Sunday, February 24, 2019

जयहिंद के वीरों ...
जायेंगे सभी - हम "शहीद" की पहचान लिए जाते हैं
परिजन बिछोह में - जीवनसुख  त्याग जिए जाते हैं 

Saturday, February 23, 2019

सर इल्ज़ाम ले लिया तो भी अहसान नहीं उस पर
हुस्न के आगोश में जाने की खता ख़ुद हमारी थी
यूँ तो नफरत नहीं किसी से
मोहब्बत है हमें हर किसी से
और बेशक तुम्हें चाहने वाले बहुत लोग होंगे
मगर हम चाहते जिन्हें थोड़े ही लोग होंगे

परम मित्र - माँ

परम मित्र - माँ 

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(लिव इन रिलेशन पर गतांक से आगे पंचम भाग)

अंशुमन के शयनकक्ष में जाने से अब माँ - बेटी अकेली थी। मिताली मान रही थी कि अंशुमन की बातों ने अंशिका पर असर कर दिया था , अब थोड़ी कोई कसर रह गई हो तो उसके प्रयास उसे करने हैं।  मिताली ने सोफे पर अंशिका को अपने पास खींचा और उसके बालों में अपना दुलार भरा हाथ फिराया। माँ के सुपरिचित इस अनुराग तले आकर मिताली का हृदय द्रवित हो गया उसकी सुंदर बड़ी आँखों में अश्रु झिलमिलाने लगे। अंशिका कि उम्र ही क्या थी, 22-23 साल की कोई बेटी  शैक्षणिक योग्यता कितनी ही बड़ी हासिल कर ले किंतु युवा ऐसी कोई लड़की ज़माने के हथकंडो से अंजान ही होती है। मिताली ने अंशिका के चेहरे को अपनी गोद में लिया जिससे अंशिका सोफे पर अधलेटी व्यवस्थित हो गई। मिताली ने अंशिका की आँखों में भर आये अश्रु अपनी दुप्पटे से पोंछे और जब अंशिका ने माँ सानिध्य में स्वयं को संयत कर लिया तब मिताली ने कहा -
"अंशु बेटी तुम अभी छोटी हो, नहीं जानती कि इस उम्र की कोई लड़की जिसमें यौवन और सुंदरता भरपूर हो उसको बरगलाने के लिए ज़माना क्या कुछ हथकंडे नहीं अपनाता।  उन सब हथकंडो का शिकार अभी की पीढ़ियों में लड़कियाँ जो पढ़ने लिखने के लिए हॉस्टल में रहती हैं या और जॉब में महानगरों में आई होतीं हैं, वे हो रहीं हैं. उनसे करीबी सुनिश्चित करने के लिए मर्द अति सक्रिय हो जाते हैं , उनमें ड्रिंक्स की आदतें उत्पन्न कर देना, रात्रि पार्टियों में आने को प्रवृत्त करना, उन्हें सैर सपाटे के लिए प्रोत्साहित करना साथ के सहकर्मियों के विशेष हथकंडे होते हैं।  इन बहानों से उन्हें लड़की का अतिरिक्त साथ हासिल होता है, जिसमें उनकी कोशिश लड़की को उपहारों से उपकृत करने की होती है। उपकृत हुई लड़की उनके झाँसो में आसानी से आने लगती है और तब आधुनिकता के नाम पर वे उनसे शारीरिक संबंध बनाने को उकसाते हैं। इस सब में मार्केट को कमाई मिलती है. कमाई सुनिश्चित करने के मंतव्य से अब नए प्रसिद्ध स्पोर्ट्स, बॉलीवुड और टीवी आर्टिस्ट के माध्यम से लिव इन रिलेशन का नया जाल बुन लिया गया है जिसमें फँसाने के लिए विवाह को दकियानूसी, नारी स्वतंत्रता की दृष्टि से खतरनाक और ज़िंदगी के मजों को खत्म कर देने वाला प्रचारित किया जा रहा है।
वास्तव में नारी - पुरुष में यौवन आकर्षण और उम्र की जरूरत के लिए विवाह वह माध्यम होता है जिससे दो अज़नबी में प्यार की वह मजबूत बुनियाद बनती है जिससे जीवन भर का साथ, सुरक्षा और परस्पर हित सुनिश्चित होता है। लिव इन रिलेशन के माध्यम से लड़की/नारी का यौवन और आकर्षण जब तक कायम है उसे भोगने के लिए लड़के/मर्दों की उपलब्धता है। इसके खत्म होते ही नारी ठगी सी अकेली और अवसाद में रह जाने को बाध्य होती है। आज मजे का लगता जीवन तब एक अभिशाप होता है। लेकिन तब चेतना आना विलंब हो जाना होता है आगे सिर्फ पछतावा ही साथ होता है।
समझो कि पिछले वर्ष तक अति अनुशासित बेटी तुम , ब्रेन वाश का शिकार हुई हो। अभी ज्यादा विलंब नहीं हुआ है सुधार के अवसर अभी हाथ में हैं।"
माँ की कही बातों का असर अंशिका पर हुआ था - वह अब चमकीले परिवेश में दिखाए जा रहे पक्ष से अलग वह पक्ष देखने की कोशिश कर रही थी जो मनुष्य जीवन को अनुशासन और मर्यादा में रखता है।  जिससे समाज में परस्पर प्रेम, दया और सौजन्य के माध्यम से मनुष्य जीवन में पूरा आनंद सुनिश्चित होता है। अंशिका अब इन सारे तर्क सहित इस विषय पर जतिन से बात करने पर विचार कर रही थी। 

