Wednesday, December 5, 2018

इस कदर तो ख़राबी हम में न थी
कि सुधर न सकें
यह जरूर कि
मरम्मत में ही उम्र एक गुजर गई

बेशक़ गिरा लेने दो दुश्मनों को हमारी राह में शोले
हमने जोर ए आज़माइश में ही उम्र एक गुजार दी है

दुश्मन कई आये थे - ज़िंदगी में हमारी
और बात है कि - अब ख़ैर ख़्वाह वे ही हैं हमारे

यूँ ही बेखुदी में
दिन गुजर रहे थे
पहले - फ़िक्र ए आज़ादी की मसरूफ़ियत में
अब - आज़ादी की खामख्याल गफ़लत में

मुस्कुरा लेना हमारा
कभी मुश्किल नहीं होता
ग़र हसरतें हमारी
फ़क्त ख़ुद के लिए नहीं होतीं 

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