Thursday, December 31, 2015

नारी अंतरंगता


नारी अंतरंगता
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 हर  हृदय में  अच्छा बहुत  कुछ  रहता है
 खींचा  गया  चित्र वह  अच्छाई  कहता है
 पीढ़ी  तुमने कैसी  लगाई है चित्र प्रदर्शनी
 नारी अंतरंगता ही क्यों? चित्र-चित्र कहता है
#गर्लफ्रेंड
 माँ  है , बहन  है , बेटी  है , 'हे पुरुष '
 गर्लफ्रेंड के  आकर्षण में क्यों खोता है
 अगर जीवन में यह प्रधान बात है तो
 बहन बने गर्लफ्रेंड क्यों गुस्सा होता है
#गरिमा
चित्रकार हैं मित्र  मेरे , प्रकृति चित्र  उकेरते हैं
चित्रों के माध्यम  से , वे जीवनशैली  कहते हैं
कहीं नहीं  बैर , कोई अश्लीलता  उन चित्रों में
गरिमा-सभ्यता ही उनका चित्र-चित्र कहता है
--राजेश जैन
31-12-2015
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Tuesday, December 29, 2015

क्या ये जीवन है ?

क्या ये जीवन है ?
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खुशियाँ दिलाते अब रूपिये
ये क्या ज़माना आया है
अभाव में टूटते नाते-रिश्ते
कैसा विकास हमने पाया है
 
वृध्द माँ-पिता हैं उपेक्षित
रूपये लगते उनके उपचार में
उपचार अभाव में चल देते जब
कोसते स्वयं को हम मलाल में
 
सुधारो यह उपचार पध्दति
लाओ सेवा भाव अस्पताल में
बच्चे फर्ज न निभा सके
क्या ये जीवन है ? ऐसे विकास में
--राजेश जैन
30-12-2015



Monday, December 28, 2015

वर्ष 2015 विदा हो रहा है ,पर पहले ही इसमें एक महापुरुष विदा हो गया


वर्ष 2015 विदा हो रहा है ,पर पहले ही इसमें एक महापुरुष विदा हो गया
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जो हम चाहते मानवता पर चलना
कुछ अलग तरह से हमें जीना होगा
बदलना चाहते जग को ,नेतृत्व हेतु
नस्ल ,देश ,जाति से ऊपर उठना होगा
             जाति , नस्ल आधारित ये विश्व बना
             भाषा एवं देश की सीमाओं में ये बँटा
             सुख नहीं दिया इन सबने जीवन को
             हमने इसमें बदलाव का दायित्व चुना
तोड़ देनी होगीं ये भ्रम की सीमायें
सुख समृध्दि एक सी करनी होगी
वेदना क्या होती दूसरे के तन मन की
अपने पर बिता ये कल्पना करनी होगी
           अपने लिए भोग-उपभोग की प्रवृत्ति
           मान सफलता की अपनी जीवनशैली
           ये तारीफ़ नहीं ,ये हैं अपनी कमजोरी
           नई आधुनिक शैली ये बदलनी होगी
--राजेश जैन
29-12-2015

Sunday, December 27, 2015

युवा काल

युवा काल
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बीत रहा है युवा काल , लौट फिर कभी न यह आएगा
ग्लैमर बिकता अभिनेत्री का ,न उनका भी रह पाएगा
बदलता मौसम , वैसा बदल नया जीवन मौसम आएगा
सदकर्म हैं करने को करें ,अन्यथा शेष करना रह जाएगा

चिरकाल न रहती युवावस्था ,न रखें चाहत ,बने रहने की
बेचें जो ग्लैमर ,उनके लिए छोड़ें चाहत युवा बने रहने की
हम अर्जित करते थोड़ा कुछ ,आजीविका चलाये रखने को
हमें नहीं चाहत अरबों की ,करें भलाई ,जरूरत है करने की 

यह देश हमारा ,समाज हमारा ,हमारे अपने सब देशवासी
भला अपना ,हो भला सबका भी ,खुश रहें सब भारतवासी
--राजेश जैन
28-12-2015
 

Wednesday, December 23, 2015

एसिड अटैक (लघुकथा) Acid attack

एसिड अटैक  (लघुकथा)
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किशोर , अपने ऊपर लगे आत्महत्या के प्रयास के आरोप की सुनवाई में  न्यायालय के समक्ष ,अपना पक्ष रखते हुए कह रहा था।  जज साहब , उस रात मैं एक भयानक सपना देख रहा था , जिसमें मैंने एक लड़की जो मेरा प्रेम आग्रह ठुकरा गई थी के मुख पर एसिड फेंक दिया था। मेरे इस कृत्य पर उसके घर वाले इतने कुपित हुये कि उन्होंने बदला लेने के लिए मेरे ऊपर भी एसिड डाल दिया। जज साहब , इस अटैक के बाद मेरा जला हुआ कुरूप चेहरा , आईने में देख मैं सपने में इतना निराश हुआ कि नींद में ही चल कर मैं ,कुयें में कूद गया था ।
जज , आरोपी की सफाई बड़े अचरज के भाव से सुन रहे थे , एक पॉज , के बाद किशोर ने आगे कहना जारी किया .. जजसाहब , निवेदन है कि मुझे सजा से मुक्त किया जाये।  मैं आगे के जीवन में किसी लड़की पर ऐसा अमानवीय एसिड अटैक न हो इसके लिए काम करना चाहता हूँ।  और जहाँ भी किसी पुरुष ने यह कायराना अपराध , नारी पर किया उसका मुहँ मैं एसिड से बिगाड़ने की शपथ उठाता हूँ।
जज ने किशोर को आगे कहने से रोकते हुए , अपना फैसला सुनाया , किशोर तुम्हें आरोप मुक्त किया जाता है।  तुम एसिड अटैक रोकने हेतु मानवीय और सामाजिक कार्य अपने जीवन में करोगे ,इस भावना की प्रशंसा की जाती है।  लेकिन तुम्हें आगाह किया जाता है कि  एसिड अटैकर के ऊपर एसिड डालने का कार्य तुम नहीं करोगे , ऐसे किसी भी अपराध का न्याय करने की जिम्मेदारी देश के न्यायालयों की है।
--राजेश जैन
24-12-2015
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ज्योति सिंह (निर्भया)

नारी चेतना और सम्मान रक्षा
ज्योति सिंह (निर्भया)
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ज्योति तुम अत्याचार से असमय बुझ गईं
 भारत की सँस्कृति में निर्भया बन जुड़ गईं
 नारी संघर्ष राह में ये बलिदान न व्यर्थ होगा
 नारी चेतना के लिए ज्योत तुम जगा गईं
कैसी है विडंबना तुम ,तुम्हारे अपराधी को
अवयस्क अतः सख्त सजा नहीं दिला गईं
पर अपराध घटे नारी पर ,मरणोपरांत तुम
किशोर कानून बदले  जाने का श्रेय पा गईं
जी जीकर जो कार्य करना हो रहा था दुष्कर
अत्याचार पीड़ा झेल मर के तुम वह कर गईं
तुम्हें खोया माँ ने ,उनके नेत्र भरे अश्रुओं से 
पर राष्ट्र की युवतियों का सम्मान जगा गईं
--राजेश जैन
23-12-2015
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Monday, December 21, 2015

जीवनचक्र और आधुनिकता

जीवनचक्र और आधुनिकता
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भारतीय परिवेश में आज , एक दंपति के जब बच्चे होते हैं , वे तीस के आसपास होते हैं। उनकी 45-50 की आयु तक ,बच्चे लगभग सारी तरह से उन पर निर्भर होते हैं। साफ है , लाड़-दुलार , मार्गदर्शन और भोजन वस्त्र की व्यवस्था , धन और सामर्थ्य से माँ-पापा करते ही हैं। दो और बात होती हैं  , जो दया-त्याग कहलातीहैं ,भी बच्चे के लालन-पालन में आवश्यक होती हैं । हममें यथोचित दया-त्याग होने पर , अपने निर्भर बच्चे को हम ज्यादा पीटते नहीं हैं। यह दया-त्याग भी एक इन्वेस्टमेंट होता है।  पचपन-साठ के होते होते ये बच्चे , तीस  के हो जाते हैं। और तबके आश्रयदाता पापा-माँ , अब धीरे धीरे बच्चे के आश्रित होते जाते हैं। अब समय पलटा होता है , अब दया की जरूरत इन माँ-पापा को होती है। अगर लालन-पालन के समय दया और त्याग हमने लगाया होता है , तो प्रतिफल में ये एक संस्कार बनते हैं , जिसके होने पर बड़े हुए बच्चे अपने वृध्द पेरेंट्स की देखरेख अपनी व्यस्तता में भी दया और त्याग से करते हैं।
लेखक एक कथन और करना चाहता है कि लाड़-दुलार का अतिरेक भी दयाहीनता की श्रेणी में आ जाता है , जब बच्चे इसमें बिगड़ कर उस समर्थता के लिए तैयार नहीं हो पाते , जिससे वे अपने वृध्द माँ-पापा की जिम्मेदारी सरलता से वहन कर सकें। 
--राजेश जैन
22-12-2015
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क्या कहेंगे इसे , आप ? "शीला की जवानी .... "


क्या कहेंगे इसे , आप ?  "शीला की जवानी .... "
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स्वतंत्रता के बाद देश और समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाये जा सकते थे , यदि देश में फिल्म इंडस्ट्रीज ने अपने सामाजिक दायित्व निभाये होते।
* दुर्भाग्य इस प्रचार माध्यम ने जो घर-घर ,धीरे-धीरे पैठ बढ़ाता गया , में अय्याश प्रवृत्ति के व्यक्तियों का बोलबाला रहा।
धार्मिक गुरु ,सच्चे सामाज सुधारक और स्वतंत्रता संग्राम के हीरो पृष्टभूमि में धकेल दिए गए और फ़िल्मी लोग हीरो बन सामने हो गए। घर-घर पहुँचे इनके हल्के आचरण कर्म और विचारों ने , हमारी भव्य संस्कृति और भारतीय संस्कारों की धवलता और प्रखरता को गँदला और निस्तेज कर दिया। फिल्मों से देश में नारी और पुरुष को सिर्फ लड़का और लड़की या प्रेमी और प्रेमिका से देखे जाने की दृष्टि में सीमित कर दिया।  आडंबर और धन को देशवासियों का ध्येय और सपना बना दिया।
*दुर्भाग्य यह रहा , कहाँ से विषधारा प्रवाहित हो रही है , या तो हम समझ नहीं पाये , किन्हीं किन्ही ने समझा भी तो वे विषधारा की तीव्रता पर लगाम नहीं कस पाये।
* दुर्भाग्य एक और , यह भी रहा जो थोड़ी अच्छी और आदर्श बातें फिल्मों में रखना फिल्मकारों की लाचारी थी , उसे देख कर भी हम अपने पारिवारिक ,सामाजिक और राष्ट्रीय कर्तव्यों की प्रेरणा नहीं ले सके। फिल्मों से हमने सिर्फ "शीला की जवानी .... " तरह का मनोरंजन , दृष्टिकोण और जीवनशैली ग्रहण की।
* दुष्परिणाम यह रहा चारों और भ्रष्टाचार , गद्दारी , निर्भया के तरह के रेप केस की विषबेल पनपते गई। नारी तो असुरक्षित हुई ही , सद्पुरुषों सज्जनता और देश की प्रतिभा का सर्वाइवल देश में कठिन हो गया
--राजेश जैन
21-12-2015

Thursday, December 17, 2015

मन लुभावन

मन लुभावन
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जिन्हें जैसा दिखने में अच्छा लगता है
वैसे श्रृंगार में वह सजता और सँवरता है
वह करता इसे अपनी खुशियों के लिए
क्यों कोई उस ख़ुशी में खलल करता है ?

देख लो किसी का बना सवँरा रूप तुम
यदि वह मन लुभावन तुम्हें लगता है
स्वयं को रोक लो जबरदस्ती करने से
उनके अपनों के लिए ही कोई सजता है

क्यों परेशान पहने -ना पहने ,क्या कोई
इसका विवेक किसी का अपना अपना है
क्षति न पहुँचाता जब तक कोई किसी को
मन की करने की वह स्वतंत्रता रखता है 

लालसाओं वासना पर नियंत्रण रखो अपनी
अन्यथा तुम खुद बुरे ,दूसरा न बुरा लगता है
--राजेश जैन
18-12-2015
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Tuesday, December 15, 2015

