Tuesday, July 14, 2020

यशस्वी (14) ...

यशस्वी (14) ...
सबकी पेट पूजा हुई थी। अब बारी 'भजन गोपाला' अर्थात यशस्वी-युवराज के प्रेम प्रसंग चर्चा की थी। सब बैठ व्यवस्थित हो चुके तब,
यशस्वी ने बताया - मुझे, जसलीन ने वीडियो कॉल पर लिया था। सामान्य कुशलक्षेम की बातों के उपरांत, जसलीन ने अपना मोबाइल युवराज को दिया था। युवराज ने हाथ जोड़कर नमस्कार किया था फिर सकुचाते हुए कहा - मेरे परिवार में, मेरी शीघ्र शादी का, मुझ पर दबाव है। 
जसलीन ने आपसे हुईं सभी बातें मुझे बताईं हैं। जिसे जान लेने के बाद मैं जसलीन से विवाह को सहमति देने जा रहा हूँ। इसके पूर्व मुझे, आपसे इन दो प्रश्नों के उत्तर चाहिए हैं। क्या, आपने मुझे अपने योग्य नहीं समझा है ? और क्या, आपको ऐसा लगा कि आपसे, विवाह पश्चात मैं आपकी महत्वाकांक्षाओं की दिशा में बढ़ने में बाधा डालूँगा ?
इस पर यशस्वी ने यह उत्तर दिया - युवराज, आप मेरे ही नहीं, विवाह योग्य किसी भी लड़की के लिए, योग्य वर हो सकते हो। आपको जितना मैंने जाना है एवं जितना जसलीन ने आपके बारे में बताया, उससे मुझे मेरी उन्नति को लेकर संशय नहीं है कि आप, इसमें सहायक ही होते। तब भी आपसे, विवाह न करते हुए मैं, प्रेम को आत्मिक स्तर पर ही रखूँगी। वास्तव में, मेरे किये जा रहे कार्य, मेरे माने गए सामाजिक दायित्व की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। मेरे इस दिशा में किये जा रहे पुरुषार्थ मेरा पूरा समय ले लेते हैं। अतएव आपसे विवाह करने की दशा में संभावना होती है कि मैं आपके प्रति या कार्य के (दोनों में से एक या दोनों के) प्रति अन्याय कर बैठूँ। यह मेरे इंकार का कारण है। 
यशस्वी ने आगे बताया कि - मेरे साथ संकोची रहे युवराज ने, फिर कोई और बात नहीं की थी। मेरा सच सुनकर, क्षमा सहित आभार मानते हुए, कॉल डिस्कनेक्ट किया था। 
यशस्वी के चुप होने पर प्रिया ने सबसे पहले कहा - यशस्वी, तुम चौबीस की हो रही हो। इस अवस्था में किसी लड़की की मानसिक एवं शारीरिक दृष्टि से विवाह करना उचित होता है। मेरे मत में, तुमने एक अच्छा वर, हाथ से निकल जाने देकर, ठीक नहीं किया है।   
यशस्वी ने बताया - मेम आप एवं जीवनी दोनों नहीं जानते हैं कि मैंने किसी दिन अवसाद के वशीभूत, आत्महत्या करना चाही थी। ठीक उसी समय ईश्वर ने, (मेरी ओर इशारा करते हुए) सर को भेजा था इन्होंने मुझे नर्मदा में कूदने से पहले रोक लिया था। 
इसे सुन प्रिया और जीवनी ने तब मुझे हैरत से देखा, जिसे मैंने अनदेखा किया।
यशस्वी ने आगे कहा - यूँ मरते मरते बचा लिया जाना एवं सर का मुझे प्रदत्त मनोबल, व्यर्थ नहीं गया। यह सर भी नहीं जानते कि बाद में एक दिन, उसी स्थान पर नर्मदा किनारे मैं, फिर गई थी। तब नर्मदा के निर्मल प्रवाह को देखते हुए मैंने कल्पना की थी कि मैं उसमें डूब मर चुकी हूँ। और जो अभी प्रवाह को देख पा रही है वह, मेरी आत्मा है। तब मुझे कुछ बातों का स्मरण आया जिसे एक लेख में, मैंने पढ़ी थीं। लेख के अनुसार, कामनाओं की पूर्ति न होना, मनुष्य में अवसाद का कारण बनता है। मनुष्य में कामनायें, आत्मा के शरीर संयोग से उत्पन्न होती हैं। अगर शरीर नहीं तो रूहें, कामनाओं एवं इनके अपूर्ण रहने से, अवसाद के खतरे से मुक्त रहती हैं। यह विचार आने के बाद मैंने, अपनी समस्त कामनाओं को हृदय से अलग कर नर्मदा प्रवाह के हवाले कर दिया। उस दिन के पश्चात मैं, एक रूह जैसी ही जी रहूँ। मैं, करती बहुत कुछ हूँ मगर उसमें व्यक्तिगत कामनायें कुछ नहीं होती हैं। 
