Tuesday, October 9, 2018

नज़रों से हुईं हमारी 'गुफ्तगू'
अच्छा है लफ्जों में बयां नहीं होतीं
वर्ना ज़माने का इल्ज़ाम आता
हम पर कि ये हद करते हैं

हमारी चाही मगर तुम्हारी अनचाही
'गुफ्तगू' की इंतहा हो गई
चाहेंगे तुम्हें मगर अब तभी होगी जब
'गुफ्तगू' तुम करनी चाहोगे

माना कि उस मुकाम पर पहुँचता तो बेमिसाल तू करता
काबिलियत यहाँ भी है साथ यहीं बेमिसाल तू कर गुजर


उनकी नज़रें न पड़ी थीं हम पर - हम खुद से बेपरवाह थे
उनकी नज़रों का जादू - अब हम परवाह करते हैं अपनी

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