हार्दिक कामना -नारी सम्मान

हार्दिक कामना -नारी सम्मान
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आगरा से ए सी क्लास में  पति-पत्नी (थरटीज़ में) लड़ते हुए सवार हुए थे , किसी बात पर पंकज द्वारा  संतोष के गाल पर थप्पड़ मारने को हाथ उठाते देख लेखक (मैं) ने उसे , भैय्या .. नहीं !  .. कह कर रोका था। तमतमाये पंकज ने इसका लिहाज किया था और हाथ रोक लिया था। तब मैंने संतोष को बैठ जाने के लिए कहा था। संतोष , के आँखे अपमान के आंसुओं से भरी हुई थी। मैं और रचना ने बाद के सफर में उन्हें समझाया था। दोनों सुंदर भी थे , देखने से पढ़े लिखे और अच्छे घर के होने का इम्प्रैशन भी देते थे। उनके विवाह को 15 वर्ष हो चुके हैं , बाद के सफर में उनमें प्यार भी अनुभव किया था। दोनों ने एक ही टिफिन में परस्पर आग्रह से खाना भी खाया था। देख कर हम दोनों को अच्छा लगा था। हम तो कटनी आने पर उतर गए थे , उनका आगे का सफर बाकि था। लेकिन लेखक के मन में फिर कई प्रश्न उमड़ आये थे।
निर्भया पर हिंसा अपराध के आज तीन वर्ष होने पर उल्लेख करना आवश्यक है कि घर से बाहर की नारी से दुर्व्यवहार और अपमान ही हमारे देश में समस्या नहीं ,अपितु हमारी अपनी नारी से सम्मान से व्यवहार ,हमारे समाज में उतना नहीं जितना होना नारी-पुरुष के तनाव रहित सुखी जीवन के लिए होना चाहिए। यात्रा में हम भले ही अपरिचित थे कुछ समय में साथ छूट भी जाना था लेकिन पंकज को इसकी परवाह तो करनी चाहिए थी कि संतोष पर हाथ उठा कर किये जाने वाले अपमान से अकेली संतोष ही नहीं , उन दोनों के परिवार का सम्मान कम हो रहा था।वास्तव में पुरुष का दायित्व है अपने परिवार का समाज में यथोचित सम्मान बनाये रखे यह सम्मान तभी बनाया रखा जा सकता है जब वह नारी का सम्मान करे।
और जब प्रश्न हमारे देश और समाज के सम्मान का आता है तब यह आवश्यक होता है हम घर और बाहर की नारी को भी यथोचित सम्मान और सुरक्षा दें। जिस दिन हम यह सीख लेंगे कोई दुर्भाग्यशाली निर्भया नहीं होगी , और सब वह सुखद जीवन जी सकेंगी , जैसा जीना हर मन ,हृदय की कामना होती है।
आइये हम निर्भया की स्मृति में शपथ लें कि "अपनी माँ -बेटी ,बहन ,पत्नी ,सभी संबंधी नारी सहित अन्य घर परिवार की नारी से ,हम सम्मान से पेश आयेंगे , उनके सुरक्षित जीवन की सुनिश्चितता को अपना कर्तव्य मानेंगे।
--राजेश जैन   
16-12-2015
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Thursday, December 10, 2015

हमारी लाचारियाँ

हमारी लाचारियाँ
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हम ,अच्छा देश के लिए
अच्छा समाज के लिए
अच्छा अन्य के लिए
करने की भावना रखते हैं

भावना होती फिर भी ,ऐसा
लाचारियों से ना कर पाते हैं 
परिवार दायित्व ,अपने हित
के लिए जीवन जीते जाते हैं

जीवन में समय आता जब
लाचारियों से मुक्ति पाते हैं
ऐसी सद्भावनाओं अनुरूप फिर
क्यों ना परोपकार कर पाते हैं ?

परीक्षा है मानव जीवन जिसमें ,हम
स्वहित ,परोपकार कितना कर जाते हैं
--राजेश जैन
11-12-2015
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Wednesday, December 9, 2015

पुरुष ताँक झाँक ...(लघुकथा )

पुरुष ताँक झाँक ...(लघुकथा )
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एक धार्मिक आयोजन में , आयोजकों ने , बाहर के आमंत्रित धर्मालुओं के लिए एक धर्मशाला में व्यवस्था की थी ,निहारिका ,इस हेतु जयपुर सुबह साढ़े सात बजे पहुँची थी। उसे बताया गया की धर्मशाला के रूम सारे भर गए हैं , एक रूम जिसमें एक 55 वर्षीय सज्जन रुके हैं , आप चाहें तो उस रूम का उपयोग , सामान रखने , नहाने और तैयार होने में कर सकती हैं। निहारिका ने , दिन की ही बात है , और शेयर किये जा रहे रूम में , सज्जन की वय 55 की है सोचकर हामी भर दी।
रूम में पहुँची तो , सज्जन उसे अपने पापा जैसे लगे , सामान्य बात में उन्होंने आत्मीयता दर्शाई। निहारिका आश्वस्त हो गई। थोड़ी देर बाद वह जब वॉशरूम में थी उसे , लगा दरवाजे के बाहर तरफ कुछ हलचल है , लगा दरार से कोई झाँकने की कोशिश में है। बाहर से सामान्य दिखाते हुए , कुछ अपने कपड़े व्यवस्थित कर निहारिका ने अचानक दरवाजा खोल दिया। बाहर अंकल झेंपते खड़े दिखाई दिए। निहारिका ने ऐसा व्यक्त किया , जैसे उसे कोई संदेह नहीं। प्रकट में कहा - अंकल मैं कँघी भूल गई थी , अपने सामान के पास जा , झूठे ही कंघा लेने का उपक्रम किया फिर अंदर वॉशरूम में गई। इस बार जो दरार थी , टॉवल इस तरह डाला की बाहर से कुछ न देखा जा सके , फिर आराम से तैयार हुई।
रूम में आ अपने पास रखे चाय के सामान से चाय तैयार की और बिस्कुट एक प्लेट में रखने के बाद अंकल को साथ लेने का आग्रह किया। अंकल साथ आ बैठे , तब निहारिका ने सहज कहना शुरू किया। अंकल - आदिमानव के पास कपड़े नहीं थे , वह जानवर की तरह रहता था। मनुष्य ने विकास किया और तन पर कुछ धारण करना आरंभ किया ... कहते हुए रुकी और दृष्टि डाली तो अंकल के चेहरे पर असमंजस के भाव दिखे , फिर कहना आगे जारी रखा - पुरुषों ने नारी पर ज्यादा कपडों की परत तय कर दी। जब नारी में कुछ नहीं दिखता तो कभी उसे नहाते समय , कभी शौच जाते समय और कभी कमरों में अपने पति के संग अंतरंग संबधों में होते हुए , पुरुष ताँक झाँक करने लगा। दो तरह के यह पुरुष व्यवहार बड़े विचित्र है , नारी जब कपड़े में है तो उसे नग्न देखने के प्रयास होते हैं और जब वह नग्न थी तो उसे कपड़ों की परतों में लादा गया। अब अंकल के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ रही थी , ग्लानिवश सिर्फ इतना कह सके क्षमा करना ,बेटी और फिर रूम खाली कर चले गए।
--राजेश जैन
10-12-2015
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Tuesday, December 8, 2015

हमारी ख़ुशी क्या है , क्या हम जानते हैं ?

हमारी ख़ुशी क्या है , क्या हम जानते हैं ?
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पिछली रेल यात्रा में  ए सी 2 में टीसी साहब मेरे सामने की बर्थ पर थे। वे खुशमिजाज थे और देखने में उनका ,यात्रियों से भला व्यवहार देखने मिल रहा था। फिर ए सी 3 वेटिंग लिस्ट के एक सज्जन को उन्होंने एक बर्थ अलॉट की। डिफरेंस चार्जेज की स्लिप बन गई तब सज्जन ने उनसे पूछा , सर कितना दे दूँ ?
सुंदर दंत पँक्तियों की झलक दिखलाकर टीसी साहब ने कहा - मुझे ,क्या पता ,आपका ख़ुशी क्या है ? सज्जन ने पेमेंट किया , मुझे नहीं पता कितना। लेकिन अगर चार्जेज से अलग उन्होंने कुछ दिया , तो क्या वह ख़ुशी से दिया होगा ?
हमारे , मकान मालिक ने सर्वेंट क्वार्टर में एक माली रखा , उसने , 25 दिनों पहले थोड़ी बड़ी उम्र में एक तलाकशुदा से विवाह किया। उसकी विवाहिता 20 दिन उसके साथ रही , फिर पता चला वह चली गई। कहाँ गई ? सुनने में आया , उसका कोई चक्कर था , उसके साथ चली गई।  20 दिन पहले वह किसी से विवाह रचाती है , फिर 20 दिनों बाद छोड़ , पूर्व प्रेमी के साथ चली जाती है। निश्चित ही उसे ठीक से मालूम नहीं उसकी ख़ुशी किस बात में है ?
इस भूमिका के साथ यह लिखना उचित होगा कि हम सभी को अपनी ख़ुशी की भलीभाँति जानकारी ही नहीं है। कभी , जिस बात में ख़ुशी मानते हैं , उसी में दुःख भी कर लेते हैं। वास्तव में ख़ुशी की संभावना जिन कारणों में बनती है , उन बहुत सी बातों के होते हुए भी हम खुश नहीं रहते हैं, क्योंकि उन बातों में से ख़ुशी ले लेने की कला हमें नहीं आती है।
जीवन में अनेकों साधारण बातों में हमें ख़ुशी मिल सकती है , अगर ख़ुशी ग्रहण करने का कौशल हम बना लें !
--राजेश जैन
09-12-2015
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Monday, December 7, 2015

कॉमेडियन

कॉमेडियन
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फिल्मों ,टीवी कमेडी सीरियलों में कॉमेडियन और सर्कस में जोकर अपनी अभिनय कला से दर्शकों को हँसाया करते हैं। इन्होंने हास्य को अपना व्यवसाय बनाया होता है। व्यवसायिकता के इस दौर में ,इन्होंने फूहड़ता और अश्लीलता पर अपना ध्यान केंद्रित कर दिया है। जो कम प्रयासों और कम समय में दर्शकों को ज्यादा लोटपोट करता है। दुर्भाग्य यह है कि व्यस्त ज़माना भी ऐसे हास्य को पसंद कर लेता है। परिणाम यह होता है , जो फूहड़ता और अश्लीलता समाज में से कम की जानी चाहिए वह समाज में धीरे-धीरे बढ़ती जाती है , ज्यादा व्यापक होती जाती है।
आलेख का उद्देश्य थोड़ा अलग है। लेखक प्रमुख रूप से यह प्रश्न करना चाहता है कि क्या हास्य भी धन के बदले लिया और दिया जाना चाहिए?  क्या , हम स्वयं बिना धन अपेक्षा के गरिमापूर्ण ढंग से किसी को हँसा भी नहीं सकते हैं? लेखक मानता है , बिना अलग से समय खर्च किये , बिना फूहड़ता के अपने दैनिक कार्यों में घर , कार्यालय और व्यवसायिक प्रतिष्ठानों में अपने व्यवहार और शब्दों से आसपास परिचितों या अपरिचितों को हम हँसा सकते हैं। इसके लिए हमें थोड़ा प्रयास करना होता है , हम मिलनसार और थोड़ा हँसमुख होना अपना स्वभाव और आदत बना सकते हैं।
उदाहरण के लिए , एक दस वर्षीय पड़ोस की बच्ची है , नफीसा , मूक बघिर है। लेखक नफीसा को , किसी भी दिन दैनिक क्रम में जब  पहली बार देखता है , जयहिंद की मुद्रा में में उसे अभिवादन करता है।  बोलने में असमर्थ वह बेटी , हँसते हुए इसका प्रतिउत्तर इसी मुद्रा में देती है। कहाँ , पैसा लगा , कहाँ फूहड़ता लगी ? शब्द भी नहीं फिर भी  कुछ क्रियाओं में एक असमर्थ बच्चे को थोड़ा हास्य का अवसर मिला।
--राजेश जैन  
08-12-2015
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Sunday, December 6, 2015

अधेड़ द्वारा छेड़छाड़

अधेड़ द्वारा छेड़छाड़  (लघुकथा)
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भीड़भरी बस में गरिमा के साथ अभिषेक , खड़े खड़े यात्रा कर रहा था। एक अधेड़ संभ्रांत से दिखते व्यक्ति जो गरिमा और उसके साइड में खड़े थे।  अधेड़ के हाथ और शरीर की हरकत , बस के ब्रेक एवं हिचकोले के बहाने कुछ आपत्ति जनक थी। इसका प्रतिरोध गरिमा उनसे दूर होने के प्रयास और अपने हाथों के द्वारा बचाव से करते , अभिषेक को दिखाई दे रही थी। 15 मिनट के बाद ग्रीन पार्क स्टॉप आ जाने पर अभिषेक और गरिमा उतरे। उसी स्टॉप पर वे अधेड़ भी पीछे उतरे तो गरिमा को जब आश्चर्य हुआ जब उसने अभिषेक को कहते सुना , अंकल आइये एक कप चाय साथ लेते हैं। उनकी सहमति के बाद ,चाय पीते हुए अभिषेक ,उन्हें बता रहा था ...  मैं 15 वर्ष का था , तब मेरे पापा ने किसी युवती से छेड़छाड़ की थी , युवती के चिल्ला पड़ने से , आसपास की भीड़ ने , मेरे पापा की पिटाई कर दी थी। उस पिटाई , अपमान और पछतावे का सदमा पापा को ऐसा बैठा कि उसके बाद ढाई महीने में ,सिर्फ 45 वर्ष की आयु में उनकी मौत हो गई।  मेरे माँ वैधव्य और मैंने पितृछाया विहीन अभिशप्त जीवन ,पिछले 17 वर्ष में अनेक कठिनाइयों में जिया है। यह एक बेहद कटु अनुभूति है , इसलिए अंकल मेरी आप से रिक्वेस्ट है , जैसी हरकत आप मेरी पत्नी गरिमा के साथ कर रहे थे , वैसी आगे किसी के साथ न करें , आपका परिवार होगा , आपकी ऐसी गलती से जो प्रतिष्ठा हानि और जीवन विपरीतताओं को अभिशप्त हो सकता है। अधेड़ व्यक्ति का सर ग्लानि से झुका हुआ था। यहाँ ,गरिमा को भी अभिषेक के विचित्र व्यवहार का कारण समझ में आ चुका था , कि क्यों बस में अभिषेक , इस व्यक्ति की हरकत पर प्रतिक्रिया नहीं दे रहा था। आज ,अभिषेक के लिए गरिमा के मन में श्रध्दा और बढ़ गई थी ..
-- राजेश जैन
07-12-2015
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Saturday, December 5, 2015

जीवन चलता रहा

जीवन चलता रहा
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चलती रही पग पग परीक्षायें , इनमें जीवन चलता रहा
परिणाम मिला कभी अच्छा कभी बुरा ,जीवन चलता रहा

अनेक जीवन मोर्चों पर हम हारे , कुछ पर हम जीत सके 
जीने की दुनिया में बहुत ,प्रेरणायें ,ग्रहण कर हम जीते रहे