(जारी)
राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
23-2-2019

Friday, February 22, 2019

जो बीत गई बात फिर ना दोहराई जा सकती है
अच्छी नई बात मगर फिर भी की जा सकती है

Thursday, February 21, 2019

मैं एक पापा

मैं एक पापा 

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मैं अति महत्वाकाँक्षी रहा हूँ , विशेषकर अपनी बेटियों को लेकर. सामान्यतः हम सभी के माँ-पापा हमें वह नाम देते हैं जिसके अच्छे अच्छे अर्थ होते हैं. यह करने के पीछे उनकी अभिलाषा अपने जीवन में बच्चे उसे सार्थक करें यह देखने की होती है। लेकिन अपवाद रूप में मैंने अपनी दोनों बेटियों के वह नाम रखे जिनके कोई मीनिंग नहीं हैं। इसलिए उनके साथ यह होते आया है कि उनके सहपाठी और परिचित और आज सहकर्मी अक्सर उनके नाम का मतलब उनसे पूछते हैं।  बचपन में स्कूल से आकर मेरी बेटियाँ यह बतातीं कि उनकी फ्रेंड्स / मेम उनके नाम का अर्थ क्या है पूछती हैं, इसलिए मुझे अर्थ बताने कहतीं। जब वे छोटी हीं थीं , मैं उन्हें कहता कि तुम्हारे नाम का अर्थ तुम्हें देना है। उन्हें मेरे जबाब का अर्थ उस समय समझ नहीं आता था। वे यह जबाब अपनी फ्रेंड्स / मेम को देतीं तो वे हँस देते थे। 
वास्तव में मनुष्य में योग्यता / संभावनायें प्रकृति ने अनेक दीं हुईं हैं। इसलिए किसी भी उपलब्धि पर मैं ना तो बहुत खुश ही होता हूँ , ना ही संतोष करता हूँ। मुझे हमेशा लगता है कि प्रदत्त योग्यता की तुलना में अभी बहुत कम ही हम परफॉर्म कर सकें हैं। अभी बहुत सी उपलब्धियाँ हैं जो हमारे स्वयं के अतिरिक्त हमारे निमित्त से घर/परिवार/समाज/देश/दुनिया और मानवता के हक में हासिल होना बाकि हैं। 

मगर अवश्य इस अवसर पर थोड़ी ख़ुशी जाहिर करूँगा कि - "अब हर वह ख़ुशी जिसमें बच्चे खुश होते हैं , हम उनके माँ -पापा भी खुश होते हैं"। 

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन 
22-02-2019

Wednesday, February 20, 2019

क्या था उसके पास

क्या था उसके पास ..

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क्या था उसके पास - एक घर जो किराये का था , उसमें कुछ अपने थे , कुछ अपने नहीं रहे थे उनकी स्मृति साथ थी। कुछ तस्वीरें थीं जो जीवन के उस अतीत की साक्षी थी जिसमें वह जीवन ऊर्जा से भरपूर , कुछ आकर्षक बच्चा या युवा था। कुछ अपने सुख की अभिलाषा और कुछ परोपकार कर किसी के सुख का कारण बन जाने की योजना। 
क्या था उसके पास - जीवन का बड़ा समय व्यतीत हो गया था , खेद था कि कुछ बातें बहुत देर से समझ आईं थीं , संतोष था थोड़ा कि थोड़ी जो बुध्दि थी उसने निपट स्वार्थी होने से रोका था।
क्या था उसके पास - बचे कुछ दिन और कुछ रातें थीं जीवन की , दिन में जीवन यापन के लिए कुछ कमा लाने के लिए के घर से निकलने की लाचारी और रात में थक हार में सो जाने का क्रम।  और कभी कभी सिधाई के व्यवहार और आचरण के कारण, धूर्त दुनिया द्वारा छल लिए जाने के दुःख और मिले तनाव में करवट बदलते घंटों गुजार दी जानी वाली अनिद्रा।
क्या था उसके पास - अतीत की कुछ धुँधली होती हुईं यादें जिससे 'पहले ज्यादा सुखी था', यह एक भ्रम जबकि पूरे जीवन कोई न कोई परेशान कर देने वाली बातें हमेशा रहीं थीं उसके पास।
क्या था उसके पास - व्यर्थ की एक धर्म विशेष की आस्था जिसमें दूसरों को पराया समझने ,दुश्मन मान के उन्हें हेय देखना या उनसे नफरत रखने के विचार। जबकि उन दूसरों के पास भी थीं यही भ्राँत बातें। उस जैसे ही सबकी मजबूरी मिले जीवन को जी लेने की थी. साथ ही थी उसके आसपास बना दी गईं धर्म, जाति और राष्ट्र विशेष की सीमाओं में सिमट रह जाने सभी की ही मजबूरी थीं। 
क्या था उसके पास - किसी की मौत पर व्यर्थ जश्न मनाने कुबुध्दि जिसमें उसके जीवन को कुछ मिलना नहीं था। धिक्कार भी नहीं था उसके पास अपनी कुबुध्दि के लिए। 
क्या था उसके पास  - औरों की नकल कर लेने की प्रवृत्ति उसे सरल मार्ग लगती थी। इसके अधीन वह मानवता खो रहे व्यक्तियों की नकल कर लिया करता था। और जैसे एक सियार के हुआ बोलने पर सब हुआ हुआ करते हैं वैसे ही कुछ को कहते देख अनर्गल सब वह भी कहता था। 
क्या था उसके पास  - बेहद संकीर्ण दायरा और सोच जिसमें पूरे जीवन अनुभव नहीं कर सका था कि यही जमीन है यही समाज है जिसमें उसे जीना और मर भी जाना है जिसे अच्छा बना देने में अपना सहयोग देता तो औरों का पथ प्रदर्शन कर उनकी प्रेरणा भी बनता। 
क्या था उसके पास - अब थोड़ा और कुछ समय जिसमें रोग ग्रस्त रहकर क्रमशः निष्क्रिय होते हुए चार कन्धों एक दिन चल देने की नीयती। 