हम सभी उसे मुग्ध से होकर सुन रहे थे। हमें ऐसा प्रतीत हो रहा था कि ये शब्द किसी देवी के श्रीमुख से झर रहे हैं। 
यशस्वी ने कुछ पल की ख़ामोशी के बाद फिर कहना शुरू किया - उस दिन जब, जसलीन मेरे पास आई और उसने अपनी दास्तान सुनाई तब, सर्वप्रथम मैंने, उसमें-अपने में तुलना की। मैंने पाया कि मैं, निज कामना रहित हूँ जबकि स्वाभाविक रूप से जसलीन में, कामनायें हैं। इससे मैंने सोचा कि युवराज का ना मिलना, मुझे प्रभावित नहीं करेगा। मगर जसलीन के लिए गहन अवसाद का कारण हो जाएगा। 
उस समय मुझे, सर के द्वारा, मुझ पर किया उपकार याद आया। मैंने अनुभव किया कि सर का आभार जताने का, यह एक अच्छा अवसर है। इस विचार के आने से मैंने मासूम-सुंदर जसलीन को संभावित अवसाद से बचाने का निर्णय लिया। फिर युवराज के लिए अपने प्यार को नकारते हुए सहर्ष ही मैंने, जसलीन एवं युवराज के साथ हो सकने का मार्ग सुलभ कर दिया। 
जो कहना था यशस्वी कह चुकी थी। हम तीनों ने लगभग एक साथ अपनी अपनी रोकी हुई सी श्वाँसें, छोड़ी थी। 
जीवनी ने पूछा - यशस्वी, माना तुमने एक संकल्प लिया हुआ है। फिर भी जीवन में अवसर आते हैं जब मनुष्य, लिए गए संकल्प को निभाने में कठिनाई अनुभव करता है। ऐसे अवसर पर, अपने संकल्प से डिग जाने से, तुम खुद को कैसे रोक पाती हो? 
यशस्वी ने उत्तर दिया - मैं तब सोच लिया करती हूँ कि सर, उस दिन मुझे बचाने नहीं आये थे एवं मैं मर चुकी हूँ। आप समझ सकती हो, मरने के बाद कोई व्यक्ति क्या पा लेता है और क्या खो देता है! ऐसे मेरा संकल्प बना रहता है। 
यशस्वी से यह सब सुनकर, स्वयं को अत्यंत बुध्दिमान मानने वाला मैं, यशस्वी के सामने स्वयं को, हीन अनुभव कर रहा था।
तब प्रिया यशस्वी से पूछ रही थीं - यशस्वी, मगर तुम्हारी निरंतर अर्जित की जा रहीं, व्यवसायिक सफलताओं से ऐसा लगता नहीं कि तुममें, कोई आकाँक्षायें शेष नहीं?
यशस्वी ने उत्तर दिया - मेम, आकाँक्षायें तो मुझमें हैं मगर वे निज अपेक्षाओं से रहित हैं। अर्जित व्यवसायिक सुदृढ़ता, मुझे मेरे संकल्प अनुरूप सामाजिक सरोकारों को निभाने का माध्यम होती है। क्या हैं, हमारे सामाजिक सरोकार इस हेतु, आपने एवं सर ने ही, मेरा मार्गदर्शन किया होने से, इसे आप भली प्रकार से आप जानती हैं।  
यशस्वी ने उठ रही हर बात का जैसा समाधान दिया, उससे हम तीनों में कोई तर्क शेष नहीं रहे थे। 
अंत में उस दिन, मैंने निष्कर्ष रूप में, अपने शब्द यूँ कहे - यशस्वी एवं जीवनी दोनों के लिए मेरा कहना है कि प्रिया एवं मैंने, जीवन को जितना समझने में 50 वर्ष लगाये हैं, हमसे चर्चा में रहते हुए आप दोनों, अपने ट्वेंटीज में उसके सार तत्व समझ रही हो। मुझे संशय नहीं कि ऐसा समझ लेने एवं ऐसे संकल्प सहित आप दोनों, लगभग 25 वर्ष पूर्व ही, वैचारिक (समृध्दता) रूप से हमारे, समकक्ष पहुँच चुकी हो। 
इस अवस्था में हमारी क्षमतायें जब चुक रही हैं तब, तुम दोनों की क्षमतायें चरम पर पहुँच रही है। स्पष्ट हैं हम देखने को शायद जीवित न रहेंगे मगर कुछ वर्षों में, यह दुनिया तुम दोनों के, मानव सभ्यता के विकास में महान योगदानों की साक्षी होगी।   
फिर, अनायास मिले अवसर में हुए, यशस्वी पर मेरे उपकार का, गौरव अनुभव करने वाली अवस्था में मुझे छोड़, यशस्वी जा रही थी।
प्रिया और जीवनी उसे बाहर तक विदा करने गईं थीं ... 

