Monday, June 29, 2015

मैं ,नारी हूँ

मैं ,नारी हूँ
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कद-काठी में छोटी , मन से कोमल होती हूँ
शोषण से व्याकुल ,विवश अकेले में रोती हूँ

चीरे-सुई* से डरती थी ,गजब साहसी होती हूँ
बोझ न सहनन थी ,महीनों शिशु को ढोती हूँ 

मरने से डरती दुनिया ,मैं मरने को होती हूँ
प्रसव-वेदना सह शिशु जन्म दे ,माँ होती हूँ

मेरे जाये पुरुष ही ,नारी त्याग न समझते हैं
अपमानित मैं ,नारी हूँ ,विवशता पर रोती हूँ
(चीरे-सुई* Operation - Injection)
--राजेश जैन
30-06-2015
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कोई किसी का नहीं होता है ?

कोई किसी का नहीं होता है ?
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"कोई हमारा हो ,से पहले हम ही तो हमारे हों
जीवन सुखद बनें जिनसे ऐसे कर्म हमारे हों
अनेकों का सहयोग है ,हम जीवन जी लेते हैं 
ऐसी अनुभूति से आभार के विचार हमारे हों"
यह कहना "कोई किसी का नहीं होता है" , गलत है। यद्यपि ,कोई किसी का हर समय नहीं होता , किन्तु जीवन भर कोई-कोई और कई-कई हमारे अपने होते हैं , जिनके साथ एवं सहयोग से हमारा जीवन सफर तय होता जाता है। इसी तारतम्य में हम भी कोई के और कई के होते रहते हैं, जिनका हम साथ एवं सहयोग करते हैं। किसी के साथी होना या सहयोगी होने से अभिप्राय ,उसे सुख और सरलता देना है। चूँकि हम सदा किसी को सुख और सरलता नहीं पहुँचा सकते हैं इसलिये यह वाक्य "कोई किसी का नहीं होता है" अक्सर कहने -सुनने में आता है।
सच कहा जाये तो ,सदा तो हम स्वयं ही अपने नहीं होते। वास्तव में हमारे कर्म कभी-कभी स्वयं अपने सुख के दुश्मन होते हैं ,हमारे अपने लिए कठिनाई बनते हैं। अतः जब हर समय ,हम ही हमारे नहीं होते तो कोई अन्य जितना भी हमारे लिए कर देता है , उतना तो हमारा होता है।
--राजेश जैन
29-06-2015
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Sunday, June 28, 2015

नारी पर अत्याचार

नारी पर अत्याचार
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"कितनी ही विज्ञान उन्नति कर ले ,
नर-नारी , नारी गर्भ से ही जन्मेंगे
माँ का दूध पिया है जिन जिन ने
नारी पर अत्याचार कभी ना करेंगे "

ऐसा कहा जाता है , पुरुष -नारी को वस्तु की तरह भोगता है , यह गलत है। अवश्य ही तुलनात्मक रूप से , पुरुष में छल ज्यादा है , और इस अधिकता के कारण अनेकों जगह पुरुष नारी को शोषित करता दिखता है। किन्तु अनेकों पुरुष ऐसे भी हैं जो आनेस्टी से नारी को सहयोग करते हैं।
कुछ की दुष्टता से नारी और पुरुष का साथ कभी समाप्त नहीं हो सकेगा। मानव सभ्यता का तकाजा है दुष्टता अवश्य ही, समाप्त की जानी चाहिये।
--राजेश जैन
28-06-2015
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Friday, June 26, 2015

