Saturday, November 17, 2018

नदीम को बचाना दायित्व ...

नदीम को बचाना दायित्व ...
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कश्मीर भी पूर्व भारत के अलग हुए हिस्से अफ़ग़ानिस्तान , पाकिस्तान और बँगला देश की तरह अलग किया जा सकता था। मगर इनमें से अलग हुआ हिस्सा ना तो खुशहाल है ना ही भारत के साथ भाईचारे से रहता है। वहाँ जनजीवन हमसे भी पिछड़ा है और वहाँ हिंसा व्याप्त है। एक ही कौम के होते हुए भी नफ़रत और हिंसा होना दुःखद आश्चर्य की बात है। अतः अगर कश्मीर के रहवासियों को अन्य कौम से कोई रंजिश भी है तो समाधान एक कौमी राष्ट्र में भी नहीं है। यह समझना होगा। एक छोटे राष्ट्र की अन्य पर निर्भरता भी दुःख दाई ही देखने में आती है। चीन जैसा साम्राज्यवादी देश अपनी चतुराई से और प्रलोभनों में फँसा कर , वहाँ के लोगों को आर्थिक रूप से ग़ुलाम बनाते चला जा रहा है (उदहारण - पाकिस्तान , नेपाल , श्रीलंका और इसी तरह के अन्य छोटे देश हैं). ऐसे में भारत जो की एक राष्ट्र के रूप में कश्मीर को समाहित रखता है। और उपलब्ध संसाधनों से कश्मीर में पर्यटन विकास की कोशिश करता है , कश्मीर की जनता के लिए इसी में बना रहना बेहतर विकल्प है। विभिन्न भडकावों में न भड़कते हुए , देश के लिए आतंक नाम की चुनौती को मदद पहुँचाना अगर वहाँ के लोग (कुछ ही हैं जिनके निज हित खून खराबे के जारी रहने में हैं जो सर्वथा उनका भ्रम मात्र है ) बंद करें तो उनसे बचाव में जाया हो रहा धन वहाँ और देश के विकास को ज्यादा गति देने में सहायक हो सकता है। साथ ही पिछले 30 साल से मचे अंदरूनी संघर्ष से भय के साये में जी रहे लोगों को भयमुक्त ज़िंदगी का लुफ़्त भी सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है कि वे यह पहचान कर लें कि कश्मीर को देश से तोड़ने की कोशिश करने वाले लोग वहाँ के राजा बनने की महत्वकाँक्षा पालते हैं , वे कश्मीर को सुनहरे भविष्य का सपना तो देते हैं किंतु सुनहरा भविष्य अपने लिए सुनिश्चित करने की फ़िराक में हैं। ये सारे वो लोग हैं जो अपने खुद की औलादों को ब्रिटेन या अन्य जगह बसा देते हैं और वहाँ आम जनता के मासूम युवाओं के ब्रेन वॉश कर उन्हें मरने और अपढ़ रहने को छोड़ रहे हैं।
नदीम का (मुखबिरी के कारण) मारा जाना या सेना और पुलिस में वहाँ के कई सपूतों का शहीद होना इस बात को साबित करता है कि है वहाँ एक बड़ा समुदाय जो भारत की सम्प्रभुता का समर्थक है लेकिन इस भय से चुप रहता है कि बोलने और सामने आने की कीमत उनकी अकाल मौत का कारण साबित हो सकता है। पाकिस्तान का एजेंडा ही गलत है कि हम खुशहाल नहीं तो भारत क्यों खुशहाल हो। नतीजा यह कि रक्षा व्यय दोनों के बहुत बड़े हुए हैं और जनता मुफलिसी में जीने को मजबूर।
ख़ुशहाली कौमी संकीर्णता में सिमटने में नहीं है अपितु ख़ुशहाली उदारता से सभी इंसान की स्वीकार्यता में है। हम अगर इंसान हैं तो अन्य भी इंसान ही हैं - यह समझना आज समय की जरूरत है। नदीम को बचाना किसी भी मजहब का दायित्व है , उसे मारना कोई मज़हब इजाज़त नहीं देता है।
--राजेश चन्द्रानी मदनलाल जैन
18-11-2018

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