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
14-07-2020

Monday, July 13, 2020

पास न आना कि दूर हो जाना अखरता है
पास जो आता वह सदा पास कहाँ रहता है 

Sunday, July 12, 2020

यशस्वी (13) ...

यशस्वी (13) ...

उस दिन मैंने, आत्महत्या से बचाकर यशस्वी में, निहित संभावनाओं को बचा लिया था। जबकि मरने को उतारू यशस्वी ने स्वयं ना मरते हुए, उस दिन अपने स्वार्थ एवं स्व-केंद्रित अपेक्षाओं को नर्मदा में तिरोहित कर दिया था।
उस दिन के बाद यशस्वी के किये प्रत्येक कार्य ने, मेरे उस विचार को पुष्ट किया था जिसके अनुसार, ईश्वर, प्रत्येक मनुष्य को अत्यधिक क्षमतायें से विभूषित कर दुनिया में भेजता है। मनुष्य का, अपनी क्षमताओं अनुरूप कार्य एवं प्रदर्शन न कर पाने में बाधक कारण, अति स्वार्थ एवं भोग लिप्सायें होती हैं। वास्तव में अति स्वार्थ एवं भोग लिप्सायें, एक वह खूँटा होता है जिसमें बँध जाने से, मनुष्य के जीवन शीर्ष पर पहुँच पाने की सीमायें निर्धारित एवं संकुचित हो जाती हैं।
युवराज के चंडीगढ़ जाने के बाद से, पिछले वर्षों में यशस्वी का उससे, कोई संपर्क नहीं रहा था। एक दिन दोपहर में यशस्वी की उम्र की ही, एक अत्यंत रूपवान लड़की, यशस्वी के प्रतिष्ठान में आई। उसने कुछ परिधान पसंद कर खरीदे। फिर सेल्सगर्ल से पूछ-परख की एवं यशस्वी से मिलने, उसके केबिन में पहुँची।
उसका पहना परिधान 'यशस्वीप्रिया ब्रैंड' का था। (यशस्वी के निर्मित कराये जा रहे परिधान अब तक, शहर में ब्रैंड बन चुके थे।) यशस्वी, उसके अनन्य सौंदर्य से प्रभावित हुई। यशस्वी ने प्रश्नवाचक दृष्टि से उसे देखा।
युवती ने बताया - मेरा नाम, जसलीन है, मैं चंडीगढ़ रहती हूँ। 
 यशस्वी ने कहा - आपसे, मिलकर मुझे बहुत ख़ुशी हुई। (साथ ही पूछ लिया) हमारे निर्मित वस्त्र क्या, चंडीगढ़ भी पहुँचने लगे हैं ?
जसलीन ने कहा - जो मैंने पहना है, यह मुझे युवराज से उपहार में मिला है। 
जसलीन का उत्तर अचंभित करने वाला था। यशस्वी, युवराज का नाम सुनकर चौंकी थी। जसलीन ने यशस्वी के मुखड़े पर यह भाव पढ़ लिए थे। आगे जसलीन ने ही कहा था - युवराज और मैं, एक ही कंपनी में काम करते हैं। युवराज मेरे बॉस हैं। उनसा, उच्च आदर्श जीने वाला अब तक मैंने, कोई और नहीं देखा है। मैं, उनसे प्यार करने लगी हूँ, लेकिन युवराज, मुझे कुलीग एवं फ्रेंड की श्रेणी में ही रखते हैं। 
यशस्वी ने कहा - जसलीन, मैं लड़का होती तो आप पर मर मिटी होती। युवराज की आपके प्रेम के प्रति, उदासीनता उचित नहीं जान पड़ती।
जसलीन ने कहा - यशस्वी, युवराज की इस उदासीनता का कारण आप हैं। युवराज के हृदय में, इस रूप में आप समाई हुई हैं।
जसलीन के जबाब ने, यशस्वी को फिर चौंकाया था। यह सुनकर यशस्वी ने मन ही मन, जसलीन से अपनी तुलना की थी। जसलीन के अनुपम रूपवान एवं आकर्षक व्यक्तित्व के समक्ष, यशस्वी कहीं समतुल्य नहीं लगती थी। यशस्वी, सामान्य आकर्षक और कद में जसलीन से दो इंच कम ही थी। जबकि जसलीन छरहरी लंबी, रूपवान ऐसी कि मिस इंडिया में भाग ले तो, मिस इंडिया चुन ली जाए।
यशस्वी यह भी समझ सकी थी कि जसलीन, युवराज के इतने करीब तो है कि उसने, यशस्वी से अपना आत्मिक प्रेम का राज, जसलीन से व्यक्त कर रखा है। उसने मन ही मन तय करते हुए कहा -
युवराज, हमारे यहाँ अच्छे कस्टमर की हैसियत से आया करते थे। (फिर झूठ कहते हुए) उन्हें लेकर, मेरी भावनायें (Feelings)ऐसी नहीं कि वे मुझे, अपने हृदय में स्थान दें।     
तब जसलीन ने कहा - हाँ, युवराज ने मुझसे कहा है कि उनका, आपसे प्रेम आत्मिक एवं एकतरफा है। जिसमें वे आपसे कुछ पाने की कोई अपेक्षा नहीं रखते हैं। उन्होंने मुझसे कहा है कि अगर आप राजी होती हैं तो वे जीवनसंगिनी का स्थान, आपको ही देना चाहते हैं।
यशस्वी ने पूछा - उन्होंने, आपके माध्यम से, यह प्रस्ताव भेजा है?
