Tuesday, March 31, 2015

April fool

April fool
---------------------------------
केमिस्ट्री में गैस , जल , कंपाउंड्स , एसिड , अल्कली आदि के बीच केमिकल प्रोसेस से बनने वाले प्रोडक्ट्स , बाईप्रोडक्ट्स को दिखाते केमिकल इक्वेशन लिखे जाते हैं। उसी तर्ज पर ,अभी उभर रहे सामाजिक दृश्य का एक इक्वेशन लिखा जाए तो कुछ इस प्रकार बनता है -
(विज्ञान+तकनीकी) प्रगति + संस्कृति = मैनर्स+सुविधा+अन्धविश्वास_उन्मूलन +अपसंस्कृति+आडंबर+नारी_शोषण+भ्रष्टाचार+व्यभिचार
#मैनर्स,#सुविधा और #अन्धविश्वास_उन्मूलन इस प्रोसेस के वाँछित(डिजायर्ड) प्रोडक्ट्स हैं। जबकि #अपसंस्कृति,#आडंबर,#नारी_शोषण, #भ्रष्टाचार,#व्यभिचार जो समाज में आधुनिकता के साथ बढ़ रही है , अनडिजायर्ड (अवाँछित) बाईप्रोडक्ट्स हैं।
मनुष्य को उन्नत मस्तिष्क का वरदान प्राप्त है। चल रही आधुनिक प्रोसेस में जब इतने अधिक अनडिजायर्ड बाईप्रोडक्ट्स उत्पन्न हो रहे हैं तो इसका प्रयोग कर हमें प्रोसेस में एक और प्राकृतिक यौगिक (कंपाउंड) को प्रोसेस में डालना चाहिए। जिससे की उपयोगी प्रोडक्ट्स बढ़ाये जा सकें , और अनडिजायर्ड का उत्पादन कम किया जा सके। एक इक्वेशन अगर इस तरह से फॉलो किया जाये तो इस जनरेशन का एक अच्छा परिचय इतिहास में दर्ज किया जा सकता है।  इस इक्वेशन की कल्पना कुछ इस तरह की बनती है -
(विज्ञान+तकनीकी) प्रगति + संस्कृति _आत्मनियंत्रण = मैनर्स+सुविधा+अन्धविश्वास_उन्मूलन+स्वास्थ्य+सहयोग+परस्पर_विश्वास+सर्वखुशहाली
विद्व राय क्या है ?
--राजेश जैन
01-04-2015
https://www.facebook.com/narichetnasamman

Monday, March 30, 2015

किसने ?

किसने ?
----------
शांत चित्त से कोई व्यक्ति विचार करे - किसने ?

"सबसे ज्यादा सहन किया ?
जन्म हुआ तब माँ ने
बचपन में बहन माँ ने
बड़े हुए विवाह हुआ
तब पत्नी और माँ ने
सबसे ज्यादा सहन किया "

और आगे भी अधेड़ हुआ फिर  बूढ़ा हुआ ,रोगी हुआ तो

"सबसे ज्यादा सहन किया ?
माँ रही तो माँ ने
पत्नी और बेटी ने
पत्नी ने तो किया ही
बेटे से ज्यादा बहू ने
सबसे ज्यादा सहन किया"

जी हाँ ,पूरे जीवन का यही निष्कर्ष निकलेगा। माँ , बहन , पत्नी , बेटी ,बहू ये नारी के रूप होते हैं। सबसे ज्यादा सहनशीलता से संसार में नारी ही हर किसी को निभाती है। और हर नारी इन्हीं में से किन्हीं रूप में हममें (पुरुष) से किसी से आबध्द होती है। पुरुष को नारी की उत्कृष्ट सहनशीलता और साथ निभाने के लिए नारी के प्रति कृतज्ञ होना चाहिये। उनका सम्मान करना चाहिए , उन्हें सुरक्षा देनी चाहिए। और मनुष्य ही होने से अपने समकक्ष और समतुल्य ही उसे हृदय और व्यवहार में रखनी चाहिए। उनसे ,धोखा और छल स्वयं न करते हुये, कहीं यह होता दिखे तो अपने सामर्थ्य अनुसार उसका प्रतिरोध कर उससे बचाने का प्रयास करना चाहिए।
" किसी कृतज्ञ व्यक्ति का यही कर्तव्य होता है"।
--राजेश जैन
31-03-2015
https://www.facebook.com/narichetnasamman

Sunday, March 29, 2015

फेसबुक फ्री है ?


फेसबुक फ्री है ?
-------------------
फेसबुक आया शादी ब्याह के एलबम इस पर अपलोड होने लगे।
घूमने फिरने के नए नए दृश्य डालने के यत्न में टूरिस्म बढ़ गया ।
मोबाइल के माध्यम से करोड़ों कैमरे हो गए और अरबों फोटो /वीडिओ खिंच गए।
इन सबके लिए नए -नए कपड़े खरीदे जाने लगे , कपड़ों की उम्र घट गई , कुछ ही बार पहन लेने पर पुराने कहे जाने लगे.जूते , गैजेट्स और ढेरों अन्य एक्सेसरीज आवश्यक हो गई। श्रृंगार प्रसाधन बढ़ गए। हेयर स्टाइल नई नई और महंगी हो गई। कहने को फेसबुक फ्री है , वास्तव में बहुत महँगा है । सब  कनेक्टेड है एक ही सिद्धांत से "कैसे व्यवसाय बढ़ाया जाये एवं ज्यादा धन कमाया जा सके " .
व्यवसाय ही बढ़ता , कुछ धन -वैभव बढ़ता उतना महँगा न पड़ता । इन्हीं साधनों का प्रयोग "रोगी मानसिकता" के लोगों ने किया। छिपकर उतार लिए गए वीडियो और फुसलाई गयी नारी के अंतरंग संबंधों के दृश्य फेसबुक /व्हाट्सएप्प  मोबाइल mms पर प्रसारित होने लगे। ढेरों फेक अकाउंट बन गए उन पर भद्दे स्टोरी , कमेंट के अम्बार लग गए।
बूढ़े जवान बन गए, कुछ पुरुष /लड़के नारी बन गए।  अपराधी प्रवृत्ति के ये लोग , अन्य का ध्यान भटकाने में जुट गए।  जहाँ -तहाँ - वल्गैरिटी की लिंक - पढ़ने वाले बच्चों को भी कहीं से कहीं भटका रही हैं। उनका समय और दिमाग कम उम्र में ही उन बातों में लगने लगा , जो प्रगति को धीमा करती या रोकती हैं।
इन सबमें ज्यादा नुकसान नारी को होता ,प्रतीत होता है।  पहले ही अपने  'सुरक्षा एवं सम्मान अभाव' और शोषण से व्यथित थी। अब नारी , अपनी सहमति (कन्फ़्युजन) से ही इन्हीं बातों में ज्यादा गहरे संकटों पड़ रही है। इसमें काम-लोभियों को अपना फायदा दिखता है. वे बढ़ावा दे रहे हैं । लेकिन प्रत्यक्ष में नारी को दिखता नुकसान , वस्तुतः नारी का अकेला नहीं है। अप्रत्यक्ष इसमें स्वयं पुरुष ही लूज़र है।  जन्म तो वह नारी कोख से लेता है , और संग तो पत्नी रूप में नारी के ही होता है , वह ख़राब हुई तो ख़राब किसको मिलेगी ? स्पष्ट है नुकसान दोनों को हो रहा है ।
"नारी को ख़राब पुरुष और पुरुष को ख़राब नारी" , आगे का ऐसा समाज चित्र उभर रहा है। रोकना चाहेंगे इस दिशा में बढ़ गए अपने क़दमों को ?
--राजेश जैन
29-03-2015
https://www.facebook.com/narichetnasamman

