर बुराई परेशान कर रही है
आव्हान
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मनुष्य हो मनुष्य होने की ताकत अपनी पहचान जाओ
नारी -निर्धन पर दया कर मनुष्य हो मनुष्य बन जाओ
--राजेश जैन
08-05-2015

 

पाँच वर्ष -जेल

पाँच वर्ष -जेल
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सहानुभूति उससे ,उस परिवार से जो ,परिजन जिसका मारा गया है
सहानुभूति उससे ,उस परिवार से जिसे सजा से पीड़ित अब होना है

लेकिन आवाक हम साक्षी हो कर, ड्राइवर कहता मै गाड़ी चला रहा था 
विश्वासघात है उस अभिनेता का ,जिसे देश हीरो कह सर चढ़ा रहा था

सजा भुगतने का नैतिक साहस स्वयं ,यदि हम अपराधी हो ना ला पाएंगे
हम भुगतते बुरी परिस्थिति देश में स्वयं ,उसमें सुधार कभी ना ला पायेंगे

हुआ देश में लोकप्रिय ,उस राष्ट्र ऋणी से आदर्श -नैतिकता की आशा है 
अपने अपराध के प्रायश्चित ,सजा भुगतने का साहस रखने की आशा है

टीआरपी के लिए ,किये व्यर्थ 10 करोड़ मानव घंटे उस मीडिया से कहना है
सजा हुई अपराधी को इस समाचार से स्वस्थ वातावरण निर्माण न होना है

नैतिक दायित्व मानने की जब तक भावना नहीं आएगी
अपराध -बुराई न कम होंगे पीढ़ी त्रासदी सहते ही जाएगी

पसंद -नापसंद से अलग हमें सोचना है। कुचल दिए जाने से जिसने मर के पूरा जीवन खो दिया है , उसकी तुलना में , हादसे के जिम्मेदार के लिए ,पाँच वर्ष प्रायश्चित को देना ,क्या ज्यादा खोना है ?  ऐसी कितनी सजा के फैसलों का जिक्र ,मीडिया पूरे-पूरे दिन चलाती है ? क्या , टीआरपी ही एक समस्या है? इस देश -समाज के लिए उसकी कोई अन्य जिम्मेदारी नहीं ? और हम क्यों इतने जिज्ञासु हैं ? ग्लैमर से घिरे होकर ,50 वर्ष की उम्र तक अविवाहित रह , सम्पर्क में रही नारियों के साथ जो करता रहा है - वह क्या नारी सम्मान है?  सारे प्रश्नों के प्रति चेतना हममें होनी चाहिए।
--राजेश जैन
07-05-2015

Monday, May 4, 2015

स्मृति पापा की

स्मृति पापा की
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स्मृति है उन बाँहों की ले जिसमें हमें झूला झुलाया करते थे
स्मृति है उन राहों की ऊँगली थाम चलना सिखाया करते थे

विद्यमान वे आँगन जिसमें किलकारी से खुश हो जाया करते थे
विद्यमान वे बाजार-दुकानें जहाँसे ला खिलौने खिलाया करते थे

आते हैं फल आज भी , जिन्हें टोकरों से ला खा-खिलाया करते थे
आते हैं फेरीवाले -ठेले जिनमें से खरीद चटपटा खिलाया करते थे

आते हैं दिन याद स्वयं ही हमें स्कूल छोड़ने जाया करते थे
आते हैं दिन याद स्वयं ही वाहन चलाना सिखाया करते थे

होते व्यस्त लेकिन गुण-पढ़ने की प्रेरणा बन जाया स्वयं करते थे
होते व्यस्त लेकिन दुर्गुणों में न जायें हम निगरानी स्वयं करते थे

क्लास दर क्लास हमारी सफलता से खुश हो जाया करते थे
इंजीनियर हुए हम पर हमसे ज्यादा स्वयं खुश होया करते थे

स्मरण है हमारे विवाह पर गर्व अनुभूति के साथ बहू लेकर आये थे
स्मरण है जब हुई पोती तो प्यार से पलना वॉकर साइकिल लाये थे

सारा जीवन साथ थे
सबसे बड़े हितैषी थे
बुरी लगी दुनिया अब
जिसमें आप नहीं थे

अक्षम ऐसी ज़िंदगी क्यों ?
हम बचा नहीं सके क्यों ?
जीवन ऋण लादा अपने पे
चुकाने में असमर्थ क्यों?