जसलीन ने बताया - नहीं, मेरा आपसे मिलने आना युवराज की जानकारी में नहीं है। मैं, आपसे मालूम करने के उद्देश्य से स्वयं ही आई हूँ। युवराज के प्रेम को लेकर आपके उत्तर से, मैं तय कर सकूँगी कि युवराज से अपने प्रेम को लेकर, उनसे मैं कोई अपेक्षा रखूँ या अपने हृदय में इसे, निरपेक्ष एवं आत्मिक प्रेम जैसे ही रख लूँ ?
अब यशस्वी ने कहा - नहीं, आपके जैसी सुंदर नवयौवना के सुंदर हृदय में बसने वाला यह प्रेम एकतरफा नहीं रह जाना चाहिए। मैं, चाहूँगी कि युवराज से, आपको प्रेम का प्रतिदान अवश्य मिले। युवराज के अच्छे व्यक्तित्व से, आप जैसे ही मैं भी प्रभावित हूँ। मगर उनसे विवाह की नहीं सोचती। (फिर झूठ कहा) वास्तव में, मैं अपनी व्यवसायिक महत्वाकाँक्षाओं के प्रति इतनी समर्पित हूँ कि हृदय में, किसी के प्रति आप जैसा प्रेम, अनुभव नहीं करती।    
यशस्वी के उत्तर से जसलीन के मुखड़े के भाव, पहेली बूझने वाले जैसे दिखे। जैसे, उसे समझ नहीं आ रहा हो कि इस पर वह खुश हो या नहीं! प्रगट में जसलीन ने कहा - युवराज से मैं प्रेम अवश्य करती हूँ। आपसे मिलकर, मुझे लग रहा है कि युवराज ने अपने प्रेम के लिए सर्वश्रेष्ठ पात्र चुना है। जो उत्तर सुनने की अपेक्षा से मैं, यहाँ आई थी, वही उत्तर आपने दे दिया है। तब भी ऐसा सुनकर मुझे ख़ुशी नहीं हो रही है। सच मानो, मुझे युवराज पर दया आ रही है कि उस जैसा आदर्श युवक, अपना प्रेम पा सकने में असफल हो रहा है। मैं चाहूँगी कि आप, पुनः विचार कीजिये। युवराज जैसा जीवनसाथी दूसरा कोई, आपको शायद फिर नहीं मिल सकेगा।  
यशस्वी ने कहा - नहीं जसलीन, पुनर्विचार संभव नहीं।
फिर युवराज के लिए जसलीन की पात्रता परीक्षित करने के उद्देश्य से आगे पूछा - जसलीन, आप बताओ जिसने, अपने हृदय में किसी और को बसाया है, उसके साथ जीवन जीना, आपके लिए कठिन नहीं होगा?
जसलीन ने कहा - निश्चित ही कठिन होता। अगर युवराज के दिल में आपकी जगह कोई और बैठी होती। युवराज के हृदय में स्वयं मेरे अपने होने के अतिरिक्त, आपका होना मेरे लिए गौरव का विषय होगा। 
यशस्वी ने जसलीन से पूछा - अब आप युवराज को अपने पर, राजी करने के लिए, क्या करने की सोचती हो ?
जसलीन - मैं चंडीगढ़, वापिस जाने के बाद आपसे हुई यह सारी चर्चा उनसे कहूँगी। फिर उन्हें आपसे वीडियो कॉल पर बात करवाने की सोचती हूँ। मुझे आशा है कि आपसे बात कर लेने के उपरांत युवराज, मेरा प्रेम निवेदन स्वीकार कर लेंगे। 
यशस्वी ने कहा - मुझे दिख रहा है कि युवराज एवं आपकी बनती जोड़ी, ईश्वर की इस पीढ़ी की बनाई, सर्वश्रेष्ठ जोड़ी (युगल) होगी। (फिर मुस्कुरा कर) कहा - मेरी शुभकामनायें एवं आप दोनों के लिए बधाई। 
जसलीन ने जाने के पहले यशस्वी को व्हाट्सएप, फेसबुक आदि में स्वयं से जोड़ा था। कहा था - आप अपने सारे व्यवसायिक मनोरथ सिध्द करने में कामयाब हों। मैं चाहूँगी कि आप, मुझसे कॉल पर निरंतर बात करते रहें। ताकि मैं, आप जैसी अच्छी एवं सफल नारी बन सकूँ। 
यशस्वी ने अपने व्यस्त समय में भी जसलीन को, रात्रि भोज के लिए मनाया था। उसके उपरांत उसी रात, जसलीन वापिस चली गई थी।   
अवकाश वाले दिन आज, यशस्वी ने जसलीन से हुआ सारा वार्तालाप, जीवनी, प्रिया एवं मेरे समक्ष कहा। इसे सुन हम सभी अचंभित हुए।
जीवनी ने जिज्ञासा से पूछा - क्या फिर तुम्हारी, युवराज से बात हुई ?
यशस्वी ने बताया - हाँ, जसलीन के जाने के चौथे दिन, आज ही जसलीन ने ही युवराज से बात करवाई है।
इस पर चर्चा करना हम सभी को, अपने अपने दृष्टि से महत्वपूर्ण लगा।
चर्चा आरंभ करने को, प्रिया ने यह कहते हुए रोका कि - पहले पेट पूजा फिर भजन गोपाला। 
हम सब हँसे थे, तब प्रिया, यशस्वी एवं जीवनी, लंच के लिए टेबल तैयार करने अंदर चलीं गई थीं ... 
--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
12-07-2020

