Monday, November 30, 2020

फिरदौस का शिशु, अभिमन्यु …

 फिरदौस का शिशु, अभिमन्यु …               

अब तक फिरदौस का घाव पूरा भर चुका था। मगर सातवां महीना लग जाने से फिरदौस ने कोर्ट जाना स्थगित कर दिया था। अपने केसेस, अन्य अधिवक्ता को दे दिए थे।   

तीन दिन बाद कोर्ट से वापिस आकर हरिश्चंद्र जी ने, फिरदौस को बताया - आपने, हमारी प्रथम रात्रि पर यह कहा था ना! कि - 

हमारे संविधान में, यह प्रावधान कर दिया जाए कि दो अलग संप्रदाय के लड़के-लड़की, जब शादी करने का फैसला लें तब लड़के को, लड़की का धर्म स्वीकार करने की कानूनन बाध्यता रहे। “

इस बात की अनुशंसा, मैंने तब कानूनविद एवं सरकार से की थी। 

आपको जानकार ख़ुशी होगी कि सरकार ने, नया अधिनियम पास कराया है। जिसमें अपना झूठा धर्म बताकर, कोई लड़का छल से किसी लड़की से शादी करे तो उसके सख्त दंड का प्रावधान किया गया है। साथ ही भिन्न संप्रदाय में शादी करने के लिए, आपके विचार अनुसार लड़के के लिए, लड़की के धर्म को स्वीकार करने की बाध्यता कर दी गई है। 

फिरदौस बहुत खुश हुई। तब हरिश्चंद्र जी ने कहा - 

वाह, फिरदौस कितना आला दिमाग है आप का! इसमें उपजे विचार को, देश के दोनों सदनों में अनुमोदित किया गया है। 

फिरदौस ने सधैर्य कहा - 

जी, मेरी ख़ुशी इस कारण नहीं कि मेरे सुझाव को क़ानून में स्थान मिला है। मेरी प्रसन्नता का कारण यह है कि इससे नफरत की जड़ पर मठा पड़ जाएगा। 

वस्तुतः , अभी की जा रहीं, संप्रदाय बाहर की शादियाँ, दांपत्य सुख के इरादे से कम अपितु कट्टरवादी लोगों के द्वारा, अपने धर्म के अनुयायी बढ़ाने के दुष्प्रेरित विचार से अधिक की जाती हैं। 

दुखद रूप से, इसमें लड़की को झाँसे दिए जाते हैं। यह प्रावधान करने से अब, अपना धर्म लड़की को नहीं, बल्कि लड़के को बदलना होगा। जिससे लड़की पर झाँसे एवं छल की संभावना कम हो जायेगी। यह कानूनी प्रावधान हो जाने से, अब से संप्रदाय बाहर की जो शादी होंगी उसमें आधार, सच्चा प्यार ही हो जाएगा। 

फिरदौस के इतना कहे जाने पर, उसे गर्भ में, हलचल अनुभव हुई। जैसे कि सत माही गर्भस्थ शिशु, अपनी माँ के कथन की ताली बजाकर प्रशंसा कर रहा हो। 

फिरदौस ने इसे अनुभव कर, पति का हाथ अपने पेट पर रखा। हरिश्चंद्र जी ने अपने बच्चे की गतिविधि अनुभव की, फिर कहा, शायद आपने, अभिमन्यु की कहानी पढ़ी हुई हो। अभिमन्यु ने माँ के गर्भ में रहते हुए, चक्रव्यूह में प्रवेश का जटिल ज्ञान अर्जित कर लिया था। वास्तव में यह सच है कि गर्भ में रहते हुए ही, हर शिशु, संस्कार ग्रहण करना आरंभ कर देता है। 

अतः बच्चे की ज्ञान एवं संस्कार की बुनियाद अच्छी सुनिश्चित करने के लिए, गर्भवती माँ को, अच्छे विचार एवं अच्छी बातें पढ़नी, देखनी, कहनी एवं सोचनी चाहिए। 

जिस तरह आप अपने गर्भकाल को निभा रही हैं। उससे मैं, कह सकता हूँ कि हमारा जल्द ही जन्म लेने वाला यह बच्चा, विलक्षण रूप से प्रतिभावान रहेगा। 

अपने पति से, प्रायः ही किसी किसी बात पर प्रशंसा सुनना अब तक, फिरदौस की आदत हो गई थी। फिरदौस अपनी ऐसी प्रशंसाओं से लजा जाया करती थी। तब फिरदौस के मुखड़े पर गुलाबी आभा का बसेरा हो जाता था। 

जैसे फिरदौस को, पति के मुख से अपनी प्रशंसा सुनना अच्छा लगता था वैसे ही हरिश्चंद्र जी को पत्नी, फिरदौस का लजा कर, गुलाबी हुआ मुखड़ा मन मोहक लगता था। 

अभी के इस अवसर का हरिश्चंद्र जी ने, लाभ उठाया था और सावधानी पूर्वक फिरदौस को, अपने बाहुपाश में बांध लिया। फिरदौस के लिए पति का आलिंगन, स्वर्ग से भी अधिक सुंदर स्थान था। हरिश्चंद्र जी के आलिंगन में वह, अपनी सुखद अनुभूतियों में खो गई थी। 

इधर फिरदौस को सुख पर सुख मिल रहे थे। साथ ही फिरदौस के साथ से  उसके, पति हरिश्चंद्र असीम सुख अनुभव कर रहे थे। 

तब ही फिरदौस को तीन तलाक देकर खो चुके, उसके पूर्व शौहर के जीवन में कारावास के दुःख टूटे पड़ रहे थे। 

लगभग इसी समय पूर्व शौहर खुद से पूछ रहा था कि वह, नियमित ही पांच वक्त की इबादत करता रहा है। तब भी पिछले दो सालों से अधिक समय से, उसकी ज़िंदगी में ख़ुशी रूठ क्यों गई हैं?

वह बीबी के सुख से तो वंचित हुआ ही है। साथ ही ज़िंदगी के बेहतरीन माने जाने वाले जवानी के इस समय को वह, जेल में व्यर्थ जाने देने को मजबूर है। 

उस के जेल में होने से उसके, कार सर्विसिंग वर्कशॉप से होने वाली आय चौथाई रह गई है। अब्बा, गंभीर बीमार हो गए हैं। उनके इलाज के लिए वह हाजिर नहीं हो पा रहा है। 

मजहब की सेवा करने के लिए उसके उठाये कदम, असफल रह गए हैं। इतना ही नहीं फिरदौस, जिस पर उसने कातिलाना प्रयास किया था, उसका यह प्रकरण, फिरदौस के ही पति के न्यायालय में लग गया है। मालूम नहीं, यह जज उसे कितनी सख्त सजा देगा? 

अगर सख्त सजा दे दी गई और चार, छह साल और उसे जेल में रहना पड़ गया तो तब रिहा होकर उसकी ज़िंदगी में क्या बच रह जाएगा?

