Wednesday, August 29, 2018
अम्मी नज़मा और डॉक्टरेट बेटी आयशा
ऐसे में एक दिन टीवी शो में आयशा को अदालत के कटघरे में खड़ा किया गया , आरोप यह लगाया गया कि - "वह डॉक्टरेट है किंतु देश और समाज में अल्पसंख्यकों पर ढाये जा रहे जुल्म के ख़िलाफ़ आवाज नहीं उठाती।"
बड़ी सजींदगी से एक रात आयशा ने असलम से कहा - अम्मी नज़मा ने एक सच्ची इंसान , मुझे पैदा किया था। उस परम्परा को वह आगे बढ़ाना चाहती है। उसका वक़्त आया है अब वह एक औलाद पैदा करना चाहती है जो नेक इंसान हो और साथ ही भारत की सच्ची/सच्चा नागरिक भी।
Tuesday, August 28, 2018
जिसे होगी हमसे तकलीफ़ ,
कहेगा नहीं
मगर एक गाँठ रखेगा वह ,
दिल में जरूर
अपनों में तो दिखेंगी कमियाँ
क्यूँकि
ढोल दूर के सुहावने होते हैं
लिखने के पहले
अगर हमने विचार कर लिया होता
किसी को ठेस लग सकती है -
ऐसा कदापि लिखा नहीं होता
मनमानी लिखकर ठेस पहुँचायें
तब क्षमायाचना की मुद्रा बनायें
इससे बेहतर हम मर्यादा में लिखें
और मैत्री संदेश सब में फैलायें
ख़ुद के अभिनय में हमें
पाखंड नहीं नज़र आता है
और बिरला कोई अच्छा करता तो
उसमें हमें पाखंड नज़र आता है
यह एकतरफा दोष ,
हम पर मढ़ना उचित नहीं
अपने दोष स्वयं कौन देखता है ,
आप भी नहीं
कहेगा नहीं
मगर एक गाँठ रखेगा वह ,
दिल में जरूर
अपनों में तो दिखेंगी कमियाँ
क्यूँकि
ढोल दूर के सुहावने होते हैं
लिखने के पहले
अगर हमने विचार कर लिया होता
किसी को ठेस लग सकती है -
ऐसा कदापि लिखा नहीं होता
मनमानी लिखकर ठेस पहुँचायें
तब क्षमायाचना की मुद्रा बनायें
इससे बेहतर हम मर्यादा में लिखें
और मैत्री संदेश सब में फैलायें
ख़ुद के अभिनय में हमें
पाखंड नहीं नज़र आता है
और बिरला कोई अच्छा करता तो
उसमें हमें पाखंड नज़र आता है
यह एकतरफा दोष ,
हम पर मढ़ना उचित नहीं
अपने दोष स्वयं कौन देखता है ,
आप भी नहीं
Sunday, August 26, 2018
आईपीएस - अंशिका
आईपीएस - अंशिका
------------------------------------आरती के मायके जाने से और सुहास के हॉस्टल में होने से अनुराग घर में अकेला था। शाम साढ़े सात बजे का समय होगा उसने फ्रिज में देखा डिनर की सामग्री रखी हुई थी। दूध नहीं बचा था। यह विचार करते हुए कि दूध और सुबह के लिए ब्रेड ले आये , अनुराग बाहर निकला था। मुश्किल से बीस मिनट में वह लौट आएगा यह सोचते हुए डोर लॉक नहीं किया था। बाहर का गेट बंद करते हुए वह टहलते हुए निकल गया था। स्टोर से दूध - ब्रेड के पैकेट्स लेकर बाहर निकला तो दोस्त प्रदीप मिल गया उससे कुछ यहाँ वहाँ की हँसी मजाक करते हुए घर लौटा तो लगभग पौन घंटे का समय हो गया था। गेट खोल अंदर आया तो घर के अंदर से मिलती आवाज से उसे अनुभव हुआ जैसे कि भीतर कोई है। उसने सावधान होकर दरवाजा खोला तो ड्राइंग रूम में कोई नहीं दिखा लेकिन बेडरूम में रोशनी से उसका शक पुख्ता हुआ। बेडरूम की लाइट्स वह बंद कर गया था। अनुराग ने चिल्ला कर पूछा - कौन है अंदर ? ... भीतर से कोई प्रतिउत्तर नहीं मिला।