Wednesday, July 8, 2020

यशस्वी (12) ...

यशस्वी (12) ...
जीवनी के (पीएचडी) विश्वविद्यालय एवं गाइड प्रोफेसर पिछले शहर में थे। अतः उसका वहाँ जाना एवं वापिस आना चल रहता था। यशस्वी एवं जीवनी में मित्रता हो जाने से, एक अवकाश के दिन, जीवनी जब घर आई हुई थी, तब यशस्वी उससे मिलने आई। उनके बीच बात हो रही थी तभी, मैं जीवनी के कक्ष में पहुँचा था।
मैंने हँसते हुए पूछा था - आप दोनों को आपत्ति न हो तो मैं, आपकी चर्चा का श्रोता होना चाहता हूँ।
जीवनी ने हँसकर कहा - पापा, चर्चा वैसे नारी विषयक है। चलो हम आपको नारी, मानकर अनुमति देते हैं।
इस पर, यशस्वी ने ठहाका लगाया।
इस मजाक से तनिक झेंपते हुए, मैंने कहा - विपक्ष सशक्त लग रहा है अतः चलो मैं, आपके पक्ष में शामिल हो जाता हूँ। (फिर आगे कहा) यद्यपि, शरीर अपेक्षा से नारी एवं पुरुष में भेद है। वस्तुतः मगर, आत्मा के स्तर पर, हम तीनों में कोई अंतर नहीं है।
जीवनी ने कहा - आपने बहुत अच्छी बात कहि, पापा। मैं अपनी थीसिस में इसे ऐसे लिखूँगी, "मनुष्य में होने वाली आत्मा एक जैसी होते हुए, शरीर को मुख्य कर नारी एवं पुरुष में, समाज व्यवहार में अनावश्यक ही, बड़े भेद कर दिए गए हैं।"
यशस्वी ने कहा - किसी जीवन के लिए, मुख्य एवं महत्वपूर्ण तथ्य, शरीर में आत्मा का होना है। इसे ध्यान रखते एवं स्वीकार करते हुए, समाज चलन-व्यवहार, शरीर की अपेक्षा, आत्मा को ही मुख्य करते हुए होने चाहिए।
जीवनी ने कहा - बहुत अच्छा कहा है, मैं अपनी थीसिस में, यशस्वी की कही, यह बात ज्यों की त्यों लिखूँगी।
तब मैंने कहा - मैंने आपका विषयांतर करा दिया, आप अपने चर्चा पर वापिस आओ। मैं अब चुप रहकर सिर्फ सुनूँगा।
तब जीवनी ने कहा - पापा, यशस्वी जानना चाहती है कि अभिनेता की पत्नी से साक्षात्कार में, उनके द्वारा क्या कहा-सुना गया है। मैं यशस्वी को यही बताने वाली थी कि आप आये हैं।
मैं सोचने लगा कि यशस्वी, कोई बात भूलती नहीं है। तभी प्रिया भी आ गईं और उन्होंने, चल रहे डिस्कशन में मूक श्रोता रहने का इशारा, अपने ओंठों पर अँगुली रखकर किया। हम सभी ने हँसकर उनकी इस अदा का आनंद उठाया। तब जीवनी ने कहना आरंभ किया :-
"अभिनेता पत्नी रौशनी जी के दिए वक़्त पर मैं, उनके बँगले पर पहुँची थी। सामान्य शिष्टाचार के आदान-प्रदान के बाद मैंने, जल्दी मुद्दे पर आते हुए, उन्हें उनके अभिनेता पति का इंटरव्यू (यशस्वी-10 में) दिखाया था। जिसे, उन्होंने बताया था कि उनका, पहले ही पढ़ा हुआ है। तब मैंने पूछा, आपने जब अपने पति से उनके अवैध संबंधों पर प्रतिकार किया, तब उन्होंने आपको भी, उनके जैसे अवैध संबंधों में, लिप्त होने को प्रोत्साहित किया जिसमें दुर्भाग्यपूर्ण रूप से आप आ गईं, क्या यह सच है?
 रौशनी ने बताया - यह पूर्ण सच नहीं है।
जीवनी उत्तर से चौंकी थी, प्रश्न किये - तो सच क्या था? और क्या आपने, अभिनेता पति को सच बताया था?
रौशनी - मैं, पति की अति व्यभिचारी प्रवृत्ति से दुखी रहती थी। अतः उनके सामने ऐसा अभिनय करते रही कि जैसे उनकी बेवफ़ाई के बदले में, मैं बेवफ़ाई करती हूँ। जबकि सच यह था कि मैं, उनसे शादी के पूर्व से अभिनेत्री थी तथा कास्टिंग काउच निर्माता एवं सह-अभिनेताओं के द्वारा, शादी के पहले ही शोषित की जाती रही थी।
और शादी के बाद भी मेरी दुर्भाग्यपूर्ण नियति यही रही थी। अगर मेरे पति अपने काम के बाद अपना समय मुझे दिया करते तो मैं, सिनेमा में काम करना छोड़, उनके लिए समर्पिता रहने का विकल्प चुनती। पति की सिनेमा में एवं बाद के वक़्त में, अपने व्यभिचार में लिप्तता से मेरा मन क्षुब्ध रहता था। मैं फिल्मों में काम करती रही तथा कास्टिंग काउच मेरे साथ अपने ख़राब मंतव्य सिध्द करते रहे।   
जीवनी ने फिर पूछा - आप यह कहना चाहती हैं, ऐसे संबंध आपके दैहिक जरूरत नहीं थे ?
रौशनी ने कहा - बिल्कुल भी नहीं, मुझे यह लगता है कि अपवाद को छोड़ दें तो किसी पत्नी के लिए अपने पति से मिलता शारीरिक सुख भी, उसकी जरूरत से अधिक होता है। कोई स्त्री इस सुख के लिए भटकती नहीं है। अपितु यह, पुरुष का ही निंदनीय काम होता है जो नारी को जबरन इसमें लिप्त करता है। उसे ब्लैक मेल करता है। 
जीवनी - क्या सिने जगत में, पुरुष एवं नारी ऐसे ही हैं?

