Monday, April 30, 2018

रेप पर मज़हब या धर्म का आज उठता सवाल कैसा
रेप , नारी से पहले उसने अपने मज़हब पर किया है

रेप पर मज़हब या धर्म का आज उठता सवाल कैसा
रेप , नारी से पहले उसने अपने मज़हब पर किया है

कोई धर्म किसी पर रेप को कभी अप्रूव नहीं करता
फिर मज़हब रेपिस्ट का निष्कासन क्यूँ नहीं करता

इक मजहब की बेटी के रेप का बदला दूसरे की बेटी पर ले करते हो
नारी पर ऐसे एक के बाद एक और अत्याचार का सिलसिला करते हो

देश में ख़ुशहाली के लिए - बैर-नफरत को खत्म करना होगा
हममें हरेक को - एक गैर मज़हबी घर का हितैषी बनना होगा




 

Sunday, April 29, 2018

सौ साल पहले दुनिया में और लोग थे
वे, उनके किये अच्छे-बुरे इतिहास हुए हैं
आज हम सभी-कल कोई और होंगे
कर सके अच्छा तो-हम यादगार होंगे

सौ साल पहले दुनिया में और लोग थे
वे, उनके किये अच्छे-बुरे इतिहास हुए हैं
आज हम सभी-कल कोई और होंगे
कर सके अच्छा तो-हम यादगार होंगे


इस तरह न पढ़ें इतिहास कि हम आक्रोश से भर जायें
ख़ूनख़राबा पढ़ें और मरने-मारने का इतिहास दोहरायें

इस नज़रिये से हम पढ़ें कि - प्रेरित सृजन को हों
विध्वंस की नहीं हम - सृजन कि हम यादगार हों

मैं तुम्हारी ज़िंदगी को मेरे नज़रिये से देखने को नहीं कहता
मैं तुम्हारे नज़रिये से ज़िंदगीं को देखने की कोशिश करता हूँ


ज़िंदगी में खुश रहने के तुम्हारे अपने तरीक़े हैं
मेरे तरीक़े से ज़िंदगी जियो तुम कहना मुनासिब नहीं

बेशक़ , ज़िंदगी में - खुश तुम और ख़ुश हम रहें
औरों की ख़ुशी रौंद कर - बस , हमें ख़ुशी न मिले





 

Saturday, April 28, 2018

चाहिए नहीं किसी को कुछ किसी से - नफ़रत क्यूँ रखें
थोड़े परिचित बाकि अज़नबी - बस अज़नबीयत ही रखें

लंबी दूरी तय कर आगोश में खोने आई थी सरिता , समंदर के
आ मिली तो देखा कि कई सरितायें समाई हैं आग़ोश में , उसके

मिठास थी शीतल प्रवाहित आँचल में सरिता के
समंदर से मिलकर सरिता वह मिठास गँवा बैठी

माँ तो माँ है - गर्भ में अपनी बेटी को मार नहीं सकती
दुष्ट मगर दुनिया - स्वाभिमान से उसे पाल नहीं सकती

हम हर चर्चित किस्से - व्यक्ति की समालोचना करने लगते हैं
कभी नहीं खोजते अपने में संभावना कि खुद चर्चित हो सकते हैं

वक़्त का शुक्र - मिटटी का मैं , मुझे ऊँचा उठाता है
थका वक़्त तो - इक दिन मुझे मिटटी में मिलाता है

करना ठान ले तो अपंगता भी बाधा नहीं
जिजीविषा असंभव को संभव बना देती है
नारी जीवन में अपने चुनौती उठा उठा के
हुई सक्षम , असंभव भी करके दिखा देती है

ऐतबार जो तोड़ दे उससे शिकायत कैसी
होती इंसानियत तो वह तोड़ता ही क्यों

चाहत जिससे - उसकी ख़राबी हम माफ़ करते हैं
वजह यही - खराबियों ने ज़िंदगी में जगह ली है

इज्ज़त बचा पाना ही मुश्किल हो जाये
ऐसे समाज में भला नारी कैसे जी पाये















 

Friday, April 27, 2018

#जबरदस्ती
ज़िंदगी हमारी है मगर
इसे जीना - मर्जी से तुम्हारी है

बाहर तुम - खतरे नारी की ज़िंदगी पर उत्पन्न करते
खतरों का बहाना ले के - घर में शर्तें ज़िंदगी पर थोपते


बेटी तो है - माँ के दिल का सुकून
सासु माँ के दिल का भी - बने सुकून

अपना क़रार माँ ने - तुम्हें बेटी दे सौंप दिया
सासु माँ ये क्या किया - उसे नासूर करार दिया

कभी तो सिर्फ चेहरा देखने से मिला करता है - तुम्हें सुकून
क्या होता फिर जान भी रख दें - तुम्हें मिलता नहीं सुकून

चलो थोड़ी ख़ुशी से अकेला जिया जाए..
दिल दुखाने वालों को शर्मिंदा किया जाए


 

Thursday, April 26, 2018

बेशक तू खेल ले मेरी खुशियों से , ए ज़िंदगी
कुछ ख़ुशियाँ हैं नसीब - तेरे होने से मिलती हैं

बेशक तू खेल ले मेरी खुशियों से , ए ज़िंदगी
कुछ ख़ुशियाँ हैं नसीब - तेरे होने से मिलती हैं

ज़िंदगी - तेरा दोष नहीं कि हम ख़ुश नहीं रह पाते
हमारी कमी कि हम - मिले गमों से नहीं उबर पाते

गमों की क्यों शिकायत करें हम तुमसे , ए ज़िंदगी
कभी-जभी कुछ ख़ुशियाँ तुम उदार हो - हमें देती हो

अज़ीब तकाज़ा - खुद खुश रहना चाहती हो
तुम छोड़ ग़मगीन - हमें भुलाना चाहती हो

गम ए ज़िंदगी हमें यूँ तो कुछ हैं नहीं
मगर तकाज़ा बहुत बातों का रखते हैं


आरज़ू नहीं कि बहुत जगह किसी के दिल में हमारी रहे
आरज़ू मगर कि जितनी भी मिले जगह हमें - अच्छी हो

हमें देख जिनकी आँखों में शंका हुआ करती थी
बहुत है अब उनके होंठों पर मुस्कान हुआ करती है

हमें देख - जिनकी आँखों में शंका हुआ करती थी
बहुत है - अब उनके होंठों पर मुस्कान हुआ करती है

बाँध के हम रखें किसी को - हम ऐसे नहीं , मगर
तारीफ़ हमारी तब - बिन बंधन के कोई हमसे बँधा रहे

दरअसल भाषा विकास प्रगतिशीलता की द्योतक है
किंतु खराबी हममें है - अच्छी चीज का प्रयोग भी हम बुराई से करते हैं

दिल में मोहब्बत थी
इसलिए -
तन्हा भी हम खुश थे








 

Wednesday, April 25, 2018



सब मुल्कों से नेक है भारत
नागरिकों के नेक होने से मुल्क नेक होता है - हम नेक होंगे तो मुल्क़ नेक होगा

दोषारोपण - भारत पर नहीं
अगर भारत अच्छा नहीं लगता तो समझो हम अच्छे नहीं हैं - दोष हमारा है