आज ही उसने कैदियों में, नए क़ानून की चर्चा सुनी है। जिसमें संप्रदाय बाहर शादी करने के लिए लड़के को धर्म बदलना अनिवार्य कर दिया गया है। इसे सुनने के बाद वह, सोचने लगा था कि उसके (छद्म रूप से) योगेश बन कर, किसी काफिर की लड़की से शादी की योजना तो अब, धरी की धरी रह जायेगी। 

इन सब विचारों से उपजी गहन निराशा में उसने अब, उन्हें कोसना शुरू कर दिया जिनकी बातों से दुष्प्रेरित हो उसने, फिरदौस के गर्भस्थ शिशु को मारना चाहा था। 

वह, अभी इन मानसिक अवसाद में डूबा हुआ ही था कि एक संतरी ने, उसे आकर बताया - आपके वकील, आपसे मिलने आये हैं। 

तब उसे, वकील से मिलने के लिए ले जाया गया था। 

वकील ने बताया - अफ़सोस, आपके अब्बा हुजूर का इंतकाल हो गया है। 

सुन कर वह फफक फफक के रो पड़ा। रोते हुए वह बुदबुदा रहा था - 

जिन्होंने, मेरे लिए अपनी ज़िंदगी की ख़ुशी कुर्बान कर दी, उन अब्बा हुजूर की ज़िंदगी के लिए मैं, कुछ नहीं कर सका। मेरे जैसा बदनसीब बेटा (इंसान) क्या दुनिया में कोई और होगा ? 

वकील ने अगले दिन, उसके अब्बा के सुपुर्दे खाक के वक़्त, उसकी जेल से रिहाई  के लिए कोर्ट से जमानत एवं कस्टडी पैरोल के लिए, आवेदनों  पर उसके दस्तखत लिए थे। 

तब उसने, वकील से पूछा - आपको क्या लगता है वह ज़ालिम जज, मेरी ज़मानत मंजूर करेगा?

वकील ने कहा - 

आपने पैरोल पर रहते हुए यह अपराध किया है, इस कारण संभावना तो नहीं है कि आपकी ज़मानत एवं पैरोल मंजूर हो सकेंगे। फिर भी प्रयास तो करना होगा, सवाल आपके वालिद के सुपुर्दे खाक किये जाने का जो है। 

वकील यह कह कर चले गया था। 

एक के बाद एक दुःख के टूट रहे पहाड़ ने, पूर्व शौहर को तब विद्रोही बना दिया। उसने सोचा कि बेकार है उसका नियमित इबादत करना। इस विचार के बाद उसने स्वयं से कहा - 

मैं, कसम खाता हूँ कि अब से मैं, कभी इबादत नहीं करूँगा।      

अगले दिन उसे कोर्ट में ले जाया गया। उसके प्रकरण को सबसे पहले सुना गया। तदुपरांत जज हरिश्चंद्र ने कहा - 

यह अदालत किसी बेटे को, उसके पिता के प्रति, आदर एवं कर्तव्य के मार्ग में बाधक नहीं बन सकती है। यह कह कर हरिश्चन्द्र जी ने, उसकी सशर्त जमानत मंजूर कर ली थी। 

तब वह सीधे कब्रिस्तान की ओर ले जाए जाते हुए, विश्वास ही नहीं कर पा रहा था कि फिरदौस का पति, यह जज उसके साथ इतना भी उदार हो सकता है …. 

 --राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन

30-11-2020


Sunday, November 29, 2020

भावुक फिरदौस …

 भावुक फिरदौस … 

अभागे, पूर्व शौहर को, अब्बू के इलाज के लिए मिली, 15 दिन की पैरोल रिहाई, फिरदौस पर उसके किये हमले के कारण उसे, गिरफ्तार किये जाने से, 4 दिन में ही स्वतः समाप्त हो गई। 

कोई अपराधी अपने हर कृत्य को, पता नहीं किस कोण से देखता है कि उसे, अपनी कोई भूल दिखती ही नहीं है। ऐसे ही किसी विचित्र कोण से, पूर्व शौहर भी अपने द्वारा किये गए, फिरदौस पर हमले को देख रहा था। 

फिरदौस पर हमले को वह, मजहब के प्रति अपना फर्ज जैसे देख रहा था। वह सोच रहा था कि अगर वह, किसी काफिर की लड़की से शादी करे तो, यह उसका हक़ है मगर फिरदौस को, किसी काफिर से शादी करने एवं उसके बच्चे की माँ होने का, अधिकार नहीं है। 

जब फिरदौस ने ऐसे दोनों ही काम किये हैं तो, उसके गर्भ के शिशु की हत्या के उद्देश्य से किया गया, उसके द्वारा हमला बिलकुल सही है। 

उसे अपने फिर गिरफ्तार हो जाने पर दो बातों से कोफ़्त हो रही थी। 

पहली कि नरगिस एन्ड पार्टी के पहुंच जाने से, उसका मंसूबा पूरा नहीं हो सका था। दूसरी बात उसकी गिरफ्तारी से, बीमार अब्बू की तीमारदारी का उसका फर्ज, अधूरा रह गया था। 

हवालात में वापस डल जाने पर, इन्हीं वजह से वह बेहद गुस्से एवं अफ़सोस में था।  

अब वह सोच रहा था कि अभी अपने (ना) पाक इरादों में वह, नाकामयाब हुआ है। अब वह इसका बदला अपनी सजा पूरी करने के बाद रिहा होकर जरूर लेगा। 

तब वह किसी काफिर लड़की से निकाह कर लेगा। वह सोचने लगा कि इसके लिए उसे, अपने को काफिर दिखाना पड़े तो वह ऐसा, अपना (छद्म) नाम योगेश रखते हए करेगा। 

कुछ दिनों बाद, फिरदौस पर हमले के अपराध में उसे पुलिस द्वारा कोर्ट में पेश किया गया। संयोग से उसी दिन, फिरदौस की मानसिक तथा शारीरिक स्थिति सम्हल जाने के बाद, हरिश्चंद्र जी ने छुट्टी से वापसी की थी।   

पूर्व शौहर को यह देख कर अपनी बदनसीबी पर रोना आ गया कि उसका, यह केस भी हरिश्चंद्र जी के सामने लगा था। हरिश्चंद्र जी ने ही उसके पूर्व तीन तलाक के प्रकरण पर फैसला उसके विरुद्ध दिया था। अब हरिश्चंद्र ही, फिरदौस के पति भी थे। 

पूर्व शौहर इससे मायूस हुआ कि जज अब, उसके साथ सख्ती से पेश आएगा। जज ने दाखिल आरोप पत्र सुनने के बाद, अगली दिनांक तीन सप्ताह बाद की दे दी थी। 

कोर्ट से लौटने के बाद हरिश्चंद्र जी उस रात, और दिनों से तथा अपने स्वभाव विपरीत अपने में खोये हुए गुमसुम थे। 

फिरदौस ने इसका कारण पहचान लिया था। सुबह ही फिरदौस ने, पोर्टल पर ऑनलाइन होकर यह देख लिया था कि हरिश्चंद्र जी के सामने, पूर्व शौहर के, उस पर हमले का केस लगा है। 

फिरदौस ने सोचा कि हो न हो, हरिश्चंद्र जी को पूर्व शौहर को फिर, सामने देखना पसंद नहीं आया हो। 

तब फिरदौस ने, पति की मन:स्थिति ठीक करने का उपाय, मन ही मन तय किया। फिरदौस, हरिश्चंद्र जी के सामने जाकर खड़ी हुई। फिरदौस ने, उनका हाथ लेकर, अपने पेट पर रखा और कहा - 

जी, देखिए आपका यह शिशु, आपसे कितना ज्यादा तेज हो गया है। गर्भ में ही कितनी धमाचौकड़ी मचाये रखी है, इसने! 

हरिश्चंद्र जी ने तब हँसते हुए कहा - यह तो आप पर जा रहा है, फिरदौस। 

फिरदौस, हरिश्चंद्र जी की यह हँसी ही तो देखना चाहती थी। अब वह विषय पर आई उसने पूछा - 

आज आप, कुछ परेशान से दिख रहे हैं। क्या, कोर्ट में कोई विशेष बात हुई है?