रौशनी - नहीं, किसी का ऐसा कहना, अच्छे तरह के नर -नारी के प्रति अन्याय होगा। 
जीवनी - कुछ ब्लैक मेल के मामले तो, औरतों के द्वारा किये जाते, भी देखने में आते हैं ?
रौशनी - उनका भी पूरा सच सामने आये तो आप देखोगी कि उसमें भी, कोई पुरुष ही अपनी लोलुपता में, औरत का उपयोग करते हुए, उससे करवाता है?
जीवनी - वेश्यालयों में तो देह व्यापार कराने में, औरत ही प्रमुख देखी जाती है।
रौशनी - तुम छोटी हो इसका सच भी, तुम नहीं जानती हो। फिर भी चलो मैं, मान लेती हूँ। तब भी कुछ अपवादों को लेकर, तुम्हारी थीसिस में कोई निष्कर्ष निकालना, क्या उचित होगा? औरतों की, कितनी आबादी वेश्या होती है?
जीवनी ने पूछा - आपका दैहिक शोषण होता रहा, जानते हुए भी इस पर आपने विद्रोह नहीं किया। अपने ऐसे करने को आप, अच्छा कैसे ठहरा सकती हैं ? 
रौशनी - यह अच्छा कभी था ही नहीं। बस मैं, इसको उजागर करने का साहस तब, नहीं जुटा सकी। तब नारी को लेकर समाज में सोच, आज जितनी सुलझी नहीं थी। समाज दृष्टि, धूर्त पुरुषों की सब बुरी करनी को अनदेखा कर देती एवं मेरे व्यक्तित्व पर सारा कालिख पोत देती।
जीवनी - मगर ऐसे घुट घुट कर जीना, क्या जीवन है?
रौशनी - मेरे ही नहीं, अधिकाँश औरतों के जीवन में, ऐसी दुःखद घुटन समाज वास्तविकता है। यह, आज के पहले इससे भी विकट थी। 
जीवनी - कैसे बदलेगी यह कटु नारी जीवन विडंबनायें ? आप क्या सोचती हैं, कभी बदल सकेंगी भी या नहीं ?
रौशनी -  जिस दिन पुरुषों को, नारी जीवन के दुःखद सभी पहलू, गंभीरता से दिखाये जायेंगे और उन्हें विवेक जागृत कर विचार करने को बाध्य किया जाएगा निश्चित ही बदल सकेंगी
जीवनी - अपनी तरफ से कोई उदाहरण रख, आप समझाना चाहेंगी?
रौशनी ने (सोचते हुए कहा) - मैं सोलह सत्रह साल की थी तब एक कवि सम्मेलन सुन रही थी। उस दौरान तब दर्शक/श्रोता दीर्घा में कुछ हलचल सी हुई थी। माइक पर कविता पढ़ रहे, कवि महोदय को इससे चिढ हुई, उन्होंने कहा, क्या मेरे पिताजी, यहाँ भी आये थे?जिस पर लक्ष्य कर कवि ने यह बात कही, उस पुरुष ने चिल्लाकर कहा, नहीं मेरे पिताजी, तेरे घर गए थे।  माइक पर नहीं कहे जाने से इसे ज्यादा ने नहीं सुना था। कवि ने पुरुष श्रोताओं की वाहवाही लूट ली थी।
जीवनी ने कहा - मेम, मुझे समझ नहीं आया ?
रौशनी ने कहा - तब, इसमें निहित गूढ़ार्थ मुझे भी समझ नहीं आया था। कवि ने यह फूहड़ हास्य, इसमें अपने पिता की मर्दानगी दिखाने के लिए किया था। और नारी के चरित्र को लाँछित किया था। जबाब में कहने वाले पुरुष ने भी यही किया था। दोनों ने ही, एक दूसरे की माँ को लाँछित करते हुए अपने पिता की जगह जगह अवैध संतान पैदा करने के काल्पनिक काम को, गौरव गाथा सा कहा था। अर्थात बात ऐसी कुछ थी ही नहीं, मगर हर बात में नारी को घसीट कर लाँछित करना, हमारे समाज में शर्मनाक सच्चाई है।   
जीवनी ने पूछा - इस दुःखद समाज सच्चाई का, नारी जीवन पर प्रभाव कैसे पड़ता है?
रौशनी - बात बात में लाँछन से, नारी आजीवन बचाव मुद्रा में रहती है। बहुत से पुरुष, ऐसा आक्रामक व्यवहार करते हुए, शारीरिक एवं मानसिक रूप से नारी पर सदैव दबाव बनाये रखते हैं। वे ऐसी परिस्थिति निर्मित करते हैं कि अपने दोषपूर्ण कर्मों के लिए भी, नारी ही, आत्म-ग्लानि अनुभव करने के लिए मजबूर रहे। 
ऐसे पुरुष अपने ईगो तुष्ट करने की कोशिश में, (भ्रम)गर्व से प्रचारित करते हैं कि उनने, अनेक औरतों को भोगा है। जिस दिन ऐसे (भ्रम)गर्व से नारी, यह कहने लगेगी कि मैंने इतने पुरुष को भोगा है, उस दिन ऐसे पुरुष आक्रामकता छोड़, बचाव मुद्रा में आ जाएगें।
जीवनी - क्या, आप कास्टिंग काउच से मजबूर हो किये अवैध संबंधों को गर्वबोध में, ऐसे कहेंगी कि आपने पचास पुरुषों को भोगा है ?
रौशनी - नहीं, कोई नारी ऐसा कहे, यह मेरा अभिप्राय नहीं है। पुरुषों को इस पर विचार के लिए ऐसा कहा है कि नारी, यदि ऐसे शर्मनाक दावे करने लगे तो उन्हें कैसा लगेगा? जबकि नारी ही उनकी माँ, बहन, पत्नी और बेटी होती है।
जीवनी - मेम, आपने बहुत ही तार्किक बातें रखीं हैं। आपके उल्लेख से यदि मैं, इन सारी बातों को, अपनी थीसिस का अंश बनाऊँ तो आपको कोई आपत्ति तो नहीं होगी ? 
रौशनी - नहीं जीवनी, अगर कुछ भी पुरुष इन पर विचार करें और, अपने आचार व्यवहार तथा कर्मों में सुधार लायें तो अपने सच को स्वीकार करने से, मेरी बुरी करने का प्रायश्चित हो जाएगा। 
जीवनी के सब बताने के बाद, यशस्वी बहुत प्रभावित हुई थी।
यशस्वी ने कहा कि - मेरे काम के बाद में, मेरे विचार भी नारी दशा और उसके सुधार को लेकर चलते हैं। जीवनी से मिलती संगत, इस दृष्टि से अत्यंत लाभप्रद है। 
जीवनी ने प्रशंसा के लिए यशस्वी का आभार माना था। मैं और प्रिया भी, जीवनी के डॉक्टरेट होने की प्रक्रिया में, उसके वैचारिक एवं तार्किक क्षमताओं के बढ़ते स्तर से अत्यंत आनंदित थे।

फिर, साथ चाय लेने के बाद यशस्वी चली गई थी ...


--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
08-07-2020

     


Sunday, July 5, 2020

यशस्वी (11) ...

