Thursday, April 30, 2015

नारी में ना मिलेगी नारी

नारी में ना मिलेगी नारी
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निश्छल प्रेम समापन (गर्लफ्रेंड बना छल करना )
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प्रेमजाल में फाँस उसको ,वासनापूर्ती कर दगा दोगे
नारी में ना मिलेगी प्रेमिका ,तुम पछताते रह जाओगे

ममता अभाव (कन्या भ्रूण हत्या )
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गर्भ में पलते बेटी भ्रूण की ,निर्मम हत्या करवाओगे
नारी में ना मिलेगी ममता ,तुम पछताते रह जाओगे

विनम्रता नाश (गृह हिंसा में सताना )
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विवश तुमसे बंधन में उसे ,तुम गृहहिंसा में पीटोगे
नारी में ना मिलेगी नम्रता ,तुम पछताते रह जाओगे

लाज खो देने (वल्गर सामग्री उनके समक्ष करना)
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वासना के खेल में उसे ,अश्लीलता दर्शन कराओगे
नारी में ना मिलेगी शर्मीला ,तुम पछताते रह जाओगे

दया नाश
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अपनी जिव्हा लालच में माँस तुम उससे पकवाओगे
नारी में ना मिलेगी करुणा ,तुम पछताते रह जाओगे

सात्विकता खोना (साथ पीने को उकसाना)
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स्मोक ,नशे में उसे साथ ले, उसमें लत डलवाओगे
नारी में ना मिलेगी सरला ,तुम पछताते रह जाओगे

नारी में ना मिलेगी नारी
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मनुष्य है तुम्हारे जैसी , उसे वस्तु सा प्रयोग करोगे
नारी में ना मिलेगी नारी ,तुम पछताते रह जाओगे
--राजेश जैन
01-05-2015
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Wednesday, April 29, 2015

नारी नहीं है नारी की दुश्मन …

नारी नहीं है नारी की दुश्मन …
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क्यों ?कहते सब उसे नारी की दुश्मन वह नारी हितैषी होती है
नारी नहीं है नारी की दुश्मन, पुरुष की भी शुभचिंतक होती है

अपने कन्या भ्रूण की हत्या को स्वेच्छा से क्या वह जाती है ?
नारी नहीं है नारी की दुश्मन ,संतान की वह शुभचिंतक होती है

बेटी -बहन का भला है इसलिए ,बाहर निकलने को रोकती है ?
नारी नहीं है नारी की दुश्मन ,वह जग की शुभचिंतक होती है

प्रेम में पड़ वह अनुराग न रखती ,क्या चाहत को धोखा देती है ?
नारी नहीं है नारी की दुश्मन ,प्रेम की देवी, शुभचिंतक होती है

परिवार में धन विषय -पुरुष का ,दहेजकामना क्या वह करती है ?
नारी नहीं है नारी की दुश्मन , बेटी पिता की शुभचिंतक होती है

गृह हिंसा में पिटती पुरुष से ,पति से क्या वह पिटना चाहती है ?
नारी नहीं है नारी की दुश्मन ,प्रेमप्यासी, पति शुभचिंतक होती है

आकर्षक परिधान पुरुष जैसा क्या नारी की इक्छा नहीं होती है ?
नारी नहीं है नारी की दुश्मन , सुंदर समाज की शुभचिंतक होती है

सम्मान हर व्यक्ति को प्यारा , क्या नारी अपवाद हो सकती है ?
नारी नहीं है नारी की दुश्मन , वह शिष्टाचार शुभचिंतक होती है

करते करवाते बुरा उसका ,कहते नारी ही नारी की दुश्मन होती है
नारी नहीं है नारी की दुश्मन , नारी सृष्टि की शुभचिंतक होती है
--राजेश जैन
30-04-2015
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Tuesday, April 28, 2015

हमें प्रिय -सम्मान हमारा


हमें प्रिय -सम्मान हमारा
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सब तरफ एक सी ही ललचाई दृष्टि
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घर से निकल ,राह में कदम बढ़ाने पर
आँखों के तीरों से छलनी कर दी जाएगी

फ़िल्मी गाने प्रयोगों से शीला-चमेली कह
कानों पर अश्लीलता बरसाई जायेगी

बस -ट्रेन से यात्रा में चलते -उतरते वह
जगह न होने के बहाने रगड़ दी जायेगी

कॉलेज में पढ़ना पुरानी फैशन अब वहाँ 
गर्लफ्रेंड बन सकती, क्या? परखी जायेगी

हर जगह लड़के तुले बिगाड़ने ,विवाह को 
कन्या आदर्श से तुलना कर देखी जायेगी 

पुरुष हमारे भाई - चाचा , क्यों ?
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हालात विषम विपरीत हमें  देकर ,हम पर 
तुम दुष्टता कर के , मर्दानगी जतलाते हो

हमें प्रिय - सम्मान हमारा
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आदर्श गर प्यारा तुम्हें, बनाने में सहायक हो
छेड़ो नहीं , छेड़छाड़ रोकने में तुम सहायक हो
न गुनगुनाओ भद्दे गाने , इन्हें फ्लॉप कर दो
हमें प्रिय सम्मान हमारा ,यह गरिमा बचने दो
--राजेश जैन
29-04-2015
https://www.facebook.com/narichetnasamman

Monday, April 27, 2015

डिवोर्स -कुप्रथा

डिवोर्स -कुप्रथा
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तीस चालीस वर्ष पूर्व की नारी पत्रिकाओं में , प्रकाशित सामग्री और पाठकों की समस्याओं में यह विशेष तौर पर रेखांकित/आगाह किया जाता था , कि किसी भी नवयुवती का यदि विवाह पूर्व कोई प्रेम प्रसंग रहा हो तो वे उसे अपने पति से न बतायें। वह ऐसा परामर्श भी तब होता था , जबकि तथाकथित प्रेमप्रसंग , नैनमटक्का और लिखे गए कुछ प्रेमपत्र तक ही सीमित रहते थे। तर्क होता था पुरुष (पति ) अपनी पत्नी पर आधिपत्यबोध रखना चाहता है , उसे यह सच सहन करना सरल नहीं होता है , जिससे दाम्पत्य जीवन की खुशियाँ प्रभावित हो सकती हैं।
यदि साठ -सत्तर या इसके पहले भारतीय समाज पर जायें , तो ऐसी पत्रिकाओं का प्रचलन कम था , किशोरियाँ पढ़ी लिखी न होती थी , इसलिए प्रेमपत्र लिखे नहीं जाते थे , चौदह-पंद्रह की उम्र तक विवाह हो जाते थे इसलिए नैनमटक्के भी नहीं होने पाते थे। पास -पड़ोस की लड़के -लड़कियों को बहन -भाई जैसे देखने समझने के घर घर संस्कार होते थे। दूसरी कुछ रूढ़ियाँ थी जिससे नारी जीवन अपेक्षाकृत ज्यादा चुनौतियों भरा तो था , हालाँकि वैवाहिक जीवन प्रायः सुखद ही होता था।
आज थोड़े -थोड़े परिवर्तन के साथ परिदृश्य बिलकुल भिन्न हो चुका है। बहनें -बेटियाँ पढ़ी लिखी होने लगी हैं। को-एड में पढ़ती हैं। फिल्मों और टीवी पर विवाह पूर्व , विवाहेत्तर प्रेम प्रसंगों को नितदिन देखती हैं। फिल्मों के लगभग सारे गीत सौंदर्य रस , प्रेमी-प्रेमिका मिलन या विरह के होते हैं। नेट और उनके मोबाइल और fb इनबॉक्स पर पुरुष वल्गर सामग्री का अम्बार लगा देते हैं। ऐसे में इसे ही जीवन रीत समझने लगती हैं। पढ़ने के बाद जॉब में पहुँची  बहनें -बेटियाँ 2 दिन के वीक एंड पाती हैं। इन वीक एंड हॉलीडेज में मेट्रो सिटीज में सिर्फ और सिर्फ पीने -पिलाने , रात्रि पार्टियों और मौज मजे के ही नारे प्रमुख होते हैं। विवाह की उम्र भी 24 के बाद की हो गई है , बॉयफ्रेंड -गर्लफ्रेंड का होना स्टेटस सिंबल सा हो गया है। ऐसे में विवाह पूर्व ,प्रेम प्रसंग एक-दो तो छोड़ें कई होने की सम्भावनायें हो गई हैं। और समाज में अभी भी विवाह प्रथा चल रही है। इसलिए ऐसी हिस्ट्री के साथ विवाह अभी भी हो रहे हैं।
आज के पति पत्नी इस हिस्ट्री का क्या करते होंगे ? शायद यही कहते होंगे , आपके पास्ट को अलग करदो अब हमारी निष्ठा एक दूसरे लिए होना चाहिए। किन्तु , जब किसी तरह पिछले संबंधों की जानकारी होती होगी , क्या कड़वाहट दांपत्य जीवन में न आती होगी ? इस कड़वाहट से ,नियंत्रण न रखने पर पूर्व संबंध भी जारी कर लिए जाते होंगे और देर रात्रि पार्टी और पीने -पिलाने के दौर में नए संबंधों के अंदेशे भी होते होंगे। इन्हीं सब के फलस्वरूप डिवोर्स नाम की कुप्रथा नए भारतीय समाज में पनप रही है।
अगर हमने आज ,गंभीर सोच समझ का परिचय नहीं दिया तो बढ़ते डिवोर्स किसी दिन विवाह प्रथा का अंत कर देंगे। और दो चार सौ वर्ष बाद के मानव समाज के सामने अति स्वछँदता और व्यभिचार नाम की कुप्रथा या कुरीति समाप्त करने की चुनौती प्रमुख हो जायेगी।
--राजेश जैन
28-04-2015
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Saturday, April 25, 2015