Friday, March 27, 2015

नारी - पुरुष सहायक

नारी - पुरुष सहायक
-----------------------
रिज रोड में भ्रमण हेतु राजकुमार जी (नेत्रहीन) के साथ उनकी लाठी थामे आज ,एक मिडिलएज्ड वीमेन थी। जाते हुए की क्रासिंग में मैंने संकोच में कुछ नहीं पूछा , लौटते में जब उनके पास पहुँचा तो राजकुमार जी से नमस्कार कहने के बाद पूछा , मैं साथ ले चलूँ आपको ? उनकी हामी के बाद उनकी लाठी थाम उन्हें टैगोर गार्डन तक छोड़ा। उन्होंने इस दरम्यान बताया ये दीदी , रेलवे में हैं और कभी कभी अकेले घूमते देखने पर इस तरह साथ देती हैं। वे जैसा मुझे लगा था , उनकी पारिवारिक सदस्या नहीं हैं। इसलिए आदर उनके प्रति बढ़ गया। एक अपरिचित नेत्रहीन पुरुष की इस तरह मदद का साहस और दया है , उनके नारी सुलभ उदारमन में।

विचार करने और स्वयं पर लाज आने करने वाली बात है
---------------------------------------------------------------
बहुत शक्ति नहीं होती नारी में , किन्तु कठिनाई में पुरुष को देख अपनी शक्ति से अधिक सहायता की दया रखती हैं। मानसिक शक्ति में , पुरुष से बीसी होती हैं। दया -स्नेह उनका व्यक्ति-परिचय होता है।
नारी , अपने सद्-गुणों के साथ सम्मान की पात्र होती हैं . जहाँ अकेली या कमजोर होती हैं , वहाँ उनकी सहायता की जानी चाहिये। लेकिन पुरुष के लिए लाज की बात है , अकेली और कमजोर की सहायता न कर उनका सम्मान न कर , दुष्टता का प्रदर्शन कर उनके तन पर बेशर्मी और ललायत दृष्टि डालता है . छींटाकशी करता है , अपमान करता है और अवसर मिल जाये तो जबरदस्ती करता है। शक्तिशाली प्रचारित यह पुरुष वास्तव में अपनी हीनता का परिचय देता है , जो इतना कमजोर होता है कि उसका स्वयं के मन पर कोई नियंत्रण नहीं होता। इतना हीनबुध्दि होता है कि इसकी कल्पना नहीं कर पाता कि इन हरकतों से नारी के मन और जीवन पर क्या दुष्प्रभाव पड़ेंगे। ऐसी दृष्टिहीनता का परिचय देता है , जिसमें यह नहीं देख पाता कि वह नारी जिस पर अत्याचार कर रहा है , वह किसी परिवार की सदस्य है . किसी की बहन -बेटी है . उस परिवार की इज्जत का भार हमारे ही संस्कृति ने उनके कंधे पर डाल रखा है। उनका अपमान नारी अकेले का अपमान नहीं पूरे परिवार का अपमान है। अल्पयाददाश्त का परिचय देकर भूलता है वह भी एक परिवार में रहता है।
इनसे भले राजकुमार जी
----------------------------
जो नेत्रहीन हैं लेकिन सहायक का सम्मान जानते हैं , स्नेह की भाषा बिना देखे जानते हैं . मददगार नारी के लिए पूरे सम्मान से दीदी शब्द से सम्बोधन करते हैं। यह पुरुष होना है , नेत्रज्योति नहीं होने पर भी नारी के सम्मान की आवश्यकता की समझ रखते हैं। नेत्र वालों के लिए निशब्द एक सन्देश देते हैं , दृष्टि होना भली बात है , लेकिन दृष्टि में अश्लीलता नहीं स्नेह और सम्मान का होना ज्यादा भली बात है।
-- राजेश जैन  
28-03-2015

Thursday, March 26, 2015

धन्यवाद , मेरे विवेक

धन्यवाद , मेरे विवेक
-------------------------
लगता था कभी पापा नहीं रहेंगे
लगता था बच्चे जॉब को जाएंगे
झटके थे विचार बीतने के पहले
न मालूम था निर्वात रह जायेंगे

मन में उठती लहरों में
युवावस्था की तरंगों में
न्याय कर्म में बना रहा
न डोला समय थपेड़ों में

कुछ परिजन चले जाने थे
कुछ की खुशियाँ चाहते थे
असहाय करते प्रसंग कुछ
इनमें स्वयं अकेले पाते थे

विवेक धन्यवाद में करता हूँ
सद् प्रेरित छल ना करता हूँ
यों ही जीवन के किस्से हैं ये
अच्छा सब अच्छा करता हूँ

निशर्त प्रेम निष्ठा पत्नी की
इसमें चलती गाड़ी जीवन की
रोबोट नहीं बन गया जिसमें
जगाने भावना आई करने की

साधो चाल अपने चलन की
लाओ भावना निश्छल की
छल से यदि जुटा लिया तो
ग्रंथि कचोटेगी यों छलने की

मन के बहुत भीतर की निजी हालात शेयर किये हैं। लगता तो था पापा किसी दिन दुनिया में न होंगे। लगता था बच्चे जिनमें प्राण रखे होते हैं। अपनी आजीविका को दूर जायेंगे , व्यस्त होंगे। उनकी ख़ुशी में ही , हमारे दायित्व रहे थे। एक तरह से पसंद भी यही था। तब बीती नहीं थी , इतनी कठिन सी नहीं लगती थी , इसलिए विचार झटक दिया करता था। कुछ अंतराल में , पापा दुनिया में न रहे ,गहन दुःख की बात है।  बच्चे जिस लिए पढ़ाये जा रहे थे ,आत्मनिर्भर हुए ,  संतोष और प्रसन्नता की बात है। ऐसे में परिस्थिति बनी , ड्यूटी है , साथ पत्नी है , प्रकट में चलता सब सामान्य सा , किन्तु मन के बहुत बड़े हिस्से में में निर्वात है।  अच्छा है स्वविवेक का सहारा लेता था , ऐसी प्रतिस्पर्धाओं में नहीं पड़ा , जिसमें छल -कपट के साथ और अन्य को क्षति पहुँचा कर छद्म सुख बटोरे जाते हैं। मन के भीतर के निर्वात इनसे क्या भरते जो कृत्रिम हैं , जिनका साथ बोध यथार्थ नहीं कृत्रिम है।
लोग आज तलाक ले लेकर पुराने संबंध तोड़ रहे हैं , नए साथ में सुख तलाशते घूमते है। सच कहूँ पत्नी का साथ पुराना पड़ता है , निशर्त चलता पति -पत्नी का संग होता है। यह पत्नी की निशर्त निष्ठा , प्रेम ,समर्पण और मानसिक सहारा है जो मुझे रोबोट नहीं होने देता है।
पति -पत्नी के अटूट साथ की वकालत करने की प्रेरणा मुझे पत्नी से मिलती है। नारी चेतना और सम्मान को लिखना , रोबोट का कार्य नहीं होता है। इसलिए निर्वात अकेले मन में ,अकेले होने के शाशत्व सत्य में भी , मै रोबोट नहीं बनता हूँ।
नारी पुरुष का और पुरुष नारी का सम्मान करें , एक दूसरे को सुरक्षा दें , संसार रचना में सुधार कर सर्व दिशा विश्वास का वातावरण निर्मित करें।
--राजेश जैन
27-03-2015