सामर्थ्यवान बना कर
पापा आप जो चले गए 
सामर्थ्यवान होते हुए ,हैं
अनाथ जो आप चले गए
--राजेश जैन
04-05-2015
 

Sunday, May 3, 2015

#परोपकार

#परोपकार
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दिए हैं ज़िंदगी में कुछ थोड़े से पल
जिन पर अधिकार सिर्फ तुम्हारा है
परोपकार को करो अर्पित कुछ पल
समझेंगे मेरे लिए ये प्यार तुम्हारा है
 --राजेश जैन
04-05-2015

Saturday, May 2, 2015

मुन्नी ,शीला ,जलेबी एवं चमेली

मुन्नी ,शीला ,जलेबी एवं चमेली
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अस्सी वर्षों में सामाजिक दृष्टि में खराबी का पॉवर (लेंस) (+1,-1) , से बढ़कर (+10,-10) यदि हुआ है तो कारणों को जानने /समझने में गंभीरता आवश्यक होती है। अस्सी वर्ष के इस समय में हमारे समाज में सिनेमा ग्रेजुअली ज्यादा लोकप्रिय हुआ है। इसमें प्रस्तुत सामग्री में उत्तरोत्तर अश्लीलता बढ़ती गई है। 
पहले सिनेमा हाल में और अब घर घर में दर्शक इसके दर्शन प्राप्त कर रहे हैं। अश्लीलता दर्शन से ,बच्चे समय से पहले सेक्स अनुभूति करने लगे हैं। अन्य दर्शकों पर भी मानसिक , शारीरिक और दृष्टि में कामान्धता के दुष्प्रभाव पड़े हैं।
जब मुन्नी , शीला ,जलेबी एवं चमेली तो स्क्रीन पर टेलीकास्ट /ब्रॉडकास्ट के समाप्ति के साथ ओझल होती हैं। तब मुन्नी , शीला ,जलेबी एवं चमेली अभिनीत करने वाली और प्रस्तुत करने वाले , अपने काम के शुल्क से अपने आलीशान हो चुके भवनों में विलासिता और सुविधा के जीवन का आनंद और चैन का जीवन जी रहे होते हैं। उनके बँगलो पर दर्शक पहुँच नहीं सकते , लेकिन अश्लील दर्शन से पड़े दुष्प्रभाव दर्शक मन और आँखों में ऐसी वासना घोल देते हैं , जिससे उन्हें आसपास की हर युवती(नारी) में मुन्नी , शीला ,जलेबी एवं चमेली दिखने लगती है। ऐसे में हम सभी की बहन -बेटियाँ ,माँ एवं पत्नी आदि अपने दैनिक जीवन में ख़राब दृष्टि /नीयत से जूझने को विवश होती हैं।
सिनेमा के एक्साम्पल से समझने की आवश्यकता है , अब तो अश्लीलता और भी माध्यमों पर सरलता से उपलब्ध मिलती है। प्रतिष्ठा , धन और कई तरह के सम्मान से विभूषित हो तथाकथित सेलिब्रिटीज समाज में खराबियों फैलाती सामग्री बेच स्वयं सुरक्षित एवं प्रतिष्ठित होते हैं। लेकिन इनसे, टिकिटों/ केबल शुल्क / नेट शुल्क आदि रूप में अपना धन और समय व्यर्थ कर दर्शक स्वयं का वर्तमान / भविष्य बिगाड़ने के साथ ही सामाजिक सोहाद्र और शिष्टाचार बिगाड़ कर स्वयं को ही असुरक्षित करने की दुष्प्रेरणा ग्रहण करते हैं।
मानना ,न मानना तो स्वतंत्र भारत में व्यक्तिगत अधिकार है , किन्तु जानना आवश्यक है। रेप , छेड़छाड़ , प्रेम संबंधों में छल , गृह कलह और बढ़ते डिवोर्स की जड़ कहाँ पर स्थित है।  नारी अपनी सुरक्षा और सम्मान की चुनौतियों को झेलने को क्यों ? विवश है। कहाँ? देश का विकास अवरुध्द होता है और युवा प्रतिभा कैसे? रोगी हो समाज उन्नति के परिणाम देने में विफल हो जाती है।
हम छोटे छोटे दोष , देख परस्पर आरोप -प्रत्यारोप में उलझ ,समाधान खोज लेने का भ्रम रखते हैं।
--राजेश जैन
03-05-2015

यह नारी अपमान है ....