ग़र जला दो आशियां मेरा - हम फिर नया बसायेंगे
विध्वंस से अच्छा सृजन होता - साबित कर दिखायेंगे

एहसान जब जताता है कोई - उस लम्हें पर खेद होता है
उस एहसान करने वाले का - जब एहसान लिया होता है

व्यक्ति जो करोड़ों के लिए पूज्यनीय था
कामुकता की कितनी बड़ी सजा है - अब पीढ़ी पर कलंक जाना जाएगा


जीवन का वरदान था सुशोभित मैं - करोड़ों की आस्था पर था
ये कैसी चूक मैंने की - अब जीवन मेरा चुकता कारावास में है

अगर आसाराम होते - क्या वह आस्था पर मिले विशेषाधिकार को खोना पसंद करते??
शायद हम इसे बहुत जिम्मेदारी का दायित्व मानते


 

Tuesday, April 24, 2018

अगर हम प्रचलित से कुछ अलग ढंग से नहीं जीते तो वह ढर्रे में जीना है
हमें जीवन प्रयोग की तरह जीना चाहिए ताकि जीवन के नए आयाम खोज सके

अगर हम प्रचलित से कुछ अलग ढंग से नहीं जीते तो वह ढर्रे में जीना है
हमें जीवन प्रयोग की तरह जीना चाहिए ताकि जीवन के नए आयाम खोज सके

पारिवारिक रिश्तों में अपेक्षायें खटास लाती हैं
इन्हें सरल रहने दें - जिससे जो सहज बन पड़ा वह दूसरे के लिए कर दे , बस



तुम्हें , भुला देने की नाकाम एक कोशिश है
जीवन को आसान करने की सिर्फ कोशिश है


मालूम कि हम - तुम परस्पर भ्रम ही साबित होंगे
लेकिन भ्रम अभी तोड़ दें तो - जीना मुहाल होगा

ज़िंदगी अजीब कि टूटे कोई भ्रम तो दूसरा ढूँढती है
जबकि टूट जायें सारे भ्रम तो ज़िंदगी की जरूरत नहीं







 

Monday, April 23, 2018

किसी को दिया कुछ तो - कभी हाथ से निकल जाएगा
दी ख़ुशी तो - वह खुशगवार पल यादगार बन जायेगा

किसी को दिया कुछ तो - कभी हाथ से निकल जाएगा
दी ख़ुशी तो - वह खुशगवार पल यादगार बन जायेगा

अच्छा व्यवहार देने में - ज्यादा कुछ नहीं लगता है
मगर आज ज़माना - इतना भी कहाँ ख्याल रखता है

अपने लिए तो चाहिए ख़ुशी - दूसरे के देने में हिचकता है
ख़ुशी देने-लेने की मानवीय परंपरा - खत्म स्वयं करता है

अपने अपने पूर्वाग्रहों में - सब घुसे बैठे हैं
सबसे समझदार हम ही - सब मान बैठे हैं

अपने पूर्वाग्रहों में कैद हैं - हम कोई आज़ाद नहीं
औरों के गुण ग्राहकता के लिए करते - कोई बात नहीं

ज़िंदगी को हराना हो तो - आप मिसाल कुछ ऐसी बनिये
ज़िंदगी बाद भी - सबके दिलों में खुशनुमा याद बन रहिये

हमारे पक्ष में आएगा - तब ही वह न्याय कहा जाएगा
ये सोच न्यायसंगत नहीं है - जरूरी नहीं कि हम सदैव सच्चे ही होंगें

अच्छे विचार प्रसारित अवश्य होने चाहिये
इंसान होने को उत्सुक - वे अच्छी प्रेरणा ग्रहण कर सकते हैं

हमारी किसी के प्रति चाहत - निशर्त होनी चाहिए
ताकि उसकी ख़ुशी में हमारी शर्तें रुकावट न बनें

किसी के प्रति हमारी चाहत - स्वतः जन्म लेती है
किसी के कहने से - चाहत हो पाना संभव नहीं है

चाहत हमारी तो - शर्त की जबरदस्ती ठीक नहीं
क्या उसने कभी कहा है कि - हम उसको चाहें






















 

Sunday, April 22, 2018

परिकल्पना - ईश्वर और मज़हब

परिकल्पना होती ही वो चीज है - जिसके झूठ होने का प्रमाण नहीं होता। अलग अलग क्षेत्र , अलग अलग काल के लोगों ने मज़हब के बारे में , ईश्वर के बारे में अलग अलग परिकल्पनायें बनाई , जिन्हें आज के कट्टरपंथी (घोर अंधविश्वासी) एक दूसरे के जानी दुश्मन होकर निभा रहे हैं। और इन्हें बरगलाने वाले स्वयं को सच्चा धर्मगुरु बता रहे हैं या राजनीति करके इसे सत्ता सुख हासिल कर लेने का उपाय बना रहे हैं .
--rajesh chandrani madanlal jain
23-04-2018


जुदा तो 'बेचारे' हम होंगे ही
जब तक का साथ उनके काम आ जायें
जुदा तो 'बेचारे' हम होंगे ही
जब तक का साथ उनके काम आ जायें

भरोसा करने वाला अंधा नहीं - इंसान होता है
भरोसा तोड़ देने वाला - इंसान नहीं होता है

बहुत कह चुके - अब खामोश रहने को दिल करता है
सवाल मगर तुम्हें - मेरी ख़ामोशी पढ़ने को वक़्त होगा???

ख़ुद जीने की ललक तुम रखते हो
फिर किसी को तुम मारते क्यों हो ???

तुम निभाओ ना अपना मज़हब
दूसरों के निभाने में दखल देते क्यों हो ???

फेयर कॉपी यदि हम होते - दिखाने के बस होते
रफ़ कॉपी हम हुए - कि सीखा इसी में जाता है

बिकता ख़राब है - बेबस वह
इसलिए लिखता - ख़राब है

अपना लिखा - हम बेचना नहीं चाहेंगे कभी
खरीदार नहीं मिलेगा कोई अलहदा बात होगी

इंसानियत बिकाऊ नहीं होती
भलाई बिकाऊ नहीं होती
चंद सिक्कों में बिकता ज़मीर कि
नहीं जानते मिसाल बिकाऊ नहीं होती

वक़्त का पता नहीं चला
और ऑफिस का वक़्त हो चला








 

Saturday, April 21, 2018

ग़र मर के वहीं पहुँचे - जहाँ से चले थे हम
समझ कि ज़िंदगी भर का ऐसा चलना - व्यर्थ गया

ग़र मर के वहीं पहुँचे - जहाँ से चले थे हम
समझ कि ज़िंदगी भर का ऐसा चलना - व्यर्थ गया

चल शुक्रिया तेरी बेवफ़ाई का भी - हम अदा करते हैं
जितने वक़्त वफ़ा दिखाई - उतना तो ख़ुशी में गया

चलना बहुत है - भ्रम युवावस्था को रहता है , मगर
थोड़ा ही चलते तब - जिंदगी तमाम होते दिखती है