हाथ का कैरी बेग सेंटर टेबल पर रखते हुए ,अनुराग ने जींस में से बेल्ट निकाल हाथ में लिया और धीरे से दरवाजा पुश किया सामने कोई नहीं दिखा लेकिन बेड के उस तरफ से सिर के बाल दिखाई पड़े जिससे वहाँ किसी लड़की के सिमट के बैठे होने का उसे अनुमान हुआ । वह सामने पहुँचा तो कॉलोनी ही की अंशिका बैठी दिखाई दी जो काँप रही थी , अनुराग को सामने देख उसकी शक्ल रो देना शुरू होते की सी लगी। अनुराग का गुस्सा , भय खत्म हो गया। उसने बेल्ट वापिस लगा लिया और आवाज में नरमी लाते हुए अंशिका को चेयर पर बैठने के लिए कहा , अंशिका बैठने के बजाय दरवाजे के तरफ भागने को हुई तो उसने रास्ता रोक कर कहा , डरो नहीं यहाँ बैठो , भागोगी तो बात बिगड़ेगी। अंशिका डरते हुए चेयर पर बैठ गई . अनुराग ने उससे पूछा कब से आई हो ?, उसने थूक गटकते हुए भय मिश्रित आवाज़ में कहा अंकल अभी 3-4 मिनट हुए हैं। अनुराग ने मॉनिटर ऑन कर कैमरे के फुटेज 5 मिनट बैक कर देखना शुरू किया। स्क्रीन इस तरह एडजस्ट की कि अंशिका को भी दिखाई पड़े। लगभग 4 मिनट पहले से अंशिका के बाहर से अंदर आने से अब तक की गतिविधि , पहले उसका चौकन्ना होकर इधर - उधर देखते हुए घर में प्रवेश करना और फिर इधर उधर नजरों से ऐसे देखना जैसे कि उसे कोई खास चीज ढूँढ़नी हो सब रिकॉर्ड हुआ था। अंशिका यह देख रोने लगी तो अनुराग ने उससे कहा तुम चुप हो जाओ और डरो नहीं। अनुराग की आवाज में नरमी से अंशिका सम्हली ,उसने रोना बंद कर दिया। तब अनुराग ने उससे पूछा अंशिका तुम्हें क्या चाहिए था ?
अंशिका ने बताया वह लेपटॉप और मोबइल उठा ले जाना चाहती थी। अंशिका की उम्र 15 साल की थी , अनुराग के बेटे सुहास से भी छोटी। वह लोअर मिडिल परिवार की थी। पड़ोस की होने से अनुराग और अंशिका इस तरह थोड़े परिचित भी थे।
अनुराग ने उससे कहा कि रात हो रही है , अभी तुम घर जाओ। तुम इस बात से डरो नहीं कि मैं तुम्हारा बुरा करूँगा। कल शाम जब मैं ऑफिस से लौटूँ तब तुम अपने पापा को लेकर आना , उन्हें नहीं बताना हो तो अकेली आ जाना। हमें कुछ बात करनी होगी।
अगले दिन शाम को अंशिका आई , उसने बताया कि पापा नाराज होंगे इसलिए उन्हें सब बताने कि उसकी हिम्मत नहीं हुई। अनुराग ने अंशिका से कहा कि वह उसकी बेटी जैसी है . जिन चीजों को वह चुराना चाहती है वह बमुश्किल 40 हजार में आ जायेंगी। लेकिन अगर वह उसके जगह किसी और आदमी के ऐसे सामने पड़ती तो या तो थाने पहुँचती या ब्लैकमेलिंग का शिकार होकर अपने शारीरिक शोषण को मजबूर होती।
अनुराग की बात सुन अंशिका - उसके चरण स्पर्श को झुकी , याचक भाव से उसने माफ़ी माँगी। अनुराग ने अंशिका के सामने ही कल के वीडिओ फुटेज डिलीट किये . इस बात को भूल जाने को कहा और अच्छे आचरण रखने की बात कह कर अंशिका को जाने के लिए कहा। अनुग्रही भाव-भंगिमा के साथ अंशिका उस दिन वापिस गई।
अंशिका के पापा से जो छोटी सी कपड़े की दुकान करते हैं ,बाद में अनुराग ने उनसे इस बात के उल्लेख किये बिना , दोस्ती गाँठी। उन्हें कहा कि उसकी कोई बेटी नहीं है इसलिए उसका इरादा किसी बेटी की पढ़ाई और उसके भविष्य निर्माण में मदद करने का है। और अगर उन्हें ऐतराज नहीं तो अंशिका के लिए इस उद्देश्य से सहायता करना चाहता है। अंशिका के पापा एकाएक राजी नहीं हुए , उनके मन में आशंकायें आना स्वाभाविक था। अंशिका की माँ से पूछ कर जबाब देने को कहा।
बाद में सब अच्छा चला . अंशिका को अनुराग ने लैपटॉप दिलाया . मोबाइल पर ज्यादा समय व्यर्थ होगा इसलिए मोबाइल न रखने को राजी किया। समय होता तब अनुराग , अंशिका को मैथ्स और साइंस में गाइड करता। वह और आरती भी , अंशिका मॉरल सपोर्ट और मार्गदर्शन भी करते। स्नेहिल संबंध हो जाने पर अनुराग -आरती का बेटा सुहास , अंशिका से रक्षाबंधन पर्व पर राखी बँधाया करता .