नारी - पुरुष

नारी - पुरुष
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मनुष्य की इन दो विजातियों का अस्तित्व उस दिन से है जिस दिन से सृष्टि रचना हुई है और उस दिन तक रहेगा जिस दिन तक सृष्टि कायम रहेगी। इसलिए हम नारी या पुरुष जो भी हैं यह होते हुये भी नारी /पुरुष के अस्तित्व की तुलना में हमारा जीवनकाल (और एक व्यक्ति महत्व ) अत्यंत नगण्य है।
इसलिए यदि हम जीवन में बुरे से बुरे भी काम कर लें तब भी  इस अस्तित्व के होने को कुछ भी क्षति नहीं पहुँचा सकेंगें। किन्तु यदि हमें मिले छोटे से जीवन में हमारे कर्म ,सद्कर्मों की सीमा में हों तो हम इस जीवन को न सिर्फ स्वयं ज्यादा आनंद से जी सकते हैं बल्कि हमारे समाज का या हमारी पीढ़ी का जीवन भी ज्यादा आनंददायी बना सकते हैं। हम सद्कर्मों की परंपरा देकर आगामी समाज , जिसमें हमारी आगामी पीढ़ी का जीवन है , उसे एक अच्छी विरासत दे सकते हैं। वैसे भी ,एक अच्छी विरासत अपने बच्चों को सौंपना हर माँ -पिता के कर्तव्यों में निहित होता है।
इस तरह समय और अस्तित्व की दृष्टि से बेहद छोटे से महत्व के हमारे जीवन को हम अति महत्वपूर्ण बना सकते हैं। स्वार्थ लोलुपता की प्रवृत्ति से ऊपर उठ कर और बात -बात में अहं के टकरावों से मुक्त करके यदि उल्लेखित कर्तव्यों के प्रति अगर हम सजग होते हैं , तो मानव समाज की अति स्वछँदता की हानिकारक दिशा में बदलाव हम ला सकते हैं।
"हम नारी -पुरुष में अनावश्यक भेदभाव न करें। समतुल्य सम्मान और अवसरों का वातावरण बनायें। छल छोड़ , परस्पर विश्वास कायम करें। देह भूख के प्रभाव पर नियंत्रण करें। अपने ही जैसी दूसरों में भी उनकी अपनी पसंद-नापसंद हो सकती है इसका विचार कर सीमाओं से बाहर जाने का प्रयास न करें। "
अगर ऐसा हम करते हैं , तो निश्चित ही अपने परिवार की सुरक्षा हम बढ़ा लेते हैं। क्योंकि हमारे परिवार में दोनों ही सदस्य हैं , जिन्हें घर के बाहर समय -असमय निकलना भी है , और कुछ सदस्यों का हमारे बाद भी जीवन रहना है . यह सिलसिला निरंतर भी रहना है। इतना सब प्रत्यक्ष में परिवार प्रेम दिखायेगा और परोक्ष में यही समाज /देश और हमारे मानवता प्रति प्रेम का द्योतक होगा। "हमारे ये नेक कर्म हमें महत्वहीन से अति महत्वपूर्ण बना सकते हैं ."
--राजेश जैन
26-04-2015
https://www.facebook.com/narichetnasamman

 

Friday, April 24, 2015

मोबाइल फॉर्मेटिंग और मरना

मोबाइल फॉर्मेटिंग और मरना
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आज लेख एक युवा की इस चिंता पर 'भगवान मरने के पहले , पाँच मिनट देना , मोबाइल फॉर्मेट करना होगा '. बहुतों को  हो सकती यह चिंता ,क्या संकेत करती है ? यह बताती है , हम जिसे अपने जीवन के लिए अच्छा होना जानते हैं और जीवन में हमें जो अच्छा लगता है उसमें साम्यता नहीं है।
चिकित्सा विज्ञान ने बताया , कम उम्र में सेक्स या प्रेगनेंसी नारी शरीर के लिए उचित नहीं है। तद्-अनुसार बालविवाह की कुरुति के विरुध्द जनचेतना लाई गई , अच्छा है अब बालविवाह कम हो गए हमारे समाज में।
जब सेक्स इस तरह अनुचित था , तब एक और संगत बात होनी चाहिए थी , बाल/किशोर मन को सेक्स विचारों से परे रखना था। किन्तु , कुछ लोगों की धन , प्रसिध्दि और वासना की भूख ने सामाजिक दायित्व भुला दिया ,विवाह तो होते हैं 25 वर्ष की उम्र के बाद ,किन्तु प्रसार माध्यमों ने सेक्स प्रमुखता की सामग्री ऐसी और इतनी प्रस्तुत कर दी कि 8-10 साल के बच्चे उसे देख रहे हैं , मिडिल स्कूलों से ही उनकी आपसी चर्चा के विषय यही और 'सेक्स सिंबल'- सेलिब्रिटी हो रहे हैं। इससे यौन अपराध और व्यभिचार में बहुत बढ़ोत्तरी हो गई है।
जीवन उन्नति के लिए दो भिन्न क्षेत्र क्रमश विज्ञान और प्रसार तंत्र के विसंगत ध्येय ने , हमारी संस्कृति (भाईचारा , नारी सम्मान और मर्यादाओं को ) और हमारे समाज के विश्वास , सोहाद्र और परोपकार की भावना और भव्य संरचना को तहस-नहस कर दिया है। अब नारी -पुरुष का परस्पर महत्व एक दूसरे की पिपासा पूर्ती की वस्तु जितना ही सीमित होता जा रहा है।
जिस तरह सेक्स बोध -विचार को पिछले पचास वर्षों में बहुत कम उम्र के बच्चों तक में बढ़ा दिया गया है। उस तरह यदि कोई ऐसा तंत्र विकसित किया जाए जो प्रौढ़ता में आती जीवन समझ , को नवयुवाओं की अनुभूति में ला सके तो हमारा समाज एक सुखी समाज बन सकेगा। जो पीढ़ी ऐसा कर सकेगी , उनकी आगामी पीढ़ियाँ उनका आभार मानेगी।
अन्यथा जो सब चल रहा है वही जारी रहा तो बच्चे हों या बूढ़े सभी एक जैसे सेक्स भूख की पूर्ती के लिए ही भटकते नज़र आयेंगे , और यही मनुष्य होने का अर्थ बचा रह जायेगा। फिर हम सभी चिता पर जाने के पूर्व मोबाइल फॉर्मेट कर अपने कुकर्मों पर पर्दा डालने की फ़िक्र करेंगे।
--राजेश जैन
25-04-2015

Thursday, April 23, 2015

नारी आव्हान

 नारी आव्हान
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1 . ."एशियाई समाज में पुरुष (या बेटा) होना हर परिवार के लिए जरुरी माना जाता है " (एक आदरणीय के कमेंट के अंश - साभार )--
यह सोच बेटे -बेटी में अंतर करती है , परिवार में रौनक दोनों से है , परिवार की पूर्णता संतान होने से है , बेटे के ही होने से नहीं। दोनों - एक ही विधि से जन्मते हैं। अंतर नहीं है जन्मने में। दोनों की शारीरिक बनावट में भिन्नता है , लेकिन मन समान है। इसलिए दोनों को समानता से देखा जाना चाहिए। शारीरिक भिन्नता से समाज में दोनों ने थोड़े अलग दायित्व ले ही रखे हैं। जिनके अपने -अपने महत्व भी हैं। मानव समाज के लिए दोनों का अस्तित्व समतुल्य महत्व का है। दोनों को सम्मान से देखने की आवश्यकता है। कमजोर पड़ते को , सबल सहायता करते हैं। नारी अभी - कमजोर स्थिति में है , उसे सहारा , सम्मान और विश्वास देकर कमजोरी से उबार लिए जाने की आवश्यकता है।
2 . ."India mein 85% puruso pe dhikkar hy...kyuki en haramiyo ki shadi ho jati hy lekin fir bhi larkiya patate hy..." (एक आदरणीया के कमेंट के अंश - साभार )--
वैसे यह अविश्वसनीय लगता है , किन्तु अगर इसे सत्य मान लें तो ,जो तथ्य उजागर करता है वह चिंताजनक है। अगर इतने पुरुष नारियों को फुसलाने में समर्थ हो रहे हैं , तो कम से कम 20-25 % नारी ने ,किसी विवशता , नासमझी या आधुनिकता के दुष्प्रभाव में मर्यादा की सीमा पार की हैं । तब तो यह परिदृश्य समाज का व्यभिचार प्रधान हो जाने को संकेत करता है। अगर हम व्यभिचार समर्थक नहीं हैं तो पुरुष -नारी दोनों को गंभीर चिंतन -मनन ,आचरण और कर्मों को सुधारने की आवश्यकता है। 
3 . .जितने गंदे नाम है, इन बुद्धिजीवी पुरषो ने सिर्फ और सिर्फ औरत के लिए ही बनाये है.... पुरषो के लिए कोई एक नाम नहीं?? जबकि ये समयस्या तो पैदा की भी उन्ही की गयी है... ?? ..." (एक आदरणीया की पोस्ट - साभार ) --
वास्तव में चाहे पुरुष हो या नारी अगर समाज में व्यभिचार निंदाजनक माना जाता है तो दोनों के व्यभिचारी होने पर अपमानजनक स्थिति भी दोनों को समान मिलनी चाहिये। किन्तु - व्यभिचारिणी नारी का जीवन तो अभिशप्त कर दिया जाता है , किन्तु पुरुष इसे अपनी मर्दानगी ठहरा कर मूँछे उमेठते फिरा करता है।
नारी आव्हान - पुरुष को कोई नाम देने पर सीमित नहीं किया जाना चाहिए। 85% पुरुष लड़कियाँ पटाने में क्यों सफल हो जाते हैं , उन कारणों को खत्म करने पर नारी आव्हान - केंद्रित (फोकस) किया जाना चाहिए।
नारी आव्हान ये होना चाहिए-
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फ़िल्मी प्रभाव रोकना , नेट -मोबाइल पर वल्गर सामग्री के प्रसार पर अंकुश करना , रात्रि पार्टी और उसमें नशे -स्मोक से बचना , पढाई -लिखाई और अपने कार्यालीन /घरेलू/व्यावसायिक दायित्वों में मन लगाना , अपने स्वयं में अर्निन्ग कैपेबिलिटीस लाना यदि नारी कर सकें तो , स्वयं नहीं भटकेंगी , तब पुरुष दुष्टता अपने ख़राब मंतव्यों में स्वयं नाकामयाब रह जायेगी।
(जिन उग्र नारियों को यह लगता है , एक पुरुष लेखक फिर नारियों को समझाने का प्रयास कर रहा है , कृपया इसे इस तरह न लें , लेखक ने बहुधा पोस्ट में प्रहार पुरुषों पर किया है। )
--राजेश जैन
23-04-2015