#आदत_से_लाचार
धन ही बटोरता रहूँ - फिर खाली हाथ चला जाऊँ
इस मूर्खता को जीने का - मन तो नहीं होता है

आने और जाने पर वश - नादान का नहीं चलता है
इसका है खेद मगर - जो वश में वह भी नहीं करता है

मुद्दा नहीं कि - धन-वैभव या प्रतिष्ठा तुम अर्जित करो
मुद्दा यह है मगर - तुम ज़िंदगी को तो होश में जियो

बड़ी विकट यह ज़िंदगी - हर पल सवाल खड़ा करती है
रहम नहीं ज़िंदगी को कि - मासूम है जबाब जानता नहीं

पसंद जो बातें - दिल में वही रखना अच्छा
नफ़रत रखी थी - तब बहुत गड़ा करती थी

अच्छाई से जी लिया तो समझो - हर पल जीवन का रत्न है
लेके कोई जा न सका - जो बिखेर गया उसका जीवन रत्न है

कड़वा यदि तुम्हें होना पसंद - औषधि सा बनो
तुम्हारे विचारों के सेवन से - उपचार हो जाये

दौलत अपनी सारी वह उसके नाम करेगा - शर्त उसकी है
कि अपने नाम वही करवाए - जो साथ ले जा के दिखलाये














 

Friday, April 20, 2018



परमसुख परोपकार में ,कर्तव्य में , त्याग में जान नहीं पाते हैं
भोजनसुख , मानसुख और कामसुख भ्रम में जीवन जी जाते हैं

परमसुख परोपकार में ,कर्तव्य में , त्याग में जान नहीं पाते हैं
भोजनसुख , मानसुख और कामसुख भ्रम में जीवन जी जाते हैं

सुख के भ्रम हैं जो सुख नहीं - उन्हें सहज जीना अच्छा
भ्रम सुख हासिल के लिए - छल-कपट ना करना अच्छा

हमारे अच्छा या बुरा कुछ भी किये का दूरगामी प्रभाव होता है
कुछ भी करते हुए हमें इसका विवेक विचार सदा होना चाहिए

हर आशंकित डर हक़ीक़त होता नहीं
हर उम्मीद दुनिया में पूरी होती नहीं
ज़िंदगी हरेक को मिलती यहाँ अनोखी
एक की नकल कभी दूजे में होती नहीं
 
मत हो हताश की ज़िंदगीं से कुछ उम्मीदें दिल में रह गईं
तसल्ली से बैठ सोच ले कि क्या क्या हकीकत बन गईं

अजीज़ दिखने वाले कभी बदल भी सकते हैं
गुंजाइश रखें कुछ अन्यथा टूट हम सकते हैं
 

Wednesday, April 18, 2018

नेमत

नेमत ..

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अमीना जी अचानक बीमार हुईं , शौहर घर पर नहीं थे। हम सामने पड़े या हममें उन्हें अपना खैरख्वाह दिखा यह हमें मालूम नहीं लेकिन उन्होंने हमें याद किया। उनकी मुश्किलात में हम काम आ सकेंगे या नहीं , खुद हमें पता नहीं था। किंतु सवाल नेकी का था . हमसे जो बन पड़ा हमने किया। हम नज़रिये से नारी हितैषी थे , हम उनकी मुश्किलों से दिल में करुणा रखते थे , हमें नारी पर ज़ुल्म या उनकी बेइज्जती सख़्त नापसंद थे। जब जब उनपर शोषण या उनके अरमानों का गला घुटते हम देखते हम बेइंतहा दुःखी होते थे। अमीना जी का बीमारी से दर्द लिया चेहरा , उस पर शौहर बिना चार बालिकाओं की फ़िक्र , और इन सबके कारण उनके दिल पर पड़ रहा बोझ , हमें उस दिन दिखा। उस दिन तय किया उनके लिए , उनके बच्चों के लिए अगर हम कुछ करने के मौके पा सके तो हम जरूर करेंगें।

खैर बिना जल्दबाजी के हम सहज दिनचर्या में रहते रहे। हालात कुछ ऐसे खुद ही तब्दील हुए। हमें और उनके परिवार में करीबी के मौके आ गए। जी हाँ , हमारे लिए ख़ुशी की बात अवश्य है , किंतु हमें सजग इस बात के लिए रहना है कि मौकों का प्रयोग इंसानियत को पुष्ट करने में लगाना है। हम दो बिलकुल ही भिन्न सम्प्रदाय से हैं . हम पर जिम्मा है कि हमें अपने अपने मज़हब को अपने अपने कौम को नेक साबित करना है.

हमें यह मिसाल पेश करना है कि हम अपने अपने मज़हब के दायरे में रहते हुए भी परस्पर सौहाद्र और मोहब्बत से ख़ुशहाल रह सकते हैं। हम दिलों में किसी के लिए नफ़रत रखने के बजाय मोहब्बत रखते हुए - मिली इंसानी ज़िंदगी की नेमत का बेहतर प्रयोग करते रहें . जब जाने का समय आये तब  इस दुनिया से इतनी बड़ी क़ायनात में कहीं और के लिए रुखसत कर सकते हैं।
हमें साबित कर देना है कि -

"हर इंसान की ज़िंदगीं , और इंसानों की ज़िंदगी को मदद पहुँचाने के लिए मिली होती है। इंसान से नफरत नहीं मोहब्बत के लिए मिलती है।" 

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
19-04-2018

ख़ैरख़्वाह

जुबां से मीठे वह होते हैं
जिनका दिल कटु बोलों से छलनी हुआ होता है


ख़ैरख़्वाह बनें , दग़ा दे जायें ऐसी मेरी ताशीर नहीं
मेरी ज़िंदगी चार दिनों की , हमेशा की जागीर नहीं

ख़ैरख़्वाह बनें , दग़ा दे जायें ऐसी मेरी ताशीर नहीं
मेरी ज़िंदगी चार दिनों की , हमेशा की जागीर नहीं


ग़र मुस्कान पसंद चेहरों पर तो - आप ये जान लीजिये
कोई मुस्कुराता तब है - जब भलाई उसकी हम करते हैं

तोड़ा जिसने मुरझाने पर फेंक दिया - वह हमारा कैसे होता
हिफ़ाजत करता उम्र तक खिले रहने देता - वह हमारा होता

अभी खिले हैं हम - सब अपना अपना हमें बताते हैं
कल मुरझायेंगे तब देखेंगे - कितने पास रह जाते हैं


ख़िल कर जब खूबसूरत हुए - ख़ुश्बू लेने वाले मिलते रहे
देख आहत हुए हम कि उन्हें - नई नई ख़ुश्बू चाहिए थीं

उन्हें सूंग फेंकता था कोई - वे आहत बहुत होते थे
मगर वे दुष्ट इतने कि
किसी को यूज़ एंड थ्रो करने से खुद उन्हें परहेज नहीं
 