हार से नहीं खोया विश्वास , जीतने से नहीं हुए अति उत्साही
हार-जीत परीक्षाओं के सिलसिले चले और जीवन चलता रहा

अनेक रही निज जीवन अपेक्षायें , कई रहे जीवन सपने अपने
अन्य की अपेक्षायें भी समझे और न बने अन्य के सपनों में रोड़े

कुछ से पाया प्यार , सबको सुरक्षा ,आदर ,प्यार हम देते रहे
कुछ ने समझा , कुछ ने न समझा हमें और जीवन चलता रहा
--राजेश जैन
06-12-2015
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Friday, December 4, 2015

निर्भया-निर्दया ..... निरंतर

निर्भया-निर्दया ..... निरंतर
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16 दिस. 2012 को निर्भया पाशविक हादसे की शिकार हुई ...... देश ,इस पीढ़ी पर लगे कलंक की एक क्षोभनीय समाज तस्वीर , और
लेखक ने पिछली कुछ पोस्ट में सृजन चौक , जबलपुर की एक तस्वीर , जिसमें एक लाचार नारी दिखलाई है ('निर्दया' नाम दिया) ...... दूसरी क्षोभनीय समाज तस्वीर है ।
यह निर्दया 2 दिस. के बाद सृजन चौक पर दिखलाई नहीं पड़ रह है। इसका अर्थ यह नहीं है कि ऐसे पाशविक कृत्य हमारे समाज में खत्म हो गए हैं। निर्भया के बाद भी ,समय स्थान और थोड़े प्रकार अंतर से ,निर्भया के ऊपर किये पाशविक कृत्यों की निरंतरता जारी है। और 'निर्दया' भी प्रकारांतर से हर शहर में , कई स्थलों पर भटकती , ठिठुरती विद्यमान है।
भारतीय समाज , जिसमें दया , परोपकार और संवेदनशीलता रही है। यह कहीं लुप्त होती लग रही है। हम भारतीय अपनी इस भव्य धरोहर को बनाये रखने के लिए उत्तरदायी हैं। हमें इस धरोहर को लुप्त नहीं होने देना है , बल्कि वैचारिक प्रेरणा , सदाचार और परोपकारों से निर्भया -निर्दया तरह के दुष्टता के पाशविक कृत्यों को वर्तमान से और भविष्य के लिए लुप्त कर देना है। हम अपने अपने स्तर से अपनी अपनी क्षमता से जितना भी इस दिशा में कर्म करते हैं , वह समय , इतिहास ,देश और मानवता को हमारा ,अनमोल योगदान होगा।
हम स्वयं नारी सम्मान करें , नारी सुरक्षा करें , नारी को जीवन और प्रगति के अवसर उपलब्ध करायें और दूसरों में अपने भले विचार प्रसारित करें , अपने भले कर्मों से इसके लिए प्रेरित करें।
"हमारा जीवन गौरव का विषय होना चाहिये
इस सोच की जागृति रख हमें जीना चाहिये"
--राजेश जैन
05-12-2015

Thursday, December 3, 2015

निर्दया-निर्भया

निर्दया-निर्भया
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कैसा लगता है , जब कभी इतनी बड़ी दुनिया में हम पर विपत्ति होती है जिसमें हमें ऐसा लगता है , कोई भी हमारा साथ नहीं दे रहा है। जीवन में ,बहुत समय तो ऐसा नहीं होता है। लेकिन जब कभी ऐसा होता है , विचित्र लगती है दुनिया , जिसमें हम 8 अरब मनुष्यों के बीच , नितांत अकेले होते हैं।
कुछ दुर्भाग्यशाली जीवन ऐसे होते हैं , जो हमेशा विपत्ति में होते हैं , और 8 अरब में पूरे जीवन , नितांत अकेलेपन से जूझते हैं। कुछ तो ख़राब , उनकी स्व-करनी के कारण होता है। कुछ को ऐसी अवस्था में धकेलने के कारण , अन्य होते हैं।
 'निर्भया' , 'निर्दया' को देख पढ़ दुःख सभी को होता है। सोचता हूँ  निर्दया-निर्भया के साथ जिन्होंने बुरा किया और इन्हें इतनी भयानक मौत , भयानक जीवन को विवश किया , क्या उन्हें यह दुःखद परिणीति पर , स्वयं पर क्षोभ - पछतावा , दुःख नहीं होता होगा , मुझे लगता है , जरूर होता होगा। विचार करें , न करें ऐसे अत्याचार , घिनौने कर्म हम किसी के साथ। हमारा जीवन , गौरव का विषय होना चाहिए , क्षोभनीय या पछ्तावों का नहीं होना चाहिए।
--राजेश जैन
04-12-2015
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जाती बिरिया ...

जाती बिरिया ...
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इतनी बड़ी सबकी दुनिया पराई सी होती है
एक छोटी दुनिया इसमें अपनी सी होती है
बड़ी एवं छोटी में ,पराई एवं इस अपनी में
मन की ज़िंदगी जीना बड़ी चुनौती होती है

पुरुष अपेक्षा नारी की समस्या बड़ी होती है
उनकी यह बड़ी दुनिया तो पराई ही होती है 
छोटी अपनी लगती भी उन्हें पराई होती है
पैदा हुई वहाँ पराई ससुराल में पराई होती है

अच्छी सिर्फ इतनी बात है ,जैसी है वैसी भी
ज़िंदगी सबको अपनी अपनी प्रिय होती है
तमाम समस्याओं और चुनौती के बाद भी
जाती बिरिया बड़े साहस की जरूरत होती है
--राजेश जैन
04-12-2015
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Wednesday, December 2, 2015

'निर्दया' - उपाय

'निर्दया' - उपाय
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तस्वीर में दिखाई 'निर्दया' समाज संवेदनाहीनता की नारी तस्वीर है , पुरुष और विकलाँग भी गंदे चीथड़ों में , बिन स्नान ,रोगी हो घूमते , फुटपाथों में पड़े दिखाई पड़ते हैं। कारण पूर्व लेखों में उल्लेखित किया गया है " . वह परिवार जिसका यह जन्मा सदस्य है , जीवन सुखी जी सकने के सँस्कार ,शिक्षा देने में असमर्थ रहा है ". विशेषकर नारी प्रकरणों में देश के अन्य परिवारों की सँस्कार हीनता और गहन स्वार्थी प्रवृत्ति भी 'निर्दया' की अवस्था के लिए जिम्मेदार है। जिसके कारण असहाय , अकेली नारी के साथ उसका कोई सदस्य दैहिक शोषण करता है। ऐसी भटकी नारी के साथ यह सिलसिला कई कई बार दोहराया जाता है , फिर वह रोग ग्रस्त हो ऐसे बदरूप रहते रोग की पीड़ा भोगते कई साल सड़कों पर जीते , किसी दिन दम तोड़ देती है। एक 'निर्दया' ही अगर देश समाज में ऐसी हो तो उसकी मौत के साथ समस्या खत्म हो जाती है लेकिन दुर्भाग्य ऐसी अनेकों हैं।  उससे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि नई 'निर्दया' बनने के कारण बने रहने वाले हैं ( "माँ-पिता बनने के पात्र बने बिना , हमारे देश में बच्चे पैदा करने का क्रम जारी रहेगा ") . और एक दुर्भाग्य यह भी है देश -समाज पर जब  यह समस्या आती है तो ऐसी कोई व्यापक व्यवस्था नहीं , जिसमें ये स्वच्छ रहे सकें , साफ़ कपड़े पहन सकें , पेट भर भोज्य पा सकें और रोगों का उपचार पा सकें।
स्पष्ट है कारण खत्म करने और समस्या होने पर निबटने दोनों के लिए जागृति बढ़ाने की आवश्यकता है।  ना तो समस्या कोई एक या कुछ से उत्पन्न हो रही है , ना ही कोई एक या कुछ के सीधे करने से (किसी एक दो को भोजन करवा देना ,उसका इलाज करवा देना , उसे वस्त्र दे देना या आश्रय दे देना ) से समाधान है .
उपाय यही है , जनचेतना बढ़ाने के लिए , मंचन , चर्चा , इस पर लिखना और पढ़ना समाज में बढ़ाया जाए। ताकि जिन बातों के लिए परिवार की और अन्य की उदासीनता से समस्या इस विकट रूप में आती है , वे - भुगतने वाले के तन मन और जीवन के दुःखद पक्ष को जानें-समझें । मन और कर्म में दया रख न तो किसी की ऐसी अवस्था के लिए कारण बनें। और जहाँ ऐसी 'निर्दया' है उसका स्थाई हल (एक दो दिन का नहीं ) करने के लिए आगे आयें .
दुर्भाग्य , धर्म तो दया की सीख देते थे , लेकिन धर्म अंधविश्वासों और पाखंड में घिर जाने से नई पीढ़ी उससे विमुख हो रही है। और देश की फ़िल्में , मीडिया और समाचार माध्यम जिनकी घर घर पैठ है , उनकी प्राथमिकतायें कुछ और हैं। समाज और देश सुधार की उनकी भाव भंगिमा सिर्फ छलावा है ( दिखाने के दाँत हैं , मगरमच्छी आँसू हैं).
--राजेश जैन   
03-12-2015
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Tuesday, December 1, 2015

'निर्दया' ... निरंतर

'निर्दया'  ... निरंतर
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आधुनिकता , विकास , उन्नति , और सुविधा संपन्नता ,क्या मनुष्य क्षमता को कमजोर करती है ? लेखक को लगता है , पुरातन , पिछड़ा और जीवन विकटताओं से जूझता मानव ज्यादा शक्तिशाली और विशाल हृदय होता था। उसके घर-परिवार की चाहरदीवारियाँ तो कम मजबूत थी , लेकिन वह स्वयं ज्यादा मजबूत था। चाहरदीवारियाँ कमजोर होने की अनुभूति उसे थी , इसलिए अन्य कोई उसके घर-परिवार के सुख से ईर्ष्या न करे  इस हेतु  अपनी चाहरदीवारियाँ के बाहर भी खुशहाली के उपाय और व्यवस्था वह करता था। जीवन में सुख पाने की भावना सिर्फ अपने तक सीमित नहीं रहती थी , बल्कि इस मानसिक संकीर्णता से उपर उठ वह अपने साथ ही ,अड़ोस-पड़ोस और समाज में अन्य के सुख प्रबंधों में भी सक्रिय रहता था।
'निर्दया' की जो तस्वीर पिछले तीन दिनों से लेखक देख और दिखाना चाह रहा है , उस प्रसंग में ही आज की आलेख की यह भूमिका है।
दरअसल ,सृजन चौक , सदर , कैंट जबलपुर का वह क्षेत्र है , जिसके आसपास जबलपुर के प्रतिष्ठित , उन्नत और संपन्न परिवार निवासरत हैं , आर्मी ऑफिसर्स के बँगले हैं , नर्मदा क्लब और टैगोर गार्डन में संभ्रांतों का आना जाना है , सदर में शॉपिंग परपोज़ से , विद्या अर्जन के लिए , सेंट अलोयसिस , सेंट थॉमस और सेंट जोसेफ कान्वेंट में बच्चे और उनके पेरेंट्स इस चौक से जाते-आते हैं।
लेकिन हम सब अपनी अपनी मजबूत चाहरदीवारियाँ के अंदर अपने सुख और सुरक्षा से संतुष्ट , बाहर सुंदर सृजन चौक पर 'निर्दया' के विद्रूप दृश्य के प्रति उदासीन हैं । निश्चित ही यह तर्क सही है , इस एक अभागी की सहायता से , समाज का कोढ़ नहीं मिट सकेगा , ना ही कुछ दान से उसका जीवन बन सकेगा।
पर क्या जबलपुर का संभ्रांत अपने भोग विलासिता में से कुछ समय निकाल , समाज और देश के सही प्रेरणाओं के लिए कोई मंचन , कोई सोच समझ शक्ति प्रदर्शित नहीं कर सकता जिससे हमारे ,देश समाज में जागृति बढ़े  कि अपने स्वार्थों से किसी को ऐसे अभागे जीवन की विवशता को कोई बाध्य हो ,हमारी जागरूकता से ऐसे प्रकरणों में कमी आ सकती है ।  लेखक मानता है कि जबलपुर को संस्कारधानी कहे जाने से जबलपुर वासियों का यह दायित्व बनता है ,वे देश और समाज को सही दिशा दिखलायें ।
--राजेश जैन
02-12-2015
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Sunday, November 29, 2015

निर्दया ....