समय पँछी सा उड़ता चला और उस घटना को लगभग नौ बरस बीत गए . आज अंशिका पूरे मोहल्ले में घर घर मिठाई बाँट रही है - उसका चयन आईपीएस में हो गया है।
--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
26-08-2018
Friday, August 24, 2018
Thursday, August 23, 2018
माफ़ कर देना बड़ा साहसिक काम है
लोग प्रचारित इसे कायरता सा करते हैं
यादों के वे सिलसिले रखना ठीक -
जो मोहब्बत का पैगाम देते हैं
यादों से गर नफ़रत जागे भुलाना बेहतर कि -
नफ़रत सब खाक करती है
झूठों के इस ज़माने में - ज़माना छोड़ने से होता ये बेहतर
करते यह कि यहाँ जमकर - सच्चाई की मिसाल पेश करते
लोग प्रचारित इसे कायरता सा करते हैं
यादों के वे सिलसिले रखना ठीक -
जो मोहब्बत का पैगाम देते हैं
यादों से गर नफ़रत जागे भुलाना बेहतर कि -
नफ़रत सब खाक करती है
झूठों के इस ज़माने में - ज़माना छोड़ने से होता ये बेहतर
करते यह कि यहाँ जमकर - सच्चाई की मिसाल पेश करते
तलाश औरों की थी - हमने यकायक खुद से मिल लिया
शुक्र किस्मत हमारी कि - हमने ज़िंदगी को समझ लिया
जीवन दायिनी ..
जीवन दायिनी ..
-----------------
भास्कर वह फ़्लायर था जो उस प्लेन क्रेश में था जिसमें प्लेन एक वीरान बर्फीले प्रदेश में जा गिरा था एवं जिसमें कुछ लोगों की जानें ही बची थी। वहाँ ना कोई वनस्पति नहीं थी , ना ही दूर दूर तक कोई मानव आबादी। अत्यधिक ठंडा मौसम और वीरानगी बचे यात्रियों के लिए जीवित रह सकने के लिए कठिन चुनौती प्रस्तुत करते थे। भोज्य सामग्री का न होना रही सही कसर भी खत्म कर दे रही थी। विमान में सर्व की जाने के लिए रखी सामग्री भी अत्यंत कम थी। उसे झपटने के लिए सभी में तकरार होती थी। विमान में रखे यात्रियों के सामान भी छान लिए जा रहे थे। जो भी भोज्य सामग्री थी 2 दिनों में खत्म हो गई थी। बचे यात्रियों में कुछ घायल थे , कुछ में जीवटता की कमी थी , जो एक एक कर जीवन से हारते जा रहे थे।
भास्कर जैसी भी भोज्य सामग्री थी , उसे किसी तरह निगलता था और अधभूखा रह कर उसे थोड़ा ज्यादा समय तक चलाने का यत्न करता था। दयावश अपने कब्जे की सामग्री में से कुछ बच्चों और महिलाओं को भी दे देता था। चौथे दिन खोजी चॉपर ने उन्हें खोज लिया था और 13 बच रहे यात्रियों को एक एक कर 600 किमी दूर सबसे पास के शहर में सुरक्षित पहुँचा दिया था। इस दुर्घटना को कुछ साल बीत गए थे।
अब भास्कर की पत्नी सुनीता जब रिश्तेदारी में बाहर जाती , भास्कर बाहर खाना पसंद नहीं करता था। रखी भोज्य सामग्री में से या स्वयं तैयार की गई सामग्री से (जो उसे ठीक तरह बनाना नहीं आती थी) , अपना काम चलाया करता था।
हर बार सुनीता का मायके जाना - उसे प्लेन क्रैश के माफिक लगता था। और सुनीता का लौट कर आना , जीवन दायिनी सहायता का आ जाना लगता था।
--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
23-08-2018
Wednesday, August 22, 2018
'रिवायत ए नफ़रत' मिटाने का जिम्मा जिन पर
मज़हब के बहाने - 'रिवायत ए नफ़रत' चलाये रखते हैं
#बेशर्मी_से_इसे_मजहब_कहते_हैं
परिवार तक में बैर होता है - बैर समाज से कैसे मिट सकता है
मगर
पूर्वाग्रही 'रिवायत ए नफ़रत' चलना - दुःखद अभिशाप लगता है
हम पर मरने वाले कुछ हैं मगर
हमें फ़िक्र ,
जलने वालों की होती है
जो व्यर्थ जला करते हैं