आज बिगड़ गए दिमाग़ के भीतर का प्रोग्रामिंग कोड का एक छोटा सैंपल

आज बिगड़ गए दिमाग़ के भीतर का प्रोग्रामिंग कोड का एक छोटा सैंपल -
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धर्मस्थल से बहुत शोर हो रहा है - चेक ,देखो a. मंदिर है कि b. मस्जिद
पड़ोस का घर कोई खरीद रहा है - चेक ,कौन है a. हिन्दू या b. मुस्लिम
इंटरकास्ट मैरिज हो रही है - चेक देखो लड़की a. हिंदू है या b. मुस्लिम
रेप एक महिला पर हुआ है - चेक देखो रेपिस्ट a. हिंदू है b. मुस्लिम
कोर्ट का डिसिशन आया है - चेक देखो a. हिंदू के पक्ष में है या b. मुसलमान के

अगर केस a है तो मुस्लिम इकट्ठे हो दंगा करें , यदि केस b है तो हिंदू मिल दंगा करें
#बहुत दिन हुए कुछ अशांति हिंसा नहीं हुई। सरकार चलाने/बनाने में फ़ायदा लेना है।
--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
18-04-2018
 

Tuesday, April 17, 2018


विषय - समाज संस्कृति से नफरत मिटाने का है
धूर्त - क़ौमी दूरियों में अपना फ़ायदा देखते हैं

विषय - पुरुष का नारी पर अत्याचार का है
धूर्त - उसे कौमी नफरत का विषय बनाते हैं

नज़रें आसमानी जन्नत के तसव्वुर में यूँ गड़ाई है
जमीं पर बढ़ती नफ़रत की खाई देख नहीं पाई है

हम अगर मेंटर हैं तो ऑडियंस युवा और बच्चे होने चाहिए
जिनके दिमाग़ी प्रोग्राम दुरुस्त होने से भविष्य सुखद होगा

हमें तो आज़ाद हिंद में अच्छे रिवाज ख़त्म मिले
अब तो बच्चों के लिए ख़ुशहाल भविष्य चाहिए है


'आसिफा पर रेप' और 'तीन तलाक़' अलग अलग समस्या हैं
नारी को कंफ्यूज नहीं करें - उसे जीने को जिंदगी-परिवेश दें

बड़े स्तर पर परोपकार के लिए बहुत हाथों की जरूरत होती है - सभी हाथ परोपकारी नहीं हैं
अपने हाथों से संभव छोटे छोटे परोपकार हमें करने चाहिए

 अब नारी पर्दे में है या नहीं - यह बात जाने दो
अब अपनी हवस , अपनी नज़र पर बस पर्दा करो तुम

धिक्कार नीति-विहीन राजनीति - जिसने आसिफा पर रेप तक को
सत्ता की दाल पकाने के लिए हंडिया में रख आग पर चढ़ा दिया

फिक्र दिखाये बिना - हमारी फ़िक्र करते हो
दिखाते नहीं अपनापन - होते मेरे अपने हो


 

Monday, April 16, 2018

अँधेरा कहता है - तुम मुझे दूर भगाओ
हो दम तो - तुम चिराग़ बन दिखलाओ

सभी एंगल से विचार सहित , कर्म करने वाला
कभी कुकर्मी ,धोखेबाज या भ्रष्ट नहीं हो सकता
सभी एंगल से विचार सहित , कर्म करने वाला
कभी कुकर्मी ,धोखेबाज या भ्रष्ट नहीं हो सकता

आठ वर्ष की किसी बालिका पर रेप करने वाला
अपनी बेटी पर रेप की कल्पना बस तो कर लेता

कुकर्म का चलन चला - कायर इतना बनता है
खुदकी बेटी जन्मने - साहस उसे नहीं होता है

व्यभिचार तो समाज में अपवाद रूप हमेशा होता था
सिने इंडस्ट्रीज के सेलिब्रिटीज ने इसे आम कर दिया

अपने निकृष्टम स्तर पर हम पहुँचे हैं
भारतीय या किसी के अपने नहीं हम
दलित-सामान्य , हिंदू-मुसलमान
या हममें नारी-पुरुष के भेद हैं

रेप के बाद मारी गई - अबोध का चेहरा बोलते लगता है
मिली थी ज़िंदगी जीने के लिए मुझे- तेरी हवस ने मार डाला है

फिल्मों से हमने - धन प्रतिष्ठा बनाली
राजनीति से हम - धन-शक्ति संपन्न बन गए
हमारे गलत कारनामों की नकल कर
तुम भाड़ में जाओ - हमें क्या

मेरी इंसानियत की परीक्षा तब होती
जब मुझ पर ऐतबार किसी का होता है

अपने मुहँ मियाँ मिठ्ठू बनते रहे नेता 
देश की छवि क्या हुई मतलब नहीं रहा
मिल गई सत्ता - मिल गई दौलत-नाम
होते रहे समाज बदनाम - मतलब नहीं रहा

गंदा चेहरा नक़ाब में रख लेते - इंसानियत कुछ बाकि रह जाती
बेशर्मी छा गई अब इतनी कि - बदनीयती शान में बयां करते हैं

उसका गंदा चेहरा - ये उजागर करते
उनका गंदा चेहरा - वे उजागर करते
उजले होते - ये और वे
तो अपने चेहरे की बात करते

दरिंदे से इंसान बनने की दिशा में चलते - भूल गए कि थमना कहाँ है
दरिंदे से इंसान हुए थे हम मगर - फिर दरिंदगी की दिशा बढ़ गए

हवस ने दरिंदा होना आसान कर दिया
इंसान होने के लिए मुश्किलात बढ़ा दीं


कुछ भी बनें हम - हर्ज कोई नहीं मगर
पैदा हुए इंसान तो - इंसान बन के तो दिखलायें




 


बलात्कारी की अबोध बेटी बोली
 पापा , जेल नहीं होती आपको
 आठ साल की मैं भी हूँ
 आप बलात्कार मुझ पर कर लेते

सुन शर्म से वह बलात्कारी गड़ गया
ऐसी ही बेटी मेरी , कैसे मैं भूल गया

वासना में हुआ अंधा यह देख नहीं पाता है कि
दिल का टुकड़ा होगी मासूम अपने माँ-पापा की

गर्भ में मारा नहीं था आपने - यह अहसान याद था हमें
बलात्कार कर हमें मार देते - अहसान हम पर चुक जाता
 

सोसाइटी को कौन और कैसे परिवर्तित किया जा सकता है ?