यह नारी अपमान है ....
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पुरुष और नारी में यौन उत्कंठा बढ़ाने वाले शारीरिक अंग होते हैं । जब पुरुष -नारी अपनी दिनचर्या में साथ या आमने-सामने होते हैं। दृष्टि का एक दूसरे पर पड़ना स्वाभाविक होता है। भाई -बहन , पिता -बेटी एवं माँ -बेटे होते हैं , जिनमें भी ऐसे शारीरिक अंग होते हुये एवं सबसे ज्यादा समय का परस्पर साथ होने पर भी कभी, इन रिश्तों के नारी -पुरुष में दृष्टि ऐसे अंगों पर अटकती नहीं है। दृष्टिकोण मलिन नहीं होता है।
सामाजिक व्यवस्था में पति -पत्नी एक परिवार में रहते हैं , उनके बीच प्रणय -संबंध को , समाज अनुमोदना मिलती है। उल्लेखित दृष्टि अपवाद रूप में इस रिश्ते में अच्छी लग सकती है,  वह भी परिस्थिति ,समय और स्थान अनुरूप। इसके अतिरिक्त अंग विशेष पर किसी की दृष्टि यौन भावना से ठहर जाना , स्वस्थ समाज , अपेक्षा से दृष्टि अनुमोदित नहीं की जा सकती है।
ऐसा दृष्टि ठहराव ,नारी सम्मान को आहत करता है और नारी के अपमानित होने का मुख्य कारण बनता है। विडंबना कहें उस बात को समस्या रूप में नहीं पहचाना जा रहा है। कोई पुरुष यदि वह नारी का पति नहीं है , उसकी दृष्टि , नारी के अंग विशेष पर ठहर जाये या पलट -पलट कर आये तो लेखक इस दृष्टि को , पुरुष द्वारा उस नारी का किया गया अपमान निरूपित करता है। इतना ही नहीं  आजकल की उन सारी सेलिब्रिटीज चाहे वह नारी ही क्यों न हो , जो अपनी प्रस्तुतियों (आइटम सांग्स, वल्गर वीडियो , पोस्टर ) , स्टेटमेंट्स और हावभाव से , पुरुष दृष्टि को नारी यौनांग की ओर आकर्षित करती हैं , इस लेख के माध्यम से नारी सम्मान का सबसे बड़ा दुश्मन भी निरूपित करता है।
इन का अपराध और भी भीषण इसलिए हो जाता है क्योंकि वे ऐसी मासूम बेटियों -बहनों को सम्मोहित करते हैं , जो जीवन अनुभव के अभाव में उनकी प्रशंसक बनती हैं , उन जैसा बनने की कामना पालती हैं , और उनकी नकल करने के प्रयत्न करती हैं।  ये तथाकथित सेलेब्रिटीस दर्शक/श्रोता पुरुषों को भी उकसाते हैं . उनमें लोकप्रियता अर्जित कर , अपने आर्थिक मंतव्य सिध्द करते हैं। जिस काम के लिए धिक्कारा जाना चाहिये ऐसे छिछोरे हास्य ,फूहड़ता और अश्लीलता के लिए ये , जहाँ-तहाँ सम्मान और प्रतिष्ठा पाते हैं।
समाज में नारी सम्मान की सुनिश्चितता के प्रति हम (पुरुष और नारी) यदि गंभीर हैं तो , सर्वप्रथम इन सम्मोहनों से हमें मुक्त होना होगा। इस तरह , नारी अपमान को प्रौन्नत करने वाले सभी सेलिब्रिटीज के  महत्व को ख़त्म /एक सीमा तक कम करना होगा।
--राजेश जैन
02-05-2015