हरिश्चंद्र ने उत्तर दिया - हुई तो है, मगर मैं, आप से नहीं कहना चाहता। 

फिरदौस ने रुआँसी हुई दिखाते हुए कहा - नहीं, आप बताओ, मुझे जाननी है। 

तब हरिश्चंद्र ने बताया - 

आप पर हमले के प्रकरण की सुनवाई, मेरे सामने ही लगी है। मैं, सोच रहा हूँ कि इसे, अपनी अनिच्छा बता कर, अन्य न्यायाधीश के कोर्ट में, स्थानांतरित करवा दूँ। 

फ़िरदौस ने पूछा - आप, ऐसा क्यों चाहते हैं? 

हरिश्चंद्र ने कहा - 

यह प्रकरण, सीधे मुझसे संबंधित तो है ही, साथ ही आपके पूर्व शौहर के द्वारा, मुझे काफिर कहे जाने से यह, “एक कौम वर्सेस अन्य कौम” हो गया है। 

फिरदौस ने कहा - 

हाँ, बात तो आप सही कह रहे हो। पूर्व शौहर जैसे ये लोग, खुद तो किसी भी संप्रदाय की लड़की से शादी कर लेते हैं मगर अपनी परित्यक्ता तक का, अन्य संप्रदाय में शादी कर लेना बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं।

 ये खून खराबा करने लगते हैं। प्रकरण ऐसा होने से यह “पुरुष वर्सेस नारी” भी हो गया है। 

हरिश्चंद्र ने कहा - इसे मैं, एक और दृष्टिकोण से भी देख रहा हूँ। 

फिरदौस ने पूछा - वह, क्या है?

 हरिश्चंद्र ने उत्तर दिया - उस पर अभी हैवानियत सवार है। उसने, एक ऐसे मासूम भ्रूण की हत्या करने का प्रयास किया है, जिसने (गर्भस्थ शिशु ने) उसका कुछ नहीं बिगाड़ा है। जो पूर्णतया निर्दोष है। 

ऐसे यह प्रकरण “मानवता वर्सेस हैवानियत” हो गया है। 

इस प्रकरण के फैसले पर दो कौम की उत्सुकता जग गई है। इन समस्त बातों के होने के कारण मैं, मेट्रोपोलिटन सेशन जज के रूप में, अपने आप को इस पर फैसला करने के योग्य नहीं मानता हूँ इसलिए इस की सुनवाई से बचना चाहता हूँ। 

फिरदौस ने कहा - 

आपकी वरीयता चाहे जो भी हो मगर आपको लेकर, अपने अनुभव से मैं, कह सकती हूँ कि इस पर जो न्याय आप करेंगे, वह न्याय तुला पर सब से उत्तम सिद्ध होगा। 

हरिश्चंद्र जी ने पूछा - मुझ पर ऐसा विश्वास क्यों है, भला?

फिरदौस ने कहा - उस दिन मैं, गुस्से में उसे (पूर्व शौहर को), आदमी, बताया जाना, आदमी का, अपमान कह रही थी। इसके विपरीत मैंने, आपको ऐसे गुस्से में कभी नहीं देखा है। 

आप में एक श्रेष्ठ न्यायाधीश अपेक्षित दृष्टि है। आप आदमी एवं बुराई को, दो अलग बात देख लेते हैं। ऐसा होने से किसी भी मसले पर आपका किया गया न्याय, परिपूर्ण (परफेक्ट) होता है। 

हरिश्चंद्र जी ने आश्चर्य मिश्रित प्रशंसात्मक दृष्टि से फिरदौस को देखा फिर कहा - 

कभी कभी मुझे ऐसा लगता है कि स्वयं के बारे में जो मुझे नहीं पता है, वह आपको पता होता है। 

इस प्रशंसा पर फिरदौस शरमाई थी। उसने अपनी पलकें झुका ली थी। हरिश्चंद्र तब न्यायाधीश से पति बन गए थे। उन्होंने फिरदौस की झुकी पलकों पर बारी बारी चुंबन ले लिए थे। तब, अपने बढ़े हुए पेट को बचाते हुए,  फिरदौस ने, पति के गिर्द अपनी गलबहियां डाल दी थी।  

कुछ मिनटों का आलिंगन सुख दोनों ने लिया था। तब हरिश्चंद्र ने बात आगे बढ़ाई, कहा - 

फिरदौस, यह देश हमारा अपना है। ऐसे में इसके नागरिक होने पर हम, अपनी तुनकमिज़ाजी से समाज समस्या और जटिल कर दें, यह अच्छी बात नहीं है। 

मैं, मात्र एक नागरिक ही नहीं बल्कि दायित्व पद पर, विराजित व्यक्ति हूँ। मुझे, सर्व पक्ष एवं परिस्थिति पर विचार करते हुए, एक्ट करना होता है। सच्चे न्याय का लक्ष्य, सजा देना ही नहीं होता है अपितु इसमें, दंडित करने का प्रयोजन यह होता है कि अपराधी की, अपराध प्रवृत्ति बदल जाए।

फिरदौस मंत्रमुग्ध होकर पति की बात सुन रही थी। यह देखकर, हरिश्चंद्र ने हौसला लेकर अपनी बात आगे कही - 

आपने देखा है, आपके पूर्व शौहर की आँखों में कट्टरपंथी (विचार) की इतनी मोटी पट्टी बंधी हुई है कि उसे, समाज हित तो दूर की बात, अपने  परिवार हित के लिए, कैसे आचरण एवं कर्म रखने चाहिए, वही दिखाई नहीं देता है।

उसने आप जैसी सेंसिबल, अधिवक्ता पत्नी को पहले तलाक देकर बड़ी भूल कर ली। फिर दूसरी बड़ी भूल कारावास के एकांत में, जीवन को समझने की कोई कोशिश नहीं करके की है। 

अपने रोगी पिता की देखभाल के लिए मिले, उसे पैरोल को उसने, हमारे इस मासूम शिशु से, नफरत की घृणित सोच में बर्बाद कर दिया। अपराधी को दंडित करने की संवैधानिक भावना, उस की प्रवृत्ति में परिवर्तन नहीं होने से अपूर्ण रह गई है। 

उसकी परित्यक्ता आप, मेरी वैसी प्रेरणा बन गई हैं, जिस से ही यह कहा जाता है कि -

 “एक सफल पुरुष के पीछे निश्चित ही एक नारी होती है”। 

पति द्वारा मुक्तकंठ की गई, अपनी प्रशंसा सुनकर फिरदौस भावुक हो गई। कुछ स्मरण करते हुए उसके नयन नम हो गए। फिर उसने स्वयं को संयत किया और कहा - 

मानव परिचय लिए एक प्रौढ़ व्यक्ति, उस दिन उस समय मुझे मिले थे, जिस समय मुझे यह लग रहा था कि आज मैं, बेमौत मारी जाने वाली हूँ। उन्होंने, मुझे भयावह वीराने से, सुरक्षित मेरे अब्बा के घर तक पहुंचाया था। फिर ऐसे ही सच्चे मानव परिचय के साथ, एक दिन आप मेरे जीवन में आये। 

इससे मुझे लगता है कि मैं एक वही नारी हूँ, मेरा जीवन सार्थक, आप जैसे सच्चे मानव के साथ से हो रहा है। 

आप देखिये, अगर मैं अपने पूर्व शौहर के साथ ही रही आती तो यही फिरदौस अपना जीवन निरर्थक कर रही होती। तब मैं, यह भी जान नहीं पाती कि मेरा जीवन व्यर्थ जा रहा है। 

मेरे पीछे अब, वह आप (पुरुष) हैं, जिनके होने से मेरा (नारी) जीवन सार्थक हो रहा है …

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन

29-11-2020


Saturday, November 28, 2020

दिव्य शक्ति (9) ..