Tuesday, March 24, 2015

नारी तस्वीर

नारी तस्वीर
--------------
प्रश्न है ,पृथ्वी पर समूची नारियों को एक तस्वीर में देखा जाए तो , कैसी बनती है यह तस्वीर ?
सम्मान बचाने के तर्क पर पहले , नारी घर में पर्दों में रखी गई , अब सम्मान के नाम (छल) पर विज्ञापन , फिल्म ,नेट , मीडिया, स्पोर्ट्स (ग्राउंड) और दुकानों में बेपर्दा सजाकर रख दी गई।
नारी को पर्दे में रहने का पक्षधर ना होते हुए निवेदन है , पर्दे में नारी को रखना , उसकी गुलामी के नहीं , बल्कि परिजनों द्वारा उसकी सुरक्षा के उद्देश्य की देन थी। वहीं नारी का अति खुलापन अपनों की नहीं ,उसकी आज़ादी की नहीं  , बल्कि परायों आँखों की प्यास और हवस की देन है। कोई पुरुष पोर्न शूट करने जाता है तो अपनी बहन , बेटी या पत्नी को नहीं , किसी परायी नारी को ले जाता है।  जबकि एक सलीके की ड्रेस उसे गिफ्ट करने वाला वह अपना होता है , जो उसे जीवन भर निभाने का दायित्व रखता है।
आज देश में यौन शोषण और जबरन रेप से नारी व्यथित है , पीड़िता नारी की व्यथा , परिजनों और बुध्दिजीवी वर्ग को भी व्यथित करती है। पश्चिम में यद्यपि जबरन रेप कम होंगे लेकिन यौन शोषण तो कई गुना ज्यादा है। किन्तु ऐसा ,नारी के विरोधी स्वर न होने से आभासित नहीं होता। नारी शराब ,स्मोक, ड्रग्स , धन और (छल) प्रसिध्दि के वशीभूत इस शोषण को अनुभव नहीं करती है। जबकि उसका खुलेआम और भद्दा प्रदर्शन पूरी दुनिया में होता है। शेष विश्व में यही प्रदर्शन , नारी यौन शोषण में वृद्धि का कारण होता है।  उससे भी बड़ी चिंतनीय बात यह होती है , वहाँ भी नारी , ऐसी बनने को प्रगतिशीलता मानने को तैयार हो रही है।
"सार यह है , ऐसा चलने दिया गया तो यौन शोषण की शिकार वह होते रहेगी।  एक बदलाव यह दिखेगा कि धन और (छल) प्रसिध्दि की कीमत पर इसमें उसकी ही सहमति हो जाएगी । "
यह नारी तस्वीर , अस्वीकार्य है। पुरुष उसे अति यौनाचार के कीचड़ में धकेल स्वयं वहाँ उससे लिप्तता करता है अतः वह वीभत्स इस तस्वीर में ज्यादा दोषी है। सयुंक्त रूप से यह भद्दी तस्वीर आज के समूचे "मनुष्य की तस्वीर " होती है।  जो खुशफहमी में अपने को प्रगतिशील , पढ़ालिखा और सभ्य मानता है। न पुरुष , न ही नारी इसलिए 'समूचा मनुष्य' , इसे चाहे जो कहे वह सभ्य नहीं हो सका है अब तक।
--राजेश जैन
25-03-2015
https://www.facebook.com/narichetnasamman

Monday, March 23, 2015

भारतीय नारी -दुर्दशा

भारतीय नारी -दुर्दशा
------------------------
"समय बदला , पृष्ठभूमि बदली
जीवन बदला , रीतियाँ बदली
सुख बदले , नये हुए दुःखों ने पर 
दुर्भाग्य, नारी तस्वीर न बदली "

*.  भारतीय समाज में पहले सती प्रथा थी , नारी पति की चिता में जीवित जला दी जाती थी। अब दहेज दानव है , घर -परिवार छोड़ आई नवब्याहता ससुराल में जला दी जाती है। रुष्ट (दुष्ट) पुरुष एसिड से सलोना नारी मुखड़ा जला देते हैं.
*.  सम्मान बचाने के तर्क पर पहले , नारी घर में पर्दों में रखी जाती थी , अब सम्मान के नाम (छल) पर विज्ञापन , फिल्म ,नेट , मीडिया, स्पोर्ट्स (ग्राउंड) और दुकानों में बेपर्दा सजाकर रख दी जाती है .
*.  पहले विधवा होने पर वैधव्य जीवन का अभिशाप और बदनामी की विवशता थी। अब डिवोर्स होते हैं ,डिवोर्सी कह कर बदनाम की जाती है।
*.  चिकित्सा सुविधा अभाव में प्रसव में कुछ प्रसूता मर जाती थीं , अब उन्नत चिकित्सा विज्ञान के प्रयोग से प्रसव के पूर्व भ्रूण रूप में ही कन्या (बेटी) मारी जाती है।
*. पहले बाहरी हमलावर ,नारी का उठा ले (अपहरण) कर अपने शयनकक्ष में कैद करते थे , अब अपनों में से दुष्ट रेप और हत्या करते हैं।
और भी कटु यथार्थ हैं , जो एक सामाजिक लॉ कहता दिखता है। फिजिक्स का एक नियम है ....
"Energy cannot be created or destroyed, but it can be transformed. "
वैसे ही नारी दुःखों को देखते हुए 'दुर्भाग्य है' , एक लॉ कहा जा सकता है .......
"Grief cannot be created or destroyed, but it can be transformed. "
फिजिक्स का लॉ गलत साबित हो या नहीं , हमें नारी के लिए यह गलत साबित करके दिखाना चाहिये।
--राजेश जैन
24-03-2015

Saturday, March 21, 2015

आरती की डायरी पेज -29

आरती की डायरी पेज -29
-----------------------------
पिछले दिनों हमारे हॉस्टल के माली ने , अपनी पत्नी , को अपने मित्र के साथ अवैध संबंधों में लिप्त देखा तो कुपित होकर अपने दो बच्चों के सामने , दोनों का मर्डर कर दिया। यह चर्चा गर्ल्स के बीच हॉस्टल में बहस बनी रही। आधुनिक दौर की सोच रखने वाली गर्ल्स ने प्रश्न खड़े किये।
1.  माली का मित्र भी विवाहित था क्या वह पत्नी को ऐसे संबंधों में देखता तो पसंद करता ?, यदि नहीं तो वह दूसरे की पत्नी के साथ ऐसे संबंधों में क्यों पड़ा ?
2. क्या वह मित्र ऐसा अपने घर में माली की पत्नी के साथ करता और उसकी पत्नी देखती तो क्या वह अपने पति का मर्डर करती ?
मुझे भी इनके उत्तर चाहिये थे मैंने ये प्रश्न अपनी माँ को मोबाइल पर बातों में पूछे , उन्होंने कहा विचार कर या तुम्हारे पापा से चर्चा कर जल्द ही तुम्हें बताऊँगी।
आज संडे था , पापा का फ़ोन आया उन्होंने उन प्रश्नों पर स्वयं मुझसे बात की। स्पीकर पर उनकी तरफ माँ भी साथ थी। पापा ने जो कहा वैसा मै अपनी डायरी में दर्ज कर रही हूँ। ताकि जब मेरी समझ बढ़ेगी तो अपने अनुसार इन विचारों को परख सकूँ। पापा ने कहा -
आरती बेटे , शरीर को कुछ देर के लिये भूल जायें , तो नारी और पुरुष मनुष्य होने के कारण मन से एक जैसे हैं। अलग अलग पुरुष या नारी के मन में पृष्ठभूमि के अंतर के कारण अलग -अलग विचार और विश्वास चलते हैं। भूल यदि पुरुष से होती हैं तो , भूल नारी भी कर सकती है। मन से चंचल पुरुष होता है तो नारी मन भी चंचल हो सकता है। सार यह है मनो-मस्तिष्क क्षमता दोनों की बराबर होती है।
अब समाज में चलते रिवाजों पर विचार करें। समाज की परंपरा , रिवाज और रस्म उस दौर में बनने शुरू हुए थे , तब मनुष्य पढ़ता -लिखता नहीं था। और उस समय जिसकी शारीरिक शक्ति अधिक होती थी वह विजेता होता था। उसकी चलती थी। पुरुष -पुरुष में शारीरिक बल कम ज्यादा होता था/है , लेकिन नारी शारीरिक शक्ति में पुरुष से कमजोर ही है। इसलिए समाज परंपरायें , पुरुषों की पसंदगी के आधार पर बनी। जिनमें - सहस्त्रों वर्षों से रहने के कारण , नारी ने मान्य किया हुआ था। आज समय , पढ़ने -लिखने का आया है , नारी और पुरुष दोनों पढ़ रहे हैं। इसलिये न्याय और तर्क पर सोचना आरंभ हुआ है।
तुम्हारे हॉस्टल में गर्ल्स के दिमाग में उठते प्रश्न इन्हीं विचारों के द्योतक है। माली की पत्नी और उसका अवैध प्रेमी दोनों की गलती है , लेकिन अवैध संबंध की साक्षी , उस अवैध प्रेमी की पत्नी होती तो शायद वह मर्डर नहीं कर पाती , जो साक्षी होने पर पुरुष (माली) ने किया। नारी का मन अब तक तो पुरुष से अधिक दयावान रहता आया है। किन्तु पुरुष , नारी पर परंपरागत अतिवादी तरीके प्रयोग करता रहा तो वह दिन आ सकता है , जब नारी मन भी कठोर हो जाएगा। प्रश्न अब , ये उठता है कि जिस तरह के पुरुष व्यभिचार को समाज क्षमा करता है , उसी तरह क्षमा नारी के लिए होना चाहिये ? क्योंकि व्यभिचार में पुरुष नारी को ही तो घसीट लेता है।  तर्क तो दोनों को एक व्यवहार ,एक न्याय के पक्ष में व्यवस्था देगा। लेकिन -  नारी -व्यभिचार को भी क्षमा हुई तो समाज मनुष्य का न रह जाएगा ,ऐसी स्वछंदता मनुष्य को जानवर सा बना देगी।
उचित यह होगा , पुरुष अपराध भी समान रूप से अक्षम्य हो , पुरुष अपने में सुधार करे , अपने शिक्षित होने का परिचय दे। पुरुष को दर्पण में अपनी कलुषिततायें स्वयं निहारना चाहिये , नहीं तो नारी को यह दायित्व लेना होगा , जो पुरुष अहं को ठेस का कारण बनेगा।
पापा के शब्दों में लिखते हुए मुझे ,पापा की सुलझी सोच का मुझे एक बार पुनः परिचय मिला।  आज मुझे लगा कि डॉक्टर बनने के बाद भी जीवन में कुछ और भी करना होगा  ,'सामाजिक चेतना के लिए कार्य'।
आरती , 18 सित. 2005
--राजेश जैन
22-03-2015