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
21-02-2019

Sunday, February 17, 2019

मशविरे तो हम भी कई दे देंगे
मगर जिम्मेदारी मिली तो अंडा दे देंगे
(अंडा - शून्य उपलब्धि)

#दो_कौम
मिल नहीं सकते - सरिता के दो तीर ही बनते
नीर प्रवाह जिसमें - जीवन पुष्ट किया करता

शैतान ने आज फ़रिश्ता नाम कर लिया है
ज़िंदगी नहीं जो आज मौत दिया करता है


Saturday, February 16, 2019


किसी को नमक हराम कहने का दिल नहीं होता
मंशा सभी को नमक का फ़र्ज अदा करना सिखा दें

क्या कमी मुझ में है कि - मेरे देशवासी
देश से और मुझ से करते हैं - प्यार नहीं

बड़ी बात नहीं कि हम फहरायें तिरंगा कराची और लाहौर में
समय है अब पाक आवाम खुद फहराये तिरंगा कराची और लाहौर में

Friday, February 15, 2019

यही माटी है जिसने ए पी जे अब्दुल कलाम को जन्मा है

यही माटी है जिसने ए पी जे अब्दुल कलाम को जन्मा है 

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14 फरवरी 2019 ,फिर एक तारीख़ बनी जिसके माथे पर कलंकनीय दिन होने का टीका लगा। जिसने इस देश के करोड़ों नागरिकों के दिल को आहत किया। जिसको याद कर करके सालोंसाल दो देश एक दूसरे के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए अपने बजट का बड़ा हिस्सा, अपनी सैन्य शक्ति और हथियारों के इजाफ़े के लिए लगायेंगे और अपना विकास अवरुध्द करते हुए दुनिया के अन्य देशों से पिछड़ते जाने का क्रम बरक़रार रखेंगे। फिर शत्रु देश के सियासत करने वाले 14 फरवरी 2019 को अपनी उपलब्धि और हमारे देश के सियासत करने वाले प्रतिक्रिया में की जाने वाली कार्यवाही को अपनी उपलब्धि बतायेंगे। 
हमारे देश में आम चुनाव का समय है जो सियासती पार्टी अभी सत्ता में नहीं है , सत्ता हासिल करने के लिये और दूसरी अपनी सत्ता बनाये रखने के लिए जो हथकंडे अपनायेंगे उससे मुल्क की दो कौमें एक दूसरे के लिए नफ़रत , रंजिश और बदले की भावना दिल में रखना जारी रखेंगी। जिससे वक़्त वक़्त पर फिर करतूतें होती रहेंगी जिससे दोनों ही बेफ़िक्री से ज़िंदगी के लुफ़्त से मरहूम रहेंगी। 
फिर हम अपने सपूत जिन्हें ज़िंदगी जीने का हक़ है अकाल खोते रहेंगे। हम उन्हें शहीद का सम्मान तो देते रहेंगे मगर उनके बच्चे , माँ -पिता और पत्नी के ग़म को कम नहीं कर सकेंगे। 
सिलसिला दशकों से यही चला आ रहा है , कई पीढ़ियाँ गुज़र गईं अनेकों लोगों ने दोनों देशों ने जन्म लिया और अनेकों मर गए, जिन्होंने जाना नहीं कि समाज सौहार्द का सुख होता क्या है?, मोहब्बत से जी गई जिंदगी का मजा होता क्या है? और मुल्क की खुशहाली होती क्या है?
अगर हम अपने को सभ्य मानते हैं तो दशकों के पहले के अप्रिय घटनाक्रम को याद नहीं रखना होगा, हमें उसे भुलाना होगा। परस्पर समन्वय की हर उस बात को याद करना होगा और उसका प्रचार करना होगा जो हमें हार्दिक ख़ुशी देता है। 
दोनों ही कौमों को यह स्मरण करना चाहिए कि यही देश है यही माटी है जिसने ए पी जे अब्दुल कलाम को जन्मा है। 
हमें अपनी भव्य संस्कृति की पुनः पुष्टि दुनिया के समक्ष पेश करनी होगी कि कैसे, विभिन्न कौमें इस देश में अपने अपने मज़हबी तरीकों में खुशहाली , सहयोग से रहते हुए भी एक स्वस्थ परिवेश का निर्माण कर सकती है। 
हम दुश्मनी की नहीं कैसे पुनः एक भव्य राष्ट्र बनें इस उपाय को ईजाद करें। 

-- राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
16-02-2019
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Thursday, February 14, 2019

दर्द ए दिल तुम्हारे यूँ ही बहुत हैं
तुमसे हम शिक़ायत नहीं रखेंगे

Tuesday, February 12, 2019

कोई बेवजह ही नहीं तुमसे उदासीन होते हैं
निजी मसलों में शायद तुम दखल देते होगे

Monday, February 11, 2019

मोहब्बत की पेशकश तेरी
गर नफ़रत ही बढ़ाती है
तो गलती तेरी कोई नहीं
कसूर उनकी ज़मीं का है