अग्रणी भी किन्तु - आशंकित नारी

अग्रणी भी किन्तु - आशंकित नारी
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बच्चे के प्रश्न पर एक युवा डॉक्टर कहती हैं ,  देश में जनसंख्या समस्या है , और देश का ढाँचा और अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ती जनसंख्या को झेल पाने में अपर्याप्त है अतः राष्ट्र का प्रश्न है तो एक ही संतान (चाहे बेटी या बेटा) होना चाहिये। यह कथन ,उस जिम्मेदारी और राष्ट्रनिष्ठा को अभिव्यक्त करता है , जिसकी हमारे समाज और देश को , प्रगति और खुशहाली की दृष्टि से जरूरत है। नारी देश हित में विचारशील है , सहयोग करने को तत्पर है। उनका स्वयं का एक नौ वर्षीय बेटा है। किन्तु अगला कथन , अग्रणी नारी को भी आशंकित किये हुये है , वे कहती हैं  …
एक बच्चा तो होना चाहिये , अन्यथा समाज के दबावों को झेलना कठिन चुनौती है।
राष्ट्रहित की अनिवार्यता और समाज की सोच में , यहाँ विसंगति परिलक्षित होती है। देश में ऐसी अनेक विसंगतियाँ हैं इसलिये हम 68 वर्ष की स्वतंत्रता के बाद भी देश को वाँछित उन्नति दिलाने में असमर्थ रहे हैं। 
एक बड़ी विसंगति है , नारी जो जनसंख्या का आधे से थोड़ा ही कम हिस्सा है , असुरक्षित है , नित अपमानित है , उनकी शिक्षा और जीविकोपार्जन में पग पग पर चुनौतियाँ हैं।
हम अनदेखा कर रहे हैं , अपने स्वार्थ और वासना में उन्हें शोषित करते जा रहे हैं। आधी जनसँख्या को यदि हम कुंठित रखेंगें तो उनके साथ ही उनसे गुथे -बुने अपने जीवन को भी सुखदता से जी पाने से हम वंचित रहेंगे।
--राजेश जैन 
26-06-2015

Monday, June 22, 2015

परवाह होनी चाहिए

परवाह होनी चाहिए
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दुनिया से ,हम अनेक शिकवे -शिकायत रखते हैं , ये कम रहें इसलिए हमें दुनिया की परवाह होनी चाहिए। परवाह होने पर ही हमारे कर्म -आचरण इस तरह मर्यादित हो सकते हैं जो अन्य को अप्रिय नहीं लगते हों। लेकिन , हम भूल करते हैं कि दुनिया को हमारी परवाह नहीं ,तो हम दुनिया की परवाह क्यों करें ?
वैसे तो समय के साथ मानव यात्रा स्वचालित (ऑटोमैटिक) चलती है , बिना विचारे भी रहें और अकर्मण्य रहें तो भी ऑटोमैटिक जीवन व्यतीत होता है। लेकिन ऑटोमैटिक चलने वाली किसी यात्रा का अंत सही लक्ष्य तक पहुँचेगा यह जरूरी नहीं है।  वृक्ष से टूटकर फल नीचे ही गिरता है , जल प्रवाह ऊँचाई से नीचे की ओर ही होता है , दोनों ऑटोमैटिक बातें हैं। 
मनुष्य बिना विचारे अपना जीवन ऑटोमैटिक चलने दे तो , वह ऊँचाई से नीचे (पतन) की ओर ही चलेगा। जीवन में हमें ऊर्जा मिलती है , उसका प्रयोग कर हमें पतन की ओर न चलकर , जहाँ उचित है , ऊँचाइयाँ हासिल करनी चाहिये। ऐसा करने पर ही हम समाज और संसार को ऐसी मंजिल पर ला सकेंगे , जहाँ हमारा ही नहीं अपितु अधिकाँश का जीवन सुखद हो सकेगा। और हमारे दुनिया से शिकवे शिकायत कम हो सकेंगे। अपने बच्चों और आने वाली पीढ़ी और समाज के प्रति हमारे यह उत्तरदायित्व होते हैं। हम विचारशीलता से अपने कर्म -आचरण करें , ऑटोमैटिक नहीं बल्कि अपने जीवन के हर क्षण पर अपना नियंत्रण रख अपना जीवन जियें।  स्वयं भी ऊँचाइयों को प्राप्त करें और अपने समाज को मधुरता की ऊँचाई पर स्थापित करें।
--राजेश जैन
22-06-2015