गरिमा की डायरी - पेज 13


गरिमा की डायरी - पेज 13
-----------------------------
घर से बाहर पहली बार अकेली रही थी , इसलिए 2 दिन के लिए घर लौटी थी। माँ से सब बताना मन हल्का करता और साहस देता है । हॉस्टल की छोटी छोटी बातें उन्हें बताते रही थी। हॉस्टल को , वापसी में कार में पापा ने जो बातें की उनसे वे इतने सुलझे विचारों के हैं , मुझे पहली बार मालूम हुआ ।
उन्होंने मेरे लिए हमेशा गर्ल्स स्कूल , प्रेफर किया था। फ्रेंड्स की बर्थडे पार्टी में रात में या होटल में न जाने देना मेरे पर पाबंदी रही थी। उन्होंने , स्कूल में मोबाइल न दिया था। सख्ती से उनकी , थोड़ा डर सा रहता था , आज मधुरता से एक लय में मुझसे कहते जा रहे थे ....
साथ के बॉयज -गर्ल्स , एक साथ पार्क /मॉल टॉकीज आदि में घूम रहे हैं। सामान्य सा दिखता है सब , तुम इससे ज्यादा एन्जॉय कर सकती हो , अच्छा बन जाने का वेट कर लो 4-6 साल। आगे - जीवन पूरा है इन चीजों के लिए।  अभी उलझोगी इनमें तो 4-6 साल के मजे होंगे और आगे के जीवन में पछतावे होंगे. बॉयज से बात करनी होगी , प्रेक्टिकल -प्रोजेक्ट में साथ होंगे , स्टडीज में भी कुछ डिस्कशन होते हैं। लेकिन , उनसे बातों की सीमायें रखनी होगी। अपनी डिगिनिटी (गरिमा) की चिंता रखनी होगी। तुमने माँ से बताया है , कुर्ते -सलवार/चूढ़ीदार में लड़की को बहन जी कहते हैं . स्वयं सोचो , भला बहन जी शब्द क्या कॉलगर्ल्स सा बुरा है? फ़िक्र करने की जरूरत नहीं।
पहनने को पाश्चात्य भी पहनो , परिधान ज्यादातर अच्छे ही हैं। सलीके से न पहने जायें तो साड़ी और कुर्ते भी भड़काऊ हो सकते हैं और सलीका हो तो जीन्स भी जँचता और शालीन लगता है। सुविधाजनक पहनना , सब पहनना ,जहाँ जो जँचता वह पहनना लेकिन शालीनता का ख्याल रखना।
कॉलेज में क्या करने आई हो इस बात को विस्मृत न करना। तुम दूसरों की नकल करो , जरूरी नहीं है। तुम्हें अच्छी रहना है इस का स्मरण रखना।  तुम ऐसी बनो , जिससे कोई लड़की तुम्हारी नकल करे तो वह भी अच्छी बन सके। अच्छा करो और आत्मविश्वास रखो , तुम्हारी अच्छाई न किसी को भटकाएगी न ही तुम्हारा नुकसान करेगी। तुम अब अकेली हो वहाँ , बहुत सी नई बातें देखोगी /सुनोगी। गर्ल्स से सलाह की अपेक्षा , माँ को बताते ,सुनते जाना। इंटेलीजेंट तुम बहुत हो लेकिन जीवन के अनुभव तुम्हें अभी नहीं हैं । देश और समाज को जरूरत है जो गाइड कर सकें जेनेरेशन को। तुम्हें ऐसा बनना चाहिये , तुम में प्रतिभा है , तुम्हें ऐसा करना चाहिये।
पापा ने और भी बहुत कहा -यह बातें इस पेज पर अब इस खातिर लिख रही हूँ , ताकि जहाँ मुझे कन्फ्यूजन होगा मै यह पढ़ा करुँगी अपनी मेडिकल की पढाई के दौरान .
एक बात और - जितनी बातें मैंने माँ से कही , पापा की बातों से लगा - माँ एक एक बता देती हैं उन्हें। मुझे अच्छा लगा मेरे कठोर से लगते पापा ,माँ के इतने राजदार हैं .
गरिमा 17-अगस्त 2005
--राजेश जैन
21-03-2015