यशस्वी (11) ...
जीवन में कुछ संयोग विशुद्ध ईश्वरीय इक्छा से होते हैं। अगर इन शुभ संकेतों को हम समझते हुए आगे कर्म एवं आचरण करें तो हम अपना जीवन सार्थक कर लेते हैं। हुआ यूँ कि मुझे पदोन्नति मिली एवं संयोगवश मेरी पोस्टिंग फिर, पिछले अर्थात यशस्वी के शहर में हो गई। 
यशस्वी के लिए यह समाचार अत्यंत सुखद रहा। युवराज, अभी गया ही था और हम पहुँच गए थे। 
वह मेरी बेटी सहित हमारे लिए, तीन पुष्पगुच्छ लेकर मिलने आई। मेरी बेटी जीवनी से, यशस्वी की यह पहली भेंट थी। यशस्वी बहुत खुश थी। उसने कहा-
सर, आपके प्रमोशन से आपकी व्यस्तता और जिम्मेदारी बहुत बढ़ जाने वाली हैं। आपका यहाँ आना शहर और मेरी, अपेक्षाओं की दृष्टि से अत्यंत सुखद है। मैं अपने विषय पर, मार्गदर्शन के लिए आप तीनों से एक मीटिंग करना चाहती हूँ। आप जब इसके लिए समय निकाल सकें, मुझे बताइयेगा।  
मैंने कहा था - अवश्य, यशस्वी हम किसी अवकाश वाले दिन बैठक कर लेंगे।
कुछ देर रहकर हमारे यहाँ आगंतुकों का क्रम देखकर यशस्वी चली गई थी।अगले अवकाश के दिन यशस्वी, तपस्वी को भी लेकर आई था। प्रिया, जीवनी एवं मैं उनके साथ ड्राइंगरूम में बैठक के लिए इकट्ठे हो गए थे। यशस्वी ने सर्वप्रथम, प्रिया एवं मुझे अपना आदर्श बताया तथा हम दोनों के निःस्वार्थ सहयोग एवं प्रेम के लिए आभार व्यक्त किया था। इस पर हमने मुस्कुरा कर हाथ जोड़े थे। तब यशस्वी ने बताया -
अब मेरी 'यशस्वी सीता बुटीक' शहर की विख्यात शॉप हो गई है। ऐसा हो सकने का सारा श्रेय, सर एवं मेम आपको है। आज स्थिति यह हो गई है कि हमारे निर्मित परिधान की माँग इतनी हो गई है कि हम, उसे पुरा नहीं पा रहे हैं। मुझे हो रही आय तो हम कल्पना नहीं कर सकते थे, इतनी हो गई है। ऐसे में सुखद संयोग की तरह आप, मेम एवं सर, इस शहर में वापिस आ गए हैं। मैं चाहती हूँ कि आप दोनों, बढ़ी माँग की पूर्ति के लिए, हमारे आगामी तौर-तरीके तय कीजिये। 
मैंने कहा - यशस्वी अब समय आ गया है कि तुम अपने व्यवसाय में जो तुम्हें पर्याप्त से अधिक प्रतिलाभ दे रहा है, में सामाजिक सरोकार जोड़ो। 
यशस्वी ने कहा - सर, सामाजिक सरोकार तो परिधान में गरिमायुक्त डिजाइनिंग रखते हुए पहले ही मेम ने, जुड़वाया हुआ है।
मैंने कहा - यह सच है।  मगर हमारा सामाजिक सरोकार इतने में ही पूरा नहीं हो जाता। अब तुम्हें अपनी आय की सीमा निर्धारित करते हुए, बिक्री की जा रही सामग्री में लाभ कम लेने चाहिए। लाभ की कमी से पहले आय कम होती सी लगेगी, जो सामग्री के सस्ते होने से ज्यादा बिकने पर पूरी हो जायेगी। 
यशस्वी ने पूछा - सर, मगर हम तो पहले ही माँग की पूर्ति में कठिनाई अनुभव कर रहे हैं।
मैंने कहा - इसके लिए हमें व्यवसाय को बड़ा रूप प्रदान करना होगा। तुम समाज में से और जरूरतमंद युवतियों को, अपने यहाँ काम पर लगाओ। यह भी सामाजिक सरोकार ही होगा। मैनेजर रखते हुए, ड्रेस मटेरिअल ज्यादा बुलाओ। इससे यथोचित पूर्ति संभव हो सकेगी।  
यशस्वी ने पूछा - सर, आय सीमित रखने से क्या लाभ होगा?
मैंने कहा - यह पूँजीपति होने की चल रही प्रवृत्ति को बदलने का हमारा प्रयास होगा। इस प्रवृत्ति ने सभी को भ्रष्ट किया है। भ्रष्टाचार ने परस्पर छल कपट को बढ़ा दिया है। हर कोई इससे दुःखी होता है। भ्रष्टाचार करने वाला भी, दूसरे के भ्रष्टाचार में कसमसाता है। व्यर्थ के आडंबर में शान बघारने के चलन से, जीवन में बहुत से अच्छे किये जाने वाले कार्यों से मिलते, सुख से सब वंचित हो रहे हैं।   
यशस्वी ने तब तर्क किया - सर, मेरी बुटीक का आधार ही आडंबर है, आडंबर को पुष्ट करने वाला कार्य करते हुए, आडंबर का प्रचलन कैसे कम किया जा सकेगा?
इस प्रश्न ने मुझे तनिक कठिनाई में डाला फिर, मैंने उत्तर दिया - तुम्हारा तर्क, बुद्धिमत्ता पूर्ण है। वास्तव में नारी परिधान एक सीमा तक आवश्यकता है, आडंबर नहीं। सुव्यवस्थित परिधान, नारी को सहज करते एवं आत्मविश्वास देते हैं। प्रिया के मार्गदर्शन में डिजाइनिंग के माध्यम से तुमने, इन परिधान को गरिमायुक्त विविधता प्रदान की है। तुम्हारे मौसम अनुसार निर्मित वस्त्र धारण करने वाली नारी के लिए सुविधाजनक हैं। इनकी कीमत, मध्यम वर्ग की दृष्टि से ज्यादा नहीं है। तुम्हारे निर्मित किये परिधान, लाभ में कमी करने से निचले वर्ग के पहुँच में भी हो सकेंगे। तुम ऐसा ब्रैंड नेम भी नहीं हो जो, आडंबर बन रहा हो। 
मेरे उत्तर पर प्रिया यशस्वी सहित सभी ने सिर हिलाकर सहमति जताई।
तब प्रिया ने कहा - इन्होंने (मेरे लिए संबोधित), जिस मैनेजर की इस व्यवसाय में जरूरत बताई है, उसके लिए यशस्वी, तुम्हारी स्वीकृति हो तो अवैतनिक रूप से मैं, यह सेवा देने को तैयार हूँ।
यशस्वी आश्चर्य चकित रह गई फिर कहा - मेम, आप मालिक हो। आप बुटीक में मालिक होकर काम कीजिये, इससे बड़ी ख़ुशी मेरे लिए क्या होगी!   
प्रिया ने उत्तर दिया - इनकी कही बातों के प्रमाण के रूप में अभी ही, मेरे मन में इस भूमिका का विचार आया है। मैं इसे, ऐसा रखना चाह रही हूँ कि जिनका व्यक्तित्व गुणों से सुसज्जित होता है, उन्हें बाह्य आडंबर से सजने की जरूरत नहीं होती है। साथ ही, इनकी कही बातें, थोथे उपदेश न रहें, अतः मुझे स्वयं वह करके दिखाना है जो, इनकी बातों का मर्म हैअर्थात सामाजिक सरोकार में हमारी भी भागीदारी हो। 
यशस्वी ने कहा - आरंभ से ही डिजाइनिंग में, आपके मार्गदर्शन से, आपकी भागीदारी है, मेम। आपके पूरे परिवार से, मैं अत्यंत प्रभावित हूँ। यह मेरा सौभाग्य है कि आप सभी से, मुझे पुनः करीबी का अवसर मिला है। 
तब मैंने कहा - मेरी महत्वाकाँक्षा बड़ी है, यशस्वी। पहले अपने इस शहर में, तुम्हें मध्यम तथा निम्न वर्गीय नारी का ब्रैंड बनना है। फिर इसकी ख्याति एवं उत्पाद देश के शेष हिस्सों में पहुँचाना है। जब ऐसा किया जा सके तो, इसे सहकारिता से चलने वाले उद्योग में परिवर्तित करने की योजना रहेगी। जिसमें मालिक कोई नहीं होगा। सभी वेतनभोगी होंगे। संभावित इस सहकारिता उद्योग को हम "न लाभ न हानि" (No Profit No Loss) के आधार पर चलायेंगे। (फिर पूछा) तुम्हें, यह स्वीकार है?
यशस्वी की आँखे नम हुई, उसने कहा - सर, मेरा यह जीवन आपको समर्पित है। मैं अपनी ओर से, वचनबध्द हूँ कि आपके मार्गदर्शन पर आजीवन चलूँगी। 
तपस्वी, मंत्रमुग्ध सी सब सुन रही थी। जीवनी इस बीच अंदर गई थी। वापिस आई तो जल-नाश्ता चाय लिए, सेविका साथ थी। सभी ने जलपान किया था। फिर यशस्वी-तपस्वी चलीं गईं थीं।
उनके जाने के बाद जीवनी ने कहा था - मुझे गर्व होता है कि आप मेरे पापा-मम्मा हो। आप दोनों ही मुझे ही नहीं, और बेटियों को अपनी ही बेटी जैसा प्यार एवं मार्गदर्शन प्रदान करते हो  ....
--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
05-07-2020