सोसाइटी को कौन और कैसे परिवर्तित किया जा सकता है ?
कंप्यूटर के नये युग में हम सब जानते हैं , कंप्यूटर - असेंबल्ड हार्डवेयर्स और उसमें इन्सटाल्ड सॉफ्टवेयर्स से कार्य करता है .हार्डवेयर इसकी फंक्शनिंग में अहं रोल प्ले करते हैं , किन्तु किसी कम्प्यूटर सिस्टम से ज्यादा महत्वपूर्ण और त्वरित रिजल्ट का निकलना उसमें इन्सटाल्ड सॉफ्टवेयर पर निर्भर करता है। हम सभी यह भी जानते हैं कि सॉफ्टवेयर प्रोग्राम की दो केटेगरी होती हैं , एक प्रोग्राम दूसरी वायरस प्रोग्राम। वायरस प्रोग्राम , सिस्टम को स्लो , मैलफंक्शन करता है , और कभी सिस्टम को क्रैश भी करता है। इस भूमिका से आरंभ करते हुए यह बताने का प्रयास है , कि हमारा समाज भी कम्प्यूटर की तरह का सिस्टम है।

समाज एक कम्प्यूटर हार्डवेयर है इसमें रहते मनुष्य के मस्तिष्क वह यूनिट हैं जिसमें सॉफ्टवेयर इन्सटाल्ड होते हैं। प्रश्न ,जब सही करने का है , तो हमें यह मानना होगा , आज हमारी सोसाइटी सही नहीं है। इसका कारण भी वही है ,जो कम्प्यूटर में होता है ,सॉफ्टवेयर प्रोग्राम वायरस इंफेक्टेड होते हैं। जी हाँ , मनुष्य मस्तिष्क में इन्सटाल्ड सॉफ्टवेयर , उसके विचारों में वायरस का अटैक है , जो विवेक बुध्दि को इंफेक्टेड करता है। जिससे उसके आचरण , व्यवहार और कर्म , ऐसे नहीं रह गए हैं , जिनसे एक अच्छी सोसाइटी बनती है।

जरूरत 1. सर्वप्रथम , अपने मस्तिष्क को इंफेक्शन फ्री करने की है। इंफेक्शन फ्री मस्तिष्क वाला मनुष्य ही संपर्क में आये अन्य मनुष्य के मस्तिष्क पर इंफेक्शन का खतरा नहीं होता है।
2. दूसरे - इंफेक्शन फ्री होकर हमें दूसरों की प्रेरणा बनना है , ताकि वे भी प्रेरणा को एंटीवायरस की तरह रन कर के , अपने मनोमष्तिस्क को वायरस फ्री कर सकें।
जब ऐसे लोगों की संख्या अधिक हो जायेगी , हमारी सोसाइटी अच्छी हो जायेगी। हमें व्यवस्था /सरकार /न्यायपालिका की कार्यप्रणाली पर किसी प्रकार की शंका नहीं करनी चाहिए .यह विश्वास हर किसी पर करना चाहिये कि जो परिवेश है , जो परिस्थितियाँ हैं वे उनमें अपनी योग्यता से अच्छा से अच्छा करने का प्रयास करते होंगे. हमारा प्रयास अपने कर्मों से अपने आचरण से उदाहरण बनकर दूसरों की सही सोचने की प्रेरणा बनने के होने चाहिए।

हमारे सम्मुख ऐसी मिसाल हमारे पूर्व राष्ट्रपति स्व. श्री एपीजे अब्दुल कलाम ने रखी है। एक साधारण परिवार में जन्म लेकर , अपने को असाधारण बनाया , सारा जीवन राष्ट्र को समर्पित करके , इस समाज को अच्छा करने का यत्न किया। आप में , हममें भी वही प्रतिभा सोई हुयी है , जो उनमें जागृत रही थी। अपने सामर्थ्य की अनुभूति कर अपने में बदलाव लाकर हम अनेकों को बदलने का क्रम आरंभ कर सकते हैं।  रहते हैं , जिसमें उस सोसाइटी को अच्छा रख सकते हैं।

Sunday, April 15, 2018




मोहब्बत की हसरत सबकी - पर मोहब्बत सच्ची कहीं नहीं
मोहब्बत करने की नहीं - मेरे अनुसंधान का विषय हुई है

मोहब्बत होती तो आठ साल की बेटी की मौत - राजनीति नहीं बनती
मोहब्बत होती तो समाज में नारी सम्मान से जिया करती

मेहबूब से मोहब्बत ना मिले - फिर भी दिल की सम्हाल करें
औरों की जरूरत दुआ - दिल सलामत तो दुआयें रख सकतें हैं

मरने की क्यों बात करें - मर तो हमें जाना है
भलाई की वह बात करें - जग जिससे बेगाना है

निरुपाय मतदाता है - राजतंत्र ही ला लो
व्यर्थ राजनीति - जिंदगी तो नहीं लीलेगी




 

Saturday, April 14, 2018

बिखर रही ज़िंदगी भी जीकर दिख लायेंगे
ज़िंदगी हम तुझसे शिकायत न कर पाएंगे

गुलशन उसने बदला - हमें मनाने अब नहीं आता
गलतफ़हमी में न रहे - हमें मनाने वाले और भी हैं

होती है हसरत कि - ज़िंदगी मोहब्बत में साथ गुजरे
पर ना मिली मोहब्बत - तभी हम कारनामे कर सके

बार बार हताश करती है - फिर नई उम्मीद जगती है
ज़िंदगी चीज ही कुछ ऐसी - जीने के लिए मिलती है

क्या जताया जाता है? - चूड़ियाँ पहन लो , कहकर
कि चूड़ियाँ पहनने वालियाँ - निकम्मी हुआ करती हैं???

गुलाब की खूबसूरती खुशबू ने - सबका दिल लुभाया है
काँटें हुए बदनाम - जिनकी चुभन ने गुलाब बचाया है

गुलाब की खूबसूरती खुशबू ने - सबका दिल लुभाया है
काँटें हुए बदनाम - जिनकी चुभन ने गुलाब बचाया है




 

Wednesday, April 11, 2018

एहसान किया जाना -  खालिस एहसान होना चाहिए
निज स्वार्थ की मिलावट - कतई नहीं होना चाहिए

एहसान किया जाना -  खालिस एहसान होना चाहिए
निज स्वार्थ की मिलावट - कतई नहीं होना चाहिए

नई पीढ़ी की ज़िंदगी ज्यादा है - ख़ुशी से जीने के लिए
उन्हें देश-समाज में ख़ुशहाली लानी होगी - अपनी सोच दुरुस्त करनी होगी


पुरखे ख़ुशहाली में गुजर नहीं कर सके - उन कारणों को खत्म करना होगा
जो भूल पुरखों ने कीं - उन्हें ही जारी रखना ठीक नहीं होगा

मशीन ख़राब हो तो - उसे ठीक करा लेते हैं
सोच ख़राब हो गई - उसे ठीक करते क्यों नहीं??

तय है कि
औरों को ख़ुशी से यदि जीने नहीं देंगे
तो ख़ुद हम ख़ुशी से जी नहीं सकेंगे

फ़िजा ही बिगड़ गई जब - मौसम का मिज़ाज असर नहीं करता
ख़ुशमिज़ाज रहने के लिए - फ़िजा ठीक करने का जिम्मा लेना होगा







 

Tuesday, April 10, 2018

शंका , हम पर तुम्हारा करना वाज़िब है कि
ज़माने ने नारी का ऐतबार बेदर्दी से तोड़ा है

शंका , हम पर तुम्हारा करना वाज़िब है कि
ज़माने ने नारी का ऐतबार बेदर्दी से तोड़ा है

अपने जज़्बात हमारे लिए - आप दिल में ज़ब्त रखो
कौमी नफ़रत का बहाना न बनें - चाहत रूहानी रखो

कहे का भी ग़लत
सिर्फ हँस देने का मतलब भी ग़लत
निकाल लेता है ज़माना
चुप रहने को मजबूर कर देता है ज़माना

तसव्वुर में जाना-आना था
कहीं न कोई बंद दरवाजा था
फ़िक्र सलामती की लेकर
प्यार का इक आशियाना था