जो उनकी जमीं नफ़रत की हो
मोहब्बत की उसे बनाना भी फर्ज तेरा है
उन्हें मोहब्बत की ख़ुशी अहसास नहीं
मगर याद रख तू मोहब्बत का मसीहा है

रखें शिकायतें जिनके दिल में नफ़रत भरी
तुझे क्यूँ हो कि तेरे दिल में मोहब्बत रखी

Sunday, February 10, 2019

जिस्म औ जान से ज्यादा - मुझे तेरे ख़्वाब थे पसंद
मरने पर साथ - बेगुनाह मेरे मासूम ख़्वाब दफन हुए

फिर भी बुरे नहीं हैं ख़्वाब
अगर ख़्वाब मेरे पूरे नहीं होते
ऐसे भी तो हैं ख़्वाब
औरों ने देखे उनकी हक़ीक़त हुए हैं

जब जिंदगी ग़मगीन लगे, ख़्वाब देखिये
कहीं सुकून न मिले तो, उनमें रह लीजिये


जीने की हसरत मुझ में - अब सिर्फ तेरे लिए है कि
अंजाम दे सकूँ वह काम - तुझे मेरा साथ फख्र लगे

ना खुद से ही लड़ो - ना ही तुम ज़माने से लड़ो
जी रहे लड़ लड़ के - उन्हें प्यार सीखा के जियो

सावन में हुए अंधे को - हरा हरा दिखाई देता है
इश्क के बेहरे को - आई लव यू सुनाई पड़ता है


Saturday, February 9, 2019


खुशनसीबी कि खुशनसीबों से हाथ मिलाते रहे
फ़िक्र नहीं कि हाथों की लकीरें अलग हैं हमारी

इजहार ए मोहब्बत आज गुलाब की मोहताज है
हमारी ख़ामोशी ही जिसे बेसाख्ता बयां करती है

ना खुद से ही लड़ो - ना ही ज़माने से लड़ने की ज़रूरत
ऐसी भी राहें - जिन पर बिन लड़े भी ज़िंदगी चलती है 

वयस्क हुई बेटी से पापा के बात करने का सलीका

वयस्क हुई बेटी से पापा के बात करने का सलीका 

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(लिव इन रिलेशन पर गतांक से आगे चतुर्थ भाग)