निर्दया ....
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बेटी ने फोन पर पूछा , पापा , किसी अभागी की तस्वीर और उस पर ऐसी कल्पना घड़ना क्या उचित है ? (कल की पोस्ट के संबंध में )
लेखक ने उत्तर दिया उचित है , यदि यह समाज विश्लेषण या समीक्षा लक्ष्य से लेखकीय पोस्ट का अंश हो।
आगे स्पष्टीकरण यह है , जिस तरह चाँवल की हाँडी में सैंपल के लिए कुछ चाँवल ले पके या अधपके का जायजा लिया जाता है , वैसे ही समाज में जगह जगह बिखरे दृश्य में से एक उठा कर देखना ,मानव सभ्यता अभी पकी है अधपकी है , देखा जाता है। निर्दया की कल की पोस्ट ऐसा एक सामाजिक दृश्य है जो दुःखद तथ्य बयान करता है कि सभ्यता अभी अधपकी है।
अन्यथा ऐसा नहीं होता कोई निर्भया बन अकाल मार दी जाती। और कोई समाज निर्दया से बाईस -चौबीस वर्ष की आयु में 8 अरब मनुष्यों के बीच , नितांत अकेली हो नारकीय जीवन को विवश हो जाती । वस्तुतः ,'निर्दया' वह दृश्य है जो गौर करने पर कई प्रश्न खड़े करता है।  जिनमें से एक प्रश्न है -
क्या उनकी माँ -पिता होने की पात्रता है , जो नारी-पुरुष , बच्चे पैदा कर रहे हैं ?
जैसा पहले था ,आयु हो जाने पर विवाह कर दिया जाना , फिर उनका माँ-पिता बन जाना , इतना सरल यह विषय अब नहीं रह गया है। अब सामाजिक चुनौतियाँ बढ़ गई हैं , जिनमें हमारी संतान का जीवन सुखद हो , इसके लिए सही , प्रेरणा , ज्ञान और सँस्कार हमारी संतान को मिलना चाहिए , जिससे बुराई की समझ , बुराई न करने करने की समझ , और बुराई से बच सकने की समझ उसे आनी चाहिए। ऐसा लालन-पालन कोई सुनिश्चित नहीं कर सकता है तो कम से कम संतान जन्मने की जल्दबाज़ी नहीं करना चाहिए।
अगर निर्दया के माँ-पिता ने यह जिम्मेदारी निभाई होती तो युवावस्था में सड़कों पर वह लावारिस नहीं रह जाती। ऐसी करुणा की तस्वीर से , संस्कारित कोई पुरुष शारीरिक संबंध नहीं करता , ना उसे कोई यौन रोग दे देता , न उससे अपने में लगा कोई यौन रोग वाहक बन जाता।
वास्तव में अगर पात्रता के बिना , कोई संतान पैदा करता है , तो उसे सुखद जीवन का विवेक देने की जिम्मेदारी समाज पर आ जाती है और लेखक की समझ से हमारा समाज इतना सक्षम नहीं हुआ है कि मनुष्य जीवन की इस मूल-भूत अपेक्षा की वह पूर्ती कर सके , अर्थात
'निर्दया ..... " दृश्य कहता है , मानव सभ्यता अभी अधपकी है।
(सृजन चौक , जबलपुर अपडेट - आज प्रातः निर्दया के गंदे कपड़े तो चौक पर विद्यमान थे , किन्तु निर्दया वहाँ दृष्टव्य नहीं थी। )
--राजेश जैन
30-11-2015
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सृजन चौक पर पतन की तस्वीर


सृजन चौक पर पतन की तस्वीर
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16 दिस. 2012 पर घिनौने अत्याचार और हिंसा की शिकार निर्भया , 2012 के बाद के कैलंडर में इस संसार में जीवित नहीं रह गई। सर्वप्रथम निर्भया को श्रध्दा-सुमन। निर्भया जैसे अनेक काण्ड अब भी होते हैं , स्पष्ट यह दुर्भाग्य कहते हैं कि ना यह समाज बदला , ना ही पर्याप्त कोई व्यवस्था तीन वर्षों में हो सकी है।
16 दिस. 2012 के पहले तक शायद तस्वीरों में दिखाई यह युवती भी किसी परिवार में सामान्य जीवन यापन करती रही होगी। 16 दिस. 2012 को जैसा निर्भया पर अत्याचार हुआ , शायद उसी रात इस पर भी उससे मिलता जुलता अत्याचार हुआ होगा। दुःखद दानवीयता के कष्ट कुछ दिन सह निर्भया तो कष्टों से ऊपर उठ गई थी। लेकिन निर्दयता ' का सामाजिक प्रतिबिम्ब यह दुर्भाग्यशाली युवती कष्टों को सहने को विवश , सृजन चौक जबलपुर में कुछ दिनों से दिखाई देती है।
देश की इस दुर्भाग्यशाली बेटी को इस आलेख में हमारे निर्दयी समाज का द्योतक 'निर्दया' नाम दिया जा रहा है।  8 अरब मानव जनसंख्या वाले विश्व में अपनी मानसिक -शारीरिक पीड़ाओं के साथ सृजन चौक पर खुले आकाश के नीचे 'निर्दया' ,नितांत अकेली ,गहन विवशता का जीवन जी रही है। लेखक ,सुबह रिज रोड पर वॉकिंग को जाते आते प्रतिदिन इसका साक्षी हो रहा है । लेखक को " 'सृजन' चौक पर -सामाजिक , नैतिक 'पतन' की जीती जागती तस्वीर " का यह दृश्य अजीब संयोग लगा। ये तस्वीरें , हमारे आचरण शायद बदल सकें ,इस दृष्टि से उतारी गईं हैं।  
किसी परिवार से ना मालूम किन परस्थितियों में टूट ,निर्दया अकेली ऐसी लावारिस हो गई है। ना मालूम कितने देह-दानवों की शारीरिक भूख ने निर्दया को वीरान रातों में लील लिया है। यौन रोग उनमे से कोई इसे दे गया और अब ना मालूम कितने  इसके शारीरिक संपर्क से यौन रोग के वाहक होकर ,यौन रोग परिवार समाज में फैला रहे हैं। हालाँकि वह स्वच्छ रहने लगे , रोग उपचार करा दिए जा सकें , रहने का आश्रय मिल सके तो वह तीस चालीस वर्षों जी सकती है। किन्तु निर्दया - ना तो नहाती है , ना ही उसके रोगों का उपचार ,उसे मिल सकता है। यह जीवन अभिशाप उसे इसी तरह रास्तों में बिताना होगा। फिर निर्दया पर दया कोई और तो ना कर पायेगा , मौत किसी दिन उसे इस जीवन अभिशाप से मुक्त दिला जायेगी।
(लेखक ने निर्दया की तस्वीर के लिए खड़े होने कहा तो वह खड़ी हुई , उसने भोजन के लिए दिए रुपयों को लेकर रख लिये , लगता है ,उसने अभी मानसिक संतुलन नहीं खोया है , वह कोई उत्पात मचाती भी नहीं दिखती है। )
अगर हम अपने में और समाज में परिवर्तन नहीं लायेंगे तो निर्भया और निर्दया की दुःखद तस्वीरें निरंतर बनती रहेंगीं।  इतिहास के पृष्ठों पर , जब जब मानव सभ्यता पर इस पीढ़ी के योगदान के बारे में लिखा जाएगा  'हमारी सारी उन्नति और हमारा सुविधा जनक जीवन व्यर्थ'  ही वर्णित किया जायेगा।।
--राजेश जैन
29-11-2015
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Monday, November 23, 2015

माँ को गौरव
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प्रधानमंत्री की दावेदारी के साथ चुनाव जीतने के बाद मीडिया ने इस व्यक्ति के घर-परिवार , भाई और माँ पर फोकस किया तो देखकर मुझे कम से कम एक बात इस व्यक्ति में विलक्षण लगी जो थी , 'एक राज्य का 12 वर्षों से मुख्यमंत्री का परिवार मध्यम वर्गीय जीवन यापन करता है।' इस आडंबर के युग में इस बात ने मुझे सुखद आश्चर्य प्रदान किया था। कल ,यही बात एक साधारण चर्चा में मैंने कही तो एक मित्र ने कहा कि यह आपका दृष्टिकोण है।  अन्यथा इसे ऐसा भी देखा जा सकता है , 'जो व्यक्ति घर-परिवार और माँ-भाई के लिए कुछ नहीं करता वह देश के लिए क्या करेगा ?'
इस तर्क का उत्तर खोजते मेरे मन ने कहा , एक साधारण पृष्ठभूमि में पला अगर कोई व्यक्ति , सवा अरब के देश में बहुमत की आशाओं का सूर्य बन ,शीर्ष पद तक पहुँचा हो , ऐसा गौरव ,कितने व्यक्ति परिवार और माँ को प्रदान करते हैं , क्या यह परिवार और माँ के लिए करना नहीं होता है ?
यह भिन्न प्रश्न है कि देश की आशाओं के केंद्र और शीर्ष पर आसीन होने के बाद , वैमनस्य ,जटिलताओं और समस्याओं की चुनौतियों में संतुलन रख , अपनी विलक्षणता से यह व्यक्ति देश को गौरव प्रदान करने में सफल हो पाता है या नहीं ?
(आलेख किसी राजनीति या संप्रदायिकता से प्रेरित नहीं है।  मुझे किसी का समर्थक या विरोधी नहीं माना जाये , लेखक हर आशाजनक बात का समर्थन करता है , जो इस देश और समाज को बना सकने की संभावना रखती है.)
--राजेश जैन
24-11-2015
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Sunday, November 22, 2015

हँसे -मुस्करायें


हँसे -मुस्करायें
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आज के एक पल साथ हम मुस्कराये
कभी हो ऐसा पल जिसमें दर्द आ जाये
पल पल से बन बीतता जीवन अपना
बिन अन्य के हित किये ना बीत पाये

हरेक को है आस ,अच्छे भी पल आयें
उठा सकें सुख ,जीवन सार्थक बन पाये
न वैभव न बाँकपन ना पल होंगे बाकि
सुख की घड़ी खत्म और अंत आ जाये

पल जब तक आते रहें हँसे -मुस्करायें
करें भलाई जिसमें सब साथ मुस्करायें
--राजेश जैन
22-11-2015
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Saturday, November 21, 2015

पुत्री भ्रूण हनन महा पाप

पुत्री भ्रूण हनन महा पाप
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बाहर असम्मान के अनेकों रीत फैलाकर
नारी सम्मान को प्रतिष्ठा प्रश्न बनाते हैं
परिवार प्रतिष्ठा हनन की आशंकाओं में
पुत्री भ्रूण हनन पाप ,अपने पर चढ़ाते हैं

बदलो असम्मान के खेल ,बाहर फैलाये
बदलो प्रलोभनों में नारी शोषण कुप्रथायें  
नारी बिन न सृष्टि ,न ही तुम रह सकते
मिटा दो नारी मन में असुरक्षा, कुशंकायें

अगर इज्जत समझते नारी से घर की
बाजार में करना सीखो इज्जत नारी की
भ्रमित न कर कमजोर को राह दिखाओ
रीत बनाओ नारी-पुरुष सुखद जीवन की
--राजेश जैन
22-11-2015
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बेटी हो या बेटा

बेटी हो या बेटा
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अपने विश्वास अपनी आस्था जन्में घर-धर्म से बनाते हैं
फिर वे हों सच्चे या ना अच्छे बदल नहीं क्यों हम पाते हैं

हम बदलें मान्यता अपनी ,यदि पीड़ा अन्य को पहुँचाते हैं
धर्म की न करें गलत विवेचना , ये सर्व सुख राह बताते हैं

बेटी हो या बेटा एक पध्दति से जन्मा होता है
एक विधि से पौष्टिकता ले बच्चा बड़ा होता है
लालन-पालन की रीत में फर्क क्यों फिर ,जब ?
माँ-पापा के लाड़ दुलार में न कोई फर्क होता है
--राजेश जैन
22-11-2015
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Friday, November 20, 2015

बेटी की विदाई

बेटी की विदाई
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बेटी को विदा होते , अपनी पीड़ा का ज्ञान हुआ
छोटी वह ना जानती , क्या पापा का हाल हुआ
आशायें सजाकर ,बेटी के सुखद जीवन के लिए
विवश ह्रदय में विछोह के दुःख को छुपा लिया
--राजेश जैन
21-11-2015

Wednesday, November 18, 2015

गंजे हुए पति ,मोटी हुई पत्नी


गंजे हुए पति ,मोटी हुई पत्नी
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विवाह के समय गंजे और मोटी रिजेक्ट करने वाले
गंजे हुए पति ,मोटी हुई पत्नी को निभाया करते हैं
विवाह के समय ये आकर्षण को प्रमुखता देने वाले
प्रेम ,त्याग ,समर्पण की महिमा जान लिया करते हैं

लिव इन रिलेशन में ,गर्लफ्रेंड-बॉयफ्रेंड हो रहने वाले
शारीरिक आकर्षण रहने तक रिश्ते निभाया करते हैं
ये तन आकर्षण एवं देह संबंध को प्रमुखता देने वाले
ढलती के विकर्षण में संग मन पीड़ा भुलाया करते हैं

परिवार व्यवस्था इसमें आजीवन सुख सुनिश्चित है 
बिन विकल्प समाज बदलाव के आव्हान लड़कपन है
नवयुवाओं ने न जानी जीवनपूर्णता न कोई विजन है
बीस तीस वर्ष भोग विलास जीवन में लाते उलझन है 
--राजेश जैन
19-11-2105
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Monday, November 16, 2015

जीवन दृष्टिकोण

जीवन दृष्टिकोण
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#शिकायत
शिकायत करने का अपना स्वभाव बनायेंगे
शिकायत करने में हम अपना समय लगायेंगे
बेहतर समय बचायें ,स्वयं शिकायत ना बनें
तो रह शिकायत रहित ,हम जीवन जी पायेंगे
#छीना_झपटी
सिर्फ अपनी अपनी अपेक्षाओं की चिंता में
दूसरों की अपेक्षाओं को हम यदि भुलायेंगे
अपने लिए सबकी खुशियों छीना झपटी में
न दूसरे को और न स्वयं को खुश रख पायेंगे
#दृष्टिकोण
जानवर लड़ें ,करें छीना झपटी जानवर हैं ,किन्तु
हम मनुष्य जीवन का सही क्रम , कर्म यह है कि
दूसरे करें हमारे ,हम करें उनके सुख की व्यवस्था
इस दृष्टिकोण से ही हम सुखी समाज रच पायेंगे
--राजेश जैन
17-11-2015
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Sunday, November 15, 2015

क्या पति -पत्नी रिश्ते से कोई बेहतर विकल्प हो सकता है ?