Thursday, June 11, 2015

भय लगता है

भय लगता है (पुरुषों से अतिरिक्त नारी भय)
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द्वार-बाहर …
कॉलेज ,ऑफिस में पास बैठ कोई हरकत न करदे इससे …भय लगता है        …
सार्वजनिक जगहों में जाने पर अंगों को घूरती नज़रों से …भय लगता है
बस -ट्रेन, यात्रा, भीड़ में बहाने से रगड़ ना दे कोई इससे …भय लगता है
रूचि नहीं सम्पर्क नहीं मेरा ,उनकी मुझमें रूचि से मुझे …भय लगता है
घर -परिवार …
माँ -पापा उच्च शिक्षा अवसर देंगे या नहीं इस ख्याल से …भय लगता है
माँ -पापा को मेरे विवाह पर परेशानी होगी इस ख्याल से …भय लगता है
विवाह बाद अपरिचित परिवार में निभ सकूँगी ख्याल से …भय लगता है
शारीरिक-नारी संरचना …
किस अवसर किस जगह पीरियड आ जायेगें इस भय से …भय लगता है
माँ बनना तो ख़ुशी इसके पहले प्रसव वेदना के ख्याल से …भय लगता है
सामाजिक परिदृश्य …
पापा ,भाई ,पति एवं स्वयं मेरी ,मुझ पे खतरे की चिंता से …भय लगता है
--राजेश जैन
11-06-2015
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Wednesday, June 10, 2015

मैं , नारी हूँ

मैं , नारी हूँ
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गर्भ से ही , मेरी चुनौती आरम्भ होतीं हैं
मार दी न जाऊँ तो ही जन्म लेती हूँ

बेटी तो, पापा की लाड़ दुलारी होती हैं
बाहर , कुदृष्टि के तीरों से आहत होती हूँ 

बेटी पर बेटे की तुलना में पाबंदियाँ होती हैं
उन्नति अवसर न मिलते मन मार लेती हूँ 

शादी किसी के बेटे का ,मुझ बेटी से होती है
पापा, को नतमस्तक देख पीड़ा सह लेती हूँ

प्रेमिका रहती जब तक नारी प्रिया होती हैं
पत्नी होकर मिलती ,पति उपेक्षायें ,सहती हूँ

माँ , छोटे बच्चों की प्राण से प्यारी होती हैं
बढ़े हुये ,एकतरफा उनसे ममता रखती हूँ

नारी यौवन-रूप जब तक ,आकर्षण केंद्र होती हैं
घटते ही ,दूध की मक्खी सी निकाल फेंक दी जाती हूँ  

मनुष्य हूँ , स्वाभिमान मेरे भी होते हैं
ना चाहूँ साथ तो बहलावे-फुसलावे देखती हूँ

मनुष्य होकर मैं ,जानवर सी प्रयोग की जाती हैं
क्योंकि पुरुष नहीं , मूक सी ,मैं नारी रहती हूँ

क्या लूँ बदला , सब तो मेरी संतान होती हैं
बदलूँगी अब लेकिन स्वयं , मैं नारी कहती हूँ
--राजेश जैन
11-06-2015
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लक्ष्य न नेक हैं

लक्ष्य न नेक हैं
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प्रख्यात ,शक्तिवान ,सबके चहेते अनेक हैं
गुणगान गाने को प्रशंसक इनके अनेक हैं
चहुंओर ,समस्या ,बुराई के लगते अम्बार
देख लगता इन सफल के लक्ष्य न नेक हैं

