Sunday, June 20, 2021

Happy Father's day …

 

Happy Father's day …


मैंने देखा है आजकल  कोरोना के इस समय में, मेरे अढ़ाई वर्ष के नाती ‘रंश’ की सप्ताह में चार दिन, एक घंटे प्रति दिन की ऑनलाइन क्लास होती है। टीचर उसमें रंश सहित सभी बच्चों को अच्छा गाइड करती हैं। मुझे मालूम है कि इस छोटी सी उम्र में भी, सभी बच्चों के लिए अच्छी स्कूल फीस देनी होती है। 

क्लास के एक घंटे के समय में और उसके बाद भी, मेरी बेटी #रिचिका - दामाद #रुचिर, अपने बेटे #रंश के साथ, उसे स्कूल से बताई गतिविधियाँ सिखाने में बहुत मेहनत करते हैं और टीचर से कई गुणा अधिक समय देते हैं। इस मेहनत और समय की कहीं भी कोई फीस नहीं होती है। 

टीचर (गुरु) के प्रयास और शिक्षा का अपनी जगह महत्व तो होता ही है। इसे कम करके नहीं देखा जाना चाहिए, मगर विशेष कर #रुचिर, की बच्चे #रंश के साथ, लगन, निष्ठा और समर्पण से दिया समय, अतुलनीय है। 

इस सब का साक्षी होकर मुझे, विचार आता है कि पिता-माँ का लालन पालन, उस प्राकृतिक प्राण वायु (#ऑक्सीजन) जैसा होता है जो सहज मिलती है तब उसका कोई मोल नहीं होता है। 

कोरोना के इस समय में, हम सबने देखा है कि यही #प्राणवायु (ऑक्सीजन) जब किसी कोरोना संक्रमित को, सिलिंडर में खरीदनी पड़ी है तब उसकी कितनी महँगी कीमत चुकानी पड़ी है। 

मैं हृदय से अनुभव करता हूँ, धन्य हैं हर पिता-माँ जो अपने अपने बच्चे को महान त्याग और हार्दिक तथा निःस्वार्थ लाड़ दुलार से लालन पालन करते हुए बड़ा करते हैं। 

धन्य हैं हम सब भी, आज हम जो कुछ भी अपनी पहचान बना सके हैं मगर पूर्व में कभी, अपने माँ की ममता और अपने पिता की बाँह में झूले हैं। माँ-पिता की अँगुलिया पकड़कर हमने चलना सीखा है। 

आज फादर्स डे पर, अपने पूजनीय पिता (स्व. #मदनलाल जी जैन) का श्रद्धा पूर्वक स्मरण एवं शत शत वंदना। 

हालाँकि मेरे बाबू जी अब नहीं हैं। मगर जब तक मेरे हृदय में धड़कनें हैं, उन प्रत्येक धड़कनों में वे हैं। 

सभी को हैप्पी फादर्स डे।

 --राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन

20-06-2021


Saturday, June 12, 2021

त्याग (Sacrifice) ...

 त्याग (Sacrifice) ...

अपनी सेवानिवृत्ति के पश्चात, आज मुझे अपने मन में नित दिन उमड़ आते विचारों को लिपिबद्ध करना अत्यंत प्रिय लगता है। विचारों के उमड़ आने का यह क्रम, मेरी प्रातः कालीन भ्रमण में अधिक चलता है। भ्रमण के बीच उत्पन्न विचारों से बनी, लेखन भावदशा में मैं, यह तय करता हूँ कि वापस घर पहुँच कर, मैं इन्हें लिखूंगा। 

फिर प्रायः यह होता है जिस दिन अधिक और अच्छे विचार मेरे मन में होते हैं। उस दिन घर पहुंच कर मैं अपने हिस्से में अधिक कार्य देखता हूँ। तब मैं व्यथित हो जाता हूँ। मुझे लगता है कि लिखने के पहले, अन्य कार्य में लग जाने से मेरे यह विचार विस्मृत हो जाएंगे और फिर बिन लिखे रह जाएंगे। 

अनमने ही मैं, अन्य काम करने लग जाता हूँ। तब देखता और सोचता हूँ कि परिवार के हर सदस्य, किसी ने किसी प्रकार से अपने आराम एवं पसंदीदा काम को छोड़ कर, पारिवारिक हित में प्रत्यक्ष रूप से आवश्यक लग रहे काम को प्राथमिकता दे रहे हैं। हर कोई मुझे ऐसे काम में व्यस्त दिखता है। उसके मन में भी मेरे जैसे व्यथित भाव चल रहे होंगे मैं, यह कल्पना कर पाता हूँ।  फिर इस निष्कर्ष पर पहुंचता हूँ कि ऐसे परस्पर त्याग से ही हर कोई, हमारे परिवार का सयुंक्त हित सुनिश्चित कर देता है। 

मैं बहुत दिन तक, अपने परिवार में प्रमुख होने की जिम्मेदारी अंजाम देते रहा हूँ। अतः जब मेरे परिवार के हित की दिशा में, सब परिजन योगदान करते यूँ तत्पर मिलते हैं तो एक प्रमुख के रूप में, सयुंक्त पारिवारिक उपलब्धि को मैं, अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन मान लेता हूँ। तब मन में उत्पन्न विचारों पर लिखने की अपनी उत्कंठा मैं, त्याग देता हूँ। अपने विचारों को अलिखित ही मनो मस्तिष्क से उड़ जाने देता हूँ। इसे मैं, मन ही मन अपना किया त्याग मान लेता हूँ। 

यह अनुभव करते हुए मैं, इस विचार से आनंदित रहता हूँ कि अन्य परिजन के लिए हमारे त्याग, हमारा न्यायप्रियता का द्योतक है। साथ ही यह मानता हूँ कि ऐसे परस्पर त्याग, हमारे साहासिक और निःस्वार्थ कार्य होते हैं, जिन्हें वीर पुरुष और वीरांगनाएं ही कर निभा पाते हैं।  

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन

13-06-2021