क्या पति -पत्नी रिश्ते से कोई बेहतर विकल्प हो सकता है ?
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किसी पत्नी ने सेक्स के लिए पति से किसी समय अरुचि नहीं दिखाई होगी और उसे पति ने नहीं समझा (मान लिया) होगा ऐसा पति-पत्नी के बीच के दीर्घ जीवन में नहीं हुआ होगा , ऐसा लगभग असंभव है। यह पति-पत्नी के मध्य बेहद निजी बात होती है।
नारी-पुरुष समान अधिकारों (नारी स्वतंत्रता) के प्रश्न में "आजाद होने का अर्थ ,किसी भी पुरुष को सेक्स के लिए "no"कहने की ताकत है ।  फिर वो पुरुष चाहे आपका पति ही हो " मुझे अनुचित प्रतीत होता है।
परिवार में रहते हुए , पत्नी रूप में रहते हुए बहुत सी नारी ऐसी हैं , जो जीवन से हर तरह से संतुष्ट हैं ही , उनको अपने अधिकारों में कहीं कमी नहीं लगती है । साथ ही इस पारिवारिक-समाज व्यवस्था में उन्हें नारी परतंत्रता नहीं लगती है। तथापि होंगी ऐसी नारी जिन्हें विपरीततायें हैं। लेकिन उस नाम पर पति-पत्नी के निजी विषयों में फेमिनिज्म का ऐसा दखल , अनुचित लगता है।
पुरुष या नारी की एक दूसरे से बिलकुल पृथक रहने की कोई व्यवस्था हो ही नहीं सकती , इसलिए नारी या पुरुष स्वतंत्रता की कोई प्रश्न नहीं होना चाहिए। प्रश्न होना चाहिए कि 'दोनों के मध्य बेहतर संबंध कैसे सुनिश्चित हों? और क्या पति -पत्नी रिश्ते से कोई बेहतर विकल्प हो सकता है ?
नोट - पैरा -2 में " " के बीच उल्लेखित वाक्य - कल पढ़ी एक पोस्ट से लिया है )
--राजेश जैन
16-11-2015
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यह गुलामी है

यह गुलामी है
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यदि सिर्फ सेक्स की हाँ या ना को ही आज़ादी का पैमाना मान लिया जाए तो ,
यह भी एक तरह की गुलामी ही है।
यह गुलामी है - नारी को सेक्स की बात में ही उलझाये रखने की पुरुष धूर्त सोच की।
स्वतंत्रता तब है , जब नारी या पुरुष या दोनों सेक्स की संकीर्ण सोच से निकल कर जीवन के सही और समस्त आयामों में जी सकें , जीवन की वृहद्ता को समझ कर , मनुष्य जीवन की क्षमताओं अनुसार मिले मनुष्य जीवन को अधिकतम सार्थकता देना।
--राजेश जैन
15-11-2015
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Saturday, November 7, 2015

रिश्तों या विवाह में वधु पक्ष को हीन मानना

8. रिश्तों या विवाह में वधु पक्ष को हीन मानना :- विवाह एक ऐसी रीति रही है , जो नए परिवार की बुनियाद होती है , जिसके बाद सामाजिक अनुमोदना से मनुष्य संतति क्रम में निरंतरता बनी रहती है। एक ही माँ और पिता से जन्में , बेटे और बेटी , भाई बहन माने जाते हैं , जिसमें पूर्व परंपराओं से पति-पत्नी जैसा नाता नहीं किया जा सकता , अब विज्ञान भी ऐसी व्यवस्था (खून के रिश्तों में विवाह ) की अनुमोदना नहीं करता। स्पष्ट है कि समाज और विज्ञान कारणों से , नारी-पुरुष के परिवार में रहने के लिए , विवाह की उम्र आने पर दो अलग-अलग , परिचित -अपरिचित परिवार के वर और वधु में संबंध किया जाना होता है। विवाह , वर-कन्या और सामान्यतः उनके परिजनों की सहमति से होता है , ऐसे में किसी एक पक्ष को ऊँचा और दूसरे को नीचा देखना लेखक की समझ में अनुचित है। यह कुरीत विवाह ही नहीं , बाद में और कई कई पीढ़ी तक कन्या पक्ष को हीन दृष्टि से ही देखती है। यह कुरीत बदलना चाहिए। संसार के दूसरे सारे व्यवहार में देने वाला , लेने वाले से बड़ा माना जाता है , यहाँ इस की दुहाई देकर , लेखक यह नहीं कहेगा कि , कन्या पक्ष को ऊँचा मानिये क्योंकि यह एक सामाजिक व्यवस्था है , सर्व सहमति से निभाई जाती है , किन्तु विवाह में जिस घर-परिवार को एक नया सदस्य , अन्य परिवार से मिला होता है , इस मिलने के निमित्त से , उस परिवार का बराबरी का मान होना तो होना ही चाहिए।
--राजेश जैन
08-11-2015
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Friday, November 6, 2015

हमारे दिखावे मात्र हैं

हमारे दिखावे मात्र हैं
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हम कहते जरूर हैं , सुखी नहीं हैं , बुराइयाँ हैं , जहाँ -तहाँ, असुविधाएं हैं देश में , कानून व्यवस्था ठीक नहीं है। लेकिन लगता है , हम सुखी हैं , अच्छाइयाँ हैं सब जगह , सुविधा संपन्न है देश , कानून व्यवस्था अच्छी है।
क्योंकि अगर जिन बातों की शिकायत है ,हमें, जिनके विरोध में जब-तब हम स्वर बुलंद करते हैं , उन दुःखद परिस्थितियों को , उन बुराइयों को और  असुविधाओं को सुविधा में ,बदलने की हम पुरजोर यत्न करते , और अपने कानून का पालन करते , अपनी व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए हम स्वयं जागृत रहते।
चूँकि , हम ऐसा नहीं करते इसलिए ऐसा लगता है , हम सुखी हैं , हमारा विरोध , हमारे आंदोलन और हमारी शिकायतें , हमारे दिखावे मात्र हैं।
--राजेश जैन
07-11-2015 
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Wife In Law

7. भाभी , साली से मजाक जो कभी सीमा पार हो जाते हैं :- परिवार में हँसने-हँसाने के लिए हास्य-विनोद होना सहज है ,यह सभी नाते-रिश्तों में , रिश्ते की मर्यादा अनुसार होता है। खुश रहना किसी भी कार्य की एफिशिएंसी बढ़ाता है , परिवार में हास्य विनोद से परिवार में उन्नति होती है एवं खुशहाली रहती है। लेकिन हास्य-विनोद में नारी कभी कभी तब समस्या का सामना करती है , जब नाते में देवर या बहनोई (जीजा) मर्यादा के बाहर हो जाते हैं। अच्छी रीत रही है ,जो इन रिश्तों में थोड़ा रोमांटिक सा हास्य भी स्वीकृत करती है। किन्तु अनेक अवसर पर , मर्यादा के बाहर ,मजाक परिवार का वातावरण बिगाड़ देता है। इसमें नारी (साली या भाभी ) की स्थिति  ,पुरुष की अपेक्षा ज्यादा अपमानजनक ,पीड़ाकारी हो जाती है। ऐसी स्थिति की संभावना कुछ विशेष अवसरों पर ज्यादा होती हैं , जिसमें होली का त्यौहार और विवाह अवसर सम्मिलित हैं।
वैसे पाश्चात्य संस्कृति  ,मुझे अपील नही करती ,किंतु नारी के इन रिश्तों के लिए इंग्लिश में 'सिस्टर इन लॉ ' अच्छा नाम देती है। लेकिन रीत बनी कुरीत इस रिश्ते को 'वाइफ इन लॉ ' की तरह मानती है , और परेशान हाल नारी की कठिनाई बढाती है।
--राजेश जैन
06-10-2015
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Wednesday, November 4, 2015

6. क्यों नहीं ? सार्वजनिक स्थलों पर नारी को सम्मान और सुरक्षा - क्यों है उस पर अतिरिक्त पर्दा ?

6. क्यों नहीं  ? सार्वजनिक स्थलों पर नारी को सम्मान और सुरक्षा - क्यों है उस पर अतिरिक्त पर्दा ?:-
हमें अपना चश्मा , इतना परफेक्ट रखना है कि , वह देख सके , कि चर्चा चलन ,किस तरफ मुड़ जायेगें।  जो वाँछित नहीं है ,भला नहीं है , उसकी संभावना पहले ही खत्म करना , बुध्दिमानी है। किसी के मन में क्या है की झलक देने की दृष्टि से उसका बिना बनावट का कर्म ,व्यवहार और आचरण उपयोगी हैं। इस से विद्वानों को पूर्वाभास मिलता है ,और वह समाज प्रचलन सही दिशा में मोड़ सकते हैं  । नारी , जो पहले ही कई तरह से आहत है , उसे हम नई कोई वेदना न दें , इस दृष्टि से चर्चा ,व्यवहार को शिष्टाचार की सीमा में रखने को हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। 
हम नारी का मान -सम्मान और सुरक्षा बढ़ाने के पक्षधर हैं , अनायास ही किसी अच्छे कार्य के बीच उनकी वेदनाओं को बढ़ा देना मूर्खता ही होगी , जिससे हमें बचना होगा।
यह ध्यान रखें की नारी हमारे परिवार की सदस्या है , हमारी माँ भी ,बहन भी , बेटी भी और पत्नी भी है। जब हम समाज में नारी की सुरक्षा और सम्मान सुनिश्चित करते हैं , तो यह हमारी माँ ,बहन ,बेटी और पत्नी
को भी मिलता है। एक पुरुष - एक पिता , भाई ,पुत्र और पति के रूप में ऐसा देखना पसंद करता है। पुरुष इसे , इस तरह अपने पारिवारिक दायित्व में देखें तो , वह महान समाज सेवा , राष्ट्र निष्ठा और मानवता होगी। समाज इस तरह का बनें की नारी को असुविधाजनक अतिरिक्त पर्दों से मुक्ति मिले।
(इवेंट में हिस्सा ले रहे आदरणीयों के परामर्श अनुसार यह आलेख ,एडिट किया जाता रहेगा )
--राजेश जैन
05-11-2015
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दहेज

5. दहेज
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बेटी या बेटा मनुष्य होने से समान हैं। परिवार में बँधने के साथ ,पति और पत्नी दोनों को साथ रहना होता है। दोनों विवाह पूर्व अलग-अलग परिवार के बच्चे होते हैं, दोनों का साथ तभी हो सकता है जब विवाह उपरान्त एक ,दूसरे के साथ किसी के घर में जाये। पुरातन संस्कृति से इस हेतु पत्नी को अपना पूर्व परिवार छोड़ , पति के परिवार में हिस्सा बनना होता है।  ऐसे में किसी दहेज का प्रश्न होना नहीं चाहिये क्योंकि यह समाज सम्मत व्यवस्था है। एक बीस -पच्चीस वर्ष का पला बढ़ा सदस्य ,दूसरे परिवार में रहने को दे देना वैसे ही बहुत बड़ा त्याग तो वैसे ही वधू परिवार ने रीत -संस्कृति निभाने के लिए कर दिया  फिर दहेज क्यों ? यदि इतने बड़े त्याग का मान आज की धन पुजारी प्रवृत्ति नहीं कर सकती है तो उसके लिए भी धन की भाषा में बात करनी चाहिए ।
वधू पक्ष ने बेटी के लालन-पालन में अपनी आय का एक अच्छा हिस्सा उसे बीस-पच्चीस वर्ष की आयु तक बड़ा करने में किया होता। एक वयस्क दुल्हन में वह धन अदृश्य रूप में समाया ही होता है। अपनी लाड़ली संतान का त्याग और यह धन तो अनायास वर परिवार को मिलता ही है। फिर क्यों -हम सभ्य हुए समाज में कलंक के रूप में दहेज रुपी अन्याय का प्रचलन आज भी बना हुआ है ?
(इवेंट में हिस्सा ले रहे आदरणीयों के परामर्श अनुसार यह आलेख ,एडिट किया जाता रहेगा )
--राजेश जैन
04-11-2015
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कोइ विधवा सुहागन को करवा चौथ का शगुन क्यो नही दे सकती ?

4. कोइ विधवा सुहागन को करवा चौथ का शगुन क्यो नही दे सकती ?:-
हमारे समाज में पुरातन परंपरा जो चलती रही , उसमें विधुर तो साठ साल की उम्र में भी पुनर्विवाह रचा लेता था , जबकि बाल अवस्था (तब बाल विवाह होते थे ) में विधवा हुई नारी , पूरी उम्र विधवा के रूप में अभिशप्त सा जीवन (जिसमें उस पर अनेकों पाबंदी रहती )बिताने को बाध्य होती थी। शगुन नही दे पाना उन पाबंदी में से एक था , जो इस अन्धविश्वास और भय के कारण था कि नई विवाह रचाती नारी पर विधवा के दिए शगुन के साये से वह , विधवा न हो जाये। अब , अगर विधुर होकर , पुरुष पुनर्विवाह कर सकता है तो यही मापदंड नारी के लिए भी होना चाहिये। तब कम उम्र की नारी विधवा रहेगी ही नहीं। वृध्द उम्र की विधवा तो दादी जैसी होती है , दादी का तो शुभाशीष ही रहता है , सभी के लिए उनके हाथ से शगुन तो स्वीकार्य होना चाहिए , कौन नहीं होगा जो दादी जैसी वृध्दावस्था की आयु तक विधुर या विधवा नहीं होगा।
अगर शगुन देने को हम स्वीकृति नहीं देते तो हम स्वयं का भविष्य में ऐसा अपमान करवाने के लिए शापित हो जाते हैं। दुर्भाग्य से वह एक दिन हमारे जीवन में भी आएगा जब हम अपने विवाहित साथी के विछोह में होंगें।
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--राजेश जैन
04-11-2015
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Tuesday, November 3, 2015

3. पुरुष परिजन को स्पर्श या रसोई में कार्य की मनाही , क्या उचित है Personal dayz में ?