उस शाम जुहू से लौटते हुए अंशुमन और अंशिका तो आपस में थोड़ा कुछ बतिया रहे थे मगर मिताली अपनी विचार तंद्रा में खोई हुई थी। पति अंशुमन की जिस बात को आज तक वह प्रशंसा मानती आई थी कि वे साथ में डॉमिनेटिंग कभी नहीं होते बल्कि हमेशा साथ के लोगों को समान मौका देते हैं, आज उनकी वह विशेषता मिताली को बुराई लग रही थी। मिताली स्वयं तो अंशिका से सख्ती से 'लिव इन रिलेशन' को मना नहीं कर पा रही थी लेकिन चाहती यह थी कि अंशुमन कड़क रूप से अंशिका को विवाह करने का कहें। लगभग 28 वर्ष के दांपत्य जीवन में अंशुमन ने कभी भी एकतरफा अपनी नहीं चलाई थी, हमेशा परिवार के लिए महत्वपूर्ण विषयों पर मिताली के परामर्श से ही चीजें तय वे करते आये थे। मिताली आज चाह रही थी कि जैसा अन्य परिवार में मुखिया की भूमिका में पुरुष कड़े अनुशासन का दायरा घर में नारी और बच्चों पर रखते है उसी अनुरूप अंशुमन बेटी के भविष्य के लिए उसे समझाने की जगह उसे सख्त आज्ञा दें कि अंशिका विवाह करे। उधर अंशुमन कोई उचित युक्ति से इस समस्या का समाधान के लिए विचारों में तल्लीन थे। लंबे समय के साथ में अंशुमन, मिताली के मन में क्या चल रहा है आसानी से भाँप लेते थे किंतु आज मिताली क्या सोच विचार में डूबी है , अंशुमन इस पर गौर नहीं कर पाए थे।
रात्रि खाने के बाद ड्राइंग रूम में तीनों फिर से एक बार वार्तालाप के लिए साथ आ गए थे। मिताली और अंशिका के मुखड़े उनके मन में व्याप्त तनावों को उजागर कर रहे थे जबकि अंशुमन शांत मुद्रा में थे। हँसते हुए अंशुमन ही बोले थे - अरे क्यों आप दोनों इतने फिक्रमंद हो रहे हो , हम सभी पढ़े लिखे लोग हैं , जो करेंगे अपने लिए तय है कि अच्छा ही होगा। फिर खास मिताली के तरफ रुख करके मुस्कुरा के बोले - अंशु बेटे मैंने आपका नाम अपने से मिलता जुलता रखा था कि बेटी को मैं अपने पद चिन्हों पर चलाऊँगा , खैर यह तो कल्पना का संसार था यह कहते हुए अंशिका से आँख मिलाई , अंशिका इस बात पर बोली - जी पापा आप मेरे आदर्श रहे हैं आज भी हैं। आपसे सीखने समझने को मैं उतनी ही उत्सुक आज भी हूँ जितनी पहले थी , कृपया आप मुझे पराई सी ट्रीट मत कीजिये।
अंशुमन ने तब बेटी के सिर पर हाथ रखा और कहा नहीं बेटी पराई कभी ट्रीट नहीं करूँगा। मेरे बच्चे , एक दिन जब हम नहीं रह जाते तब बच्चे ही होते हैं जिनमें हमारे विचार और सँस्कार जीवंत रहते हैं। इसलिए जीवन के इस महत्वपूर्ण विषय पर आगे में जो कहने वाला हूँ उसे थोड़ा लेक्चर जैसा आप सुनो , मेरी यह कदापि अपेक्षा नहीं कि आप लिव इन रिलेशन को खत्म कर लें पर सुनने के बाद एक गंभीर चिंतन इस विषय पर अवश्य कर लेना। यह कहते हुए प्रश्नवाचक दृष्टि से अंशिका को देखते हुए कहा -
क्या कहती हो आप - आगे कहूँ? कहते हुए अंशुमन ने मिताली पर भी प्रश्नसूचक दृष्टि डाली , तब अंशिका ने कहा जी जरूर पापा , आप कहिये।  वहीं मिताली अंशुमन के नरमी वाले इस जेस्चर से असहमत ही दिखाई दी।
गला साफ़ करने के लिए अंशुमन ने कुछ घूँट पानी पिया फिर कहना आरंभ किया -
"लाखों वर्ष एक जानवर तरह की नस्ल को मनुष्य होने में लगे। उस यात्रा में जीवन के अनेकों पध्दति प्रयोग में लाईं और बदली गईं। पहले नर नारी दोनों एकाधिक साथी से शारीरिक संबंध स्थापित करते रहे थे। नर इनसे उपजी संतान से निरपेक्ष होता था। वह यह भी नहीं जानता था कि किस संतान के होने के लिए  वह जिम्मेदार था। संतान की आरंभिक परवरिश विशुध्द नारी का दायित्व था क्योंकि उसके ही गर्भ से संतान जन्मी है , उसे ज्ञात रहता था। इस तरह नर सिर्फ 'भोगता' रहता था , जिम्मेदार नहीं। उसी तरह बहु साथियों से सहवास के होने पर भी नए साथी की तलाश बाद भी रही आती थी। अर्थात किसी से किसी भी बार के शारीरिक सुख हासिल करने के बाद फिर उसकी कामना हो जाना , फिर नए साथी को ढूँढने का सिलसिला बना रहना इस अनुभव से मनुष्य बन रहा जानवर यह निष्कर्ष भी निकाल लेने में सफल हुआ कि तृप्ति अनेकों से सहवास से नहीं अपितु स्वयं के भीतर से आती है, और उस साथी में मिलती है जिसके प्रति प्यार दया और त्याग की भावना भी हो। लाखों वर्षों के अनगिनत ऐसे जीवों के अनुभव के बाद परिवार नाम की सँस्था और विवाह नाम की रीति, जीवन शैली बनाई गई। यद्यपि परिवार और पति पत्नी के लिए नियम कई बने और बदलते रहे जैसे एक स्त्री के एकाधिक पति या एक पुरुष की एकाधिक पत्नियाँ कालांतर में समाप्त प्राय हो रहीं।
अतः परिवार और विवाह बंधन को छोड़ना अनुभवों से ली गई सीख को तजना होगा। लिव इन रिलेशन जैसी जीवन शैली अपनाना पुनः पुरुष को भोगता मात्र स्वीकार कर उसे संतान परवरिश और शिक्षा सँस्कार दायित्व से मुक्त कर देना होगा। कुछ अरसे के अस्थाई से रिश्ते में रह फिर काम लोलुप जानवरों की तरह अन्य साथी को भटकना होगा। जिसमें लालसायें हमेशा अतृप्त रहती हैं। `
विवाह रीति और परिवार में कुप्रथाओं जैसे सती , बहु विवाह और बालविवाह या विधवा स्त्री का विवाह नहीं होना आदि का आज बातें अब खत्म की जा चुकी हैं । दहेज और नारी पर गृह हिंसा जैसी बुराई खत्म की जानी चाहिए , इस हेतु लिव इन रिलेशन उपाय नहीं है, बल्कि दांपत्य में उचित कर्तव्यबोध समझना उपाय है ।  समझना होगा कि विवाह एक जीवन पध्दति है अतः विवाह उन्मूलन नहीं किया जा सकता. परिवार में ऐसे सुधार अवश्य किये जाने चाहिए जिसमें नारी को बंधनों में बाँध उनकी प्रतिभाओं का दमन किया जाता है. नारी आज जीवन में समान अधिकार समान अवसर को व्यग्र है . उसे पुरुष समतुल्य समझे जाने की जरूरत है . हमारी बेटी होने से तुम्हारा हित सुनिश्चित करने के प्रयास हमारी जिम्मेदारियों में आता है उसी के तहत हम तुम्हें सचेत करना चाहते हैं कि समय द्वारा तुम्हारे पर किये जा रहे लिव इन रिलेशन के प्रयोग से तुम न सिर्फ बचो अपितु इससे अब की पीढ़ियों को बचाने की भी चेतना बनो।  अन्यथा यह समाज में कठिन साध्य रोग जैसा व्याप्त होगा जिसके उपचार किये जा सकने में काल बीत जायेंगे और जिसकी चपेट में न सिर्फ अनेक नारियों का बल्कि पुरुष और बच्चों का जीवन तबाह होगा। "
मैं बस इतना ही कहना चाहता हूँ। इस पर तुम्हारा निर्णय क्या होगा इस हेतु मेरा कोई दबाव नहीं होगा। कल हम वापिस जायेंगे। हो सके तो जाने के पूर्व तुम कल हमें अपने निर्णय से अवगत करा देना। और अधिक समय विचार हेतु चाहो तो वैसा करना।  कहते हुए फिर अंशुमन ने पानी के कुछ घूँट पिये और माँ-बेटी को आगे बात करने का अवसर देकर शुभरात्रि कहते हुए उठकर शयनकक्ष में चले गए।
अंशिका ने पापा द्वारा कही जा रही बातों को पूरे ध्यान से सुनी ही थी, साथ ही मिताली भी अंशुमन की बातों को सुन उसकी मन ही मन सराहना कर रही थी। उसे लग रहा था अंशिका पर अवश्य ही इन बातों का सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा और वह अपने लिव इन रिलेशन को समाप्त करके विवाह हेतु स्वयं राजी होगी और जतिन को राजी करेगी।
(जारी)
राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
10-2-2019


