Thursday, January 31, 2019

प्यार को बेमिसाल देने की जुगत में यूँ खो गए
दौलत को दौड़ भाग में प्यार करना ही भूल गए

कुछ नहीं करे तो - कोई ज़िंदगी गुजरे कैसे
और बात है कि - कुछ करने की जरूरत नहीं होती
भूल हैसियत अपनी ख़ुद सितारा, सितारों की आरजू करता है
आसमां की रौनक जिससे, आसमान पाने की आरजू करता है

Wednesday, January 30, 2019

सब से मिलता मिज़ाज,
करीब उसके होते हैं हम
होती जिसको जो पसंद,
वह जुबान बोलते हैं हम

सब से है प्यार मुझे सब लगते अपने से हैं
सब की है भली सी आरजू सब मेरे जैसे हैं

अब तक ज़िंदगी पर, अपनी जिद चलाता मैं आया
जरूरत न थी, इतनी जिद की अब समझ में आया

Monday, January 28, 2019

उसे मालूम, तुम्हारे लिए फ़िक्रमंद होना तुम्हें परेशान करता है
दिल में दफन रख फ़िक्र तुम्हारी, बेफ़िक्र तुमसे ज़ाहिर करता है 

Saturday, January 26, 2019

जहन में रहे यह बात कि कद्र किसी के होने पर रहे
न रहे कोई फिर कद्र की तब सिर्फ पछतावा ही होगा
1947 तक भारत विशाल होता था जिसके अब तीन टुकड़े हैं।  जब एक भारत था इस के सारे क्षेत्र में सभी बेरोक टोक कहीं भी जाकर रह सकते थे , कहीं भी व्यवसाय या सर्विस कर सकते थे कहीं भी आया जाया करते थे। अब पेशावर या ढ़ाका जाना चाहें तो सौ विचार / औपचारिकतायें और वहाँ से कोई आना चाहे तो वह भी लाचार।
गर हद हम किसी के ऊपर तय करें तो
एक हद खुद हमारे पर भी तय हो जाती है

Friday, January 25, 2019

खुद अपनी खोट दूर करने का ख़्याल आता नहीं
ज़माने को सुधारने की तदबीर तलाशते फिरते हैं

जहन में रहे यह बात कि
कद्र किसी के होने पर रहे
न रहे कोई फिर कद्र की तब
सिर्फ पछतावा ही होगा

Thursday, January 24, 2019

अब ज़िंदगी हुई धन-दौलत की हिसाब-किताब
जब पैसा न था ज़िंदगी ख़ालिश जिया करती थी

Wednesday, January 23, 2019

खँडहर हुईं, उसने बुलंद इमारत देखी थी
इमारत नहीं, उसने हस्ती अपनी बनाई थी 
शुबहा ताउम्र रहे कि हैं कोई जो हमारे हैं
इससे बेहतर ज़िंदगी में और क्या होगा

बुरे वक़्त ने दिखाया है कोई किसी का नहीं होता गुजरे वक़्त ऐसे, बुरा न आये तो बेहतर ज़िंदगी में और क्या होगा

कहते हैं प्यार से, तुम हमें जान से ज्यादा प्यारे हो जायें ऐसे कि शुबहा कायम रहे तो बेहतर ज़िंदगी में और क्या होगा

कहते हैं तेरे लिए आसमां से तारे तोड़ ला सकते हैं नौबत न आये तुम्हें रुलायें तो बेहतर ज़िंदगी में और क्या होगा

तुम कहते हो मैं शायरी में बात कह नहीं सकता न हो शायरी पर बात कह जायें तो बेहतर ज़िंदगी में और क्या होगा

सच्चा था किरदार मेरा, तुम देखना न चाहते थे छिपा लिया मैंने तुमसे, तो देखने को आतुर हो