Thursday, March 19, 2015

नीता की डायरी का पहला पन्ना

नीता की डायरी का पहला पन्ना
------------------------------------
"मै सफल नारी पहली बार डायरी लिख रही हूँ
छह वर्ष पहले की बात से शुरुआत कर रही हूँ "
तब शायद सेवेंथ क्लास में रही होऊँगी , तब से आसपास के लड़कों की नज़रें और कुछ शब्द , अजीब लगने लगे थे।यह क्रम, दो तीन साल में बढ़ते गया था ।  समझ कुछ बड़ी तो  , उनका मंतव्य समझ सा आने लगा था । इस बीच परिवर्तन मेरे शरीर में भी होने लगे थे। अजीब , बात यह होने लगी थी, मुझे भी , सभी तो नहीं कुछ लड़कों की हरकतें और नज़रें अच्छी लगने लगी थी।
दो तीन साल और बीते थे अब में ट्वेल्थ में थी। मुझे पहले अच्छे लगे कुछ लड़कों में से, अब कुछ ख़राब भी लगे थे और मैंने उनसे ध्यान हटा लिया था। मैंने अपनी फ्रेंड्स से सुना था वे वैसी ही नज़रों से उन्हें भी देखा करते थे। मुझे समझ आ गया था ,उनकी वह नज़र विशेष मेरे लिए न थी। जो नज़रें उनकी प्यार की बात कहती लगती थीं वे सिर्फ मेरी और न उठकर सभी गर्ल्स के लिए थी। उनको प्यार हुआ होता तो ऐसी किसी एक के प्रति ही होती। ऐसी नज़रें , उनका अभिनय हो गया लगता था।
मुझे पढ़ने में मन लगाना था , आगे मुझे डॉक्टर बनना था। मैं अकेले में कई बार , फालतू उन बातों को सोच कर समय व्यर्थ कर देती थी। बड़ी मुश्किल होती थी ,वापस पढ़ने में ध्यान केंद्रित करने में।
मेरा भाग्य था , मैंने ये बातें , किसी और से नहीं माँ से शेयर करना शुरू किया था। माँ , अनुभवी थीं , उन्होंने बताया इन चक्करों में पड़ कर जीवन में बहुत कुछ खो जाता है। दुर्भाग्य , था मेरे साथ पढ़ने वाली कुछ लड़कियों का , जिन्होंने माँ से नहीं अनुभवहीन लड़कियों से मन की बातें शेयर की थीं। न जाने ,कहाँ से वे बातें सच -झूठ सी लड़कों में फ़ैल गई थीं। इधर -उधर से सुन कर , और चिढ़ाये जाने से उन लड़कियों का ध्यान , क्लास और पढ़ने में नहीं लग पाता था।
मुझे लगता है , माँ , मेरे बारे में गुपचुप रूप से पापा से बातें कर कुछ समझते रहती थी। खैर , माँ के परामर्श काम आये थे। लड़कियाँ और सभी लड़के जो हरकतों और नज़रों के तीर चलाने में उलझे थे , वे रह गये थे और मैं मेडिकल प्रवेश परीक्षा , पास करने में सफल हुई थी। मेरी सभी में तारीफ़ हो रही थी। और मै घर वालों के साथ ख़ुशी मना रही थी।
आज मैं माँ -पापा के साथ नागपुर जा रही हूँ , मेडिकल कॉलेज में एडमिशन लिये।
नीता 25 जुलाई 2005 
-- राजेश जैन
20-03-2015

Wednesday, March 18, 2015

बदल गई है बात

बदल गई है बात
-------------------
"बदल गई है बात नारी की
बदल गई है बात नारी में
अच्छी काम में बराबरी की
भावना आ गई है नारी में "

माँ -बेटी की मोबाइल पर बात हो रही थी। जितना अंश इस तरफ सुनाई आ रहा था उससे अनुमान हो रहा था। बेटी 8 -10 माह पहले किसी मल्टीनेशनल कम्पनी में जॉब को गई है। आज खुश होकर माँ को बता रही है। माँ तरफ की रियल है , बेटी तरफ की अनुमान से लिखी है।
बेटी खुश होकर - ममा , मालूम मैंने आज क्या किया ?
माँ उत्सुकता से - बताओ।
बेटी - ममा आज मैंने ब्लड डोनेट किया है।
माँ - बहुत बहादुरी का , और बहुत अच्छा काम किया बेटी (हँसती है )
बेटी - पता है मेरा हेमोग्लोबिन कितना है?
माँ - कितना है ?
बेटी - ममा , 14.3 है , और पता बीपी कितना है ?
माँ - मेरा तो 10 मुश्किल से मैन्टेनेड होता है , बीपी कितना है ?
बेटी - 128 /78 है।
माँ - अब्सोलूट पैरामीटर हैं , बेटी।  कुछ एब्नार्मल तो नहीं लगा ?
बेटी - कुछ फेंट सा लगा था कुछ देर।
माँ- कुछ कॉफी , वगैरह नहीं पी थी।
बेटी - फ्रूटी पी थी 2 . ममा , (उत्साह से ) पता है , गर्ल्स में मैंने अकेले डोनेट किया है ।
माँ - बेटी , तुम्हें देखा है , जिन्होंने , अगली बार में वे भी देने का करेज करेंगी। बहुत अच्छा काम किया , मै बहुत खुश हूँ बेटी।
अब , पढ़ कर अनुभव करेंगें आप भी
"बदल गई है बात नारी की
बदल गई है बात नारी में
अच्छी काम में बराबरी की
भावना आ गई है नारी में "
--राजेश जैन
19-03-2015

Tuesday, March 17, 2015

नारी वस्तु नहीं , मनुष्य है

नारी वस्तु नहीं , मनुष्य है
-------------------------------
कुछ ,दूसरों की परशानी का सबब बनते हैं
तो कुछ, परेशानी में पड़े को उबारा करते हैं
उबार देने वाले हो रहे आज कम समाज में
लेकिन वही हैं, जो मनुष्य कहाया करते हैं 
पत्नी को किडनी दी
-----------------------
पीडब्लूडी के इंजीनियर ,अगले माह रिटायर हो रहे हैं। पत्नी की किडनियाँ ख़राब होने पर एक उन्हें दे चुके हैं। यह पति होना है , यह पुरुष होना है ,यह परिवार का मुखिया होना है, और यह मनुष्य होना है। मुखिया का दायित्व भरण -पोषण , सुख -दुःख में साथ और सुरक्षा -सम्मान की सुनिश्चितता करना है। पाश्चात्य विश्व से आयातित है शैली।  जिसमें पति , पत्नी का और पत्नियाँ , पतियों का उपहास बनाया करते हैं।
वस्तु का महत्व
------------------
भारतीय शैली में तो सोहाद्र ,अपनत्व,सहयोग और सम्मान के माध्यम से प्रेम होना प्रकट होता है। पाश्चात्य विश्व और अरबियन शैली में , तोहफे , पुष्प और उपहारों से प्रेम इजहार किया जाता है। हमने अंगीकार कर अपने समाज को वस्तुप्रमुखता (materialism) की दिशा में बढ़ा दिया है। अच्छे कर्म और विचार की अपेक्षा अब वस्तुयें प्रमुख ओर महत्वपूर्ण होती जा रही हैं। और वस्तु में छिपाकर सब तरफ छल पेश किया जाने लगा है।
बेसहारा को सहारा
-----------------------
भ्रमण में नेत्रहीन , राजकुमार साहब आज अकेले थे।  उनको साथ दे चला था कोई एक कि.मी. । उनसे पूछा आप पंजों की नस दुरुस्त कर देते हो ? एक दिन आप पार्क की बेंच में किसी सज्जन के पंजों को मसाज कर रहे थे। उन्होंने कहा हाँ , फिर उन्होंने किडनी देने वाली बात बताई। मैंने कहा दो व्हेराईटी हो गई हैं मनुष्य में , एक परेशानी दूर करती है एक परेशानी का सबब बनती है।
नारी सम्मान
----------------
नारी के लिए परेशानी के सबब बढ़ते जा रहे हैं। उपहारों में छल , प्रेम में छल , सहारे की आड़ में छल , सब जगह छली जा रही है। छलना -पुरुष होना नहीं है। कमजोर को धोखा , मनुष्य होना नहीं है। नारी पढ़ लिख रही है , आत्मनिर्भर भी हो रही। अब भी क्यों नहीं समझ पा रही है ? आधुनिकता और प्रगति के नाम पर अपने मजे की वस्तु बनाकर कहीं चीयरलीडर , कहीं मॉडल और कहीं स्टार (फ़िल्मी या पोर्न) बना कर वस्तु जैसी बाजार में सजायी जा रही है ? सोचें - यह सुख नहीं है। इन प्रदर्शित नारी के हृदय में शोषण के शूल हैं। यह और बात है कि सम्मोहनों में उन्हें और दूसरों को ये शूल दिख नहीं रहे हैं।
-- राजेश जैन
18-03-2015
https://www.facebook.com/narichetnasamman