जब भी आक्रोशित नारी,पुरुषों को बुरा-बुरा कहती है
सहज ही लगता है
अपनी आश्रिता रख पुरुष ने शोषण तो किया है उनका
एक साहस हममें यह हो कि
अपने अवगुणों को स्वीकार करें
दूजा साहस यह हो कि
उन अवगुणों से खुद को मुक्त करें
मज़हब के बहाने - 'रिवायत ए नफ़रत' चलाये रखते हैं
#बेशर्मी_से_इसे_मजहब_कहते_हैं
परिवार तक में बैर होता है - बैर समाज से कैसे मिट सकता है
मगर
पूर्वाग्रही 'रिवायत ए नफ़रत' चलना - दुःखद अभिशाप लगता है
हम पर मरने वाले कुछ हैं मगर
हमें फ़िक्र ,
जलने वालों की होती है
जो व्यर्थ जला करते हैं
जब भी आक्रोशित नारी,पुरुषों को बुरा-बुरा कहती है
सहज ही लगता है
अपनी आश्रिता रख पुरुष ने शोषण तो किया है उनका
एक साहस हममें यह हो कि
अपने अवगुणों को स्वीकार करें
दूजा साहस यह हो कि
उन अवगुणों से खुद को मुक्त करें
दिमाग़ के वश में नहीं - ऐसे दिल के अफ़साने हैं
दिल में बस जाने के तमाम - ये किस्से पुराने हैं
आपने खुद , खुद को बाँध रखा है हमसे
मगर उलाहना ये कि , तुम छोड़ते नहीं
तुम्हें लगता कि - गर स्पष्ट शब्दों में तुम कहो
तुम्हारी साफ़गोई - हम बर्दाश्त नहीं कर सकेंगे
जानते हैं हम - जो कहना चाहते हो तुम हमसे
गर कहो तो - हममें एक दोस्त खोने का डर है
दिल में बस जाने के तमाम - ये किस्से पुराने हैं
आपने खुद , खुद को बाँध रखा है हमसे
मगर उलाहना ये कि , तुम छोड़ते नहीं
तुम्हें लगता कि - गर स्पष्ट शब्दों में तुम कहो
तुम्हारी साफ़गोई - हम बर्दाश्त नहीं कर सकेंगे
जानते हैं हम - जो कहना चाहते हो तुम हमसे
गर कहो तो - हममें एक दोस्त खोने का डर है
Sunday, August 19, 2018
अपनी मनहूसियत लिए
तुम्हारे सामने पड़ने का मुझे कोई शौक नहीं
जब सामने पड़ जाऊँ
तुम समझ लेना हालात ने मजबूर किया होगा
दिखता है कोई खुश
जहाँ मुझे बहुत प्यारा लगता है
दिखता है जब कोई ग़मगीन
ज़िंदगी है तो देखना मेरी मजबूरी है
दूसरों की खुशियों में हुई इकट्ठी भीड़ का मैं हिस्सा होता हूँ
अपनी उदासियों के समय मैं खुद को खुद में समेट लेता हूँ
हमारी औकात बताते
उन हालातों से गुजरना नापसंद तो होता है
मगर मुझे इसलिए पसंद कि ये ही हैं
जिन्होंने जिंदगी चीज क्या मुझे समझाया है
किसी को दोष देना
मेरी फ़ितरत में नहीं
अपने दोष देख लेना
मुझे गॉड गिफ्टेड है
तुम्हारे सामने पड़ने का मुझे कोई शौक नहीं
जब सामने पड़ जाऊँ
तुम समझ लेना हालात ने मजबूर किया होगा
दिखता है कोई खुश
जहाँ मुझे बहुत प्यारा लगता है
दिखता है जब कोई ग़मगीन
ज़िंदगी है तो देखना मेरी मजबूरी है
दूसरों की खुशियों में हुई इकट्ठी भीड़ का मैं हिस्सा होता हूँ
अपनी उदासियों के समय मैं खुद को खुद में समेट लेता हूँ
हमारी औकात बताते
उन हालातों से गुजरना नापसंद तो होता है
मगर मुझे इसलिए पसंद कि ये ही हैं
जिन्होंने जिंदगी चीज क्या मुझे समझाया है
किसी को दोष देना
मेरी फ़ितरत में नहीं
अपने दोष देख लेना
मुझे गॉड गिफ्टेड है
Saturday, August 18, 2018
भूले रहकर कि हश्र क्या - हम जिंदादिली से जी लेते हैं
जो हश्र स्मरण रख जीते - वे जीवन सार्थक कर लेते हैं
हैसियत पर अपनी - हमें कभी गुमान न हो
और
हो जायें मिट्टी - तो हकीकत पर पछतावा नहीं
बड़प्पन निभाने की जब - तकलीफें बयां की उसने
तभी सवाल उठ गया कि - बड़प्पन बाकि रहा तेरा?