ज़माने की न फ़िक्र कहते हुए भी हम
ज़माने से अलग होते नहीं हम
ज़माने को ग़लत कहते हुए भी हम
ज़माने में ही शामिल होते हैं हम

रुत जाने - आने का सिलसिला चलते रहे बदस्तूर
मिली है ज़िंदगीं - जीने का जज़्बा तो रखना होगा






 

Monday, April 9, 2018

नये परिचय बढ़ाने के पीछे विचार नयापन के लिए होता है
चाहते हैं नया जानना , अनुभव करना जो हमें नहीं होता है

नये परिचय बढ़ाने के पीछे विचार नयापन के लिए होता है
चाहते हैं नया जानना , अनुभव करना जो हमें नहीं होता है


फिर सुबह होती है
नित उलझना उन्हीं बातों में होता है
फिर रात आती है
क्या ऐसे ही बिता दोगे जीवन प्रश्न पूछ जाती है

चुनौतियाँ अलग अलग हम सब अपने अपने जीवन में देख रहे
अपनी सरल करने के लिए - औरों की ज़िंदगी को चुनौती दे रहे

 

Sunday, April 8, 2018

भले ही हम प्रत्यक्ष जिम्मेदार नहीं हैं - किसी ख़राबी के लिए
किंतु यदि देश और समाज ठीक नहीं तो - समस्या हमारी ही है

भले ही हम प्रत्यक्ष जिम्मेदार नहीं हैं - किसी ख़राबी के लिए
किंतु यदि देश और समाज ठीक नहीं तो - समस्या हमारी ही है

बेहद गरीब , अपढ़ या मंद बुध्दि - यदि हम नहीं तो
हमें अग्रणी भूमिका लेनी होगी - भली परंपरा रखने में

जिसे पसंद नहीं करते उसके हजार गुण - हमें नज़र नहीं आते हैं
और जिसे पसंद करते उसके अवगुण भी गुण - हमें नज़र आते हैं






 

Saturday, April 7, 2018


हमें ख़ाक तो मौत करती है , इश्क नहीं
इश्क़ तो हसीं नियामत होती है , ज़िंदगी की

हमें ख़ाक तो मौत करती है , इश्क नहीं
इश्क़ तो हसीं नियामत होती है , ज़िंदगी की

औरों को परखना छोड़िये - परखना है तो ख़ुद को परखिये
कोई और इंसान क्यों न बना छोड़ - ख़ुद इंसान तो बनिये

उनकी आहट - उनके आने का सिलसिला बदस्तूर कायम रहे
इस ज़िंदगीं से हमारी - उनके अलावा बची कोई चाहत नहीं

जब से अपने दिल में - उनके अरमानों को जगह दी हमने 
बड़ा था दिल हमारा - फिर भी जज़्बातों को जगह न बची

तुम्हें जो मोहब्बत होती हमसे 
नफ़रत फिर हमसे  होती कैसे??

नफ़रत किसी दिन - मोहब्बत में बदल सकती जरूर
मगर है मोहब्बत तो - कभी नफ़रत हो नहीं सकती

तक़लीफ़ कोई किसी को हमसे नहीं होगी यूँ कि हम
औरों के गिरेबां से पहले अपने गिरेबां में झाँक लेते हैं

ज़ब गिरेबान में अपने झाँक लिया हमने
औरों के गिरेबां में झाँकने की आदत जाती रही

हमने किसी से शिकायत इस तरह करना छोड़ दिया कि
अपनी का मालूम पर उसकी क्या हैं - पता हमें होता नहीं

खामियाँ हम में देखने से पहले - नज़र अपने पर तुम डाल लेना
गुरुर तुम्हारा टूट न जाए - न कहेंगे कि हममें ख़ासियत क्या हैं





 

चल जहाँ तू हमें ले जाना चाहती है ....

चल जहाँ तू हमें ले जाना चाहती है ....
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इक दिन हम मर जाते हैं। अनुमान है कि जब हम मर रहे होते हैं तब यदि होश में हुए तो ख्याल होता है कि कुछ वर्ष और जीते तो यह देख लेते - वह कर लेते ! किंतु कुछ वर्ष और मिलते और बाद फिर मरने का दिन आता है तब भी हमारा और जीने का मन फिर हो जाता है. ऐसे ना चाहते हुए भी हम एक दिन मर ही जाते हैं. यह जीवन यह दुनिया बहुत मन मोहक होती है। लेकिन विचारणीय बात यह है कि जिस दिन हम मरते हैं तब भी - उसके बाद यह सृष्टि (क़ायनात) अनंत समय के लिए कायम रहने वाली होती है। दुनिया अपने नित बदलते स्वरूप में भी हमेशा मनमोहिनी ही रही आती है. हमें मरने के बाद भी यदि -
1. अनंत वर्षों के लिए शेष जब यह दुनिया छोड़नी ही है, तब मरते वक़्त कुछ वर्षों के और जीवन की कामना रखते हुए , क्यों मरना??
2. अनंत वर्षों तक के निरंतर कायम रहने वाले मन लुभावन , में से थोड़े से मंजर और देखने की ललक क्यों करना??
3. एक ठीकठाक क्षमता के साथ जी ली उम्र में कर लिया जो उसके बाद अक्षम (मरते वक़्त हम बहुत फिट नहीं रहते हैं) होकर कुछ और वर्षों में हम बहुत कुछ तो कर सकते नहीं हैं , फिर क्यों और करने की कामना रखके मरना ??
4. जीवन कुछ वर्षों का और यह संसार अनंत वर्षों का है जीवन में कुछ भी देख लिया - कुछ भी कर लिया हमने तब भी वह दुनिया में जितना होगा उसकी तुलना में नगण्य ही होता है. ज़िंदगी में हासिल इसी दुनिया से - मरने पर छोड़ना इसी दुनिया में - तब अपने-पराये का इतना भ्रम क्यों रहे हमें ???
सब तथ्य चिंतन में रखते हुए - जितना छोटा या बड़ा है , हमारा मिला जीवन उसके हर क्षण को हम आनंद से जियें। जितने अधिकतम संभव हैं उतने मन चाहे हम कार्य करलें। जितना देख सकें - उतने को पूरे मन से देखलें हम। हाँ अवश्य इस सब में हमसे न्यायप्रियता अपेक्षित होती है. 
अनंत शेष रह जाने वाली बातों में थोड़ा और थोड़ा और की कामना हम त्याग दें। जब आये मौत सामने तो उसके कंधे पर अपनी बाँह डाल हम कहें उससे कि चल जहाँ तू हमें ले जाना चाहती है ..... 
--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
08-04-2018

Friday, April 6, 2018

प्रचार-प्रसार तंत्र पर जिनका बोलबाला - महान वही दिखते हैं
वास्तविक जो महान दायित्व निभाते - साधारण ही दिखते हैं

प्रचार-प्रसार तंत्र पर जिनका बोलबाला - महान वही दिखते हैं
वास्तविक जो महान दायित्व निभाते - साधारण ही दिखते हैं

काले हैं कारनामे वे - आज पथ प्रदर्शन करते हैं
अंधश्रध्दा में पाखंड का - हम अनुकरण करते हैं