पुरुष परिजन को स्पर्श या रसोई में कार्य की मनाही , क्या उचित है Personal dayz में ?
नारी के Personal dayz ,एक प्राकृतिक सामान्य शारीरिक प्रक्रिया है।  कोई रोग नहीं है। इस समय में नारी जहाँ बैठती उठती है , वहीं किसी के बैठने उठने से उसे कोई स्वास्थ्य संबंधी समस्या नहीं निर्मित होती है। अब आधुनिक उपाय आ गए हैं जो स्वच्छ्ता की दृष्टि से उच्च गुणवत्ता के हैं। ऐसे में पुरातन वह रीत चलाये रखने में जिसमें ,नारी अपने बच्चे तक को नहीं छू सकती या रसोई में काम नहीं कर सकती ,उचित प्रतीत नहीं होती है। जहाँ तक पौष्टिकता का या स्वास्थ्य हितकरता का प्रश्न है , वह गृहिणी द्वारा निर्मित (चाहे Personal dayz में भी) या गृह निर्मित खाद्य सामग्री , बाहरी किसी भी कीमती भोज्य से कई गुणी बेहतर है। यह इसलिए कि उनके बनाने वालों को कोई रोग अगर है , जो हमारे लिए हानिकर हो सकता है, की जानकारी हमें नहीं होती है । ऐसे में इस पुरातन रीत में बदलाव अब समयोचित है।
(इवेंट में हिस्सा ले रहे आदरणीयों के परामर्श अनुसार यह आलेख ,एडिट किया जाता रहेगा )
--राजेश जैन
04-11-2015
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जी लेना

जी लेना
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जीवन जीने की शैली कैसी हो ,सबको विकल्प मिलते हैं
सब जीते अपने लिए ,कुछ सबके लिए जी लेना चुनते हैं
--राजेश जैन
04-11-2015
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व्रत , भाई , पति या पुत्र के लिए , नारी ही रखती है - क्यों नहीं ? बहन , पत्नी या पुत्री के लिए पुरुष रखता है

2. व्रत , भाई , पति या पुत्र के लिए , नारी ही रखती है - क्यों नहीं ? बहन , पत्नी या पुत्री के लिए पुरुष रखता है :- कई धार्मिक व्रत उपहास की रीतियाँ , हमारे समाज में हैं , जिन्हें पुरुष भी रखता है , नारी भी रखती हैं। लेकिन दाम्पत्य जीवन में खुशहाली की दृष्टि से रखे जाने वाले उपवास सिर्फ नारी रखती हैं , जैसे करवा-चौथ और तीजा आदि। जिन नारियों की आस्था और विश्वास इन व्रत की महिमा को लेकर है , वे इन्हें रखे बिना ,व्याकुल और दुःखी ही होंगी , इसलिए इन व्रतों को न रखने कहना अनुचित ही है , लेकिन जिस नारी के मन में ऐसा कोई विश्वास या श्रध्दा नहीं है , उसे व्रत रखने को बाध्य करना या व्रत न रखने पर उलाहने देना उचित नहीं है। जिन पुरुषों की तीजा , करवा चौथ आदि में आस्था है , कि नारी के ऐसे व्रत का अच्छा प्रतिफल उन्हें या परिवार को मिलता है , ऐसे पुरुष विचार करें कि इस तरह के कुछ व्रत वे भी रखें। परिवार की खुशहाली उनका भी दायित्व है , उनकी भी इक्छा है तो उसके लिए एक या दो समय का भोजन का त्याग कभी कभी वे भी कर सकते हैं।  इन व्रतों की नई परंपरा वे रखकर उनका नाम भी वे निर्धारित कर सकते हैं। ऐसा यदि पुरुष करता है तो निश्चित ही नारी -पुरुष में परस्पर सम्मान और विश्वास को बल मिलेगा , जो परिवार की सुखदता , उसमें प्रेम और परस्पर त्याग की वह भावना पुष्ट करेगा , जिसके होने से जीवन में अवसाद दूर रहेंगे।
(इवेंट में हिस्सा ले रहे आदरणीयों के परामर्श अनुसार यह आलेख ,एडिट किया जाता रहेगा )
--राजेश जैन
04-11-2015
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बेटी जन्म पर , बधाई नहीं दी जाती , बैंड नहीं बजाये जाते

1. बेटी जन्म पर , बधाई नहीं दी जाती , बैंड नहीं बजाये जाते :- बाहरी शरीर भिन्न लेकिन मानसिक सामर्थ्य ,क्षमता और अभिलाषाओं की दृष्टि से समानता होने पर , बेटी और बेटे के जन्म में खुशियों में अंतर की प्राचीन सोच में बदलाव जरूरी है। बेटियों को अवसर मिला है तो उन्होंने किसी भी क्षेत्र में वह सफलता पाई है जो बेटों को मिली है। चाहे वह क्षेत्र अध्ययन को हो या धन अर्जन का , विज्ञान का हो या सामाजिक , धार्मिक हो या राजनैतिक। अतः जरूरत सोच में बदलाव की है।  दो समान ,संभावना-शील व्यक्तियों में सिर्फ जेंडर के भेद से हमारे व्यवहार में भिन्नता , नारी को आहत करता है। जिन परिस्थितियों के कारण बेटी का लालन-पालन किसी परिवार को कठिन लगता है , आवश्यकता उन सामाजिक परिस्थितियों और संकीर्णताओं को खत्म करने की है , ना कि बेटी को।
हालांकि , अब कई परिवार हैं , जिनमें संतान ,सिर्फ बेटी या बेटियाँ हैं , और ऐसे परिवार खुशहाल भी हैं , किन्तु बेटे या बेटी में भेद न करने वाले परिवारों की संख्या अपेक्षाकृत बहुत कम है।
हम नारी के लिए सम्मान , सुरक्षा और समान अवसरों के समाज की रचना करें और बेटी जन्म पर भी बधाई और बैंड के साथ खुश होने की रीत बढ़ायें। यह समय की माँग है , सभ्यता के अनुरूप है।
(इवेंट में हिस्सा ले रहे आदरणीयों के परामर्श अनुसार यह आलेख ,एडिट किया जाता रहेगा )
--राजेश जैन
04-11-2015
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Monday, November 2, 2015

नारी समस्याओं का समाधान

नारी समस्याओं का समाधान
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1. कानून बना कर नारी सुरक्षा बढ़ाई जाए 
2. मार्शल आर्ट की ट्रैनिंग लेकर,  नारी अपनी रक्षा स्वयं करे  
3. अपने पास स्प्रे रखे जिससे हमलावर को निशक्त किया जा सके ,
आदि -
यह सब उपचार हो सकता है ,नारी समस्याओं का , किन्तु उतना अच्छा समाधान नहीं है , नारी सम्मान एवं सुरक्षा सुनिश्चित करने का। 
निवारण , उपचार से बेहतर होता है  - "Prevention is better than cure "
इस उक्ति अनुरूप हमें समाज और सभ्यता को वह रूप देना चाहिए , जिसमें नारी के सम्मान पर और उसकी सुरक्षा पर कोई खतरा नहीं होता हो।
अर्थात उन परिस्थिति और सोच को ही समाप्त करना , जिसके कारण कोई नारी के साथ इस सीमा तक गिरता है।
--राजेश जैन
03-11-2105
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Saturday, October 31, 2015

नारी मन में सम्मान , महत्व ,समानता अनुभूति

नारी मन में सम्मान , महत्व ,समानता अनुभूति
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माँ ,बन जन्म देती , बहन ,बन जिम्मेदार होने कहती
पत्नी ,मर्यादा भीतर बाँधती ,बेटी ,त्याग साहस कराती 

नारी प्रति कृतघ्न नहीं रहें ,हमें उनका कृतज्ञ रहना है
नारी आदर सुखद समाज सूत्र ,हमें यही बस कहना है
जिस पुरुष के मन में नारी गुणों प्रति आदर भाव रहता है
घर में आदरणीय होता ,बाहर भी वह आदरणीय बनता है

नारी से प्रेरणा मिलती है जिसे ,पुरुष वह महान बनता है
जीवन में सद्कर्म से अपने ,जग पथप्रदर्शक वह बनता है

नारी प्रति कर्तव्य निभाता ,सम्मान ,सुरक्षा नियत कराता
ध्रुवीकरण अच्छाई पीछे करवा ,भला एक इतिहास रचाता 
नारी मन में सम्मान , महत्व ,समानता अनुभूति करा कर
नारी मन में पुरुष मान बढ़ा कर समाज सुखी वह कर जाता
--राजेश जैन
01-11-2015
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करवा चौथ व्रत महिमा

करवा चौथ व्रत महिमा
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पति -पत्नी के रिश्तों को खत्म करने के
परस्पर रिश्ते बीच ,आदर खत्म करने के
धूर्त कामुक ताकतों के षडयंत्रो के उत्तर में
रिश्ता पुष्ट करता ,करवा चौथ व्रत काफी है

सुखी जीवन के वृक्ष की जड़ में परिवार मधुरता होती है
पति-पत्नी प्रेम से रहते जिस घर उसमें मधुरता होती है
घर परिवार सुखी जिस समाज में ,राष्ट्र प्रगति करता है
पति-पत्नी ,सुखद रिश्ता सुखी विश्व नींव रच सकता है

जिसकी नहीं करवा चौथ में आस्था ,वह व्रत रखे बिन रह सकता है
लेकिन किसी की आस्था का मखौल , सभ्यता परिचय नहीं देता है
तोंडे ना करवा चौथ रखती नारी का मनोबल अपने किसी कुतर्कों से
यह पत्नी-पति बीच सुखी जीवन ,सम्मान भावना को पुष्ट करता है
--राजेश जैन
31-10-2015
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Thursday, October 29, 2015

मोहा उन्होंने मुझे


मोहा उन्होंने मुझे
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होते हैं पुरुष अच्छे , पुरुष धर्म निभाया करते हैं
गृहस्थी कर्तव्य के भार ,कंधों पर लिया चलते हैं
धन्य मैं पति मिले ऐसे ,मेरे लिए आदर रखते हैं
सारे दुःख दूर रहे मुझसे ऐसे यत्न किया करते हैं

मोहा उन्होंने मुझे ,साथ बना रहे कामना रख रहीं हूँ 
करवा चौथ व्रत रखके ,उनमें श्रध्दा प्रकट कर रही हूँ

छिछोरे भी पुरुष होते , दायित्व न निभाया करते हैं
ये पुरुष ,छिछोरापन नारी मन में भर दिया करते हैं

करवा चौथ का उपहास उड़ाने ,ये माहौल बनाते हैं
नहीं रखे व्रत कोई ,निष्प्रभावित मैं व्रत रख रही हूँ
कहते बार बार जन्म होता ,हर बार मिलें ये ही मुझे
प्रार्थना ,कामना मन लिए ,फिर उपवास कर रही हूँ
--राजेश जैन
30-10-2015
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करवा चौथ व्रत -2

करवा चौथ व्रत -2
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आधुनिका भी मैं , विवेकवान भी मैं हूँ
पति-पत्नी अटूट साथ पे विश्वास रखूँगी

आया जीवन में पुनः करवा चौथ पर्व
होता आया परंपरा से ,मै उपवास रखूँगी
आपके दीर्घ जीवन एवं जन्मों के साथ
सहित सुखद जीवन की ,कामना करुँगी

मेरे शिकवे शिकायत आपसे ,प्रियवर
क्यों रहते हैं यह आज स्पष्ट करुँगी 
आप नहीं बैरी ,आप तो हो प्यार मेरा
कलह से ठेस लगे ऐसा कुछ ना करुँगी 

समझ ,साहस एवं पुरुष बल से आपके
साथ में सम्मान , सुरक्षा मुझे मिलेगी
इस विश्वास के साथ ,छोड़ मायरा आई
कि ख़ुशी मेरे साथ आपको भी मिलेगी

मधुर पलों में दोनों को ख़ुशी अनुभव हुईं हैं
देख क्लांत कई मौके आपको ,पीड़ा मुझे हुई है 
अपेक्षायें आपको मुझसे ,मेरी भी कुछ हुईं हैं
पूर्ण की मैंने ,आपने तब मुझे भी ख़ुशी हुई है
--राजेश जैन
29-10-2015
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Wednesday, October 28, 2015

करवा चौथ व्रत


करवा चौथ व्रत
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उपलब्ध में किया श्रृंगार अधिकतम
दिन में ग्रहण भी न किया न्यूनतम
चन्द्रमा साथ पति मुख निहारा और
कामना की सुहाग आयु रहे दीर्घतम

आँखों से देख पत्नी मुख पर आभा
सुन जीवनसंगिनी की मधुर प्रार्थना
आदर ,प्रेम लेना चाहिए ह्रदय हिलोरें
स्पर्श से अनुभव हो समर्पिता याचना

प्राचीनकाल से निभा रही व्रत रख कर
पति इसे पत्नी धर्म मान के भूल गया
त्याग ,कठिन व्रतों से साथ की आशा
पुरुष अहं में चूर उदासीन हो भूल गया
--राजेश जैन
28-10-2015
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Tuesday, October 27, 2015

पति पत्नी परस्पर उपहास ,क्या सिर्फ मजाक है ?