 दिव्य शक्ति (9) .. 

(भाग 8 के आगे … ) 

अनन्या एवं मेरी आँखों के मिलने से, उत्सर्जित हुई इंद्रधनुषी किरणें, हमें दिखाई ही नहीं दे रही थी अपितु स्क्रीन से उभरकर बाहर हमारी (अर्थात वीडियो देखने वाले की) आँखों में प्रविष्ट हो रहीं थीं। 

अनन्या ने अब यह नोट कर लिया था। उसे मेरे एक्साइटमेंट का कारण स्पष्ट हो गया था। 

हमारी #केदारनाथ से वापसी अगली दोपहर होनी थी। संध्याकाल हमने भ्रमण कर, वहां की अत्यंत #नयनाभिराम प्राकृतिक छटाओं का आनंद लिया था। फिर भोजन उपरांत कुछ देर वार्तालाप करते हम सो गए थे। 

प्रातः काल, अनन्या उदास सी मेरे सामने आई, उसने मुझसे कहा - अभी नींद खुलने के पहले मैं, एक सपना देख रही थी। 

मैंने हैरत से कहा - एक सपना तो आज, मुझे भी आया है। तब अनन्या ने पूछा, बताइये आप, क्या था, आपका सपना?      

मैंने कहा - लेडीज फर्स्ट, पहले आप कहो, अपना सपना। 

अनन्या गंभीर होकर बताने लगी - 

अपने सपने में, मैंने देखा कि - एक #सूर्य_सा_प्रखर_प्रकाश_स्रोत था। जिस के सामने मेरी आंखे चौंधिया जाने से अधखुली से रह गईं थीं। उसमें से निकलती एक #दिव्य_वाणी, मुझे सुनाई पड़ रही थी -

“अनन्या, इस विषम काल में नारी की दशा सुधारने के लिए, पिछले नौ से अधिक वर्षों से, मैं तुम्हारे साथ हूँ। मैं, किसी के साथ, दस वर्ष से ज्यादा नहीं हो सकती। अतः कुछ महीनों में मुझे, तुम्हारा साथ छोड़ना होगा। 

यद्यपि तुमने मेरे प्रयोग से, नारी दशा सुधारने की दिशा में #उत्तम कार्य कर दिखाया है। मगर किया जाना अब भी पर्याप्त नहीं हो पाया है। बचे समय के लिए मैं, तुम्हें अधिकतम संभव, शक्ति दे रही हूँ। जितना चाहो तुम इस दिशा में और कार्य करो। कुछ महीने में मुझे, तुम्हारा साथ छोड़ना होगा। (तब मुझे, #आशीर्वाद प्रदान करता #दिव्य_हस्त  दिखाई दिया) सदा खुश रहो। “

इतने के बाद मैं, नींद से जाग गई थी। 

तब मैंने पूछा - यह तो अच्छा सपना है, तुम उदास और डरी हुई सी क्यों हो? 

अनन्या ने कहा - 

दिव्य शक्ति के साथ छोड़ जाने के विचार से, मुझे अवसाद घेर रहा है। खैर छोड़िये इसे, अब आप, अपना सपना बताइये। 

मैंने बताया - अनन्या, दिव्य शक्ति ने ऐसा ही अपना #दिव्य_दर्शन , सपने में मुझे भी दिया है। ऐसा ही मुझे भी संबोधित किया है। जिसमें आपके सपने के अतिरिक्त, दिव्य शक्ति के #मुखारविंद से दो और बातें मुझे सुनाई दी हैं - 

“पहली यह कि :-

बचे समय में #नारी_उत्थान के लिए शेष रहा कार्य तुम्हें, अनन्या को साथ लेकर करना है। 

और दूसरी :-

जब मैं, साथ छोड़ जाऊँ तब तुम्हें, अनन्या से #विवाह कर, उसका साथ देना है।“

अनन्या मेरा बताया अंतिम वाक्य सुन, प्रसन्न हुई। उसने कहा - 

दिव्य शक्ति, अत्यंत भली है। दिव्य शक्ति ने, मेरा साथ छोड़कर जाने के बाद, आपको आदेशित कर मेरे लिए, उत्तम साथ #सुनिश्चित कर दिया है। 

इसके तीन दिन बाद जब, अपने क्लीनिक में काम पूरा कर चुके तब, हम दोनों आपस में वार्तालाप कर रहे थे। 

बात शुरू करते हुए, अनन्या ने चिंतित हो पूछा - इतनी बड़ी दुनिया में कुछ माह में, हम इतना बड़ा शेष कार्य कैसे पूरा कर सकेंगे? 

मैंने उत्तर देते हुए कहा - अनन्या, इसके लिए संकेत (हिंट), दिव्य शक्ति हमें #केदारनाथ_धाम में दे चुकी है। 

अनन्या ने पूछा - वह क्या?

मैंने बताया - 

वहां लिए गए वीडियो प्ले करने से, हमने की जा रही आरती के बीच, अपनी आँखों से उत्सर्जित इंद्रधनुषी किरणों को, स्क्रीन से बाहर आते देखा है। यह होने से, ऐसे रिकार्डेड वीडियो प्ले करने पर ये किरणें, वीडियो, देखने वाले की आँखों में प्रविष्ट हो जाती हैं। 

सपने में दिव्य शक्ति द्वारा कहे गए शब्द “अधिकतम संभव शक्ति” हमें प्रदान कर दिए गए, इसी #सामर्थ्य के लिए प्रयुक्त किये गए हैं।  

अनन्या खुश होते हुए बोली - मैं, समझ गई, अपने लक्ष्य की पूर्ति के लिए अब हमें, अपना एक वीडियो बनाकर नेट पर अपलोड करना होगा। 

मैंने कहा - (बिल्कुल) एक्जेक्टली, अनन्या! 

फिर हमने अपने क्लीनिक के कर्तव्य निभाने के साथ इस दिशा में भी बढ़ना आरंभ किया था। 

पहले #विचार_मंथन करके हमने, 10 दिनों में वीडियो के लिए एक स्क्रिप्ट तैयार की थी। तब अपना एक वीडियो शूट किया था। वीडियो को हमने #शीर्षक दिया था - 

“निर्मल प्यार”

इसमें अनन्या और मैं, आपस में बात करते हुए, क्या और कैसा होता है, #निर्मल_प्यार यह बताते हुए दिखाई दे रहे थे। तैयार वीडियो देखने वालों को  यूँ दिखाई देने वाला था -

प्रारंभ में अनन्या मेरे तरफ इशारा करते हुए यह कहती है - 

लगभग नौ वर्ष पूर्व, मेरे साथ एक दुर्घटना हुई थी। तब मैं, पंद्रह वर्ष की भी नहीं हुई थी। दुर्धटना में मुझे सिर पर चोट लगी थी। मैं, अचेत हो गई थी। तब इन्होंने मुझे, लहूलुहान, अचेत अवस्था में अस्पताल पहुंचाया था। इस बारे में मेरे मम्मी-पापा ने, मेरे स्वस्थ हो जाने के बाद मुझे बताया था। तभी से मैं #मन_ही_मन, इन्हें प्यार करने लगी थी। 