बिता अपना जीवन हम यूँ ही चले जायेंगे
कदमों के निशां वक़्त पर नहीं छोड़ पायेंगे
खेद कि यह अक्षम सा जीवन आम हुआ करता है
मदद की उठती गुहार को अनसुना किया करता है
कसक इक सदा रही - जीवन क्यूँ बेकाम करते हो
महत्वहीन छोड़ - क्यूँ महत्वपूर्ण काम न करते हो
जो हश्र स्मरण रख जीते - वे जीवन सार्थक कर लेते हैं
हैसियत पर अपनी - हमें कभी गुमान न हो
और
हो जायें मिट्टी - तो हकीकत पर पछतावा नहीं
बड़प्पन निभाने की जब - तकलीफें बयां की उसने
तभी सवाल उठ गया कि - बड़प्पन बाकि रहा तेरा?
बिता अपना जीवन हम यूँ ही चले जायेंगे
कदमों के निशां वक़्त पर नहीं छोड़ पायेंगे
खेद कि यह अक्षम सा जीवन आम हुआ करता है
मदद की उठती गुहार को अनसुना किया करता है
कसक इक सदा रही - जीवन क्यूँ बेकाम करते हो
महत्वहीन छोड़ - क्यूँ महत्वपूर्ण काम न करते हो
Saturday, August 11, 2018
उसने चाहा था ....
उसने चाहा था ....
बालक से बड़ा हो रहा था तो औरों के साथ बहुत कुछ ऐसा होते देखता जा रहा था , जो उसे स्वयं के साथ होते देखना कभी पसंद नहीं होता। इसलिए उसने चाहा था , कि
वह युवा से बूढ़ा कभी न हो , लेकिन उम्र के साथ वह बूढ़ा हो गया था।
उसने चाहा था , कि -
वह कभी किसी के आश्रित न हो , लेकिन बीमार और कमजोर होने पर बिस्तर पर पड़ अपने परिवारजनों के आश्रित हो गया था।
उसने चाहा था , कि -
उसके उपचार पर कोई ज्यादा खर्च नहीं करना पड़ा , उसके बेटे - बहुयें , बेटी दामाद को उसके लिए परेशान नहीं होना पड़े , किंतु आखिरी के कुछ महीनों में नरम गरम हालत के चलते उसके उपचार पर बीस लाख रूपये का खर्च आया था , सभी परिजन उसकी सेवा सुश्रुषा एवं उपचार पर व्यय से तंग आ गए थे।
उसने चाहा था , कि -
जब अंतिम घड़ी आये उसे पीड़ा ज्यादा न हो किंतु कई महीनों बिस्तर पर रहकर उसने बहुत कष्ट सहे थे। अंतिम श्वाँस लेते वक़्त वह दुनिया से गुजरने का कोई मलाल नहीं करे , मगर ऐसी खराब हालत में भी उसे देहत्याग करने में भय हो रहा था। अंतिम समय उसके मलद्वार नाक , मुहँ साफ़ रहें , मगर यह भी नहीं हुआ था सभी जगह से रक्त गंदगी बाहर आई थी।
उसने चाहा था , कि -
जब उसकी अंत्येष्टि हो तो उसके जाने का दुःख करने वाले लोग ही अंत्येष्टि में शामिल हों , मगर यह तक नहीं हो पाया था - चार पाँच सौ की ऐसी भीड़ इकट्ठी हो गई थी जो अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की मजबूरी में थी। अधिकाँश राजनीति , सिनेमा और व्यापारिक चर्चा में लीन रहे थे , कुछ तो पान-गुटका , सिगरेट का सेवन करते हुए हँसी ठिठोली कर रहे थे।
कुछ भी तो नहीं लग रहा था जो उसके चाहे अनुसार हुआ था , लेकिन उसका तो देहावसान हो चुका था वह इस हेतु पश्चाताप करने के लिए भी नहीं बचा था कि व्यर्थ वह अपने रूप पर आत्ममुग्ध रहता था। बेकार अपनी शिक्षा , ज्ञान और अर्थ अर्जन से स्वयं में गर्व बोध करता था। भ्राँति में जीता था कि पत्नी , बच्चे , उसके नाते-रिश्तेदार और उसके मित्र सच्चे और उसे बेहद प्यार करने वाले हैं। जीवन में पाले अपनी हैसियत और शक्ति का घमंड और उसका श्रेष्ठता-बोध सभी तो मिथ्या सिध्द हुआ था।
दुखद आश्चर्य यह भी था कि उसकी ऐसी परिणीति से कोई कुछ समझने को भी तैयार नहीं था .....
राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
12-08-2018
12-08-2018
तीन तलाक एक साथ - कुप्रथा
तीन तलाक एक साथ - कुप्रथा
अपनी सुरक्षा के नाम पर मर्द से नीची हैसियत में साथ को मंजूर कर लेने वाली ख्वातीनों ने ज़िंदगी को एक अभिशाप की तरह , "तीन तलाक एक साथ" कुप्रथा झेली है। इंसान के अनुभवों के साथ चलन , प्रथा , नियम , कानून या संविधान में संशोधन के नियम हैं। ख्वातीनों ने इससे जब अपने सम्मान को ठेस तथा ज़िंदगी बसर करने में लाचारी अनुभव की तो , वे पुरुष के विरुध्द अपने हक़ों के लिए लड़ने के लिए मजबूर हुईं हैं। आज "तीन तलाक एक साथ" ही नहीं और भी कुछ बीमार चलन जो जिंदगी को जिंदगी नहीं बचने देकर एक नारी जीवन को अभिशाप की तरह कर देते हैं के विरुध्द भुक्तभोगी महिलाओं ने साहस जुटा कर न्यायालयों में प्रकरण लाये हैं , उन्हें मानसिक रूप से सहयोग अन्य नारी एवं खुले ख्यालों वाले पुरुषों का भी मिला है। न्यायालय के फैसले नारी पक्ष में मिले हैं। सरकार भी संविधान में बदलाव ला देना चाहती है। जो बदलाव प्रस्तावित हैं , अनेकों को पर्याप्त या कमियों वाले लग रहे हैं। लेकिन कोई भी कानून हरेक की जैसी अपेक्षा है वैसी ही पूर्ति करने वाला नहीं हो सकता क्यूँकि सभी के कम ज्यादा जुदा जुदा विचार और अपेक्षायें हैं। इसलिए जिस भी स्वरूप में कानून आने वाला है , उसे मंजूर किया जाना चाहिए। यह नारी को पहले से कुछ ज्यादा हक़ देने वाला तो होगा ही। साथ ही यह आशा रखनी चाहिए कि इसमें जो कमियाँ आगामी समय में अनुभव की जायेंगी उन में संशोधन होते रहेंगे।
सदियों से पुरुष सत्ता से अपने हित साधने वाला पुरुष अपने अहं से समझौता कर पाने में धीरे धीरे सफल-सहज भी होता जाएगा और जल्द ही वह दिन भी आएगा जब नारी को संपूर्ण न्याय संगत आजादी मिलेंगी तथा वह इंसान की तरह समान ज़िंदगी के अवसर पाने में सफल होगी। मर्द - औरत में व्याप्त व्यर्थ अंतर से समाज में हो रहे टकराव की परिस्थितियाँ खत्म हो जायेंगी।
--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन 12-08-2018
Friday, August 10, 2018
'आम' , कोई नहीं होता यहाँ
खुद के लिए -
सूरत , हसरतें , ख़्वाब , मंसूबे ,
ज़िंदगी और इरादे उसके 'खास' होते हैं
चलिए अब से उसूल हम ऐसे कर लेते हैं
जिद कोई नहीं ,
भली हर बात आपकी या हमारी मान लेते हैं
अधूरे रह गए सभी के कुछ ख्वाब
अधूरे कुछ ख्वाब हमारे भी रहेंगे
जिसे तुम्हारी रुखाई समझ - हम शिकायत रखते थे तुमसे
थे तुम जीवन संघर्ष में व्यस्त - ये जान अपने पर अफ़सोस हुआ
आपसे ऐसी उम्मीद न थी कि
निर्दयता से वह खुशफ़हमी तोड़ देंगे
जिससे हमें ज़िंदगी अपनी
जीने लायक लगा करती थी
किसी बेचारे की तो - जाँ पर बन आई
बेदर्द आप - उस पर आपको हँसी आई
खुद के लिए -
सूरत , हसरतें , ख़्वाब , मंसूबे ,