Tuesday, April 21, 2015

आकर्षक

आकर्षक
सुंदर ,(या)भला और (या)अच्छा जो भी है , सभी को मनभावन होता है।  सुहावना लगता है एवं आकर्षित करता है। मनुष्य में प्रमुखतया दो विजातियाँ होती हैं, नारी और पुरुष। अपवाद को छोड़ दें तो -
नारी -नारी या पुरुष -पुरुष के बीच भी परस्पर आकर्षण सुंदर ,(या)गुणी और (या)अच्छा होने के कारण होता (/हो सकता) है। लेकिन बेलाग कहें तो नारी -पुरुष के मध्य एक अतिरिक्त आकर्षण होता (/हो सकता) है।
इस आकर्षण में कतई जरूरी नहीं है कि सिर्फ शारीरिक संबंधों की चाहत की विद्यमानता हो। परिवार में नारी -पुरुष कई रिश्तों में जुड़े रहते हैं , किन्तु शारीरिक संबंध के रिश्ते सिर्फ पति -पत्नी के बीच होते हैं। स्पष्ट है यह प्रदत्त आकर्षण प्रकृति से सिर्फ उस अपेक्षा से हमें नहीं मिला है , जैसा नारी -पुरुष के बीच प्रमुख करते हुए सब तरफ फैलाया /बढ़ाया जा रहा है।
--राजेश जैन
22-04-2015
( fb पर छोटी पोस्ट के प्रति पसंद देखते हुए , यहाँ इतना ही उल्लेख है  ,पैराग्राफ की विस्तृत विवेचना में यदि आपकी रूचि है, तो धन्यवाद सहित विनम्र अनुरोध  शेष लिंक में दिए पेज पर उपलब्ध है।)
https://www.facebook.com/narichetnasamman
वास्तव में जो वस्तु सुंदर , मधुर या भली लगती है। हम उसे सहेज कर और सावधानी से रखते हैं , उसकी सुरक्षा करते हैं। लेकिन नारी -पुरुष के बीच ऐसे आकर्षण के होते हुए और साथ परस्पर भला लगते हुए भी हमसे असावधानी होती/हुई है। नारी -पुरुष के बीच आज कटुता और आरोप -प्रत्यारोप आम हो गया है। आज की जीवनशैली की खराबी है।
??? किसी समय प्राण से अधिक परस्पर प्रेम अनुभव करने वाले , प्रेमी युगल , कुछ समय में परस्पर आकर्षण खो देते हैं , संबंध को पति -पत्नी की स्थायी परिणीति तक नहीं पहुँचा पाते हैं। नतीजा - ब्रेकअप और फिर नई -नये गर्लफ्रेंड -बॉयफ्रेंड की सीरीज होती है। और इस असावधानी से नारी -पुरुष बीच अविश्वास का वातावरण निर्मित हुआ है।
??? जहाँ भाग्यवश प्रेमी युगल अपने बीच आकर्षण और प्रेम को पति -पत्नी होने की परिणीति तक पहुँचा सके हैं , उनमें से कुछ के बीच बाद में वह प्रेम , सम्मान और प्रियता -मधुरता कायम नहीं रह पाती है। दुर्भाग्य से कुछ डिवोर्स ले अलग होते हैं।
??? कुछ पति -पत्नी ज़माने के सामने परस्पर एक दूसरे को सबसे बड़ा मूर्ख बताते पाये जाते हैं। फेसबुक पर ही हम देख सकते हैं सबसे ज्यादा हास्य (फ़ूहड़ ) पति -पत्नी पर बनी पोस्ट से उत्पन्न किया जाता है।
??? चौथी तरह की असावधानी से आज बढ़ रही एक और अप्रिय स्थिति निर्मित हुई है। किसी समय प्राण से ज्यादा बढ़कर प्रिय लगने वाले , पति -पत्नी हो जाने के कुछ ही समय बाद , किसी और से शारीरिक संबंध को उत्सुक दिखते हैं। ये लोग अपनी जीवन खुशियाँ स्वयं दाँव पर लगाते ही हैं। कामांधता में अन्य का जीवन दुखदाई कर देते हैं।
पढ़-लिख गए आज के हम लोगों से अधिक बुध्दिमान हमारे अपढ़ पूर्वज थे। वे परायों से एक मर्यादा में पेश होकर , उनकी और अपनी खुशियाँ जी लेने की सुनिश्चितता करते थे। नारी -पुरुष में तब आकर्षण ,प्रेम , मधुरता समर्पण और विश्वास के साथ आपसी  सम्मान आज से बेहतर था।
अति स्वच्छन्दता और अनियंत्रित वासना में हम उस बात को क्षति पहुँचा रहे हैं , जो जीवन को आनंददायी और सफल करता है।
अति स्वार्थ प्रवृत्ति छोड़ हमें पुष्प को उसकी शाख पर लगे रहने देने की फ़िक्र करना चाहिये जहाँ से ज्यादा खूबसूरती और सुगंध वह बिखेर पाता है।  ना कि उसे तोड़ अपनी शर्ट /बालों में सजाना चाहिए , जहाँ कुछ समय में ही वह मुरझा जाता और मुरझाने पर फेंक दिया जाता है।
--राजेश जैन 
22-04-2015

Monday, April 20, 2015

नफीसा

नफीसा
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नफीसा काल्पनिक नाम , साक्षात प्यारी बेटी का है
उम्र उसकी दस वर्ष , अनुराग उससे मुझे बेटी सा है
बोलने सुनने में असमर्थ , मुख पर भोलापन होता है
अपूर्णता ये देखकर ,प्रायः दिल मेरा रोया सा होता है

पढ़ने के न हैं स्कोप ,छोटी है करना न बहुत आता है
बाल सुलभ वह भोली , घर के बाहर खड़ी हो जाती है
गुजरते अजनबियों की दृष्टि चिंता मेरी बड़ा जाती है
उसे न कुछ लेना , लगता ज़माने ने उसे न छोड़ना है

जग जिसे पूर्णता है , सोचने में जाने क्यों अपूर्णता है ?
कमी उसे सताती है , ललचाई दृष्टि चुनौती बढाती है
क्यों हम ऐसा खाते पीते ,क्यों ऐसा सब पढ़ते देखते हैं ?
जिसे हैं जीवन में लाले , कामांध उसमें स्कोप देखते हैं

बेटी किसी की मूक-बघिर वह , उन्हें जान से प्यारी है
न सुनी उसकी किलकारी , सूरत निर्दोष उन्हें प्यारी है
उस प्यारी बेटी को , क्यों न बहन बेटी सा देख पाते हैं ?
खुदगर्ज हम ऐसे तो न जाने क्यों मनुष्य जन्म पाते हैं ?
--राजेश जैन
21-04-2015
https://www.facebook.com/narichetnasamman

Sunday, April 19, 2015

ख़राब में शामिल न होकर


ख़राब में शामिल न होकर
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चाहें बेटी या बेटा - पढ़ने या जॉब को जब बाहर भेजा जाता है। उससे परिवार की एकमात्र अपेक्षा होती है , वह ऐसे गुण - ज्ञान अर्जित करे जिससे उसके अच्छे जीवन यापन की सुनिश्चितता हो सके।  जिन परिवारों की आर्थिक दशा ठीक नहीं होती वहाँ अपेक्षा यह भी हो सकती है कि बेटा-बेटी परिवार की कुछ आर्थिक मदद करने जितने गुण और आय प्राप्त कर सके।
घर से जब ये बच्चे चलते हैं , ऐसे ही लक्ष्य के साथ निकलते हैं। परन्तु कुछ उम्र ऐसी होती है , कुछ बाहर के वातावरण की दूषिततायें होती हैं। और परिवार , माँ -पिता,  वहाँ की आर्थिक दुर्दशाओं (यदि है तो ) से कुछ दूरियाँ होती हैं। उनके मन से ये लक्ष्य , अपेक्षायें विस्मृत सी होती हैं।  मित्रों ,  फिल्म , नेट सेल फ़ोन और  ग्लैमरस जीवन शैली  आदि साधन  जिनसे करीबी होती है , वे पारिवारिक अपेक्षाओं से विपरीत दिशा की ओर दुष्प्रेरित करते हैं।  जिन बच्चों को घर से मार्गदर्शन मिलते होते हैं , यह जिन्होंने अपने संकल्प स्पष्ट रखे होते हैं वे अपनी निजी अपेक्षाओं , पारिवारिक अपेक्षाओं और बाहर के इस वातावरण के बीच एक उचित संतुलन रख अपने संयत कदम अपनी मंज़िल और एक उत्कृष्ट जीवन की दिशा में जारी रखते हैं।
लेकिन दुर्भाग्य से बहुतेरे ऐसे होते हैं , जिनमें ड्रग , स्मोक , ड्रिंक्स , शारीरिक संबंधों की लतें और लेविश्ली खर्चों की आदतें हो जाती हैं , कई बार ये इस हद पर पहुँचती हैं कि सम्हलने का अवसर दुबारा जीवन में नहीं मिलते । नतीजा एक अवसादपूर्ण जीवन होता है , जो स्वयं की समस्या के साथ ही  समाज , देश और मानवता के लिए भी समस्या और बुराई होता है।
जरूरत देश और समाज के इस दुष्प्रेरित करते वातावरण को बदलने की है , ना कि इस खराबी में बदलकर अपनी अच्छाई खोने की । यह एक दो के वश में नहीं किन्तु एक -दो से आरम्भ कर सब में संकल्प लाने से सम्भव हो सकता है। तब " हम ख़राब में शामिल न होकर ख़राब परिदृश्य को बदल सकते हैं ".
--राजेश जैन
20-04-2015

पुरुष -नारी समानता

पुरुष -नारी समानता
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अपना आलोचक हो आज एक काव्यात्मक समालोचना प्रस्तुत कर रहा हूँ --
भाई राजेश , तुम रूढ़िवादी हो। मनुष्य के परिवार में रहने के पक्षपाती हो। तुम्हें ज्ञात है , परिवार में होने से कितनी ही मर्यादायें ,सीमायें और बंधन सहने होते हैं ? तुम पर सिलसिलेवार आरोपों की पूरी निम्न-लिखित एक लिस्ट है
1. उसे नाम नारी चेतना को देते हो
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तुम , पुरुष पर दोषारोपण रखते हो
नारी की दुर्दशा पुरुष पर थोपते हो
स्वयं को जो पसंद नारी को करने के
नितदिन तुम मुफ्त परामर्श देते हो 
2. अंध-परिवारवादी
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लगता है , परिवार में जन्मे तुम हो
इसलिए , परिवार अपना चलाते हो
परिवार में जन्मे उसमें बिताया जीवन
परिवार से अलग कुछ न देख पाते हो
3. रूढ़िवादी सोच
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जितने आक्षेप ,पुरुषों पर तुम्हारे हैं
जितने परामर्श ,नारी को तुम्हारे हैं
वे सब तुम्हारे परिवार की दी गई
रूढ़िवादी सोच से ही दुष्प्रभावित हैं।
 4. क्या वह जीवन जीना होता है?
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तुम अपना जीवन स्वयं व्यर्थ करते हो
लेखनी से ऐसे ही व्यर्थ करने लिखते हो
त्याग -सहनशीलता की भ्रामक सीख देकर ,
जीने कहते दूसरों को ,जिसे जीना कहते हो