डॉक्टर दवाखाने और दवा दुकानें अनेक हैं
उपचार अभाव देख लगता लक्ष्य न नेक हैं

देश में न्यायालय एवं पुलिस थाने अनेक हैं
अपराध बढ़ोत्तरी देख लगता लक्ष्य न नेक हैं

देश के परिवारों से पढ़ निकल होते हैं ये सफल
समाज वेदना देख लगता शिक्षा लक्ष्य न नेक हैं

शिकायतों और आरोप-प्रत्यारोपों का मचता शोर
समाधान हेतु एकजुटता के विचार लक्ष्य न नेक हैं
--राजेश जैन
10-06-2015
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Tuesday, June 9, 2015

हॉट-लेडी/गर्ल

हॉट-लेडी/गर्ल
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आदर्शों की प्रेरणा देने वाले , स्वयं उतना अच्छा न जीते हैं
कथनी से करनी मिलाने को , अन्य से वे अच्छा जी लेते हैं

माँ-बहन जैसे ,नारी को सम्मान से देखें ,यही आदर्श तो होते हैं
न उतना ,सबमें गर्लफ्रेंड ही नहीं देखें जो ,वे आदर्श करीब होते हैं

आज हॉट कहलाना जिन्हें अच्छा लगता ,सच से वे अनजाने हैं
कुछ वर्षों में हॉट क्या होता ,किस्से सिने इंडस्ट्री में जानेमाने हैं  

जो कहलाती थी हॉट , अपमानित -अकेला अंत उनका रहा है
संतुलन रख पाती रही उपलब्धियाँ, आदर सदा उनका रहा है
--राजेश जैन
10-06-2015
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नारी चेतना ,सम्मान


नारी चेतना ,सम्मान
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सफलताओं से ना अभिभूत हो जाइये
प्रशंसाओं में अभिभूत हो ना खो जाइये
दुःखी है समाज ,छली जा रही है नारी
इनकी भलाई करने , हौंसला जुटाइये

देश रगड़ रहा एड़ियाँ सड़कों पर
नारी जूझती अपनी आन बचाने पर
टीवी पे लगते सेलिब्रिटीस अट्टाहास ,बुरे
तरस आता ,जो 'सफल' उनकी समझ पर

परोपकार करते हाथों की ,समाज जरूरत है
दम तोड़ते भले विचार ,बचाने की जरूरत है
बहन ,पत्नी-बेटी न छली जाये ,चाहते अगर
नारी चेतना ,सम्मान बढ़ाने की जरूरत है
--राजेश जैन
09-06-2015
https://www.facebook.com/narichetnasamman