Tuesday, January 22, 2019

#मेरा_बेलाग_खुलासा

#मेरा_बेलाग_खुलासा

मैं बेवक़ूफ़ हूँ ज़िंदगी का क्रिकेट ,बिना विकेट कवर कर खेल रहा था. आशय यह कि बहुत सी बातों के बीच संतुलन बनाये हुए जीवन जीना होता है.जिसमें मैं विफल रहा हूँ.  मैंने इंजीनियरिंग की, आजीविका हेतु जनसेवा का विकल्प चुना. मैं 1 योग्य युवक माना गया. अवस्था जनित कुछ अनुभूतियाँ खुद में थीं. प्यार की कोपलें हृदय में तो पहले ही फूट चुकीं थीं, लेकिन इंजीनियरिंग कोर्स के दबाव में वे जीवन उमंगे दबी हुईं थीं. यथासमय  मेरा विवाह हुआ मैं भाग्यशाली इस तरह रहा कि विकल्प में उपलब्ध एक श्रेष्ठ लड़की का चयन कर लेने की बुध्दि मिली थी, साथ ही उस और से भी सहमति हुई थी. यहाँ तक तो सब ठीक था लेकिन विभागीय कार्य संस्कृति बहुत अच्छी नहीं थी. अगर आप शुध्द कर्तव्य निर्वहन में विश्वास रखते हैं तो आप पर कार्य के मानसिक दबाव इतने अधिक बनाये जाते हैं कि आप शाम को घर वापिस होने पर भी, तनाव मुक्त नहीं हो पाते हैं. आजीविका बनी रहे इस हेतु विभागीय कार्यों में इस कदर लिप्त हुआ कि परिवार माँ-पापा,  पत्नी , बच्चों और सभी के मनोविज्ञान तथा अपेक्षाओं पर विचार करने की फुरसत नहीं निकाली, साफ़ था कि जीवन असंतुलित तरह से चल रहा था. कुछ कर्तव्य अति सक्रियता से निभा रहा था किंतु पारिवारिक / सामाजिक दायित्व निर्वहन में सरासर विफल/निष्क्रिय सा रहा था. बाहरी वातावरण बहुत स्वस्थ तरह का नहीं लगा तो बेटियों को कोचिंग/ट्यूशन के लिए नहीं भेज हम दोनों ही गाइड किया करते थे. पत्नी को बच्चों के मनोविज्ञान का भलि-भाँति ज्ञान था वह तो अपनी भूमिका से पूरा न्याय करती लेकिन गणित और विज्ञान मिडिल तथा बाद की क्लासेज के लिए मेरे विषय हो गए. पहली पँक्ति में लिखा बेकवूफ होने की पुष्टि यहाँ करता हूँ कि तनावग्रसित दिमाग में यह समझने की योग्यता नहीं थी कि बच्चे की समझ और मेरे जैसे युवक की समझ में अंतर होता है, मैं समय अल्पता में इतना व्यग्र रहता कि यह समझने की चूक करता कि बच्चे (विशेषकर बड़ी बेटी) सरल सी चीज समझ क्यों नहीं रहे हैं. जबकि वह चीज मेरे जितनी सरल उनके लिए उस समय हो नहीं सकती थी. चिल्लाचौंट  इतना मचाता कि मेरे सामने बेटी डरी सहमी रहती थी.
खैर साहब एक बात अच्छी थी जिस तरह सूर्य की प्रखरता से किसी पौधे को झुलसने से बचाने के लिए कोई सरित प्रवाह उसे सिंचित रखता है उसी तरह मेरी प्रचंडता से बचाव हेतु बच्चों की 1 कुशल गृहिणी, सुगढ़ माँ (#माँ_महान) परिवार में मौजूद थी. साथ ही बच्चों को सदाशयता को प्रेरित करने के लिए और उनका उत्साह बढ़ाने के लिए दादा/दादी का मार्गदर्शन भी उपलब्ध था.  जिसने बच्चे रुपी नन्हें पौधों को मेरी उग्रता के ताप से झुलसने से बचाये रखा.
इस बीच मेरी बेवकूफियों में कुछ कमी आई मैंने यह रियलाइज किया कि तनाव ग्रसित दिमाग की अपेक्षा प्रसन्न चित्त दिमाग ज्यादा एफ्फिसिएंट परिणाम देते हैं. बच्चों के बड़े होते होते मैं उनसे मित्रवत हो गया. इस का सुखद परिणाम हमारे परिवार को मिला, जो बेटी स्कूल में अच्छा परफॉर्म नहीं कर सकी थी, उसने पोस्ट ग्रेजुएशन में स्वर्ण पदक प्राप्त किया.जाहिर है मैं मूर्ख था उनके बचपन में उन्हें वह शैक्षणिक उपलब्धियों को अर्जित करते देखना चाहता था , जिसे अर्जित करने में अपने लड़कपन में मैं स्वयं नाकामयाब रहा था.
बाद में स्व अनुभव से प्रेरित मैंने अपने विभागीय व्यवहार में भी अपने मातहत के साथ परिवर्तन ला लिया कि
"एक तनाव ग्रसित दिमाग की अपेक्षा प्रसन्न चित्त दिमाग ज्यादा एफ्फिसिएंट परिणाम  देता है"
देखना यह है जीवन में और तरह की मूर्खताओं का क्रम कब तक चलता है. अभी तो ऐसा प्रतीत होता है मूर्खताओं का आठ आजीवन रहने वाला है.