5. तुम नहीं जानते मजा
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तुमने पब में डाँस न कर देखा है
तुमने शराब नशा नहीं जाना है
दस गर्लफ्रेंड रखने का क्या होता
मजा तुम्हारे लिए ये अनजाना है
6. पति -पत्नी -असहनीय बंधन
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परिवार में बंध पत्नी ,पति को
और पति , पत्नी को झेलते हैं
इतनी कविता -जोक्स बनीं हैं
तुम्हारी नज़रों को न दिखते हैं ?
७. तुम न बरगलाओ
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लिख लिख नई पीढ़ी को तुम न बरगलाओ
जबरन प्रभावित कर अपना सा न बनाओ
साथ साथ जोड़े में उन्हें पीने -डाँस करने दो
विवाहित या अविवाहित वह इतर रहने दो
8. निराले अंदाज , तुम नहीं जानते
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चरित्र वरित्र कोई बात होती है ?
जानवरों में ऐसे रिवाज होते हैं ?
जब तक जीते स्वछंद होते हैं
जीने के निराले अंदाज होते हैं
9. बच्चा स्वयं  बड़ा होगा
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करना होगा जब करेंगे शादी हम
लड़ना होगा आपस में लडेंगे हम
साथ रहेंगे या तलाक ले लेंगे हम
बच्चा हुआ तो भी बड़ा होगा स्वयं 
10. पसंद अपनी अपनी
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अपना ज्ञान सुनो राजेश तुम
रखो स्वयं अपने पास तुम
जिसको पसंद रात भर जागेगा
जिसे पसंद नशा कर नाचेगा
11. नई पीढ़ी -नई बात
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आपस में हमारी छेड़छाड़ होगी
पसंद जिसे वह लड़की साथ होगी
नहीं पसंद वह हमसे बच लेगी
नई पीढ़ी में अब नई बात होगी
12. पुरुष -नारी समानता
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समानता नारी को चाहिए ना ?
हम पुरुष -नारी समान हो रहे हैं
मजे में साथ ,समान हो रहे हैं
तुम पिछड़े हम एडवांस हो रहे हैं
--राजेश जैन
19-04-2105
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Saturday, April 18, 2015

निर्दोष स्वप्न

निर्दोष स्वप्न
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9-10 वर्षीया बेटी एक विदाउट यूनिफार्म में स्कूल जाने के लिए बसस्टॉप पर बैठी है।  स्पष्ट है , आज उसका बर्थडे है।  नए वस्त्रों को धारण कर बर्थडे के दिन अतिरिक्त प्रसन्न उसके हृदय में उमंग और नयनों में जीवन के सुंदर स्वप्न हैं। कवि इस पल के दृश्य से एक कविता की प्रेरणा ले अपना निवेदन आपके समक्ष रखता है …


सुंदर , सुशीला वह बसस्टॉप पर बैठी है
अपने माँ पिता की प्राण से प्यारी बेटी है
चमकती आँखों में निर्दोष स्वप्न सुंदर
दर्शाते , दुनिया बुराइयों से दूर वह बेटी है


कटु धरातल से अनजान आज , वह बेटी है
पूरे होंगे स्वप्न? इससे निडर हो वह बैठी है
दुनिया, समाज ना निर्दोष ,अनजान इससे
लगती सजीली ,हम में से किसी की बेटी है


ज्योंही कुछ वर्ष और चढ़ेंगे उसके जीवन में
बेटी, वासना स्त्रोत होगी दुनिया की नज़रों में
निर्दोष ,सुंदर आज के स्वप्न बिखरेंगे उसके
सम्मान सुरक्षा प्रश्न उभरेंगे उसके जीवन में


सभी को मिलते हैं सपने निर्दोष जब इतने
जीवन में बढ़कर क्यों न रहते निर्दोष इतने
अपने अपने लिए खींचतान एवं प्रयासों में
सुस्वप्न क्यों बना लेते हम दुःस्वप्न  इतने


बेटी-बहन हमारी उसे बेटी-बहन ही रहने दें
वासना प्रवाह को अपनी पत्नी संग बहने दें
स्वप्न अपने जीवन के पूरे करें इस तरह कि
मिटे न स्वप्न अन्य के ,यत्न अपने होने दें
--राजेश जैन
18-04-2015
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Thursday, April 16, 2015

पुरुष सम्मान प्रतीक
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थी नहीं कभी , नहीं है, नारी
नहीं खुदगर्ज उन्हें होने देंगे
अपनी थी ,अपनी है नारी
पीड़ा में ना अकेले होने देंगे

नारी समस्या न सिर्फ नारी की
उसे न अकेले पड़ने देंगे
नारी है सदा से अपनी उनकी
समस्या में अपनापन देंगे

सम्मान प्रश्न सीमित होते
अपने पे , हम उसे बदल देंगे
उनके सम्मान सम्मिलित होते 
ऐसी हम नई संस्कृति देंगे

शत्रु नहीं पुरुष की ,नारी
उसे लड़ने पे बाध्य न होने देंगे
समस्या एवं लड़ाई आपस में
को हम चर्चा में सुलझा लेंगे

शिक्षित पुरुष एकत्रित हो कर
हम पुरुष नवचेतना लायेंगे
नारी चेतना सम्मान सुरक्षा को
पुरुष सम्मान प्रतीक बनायेंगे
--राजेश जैन
17-04-2015
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Wednesday, April 15, 2015

नारी ही नारी की दुश्मन ?

नारी ही नारी की दुश्मन ?
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हे पुरुष ,अपूर्ण दृष्टि तुम्हारी लगती है
यौन आकर्षण के नारी अंग ही देखती है
इन अंगों से होती समस्या क्या नारी को
क्यों वासना दूषित दृष्टि नहीं देखती है ?

बहलाकर वैश्या, पोर्नस्टार बनाते हो
छुप वैश्यागामी कहाने में कतराते हो
चाणक्य देख स्वयं पर शरमाता होगा
नारी साथ जो चतुराई तुम कर जाते हो

नारी पर प्रभाव डाल उससे करवाते हो
नारी प्रयोग से मंतव्य पूरे करवाते हो
चालाकी में चाणक्य से बढ़कर फिर तुम
'नारी ही नारी की दुश्मन' उसे मनवाते हो

दृष्टि पूर्ण करो 'हे पुरुष' तुम
वासना नहीं करुणा भी देखो तुम
अन्यथा चाणक्य और तुम्हारी
माँ , नारी है यह जान लो तुम

पुत्र समझती है वह तुम्हें ,
पिता समझती है वह तुम्हें
श्रध्दा रखती पति पर अपने
भूली तो सता सकती है तुम्हें
--राजेश जैन
16-04-2015
 

Tuesday, April 14, 2015

प्रशंसा की दृष्टि

प्रशंसा की दृष्टि
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प्रशंसा की दृष्टि नापसंद किसे ?
हमें भी प्रशंसा पसंद है
वासना हिलोरें न लेती दृष्टि हो
तो प्रशंसा हमें भी पसंद है

प्रशंसायें मिलें तो करने की लगन
हम नारी में बढाती हैं 
यही सम्मान ऐसी समानता तो 
हम नारी भी चाहती हैं

भाई -पापा इसे पहचानो तुम
नारी को अपनी ही जानो तुम
क्यों शोषण,इक्छा कुचल देते?
न भूलो सहारा हर पग लेते तुम

नारी है आधी आबादी समाज में
उसमें प्रतिभा कर गुजरने की
हमें ससम्मान अवसर दें यदि तो
देश उन्नति दोगुनी होगी 
--राजेश जैन
  15-04-2015
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दस लाख सपूतनियाँ

दस लाख सपूतनियाँ
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31-12-2014 को भगवान दस लाख बेटियों से वरदानित दम्पति के समक्ष प्रकट हुए , पूछा शीतल जी , कैसे रहे पिछले 41 वर्ष ? शीतल जी इस प्रकार से वृतांत सुनाने लगे-

निर्दोष बचपन  
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धन्यवाद हे पूज्य भगवान वरदहस्त आपका भाता है
जो सपूतनियाँ मिली बखान को शब्द देना न आता है

अबोध उम्र में सपूतनियों के पैर पलने में दिख गए थे
बचपन से उनके विलक्षण गुण अनुभव हमें हो गए थे

स्कूल जाती हमारी बेटियाँ अध्ययन लीन हो गई थी
उनसे प्रेरित उनकी शालाओं की तस्वीर बदल गई थी 

शालाओं में उत्कृष्ट पठन -पाठन परंपरा बन गई थी
जाने आने में शाला मार्गों में बिखर गरिमा बस गई थी

न जाने उनकी आभा का कैसा अनोखा यह प्रभाव था
देखने वाले पुरुष हृदय पर अनुशासन का शासन था

उत्कृष्ट उनके परीक्षा परिणाम शाला के नाम हो रहे थे
पढ़ाने , ज्ञान सामग्री लिखने वाले देख धन्य हो रहे थे

कॉलेज में अध्ययन
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कॉलेज पहुँचने तक यौवन एवं आकर्षण उनपे आया था
ख़राब दृष्टि से उन्हें देखे कोई दुस्साहस न कर पाया था

हर बेटियों ने मेरे भगवान अद्भुत भिन्न सद्गुण पाये थे
हर अच्छे क्षेत्र में उनने अपूर्व सफलता के झंडे लहराये थे 

पढाई उपरान्त
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जिन प्रतियोगी परीक्षाओं में होती चयनित हो रही थीं
साथ युवाओं समाज को प्रगति दिशा नेतृत्व दे रही थीं

व्यवसायों में रूचि ली तो वे सद्परम्पराएं ला रही थीं
हुई डॉक्टर तो कन्या के जन्म को ख़ुशी बना रही थीं

उच्च पदस्थ हो रिश्वतों के रिवाज खत्म कर रहीं थीं
मंत्री बन देश विकास योजनाओं को मूर्त कर रहीं थीं