कोई दिखा रहा हमें देश विकास का सपना
कोई दिखा रहा ग्लैमरस जीवन का सपना
क्षमतायें अपनी भूल रहे हम सम्मोहनों में 
व्यर्थ कर रहे अनमोल मानव जीवन अपना

ये हमसे ज्यादा जानते हैं - इन्हें पढ़ो , इनसे समझो , इनसे सीखो
भ्रम है - धनी,प्रतिष्ठित या लोकप्रिय होना विव्दता की पुष्टि नहीं करते

थोड़ा मगर सच्चा ज्ञान हमसे ज्यादा एक बच्चे का होता है
जो अंधश्रध्दा अंधविश्वास और धूर्तता आदि से दूर होता है

हम पढ़ लिख कर ज्यादा जानने समझने लगे हैं लेकिन
इसका प्रयोग हम अपनी भ्रम उन्नति के लिए कर रहे हैं





 

Thursday, April 5, 2018

अपनी अपेक्षा पूरी न होती हमसे तो - बुरा कहते हैं हमें
हमारा अपने हितों को समझना - इसमें बुरा क्या है ??

अपनी अपेक्षा पूरी न होती हमसे तो - बुरा कहते हैं हमें
हमारा अपने हितों को समझना - इसमें बुरा क्या है ??

सुधररहे संबंधोंमें जल्दबाज़ी-उतावलीसे अतिक्रियाशील होना उचितनहीं
बिगड़तेसंबंधोंमें बचाव केलिए शीघ्रता से क्रियाशील होना उचित होताहै


मिलने की इजाज़त देगी ज़िंदगी तो - आपसे जरूर मिलेंगे
मग़रूर कोई नहीं होता - बस वक़्त कभी सिकंदर होता है

जिसे पा नहीं सकते - उससे भी प्यार रखने में कोई रोक नहीं
दिल विशाल होता है - पूरी दुनिया के लिए प्यार रख सकते हैं

अपना होना या बनाना - कभी एकपक्षीय नहीं होता है
अपना किसी का बन जाना - आचरण पर निर्भर होता है



 

Wednesday, April 4, 2018

मै कौन हूँ?? (नारी संस्करण)

मै कौन हूँ?? (नारी संस्करण)
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मैं एक जानवर की तरह ही प्राणी हूँ - जिसकी मूल आवश्यकता मात्र जल, वायु एवं भोजन है। इतने पर ही मैं भी जानवर की तरह ही एक नियत उम्र तक जीवित रह सकती हूँ। किंतु मैं जानवर नहीं हूँ - कि मैं
1. मैं जन्मती तब हूँ - जब गर्भ में भ्रूण रूप में ही मार नहीं दी गईं हूँ ।
2. मैं पूर्ण आयु जीती तब हूँ - जब में दहेज अग्नि में जला नहीं दीं गईं हूँ या मुझ पर बलात्कार कर मुझे मार डाला न गया हो.
3. मैं एक ऐसी मनुष्य हूँ जिसे मर्यादा और जान पर खतरा बता कर - घरों में और अतिरक्त वस्त्र लबादों (पर्दे , हिज़ाब) में पाबंद कर दिया जाता है . और विडंबना यह कि जो पुरुष मुझ पर यह बोझ लादते वे ही बाहर मेरी तरह की नारी की जान और मर्यादा के दुश्मन होते हैं।
4. मैं वासना के जाल में यदि फँस जाऊँ तो कलंक मुझ पर ही आता है , मेरे जैसा ही मनुष्य (कामुक) एकाधिक संबंध रख उसे मर्दानगी की डींग की तरह प्रचारित करता है .
5. मैं मनुष्य होकर भी मुझे मंजिल तय करने की आज़ादी नहीं , मेरी मंजिल घर-परिवार-मजहब की दीवारों के भीतर ही सिमटती हैं.
जब मनुष्य विकास नहीं कर सका था तब भी शोषित मैं ही थी - अब कि सभ्यता में मैं आधुनिक तब ही कहलाती हूँ - जब पुरुष कामुकता के लिए अपने को सहज प्रस्तुत करूं . मेरा शोषण तब भी था और अब भी है। मुझ पर मर्यादायें थोपने वाले पुरुष ने अपनी कामुकता में नारी गरिमा को तार तार कर दिया है - पुष्टि के लिए देखिये मुझे किस विकृत कामुक रूप में कैमरों में उतार - नेट/मीडिया और सिनेमा में पेश कर दिया गया है।
--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
 05-04-2018

मै कौन हूँ??

मै कौन हूँ??
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मैं एक जानवर की तरह ही प्राणी हूँ - जिसकी मूल आवश्यकता मात्र जल, वायु एवं भोजन है। इतने पर ही मैं भी जानवर की तरह ही एक नियत उम्र तक जीवित रह सकता हूँ। किंतु मैं जानवर नहीं हूँ - क्योंकि
1. मैं जन्म लेते ही घर-परिवार में पाला-पोसा जाता हूँ।
2. मैं जानवर नहीं कि मुझे वस्त्र , पढ़ना-लिखना , मोटर गाड़ियाँ और वैभव आदि की जरूरत होती है.
3. मैं उस परिवार से - एक धर्म ,भाषा एवं देश की पहचान में सीमित कर दिया जाता हूँ.
4. जानवर के संघर्ष तो प्रमुखतया भोजन को लेकर होते हैं , लेकिन मेरे इनके अतिरिक्त - मान-प्रतिष्ठा , मजहब , भाषा और राष्ट्र इत्यादि को लेकर होते हैं.
5. मैं जानवर नहीं कि - मुझे एक नाम चाहिए होता है और एक सामाजिक छवि की भूख होती है.
6. मैं जानवर नहीं कि - मैं मुक्त यौन संबंध रख सकूं - मुझे मर्यादा का विचार रखना होता है.
7. मैं जानवर नहीं कि - मुझे मंजिल की चाह होती है.
8. मैं जानवर नहीं कि - मुझे परलोक और स्वर्ग-नर्क का विचार होता है।
और भी अनेक कारणों से जानवर , मनुष्य से ज्यादा स्वछंदता से जीवन जीता है. ज्यों ज्यों हम विकसित हुए हैं - त्यों त्यों अपने पर संकीर्णता ओढ़ते चले गए हैं.
--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
05-04-2018
 
सिर्फ स्वहित में प्रयोग किया जाना - ज्ञान का अधूरा होना है
उसे परहित में भी लगाना - ज्ञान की पूर्णता का परिचायक है
सिर्फ स्वहित में प्रयोग किया जाना - ज्ञान का अधूरा होना है
उसे परहित में भी लगाना - ज्ञान की पूर्णता का परिचायक है

 

Monday, April 2, 2018

तुझे जिसकी पड़ी है - उसे किसी और की पड़ी है
इस पड़ी-पड़ी में - दोनों की ज़िंदगीं निकल पड़ी है

तुम साथ थीं मेरे - ज़िंदगी इसी से लगती थी
अब नहीं तुम हो - मैं कैसे इसे ज़िंदगी कहूँ


कैसी है जिंदगी - मेरी ज़िंदगी में तुम ज़िंदगी बन आईं थीं
अब कैसे कहूँ ज़िंदगीं - जिसे मजबूरी में बिन तुम्हारे जीना है


तुम्हारे जाने से हृदय में मेरे - इक खालीपन बस , बस गया है
मैं बताऊँगा दुनिया को - जीवनसंगिनी का होना क्या होता है??