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
23-01-2019

Monday, January 21, 2019

#मेरा_बेलाग_खुलासा

#मेरा_बेलाग_खुलासा

आज समझ नहीं आता स्वयं पर हँसू या रो लूँ, मैं. ठंड के मौसम होते,रचना रसोई में जो बनातीं उस सब और 1 चटाई लेकर मैं सपरिवार ऊपर छत पर आ जाता. छोटे, भोले से अपने बच्चों को इसे पिकनिक पर आना बताता. अपने मूर्खता भरे इस काम को अच्छा ठहराने के लिए मैं रचना को यह कहता कि बच्चों के सामने लेविशली खर्च  करने से वे घर परिवार के प्रति कम जिम्मेदार बनेंगे. मुझे रचना यह भान नहीं होने देतीं कि मेरी इस प्रकार की दलीलों से वे सहमत हैं भी या नहीं? 
खैर जीवन तो चाहे जैसा बिताया जाए, कहलाता जीवन ही है. समय बीता और एक प्रश्न मेरे सामने खड़ा कर गया कि क्या मैं पापा और पति होने कि पात्रता रखता भी था या नहीं? मुझे लगता है बिना पात्रता के मैंने बहुत सी भूमिकायें निभाई हैं. और इस प्रकार आधे-अधूरे से अपने कंधों पर जिम्मेदारी लेकर परिवार और समाज के प्रति एक मानवीय अपेक्षा से न्याय कर सकने में मैं विफल रहा हूँ. सीख यह जो मुझे देर में मिली कि - 
"गर जिम्मेदार नहीं, ना बनता मैं पापा 
बच्चों का क्या दोष जो गोद मेरे आये थे"

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
22-01-2019
उससे जीत कर हमें कुछ हासिल करना नहीं
जिसके हाथों हार हेतु हमने सिर नवाया था

क्या जीत लिया खुद की हैसियत बना कर हमने
लोग हताश ग़मगीन थे और हम कुछ न कर सके

जिसने जन्म लिया यहाँ, उनमें बेचारा कौन नहीं
किसी को पसंद दिखाना, किसी को बेचारा दिखना पसंद नहीं

आईने का कोई गुनाह नहीं
देखने वाली गर नज़र दुरुस्त नहीं

Sunday, January 20, 2019

#मेरा_बेलाग_खुलासा

#मेरा_बेलाग_खुलासा

मेरे चित्त में समय समय पर यह प्रश्न उत्पन्न हो जाता है कि मेरे जीवन का महत्व दूसरों के लिए क्या है? मुझे निजी सुख और भोग विलास की कामना रखने में कोई औचित्य नहीं दिखाई देता कि इन बातों की कोई इंतहा नहीं होती. परलोक एक रहस्य होता है, मुझे वह सुधरे इसकी कोई चिंता नहीं कि मैं परिस्थितियों के साथ समन्वय बनाने का पक्षधर हूँ. मुझे लगता है कि जो भी परलोक मेरे लिए होगा उससे सामंजस्य मैं बना लूँगा. ना बनाने का किसी के पास कोई विकल्प भी नहीं होता. अतएव मेरा चित्त कहता है जीवन उतना ही दीर्घ हो जितना कि इसका महत्व दूसरों के लिए कुछ बना हुआ रहे. इन्हीं सब विचारों के बीच अपनी कोई न कोई उपयोगिता या भूमिका मैं खोजता रहता हूँ ताकि जीने के प्रति मेरा मोह बना रह सके. मैं आत्महत्या का विचार नहीं रखता , सहज जीवन जितना होगा उसे पूरा करने का आकाँक्षी भी मैं हूँ. 