कार्य दायित्व निर्वहन
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समर्पण दायित्वों प्रति ,कर्तव्य परायणता उनमें थी
जहाँ कार्यरत वे होतीं ,परिणाम निर्भरता उन पर थी

नारी -पुरुष समानता
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नारी जात इनने सद्गुणों से अपना महत्व बनाया था
पुरुषों से अधिक अधिकार ,बिन माँगे स्वयं पाया था

बुराई से बचाव
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आसपास की बुराई से उनका रिश्ता अनोखा ऐसा था
सद्प्रभाव उनका बुराई को अच्छाई में बदल देता था

सेलिब्रिटी फैन नहीं
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स्व भलाई साथ ही सर्व भले की पहचान उन्हें होती थी
न बनी बुरों की फैन ,अन्य से प्रशंसा उन्हें मिलती थी

विवाह -परिवार
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कॉलेज ,कार्यक्षेत्र में कुछ बेटियों को मीत भले मिल गये थे
हुई सयानी दूसरी बेटियाँ उनके भले रिश्ते स्वयं आ गये थे

अपने अपने घर परिवार में सब सूर्य चन्द्रमा सी छा गईं थीं
बेटी सी बहू पाकर सब की ननदें -सासु माँ धन्य हो गईं थीं

राजा -रानी
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प्रिय पति उन्हें और दामाद हमें , मिले , राजा बेटों जैसे थे
उनसे मिले सम्मान एवं प्यार में वे महारानी सी हो गईं थीं

अति स्वछंदता - सिगरेट,नशे से दूर
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दुनिया में जो चली नारी की थोथी आजादी की रीत थी
जहाँ पहुँची देश में ये बेटियाँ न फ़ैल सकीं ये कुरीत थी

नारी शोषण , छल से बचाव
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दुनिया में नारी के शोषण खातिर गलत बहकाया था
बेटियों ने पुरजोर प्रयासों से यहाँ फुलस्टॉप लगाया था

बेटियों से धन्य पिता का धन्यवाद ज्ञापन
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अप्रभावित बुराइयों से आज किया प्रभावित सबको
दीं सपूतनियाँ विलक्षण ,धन्यवाद भगवान आपको

पत्नी शीतल जी के (एक संयोग) स्वर और माथे पर उनके हाथ के शीतल स्पर्श से , शीतल जी की निद्रा टूटती है , पत्नी शीतल जी , पति शीतल जी से मधुरता से पूछती हैं , कोई सुंदर स्वप्न देख रहे थे क्या ?
--राजेश जैन 
14-04-2015
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Sunday, April 12, 2015

सृजन और निर्माण

सृजन और निर्माण
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लेखक के मन में प्रश्न आया , क्यों हमारे देश और समाज में समस्याओं का अम्बार लगा है ? उत्तर जो मिला उसका उल्लेख करता हूँ।
लेखक की मासिक आय जितनी है , उतनी एक चार सदस्यीय परिवार के ठीकठाक जीवन यापन के लिए आवश्यक है। लेखक अनुभव करता है कि बहुतेरे परिवार ऐसे देश में ऐसे हैं , जिनकी आय इतनी नहीं होती है। तब लेखक की सोच और ऐसे कम आय वर्गीय व्यक्तियों के जीवन शैली में स्पष्ट अंतर देखने मिलता है।
लेखक एक तरह से आर्थिक प्रश्नों से लगभग बेपरवाह होकर , देश और समाज के निर्माण पर , नारी समस्याओं पर , समाज की बुराइयों पर विचार कर उपाय तलाशने में जो समय निकाल लेता है , वह कम आय वर्गीय परिवार का सदस्य ,उस समय में भी अपनी आय लेखक जितनी - सुविधाजनक करने के विचार और उपाय में खर्च करता है । तब उनके पास ज्यादा समय नहीं होता कि वे राष्ट्र और समाज , सृजन और निर्माण में अपना योगदान दे सकें।  वे इतना ही करने का विचार और उपाय करते हैं , जितने में वे अपने और परिवार को इन उपलब्ध समस्याओं और बुराई से बचा सकें। उनकी एक तरह से यह निज स्वार्थ प्रमुखता की सोच समाज में चुनौतियों और बुराइयों में कुछ और वृध्दि ही करती है।
लेख के उल्लेख का सार यह है कि हमारे समाज में खुशहाल वातावरण हेतु , सभी की आय कुछ ज्यादा हो सके इसके उपाय करने की आवश्यकता है।  साथ ही देश की सरकार यदि स्वास्थ्य सेवा पर अपना नियंत्रण, ऐसा और  इतना कर सके कि रोगों का त्वरित , समुचित उपचार निशुल्क या कम व्यय में सभी को मिले तब , हमारे देश का नागरिक सामान्य - मूलभूत प्रश्नों से भयमुक्त होकर देश के सृजन और निर्माण के लिए स्वेच्छा से जागृत हो सकेगा।
आखिर में मनुष्य जन्म मिला है तो एक पूरे जीवन की सुनिश्चितता हर मनुष्य के हृदय /मन में सहज ही होती है।
--राजेश जैन
13-04-2015
https://www.facebook.com/PreranaManavataHit

सवा लाख बेटियाँ

सवा लाख बेटियाँ
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बात 1973 की है विवाह बंधन में आबध्द हुए एक दम्पति ने अपनी साधना से , भगवान को प्रसन्न किया। साक्षात ,भगवान प्रकट हुए। उन्होंने माँगने को कहा , पति बोल पड़ा , मुझे बहुत सी पुत्रियाँ चाहिए हैं । भगवान न जाने किस विचार में थे , कहा सवा लाख बेटियाँ होगीं , आप दोनों की। 2014 में - तुम्हें मै पुनः मिलूँगा कह कर वे अदृश्य हो गए। पति -पत्नी अचंभित क्या भगवान मजाक करते हैं ? घर लौटे , देखा उनका घर एक नगर सा बड़ा होता जा रहा है. कैसे उन्हें सवा लाख बेटियाँ हुईं उसमें पड़ने की अपेक्षा ,'सार' -संक्षिप्त में उल्लेखित है। 31-12-2014 को भगवान  दम्पति के समक्ष पुनः प्रकट हुए , उन्होंने पूछा शीतल जी , कैसे रहे पिछले 41 वर्ष ? शीतल जी ने वृतांत सुनाया - उसे काव्य में लिख बताता हूँ -

अबोध बेटी से रेप
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कुछ हमारी अबोध बेटियाँ थी
दुर्भाग्य उनमें कोई सेक्स देख गया
उठाले गए उन्हें घर से कामांध होके
रेप किया तड़फता उन्हें छोड़ दिया

स्कूल कॉलेज की पढाई
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सब बच्चियों की भाँति हमने
अपनी पुत्रियों के पढाई खातिर
स्कूल -कॉलेज में उन्हें भी
प्रवेश दिला वहाँ भिजवाया

लड़कों के साथ
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सब दूसरों की बेटियाँ वहाँ पढ़ रही थीं
हमारी ,लड़कों की संगत में पड़ रही थीं 
स्कूल कॉलेज बहाने वे घर से जातीं
लड़कों के साथ वहाँ से फरार हो जातीं

बॉयफ्रेंड के साथ रोड एक्सीडेंट हादसे
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कुछ मारी गईं तेज रफ़्तार वाहन भिडंतों में 
सिर कुचल खून बिखरा एक्सप्रेस हाईवे में 

विवाह -डिवोर्स
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बड़ी हुईं कुछ , नहीं मरीं इस तरह से
समय आने पर ब्याहा उन्हें योग्य वर से
ज्ञात हुए पतियों को उनके फ्लिर्टिंग किस्से
डिवोर्स दे पीछा छुड़ाया अपना मेरी बेटियों से

विवाहेत्तर सम्बन्ध
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कुछ पतियों को नहीं पता चला तब भी
दुर्भाग्य रहा मेरी बेटियों का वहाँ भी
उन्हें ज्ञात हुए पतियों के विवाहेत्तर प्रेम सम्बन्ध
जो बने आपस में अपरिचित मेरी दूसरी बेटियों से
यहाँ भी फिर परिणाम वही निकला
डिवोर्स पति से हुआ बेटियों का दिया

शराब सिगरेट सेवन
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और घरों से बेटियाँ ससुराल में जाके
छुड़ाती शराब स्मोक की पति की आदतें
हमारी बेटियों ने अलग कर दिखाया
पति से ली स्वयं में शराब स्मोक आदतें

फ़िल्मी एक्ट्रेस - कॉल गर्ल
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इंकार किया शादी से हमारी कुछ बेटियों ने
जा पहुँचीं वे फिल्मों टीवी की प्रतिष्ठा बनने
अन्य घर की बेटियाँ वहाँ प्रसिध्दि पा रही थी
हमारी यौनसंबंधों को वीआईपी में भेजी जा रही थी

पोर्नस्टार
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कुछ बेटियाँ पोर्नस्टार की ख्याति अर्जित करके
इन से बढ़कर इंटरनेट पेजों की शोभा बन रही थी

बस टैक्सी में रेप
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अन्य बेटियाँ सुरक्षित घर लौटती थी
हमारी की अस्मत बस टैक्सी में लुटती थी

स्नान शौच के रास्ते में रेप हत्या
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हमारी बेटियाँ कुछ झरनों-शौच को जाती
घर न आने पर खोज में पेड़ों पे टँगी पाई जाती

एसिड अटैक
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कुछ तो मार्केट -कॉलेज के रास्ते में
न जाने क्यों एसिड से नहलाई जाती

कन्या भ्रूण परीक्षण
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और डॉक्टर तो रोगी की सेवा करती थी
हमारी कुछ बेटी ने पढकर डॉक्टरी कर ली 
कन्या भ्रूण हत्या से धन कमाने के लिए
उनने गर्भ परीक्षण की क्लीनिक कर ली

कन्या भ्रूण हत्या
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सब तो प्रसव से बच्चों को जन्म देती थी
हमारी तो टेस्ट बाद सिर्फ बेटे जन्मती थी

फुसलावे
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डिवोर्स बाद कुछ साथ घर पे रहती हैं
उन्हें फुसलाने पुरुषों की फेरी होती हैं

ख़ुदकुशी
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एसिड अटैक की शिकार बेटियाँ
कुछ पीड़ा में जैसे तैसे रहती हैं
पीड़ा होती सहनशीलता से ज्यादा
बेचारी वे फंदा डाल ख़ुदकुशी करती हैं 