इतना बताकर अनन्या मुस्कुराते हुए मुझे देखती है। तब हमारी आँखे मिलने से इंद्रधनुषी किरणें निकलती हैं। जो स्क्रीन के सामने दर्शक की ओर आती हैं। 

तब मैं कहता हूँ - 

मुझसे प्यार की अनन्या की अनुभूति से भी पहले, अनन्या से प्यार की #अनुभूति मुझे तब हुई थी जब, अस्पताल ले जाने के लिए, सड़क पर पड़ी  गंभीर रूप से घायल अनन्या को मैंने, अपनी #बाँहों में उठा कर, अपनी कार में लिटाया था। 

कहकर #प्रेममय दृष्टि से मैं, अनन्या को देखता हूँ। फिर इंद्रधनुषी किरणें उत्सर्जित होती हैं। 

अब अनन्या कहती है - 

तब अचेत होने से मुझे, यह नहीं पता है कि इन्होंने, मुझे कभी अपनी बाँहों में उठाया था। इस घटना के बाद के तीन साल में हम 5 बार मिले थे। फिर अगले तीन साल तक हमने, जूनियर-सीनियर रहते हुए, मेडिकल कॉलेज में साथ शिक्षा प्राप्त की थी। इस तरह हमारा मिलना-जुलना निरंतर चलता रहा था। इस दौरान मैंने, नहीं देखा कि कभी इन्होंने, मुझे, किसी तरह से #स्पर्श भी किया हो। 

यह सुनने के साथ ही मैं, हँसता हूँ। तब अनन्या और मैं, प्यार से एक दूसरे को देखते हैं। पुनः हमारी आँखों से, इंद्रधनुषी किरणें उत्सर्जित होकर स्क्रीन से बाहर आती हैं। 

आगे मैं, कहता हूँ - 

अब, हम एक साथ हमारे क्लीनिक में रोगियों का #उपचार करते हैं। अब भी हम एक दूसरे का, #शारीरिक_स्पर्श नहीं जानते हैं। यह भी तब, जबकि कुछ महीनों में हम, आपस में अपना विवाह #सुनियोजित कर रहे हैं। 

यह कहकर मैं चुप हो जाता हूँ। इस बार की चर्चा विराम में, हम एक दूसरे को नहीं देखते हैं। 

अनन्या आगे कहती है - 

नौ बरस से हम निभाते रहे जिसे, उस प्यार की ऐसी #परिणति, आपको #स्वाभाविक लगेगी। इस वीडियो के #माध्यम से हम आपको यह बताना चाहते हैं कि - 

(कहते हुए अनन्या रूकती है, वह मुझे देखती है। इस बार दस सेकंड तक निरंतर मैं भी, अनन्या को #अपलक देखता हूँ। जिससे इंद्रधनुषी किरणें #प्रचुरता से उत्सर्जित होकर, एक “इंद्रधनुषी प्रकाश, #पुंज (बीम) रूप में” स्क्रीन से बाहर निकलता है।) 

अब हम साथ में, अपना स्वर मिलाते हुए कहते हैं - 

अगर हम, किसी परिस्थिति में आपस में विवाह नहीं भी कर पाते तब भी हमारा प्यार, हम में जीवन भर बना रहता। हमारा यह प्यार, एक दूसरे को सुखी देखने का #अभिलाषी है। 

हम में प्रेम की अनुभूति, हमारी आपसी अपेक्षाओं को निर्मल बनाती है। इसलिए हम इसे “निर्मल प्यार” का #विशेषण देते हैं। हम आशा करते हैं कि हमारे निर्मल प्यार को जानने के बाद, आप सभी भी, जिसे प्यार करते हैं, उसके लिए अपनी #भावनाएं ऐसे ही #निर्मल रखेंगे। 

फिर एक साथ खड़े होकर, हम हाथ जोड़ते हैं। और कहते हैं - #नमस्कार #धन्यवाद। 

वीडियो यहां पूरा हो जाता है। 

अगले एक महीने में हम, कुछ कलाकारों एवं #बहुभाषाविद की सशुल्क सेवा

लेते हैं। जिसकी सहायता से यह वीडियो, जापानी, इंग्लिश, रशियन, फ्रेंच भारत की सभी भाषाओं सहित विश्व की अन्य प्रमुख भाषा में डब कर लिया जाता है। 

अंततः इन सभी भाषाओं में डब्ड, यह तीन मिनट का वीडियो, हम नेट पर अपलोड करते हैं। 

“निर्मल प्यार” वायरल हो जाता है। यह वीडियो पूरे विश्व में देखा जाने लगता है। तब इंद्रधनुषी किरणें अपना #अपेक्षित #प्रभाव करने लगती हैं। #दर्शक_दृष्टि निर्मल होते जाती है। 

विश्व में नारी पर से, सभी तरह के अत्याचार के खतरे, लगभग नगण्य रह जाते हैं। कई, वीडियो देखने वाले, हमें एप्रोच करके पूछते हैं -

आपने, यह कौन सी तकनीक का #आविष्कार किया है जिससे, इंद्रधनुषी किरण आप दोनों की आँखों से सिर्फ उत्सर्जित ही नहीं होती अपितु स्क्रीन के बाहर आकर दर्शक की आँखों में प्रविष्ट हो जाती हैं। 

दिव्य शक्ति का हममें रहना हमें, झूठ बोलने या कोई बहाना करने नहीं देता है। हम उन्हें #सत्य बताते हैं - 

यह कोई खोजी गई तकनीक नहीं है बल्कि यह #सृष्टि के #प्रारब्ध से ही #अस्तित्व में रही, #दिव्य_शक्ति के हमारे साथ आ जाने से हुआ है। यह दिव्य शक्ति अब, हमारा साथ छोड़कर जाने वाली है। 

संपूर्ण #मानव_प्रजाति निर्मल प्यार वीडियो देखते हुए, #अविश्वसनीय इस सच को #स्वमेव #अनुभव करती है। 

तब अगले कुछ दिनों में हमारी आँखों से निकलते इंद्रधनुषी रंग, क्रमशः हल्के होने लगते हैं। 

एक दिन यह आता है कि हमारे आपस में देखने से इंद्रधनुषी किरणें नहीं निकलती हैं, हमारी दृष्टि के बीच, #श्वेत_धवल_प्रकाश सामान्य तरह से व्यस्त रहता है। 

यह #दिव्य_संकेत होता है कि अब अनन्या और मैं, पवित्र #परिणय_सूत्र में #आबद्ध होकर अपना #वैवाहिक_जीवन आरंभ करें। 

अब अनन्या और मैंने विवाह कर लिया हैं। हमारा क्लीनिक अभी अस्तित्व में है। साथ ही हमारा #नारी_सुरक्षा_एवं_सम्मान_रक्षा एनजीओ भी भलीभाँति चल रहा है … 

(समाप्त) 

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन

28-11-2020


Thursday, November 26, 2020

फिरदौस पर हमला …

 फिरदौस पर हमला … 

मायके में फिरदौस को दो दिन हुए थे। मोहल्ले परिचितों एवं रिश्तेदारों में यह बात फ़ैल गई थी कि फिरदौस पेट से है। 

फिरदौस के अम्मी, अब्बू ‘नई फिरदौस’ के पीहर आने से अत्यंत खुश थे। वे यह अनुभव करके चकित थे कि किसी एक व्यक्ति का प्रभाव, कैसे किसी की काया कल्प कर सकता है। 