Friday, February 8, 2019

बेशक अपने लिए भी ज़िंदगी जी लेना है मुनासिब
मगर औरों के लिए नहीं जी सके वह ज़िंदगी कैसी

बालों में उतरे चाँदी तो - लोग नज़रों से उतार देते हैं
दिल पर लगी चोटें जिसे - नाकामयाब करार देते हैं
जिनसे होनी हैं औलादें - बननी बुनियाद घर घर की
उन्हें निकाह लाने के लिए - जहेज़ का सवाल देते हैं

हम पर हद तय करने का शगल है उन्हीं का
हद में रहें हम तो उसे वही ग़रूर करार देते हैं

रोज करते हैं वो इशारे हम पर - जो आ जायें उसमें गर हम
तो देखिये दोगलापन उनका - वे हमें बदचलन करार देते हैं

Thursday, February 7, 2019


'इमदाद' तमाम दिखलाते हैं औरों की हम
अगरचे करते हैं 'इमदाद' ख़ुद की ही हम

Wednesday, February 6, 2019

हम बनाते ज़िंदगी के लिए ख़ूबसूरत सा इक आशियाना
इक दिन मगर इसमें से ख़ूबसूरत ज़िंदगी गुजर जाती है

#सबकी_सहूलियत_की_खातिर
जुगत तो कई कीं थीं मैंने, कि ज़माना मेरी हैसियत पहचाने
ज़माना माना नहीं, मैंने 'अदना हूँ' अपनी कैफ़ियत रख ली

Tuesday, February 5, 2019

लैला के लिए मँजनु की मौज़ूदगी

लैला के लिए मँजनु की मौज़ूदगी 

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(लिव इन रिलेशन पर गतांक से आगे तृतीय भाग)
उस शाम अंशिका,  अंशुमन और मिताली को जुहू बीच ले गई। किंतु तफरीह का मन किसी का नहीं था। अंशुमन और मिताली के चेहरे पर गंभीरता उनके हृदय की चिंताओं को दर्शा रही थे। अंशिका एक प्रकार से अपराध बोध में थी कि उसने जीवन में पहली बार ऐसा किया था जो मम्मा, पापा को नापसंद हुआ था। एक अपेक्षाकृत कम भीड़ वाली जगह रेत पर जाकर तीनों बैठ गए थे। अंशुमन ने अंशिका को नहीं अपितु समंदर की आ रही लहरों के तरफ देखते हुए पूछा - बेटी तुम्हें क्या लगता है, जतिन के साथ ऐसे रहने से जीवन में परिवार के होने से मिलने वाली सुरक्षा और स्थायित्व सुनिश्चित हो सकेंगे? तब अंशिका ने कहा - पापा लिव इन रिलेशन में यह आज़ादी है कि जब तक आपको साथ पसंद आये तब तक रहें अन्यथा बिना किसी परेशानी के अलग भी हो सकते हैं। यह जरूरी नहीं कि जतिन के साथ ही मैं आजीवन रहूँ। अतएव लिव इन रिलेशन आजीवन चलने वाली बात नहीं है। मैं 50 साल बाद की आशंकाओं में नहीं, वर्तमान के मजे को जीना चाहती हूँ। 
मिताली ने इस उत्तर पर तनिक चिढ़ कर कहा - यही तो परेशानी की बात है। इस तरह रहने से सिर्फ शारीरिक रिश्ते ही रहते हैं, सुख में साथ सुनिश्चित होता है, दुःख और परेशानी के समय अकेली पड़ जाओगी। बच्चे होंगे नहीं अगर हुए तो अलगाव में किस के साथ होंगे, किसके नहीं- पता नहीं। तुम, अपनी सोच सकी हो बच्चों की नहीं सोच सकी हो। इतना कहते हुए रुष्ट सी प्रतीत हो रही मिताली चुप हो गई। 
दोनों की सुन अंशुमन ने अंशिका से फिर प्रश्न किया , अंशिका जैसे आपने बताया मानलो जतिन से तुम्हें 4 सालों में अलग होना पड़ा तो फिर क्या होगा। फिर, अगला कोई लिव इन रिलेशन? पापा का अंशिका को इस तरह पूरे नाम से बोला जाना अटपटा लगा , प्रायः वे बेटी या घर के नाम से ही उसे संबोधित करते हैं, उसने जबाब दिया - जी पापा संभव है। अंशुमन ने बिना देर किये फिर पूछ लिया - आप क्या समझती हो, आपकी किस उम्र तक ऐसे लिव इन रिलेशन की यह सीरीज़ आगे बढ़ सकेगी? दूसरे शब्दों में ऐसे पार्टनर कब तक उपलब्ध होंगे? इस प्रश्न पर अंशिका तनिक सोचने लगी। तब मिताली ने कहा - बेटी 40 - 45 साल की उम्र तक तो ढेरों पुरुष तुममें रूचि लेते मिलेंगे फिर आगे बिरले होते चले जायेंगे। 
इस पर अंशिका ने कुछ जबाब देते देते अपने को रोक लिया था।  अंशिका को चुप्पी लगाते देख अंशुमन ने टिपण्णी कर दी - "लैला जब तक नवयौवना या युवा है तब तक ही उसे मँजनु उपलब्ध हैं"। इस के बाद तीनों में ख़ामोशी पसर गई थी। 
अंशुमन एकटक समंदर की आती जाती लहरों को निहार रहा था। उसके मन में विचार आया था कि किनारों पर लोगों द्वारा की गई गंदगी को लहरें, अपने आगोश में समेट ले जा लेती हैं। फिर अपनी तरह से परिशोधित कर कुछ को वापिस किनारे लगा देती हैं , और कुछ को समंदर का हिस्सा बना उन्हें तलहटी में छिपा देती हैं। इसी तरह समय की लहरें आती जाती हैं - मानव समाज में अच्छी बुरी प्रथा का परिशोधन करती हुईं कुछ को समाज चलन का हिस्सा बना देती हैं, और कुछ को इतिहास के गर्त में छुपा देतीं हैं. 