तमाम इन तथ्यों के साथ, आजकल एक ख्याल आ रहा है कि क्यों ना मनोविज्ञान में एम ए  की उपाधि के लिए पठन करूँ. इससे एक कॉउंसलर या मेंटर की भूमिका मैं ले सकता हूँ. आज जीवन हैं जो अवसाद और समस्या ग्रस्त हैं, जिनकी सहायता करने के कार्य से इस समाज को 'स्वस्थ मन' का समाज बनाने में योगदान कुछ मेरा भी हो सके. जैसा कुछ विव्द जन मानते हैं वैसा ही मेरा भी मानना है कि -

"ख़ुद जिम्मेदारी होने से बेहतर , समाज जिम्मेदारी लेना है"

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन 
21-01-2019

इश्क़ वह नहीं रहा नींद उड़ाया करता था
'रिवाज़ ए ज़िंदगी' बुरे हैं जो सोने नहीं देते

यूँ ही बर्बाद करने की वज़ह हुईं
दुनिया में अनेकों चीज़
इंसानियत से जी सके कोई
ज़िंदगी को फ़ुरसत नहीं रही 

Saturday, January 19, 2019

पल पल इक ख़्वाब की वजह हो तुम
ज़िंदगी में मिठास जिससे कायम है

Friday, January 18, 2019

#नजर कोई जब किसी में #तारीफ देख पाती है
#तारीफ़ मुझे तब उस #नज़र में समझ आती है

बहुत हैं जिनकी #नज़र में नाचीज़ हूँ मैं
जानता यह भी कि कुछ में #अजीज़ हूँ मैं

हमें नाचीज़ समझते वे #अजीज हैं किसी के
#नज़र है ये इसलिए हम मुरीद हर किसी के

औकात कोई बताये उससे बेहतर ये 
कि हद हम अपनी खुद तय कर लें 

Tuesday, January 15, 2019

किसी का अपना बनाकर मुझे मजबूर यूँ करना था
खुदा तू कैसा अपना है मुझसे यूँ बदला क्यूँ लेता है

यहाँ मेरे अपनों की मजबूरियाँ अनेकों हैं
जहां वह कैसा है अब देखेंगे वहाँ जाकर


Monday, January 14, 2019

नहीं हसरत कोई, हम औरों से बेहतर बनें
है हसरत मगर, सब हमसे बहुत बेहतर बनें

इंसानियत अदा करने ज़िंदगी ने
दिया वक़्त कुछ हमें कि
तू जहां रोशन कर दे
गँवाया वक़्त हमने रोशन चिराग बुझा कर

इत्र से हमने खुद को महकाया, कभीं नहीं
इक हसरत खुद शख्सियत महके, हावी रही

न तुम बदले होते ना ही हमें बदलना होता
दुनिया को मोहब्बत का सुबूत मिला होता

एक दूसरे से मोहब्बत का दावा दोनों ही किया करते थे
एक बदल गया तो दूसरे ने मोहब्बत की शर्तें बदल दीं


Saturday, January 12, 2019

अपनी हस्ती को मैंने जमीं पर रखा
गिरा कई बार मगर सलामत मैं रहा

इक हसरत मेरी, शोहरत तेरी आसमां छू ले
औ इल्तजा खुदा से, कि टिकाये उसे रख दे

शिक़वा मैं कोई ज़िंदगी से नहीं करता
मेरी ज़िंदगी मेरे खुदा की दी नेमत है


Thursday, January 10, 2019

नहीं रिश्ता उससे - उसकी फ़िक्र रखते हैं
रिश्ता ए  इसांनियत  - उससे हम रखते हैं

तेरा प्यार हावी है इस कदर अब मेरे मन पर
तू प्रेरणा है लफ्ज़ औ मुस्कान की मेरे लब पर

उन्हें मोहब्बत से शिकवे, मोहब्बत को बेचैनी का सबब कहते पाया
मोहब्बत से की मोहब्बत जब हमने, ज़िंदगी का सबब इसमें पाया

खफ़ा बहुत हैं वो मगर ख़्वाब उन्हें ले आते हैं
जीने को सहारा बहुत कि ख़्वाब में वे आते हैं

उनसे है मोहब्बत, हमने दी आज़ादी उन्हें जहाँ चाहे मिलने आने की
ज़माने की बंदिशें पर, देतीं इजाज़त बस उन्हें ख़्वाब में चले आने की




Friday, January 4, 2019

नारी समस्या के समाधान के सतही प्रयास ..