यूँ तो तलाक दिए जाने कि कटु घटना वाले दिन से ही उन्होंने, फिरदौस को बदलते देखा था। वकील हो जाने के बाद भी, अपनी दब्बू एवं संकोची रही बेटी में तब, साहस का संचार होते देखा था। लेकिन हरिश्चंद्र के साथ के इन लगभग डेढ़ वर्षों में फिरदौस चमत्कारिक रूप से बदल गई थी।

अब वह मांसाहार का सेवन नहीं करती थी। अब वह नए बेबी की उम्मीद से थी। गर्भावस्था के कारण उस पर कुछ चर्बी भी चढ़ गई थी। अब के पहनावे एवं चाल ढाल, फिरदौस के संभ्रांत होने की चुगली कर रहे थे। ये सब तो फिरदौस में भौतिक परिवर्तन थे। 

अम्मी, अब्बू को ज्यादा हैरानी, फिरदौस में हुए, “आत्मिक परिवर्तन”, अनुभव कर हो रही थी। 

वे, अपनी बेटी को अब अत्यंत आत्मविश्वासी देख रहे थे। साहस, उसमें किसी वीरांगना सा दिखाई दे रहा था। इन सब के होते हुए, अभिमान फिरदौस के व्यक्तित्व में, अंश मात्र नहीं दिखता था। हर बात में फिरदौस द्वारा तुरंत ही, सर्व पक्ष देख लेना फिरदौस के लिए चुटकी जैसी सरल बात हो गई थी। 

अम्मी से नहीं रहा गया था। उन्होंने पूछ लिया - फिरदा, हरिश्चंद्र साहब कोई जादूगर हैं, क्या?  

फिरदौस ने हँस कर कहा - 

जी हाँ मुझे भी यही लगता है, अम्मी!  (फिर गंभीरता से) हम लोग जिन्हें काफिर कहते हैं, हरिश्चंद्र जी वैसे काफिर भी नहीं हैं। उन्होंने, शादी के दिन से ही यह कोशिश की है कि उनसे विवाह के बाद भी, मेरी धार्मिक आस्थाएं पूर्ववत बनी रहें। 

फिर भी अब मुझे, यह स्वीकार करने में कोई हिचक नहीं कि उनकी खूबियों को देख मैं ऐसी प्रभावित हुईं हूँ कि स्वप्रेरित ही मुझमें, उनकी आस्थाएं एवं विश्वास ने स्थान बना लिया है।

अब्बू ने कहा - फिरदा, ऐसे तो आप, मुसलमान नहीं रह जाएंगी। 

इस बात पर विचार करते हुए फिरदौस ने उत्तर दिया - 

अब्बू जब उन्होंने मेरे विकल्प के लिए मुझे खुला छोड़ा। तब मैंने, अपने पर बड़ी जिम्मेदारी महसूस की थी। मैं, कट्टर होकर, उनके समक्ष खुद को खुदगर्ज नहीं दिखाना चाहती थी। इसलिए मैंने, अन्य कौम की लड़की होते भी, उनके घर के रिवाज नहीं बदलने दिए।   

मैं नहीं चाहती थी कि मेरी मुस्लिम परवरिश को कोई खुदगर्ज कहता। 

अम्मी ने कहा - फिरदा, हरिश्चंद्र साहब ने चालाकी से आपको, अपने रंग में रंग लिया है। 

फिरदौस ने वकील जैसा बचाव करते हुए कहा - 

अम्मी इसे आप जो भी कहें मगर, मेरे अब पति (हरिश्चंद्र), निःसंदेह मेरे पहले वाले उस शौहर जैसे, “खुदा के बंदे” से, बेहतर इंसान हैं। उसने तो मुझे, यूँ बेघर किया था कि मेरी जान पर ही बन आई थी। अगर मैं, उस दिन जिंदा नहीं बचती तो क्या रह जाता, मेरा मजहब?

अब्बू-अम्मी तब, फिरदौस से असहमत होते हुए भी यह सोचकर चुप रह गए कि चार दिन को पीहर आई, बेटी के वक़्त को गमगीन क्यों बनाना।  

यहाँ फिरदौस अंजान थी कि जिस वक़्त वह, अपने पूर्व शौहर को इस तरह (लानत से) स्मरण कर रही थी, उस समय ही उसका पूर्व शौहर वहाँ, (जैसा वह सोचता था) फिरदौस के ‘काफिर पति’ से प्रेग्नेंट होने की जानकारी से, आगबबूला हो रहा था। 

वह तार्किक बुद्धि प्रयोग कर यह नहीं मान पा रहा था कि काफिर न होते हुए भी उसने खुद, फिरदौस की ज़िंदगी जहन्नुम कर देने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।  

वह इस समय, अपने अब्बा की गंभीर अस्वस्थता के कारण पंद्रह दिनों के पैरोल पर रिहा किया गया था।   

फिरदौस के इस पूर्व शौहर को, गुस्सा इस बात पर इतना नहीं था कि तीन तलाक के कारण उसे तीन वर्ष की कैद हुई थी, जितना गुस्सा, उसे तलाक के बाद, फिरदौस के किसी काफिर से ब्याह रचा लेने का था। 

अब जब, फिरदौस को वह प्रेग्नेंट सुन रहा था। उसे हर समय, फिरदौस का गर्भस्थ शिशु, किसी बिच्छू जैसा काटता अनुभव हो रहा था। इस बिच्छू दंश जैसे एहसास से वह तन्हाई में तिलमिला उठता था। 

वह, अपने बीमार अब्बू की तीमारदारी एवं उनके इलाज की फ़िक्र छोड़, इस फ़िक्र में था कि कैसे वह, फिरदौस से बदला ले और उसे सबक सिखाये। 

अगले दिन वह 25 किमी दूर फिरदौस के घर जाने निकला था, तब उसके ख्याल, उसकी अम्मी को खौफनाक लगे थे। 

उसकी अम्मी यह सोचकर  परेशान हुई कि उनका एकलौता बेटा, पहले ही जेल काट रहा है। क्रोध अतिरेक में वह ऐसा कोई काण्ड ना कर दे कि जीवित, जेल के बाहर ही ना आ सके। 

इस फ़िक्र से अम्मी ने उसे रोका था। जब अम्मी के रोके जाने पर वह नहीं रुका तब, बेबस उस अम्मी ने, अपनी कौम की, प्रगतिशील महिलाओं का संगठन चलाने वाली, नरगिस को फोन पर इत्तला दी थी। नरगिस से कहा - 

बेटी नरगिस, मेरा बेटा खंजर ले कर, खतरनाक इरादे से फिरदौस के अब्बा के घर के लिए निकला है। 

फिर उन्होंने (पता देते हुए) नरगिस से गुहार लगाई - कृपया आप फिरदौस को, उसके कहर से बचाओ। 

इधर साँकल खटखटाये जाने पर, फिरदौस के अब्बू ने दरवाजे खोले थे। दरवाजे पर फिरदौस के पूर्व शौहर को आया देख उन्होंने, उसके खतरनाक इरादे से अनजान, मोहब्बत से कहा था - 

ओह बेटा, आप! आओ बैठो। 

यह कहते हुए उसे, सोफे पर बैठने का इशारा किया था। बैठने के बाद अपने को सामान्य दिखाते हुए पूर्व शौहर ने पूछा - 

सुना है, फिरदौस आई है? 

अब्बू अंदाज नहीं लगा सके थे कि उसके भीतर भयानक नफरत भरी है। उन्होंने हामी में सिर हिलाया, साथ ही फिरदौस को आवाज लगाई - 

फिरदा, आओ देखो तो कौन आया है! 