Monday, March 16, 2015

गर्ल्स के लिये स्टंट

गर्ल्स के लिये स्टंट
----------------------
स्टंट (करतब) - जो खतरनाक और कठिन सा दिखता है , वह कार्य अंजाम देना स्टंट है। इसमें जान की जोखिम भी हो सकती है। इसमें साहस की जरूरत होती है।
इस जेनेरेशन की गर्ल्स के लिए स्टंट
-----------------------------------------
स्टंट नहीं है , एक्चुअली कठिन सा दिखता है इसलिए यह वर्ड प्रयोग किया है। यह है - नारी के लिए सुरक्षा और सम्मान अर्जित करना। कठिन चुनौती लगती है। अब तक नारी इस समस्या से जूझ कर हारती रही है। सच्ची चेतना उसे स्वयं में और फिर सभी नारी में लानी है ताकि आने वाली नारी जेनेरेशन के लिए वह स्वस्थ वातावरण का मिलना सुनिश्चित कर सके।
समस्या
----------
नारी की यह समस्या , एक्चुअली समाज और देश की समस्या है। लेकिन समस्याओं के होने से कुछ लोग ज्यादा सुखी रहते हैं।  वे लोग , समस्याओं के होने से प्रभावशाली बनते हैं। इसलिए अपने प्रभाव का उपयोग समस्या बनाये रखने में करते हैं। ऐसे परिदृश्य में नारी सुरक्षा और सम्मान , नारी की ही समस्या बनी रह गई है।स्वयं ,जान तो नहीं किन्तु  नारी को जीवन लगाना है। और नारी को सम्मानित एवं सुरक्षित कर जाने का करतब (स्टंट ) दिखाना है।
कैसे होगा स्टंट ?
------------------
स्टंट के लिए गर्ल्स को कहीं इकठ्ठा होने की अनिवार्यता नहीं है।  कोई और कई साथ हो जायें तब ही कोई कार्य हो ऐसी भी अनिवार्यता नहीं है। दरअसल किसी की मदद या स्वयं की मदद तभी संभव होती है जब स्वयं हम , शक्तिशाली ,सुरक्षित और समर्थ होते हैं।
कैसे बनें गर्ल्स समर्थ ?
------------------------
पढ़ने वह लगी है
बढ़ने वह लगी है
फुसलावों से बचे,
जिससे 
जान पर आ पड़ी है।
क्या हैं फुसलावे ?
------------------
प्रेम दिखा के छल रहे हैं , बॉयफ्रेंड
ड्रिंक्स पिला नचा रहे हैं , बॉयफ्रेंड
ग्लैमरस ,तमाशा बना रहे हैं ,बॉयफ्रेंड 
छली गई को आधुनिका कह रहे हैं ,बॉयफ्रेंड 
सभी नहीं अधिकाँश बॉयफ्रेंड दिलजोई ही कर रहे हैं। झूठी कसमों और वायदों से छलते और मतलब निकाल कर किनारा कर लेते हैं। और छली गई ऐसी गर्लफ्रेंडस ही बाद के जीवन में ज्यादा प्रताड़ित शोषित और अपमानित होती है।
फुसलावों में न आने से क्या होगा
--------------------------------------
गर्ल्स का समय बचेगा , ज्यादा पढ़ सकेगी। अपना भविष्य ज्यादा अच्छा कर सकेगी। आत्मविश्वास बढ़ा सकेगी और आत्मसम्मान कायम रख सकेगी। सक्षम -समर्थ बन कर स्वयं की और दूसरों की मदद करने में सफल हो सकेगी। यह सब अपनी जगह रहकर ही करना सम्भव है। जड़ें मजबूत कर ताकतवर होकर उभर सकती हैं (जैसे वृक्ष ) . और वह स्टंट कर सकती हैं जिसमें कठिन प्रतीत होता , नारी सम्मान अर्जित होता है। नारी सुरक्षा का प्रश्न हल हो जाता है।
इतिहास से सीखें
-------------------
स्वतंत्रता के प्रति चेतना आई थी , कुछ पीढ़ी ने साहस किया था श्रेय की किसी को न पड़ी थी। सब ने अपनी अपनी जगह से मजबूती बनाई थी. स्वर और कर्म बुलंद हुए थे और गुलाम बनाने वालों के पैर इस ज़मीन से उखाड़ दिए थे। एक दो नारी जेनेरेशन को अपनी निजी महत्वाकांक्षाओं का बलिदान देने का मन बनाना होगा।  यह साहस जुटाना होगा। परिणाम में बाद की नारी सम्मानित होगी और सुरक्षित हो सकेगी।
नारी-पुरुष समानाधिकारों के आंदोलन
-------------------------------------------
आज जो आंदोलन होते हैं उसकी दिशा भटकी हुई है।  आधुनिकता के नाम पर पाश्चात्य नारी बाजार में दुकानों पर लगी वस्तु सी सजा दी गई है। भारतीय नारी को उसकी नकल करने की जरूरत नहीं है। वह सही दिशा की ओर अपने मूल प्रश्न और सोच पर अडिग रहकर बढ़े। स्टंट सफलता से होगा।
--राजेश जैन
16-03-2015