ज़िंदगी और इरादे उसके 'खास' होते हैं
चलिए अब से उसूल हम ऐसे कर लेते हैं
जिद कोई नहीं ,
भली हर बात आपकी या हमारी मान लेते हैं
अधूरे रह गए सभी के कुछ ख्वाब
अधूरे कुछ ख्वाब हमारे भी रहेंगे
जिसे तुम्हारी रुखाई समझ - हम शिकायत रखते थे तुमसे
थे तुम जीवन संघर्ष में व्यस्त - ये जान अपने पर अफ़सोस हुआ
आपसे ऐसी उम्मीद न थी कि
निर्दयता से वह खुशफ़हमी तोड़ देंगे
जिससे हमें ज़िंदगी अपनी
जीने लायक लगा करती थी
किसी बेचारे की तो - जाँ पर बन आई
बेदर्द आप - उस पर आपको हँसी आई
Thursday, August 9, 2018
हमने
बहुत खर्च किया अपना बेशक़ीमती वक़्त उनके लिए
जिन्हें हमसे , अपंने मतलब के लिए बस मतलब था
जो खर्च किया अपना वक़्त हमने - आपके लिए
हिसाब नहीं करेंगें
कि - वह आपके लिए कुछ खुशियाँ ले आता था
जब
हमारी खराबियाँ - आपको , हमें बताना पड़ता है
तब
संदेह हमें - अपने इंसान होने पर हुआ करता है
अपनी ख़राबियाँ हम जानते मगर - ख़ुद ठीक कर लेते नहीं
कैसे हम आपके सामने - खुद को इंसान की तरह पेश करें
Wednesday, August 8, 2018
इंसानियत से जिये नहीं - घमंड हमारा आसमां छूता था
मरते वक़्त समझ सके - पिद्दी सी हमारी हैसियत थी
खुशफ़हमियाँ रहें कुछ कि - हौसले ज़िंदगी के हमारे कायम रहें
खुशफ़हमियाँ इतनी भी ठीक नहीं कि - जीने के सबब ही भूले रहें
#ज्यादा_स्पिन_हो_गई
पागल ही कह लो हमें - कि आम से हम नहीं
आम हो कर जीना भी - पागलपन से कम नहीं
ज़िंदगी खेलती जहाँ - पिच ज्यादा ही स्पिन लेता है
कितना भी हो महान - बल्लेबाज क्लीन बोल्ड होता है
हम समझें कि -
कौमों के बीच नफ़रत बढ़ा कर
एक बड़ी आबादी की -
अच्छाईयों से हम मरहूम रहते हैं
शिकायतों शिकायतों में ही
कुछ कर नहीं पायेंगे
कर गुजरने के मिले मौके को
हम यूँ ही गँवा जायेंगे
मिली ज़िंदगी की नेमत तुझे
इसे मोहब्बत से जी ले तू
नफ़रत ही गर जीना तुझे
पैदा होने की जहमत क्यूँ लेता तू
मरते वक़्त समझ सके - पिद्दी सी हमारी हैसियत थी
खुशफ़हमियाँ रहें कुछ कि - हौसले ज़िंदगी के हमारे कायम रहें
खुशफ़हमियाँ इतनी भी ठीक नहीं कि - जीने के सबब ही भूले रहें
#ज्यादा_स्पिन_हो_गई
पागल ही कह लो हमें - कि आम से हम नहीं
आम हो कर जीना भी - पागलपन से कम नहीं
ज़िंदगी खेलती जहाँ - पिच ज्यादा ही स्पिन लेता है
कितना भी हो महान - बल्लेबाज क्लीन बोल्ड होता है
हम समझें कि -
कौमों के बीच नफ़रत बढ़ा कर
एक बड़ी आबादी की -
अच्छाईयों से हम मरहूम रहते हैं
दिल में नफ़रत पैदा करके
उसे इंसान नहीं बचने देते
फिर हमें ज़माने से शिकायत कि
इंसानियत अब बची नहीं
शिकायतों शिकायतों में ही
कुछ कर नहीं पायेंगे
कर गुजरने के मिले मौके को
हम यूँ ही गँवा जायेंगे
मिली ज़िंदगी की नेमत तुझे
इसे मोहब्बत से जी ले तू
नफ़रत ही गर जीना तुझे
पैदा होने की जहमत क्यूँ लेता तू