पति पत्नी परस्पर उपहास ,क्या सिर्फ मजाक है ?
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कैसा बदलाव आज यह भारत में दिमाग पर छाया
मान पे आती पहले ,जब किसी ने पत्नी को उठाया
आज रावण को जलाते जलाने वाले ,कहकर कि तूने
सीता मैया की जगह मेरी पत्नी को क्यों नहीं उठाया

यही चला आधुनिकता के नाम पर कुछ समय तो
होंगे परिवार खत्म ,बिना सुखद समाज व्यवस्था के
क्या कल्पना है इसकी ,क्या भान अपने दायित्वों के
बनाया ज्ञानियों ने ,तुम मिटाते व्यभिचार राह चल के 

सोचें हम , मिटे अगर पति पत्नी के रिश्ते तो
सिर्फ नर मादा ही जाने जाएंगे आगे जन्मने वाले
--राजेश जैन
27-10-2015
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Monday, October 26, 2015

सर्वोच्च हितैषी खोया हमने

सर्वोच्च हितैषी खोया हमने
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दुःस्वप्न जिसने जीवन भर हमें डराया था
पिछले वर्ष कटु यथार्थ हो सामने आया था
नियति आपको पापा ,दूर ले गई हम सबसे
छिना स्नेह आशीर्वाद जो हम पर छाया था

होते पापा ,आज हम मनाते बर्थ डे आपका
शुभकामना दे ,हम पाते आशीर्वाद आपका
सत्ताईस अक्टूबर पहले ऐसे ना आया था
हमेशा सानिध्य , शुभाशीष हमने पाया था

लाचार हैं , दुःखी हैं आपकी यादों में गुम हैं
कैसे बिताये दिन ,बिन आप ,गम में हम हैं
पापा ,जीवन में सर्वोच्च हितैषी खो दिया हमने
छत्रछाया बिन कटु यथार्थ अनुभव किया हमने
(हमारे पूज्य पापा की आज जन्म तिथि , उनके नहीं रहने बाद आई है -
पुण्य स्मरण और हमारे श्रध्दा सुमन )
--राजेश जैन
27-10-2015
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Saturday, October 24, 2015

नारी उत्थान और हम

नारी उत्थान और हम
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बेटी बचाओ का नारा बुलंद करने वाले ,हम    *Save Girls
इसके लिए हमें नारी से छल छोड़ना होगा
महिला सशक्तिकरण अभियान चलाते ,हम   *Women Empowerment
सर्वप्रथम हमें ,नारी को सुरक्षा देना होगा

समाज दहेज अभिशाप से मुक्त चाहते ,हम    *Dowry system
दहेज लेना एवं पत्नी प्रताड़ना तजना होगा
भारतीय संस्कृति को आदर्श मानते ,हम        *Exploitation of Women
हमें ,नारी शोषण रूढ़ि, ,कुरीत बदलना होगा

समान अधिकारों में समाजहित मानते ,हम    *Gender Equality
पढ़ने के अवसर-सम्मान नारी को देना होगा
नारीवादी नारी-पुरुष का करते स्वागत ,हम      *Feminism
हमें ,यौनाचार आधारित व्यापार रोकना होगा

पश्चिमी बेशर्मी त्याग ,गरिमा व्यवहार से ,हम    *Pornography addiction
यौन दुराग्रह हमें अपने में नियंत्रित करना होगा
नारी-पुरुष साथ नहीं टूट सकेगा कभी ,समझ   *Faith from both sides
विश्वसनीय-सुखद साथ के उपाय करना होगा  
--राजेश जैन
25-10-2015
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Friday, October 23, 2015

नारी सम्मान-संघर्ष

नारी सम्मान-संघर्ष
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प्रारम्भ से साथ रह वह ,करती आई परिवार के लिए
अच्छे का श्रेय तुम लेते , ना शिकवा उसे इसके लिए
दोषों को उस पर थोपने की कुरीत से परेशान हुई वह
विवश किया तुमने उसे ,नारी सम्मान-संघर्ष के लिए

चरित्र अगर बिगड़ा वह ,अकेले नारी से नहीं होता है
सहनशीलता से ज्यादा दुःख , सहन किससे होता है?
नहीं कर सकी जो वह ,तुम्हारा अपमान नहीं होता है
स्व-विवेक से जो किया वह ,त्रिया चरित्र नहीं होता है
परिस्थितियों और विवशताओं में उनसे बना , किया
तुम निष्पक्ष हो ना देख सके , वह न्याय नहीं होता है
--राजेश जैन
24-10-2015
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Thursday, October 22, 2015

उषा ,किरण ,संध्या ,निशा और सूरज

उषा ,किरण ,संध्या ,निशा और सूरज
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आने से उषा अस्तित्व पाती है
उसको छूकर किरणें बिखर जाती है
ऊष्मा उसमें से पर्याप्त फैलती तब
शीतलता देने के लिए संध्या आती है

वह चला जाता तब निशा का अंधकार छा जाता है
दूर करने अगले दिन सूरज को फिर आना पड़ता है
सूरज ,नहीं है कामी पुरुष ,कई नारी नहीं भोगता है
सूरज ,नारी साथ लेकर जगकल्याण किया करता है
--राजेश जैन
23-10-2015
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Wednesday, October 21, 2015

दशहरे पर शुभकामना

दशहरे पर शुभकामना
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जन्मजात समाहित सबमें अच्छाइयाँ 
इनके साथ सब जन्में ,आदर के पात्र हैं 

अच्छाई पर दृष्टि कर कुछ देखते जो
सभी से सम्मान का व्यवहार रखते हैं 
ग्रहित बुराई पर दृष्टि रखने वाले कुछ
बुराइयों में लिप्त का मान ना करते हैं

सबके सब आदरणीय ,आदरणीया बनें 
आज दशहरे पर हम शुभकामना करते हैं
जन्मीं जो हममें बुराइयाँ ,निकाल उन्हें
रावण के साथ जलादें ये कामना करते हैं
--राजेश जैन
22-10-2015
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Tuesday, October 20, 2015

कुछ मेरा ,कुछ तुम्हारा -प्यार

कुछ मेरा ,कुछ तुम्हारा -प्यार
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मैं लगी तुम्हें दुनिया से प्यारी
मुझे लगा तुमसा ,चाहता ना कोई है
माँ-पापा का मान रहे ,रही मेरी चाह
तुम्हें मन में ,दहेज़ अभिलाषा ना कोई है
परिवार में सबका मैं आदर करती
तुम्हें पसंद कि मेरा आदर करता हर कोई है 
विचार कि सुख मिले परस्पर एक दूसरे को
अपनी खुशी के लिए ,खींचतान ना कोई है
आ गई मुझमें उम्र जनित रूप शिथिलता
बेफिक्र तुम ,तुम्हारे प्यार में ,कमी ना कोई है
आजीवन मधुर साथ रहे ,तुम्हारी चिंता
तुम्हें स्वयं अपने लिए ,चिंता ना कोई है
मेरी तुम्हारे बीच की अंतरंगता है निजी
प्रगट साथ के आलावा ,वासना ना कोई है
--राजेश जैन
21-10-2015
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Monday, October 19, 2015

प्रेरणा

प्रेरणा
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लक्ष्य रख हम किसी के पीछे भागते हैं
संभव कभी उसका साथ पा सकते हैं
पाकर लक्ष्य , कोई वैभव में खोता है
प्रिया के साथ प्यार में ,कोई खोता है

कोई मान-प्रतिष्ठा ,दर्प में डूबा होता है
कोई ज्ञान अपना ,बेचता फिरता है
कोई एक साथ कई उपलब्धि पाता है
फिर कभी ,पाया ,खोता चला जाता है

स्व-विवेक से सदाचार में जो जीता है
अनायास मिलते जाते में सुख ले लेता है
स्पर्ध्दा में अपनी जीत में प्रसन्न होता है
योग्य ,दूसरे की जीत में ख़ुश में हो लेता है 

पाया-खोया सब जीवन पीछे ,किस्से हैं
प्रेरणा दे गया तो जीवन सार्थक हिस्से हैं 
--राजेश जैन
19-10-2015
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Sunday, October 18, 2015

पुरुष चेतना

पुरुष चेतना
--------------
आँखें हैं कामुकता दर्शन को बेताब
कर्णों को मादक ध्वनि सुनने की चाह
नासिका रतिज गंध तलाशती
तन को प्रियतमा स्पर्श की चाह
जिव्हा ललायित मादक रस सेवन को
हृदय धड़कन को प्रियतम साथ की चाह
प्रजनन अंग सक्रिय रति में सुख ढूँढने
मन में निरंतर वासना संबंधों की चाह

नारी को भोगता पुरुष , वस्तु मानकर
कहीं प्रस्तुत है स्वयं नारी वस्तु बनकर
क्या ,यही है आधुनिक सभ्यता ? और
इतना ही होता , मनुष्य यौवनकाल ?

नहीं-नहीं ,नहीं-नहीं सुखद समाज रचना हेतु
पुरुष को चेतना जरूरी ,अब नारी के साथ साथ
--राजेश जैन
18-10-2015
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Saturday, October 17, 2015

योग्य


योग्य
-----------
लोकप्रियता के रथ पर
या ,धर्मगुरु के आसन पर
या , उच्चपद कुर्सी पर 
आसीन जो ,हमारे ही समान है

बनायें ,लोकप्रिय उसको
बैठायें ,धर्मग्रुरु पद पे उसको
चुनें ,उच्च पद पर उसको
जो नेक और योग्य हो

इसमें चूक हमसे हुई ,अगर
पाखंड का आदर न कर सकेंगे
भटकायेगा देश-समाज को ,वह
संस्कार सुनिश्चित न कर सकेंगे
--राजेश जैन
17-10-2015
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Friday, October 16, 2015

शानदार

शानदार
-----------
मेरा कर्म ,सद्कर्म ही हो
आज हमें यह प्रण लेना है
समाज में घटिया परिस्थिति
हर समय नहीं बनी रहना है

डिफ़ॉल्ट सेटिंग मनुष्य की 'अच्छी' है
यह विवेक विचार से समझ लेना है
घटिया प्रभाव से ओवरराइड हो
'बुरी' बनी ,उसे रिसेट कर देना है

किसी घटिया जगह अगर हम हों
हमें घटिया नहीं ,शानदार करना है
निभा राष्ट्र ,मानवता दायित्वों को
लुप्त भव्यता ,पुनर्स्थापित कर देना है

नहीं मिला ,यह अच्छा- वह अच्छा
नहीं ऐसा हमें बहाना करना है
घटिया स्थितियों में अच्छा कर सकते
यह प्रेरणा प्रस्तुत कर देना है
--राजेश जैन
16-10-2015
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Thursday, October 15, 2015

नये बन रहे समाज के जब होंगे पचास वर्ष

नये बन रहे समाज के जब होंगे पचास वर्ष
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नब्बे प्रतिशत से ज्यादा नारी -पुरुष
परिवार में पत्नी-पति हो रहते आये हैं
कुछ कड़वे-पीड़ा के किस्से परिवार में
हजारों वर्ष के सिलसिले में होते आये हैं

लंबी अवधि में कड़वाहट के कुछ किस्से से
उचित नहीं समाज संरचना बदल देना है
अनुभवों से सीख ,कड़वाहट देतीं जो उन 
कुछ कुरीतियों को उचित से बदल देना है

समाज विद्रोही अति प्रतिक्रिया ,प्रवृतियों से
समाज में डिवोर्सी नारी-पुरुष ज्यादा होंगे
गर्लफ्रेंड-बॉयफ्रेंड रिश्ते में भुगते ज्यादा होंगे
उपजे अवैध संबंधों से उनके दुष्परिणाम होंगे 

टूटे परिवार ,माँ या पिता विहीन बच्चों का
प्रतिशत समाज में ,पचास से ज्यादा होंगे
ऐसे नए समाज के सिर्फ पचास वर्षों में
कड़वे ,पीड़ादायी किस्से बहुत ज्यादा होंगे
--राजेश जैन
15 -10-2015
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Tuesday, October 13, 2015

बहन जी

बहन जी
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बजरंगी भाईजान… .
एक फिल्म आई बजरंगी भाईजान ,जिसमें
हीरो ने हिरोइन से पहले बहन जी बोला है
मेरा नाम बहन जी नहीं , रसिका सुनते ही
पवित्र भाव खत्म ,हीरो मंगेतर बन डोला है
कॉलेज में …
कॉलेज पढ़ने जाती सलवार सूट परिधानों में
वह स्टूडेंट कॉलेज में बहन जी पुकारी जाती है
ऐसे उपहास से बहन जी शब्द कहा जाता कि
वहाँ वह भारतीय परिधान पहनने में शर्माती है 
बॉयफ्रेंड-गर्लफ्रेंड …
पाश्चात्यता ने फिल्म एवं मीडिया माध्यम से
भारतीय संस्कृति पर इस तरह हमला बोला है  
बहन ,बेटी ,पत्नी , गरिमामय रिश्ते संकट में
बॉयफ्रेंड-गर्लफ्रेंड नए रिश्ते का अब डंका बोला है
--राजेश जैन
13-10-2015
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Monday, October 12, 2015

पापा और बेटी

पापा और बेटी
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सजी दुकानों में नये नये सामानों ने
बेटी तुम्हें जब तब ललचाया था
मै चाहता ,तुम्हें दिलवाना लेकिन
सभी कुछ नहीं दिलवा पाया था

तुमने सीमा क्षमता पापा की जानी
बुध्दिमानी पर अचरज में ,मैं होता था
हर चीज़ नहीं बनी तुम्हारे लिए
तुमने छोटी उम्र में ही यह समझा था 

प्रतिस्पर्धाओं में योग्यता जितनी
सफलता में संतोष ,जीवन कला होती है
यह संस्कार तुम ग्रहण कर सकी ,
जिससे अपराध बोध से मैं बच सका था
--राजेश जैन
12-10-2015
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Saturday, October 10, 2015

नारी-पुरुष रति चाह

नारी-पुरुष रति चाह
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नारी-पुरुष रति चाह , पति-पत्नी में ख़ुशी देती है
सभी सुंदर से संबंध ,पिपासा से तृप्ति न होती है
भूख ,कुछ भोजन से समय समय की पूरी होती है
पूरा भोज्य मै खाऊँ की तृष्णा में तृप्ति न होती है

दूसरे की थाली के अच्छे व्यंजन देख झपट जाना
माँसल , बलिष्ठ तन देख नीयत ख़राब हो जाना 
स्वयं के भोजन या विवाहित साथी पर है अन्याय
बेहतर इससे अपने में अच्छाइयों को परख जाना

फेसबुक से पहले ,मनोरुग्णता की माप नहीं थी
कई के कामातुर मन में क्या ऐसी भाँप नहीं थी