इस पर भीतर से फिरदौस आई थी। वह पूर्व शौहर को देख चकित हुई, डरी इसलिए नहीं कि वह अपने घर में थी। अब्बू भी उसके साथ थे ही, फिरदौस ने पूछा - 

आपकी, सजा पूरी हो गई क्या?

पूर्व शौहर ने इसका जबाब नहीं देकर कहा - मेरे से तलाक लिया कोई बात ना थी। आपने शादी, काफिर से क्यों की?

फिरदौस ने उत्तर में कहा - इसलिए की कि वह काफिर, गुस्से में तीन तलाक देकर एक मिनट में ही बीवी को बेघर नहीं कर सकता है। 

इस बात से कुपित होकर, अब तक सामान्य दिखने की कोशिश रहा पूर्व शौहर, दहाड़ता हुआ खड़ा हो गया था। वह कह रहा था - 

बेशर्म औरत, बहुत मुहं चलाती है। तुझे सबक सिखाना होगा। तू अपनी कोख में काफिर का जो बच्चा लिए घूम रही है ना! आ अभी ही मैं, उसके टुकड़े करता हूँ।  

यह दृश्य देख अब्बा कांपने लगे थे। पूर्व शौहर ने, छुपा रखा खंजर, हाथ में लिया था। 

तभी ईश्वरीय चमत्कार जैसे नरगिस और उसकी चार साथिन महिलाएं, खुले दरवाजे से कमरे में दाखिल हुईं थीं। फिरदौस के तरफ बढ़ते, उसके पूर्व शौहर को, उन सबने पीछे से पकड़ लिया था। तत्काल ही, फिरदौस भीतर के तरफ जाने को बढ़ी थी। 

महिलाओं की गिरफ्त में जकड़ा पूर्व शौहर जब छूट नहीं पाया तो उसने, फिरदौस की ओर खंजर फेंक मारा। 

उसकी कोशिश खंजर, फिरदौस के पेट पर मारने की थी मगर, भीतर जाने के लिए घूम चुकी फिरदौस को, वह बायें कूल्हे पर लगा था। फिरदौस की चीख निकल गई थी। वह गिर पड़ती अगर, अंदर से आती उसकी अम्मी ने, तभी उसे सहारा ना दे दिया होता। 

तब तक इस मचे कोहराम के शोर में, पास पड़ोस के कुछ लोग आ गए थे। जिन्होंने पूर्व शौहर को काबू किया था। 

फिर धड़ाधड़ कॉल लगाये जाने लगे थे। पहले एम्बुलेंस पहुँची थी, जो फिरदौस को लेकर तेजी से अस्पताल की ओर चल पड़ी थी। कुछ मिनटों बाद, पुलिस वैन पहुँची थी। पूर्व शौहर, हिरासत में ले लिया गया था। 

हरिश्चंद्र फिरदौस के पहुँचने के पहले, अस्पताल पहुंच गए थे। स्ट्रेचर के साथ साथ चलते हुए उन्होंने फिरदौस को हिम्मत दिलाई थी। उनकी उपस्थिति मात्र से फिरदौस को हौसला मिल गया था। 

डॉ. ने तुरंत ही उपचार शुरू कर दिया था। फिरदौस ने चिंतित हो डॉ. से पूछा - मेरा शिशु पर कोई खतरा तो नहीं?

डॉ. ने बताया - घाव निचले भाग में होने से शिशु को कोई खतरा नहीं है। 

फिरदौस के गर्भवती होने से एनेस्थीसिया देना उचित नहीं था। तब, फिरदौस ने बहादुरी से टांके लगने के दर्द को सहन किया था। घाव गहरा कम था लंबा अधिक था। स्टिचेस अधिक लगाने पड़े थे। 

आधे घंटे बाद जब फिरदौस को ऑपरेशन कक्ष से बाहर लाया गया तो वह पस्त थी। हरिश्चंद्र ने बहुत प्यार से कहा - 

फिरदौस, आपने बहुत बहादुरी का परिचय दिया है। बड़ी मुसीबत टल चुकी है। अब, जल्दी ही सब ठीक हो जाएगा।

3 घंटे अस्पताल में रखने के बाद हरिश्चंद्र जी ने, फिरदौस को डिस्चार्ज करवा लिया था। 

उन्होंने खुद छुट्टी ले ली थी। फिरदौस की सेवा सुश्रुषा में खुद जुटे थे। पति के इस भाव प्रदर्शन (जेस्चर) ने फिरदौस पर जादुई प्रभाव डाला था। फिरदौस के घाव तेजी से भरने लगा था। 

एक दोपहर अपना सिर, हरिश्चंद्र जी की गोदी में रखकर फिरदौस व्यथित हो कह रही थी-

ये लोग कैसे अजीब होते हैं जो, मजहब से मोहब्बत नहीं नफरत करना सीखते हैं। सजा दिए जाने पर भी सही सीख नहीं लेते हैं। अपनी औरतों के सामने शेर होते हैं। पराई औरतों के पीछे भीगी बिल्ली बने घूमते हैं, समझ नहीं आता इन्हें सुधारा किस प्रकार जा सकता है?

हरिश्चंद्र ने कहा - 

फिरदौस, आप अपने को, इन नकारात्मक विचारों से मुक्त रखो। आप, उस आदमी को अपने दिमाग से निकाल दो। सोचो कि आपके गर्भ में, हमारा शिशु है। उस पर, उसकी छाया एवं नकारात्मक विचार अच्छा प्रभाव नहीं डालेंगे। 

फिरदौस ने कहा - 

जी, आप कहते हैं, तो लीजिये मैं अभी इन ख्यालों को निकाल फेंकती हूँ। मगर मेरी गुजारिश है कि आप, ऐसे हैवान को आदमी कह कर, आदमी का अपमान ना करें। उसने मेरे, गर्भस्थ मासूम शिशु को, कुर्बानी वाले जानवर की तरह ट्रीट किया है …          

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन

27-11-2020

दिव्य शक्ति (8) ..

 दिव्य शक्ति (8) .. 

अनन्या के कॉलेज में मेरे साथ के, साढ़े तीन साल बीते थे। तब मेरी, मास्टर डिग्री पूर्ण हुई थी। 

कॉलेज से जब मैं विदा ले रहा था। अनन्या के नयन अश्रुपूरित थे। 

‘मुझे कॉलेज में देखना’ और ‘मैं उसके साथ हूँ’, अनन्या की यह अनुभूति, उसे अत्यंत संबल प्रदान करती है यह, उसके बिना कहे मैं, अच्छे से जानता था। 

भावुक, मैं भी था। फिर भी इस बात को मैंने, अनन्या से छुपा लिया था, ऐसा सोचकर मैं, अपने को बुद्धिमान समझ रहा था। 

मगर अनन्या की बात ने मेरा यह भ्रम मिटा दिया था। मैं ही दुनिया में, अकेला ही बुद्धिमान नहीं था। 

मेरे कॉलेज के उस अंतिम दिन, अनन्या ने रुआंसी होकर, मुझसे कहा था - 

हम (नारी जाति), अपने मनोभाव चाहें भी तो सर्वथा छुपा पाने में असमर्थ होते हैं। आप (पुरुष) देखिये तो, कितनी सफाई से अपने मनोभाव छुपा जाते हो। 

अनन्या की बात ने, तब मेरे हृदय को छलका दिया था। मैं, मुस्कुरा रहा था, मगर मेरे नम हो गए नयन, सब कुछ बता दे रहे थे। प्रकट में मैंने, कहा - 