Saturday, March 14, 2015

संक्षिप्त नारी परिधान

संक्षिप्त नारी परिधान
--------------------------
पारिवारिक पुरुष-नारी टीवी पर 'खतरों के खिलाड़ी' देख रहे थे। एक नारी सदस्य ने प्रश्न उठाया - उसी तरह के खेल एवं स्टंट को करने वाले पुरुष ज्यादा कपड़ों में होते हैं , जबकि नारी के कपड़े छोटे होते हैं क्यों ?
प्रश्न के कारण 
-----------------
ओलिंपिक में वॉलीबाल हो , टेनिस हो , धारावाहिक 'खतरों के खिलाड़ी' या सर्कस हो प्रश्न सही लगता है। जिम्नास्टिक या स्वीमिंग गेम में तो परफॉरमेंस पे कपड़ों का भी प्रभाव हो सकता है। लेकिन , नारी परिधानों के छोटे होने का , अन्य जगह क्या कारण हैं ?  
परिवार में यह प्रश्न , क्यों ?
-------------------------------
नारी सदस्य को लगा हो शायद कि इन आकर्षक कपड़ों में लिपटी नारी के आकर्षण में उलझ कर , घर का पुरुष बेटा - क्या , पढ़ने में मन लगा पायेगा ? भाई , पति या पिता - क्या अपने व्यवसायिक कार्य में लग पायेगा ? या पति , गृहस्थी के कुछ कार्य में हाथ बटाएंगा ? परिवार का पुरुष सदस्य ,नारी देह की तस्वीर मन में रख , बाहर की नारी पर ललचाई दृष्टि डालकर क्या अपने जीवन उन्नति के पुरुषार्थ से विमुख नहीं हो जायेगा?
सही उत्तर क्या हैं 
---------------------
वैसे तो उत्तर सभी से अपेक्षित है। लेकिन लेखक का उत्तर यहाँ - चर्चा के लिये उल्लेख किया जा रहा है। वास्तव में खेलों के या इस प्रकार के शो के नियम या तरीके पुरुषों के बनाये हुए हैं। अपनी योग्यता प्रदर्शित करने की चाहत रखने वाली नारी ने जाने -अनजाने इस रिवाज को शिरोधार्य किया है।प्रश्न यह भी है , पुरुष ने नारी हेतु ऐसे रिवाज क्यों बनाये? इसका कारण मनोविज्ञान में है।  अपोजिट सेक्स के प्रति आकर्षण के पुरुष मनोविज्ञान ने बाहर की नारी को इस रूप में प्रस्तुत किया था। और नारी को इस तरह प्रदर्शित करने के रिवाज बन गये । पुरुष ही घर में नारी को पर्दे में रखने का हिमायती रहा लेकिन बाहर अर्धनग्नता का पोषक हो गया । हालाँकि इस दोहरी मनोप्रवृत्ति ने बाद में उसके घर को भी दायरे में ले लिया। फ़िल्मी घराने उदाहरण हैं।
आधुनिकता ?
----------------
अब बुरा या अच्छा जो भी कहें यह रिवाज खेल और ग्लैमर की दुनिया से बाहर पसर गया है। व्यवसायिक लाभ बटोरने की चाह में - वस्त्र निर्माता एक से एक आकर्षक और संक्षिप्त नारी परिधान ही शॉप्स और मॉल में उपलब्ध करा रहे हैं । बच्चों को जिन्हें समझ नहीं है , आधुनिकता के नाम पर इनके क्रेजी हैं। उनमें विज्ञापनों और अन्य प्रदर्शनों से इन परिधान को देखना और पहनना सामान्य सी बात हो गई है । कुछ आधुनिक परिधान तो निःसंदेह सुविधाजनक  हैं।  लेकिन अधिकतर सेक्स लालसाओं को अनियंत्रित करने वाले ही हैं। नया -नया और ब्रैंडेड कहकर 50 का 500 में बिकने से आर्थिक लाभ तो अधिक हैं , किन्तु नारी और समाज को क्या खतरे या क्षति है इससे बेपरवाह समाज के ही ये सदस्य हैं ।
नारी भी सम्मोहित हुई है
-----------------------------
अब शो या वस्त्र निर्माण में नारी भी अग्रणी है। लेकिन प्रगतिशील नारी भी सम्मोहित सी वही रिवाज बढ़ा रही है जो पुरुष मनोविज्ञान की उपज था । पर्दे में धकेलना और बाहर की नारी को बेपर्दा करना चरमता में दोनों अनुचित हैं। प्रगतिशील नारी पर्दे पर विद्रोही है , उचित है। लेकिन दूसरी बात पर भी उसे सोचना चाहिये।
नारी सम्मान की तलाश
----------------------------
नारी सम्मान की तलाश में  नारी,  भारतीय समाज और भारतीय संस्कृति के प्रति भी विद्रोही है। बेशक हमारे समाज में भी नारी के साथ छल होता आया है। उसमें नारी हितों की दृष्टि से बदलाव जरूरी हैं। बेटी शिक्षित हो रही है , जॉब करने लगी है , व्यवसाय में हिस्सेदार हो रही है। हमारा समाज इन बदलावों को स्वीकार करता जा रहा है। लेकिन सभी पश्चिमी बातें ,आँख मूँदकर के नारी समानता के नाम पर अंगीकार करना , उचित नहीं लगता।
नारी आकर्षण 
-----------------
सृष्टि में ही यह बात निहित है पुरुष का नारी में एवं नारी का पुरुष में आकर्षण सदा बना रहेगा। परिधान जरूरी हैं -पहनने होंगे। परिधान से भीतर के सौंदर्य एवं आकर्षण न तो बढ़ेंगे और न ही घटेंगें। यह नारी का अधिकार और तर्क है कि वह क्या पहने। लेकिन यौन अपराधों की अधिकता या बढ़ने का ट्रेंड - लेखक समझता है वह वीडियो /फ़िल्में - और तस्वीर हैं - जो वस्त्र विहीन या छोटे अधोवस्त्रों में आज बहुलता में प्रदर्शित हैं। जिनका दर्शक होकर आज का समाज जीवन को सिर्फ सेक्स-प्रधानता की दिशा में बढ़ाता जा रहा है। जीवन सेक्स और भोजन से अलग भी बहुत कुछ है।  नारी आधुनिक बने, शिक्षित हो, सम्मान पाये और उन्नति भी करे। किन्तु बेहतर होगा ,अपनी सुरक्षा को , छद्म आधुनिकता की शिकार हो दाँव पर न लगाये। सिर्फ देह आकर्षण की प्रस्तुति में नारी न अटकी रह जाए।
(अग्र क्षमा याचना सहित - पढ़ने वाले पुरुष होने पर न जायें लिखा वह है जैसा लेखक , पुरुष नहीं नारी होकर भी सोचता )
-- राजेश जैन
15-03-2015

Friday, March 13, 2015

अकेली वह लड़की


अकेली वह लड़की
---------------------
अकेली
--------
रात या दिन में
भीड़ या वीरान में 
घर या बाज़ार में
अकेली वह लड़की

हम व्यस्त -हमारी
---------------------
बहन या बेटी
माँ या पत्नी
हमारी, हम व्यस्त
इसलिए अकेली भी होगी
मनुष्य
--------
हमारा मन है
मनुष्य मस्तिष्क है
चाहे वह नारी
वह भी मनुष्य ही है
सम्मान
---------
मन में है उसको 
स्व-सम्मान की आरज़ू ,
करने दो  इसलिए
सम्मान के उपाय उसको 
पढ़ना
-------
चाहती वो पढ़ना
चाहती है बढ़ना
बढ़ने दो उसको
मानो अपनी ही बहना
बहना
-------
बहन के लिए अपनी
सुरक्षा चाहते हो
अकेली किसी लड़की को
सुरक्षा तो तुम दो
संस्कृति
----------
नारी सुरक्षा की संस्कृति
तुम बनओगे
सुरक्षा के वातावरण में
सुरक्षित अपनी बहन पाओगे
अकेली वह लड़की
--------------------
अकेली उस लड़की में
नीयत ख़राब न करना
सम्मान ही तलाशती
सम्मान तुम उसे देना
--राजेश जैन
 14-03-2015

Wednesday, March 11, 2015

माँ से कम या ज्यादा ?

माँ से कम या ज्यादा ?
-------------------------
एक युवक का राह चलती युवती पर फिकरा - वेरी सेक्सी  …।
युवती का युवक से प्रश्न - तुम्हारी माँ से कम या ज्यादा ?
जबाब मुँहतोड़ , लेकिन
--------------------------
युवती की हाजिर जबाबी की कई लोग प्रशंसा करेंगें , लेकिन विचार करें तो अनायास ही युवती ने नारी सम्मान पर प्रहार कर दिया है। युवक के हल्केपन से निबटने में तो सफल हुई। लेकिन माँ - 'एक गरिमा ' के लिए अपशब्द के प्रयोग के साथ।
परिवार
---------
अभी , समाज में मनुष्य परिवार में रहता है। जिस घर में 'पुरुष ही पुरुष' या 'सिर्फ नारी ' रहते हैं वे परिवार नहीं लगते हैं। स्पष्ट है , एक परिवार , कुछ पुरुष और कुछ नारियों के साथ पूरा लगता है।
पुरुष कन्फ्यूज्ड
------------------
पुरुष , परिवार की नारी का बाहर सुरक्षा और सम्मान चाहता है। लेकिन खुद वह सम्मान , बाहर की नारी को देता नहीं है। पुरुष की यह (बुरी) आदत आखिर में उसके भी परिवार की नारी की सुरक्षा और सम्मान , सुनिश्चित नहीं करवा पाती है। इसलिए लगता है कि , इतना सभ्य हो जाने के बाद भी - आज तक पुरुष कन्फ्यूज्ड ही है। (अपनी, माँ ,बहन ,पत्नी और बेटी का सम्मान और प्रगति ) जो चाहता है , उसके लिए उसके क्या आचरण और कर्म होने चाहिये - इस का निर्णय अभी तक नहीं कर पाया है।
शब्दाबली (terminology)
------------------------------
अब तक कोई नारी, 'माँ' के लिए अपशब्द नहीं कहती थी। लेकिन मज़बूर किया जा रहा है , अब नारियाँ भी माँ -बहन आदि की गालियाँ देने लगेंगी। सेक्सी या इस तरह की शब्द , प्रणय सूत्र में बँधे युगल के शब्दाबली में प्रयोग को सीमित थे। जिसे( फ़ूहड़) मनोरंजन के नाम पर फिल्मकारों ने समाज में आम कर दिए। अब तो बच्चा भी जिसे अर्थ नहीं मालूम प्रयोग करता है , और सुनने वाले हँस दें तो अपने स्कूल बेग को भी सेक्सी कहता है।
फिल्मकारों को धन और फेम कमाना है
---------------------------------------------
फिल्मकारों को अपने सामाजिक सरोकारों की कोई परवाह नहीं। लेकिन उनके फैन हम बनते रहेंगें , उन्हें अनावश्यक सम्मान देते रहेंगें , उन्हें नायक -महानायक कह विभूषित करते रहेंगें तो कितना भी 'हम नारी सुरक्षा और सम्मान " की फ़िक्र दर्शायें।  ये नारियों के साथ खुलेआम अनाचार की परंपरा ला छोडेंगें। प्रणय के अप्राकृतिक चित्रों और पोस्टर को हमें रोड किनारे - चौक और दुकानों में टँगें देखने की आदत बना लेनी होगी। तब शायद 'हम कायर', इतने में ही शुक्र मनाने लगेंगें की वह तस्वीर हमारी माँ या बहन की नहीं है।
-- राजेश जैन 
12-03-2015