Tuesday, August 7, 2018
कुछ भी और खाना - उतना महँगा नहीं
जितना कि महँगा - धोखा खाना होता है
धोखा ही खा लिया जब हमने
कुछ और खाने से परहेज नहीं
धोखा किसी को आप - इसलिए नहीं देना कि
कितना भी अमीर हो - बेचारा दिवालिया हो जाएगा
दिवालिया - हमारे धोखा देने से कोई हो ना हो
हमारा मानसिक दिवालिया होना साबित करता है
मालूम मुझे कि तस्वीर देख मेरी - ज़िंदगी तेरी सँवरती है
मैं तो हूँ अपने शौहर की - मगर तस्वीर शेयर कर देती हूँ
बेरुखी हमसे - इतनी भी तुम्हारी ठीक नहीं
ज़िंदगी तुमसे समझते - मगर जी लेंगे तुम्हारे बिन
जितना कि महँगा - धोखा खाना होता है
धोखा ही खा लिया जब हमने
कुछ और खाने से परहेज नहीं
धोखा किसी को आप - इसलिए नहीं देना कि
कितना भी अमीर हो - बेचारा दिवालिया हो जाएगा
दिवालिया - हमारे धोखा देने से कोई हो ना हो
हमारा मानसिक दिवालिया होना साबित करता है
मालूम मुझे कि तस्वीर देख मेरी - ज़िंदगी तेरी सँवरती है
मैं तो हूँ अपने शौहर की - मगर तस्वीर शेयर कर देती हूँ
बेरुखी हमसे - इतनी भी तुम्हारी ठीक नहीं
ज़िंदगी तुमसे समझते - मगर जी लेंगे तुम्हारे बिन
Monday, August 6, 2018
नज़र-नीयत अपनी बिगाड़ रखी है
सवाल नारी के वस्त्रों पर करते हैं
नारी को अपनी छेंक कपड़ों में
गंदी नज़र-नीयत लिए डोला करते हैं
एक बार आईने में ख़ुद को - हमने नज़र भर जो देख लिया
बाद उसके गज़ब हुआ - आईना औरों को दिखाना छोड़ दिया
आपकी नज़रों में आये - और हम खास हो गये
ख़ासियत हममें कोई थी या नहीं - सवाल ख़त्म हो गये
माशूकाओं पर अपनी - हम शायरी बहुत लिखते हैं
जागृति लायें - ताकि वे हिफ़ाजत से ज़िंदगी बसर कर पायें
पशोपेश में हैं हम कि -
तुमसे बात करके तुम्हें - डिस्टर्ब तो नहीं करते
या
बात जब हम न करें - तुम तन्हा तो नहीं रहते
ले लो चाहे कठिन परीक्षा - कोई ताकत नहीं - तुमसे हमें दूर करे
वादा है तुमसे कि - मर भी गए तो - अगले जन्म तुम्हें ढूँढ मिलेंगे
Saturday, August 4, 2018
Friday, August 3, 2018
दिल में पनाह देना - क्या अपना कसूर कहें ?
तुम दिल पर हमारे - हक़ अपना जताने लगे
चेतावनी से ज्यादा कारगर - बहुधा सद-प्रेरणा होती है
चेतावनी देना छोड़ - बेहतर हम प्रेरणाजनक लिखा करें
गर आप ही - नफरत की तरफदारी करने लगे
बदक़िस्मती दुनिया की - मोहब्बत बचेगी नहीं
इतराना किसी का - भाता तुझे क्यूँ नहीं
जबकि खुद दिल तेरा - इतराने का करता है
तुम दिल पर हमारे - हक़ अपना जताने लगे
चेतावनी से ज्यादा कारगर - बहुधा सद-प्रेरणा होती है
चेतावनी देना छोड़ - बेहतर हम प्रेरणाजनक लिखा करें
गर आप ही - नफरत की तरफदारी करने लगे
बदक़िस्मती दुनिया की - मोहब्बत बचेगी नहीं
इतराना किसी का - भाता तुझे क्यूँ नहीं
जबकि खुद दिल तेरा - इतराने का करता है
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