भगवान लम्बे अवधि के इस वृतांत में
हमने जो न भूला सब आपको बता दिया

भगवान ने सुनने के बाद पूछा , आप मुझसे नाराज हैं , शीतल जी ? शीतल जी ने कहा - नहीं हमारे पालनहार। हमारे यहाँ , ऐसी बेटियाँ होने के बाद मैंने - दूसरों के यहाँ बेटियाँ अच्छी और प्रगतिशील देखीं हैं। वास्तव में हमें ही अक्ल नहीं थी , किस तरह उनका लालन पालन करते।  हमारी बेटियों के साथ ये सब हुआ उस समय , किसी के भाई या परिवार को अपनी बेटी-बहन के दुःख की पीड़ा और अपमान का सामना न करना पड़ा। आपने हमें , मनचाहा वरदान दिया था , हम आपके हृदय से आभारी हैं। भगवान - शीतल जी के उत्तर से अचंभित हुये।  उन्होंने कहा कुछ गलत हो गया हमारी ओर से।  सारी भाग्यहीन बेटियों को , लगता है , आपके यहाँ जन्म मिल गया। मै भूल सुधार करता हूँ , समय चक्र वापिस 1973 पर वापिस ला कर अब तुम्हें दस लाख बेटियाँ देता हूँ। फिर हम मिलेंगे 2014 में। सपत्नीक शीतल जी - हाथ जोड़ सिर नवाते हैं।तब भगवान अदृश्य हो जाते हैं।
--राजेश जैन 
 12-04-2015
https://www.facebook.com/narichetnasamman

Friday, April 10, 2015

दोषपूर्ण दिशा दर्शन

दोषपूर्ण दिशा दर्शन
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भारत के स्वतंत्र होने के बाद नए सिरे से निर्माण और सृजन आरम्भ होने चाहिये थे । इसमें नई तकनीकों के प्रयोग से ,विचारधारा , समाज और देश को उन्नति को दिशा दी जा सकती थी । जिससे नारी-उत्थान के अवसर सुलभ होते। अंधविश्वासों और कुरीतियों को कम करने के उपाय होते। समाज में समस्यायें और बुराइयाँ कम होती। आज एक अवलोकन ,क्या ऐसा हो सका ?
नई तकनीकें थीं ,क्रमशः समाचार पत्र , फ़िल्में ,रेडियो , टीवी  और अब इंटरनेट। इन सबकी प्रसारण क्षमता व्यापक होती है। इनके प्रयोग से  हमारे हृदय में राष्ट्रनिष्ठा की वैसी भावना लाई जा सकती थी। जैसी जापानी नागरिकों में होती है। कई प्राकृतिक/कृत्रिम आपदाओं से विनष्ट होने के बाद वह स्वाभिमानी देश , गुपचुप तरीके से फिर बन जाता है और छोटा होते हुए भी महाशक्ति बना रहता है।
पहले ,देश के युवाओं , नारियों और नागरिकों को 'दिशा' प्रमुखतया धार्मिक उपदेशों से मिलती थी। धीरे-धीरे धार्मिक कार्यों में लीनता का समय बहुत कम हुआ है । इसके दो प्रमुख कारण हैं - 1. पढ़ने-लिखने के लिए बच्चों ,नारियों और युवाओं का और 2. व्यवसाय और उत्पादन बढ़ाने में सभी का ज्यादा समय लगने लगा ,विकास की दृष्टि से ऐसा उचित है। इसके अतिरिक्त बहुत समय न्यूज़ पेपर ,टीवी (मीडिया) , फिल्मों और अब नेट पर लोगों का व्यय हो रहा है . ये हम सभी के विचार , आचरण और कर्मों की दिशा तय करते हैं। क्या दिशा दे रहे हैं ये क्षेत्र इस पर संक्षिप्त दृष्टि।
$ फिल्म /टीवी धारावाहिक -
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इनका शुध्द प्रयोजन अपने लिए प्रसिध्दि और धन बटोरना है। दर्शक किस मानसिक समझ का है ,और प्रस्तुतियों से समाज पर क्या प्रभाव पड़ता है इससे इन्हें कोई सरोकार नहीं है । हमारे देश के भोज्य पदार्थ बिगड़े , नशे की प्रवृत्ति बढ़ी। समाज में भाईचारे और बहनापे के रिश्तों के स्थान पर गर्लफ्रेंड -बॉयफ्रेंड के रिश्ते पनप गए। सब इन दोषपूर्ण दिशा निर्धारकों (हीरो -हीरोइन और सेलिब्रिटीज) की देन है। नारी विरुध्द यौन अपराध भी इन्हीं से उकसाये गए हैं।
$समाचार पत्र -
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सिर्फ एक उदहारण , समाचार पत्र खाद्य सामग्री में विभिन्न विषैले तत्वों के उल्लेख के समाचार प्रकाशित कर हमें आगाह करते हैं ,वहीं इससे विसंगत ऐसे खाद्य पदार्थों का विज्ञापन भी छापते हैं , जिनके सेवन से शरीर में विषाक्त पदार्थों की मात्रा बढ़ती है।
$टीवी (मीडिया) -
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सिर्फ एक उदहारण ,एक तरफ नारी पर संगीन अपराधों को सनसनीखेज तरह से दिखाया जाता है , वहीं हीरो -हीरोइन और स्पोर्ट्स और अन्य सेलिब्रिटीज के स्वछंद संबंधों को चटकारे वाले अंदाज में दिखाया जाता है। जो दर्शकों में यौन उत्कंठायें बढ़ाकर, नारी पर इन्हीं संगीन अपराधों के कारण बनते हैं।   
$इंटरनेट -
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इसमें विदेशी खुले दृश्यों के अम्बार लगे हुए हैं। हम जैसे विकासशील राष्ट्र का समय उन्हें देखने और नकल करने में जाएगा तो हमारा समाज और राष्ट्र क्या , प्रगति पथ पर बढ़ सकेगा ? फेसबुक , व्हाटसअप एप्लीकेशन का प्रयोग से भी अच्छे वातावरण का निर्माण  किया जा सकता है। लेकिन वहाँ भी गर्लफ्रेंड -बॉयफ्रेंड की मृगतृष्णा जैसी तलाश अनवरत जारी है।
स्पष्ट है बेहद स्वार्थी होकर , हम सब दोषपूर्ण दिशा दर्शन में व्यस्त हैं , और चाहते हैं , हमारा जीवन अच्छा हो। नारी को सम्मान और सुरक्षा मिले , उन्हें प्रगति के समान अवसर मिलें। सोचने की जरूरत है। समझने की जरूरत है, किसे हम फॉलो करें?
--राजेश जैन
11-04-2015

Thursday, April 9, 2015

हमारा समाज और फ़िल्में

हमारा समाज और फ़िल्में
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हमारे समाज में , लगभग चौथाई जनसँख्या 5 से 16 वर्ष के बच्चों की , और लगभग आधी जनसँख्या ऐसे लोगों की होती है जिनके घर में भले - बुरे का ठीक तरह का ज्ञान और चर्चा नहीं मिली होती है। एक तथ्य यह भी है कि अब देश के तीन चौथाई से ज्यादा घरों में टीवी के माध्यम से फ़िल्में देखी जाने लगी हैं। फ़िल्में देखते समय यह भी लगभग महत्वहीन हो गया है , कि उनको सेंसरबोर्ड द्वारा क्या सर्टिफिकेट दिया है।
एक फिल्म आई थी बहुत सफल रही थी , जिसमें अच्छा मनोरंजन भी था।  फिल्म का संदेश भी बहुत ठीक था , किन्तु व्यक्तिगत तौर पर लेखक को दो बात अखरी थी।  इस फिल्म में कॉलेज डे फंक्शन पर एक स्टूडेंट जिसे हिंदी का कम ज्ञान था उसके हिंदी में भाषण की कम्प्यूटर फाइल में एक शब्द को दूसरे से रिप्लेस कर दिया गया था , उसे जब वह स्टूडेंट स्टेज से पढ़ता है तो फ़िल्मी कॉलेज हाल में उपस्थित श्रोताओं को बहुत हँसते हुए बताया गया है।  फिल्म के दर्शक भी इस फूहड़ हास्य पर लगभग लोटपोट वाले तरीके से हँसते हैं। इसी फिल्म में एक डायलॉग बार बार प्रयोग हुआ है जिसमें  "....... बीच में नहीं आती है " हाईलाइट किया गया है।
ऐसी बातों का पहले पैरा में बताई जनसँख्या पर क्या असर होता है ? और फिर इस से समाज में जीवन पर किन तरह की चुनौतियाँ बढ़ती हैं , बुराइयाँ उत्पन्न होती है , बच्चों के दिमाग में जो देश और समाज का भविष्य होते हैं में असमय किन प्रश्नों की उत्पत्ति होती है , इन सामाजिक सरोकारों से लगता है , फिल्ममेकर्स का कोई लेनदेन नहीं होता है।
यह बानगी एक फिल्म की है , लगभग हर फिल्मों में कुछ अच्छे संदेशों के बीच मसाले के रूप में इस तरह समाज विनाशक और मनोग्रंथियाँ उत्पन्न करती कुछ बातें चित्रित कर दी जाती है। परिणाम सामने है , बेशर्माई पिछले 60 -70 वर्षों में धीरे धीरे इस तरह सामान्य हो गयी है , कि उसे सामान्य जीवनचर्या माना जाने लगा है। बड़े -छोटों और नारी-पुरुषों के बीच की मर्यादायों की परंपरागत भारतीय भव्य संरचना ध्वस्त हो गयी है।
नारी विरुध्द अपराधों और नारी अपमान की घटनाओं  में चिंताजनक बढ़ोतरी हुई हैं। विडंबना है ,  हमें इन बुराइयों से असहमति और शिकायतें हैं , लेकिन इन सबके सोर्स क्या हैं , जड़ क्या है , न तो इन्हें सही पहचान ही रहे हैं और यदि पहचान भी रहें हैं तो समाधान के प्रयास सतही स्तर तक किये जा रहे हैं।
नहीं, ऐसा ठीक नहीं है।  इन से समस्यायें दिन ब दिन बढ़ती ही जायेगी। समय की माँग है , हमारी पीढ़ी आरोप -प्रत्यारोपों में उलझने के स्थान पर देश और समाज हित में कुछ ठोस कर के दिखाये।
--राजेश जैन
10-04-2015