(जारी)
राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
06-2-2019

Monday, February 4, 2019

सब लुट जाने के बाद होश आया है
नया फिर बनाने का जोश पाया है

ज़माने की खराबियों से रूबरू नहीं होना पड़े 
अब चाँद घने बादलों में छुप जाना चाहता है

है चाँद ख़ूबसूरत मगर वह बहुत शर्मीला भी है 
उम्मीद आफ़ताब से कि बुराई नेस्तनाबूद करे 




विवाह क्यों नहीं और लिव इन रिलेशन क्यों?

विवाह क्यों नहीं और लिव इन रिलेशन क्यों? 

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उस शाम अंशिका के तर्क और जबाब के बाद अंशुमन ने मोबाइल कॉल काट दिया था, उसे लगा था कि फोन कॉल पर चर्चा से बात बनेगी नहीं , मुंबई जाकर आमने सामने बैठ अंशिका से बात करना एवं समझाना ठीक रहेगा। इधर अंशिका भी पापा के द्वारा फोन काट दिए जाने से आशंकित हो गई थी , वह पापा - मम्मी को बहुत चाहती थी आदर भी उनका बहुत करती थी। उसने अगली सुबह मुंबई से घर आने की बात कही तो अंशुमन ने मना किया कि तुम्हें छुट्टी लेनी पड़ेगी। इस शनिवार, रविवार हम दोनों ही मुंबई आते हैं। दरअसल अंशुमन का मानना था किसी ने अंशिका का ब्रेन वॉश किया है , अन्यथा पहले अंशिका का दृष्टिकोण जीवन के प्रति इस तरह का नहीं था।
संयोग से जब अंशुमन - मिताली मुंबई पहुँचे तो जतिन गृहनगर लुधियाना गया हुआ था। वीकेंड होने से अंशिका भी फुरसत में थी।  दोपहर भोजन के बाद अंशुमन ने ही बात शुरू कि थी पूछा - बेटी , विवाह क्यों नहीं और लिव इन रिलेशन क्यों? इस की मेरिट्स-डी मेरिट्स क्या मानती हो ?
अंशिका जैसे पहले ही ऐसे प्रश्न के लिए तैयार थी ने कहा - पापा , आप देख रहे हैं हमारे यहाँ नारी पर विभिन्न प्रकार की गृहहिंसा , शोषण और उन पर पाबंदी के चलते अब हो रही शादियों में लगभग 10 % की परिणिति तलाक में होने लगी है। इस पर मिताली ने कहा - मगर तुम यह क्यों नहीं देख रही कि 90 % विवाह निभ भी रहे हैं। अंशिका ने उत्तर दिया - मम्मा अधिकाँश के निभ जाने का कारण उनमें पत्नी का आर्थिक रूप से पति पर निर्भर होना है। जबकि इस कारण से पत्नी की ज़िंदगी पूरी तरह पति की ज्यादतियों में दबी रहती है। जहाँ आर्थिक स्व निर्भरता है , पत्नी ज्यादतियां बर्दाश्त नहीं कर रही है और अंततः तलाक को मजबूर होती है। अंशुमन ने इस पर कहा - बेटी अब ससुराल और लड़कों में बदलाव आ रहा है - बात अब ऐसी नहीं कि वे बहू - पत्नी पर ज्यादतियां करते हों और तुम समझो कि लिव इन रिलेशन पर कितनी टीका टिपण्णी हम पर होंगी।
अंशिका ने इस पर कहा - पापा यह समाज टीका टिपण्णी की हॉबी रखता है , तलाक होता है तब भी तो टीका टिपण्णी करता है। आप पूछते हो, लिव इन रिलेशन क्यों तो ये तथ्य तो हैं ही। साथ ही इसमें रहने से दहेज़ कुप्रथा भी प्रभावित नहीं करती। साथ ही विवाह में दोनों पक्षों को अपनी हैसियत से बढ़कर दिखावे और खर्चों की मजबूरी भी नहीं होती।