नारी समस्या के समाधान के सतही प्रयास .. 

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अगर यह कहें कि नारी जीवन में समस्याओं के समाधान के जो भी प्रयास अब तक किये गए हैं वह सतही ही हैं इसमें तनिक भी अन्योक्ति नहीं होगी। ठीक वैसे ही जैसे धरती पर उग गया विषैला पौधा छटनी कर दिया गया हो।  नारी विरुध्द अपराध की रोकथाम के कानून , नारी के लिए दैनिक जीवन में सावधानी के परामर्श या बाह्य खतरों से बचने के लिए उनका घर से कम निकलना और पर्दों और बुरकों के पीछे छिपे रहना यह सब सामान्य परिस्थितियों में ही पर्याप्त सिध्द होता है। असामान्य परिस्थिति जैसे कौमी दंगे , बाहरी देशों के आक्रमण आदि में, दुश्मन में पुरुषों से अधिक नारी को लक्ष्य किया गया है, सुबूत में देखें इतिहास में अनेकों घटनायें मिलती हैं। करीबी इतिहास पर ही दृष्टि डालें तो देश के विभाजन, श्रीमती इंदिरा गाँधी हत्याकांड के बाद भड़के दंगे,  गोधरा कांड के बाद के दंगे आदि देखने मिलेंगे जिसमें (जिसे माना) दुश्मन उसे बेइज्जत , उस पर दबाव बढ़ाने , उसे सुरक्षात्मक रहने को बाध्य करने की नीयत से (साथ ही अपनी कुत्सित हवस की पूर्ति के लिए) उनकी औरतों पर दुराचार (और अनेकों पर इस सीमा तक यौन शोषण जिसे बर्दाश्त न करने पर वे मारी गईं हैं), हत्या आदि उदाहरण बहुतायत में मिलते हैं। 
विडंबना यह है कि जब जब ऐसे हालात पैदा हुए हैं , उसे उत्पन्न करने के लिए कभी कोई नारी नहीं पुरुष ही जिम्मेदार रहे हैं। साफ़ है हर कौम ने अपने आक्रोश में शिकार अपने दुश्मन नस्ल की नारी को बनाया है, जो कसूरवार कभी नहीं थी। ये ही घटनायें हैं जिसने विवशता में परिवार, समाज और धर्म में मनुष्य को उस मानसिकता के लिए विवश किया जिसके रहने से बेटे और बेटी की जन्म से, आजीवन तक की परवरिश और उसके जीवन यापन की पध्दति ही बिलकुल अलग कर दी गई है। यही मानसिकता कारण रही है कि समान मनुष्य होने पर नारी और पुरुष समानता से नहीं देखे जाते हैं। और नारी अभिशप्त सा जीवन जीने को बाध्य होती है। इसलिए यह लेखक नारी उन्नति के सारे उपायों को सिर्फ नारेबाजी करार देता है और अब तक दिमाग में उत्पन्न उपायों को सतही का विशेषण देता है। 

(जारी ... )
--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन 
05.01.2019

Wednesday, January 2, 2019

तकल्लुफ़ करते उन्हें देख हैरत में हैं हम
कि क्या तख़ल्लुफ़ है जो हमने कर दिया

उनकी कमी को क्या देखें हम - बहुत कमी हैं हममें भी
बावज़ूद उनने - हमें दिल में बसा औ सिर पर बैठा रखा है 

Tuesday, January 1, 2019

नितांत अकेलापन अनुभव हो तो
घबराने की जरूरत नहीं
देखता है यह वक़्त हर कोई
इससे छुटकारा किसी को नहीं