क्या होती है जीवनसंगिनी - होने पर उनके तुम जानते नहीं
आके ज़िंदगीं में - अपनी हसरतें तुम्हारे दायरे में सिकोड़ लेती हैं

होती हैं प्रतिभायें उनमें अपनी - पर तरजीह तुम्हें देती हैं
मगर
घमंड में तुम्हें अपने - उन पर मज़ाक और ताने सूझते हैं

सीमित साधनों में भी - जो घर व्यवस्थित तुम्हें दिखाई देता है
कोई जिन्न नहीं करता - यह जीवनसंगिनी का कमाल होता है

तुम कमाऊ हो - इतना ही महत्वपूर्ण नहीं होता
ताने-गुस्से में सबके - उनका निभा देना महत्व होता है

करलो उनका आदर - इतना आदर - त्याग तुम्हारे लिए रखती है
जानते बनते उनके समक्ष शेर - बाहर बिल्ली सी तुम्हारी हस्ती है 




 

Sunday, April 1, 2018

यह समय मधुर साथ का - बीत जाएगा
तेरा चला जाना - मीठी याद बन सताएगा

दुल्हन सुंदर क्यूँ लगती है?
उसके हृदय में सुंदर जीवन सपने होते हैं
 पत्नी से ऊब क्यूँ होती है?
उसके सुंदर सपने दम तोड़ चुके होते हैं


तलाश कोई , इक मंजिल है - जिसकी खातिर हम सफ़र करते हैं
मंजिल मिले ना मिले - मिली ज़िंदगी का सफर हम तय करते हैं

साथ ये जब तक - हम बाँट खुशियाँ जी लें
बाद साथ में सीखे से - दुनिया रोशन कर दें

मेरा साथ खोकर - तुम कभी खेद करना नहीं
ज़िंदगी तुम्हारी जब तक - परहित छोड़ना नहीं

सबकी अपनी प्राथमिकतायें - अपनी स्वार्थ अभिलाषायें हैं
राष्ट्र विकास , समाजहित से - किसी का कोई सरोकार नहीं

इमेज बनाने की हसरत रखने से बेहतर - भाई
बेहतर काम अंजाम देना - इमेज ख़ुद बन जाएगी 

सेल्फ़ी की इमेज - देखने की फुरसत ख़ुद हमें नहीं होगी
भले काम से बनी आपकी इमेज - जमाना कभी देखेगा

ज़माना याद करे ना करे - फ़िक्र करना नहीं कभी
ज़िंदगी में हमसे भले काम हों - फ़िक्र करना सभी

ज़माना याद करे ना करे - फ़िक्र करना नहीं कभी
ज़िंदगी में हमसे भले काम हों - फ़िक्र करना सभी










 
ख़ून बहा बहा कर - ब्लड बैंक से ख़ून ख़रीदने जाते हैं
ब्लड बैंक के खून में - क्या हिंदू-मुसलमां लिखा होता है

यह हिंदू - मुसलमान सवाल बार बार क्यों उठ खड़ा होता है
जब अपने-अपने घर में - हम पड़ोसी अपनी ख़ुशी से रहते हैं

अपनी औलादें पैदा करते हो - क्या बेमौत मारे जाने के लिए
ग़र ज़बाब न है - औरों की औलादों को बेमौत मारते क्यों हो

प्रकृति , संस्कृति और प्रगति दिशाओं के विपरीत चल के
ख़ूनख़राबा में मज़हब और इंसानियत का हित ढूँढ रहे हैं




 

#SHAADI_MEIN_ZAROOR_AANA

#SHAADI_MEIN_ZAROOR_AANA
एक बेहतरीन साफ़ सुथरी सी मूवी है , कम देखीं हैं ऐसी हिंदी मूवी -
1. दहेज़ के विचार पर घात करती है।
2. बहन बेटी के पढ़ लिख सकने की योग्यता भी रेखाँकित करती है।
3. अपने ही आस्तीन में छिपे बैठे अपने फ्रेंड्स भी सावधान होने पर संकेत करती है।
4. अपने अहं में हमारा प्यार खो सकता है , यह संभावना भी दर्शाती है।
बावजूद इन सबके अच्छी मूवी में भी छिपी रहती ख़राबी जिससे हमारा सिने इंडस्ट्री पर हमेशा प्रहार करने का मन होता है , वह न लिखना हमारी मौलिकता के साथ अन्याय होगा।
इस शानदार मूवी में भी फ़िल्मकार अपनी धूर्तता से बाज नहीं आया है -
5. उसने नायिका की एक बार शराब पीने की तमन्ना फिल्मा दी , उसे शराब पीते हुए दिखाया।
6. उसे एक दृश्य की माँग जैसा चित्रित करके एक लिप किस करते हुए दिखा दिया।
हमारी अपेक्षायें , देखो भाई फिल्मकार -
7. हमारा दर्शक मानसिक रूप से बहुत कुशाग्र नहीं है , मूवी में यह देख स्कूल कॉलेज की लड़कियाँ ऐसे पीने की हसरत और लिप किस का14. शौक लगा सकतीं हैं।
8. हमारे समाज का बहुत बड़ा वर्ग अभी भी अपनी बहन , बेटियों - पत्नी आदि में ऐसी बातें होना स्वीकार नहीं करता है।
तुमसे प्रश्न -
9. कोई अच्छे पैकेज में भी ज़हर भरकर पेश कर देने की धूर्तता तुम कब छोड़ोगे ??
10 क्यों शराब (डिंक्स) के व्यवसायियों का बिज़नेस प्रोमोट कर समाज में खराबी बढ़ाने में अपनी हिस्सेदारी करते रहोगे??
11. क्यों उन बहन - बेटियों को विवाह पूर्व संबंन्धों में लिप्त हो जाने को दुष्प्रेरित करते हो??
12. क्या तुम इतने भोले हो कि यह भी नहीं जानते कि भारतीय समाज आज इक्कीसवीं सदी में भी शादी पूर्व या बाद के संबंधों को अवैध ही जानता-मानता है।
तुम भारतीय हो - तुम भारत के समाज प्रति अपने दायित्व के लिए जागृत हो जाओ -
13. तुम उन्नति - पढ़ी लिखी होने , अपने सम्मान को उत्सुक , हमारी भारतीय नारी के मन में - आधुनिकता या प्रगति की गलत थिओरी (परिभाषा) भरकर उन के जीवन को अभिशप्त करने की साजिश का हिस्सा न बनो।
14. तुम प्रचार-प्रसार के लोकप्रिय माध्यम पर अपने प्रभुत्व का उपयोग समाज दिग्भ्रमित करने में न करो।
15. तुम्हें समाज में कुछ पीढ़ियों से नायक - नायिका माना जा रहा है , तुम वास्तविकता में खलनायक - खलनायिका का चरित्र न दिखाओ।
-- राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
01-04-2018