अब तक के अंशिका के उत्तरों से अंशुमन और मिताली यह समझ चुके थे कि अंशिका को विवाह के लिए मनाना आसान नहीं। अपनी प्यारी बेटी पर वे कोई मानसिक दबाव भी नहीं डालना चाहते थे। किंतु दोनों ही उसके भविष्य को लेकर आशंकित और चिंताग्रस्त हो गए थे। उनके चेहरों से यह बात अंशिका ने भी पढ़ ली थी। 

(जारी)
राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
04-2-2018

Sunday, February 3, 2019

नारी स्वतंत्रता

नारी स्वतंत्रता

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अंशुमन और मिताली ने अपनी दोनों बेटियों के लालन-पालन में लड़कियों के लिए रखी जाने वाली रोक टोक की जरा भी परवाह नहीं की थी। उनकी दोनों बेटियाँ अंशिका तथा क्षिप्रा अतीव सुंदर तो थी हीं अपनी शिक्षा अध्ययन में भी अत्यंत गंभीर थीं। अंशुमन और मिताली की दोनों लाड़ दुलारियाँ परिवार के लिए गौरव का कारण थीं। अंशिका ने सी ए कर मुंबई में बैंक में सर्विस ज्वाइन कर ली थी। क्षिप्रा ने इंजीनियरिंग करने के उपरांत प्रशासनिक सेवा के लिए आई ए एस की परीक्षा की तैयारी आरंभ की हुई थी। अंशुमन और मिताली दोनों आधुनिक ख्यालों के थे उन्होंने अंशिका तथा क्षिप्रा को यह अनुमति प्रदान की हुई थी कि जिस किसी लड़के से वे विवाह करना चाहेंगी उन्हें स्वीकार रहेगा जिसमें कोई जाति आदि का बंधन नहीं होगा। पढ़ने के दौरान दोनों ही बेटियाँ अनुशासित तो थी ही किशोर वय जनित आकर्षण के चक्कर से दोनों ने अपने को दूर रखा था। पापा और मम्मी के लिए यह भी बड़ी उपलब्धि थी कि मर्यादाओं से न बाँधे जाने पर भी बेटियाँ उनके सँस्कारों की उच्चता को अपने आचरणों से पुष्ट करती थीं।

तभी एक दिन मिताली को अंशिका ने मोबाइल पर सूचित किया कि वह जतिन नाम के सहकर्मी लड़के के साथ पिछले 2 महीने से लिव इन रिलेशन में रह रही है। मिताली के लिए यह बात अप्रत्याशित थी एकाएक सदमा सा लगा था उसे फिर भी संयत रखते हुए जतिन के जॉब , परिवार तथा कहाँ के रहने वाले हैं आदि विवरण अंशिका से लिए थे। यह बोलने से भी खुद को रोका था कि लिव इन रिलेशन में जाने के पहले क्यों नहीं बताया। अपितु यह अवश्य पूछा कि शादी कब करने के सोच रहे हैं दोनों। मिताली को अंशिका के ज़बाब ने हैरत में डाला था कि जतिन के साथ शादी का कोई इरादा नहीं है। आखिर में बहुत नियंत्रित रखते हुए हँस कर टेक केयर कहते हुए उसने बात खत्म की थी। अंशुमन से बात करने के लिए रात तक का इंतजार उसे बहुत भारी पड़ा था। रात्रि अंशुमन को सारा ब्यौरा उसने सुनाया तो अंशुमन भी अवाक् रह गए। अंशिका ने जिस आचरण व्यवहार का अब तक परिचय दिया था , उसका यह काम बिलकुल विपरीत था। एकबारग़ी तो तुरंत मुंबई जाने को सोचा , किंतु विचार करने के बाद ही कुछ करने का फैसला लिया। वह रात्रि गुजारना मिताली और अंशुमन के लिए बेहद कठिन रही। दोनों विचारमग्न हो करवटें भी लेते रहे और अपनी चिंता एक दूसरे से छिपाते रहे। दूसरी शाम अंशुमन ने अंशिका को मोबाईल किया सामान्य समाचार हँसते हुए हल्के लहज़े में लिए फिर पूछा जतिन से शादी क्यूँ नहीं करना चाहती तो अंशिका ने कहा पापा मैं जीवन में शादी करने का विचार ही नहीं रखती। मुझे लगता है इससे नारी की स्वतंत्रता खत्म होती है। लिव इन रिलेशन में यह बरक़रार रहती है और शरीर की माँग की भी पूर्ति हो जाती है।

(जारी)
राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
03-2-2018

Saturday, February 2, 2019

अजीब नहीं कहिये
उसे इंसान समझिये
कभी कभी समझ नहीं पाता कि
उसे करना क्या है


अस्ताचल पर सूरज, अपनी किरण तीव्रता कम कर लेता है
कितने भी रहे हों जोधा, जीवन संध्या में विनम्र हम हो जायें 

Friday, February 1, 2019

कुछ करके ही, इस ज़िंदगी से गुजरना था हमें
तब नफ़रत नहीं, प्यार करना मंजूर हुआ हमें

उकेरे गए नामों की - बख़त होगी क्या आखिर
तारीख जब जानेगी नहीं - ये थे कौन आखिर

मैं उकेरता फिरूँ नाम अपना - हासिल न कुछ बच पाएगा
ग़र उकेर सकूँ काम अपना - तो यादगार कुछ रह जाएगा

आइना है सामने और देख भी हम लेते हैं
यही बहुत कि अपनी सच्चाई जान लेते हैं