Wednesday, April 8, 2015

36-24-…


36-24-…
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यह शारीरिक आकृति उम्र विशेष में किसी नारी के स्वस्थ शरीर ,होने की द्योतक होती है। लेकिन जिस तरह कहा , लिखा जाता है वह इस बात का द्योतक होता है , इस आकृति को आज , पुरुष स्वस्थ दृष्टि से नहीं देख रहा है। हालाँकि ,लेखक नहीं मानता सभी पुरुष ऐसी दृष्टि करते हैं , और यह भी नहीं मानता कि नारी के साजो-श्रृंगार के उद्देश्य - पुरुष की दृष्टि में वासना घोलने की होती है। लेकिन यह तो तय है , क्या हम चाहते हैं उससे उलट ऐसा करते हैं , जिससे हमारी चाहतों से विपरीत सब होता चलता है।
$ सेलिब्रिटीज ने अपने व्यवसाय संभावनाओं , अपनी लोकप्रियता बढ़ाने के लिये इसे जुमले (36 - …… ) को प्रमोट किया , इस तरह के वीडियो , फोटोशूट कर प्रसारित किये करवाये , जिससे पुरुष दृष्टि नारी में सिर्फ वासनापूर्ति की वस्तु देखने लगी , उन्हें हमने अपनी आदर्श बनाया , उनके पिक्चर अपनी प्रोफाइल पिक बनाई।
$ सेलिब्रिटीज ने स्वस्थ नहीं रही - पुरुष दृष्टि को बेशर्मी नहीं माना ,अपनी मनोभावना की पूर्ती मान प्रसन्नता ज़ाहिर की. साफ है वह शारीरिक स्वास्थ्य को दर्शाने का नहीं पुरुष को ललचाना चाहती रही।  कुछ समय पूर्व एक चित्रकार अपनी 80 वर्ष से अधिक उम्र में एक नारी देहयष्टि को अपने चित्रों में उतार , एक सेलेब्रिटी के लिए अपने उम्र के तकाजे के विपरीत - प्रेम इजहार करने में लगा था। निसंदेह - इस तरह का प्रदर्शन हमारे पूर्व समाज में घटियापन ही माना जाता था।
$ सुंदर -कुछ भी हो अच्छा लगता है , लेकिन प्रदर्शन का उद्देश्य अगर सिर्फ शारीरिक संबंधों को उकसाना हो तो न तो प्रदर्शित करने वाला ठीक है , न ही उसके दर्शक ठीक हैं। क्योंकि इस चलन के बढ़ने के साथ हर किसी की बहन , बेटी या पत्नी के शरीर पर से पुरुष की गंदी दृष्टि की यात्रा संभावना बढ़ती है , जो छेड़छाड़ और दुष्कृत्यों की संभावना बढ़ा देते हैं।
$ बदले समय के साथ अब हम अपनी बहन , बेटी और पत्नी को घर की चाहरदीवारियों में नहीं रख पायेंगे। हमें उन्हें पढ़ने ,मार्केट , व्यवसाय या जॉब को भेजना ही होगा , इसलिए जरूरी यह होगा की बाहर उनका सामना पुरुष की स्वस्थ दृष्टि से हो , ताकि उनका सम्मान और सुरक्षा सुनिश्चित हो।
$ हमें '36 - … -36' के आकर्षण में अपने चाहतों और करनी में ऐसा बेमेल (36) नहीं करना चाहिए। चाहत और करनी में सामंजस्य करना चाहिए। पेज नारी चेतना का अभिप्राय भी रखता है , अतः नारियों को परामर्श है - वे क्या चाहती हैं उसे भली-भाँति विचार में रख उससे मैचिंग (अनुरूप) कार्य करें।
--राजेश जैन
09-04-2015

Tuesday, April 7, 2015

ना दुराचार - ना देह व्यापार

ना दुराचार - ना देह व्यापार
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हर प्राणी प्रजाति में नर-मादा के बीच शारीरिक संबंध हुआ करते हैं। अन्य प्राणियों से भिन्न मनुष्य मस्तिष्क ने समय के साथ इन संबंधों को एक आवरण और व्यवस्थित रूप दे दिया है । इन संबंधों के स्थायित्व के लिए विवाह और परिवार होने की रीति बनाई है । इन संबंधों के साथ परस्पर प्रणय , सम्मान, सुरक्षा, विश्वास और सहयोग की सुनिश्चितता के उपाय किये हैं । विवाह और परिवार में पति-पत्नी के मध्य ये संबंध सहज स्वाभाविक और स्वीकार्य किये गए हैं । भारतीय संस्कृति में इन्हें 'एक के एक से' ,अनुमोदित हैं। अन्य संस्कृतियों में एक के कुछ से मान्य रखे गए हैं। किन्तु सभी संस्कृति में परस्पर प्रणय , सम्मान ,सुरक्षा, विश्वास और सहयोग के साथ ही इन संबंध का अस्तित्व स्वीकृत है। ऐसे संबंधों में जबरदस्ती सभी जगह वर्जित और अपराध है।
ये संबंध इतने सर्वव्यापी और सहज होने के बाद भी , विशेष कर नारी पर जबरदस्ती  होने पर हेय , अपमानजनक और अपराध हैं। जबरदस्ती में  परस्पर प्रणय , सम्मान, सुरक्षा, विश्वास और सहयोग इन भाव के अभाव होने से नारी हृदय अपमानित होता है। विशेषकर भारतीय समाज में इस तरह की पीड़िता पर ही ज्यादा दोष और कलंक मढ़ने की कुप्रवृत्ति , नारी के जीवन को अभिशप्त करती है। कुछ ऐसे संबंध नारी की मजबूरियों को पैसे की कीमत से स्थापित किये जाते हैं। ऐसे संबंध भी समाज में अच्छे नहीं कहे जाते हैं।
आजकल इस तरह की जबरदस्ती के लिए पुरुष यह कहकर दोष नारी पर मढ़ता है कि उनके भड़काऊ कपड़ों ने उसे संबंध निमंत्रण का भ्रम दिया। ये सब बातें अनावश्यक बहानेबाज़ी है , घिनौने अपराध को न्यायसंगत सिद्ध करने की कोशिश हैं। पुरुष , जब नारी को सम्मान, सुरक्षा, विश्वास और सहयोग के बिना और प्रणय आदान प्रदान बिना इसे किसी नारी पर करता है ,तब यह मनुष्य होना नहीं होता है। भारतीय संस्कृति से बाहर की बात भी लें तो जहाँ ऐसे संबंध एक से अधिक के साथ भी वर्जित नहीं किये गए हैं , क्या वहाँ की नारी किसी के भी साथ ऐसे संबंध  उत्सुक होती है ? नहीं , क्योंकि भले ही उनके ऐसे संबंध एक से अधिक से होते हैं , लेकिन जिससे भी होते हैं , उनसे  भले ही पूरे जीवन के लिए प्रणय और सम्मान न मिला हो जीवन के कुछ समय उन्हें यह उस पुरुष से मिलता है।
हमारे यहाँ बढ़ रहे इन नारी विरुध्द अपराध की सख्ती से रोकथाम जरुरी है , और समाज रीतियाँ इस तरह परिवर्तित करने की अनिवार्यता है , जिसमें पीड़ित नारी नहीं - ज़बरदस्ती करने वाले पुरुष का जीवन अभिशप्त होता हो ।  इन दो प्रभावशाली व्यवस्था के साथ ही हम इस बात पर गर्व कर सकते हैं कि हम भारतीय हैं , हमारा समाज और संस्कृति भव्य है एवं पुरुष और नारी दोनों मनुष्य होने से हमारे देश में समानता के जीवन अवसर पाते हैं।
--राजेश जैन
08-04-2015
https://www.facebook.com/narichetnasamman    

Sunday, April 5, 2015

ललचाई दृष्टि

ललचाई दृष्टि
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हम अपने जीवन में आसपास समाज और संसार में लगभग अनंत (अनगिनत) ऐसी वस्तुयें ,प्राणी , और स्थान देखते हैं , जिन्हें पाना , जिनका सानिध्य पाना या जहाँ पहुँचना संभव नहीं होता है।  यह निर्धन और धनवान दोनों एवं अज्ञानी और ज्ञानी दोनों पर भी पर लागू होता है। ऐसे में यह सहज होता है , ऐसी सारी बातों के प्रति  हमारी दृष्टि में ललचाहट आ जाये।
हममें सभी के पास दो विकल्प होते हैं , (प्रथम) हम ललचाई दृष्टि रख जीवन यापन करें , या (दूसरा) ऐसा न करते हुए अपना समय ,ऊर्जा और विचार अपनी योग्यता बढ़ाने में लगायें। यदि दूसरे विकल्प को हम अपना जीवन सिद्धांत बनायें तो हमारी उपलब्धि ऐसी हो सकती हैं , जिनमें तुलनात्मक रूप से हमारे पास वे वस्तुयें ,व्यक्ति और स्थान हों , जिस पर अनेकों की ललचाई दृष्टि रहती है। इसके विपरीत प्रथम विकल्प में जीने वाले के विचार भटकते हैं , ऊर्जा और समय ललचाने में लगा रहता है , वे योग्यतायें उनमें नहीं आने पाती जिनसे कुछ चाहतों की पूर्ती संभव होती हैं।
मुख्य नारी समस्याओं में से एक यह भी है , वे बेखटके सड़कों पर  , बाजार में आधा /एक कि.मी. आ/जा नहीं सकती एवं व्यवसाय में कुछ घंटों नहीं रह सकती जब उन पर अवाँछित कटाक्ष आदि न होते हों। यह नारी समस्या उन्हीं लोगों के कारण उत्पन्न होती है जो ललचाई दृष्टि लिए ही घूमते/जीते हैं। वास्तव में हरेक नारी किसी एक को मिल ही नहीं सकती , लेकिन स्वभाव में लालच आ गया तो , समझ किनारे हो जाती है।
"आकर्षक सी कोई नारी देखी
और उस पर ललचा गए.
स्वयं को कुछ मिला नहीं पर
अपमानित उसको कर गए"
लगभग हरेक व्यक्ति आज , समाज , ज़माना और देश को ख़राब कहता मिलता है। लेकिन यह नहीं समझता है कि अगर ये सब ऐसा (ख़राब) है तो उस में योगदान स्वयं की अतिरेक लालच का भी हैं। ललचाई दृष्टि वाला ही सारी फसाद की जड़ है। लेकिन बहाना एवं दोषारोपण दूसरी बातों पर किया जाता है।
हममें से हरेक को जीवन में बार बार यह विश्लेषण करने की आदत बनाना चाहिए कि तय करें हमें सभी कुछ हासिल तो हो नहीं सकता किन्तु क्या हम हासिल करना ही चाहते हैं। जब ऐसा तय कर लेते हैं तो उसे देख ललचाने के बजाय हम  अपनी योग्यता बढ़ाने के यत्न करें ताकि अपने सपनों में से कुछ हम पूरे कर सकें। अगर हम ऐसा कर सकेंगें तो यही समाज , यही देश और हमारा ज़माना ख़राब नहीं अच्छा होगा।
-- राजेश जैन 
06-04-2015