Monday, June 8, 2015

नारी फोटोज -भद्दे कमेंट्स

नारी फोटोज -भद्दे कमेंट्स
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विशेषकर भारतीय नारी (और पुरुष) के फेसबुक प्रयोग पर दृष्टि डाली जाये तो स्पष्ट होता है कि इन्हें अपने फोटोज़ पोस्ट करना अच्छा लगता है। एक बात बड़ी मजेदार दिखाई देती है , शादी करने के लिए , कन्या देखता पुरुष तो , नयन नक्श पर बहुत नखरे करता है , किन्तु आश्चर्यजनक रूप से fb पर परिचित /अपरिचित नारी की फोटो , जिसमें कोई अधबूढ़ी या साधारण भी दिखती हो , वह ,बहुत ही खुले हृदय से प्रशंसा करता है।
यह प्रशंसा शालीन शब्दों में भी हो तो , कम से कम हमारी नारी के आत्मविश्वास की बढ़ोत्तरी में सहायक होती है। किन्तु , अपरिचित होने या फेक id में छिपे होकर अनेकों पुरुष ,नारी फोटोज पर बहुत भद्दे /अश्लील कमेंट करते हैं। ये कमेंट हमारे समाज में विध्यमान मनोरोग से हमें परिचित कराते हैं , जिसे भाँप कर लगता है कि सद्प्रेरणाओं से उपचार नहीं किया गया तो , शालीनता की भाषा शीघ्र ही इतिहास रह जायेगी।
नारी पक्ष की बात करें तो , अपवाद छोड़ दें (और उस id की बात छोड़ें , जो किसी पुरुष ने नारी भेष और नाम से बना रखी है ) तो , किसी भी युवती /प्रौढ़ा को उनकी फोटोज पर भद्दे कमेंट आहत ही करते हैं। अनेकों प्रकरणों में , इससे क्षुब्ध नारी ने अपने fb-id डीएक्टिवेट करना ही विकल्प चुना है।  बचाव के लिए अपने अपने तरीकों से उन्होंने सतर्कता और उपाय किये हैं। 
हमें नारी से सहानुभूति है साथ ही ऐसे पुरुष बुध्दि पर तरस आता है।  हासिल तो उन्हें कुछ नहीं होता लेकिन , हृदय दुखाने का पाप उन्हें जरूर लगता है। जो हमारे देश -समाज के हितैषी नहीं उनको इस मनोरोगी परिदृश्य पर बहुत प्रसन्नता होती होगी।
अपने समाज को हम स्वयं सुधारें इस हेतु -इस विचार से सहमत प्रबुध्द नारी से आव्हान है , कि वे उपयुक्त पेज और ग्रुप के माध्यम से कड़ाई से पुरुषों को अवगत करायें कि भद्दे /अश्लील कमेंट्स से उन्हें ख़ुशी नहीं होती बल्कि अपमान लगता है। ऐसा करने पर मनोरोगी दिमाग की यह गलतफहमी दूर हो सकेगी कि पुरुष बेशर्मी , भारतीय नारी को अब भली लगने लगी है।
--राजेश जैन
08-06-2015
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Sunday, June 7, 2015

षड़यंत्र

षड़यंत्र
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विचार कीजियेगा , नारी या पुरुष जब अकेला होता है ,
उसे हर बात के लिए बाजार पर निर्भर रहना होता है।
बाज़ार में उपलब्ध उसे कई ऐसी चीजें मिलती हैं ,
जो गुणवत्ता में घरेलु तैयार हो सकने वाली चीजों से
कमतर (हानिकारक) होती है।
यदि लोग परिवार में रहेंगे तो बहुत सी बातों के लिए ,
बाज़ार में स्कोप ही न रहेगा।
इसलिए बाजार से अनाप शनाप धन कमाने वाले चाहते हैं ,
परिवार बिखर जायें। ताकि उनके अपने स्वार्थ और मंतव्य सिध्द
हो सकें। पति -पत्नी में बढ़ाई जा रही दूरियाँ ,ऐसों द्वारा दिया 
एक सोचा समझा षड़यंत्र है।
नारी -पुरुष  दोनों के लिए परिवार में रहना ही उचित है ,
इसलिए उनमें परस्पर सम्मान और विश्वास का होना जरूरी है.
साथ ही यह भी जरूरी है , अपने जीवनसाथी में कमी नहीं
उनकी प्रशंसनीय बातों को चर्चा में रख आपसी प्रेम
बढ़ाया जाए।
--राजेश जैन
08-06-2015

दुष्प्रचार - षड़यंत्र है

दुष्प्रचार - षड़यंत्र है
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मालूम नहीं कौन प्रचारित करता है
नब्बे प्रतिशत पति दुःखी हैं पत्नी से
और पति जो ऐसा नहीं कहता है
वह पत्नी से डर के झूठ कहा करता है

इसे पढ़ प्रभु ,पत्नी का दोष न मान लेना
संतोष ,आउट ऑफ़ फैशन हुआ लगता है
मनुष्य कामनायें बढ़ गई है इस हद तक 
इंद्र ,स्वर्ग का होने पे दुःखी वह हो सकता है