अपनी अनूठी शक्ति के साथ, कॉलेज में मेरे ना होते हुए भी आप, किसी तरह असहाय नहीं हैं। 

अनन्या ने कहा था - 

मैं, असहाय ना होकर भी, स्वयं को असहाय अनुभव करती रहूंगी। आपका साथ होना, मेरी अब आदत हो गई है।  

मैंने कहा था - तीन वर्षों की ही तो बात है। तब आप भी पूर्ण डॉक्टर होकर, एक दिन ऐसे ही कॉलेज को विदा कहोगी।

फिर आंखें (मेरी), (उसकी) आँखों से विदा लेते हुए झर झर बह रहीं थीं। 

बाद में यह तीन वर्ष भी बीत गए थे। अब अनन्या, स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. अनन्या हो गई थी। 

मेरे डॉक्टर हो जाने एवं अनन्या के डॉक्टर होने के बीच के इस समय में मैंने, अपना क्लीनिक स्थापित कर लिया था। 

यूँ तो डॉक्टर होने से मैं, अपने सामाजिक सरोकार पूरे कर ही रहा था। मगर दिव्य शक्ति के साथ होने से मैं इतने से ही कहाँ संतुष्ट रह जाने वाला था। मैंने क्लीनिक के समानांतर ही, “नारी सुरक्षा और सम्मान रक्षा” के नाम से अपना एक एनजीओ स्थापित कर लिया था। 

इस एनजीओ कार्यालय में, नियमित रूप से दो घंटे का समय देकर मैं, अवसाद ग्रस्त या/और प्रेम में धोखा खाई लड़कियों, युवतियों तथा पीड़ित पत्नियों की समस्याओं को सुनता था। उन्हें, आवश्यक मनोवैज्ञानिक संबल और मार्गदर्शन प्रदान करता था। जहाँ आवश्यक होता वहाँ, अपने खर्चे पर पीड़िताओं को कानूनी सहायता भी दिलवाता था।  

इस तरह बीते पिछले लगभग सात वर्षों में, दिव्य शक्ति के साथ से, हम दोनों निरंतर प्रेरित रहे थे। 

अनन्या और मैं साथ होकर, अपनी आंखे मिला कर इंद्रधनुषी किरणें उत्सर्जित करते और उनसे, मानव दृष्टि में आये, अति कामुक एवं अनैतिक वासना का जाला साफ़ करने के उपक्रम करते रहे थे। 

हम (अनन्या एवं मैं) जहाँ भी भीड़ भरे कोई आयोजन होते वहाँ, दर्शक के तरह हिस्सा लेते थे। अपनी आँखे मिलाया करते। हमारी आंखें मिलने से स्क्वायर हुई रेनबो रेज़, स्थल में प्रसारित करते थे। जिससे मानव दृष्टि और विवेक निर्मल होते  जा रहे थे।

देश समाज में, उत्तरोत्तर रूप से निर्मल हुई मनुष्य दृष्टि से, नारी विरुद्ध अपराधों का ग्राफ क्रमशः नीचे आता जा रहा था। 

अपने इस उपक्रम में, अपने लक्ष्य की दिशा में, उपलब्धि अधिक बढ़ाने के लिए, अनन्या सहित मैं, अरूचिकर कई काम किया करता था। 

हम क्रिकेट मैचों के दर्शक हुए थे। हम, कई धरना प्रदर्शन की भीड़ में शामिल हुए थे। और तो और, कुंभ तथा ईद की नमाज अदा करते श्रध्दालुओं को देखती भीड़ में भी हम शामिल हुए थे। 

अपराधों की कमी से समाज तुलनात्मक रूप से अधिक सुखद हुआ था, मगर कोई नहीं जानता था कि इसके पीछे दिव्य शक्ति, हमें माध्यम बनाकर सक्रिय थी।   

आज अभी, डॉ अनन्या मेरे “नारी सुरक्षा और सम्मान रक्षा” वाले कार्यालय में आई है, स्वयं के हृदय पर हाथ रखते हुए, मुझसे कह रही है - 

डॉ., इस अकेली पड़ गई नारी की समस्या का समाधान कीजिये। 

अनन्या की यह भाव-भंगिमा अत्यंत मन लुभावन है। मन ही मन मैं, उसका प्रशंसक होता हूँ। फिर अपनी हँसी रोकते हुए कहता हूँ - 

आदरणीया, क्या समस्या है आपकी?

अनन्या गंभीरता से कहती है -  

मैं, अभी ही डॉक्टर हुई हूँ। मेरा अपना कोई क्लिनिक नहीं है। मैं, किसी हॉस्पिटल में अप्लाई भी नहीं कर सकी हूँ। अपने चिकत्सीय ज्ञान का लाभ, रोगियों को कैसे प्रदान करूँ, समझ नहीं आ रहा है?

उसके पापा स्वयं एक विख्यात डॉक्टर हैं। फिर भी अनन्या के ऐसे कहने से  मैं, समझ चुका था कि अनन्या, मेरे साथ काम करना चाहती है। मुझे, उस के बेचारगी के इस जबरदस्त अभिनय पर, अपनी हँसी रोक पाना कठिन हो रहा था। 

तब अचानक, मुझे अपना प्रथम सपना स्मरण आ गया। फिर मैंने, अनन्या को समस्या का निदान/परामर्श यह कह कर दिया - 

आपको, मेरे साथ केदारनाथ दर्शन को चलना होगा। वहाँ से लौटने पर, आपको, मेरे क्लिनिक में रोगियों के उपचार करने का नियुक्ति पत्र मिल जाएगा। तब आप अपना, कार्यभार ग्रहण कर सकेंगी। 

वास्तव में, मेरे पहले सपने में मैंने, केदारनाथ दर्शन किये थे। मगर अब तक साक्षात दर्शन, कभी नहीं कर सका था। अब जब हम दोनों (अनन्या और मैं) डॉक्टर हो गए हैं तब, यह समुचित अवसर था कि हम, मेरे सपने में दिव्य शक्ति के संकेत को समझते हुए केदारनाथ की यात्रा करें। 

अनन्या ने पूछा - बुकिंग, कब की करानी होगी?

मैंने कहा - अब तक आप, अर्थ अर्जन नहीं कर सकी हैं , अतः इस यात्रा की सारी बुकिंग मैं, करवा रहा हूँ। 

फिर इसके सातवें दिन हम, केदारनाथ मंदिर में दर्शन कर रहे थे।                                        

अनन्या ने अपना, ऑटोमेटिक कैमरा साथ लाया था। जब हम आरती कर रहे थे तब अनन्या ने, ऑटो वीडियो शूट मोड पर, कैमरा सामने रख दिया था। 

मंदिर दर्शन उपरान्त जब हम धर्मशाला लौटे तब, हमने कैमरे में वीडियो देखा। 

देखते हुए मैं चौंक गया। वीडियो देखकर आवेशित स्वर में मैंने, अनन्या से पूछा - 

अनन्या, क्या आप एक विशेष नई बात, इस वीडियो में नोटिस कर सकी हो?

अनन्या ने, मुझे हैरानी से देखा और उल्टा प्रश्न किया - आप इतने एक्साइटेड क्यों हो, मैं समझ नहीं पा रही हूँ? 

तब मैंने, अनन्या से वीडियो रि-प्ले करने को कहा। 

फिर अनन्या को मंदिर का वह दृश्य दिखाया जिसमें हम, आरती कर रहे हैं और बीच में, हम दोनों की आँखे मिल जाती हैं … 

(अगला भाग समापन अंक)

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन

26-11-2020