Monday, June 26, 2017

माँ - कविता

माँ - कविता
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कविता के पति की आय बहुत नहीं है। पति की ,बेटे की चाह में चार बेटियाँ हुईं हैं उनकी। उसमें भी एक फिजिकली चैलेंजड। सब में बड़ी अभी 13 वर्ष की है। भगवान ने रूप चारों को बहुत प्यारा दिया है। कविता की चिंताओं में - कम आय में परिवार चलाना , बड़ी होती बेटियों के प्रति गंदी हो रही पासपड़ोस की नज़रों से उन्हें बचाना , उनकी उचित शिक्षा , और फिजिकली चैलेंजड बेटी का भविष्य प्रमुख है। जैसे तैसे तरकीबों और बेटियों से मित्रवत रहते हुए , सूझबूझ से वह सब सम्हाले हुए है। नींद गायब हो जाती जिन रातों में वह बिस्तर पर पड़े पड़े उपाय सोचा करती है।
आज नींद नहीं है , उसके दिमाग में तर्क चल रहा है। माँ को ज़माना कितना महान बताया करता है। मेरी बेटियों के विवाह की बारी आएगी तो कितनी कठिनाइयों से उन्हें संबंध मिलेगें , किंतु उनके जिस्म के मजे लेने को हर कोई तत्पर दिखता है। मैं इन बेटियों की माँ हूँ। दुनिया कहती - माँ महान होती है। फिर इस माँ के मन की चिंताओं से क्यों ज़माना इस तरह बेखबर है। समस्याओं से नित यह माँ वैसे ही दो चार हो रही है। कम वय बेटियों के तरफ गंदी नीयत क्यों सब लिए घूमते हैं ?? क्या 'मैं वह महान माँ' नहीं ? क्यों मेरी समस्याओं को यह जमाना विकराल करता है???
--राजेश जैन
27-06-2017
https://www.facebook.com/narichetnasamman/
 

Sunday, June 25, 2017

डरा हुआ जीवन


डरा हुआ जीवन
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बचपन में डरता था उसके किस कार्य को उपद्रव मान उसे पीट दिया जाएगा। स्कूल में डरता था कम मार्क्स या फ़ैल न हो जाए। कॉलेज में डरता था इतने खर्चे के बाद हासिल डिग्री से कुछ जॉब मिलेगा भी या नहीं। विवाह हो रहा था तब डरता था कि घरवाले कोई दहेज की माँग न रख दें। विवाह बाद पत्नी से तकरार के समय डरता था वह झूठे दहेज का केस न करवा दे। बेटा हुआ तो उससे मोह में डरता कि उसे कुछ हो न जाए। सुंदर बेटी जन्मी तो डरा कि आसपास कोई उससे बदसलूकी न कर दे। स्कूल जाने लगे बच्चे तो  उनके सकुशल घर लौट आना मालूम होने तक डरता। हॉस्टल पढ़ने भेजा बेटे को तो डरता कि ड्रग लेना /स्मोक-ड्रिंक करना न शुरू करदे और ऐसे भी डरता कि और लड़कों के साथ मिल किसी घर की बेटी से कोई छेड़छाड़ में न उलझ जाये । बेटी को जब हॉस्टल भेजा तो जब जब अकेले यात्रा करती तो उसकी सुरक्षा को डरता और यह भी डर कि ज्यादा आधुनिका न हो जाए । देश में योग्यता अनुरूप अपॉर्च्युनिटी मिलेगी इससे शंकित बेटे को यूएस और बेटी के जीवन में सुरक्षा चिंताओं में शंकित उसे ऑस्ट्रेलिआ भेजा तो वहाँ के घटनाक्रमों से उनके साथ अनहोनी का उसे डर अब रहता है । दुनिया में कौमी बैर बढ़ने पर डरता कि कोई घटना से दंगे न भड़क जायें - आतंकवादी बम ब्लास्ट न करवा दें। त्यौहार जब आते तो डरता कि कट्टरपंथी उकसावे से दंगे न भड़का दें। हर उम्र ,हर जेंडर ,हर धर्म के व्यक्ति ने बिताया /बिता रहा विभिन्न डरों में अपना जीवन और हम कहते हैं कि आज का समाज सभ्य युगीन समाज है।
तब भी छोड़िये इसे , आज डर से मुक्त होने का प्रयास कीजिये और
ईद के त्यौहार जिससे अपेक्षा सामाजिक भाईचारे बढ़ने की भी होती है , इस अपेक्षा को यथार्थ करते हुए ही एवं वास्तव में भाईचारे को स्थाई रूप से पुष्ट करके ही यह दिन बीते , इस भावना के साथ फ्रेंड्स और सभी को शुभकामनायें -
"ईद मुबारक हो"
मेरे साथ आपस में आप सभी भी दीजिये/लीजिये ।
--राजेश जैन
26-06-2017