Wednesday, November 21, 2018

#ख़्वाहिश_ए_शोहरत
कभी ख़्वाहिश - ख़ुद के लिए शोहरत हुआ करती थी
मगर देखा , अच्छे लोग कम - जिन्हें आज शोहरत हासिल है

#परिवेश_यह_चाहिए
ज़िंदगी के हर मुक़ाम पर जरूरत , ख्वाहिशें अलग अलग हैं
हर मुक़ाम पर मगर ज़िंदगी की जरूरत , ख्वाहिश इज्जत है

#बच्चों_में_सँस्कार
ख़ुद नहीं कर सकीं इंसाफ़ - ऐसी पुश्तें अभी रहीं
इंसाफ़ के लिए हमें - इंसाफ़ पसंद पुश्तें लानी होगीं

#एक_का_जाना
जानते हैं हमारे चले जाने से तुम बेहाल हुए होगे
सोचना मगर कि बेबसी ही होगी जो हम चले गए

#ख़ुशी_दे_सकना_सरल_नहीं
उसकी हैसियत नहीं कि ख़ुशी देता
दर्द ही दे सका और वह चला गया 

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