Friday, April 3, 2015

दूसरे के पिता एवं भाई की दृष्टि

दूसरे के पिता एवं भाई की दृष्टि
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"दूसरे के पिता एवं भाई की दृष्टि , नारी के लिए दोषरहित नहीं होती " आज लिखा जा रहा है जो पहले के समाज में भी अनुभव में रहा है।
भारतीय समाज का उभर रहा नया दृश्य आज धुंधला है , जिसमें तीन तरह के व्यक्ति हो गए हैं।
1.  जो परिवार में आनंद से रहते हैं।
2. जिनके परिवार होते हैं , पर कलह होने से बिखरते और फिर नए साथियों के साथ बनते रहते हैं।
3.  जो परिवार नहीं चाहते हैं।
यह दृश्य अभी 2 और 3 तरह के व्यक्ति तुलनात्मक रूप से कम होने से धुँधला है , कुछ समय में ऐसे व्यक्ति बढ़ जायेंगे तो परिदृश्य स्पष्ट हो जाएगा।
कैटेगरी 1 , के व्यक्ति के लिए भी उल्लेखित प्रथम पंक्ति का वाक्य लागू होता है , किन्तु इसके नारी एवं पुरुष सदस्य इस दोष से सावधान रहकर जीवन यापन की कला जानते हैं।  परिवार को और समाज के अन्य व्यक्तियों को इस दोष से क्षति नहीं हो , इसके स्टैंडर्ड, आचरण और कर्मों में पालते हैं , इसे मर्यादा और संस्कार कहते हैं।
कैटेगरी 2 , के व्यक्ति आज भारतीय समाज में बढ़ रहे हैं , जो विवाह के पूर्व एक से अधि गर्लफ्रेंड /बॉयफ्रेंड रखते हैं , फिर विवाह के बाद भी उन्हीं आदतों को जारी रखते हैं , जिससे उनके परिवार डिवोर्स और पुनर्विवाह से बिगड़ते एवं बनते रहते हैं। इन्हें परंपरागत संस्कार या तो मिले नहीं होते हैं या मॉडर्न और जीवन मजे के प्रचारित शैली से ये मर्यादा और संस्कार उन्हें स्वीकार्य नहीं होते हैं।
कैटेगरी 3 के व्यक्ति वे होते हैं जो ,कैटेगरी 2 के परिवार की कलह और हश्र को देखते हैं। और परिवार में रहना नहीं चाहते , वे भी स्वछँदता ,कैटेगरी 2 की तरह रखते हैं। परिवार बनाने की इक्छा नहीं करते हैं।
"दूसरे के पिता एवं भाई की दृष्टि , नारी के लिए दोषरहित नहीं होती " यह कितना भी अब लिखा जाये और चर्चा की जाए, जब स्वछँदता, आकर्षित करने के लिए आज की पीढ़ी में ज्यादा प्रसारित और प्रचारित की जा रही है , इस दोष का बढ़ना आशंकित है।  अगर हम चाहते हैं ऐसा न हो तो विरोध बुरे पुरुष से ज्यादा बुराई के सोर्स का किया जाना चाहिये।
--राजेश जैन
04-04-2015

Thursday, April 2, 2015

पुरुष होना - पुरुष का प्यार होना , ,क्या है ?

पुरुष होना - पुरुष का प्यार होना ,क्या है ?
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बाल्यावस्था से किशोर होते होते बालक को पुरुष होना अनुभव होने लगता है। कॉलेज आते तक उसे ,प्रचलित गालियों से और आसपास की कानाफूसी और घटनाओं से गलत पुरुषों की सताई नारियों की व्यथा का ज्ञान होने लगता है। एक मनुष्य जो सच मायने में पुरुष होता तब किस तरह गंभीरता से अपनी जीवनशैली तय करता है , एक कल्पना -
>> - कॉलेज स्टूडेंट पुरुष , अपने आसपास की किसी गर्ल्स को किसी पुरुष के छल में उलझती देखता है , उसे पसंद नहीं होता है . वह स्वयं किसी गर्ल के ऐसे साथ में विश्वास नहीं करता है ,जिसमें उसे ज्ञात होता है कि वह स्थाई रूप से उसे निभा नहीं सकेगा।
>> - पुरुष होने से उसके सपने में एक गर्ल तो होती है , जो जरूरी नहीं की अति सुंदर ही हो , लेकिन जो गुणी हो। जो छलों से बचती हो।
>> - यह स्टूडेंट पुरुष , अपनी पढाई में गंभीर रह पहले वैसी हैसियत बनाना पसंद करता है , जिससे सपने की उस गर्ल का जब उसके जीवन में साक्षात आगमन हो तब , उसके साथ जीवन के सच्चे आनंद को वह साकार कर सके । 
>> - वह स्टूडेंट पुरुष जब सफल प्रोफेशनल हो जाता है , तब उसके पास ऑप्शन अनेकों होते हैं , जिसमें अपने विचारों से मेल खाती एक युवती को अपना प्यार का पात्र हेतु चयन कर सके । वह पुरुष इतना अनमोल सा होता है , जिसका प्यार आम नहीं होता है। उस पर एकाधिकार उसका होता है , जो उसकी पत्नी बन कर , अपने माँ-पिता ,भाई -बहन और अन्य परिजनों के साथ से वंचित होकर उसके पास सारे जीवन के लिए साथ आती है।
>> -  पुरुष , अपनी पत्नी के इस त्याग की अनुभूति रखता है। भरपाई में पत्नी को इतना प्यार , सम्मान और प्रगति के अवसर देना चाहता है कि उसकी पत्नी सिर्फ इस बात से जुडी न रहे कि वह पुरुष उसका पति है, बल्कि एक सच्चे पुरुष का सिर्फ अपने लिए अनूठे प्यार का अनुभव कर उसके हृदय के गहराई में प्यार का बंधन मजबूत होता है।
>> - यह पुरुष , जानता है कि पत्नी के माँ -पिता अपनी बेटी के लिए उस सुखी जीवन की आस में रहते हैं , जिसका बहुत अंश तो वह इतना होने पर भी पूरा नहीं कर सकता है।  इसलिए पत्नी पर वह किसी प्रकार के ताने-उल्हाने का प्रयोग नहीं करता है। वह , जो भी कमी घर व्यवस्था में अनुभव करता है , घर का मुखिया होने से अपनी जिम्मेदारी मानकर चुप होता है ,इसे अनुभव कर बिना पत्नी के कहे समझता है और उत्तरोत्तर गृह व्यवस्था में सुधार को तत्पर रहता है। 
>> - दोनों के पवित्र प्यार की परिणीति में एक संतान उनके बीच आती है , तब वह , अपने जीवन की अनिवार्यता स्वतः समझता है। अपने जीवन के महत्व को इनके लिए समझता है , ड्रग्स ,स्मोकिंग - अलकोहल और भी नुकसान देने वाली वस्तुओं से बचाव रखता है।
>> - अपने व्यवसाय /ऑफिस में आती नारियों के आगे -पीछे भी , 'अपनी पत्नी की तरह की परिजन अपेक्षाओं और चुनौतियों'   का स्मरण होने से सहकर्मियों का सम्मान और सुरक्षा का दायित्वबोध रख अपना व्यवहार तय करता है।
यह पुरुष होना होता है और यह  पुरुष का प्यार होता है , जिससे किसी को कोई दुःख ,हानि और शिकायत नहीं होती है।
--राजेश जैन 
03-04-2015

प्यार में फर्क होता है

प्यार में फर्क होता है
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प्यार के व्यापक अर्थ होते हैं , उनमें न जाकर उसी का उल्लेख करते हैं ( हालाँकि प्यार शब्द का मीनिंग ऐसा नहीं है , किन्तु वासनापूर्ती को अभी प्यार कहा जाने लगा है। ) , जो आजकल प्यार कहा जाता है। अर्थात नारी -पुरुष के बीच का प्यार। भारतीय परिवेश में ,ऐसे प्यार में फर्क होता है। पुरुष के प्यार और नारी के प्यार में अंतर होता है।
?? … पुरुष के प्यार में शारीरिक संबंध/अपेक्षा प्रमुख होती है , जबकि नारी -विवाह होने तक बचना चाहती है।
?? … शुरुआत से ही पुरुष प्यार के होने से भय नहीं रखता है। नारी , आरम्भ से ही इस कशमश में होती है , प्रेमी निभाएगा या बीच छोड़ कभी चला जायेगा , अर्थात शादी होगी भी या नहीं।
?? … पुरुष प्यार में गंभीर ही होगा जरुरी नहीं , नारी प्यार में पड़ गई तो गंभीर ही होती है। पुरुष को भय नहीं क्योंकि विवाह हुआ भी तो वह आकर उसके और उसके परिवार के साथ रहेगी। नारी , भयभीत होती है , जिस परिवार में पहुँचेगी - उसे निभाया जायेगा , सम्मान मिलेगा या नहीं।
?? … पुरुष प्यार करेगा तो विवाह कर घर बसाना ही चाहेगा जरूरी नहीं। किन्तु नारी , प्यार करेगी तो यही चाहेगी उसका घर बसे , सम्मान मिले , सुरक्षा मिले और उन्नति के अवसर मिले।  क्योंकि प्यार करने पर धोखे की शिकार हुई तो उसके ये सारी बातें खतरे में पड़ती है , अर्थात घर ,सम्मान , सुरक्षा और उन्नति के अवसर।
?? … क्योंकि बदल गया बहुत कुछ लेकिन अब तक , विवाहित पत्नी से अपेक्षा ,संबंध में वफादारी की ही होती है। पुरुष अपने रसिकपने के कई बहाने कर बच निकलता है।
इसलिए प्यार से अपेक्षायें अलग होने के कारण प्यार में फर्क होता है।
--राजेश जैन
02-04-2015