सोशल साइट्स से यद्यपि रुग्ण चाहत प्रकट हुई है
किन्तु स्वस्थ मन को चंगुल से बचने को सीख दी है
काम-रुग्णता मीडिया ,फिल्म-वीडियोस ने फैलाई है
उसे थामने उपाय करें ,यह चुनौती पीढ़ी को बताई है
--राजेश जैन
11-10-2015
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Thursday, October 8, 2015

नये बन रहे समाज के जब होंगे पचास वर्ष

नये बन रहे समाज के जब होंगे पचास वर्ष
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नब्बे प्रतिशत से ज्यादा नारी -पुरुष
परिवार में पत्नी-पति हो रहते आये हैं
कुछ कड़वे-पीड़ा के किस्से परिवार में
हजारों वर्ष के सिलसिले में होते आये हैं

लंबी अवधि में कड़वाहट के कुछ किस्से से
उचित नहीं समाज संरचना बदल देना है
अनुभवों से सीख ,कड़वाहट देतीं जो उन 
कुछ कुरीतियों को उचित से बदल देना है

समाज विद्रोही अति प्रतिक्रिया ,प्रवृतियों से
समाज में डिवोर्सी नारी-पुरुष ज्यादा होंगे
गर्लफ्रेंड-बॉयफ्रेंड रिश्ते में भुगते ज्यादा होंगे
उपजे अवैध संबंधों से उनके दुष्परिणाम होंगे 

टूटे परिवार ,माँ या पिता विहीन बच्चों का
प्रतिशत समाज में ,पचास से ज्यादा होंगे
ऐसे नए समाज के सिर्फ पचास वर्षों में
कड़वे ,पीड़ादायी किस्से बहुत ज्यादा होंगे
--राजेश जैन
15 -10-2015
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Wednesday, October 7, 2015

नारी को आदर

नारी को आदर
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सम्मान , अपनी माँ ,बहन , बेटियों का जिसमें जानते हैं
जिन गुणों का होना अपनी पत्नी में होना जरूरी मानते हैं
पीछे पड़ दूसरों की पत्नी ,बेटी को , गर्लफ्रेंड बना छलते हैं 
उनमें उन गुणों को मिटाते ,अपनी भूल क्यों ना मानते हैं

अवैध संबंध की होड़ लगाकर ,प्रचलन ऐसा ख़राब लाकर
माँ ,पत्नी ,बहन ,बेटी में , रख पाएंगे नहीं गुण बचा कर
बुरे चलनों में वे दुष्प्रभावित होंगी ,नारी गरिमा खो देंगी
चंचल चित ,ऊब ,साथ बदलना ,नारी चुनौतियाँ बढ़ा देंगी 

निभाने ,त्याग करने ,सम्मान करने को प्यार न जानेंगे
कामुकता के वशीभूत ,वासना को प्यार अगर मान लेंगे
काम वासना के सागर में ,मानव समाज को डुबा कर के
माँ ,बहन ,बेटी पत्नी से बनता परिवार विलुप्त कर देंगे

मानव सभ्यता की ,हासिल उच्च मंजिल से गिर जायेंगे
आज नहीं चेत पाये तो , मनुष्य जानवर जैसे हो जायेंगे

धर्म ,भाषा ,राष्ट्र ,संकीर्ण मनसिकता से ऊपर उठना होगा
मानवता निभा ,सभी नारी को आदर एवं सुरक्षा देना होगा
--राजेश जैन
07-10-2015
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Monday, October 5, 2015

एक मीठा ,पका ,ताजा फल

एक मीठा ,पका ,ताजा फल
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एक वृक्ष पर , बहुत मीठा , सुंदर सा एक फल लगा दिखाई देता है ,उसे देख ,देखने वाले के मन में ये अलग-अलग विचार आ सकते हैं -
1. इस फल को तोड़ ,मै खा लूँ  (सामान्य सोच )
2. यह फल , तोड़ मै , अपने बच्चे को खिला दूँ ( जिम्मेदार सोच)
3. यह फल , जिसके आँगन में वृक्ष है उसे खाना चाहिए (तार्किक सोच)
4. यह फल , स्वयं या घर परिवार के लिए खरीद लूँ ( धनवान की सोच )
5. यह फल उसे खाने को  मिल जाये , जो खाना नहीं मिलने से कई दिन से भूखा है (आदर्श सोच )
6. उस रोगी को खाने मिल जाए , जो और कुछ पचा नहीं पा रहा है , जिसके लिए यह फल सुपाच्य और पौष्टिकता देने वाला है ( न्यायिक ,आदर्श सोच)
अच्छे और सभ्य समाज में अधिकता , क्र. 4 से 6 तरह के विचार वालों की होगी , 2 एवं 3 तरह के विचार वालों की अधिकता से एक सामान्य समाज बनता है। जबकि जिस समाज में क्र 1 तरह के विचारों के धनी हों , वह समाज ,स्वार्थी और खींचतान और छल से सभी के लिए के लिए पीड़ादायक होता है।
--राजेश जैन
06-10-2015
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Sunday, October 4, 2015

नारी कमजोर है या कमजोर हो गई हो तो

नारी कमजोर है या कमजोर हो गई हो तो
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इन्द्राणी ने ऐसा किया ,राधे माँ ने वैसा किया
उन्हें विवश उस रस्ते पे ,किसने ,सहयोग किया ?

माना स्व-विवेक होना चाहिये ,साथ सदाचार होना चाहिए
गर भूल हुई हो ,किसी से ,क्या उसे ,हमें छल लेना चाहिए ?

कुछ नारी बन गई वस्तु सी है ,जो ,पुरुष मजे के लिए उपलब्ध है
क्या पत्नी ,बहन ,बेटी तुम्हारी ,चाहते वैसी उपलब्ध अन्य को हो ?

अतः ,दोष नारी पर न डालना होगा ,उसे नहीं पथ भटकाना होगा
बहाना उसकी भूलों का करके ,उसे मर्यादा बाहर न ले जाना होगा

व्यभिचारी नहीं , जिम्मेदार बनना होगा
कायर नहीं ,वीरता के आचरण करना होगा 
नारी कमजोर है या कमजोर हो गई हो तो
सहारा दे उनको मजबूत ,हमें करना होगा
--राजेश जैन
 05-10-2015
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Wednesday, September 30, 2015

श्रध्दानत पत्नी


श्रध्दानत पत्नी
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बाईस वर्ष से , जीवन उनका
बाईस वर्ष से , जीवन अभिलाषा
लाड़ दुलार से पली बिटिया उनकी
उसे ,परिणीता बना कोई ले जाता

जीवन आधार चला गया उनका
सूना सूना घर आँगन हो जाता
हँसने से उसके मिलती थी ऊर्जा
जाने से जीवन लक्ष्य खो जाता

तिस पर भी निभा समाज परंपरा
माँ-पापा ,हृदय खुशियों से भर जाता
दुःख ,अकेलापन  परिवार में सहते
बेटी की ख़ुशी में मन ख़ुश हो जाता

लेकिन उनकी प्यारी उस बेटी पर
ससुराल में अत्याचार किया जाता
जीवन निधि सौंपी जिनको ,वह
परिवार ,बेटी का सम्मान नहीं देता

ठगे से रह जाते माँ -पापा बेटी के
जब बिटिया जीवन ख़ुशी न पाती
ब्याह वचनों को  भूले पति द्वारा
पत्नी ,उपहास लक्ष्य बनाई जाती 

घर में ब्याहता पत्नी होते हुए
बाहर नारी पर बुरी नियत रखते
फ़िल्मी सेलेब्रिटीस की तर्ज पर
सुंदर युवती से कामेच्छा रखा करते

पत्नी , को रानी तरह खुश जो नहीं रख सकता
अपात्र है पढ़ा लिखा ,फिर वह क्यों पति बनता
अशक्त पत्नी को सता ,पीट के वीर बना फिरता
कायर है ,पति ,श्रध्दानत पत्नी पे अत्याचार करता
--राजेश जैन
30-09-2015
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Monday, September 28, 2015

रानी ,कैसे बनती पत्नी ?


रानी ,कैसे बनती पत्नी ?
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राज , नहीं लगता ,
ताज ,नहीं लगता ,
राजा हो जाता वह जो
पत्नी को रानी बना रखता

रानी ,कैसे बनती पत्नी ?
नहीं धन ,बहुत लगता
यथा संभव सुखी रखने के यत्न करता ,पति
वह ,पत्नी को रानी होने की अनुभूति देता

पत्नी के सुख में ,अपना सुख पा लेता
पत्नी धन्य ,स्वयं को रानी समझती है
घर राजमहल सा रखती , अभाव भूल
परिवार को राज परिवार सा रखती है
--राजेश जैन
29-09-2015
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Sunday, September 27, 2015

रानी

रानी
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अपनी पत्नी को रानी बनायें
दूसरी पर न ललचायें
नारी दूसरी भी प्यारी है तो
उनके हितैषी बन जायें "
उनकी सिर्फ इतनी मदद कर दें
कि उन्हें सम्मान और सुरक्षा दे दें

पत्नी ,के रानी होने से
घर राजमहल बनता है
बहन-बेटी इस रीत से
ससुराल में रानी बनती है

तब नहीं होता ,प्रश्न सुरक्षा का 
सम्मान से नारी जीवन होता है
परिवार ,राज परिवार हो जाता
नारी ,रानी -पुरुष ,राजा होता है
--राजेश जैन
27-09-2015
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Saturday, September 26, 2015

बदलती गर्लफ्रेंड

बदलती गर्लफ्रेंड
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अंतरंग संबंध , जो युगल प्रेम की परिणीति हुआ करते हैं
सभ्य हुए मनुष्य समाज में निजी , आवरित रहा करते हैं
मनुष्य जीवन समझ , सीखने का चक्र अब उल्टा घूमा है
मनुष्य सभ्य होने के बाद असभ्यता की ओर बढ़ झूमा है

व्यभिचार लिप्त नारी-पुरुष संबंध खुले दिखाये जा रहे हैं
देह व्यापार ,प्रेम कला कह घर घर दर्शक बढ़ाये जा रहे हैं
सँस्कार जनक ,भारत की संस्कृति ,पाश्चात्यता में डूब रही 
सम्मोहनों की चपेट में जा भारती भी ,व्यभिचार में डूब रही

व्यभिचार विष बेल ,पवित्र पति-पत्नी प्रेम को लील जायेगी
बढ़ते अनाचार ,दुराचार साम्राज्य पवित्र-भूमि में पनपायेगी
स्कूल ,कॉलेज ,हर जगह ,गर्लफ्रेंड तलाशती दृष्टि लड़कों की
हर क्लास में बदलती गर्लफ्रेंड से ,व्यभिचार शिक्षा फैलाएगी

गैर जिम्मेदार आज पीढ़ी का आचरण ,क्या होंगे दुष्परिणाम ?
पति-पत्नी नहीं ,नारी पुरुष की सेक्स पार्टनर बनी रह जायेंगी 
--राजेश जैन
26-09-2015
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Thursday, September 24, 2015

पुरुष को अगला जन्म नारी का


पुरुष को अगला जन्म नारी का
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तीन लोक में विराजित भगवान समीक्षा कर रहे हैं
पुरुष-नारी को दी विशिष्टाओं पर वे गौर कर रहे हैं
पुरुष को शारीरिक बल एवं नारी को ममता शक्ति
फिर ,नहीं क्यों नारी को सम्मान ,चिंतित हो रहे हैं

समक्ष रखी हरेक सामग्री का अवलोकन कर रहे हैं
विज्ञापन में अर्धनग्न ,फिल्मों में प्रदर्शित भौंडापन
शराब बोतल पर नारी मॉडल ,खेलों में चीयर लीडर
नारी शोषण ,सम्मोहन खात्मे के उपाय सोच रहे हैं

कैमरों से सूट किये वीडियो ,चित्रों ने उन्हें चौंकाया है
अश्लील डीवीडी के जखीरे से क्षोभ मन में समाया है
सोशल साइट ,अश्लील कमेंट ,पोस्ट से भरा पाया है
रेप ,छेड़छाड़ समाचारों से समाचार पत्र अटा पाया है

नारी बनाई गई उपहास ,ऐसा सबक देना जरूरी पाया है
नारी गरिमा लौटाई जा सके अब इसका समय आया है
प्रथम दृष्टया उन्होंने पुरुष को इसके लिए दोषी पाया है
पुरुष को अगला जन्म नारी का देने उन्हें विचार आया है
--राजेश जैन
24-09-2015
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Tuesday, September 22, 2015

आइटम सॉंग

आइटम सॉंग
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एक फिल्म निर्माता ने एक सुबह
सभी असिस्टेंट को बुला ,आदेश दिए
मेरी बनाई सभी फिल्मों के प्रिंट की
आप सभी सूक्ष्मता से जाँच करें

इन फिल्मों में जहाँ जहाँ भी ,नारी
उनमें दृश्य ,अश्लील तो नहीं पता करें
जहाँ भी फिल्म में आइटम सॉंग है
सॉंग और दृश्य हटा नए प्रिंट जारी करें

मुहँ लगे एक असिस्टेंट ने समझाया
साहब , फ़िल्में बिज़नेस न दे पायेंगी
इन दृश्यों के लिए किये खर्च ज्यादा
फ़िल्में ,उतनी आय भी न कमा पायेगीं

निर्माता बोले , मुझे कुछ नहीं है सुनना
जो कहा तुम सब को सिर्फ वही है करना

सुनो भगवान , मेरे सपने में कल आये थे
उन्होंने कहा , तुम अगले जन्म में नारी होगे
तुमने फिल्मों में नारी से जो दृश्य करवाये थे 
अभिनेत्री बन तुम्हें वही दृश्य सब करने होंगे

मेरी नींद तबसे उडी है , जो नारी से करवाया
उसे करने की बारी से मेरी जान पर आ पड़ी है
--राजेश जैन
22-09-2105
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