षड़यंत्र है ,यह दुष्प्रचार है
अब मनुष्य का परिवार में रहना बाजार को नहीं भाता है
व्यवसायिक लाभ के लोभियों को
तोड़ने को परिवार, परिवार विरुध्द यह दुष्प्रचार सुहाता है

खिलौना बाजार के हाथों अनायास न का बन जाओ
तुम पति -पत्नी पर जोक्स प्रवृत्ति से बाज आ जाओ
--राजेश जैन
07-06-2015
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Saturday, June 6, 2015

बदलो प्रभु

बदलो प्रभु
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बहू ,पत्नी या अन्य नारी को अच्छी नहीं कहते
हमें स्वयं अपनी ही कमीयाँ लगती हैं
अच्छाई तो सभी में जन्मजात गुण होते ऐसे में
क्यों ना वे अच्छा व्यवहार हमसे रखती हैं

बेटे को ऊँगली थाम जिस माँ ने चलना सिखलाया
माँ को अपनी सिखा रहा स्कूटी ,वक़्त ने पलटा खाया

बदल रही आज जीवन शैली , बदल रही है आज नारी
अपनी दृष्टि बदलो प्रभु ,संकुचित पड़ती नारी पे भारी 

सम्मान ,सुरक्षा दो नारी को , सम्मान बढ़ाएगी वह घर का
अनुकूलता ,साथ प्रगति का होगा ,काम आएगा वह घर का
--राजेश जैन
07-06-2015
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हितकारिणी नारी

हितकारिणी नारी
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व्यर्थ पूछना है ,'प्यार' या माँ-पिता ज्यादा महत्व रखते हैं
व्यर्थ प्रश्न ,बच्चे की माँ या पिता ज्यादा महत्व रखते हैं

व्यर्थ सोचना यह कि नारी या पुरुष का महत्व ज्यादा है
व्यर्थ प्रश्न यह कि कमाऊ या ग्रहणी का महत्व ज्यादा है

हर मनुष्य का जीवन भिन्न सफर ,भिन्न संघर्ष होता है
नारी तथा पुरुष का महत्व और सम्मान बराबर होता है

जन्म ,परिवेश ,परिस्थिति से भिन्न भूमिकायें होती हैं
अपनी अपनी क्षमता ,यत्न से भूमिका निभाली होती हैं

पुरुष ने सीने में दुःख चुप रख लेने का साहस दिखाया है
नारी ने अस्तित्व ही पुरुष में विलोपित कर दिखलाया है

नित नई-नई उपलब्धियां आधुनिका हुई नारी की जारी है
हितकारिणी नारी में अस्तित्व लीनता की पुरुष की बारी है
--राजेश जैन
06-06-2015
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Friday, June 5, 2015

मनुष्य

मनुष्य
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उसकी दृष्टि लगभग पचास मी. आगे पड़ी और उसके कदम अचानक तेज हो गये।
वह तब पीछा कर रहा था , - धन का नहीं , राजनैतिक पार्टी का नहीं , सिनेमा का नहीं , किसी सेलेब्रिटी का नहीं , किसी नारी का नहीं।  और तो और किसी धर्म का भी नहीं।
वह पीछा कर रहा था -...
सामने रास्ते पर लकड़ी से टटोलते , सुबह भ्रमण को निकले , राजकुमार कुरील साहब का जो दृष्टिहीन थे। उनको पथ-प्रदर्शन के लिये , उनके भ्रमण को सरल करने के विचार ने उसके कदमों को स्फूर्त कर दिया था।
दो -तीन मिनट में साथ आ कर अब वह उनकी लकड़ी थामे , उन्हें अपने साथ चला रहा था। उसके मन में विचार कौंध रहे थे। उसे लग रहा था , उसके कदमों में आई व्यग्रता , मानवता की दिशा की ओर बढ़ने की प्रेरणा के कारण थी।
इस समय उसे लग रहा था जैसे वह अपने आप को मनुष्य सिध्द कर सक पा रहा था …

--राजेश जैन   
06-06-2015

यह नारी उपहास, उचित ?