Sunday, March 8, 2015

अंतर-राष्ट्रीय महिला दिवस

अंतर-राष्ट्रीय महिला दिवस
---------------------------------
सिर्फ नारेबाजी न रहे
-------------------------
नारी 365 दिन है , उनके सम्मान , सुरक्षा और उन्नति के प्रश्न , हर घड़ी -हर दिन हैं , तो एक दिन ऐसा मानना 'थोथी नारेबाजी न रह जाये' ।नारी सम्मान एक दिन की रस्म में सीमित न रह जाये। भला ,अंतर-राष्ट्रीय पुरुष दिवस मनाया जाता है , कहीं ?   जबकि जीवन के हर पल में इनका महत्व है। फादर्स डे , मदर्स डे या फ्रेंडशिप डे इत्यादि एक भेड़चाल ने ,सारी महत्वपूर्ण बातों और रिश्तों का महत्व कितना कम कर दिया है?
नारी दशक
-------------
नारी की दशा सोचनीय है , उसकी दशा सुधारने के लिए , गंभीरता से उपाय और व्यवस्था चाहिए। इस हेतु 'नारी -दशक' मनाया जाना चाहिए। नारी समक्ष चुनौतियों के उत्तर खोजे जायें , तब इस रस्म या नारे की सार्थकता है। कुछ चुनौतियाँ इस आलेख में -
आत्मरक्षा
------------
नारी को आत्मरक्षा की तकनीक स्कूल स्तर से पाठ्यक्रम में सम्मिलित की जानी चाहिए। हर बालिका को शिक्षा सुनिश्चित की जानी चाहिए। वह इतनी योग्यता अर्जित करे कि वह आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो सके।
कुरीति - दहेज
-----------------
नारी -आर्थिक आत्मनिर्भर नहीं भी रही, तब भी -पुरुषों के किये से ज्यादा - अन्य महत्वपूर्ण भूमिकाओं में परिवार के लिये करती ही रही है। 'कुरीति -दहेज' तो वैसे भी नहीं होनी चाहिये थी , आर्थिक आत्मनिर्भरता के बाद तो दहेज का कोई भी तर्क नहीं बचता है। 
नारी को सम्मान
--------------------
नारी को सम्मान मिलना चाहिए। उस पर शोषण बंद होने चाहिये। नारी को पुरुष समतुल्य मापदंडों से समाज में स्थान मिलना चाहिए। अगर चरित्र हीनता , पुरुषों की क्षम्य है तो सामाजिक सोच ऐसी ही क्षम्य -नारी के लिए होनी चाहिये। और अगर नारी के लिए चरित्र आवश्यकता हो तो  पुरुषों को भी वही सीमायें निभानी चाहिए।
दोषारोपण -दोहरा अत्याचार
--------------------------------
हमारे समाज में दोहरा अत्याचार  , नारी सह रही है। उसे उन्नति के अवसर और पर्याप्त सुरक्षा नहीं हैं . पुरुष धूर्ततायें उस पर जारी हैं। उनके योगदान और त्याग को -यथोचित सम्मान नहीं है। जिस से उनका जीवन यों ही विषम है।  जहाँ पुरुष की बड़ी भूलें अनदेखी की जाती हैं वहीं छोटी भूलों पर नारी पर दोषारोपण और कलंक का टीका दोहरा अत्याचार है।
कामुक सामग्रियों पर रोकथाम
----------------------------------
आज 'अंतर-राष्ट्रीय महिला दिवस' मनाने वाले - क्या पोर्नोग्राफी प्रोफेशन पर रोक का प्रश्न उठायेंगे ? जिसके वीडियो और तस्वीरों ने मनुष्य मन पर सिर्फ सेक्स विचार ही प्रमुख कर रखे हैं । जिसके कारण नारी विरुध्द यौन अपराध बढ़ गये हैं। सोशल साइट्स पर फेक आईडी और इनबॉक्स में युवाओं को सिर्फ यही कामुक सामग्री चाहे -अनचाहे देखने मिल रही है। प्रसारण पर रोक से ज्यादा प्रभावी उसके निर्माण पर ही प्रतिबंध होना है। यद्यपि यह प्रोफेशन यूरोपीय और अमेरिकन देशों में ज्यादा है , किन्तु वहाँ कानून और व्यवस्था के प्रभावी होने से रेप और छेड़छाड़ कम हैं। तब भी वहाँ की नारी की यह तस्वीर कदापि नारी सम्मान की कहानी नहीं कहती है। भारत आकर इन कामुक सामग्री के प्रभाव विकराल रूप ले रहे हैं -नारी विरुध्द अपराध बढ़ रहे हैं । युवा पीढ़ी (और अनेकों नवयुवतियाँ ) कई बुराइयों में लिप्त होते जा रही हैं।
 अंतर-राष्ट्रीय महिला दिवस और नारी
-------------------------------------------
इस दिन के आयोजनों का औचित्य दो शपथ से सिध्द हो सकता है।  प्रथम नारियों द्वारा - ' मैं स्वयं को पुरुष बहकावेगे से बचाऊँगी, और अन्य को इससे बचने को प्रोत्साहित करुँगी ' और दूसरी  पुरुषों द्वारा- 'मैं किसी नारी पर शोषण न करूँगा , और अपनी सामर्थ्य अनुसार अन्य को इसमें पड़ने से रोकूँगा' .
--राजेश जैन
08-03-2015

Wednesday, March 4, 2015

जीलें ऐसी है ज़िंदगी


जीलें ऐसी है ज़िंदगी
-----------------------
कभी फ़िक्र होती है
दिखें छोटे उम्र से दस बीस साल
कभी फ़िक्र होती है
और जियें उम्र में दस बीस साल

ऐसी है ज़िंदगी तो
जीलें मानवता के दस बीस साल
इतनी है ज़िंदगी तो
हँसले-हँसाले सब दस बीस साल

मनुष्य ही है
नारी पक्ष समझें दस बीस साल
सम्मान को जूझती
करें उसके उपाय दस बीस साल

नारी सुरक्षित जिसमें
बनायें वह समाज दस बीस साल
नारी सम्मान में
निकलें शब्द मुँहसे दस बीस साल 

शोषित रही अब तक
दशा सुधारें उसकी दस बीस साल
जननी हमारी हैं नारी 
हँसले-हँसाले वे भी दस बीस साल

-- राजेश जैन
04-03-2015




 

Monday, March 2, 2015

अच्छा भी मिला है

अच्छा भी मिला है
-----------------
न करें ईर्ष्या न रखें जलन हम किसी से
जो भी हो जीवन आनंद में ज्यादा हमसे

किसी वैभवशाली को देख , हम खुश होना सीखें  
किसी विद्व-ज्ञानी को देख हम खुश होना सीखें
किसी स्वस्थ सुंदर को देख हम खुश होना सीखें
प्रतिष्ठित-प्रसिध्द को देख हम खुश होना सीखें

वरदानित ये मानव गर सदाचार से रहते हैं
वरदानित ये समाज को कुछ न कुछ देते हैं

वरदान जीवन अनुकूलताओं को जिन्हें मिला है
शुभ कामना हम करें सदाचार भी उन्हें मिला है
जलने या ईर्ष्या की जगह देखें हमें क्या मिला है
जीवन में सब को कुछ न कुछ अच्छा भी मिला है

https://www.facebook.com/PreranaManavataHit
-- राजेश जैन
03-03-2015