यह नारी उपहास, उचित ?
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जंगल में मिली चुड़ैल से एक पुरुष यह कहता है
तेरी बहन मेरी पत्नी इसलिए तुझे पहचानता हूँ

5 में माँ ,दस मिनट में बहन को समझा सकता हूँ
पत्नी है ऐसी जिसे पूरे जीवन न समझा सकता हूँ

पत्नी पे निर्भर कृतघ्न पति यों उपहास उड़ाता है
ऐसी पोस्ट से हँसी नहीं मर्दानगी पे रोना आता है

मौके न देते नारी को उपयोग कर उस पे हँसते हो
देहसुख पाने को सामने फुसलाते नाक रगड़ते हो

वीर जो होते कभी निहत्थे पर प्रहार नहीं करते हैं
वीर जो होते श्रध्दा नारी के मन पर राज करते हैं

स्पर्धा स्वस्थ वह जिसमें समान साधन सबको मिलते हैं
उसे समतुल्य बनने दो वीर यदि नारी से स्पर्धा चाहते हो

गृहहिंसा , छेड़छाड़ , रेप फुसलावे ना तुम नारी पे करो
मिले मान , सुरक्षा, अवसर उनको, तुम उपाय ये करो
--राजेश जैन
05-06-2015

Thursday, June 4, 2015

हमें चाहिए हैं

हमें चाहिए हैं
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धन प्रतिष्ठा हम से कमाते , बुराई समाज में विदेश से ला देते हैं 
सेलिब्रिटी और दिग्भ्रमित करते मीडिया अब नहीं हमें चाहिए हैं

मनोरंजन की घुट्टी में मिला, हानिकर बुराई फ्लेवर हमें पिलाते हैं 
विदेशी एजेंट का पात्र निभाते सेलिब्रिटीज ,अब नहीं हमें चाहिए हैं

कृतघ्न सेलेब्रिटीज ने स्वतंत्र हिन्द की समाज संरचना बिगाड़ी है
छवि चमका इनकी ,भटकाता मीडिया पीढ़ी को नहीं हमें चाहिए है  

नहीं विवेक ,किस का चरित्र बनाना किस का चरित्र हनन करना है
मानदंड जिनका पैसा ,स्वार्थी ऐसा मीडिया अब नहीं हमें चाहिए हैं

प्रसार तंत्र में प्रभाव जमाकर दुर्दिन स्वतंत्र हिन्द को दिखलाये हैं
सुंदर ,धनी ,स्मार्ट त्याज्य ,साकार ,सपना नवहिंद हमें चाहिए हैं 

अधभूखे , सादे साधारण ,भले वह , राष्ट्र निर्माण भावना रखते हैं
ऐसे हीरो यत्न से जिनके बनती 'सुंदर हिन्द तस्वीर' हमें चाहिए हैं
--राजेश जैन
05-06-2015

बड़ी बात है -नारी


बड़ी बात है -नारी
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नारी का सिगरेट ,शराब पी होटल ,पब में
नच लेना नहीं बड़ी बात है

ग्लैमर दर्शन प्रभाव से कामुकता में अवैध
संबंध कर लेना नहीं बड़ी बात है   

उच्च गरिमा खो निम्न मर्यादाहीनता ओर
बह जाना नहीं बड़ी बात है 

चेतना, सम्मान की स्वच्छ परंपरा हेतु
प्रेरणा-नारी बन दिखलाना बड़ी बात है 

पढ़-लिख ,धन प्रसिद्धि पाने से बढ़कर
नारी हित का समाज बनाना बड़ी बात है

समझीं ,नारी जीवन की चुनौतियाँ जिसमें
सम्मान से नारी का जी लेना बड़ी बात है

बुरी बन जाये नारी , नहीं बड़ी बात है
बुरे से फिर अच्छी बन जाना बड़ी बात है
--राजेश जैन
04-06-2015

Wednesday, June 3, 2015

बड़ी बात है


बड़ी बात है
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आ गया टेबल टेनिस खेलना तब लगा
बॉल टेबल पर खेलना नहीं बड़ी बात है

हासिल करली उपाधि इंजीनियरिंग तब
लगा इंजीनियर होना नहीं बड़ी बात है

चला लिए कार ,ट्रक और बाइक तब
लगा वाहन चला लेना नहीं बड़ी बात है

फेसबुक पेज लाइक हुये कई हजार तब
लगा लाइक किया जाना नहीं बड़ी बात है

भ्रष्ट हो गए देश समाज वातावरण में
नहीं स्वयं भ्रष्टाचर करना बड़ी बात है

स्व सम्मान प्रतिष्ठा धन अर्जन से अधिक 
दूसरों को सुरक्षा सम्मान देना बड़ी बात है
--राजेश जैन
04-06-2015

माँ-नारी और पुरुष


माँ-नारी और पुरुष
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माँ ने लालन पालन किया जिनका , नारी से छल नहीं करते हैं
बलवीर हुए माँ के दूध के सेवन से , नारी पे हिंसा नहीं करते हैं

माँ ने जिन्हें बोलना सिखाया , सम्मान सदा नारी का करते हैं
माँ ने जिन्हें चलना सिखाया , पथभ्रष्ट नहीं नारी को करते हैं

छेड़छाड़ अश्लीलता करते ,लज्जित कर माँ का शीश झुकाते हैं
यौनशोषण ,ब्लैकमेल नारी से करके ,वे माँ का हृदय दुखाते हैं

नारी पे गंदी दृष्टि ,नारी को मनुष्य नहीं भोग्या माना करते हैं 
मढ़ते कलंक राष्ट्र ,समाज पर अपनी माँ को कलंकित करते हैं
--राजेश जैन
03-06-2015

Tuesday, June 2, 2015

पापा और भगवान

पापा और भगवान
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भगवान से आप पापा घर में हमारे रहते थे
भगवान से शुभेक्छु पापा ,बच्चों के होते थे

भगवान सा आशीर्वाद आपका हम सब पे होता था
प्रेरित करते जिस पथ पे, चल सुख हमें मिलता था

भगवान की छत्रछाया जैसी जग पर होती है
आपके होने से वैसी अपने घर पर रहती थी

कहते हैं भगवान सबके लिए अच्छा करते हैं
वैसे ही आप सदैव हमारे लिए अच्छा करते थे

हमारी ही ख़ुशी में ,आपने अपने जीवन सुख माने थे
हमारे आचरण में ख़ुशी आपकी इससे हम अनजाने थे 

साक्षात देखे भगवान आपमें ,अदृश्य अब आप हो गए
है साथ हमारे आर्शीवाद आपका ,पर बेरंग सपने हो गए
--राजेश जैन
03-06-2015

Monday, June 1, 2015

नारी-पुरुष में अपनी अपनी अच्छाइयां

नारी-पुरुष में अपनी अपनी अच्छाइयां
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नारी -पुरुष के कार्यालयीन कार्यों में
कार्य के बीच क्यों शरीर आ जाते हैं ?
मित्र हुए नारी पुरुष जब ,विषयों में
रूप सौंदर्य क्यों प्रमुखता पा जाते हैं  ?

चुंबकीय आकर्षण के इन घेरों में
नियंत्रित स्वयं अपने को करना होगा
हमें ,छल से बचते ,न स्वयं छल करते 
देश समाज को स्वस्थ रीत देना होगा

प्रकृति प्रदत्त गुण ,शक्ति ,आकर्षण
इन्हें व्यवस्थित रूप हमें देना होगा
नारी-पुरुष में अपनी अपनी अच्छाइयां
समान हैं समान सम्मान देना होगा
--राजेश जैन 
02-06-2015