Saturday, July 4, 2020

यशस्वी (10) ...

यशस्वी (10) ...
यशस्वी ने मुझे, कॉल कर युवराज के लिए, अपने मन की प्रेम अनुभूति बताई थी।
तब मैंने यशस्वी को बताया कि - यह बात प्रिया, मुझे बता चुकी है।
यशस्वी ने कहा - सर, आप एवं मेम के संबंधों में अत्यंत अनुकरणीय पारदर्शिता है। (फिर आगे कहा) - सर, समाज में दो तरह के पुरुष हैं। एक प्रकार में युवराज है, जो बोलकर प्रेम प्रकट करने में भी सोचता है कि मैं अन्यथा न ले लूँ। यही प्रकार आपका है, जो नारी का आदर, उसे अवसर एवं मार्गदर्शन के लिए सदैव उत्सुक रहते हैं। दूसरा प्रकार, उन सीए के तरह का पुरुषों का है। जो नारी से अपने अवैध मंतव्य पूरे करने को उत्सुक रहते हैं।   
मुझे यशस्वी की बात चुभी थी। उसने मुझे, युवराज के प्रकार का, कहा था। जबकि उसे, युवराज को मेरे प्रकार का, कहना चाहिए था। फिर मैंने सोचा कि एक 21 वर्ष की लड़की, मेरे जितनी वाकपटु नहीं है तो यह अस्वाभाविक नहीं है। जीवन कला सीखने के लिए, एक जीवन छोटा पड़ता है, फिर यशस्वी तो, अभी छोटी है। उत्तर देने के पहले, मैंने यह भी सोचा यशस्वी सीए के अमर्यादित प्रस्ताव को भुला न सकी है।
फिर मैंने कहा - यशस्वी, किसी दिन मैंने आपको बताया था कि मेरी बेटी डॉक्टरेट कर रही। उसका शोध का विषय है, "भारतीय समाज और उसमें नारी-पुरुष के वर्जनीय संबंध"
कुछ समय पूर्व आपने, सुंदर पत्नी होते हुए, पुरुष के विवाहेत्तर संबंध की अभिलाषी होने पर प्रश्न किया था। उस संबंध में, मेरी बेटी के थीसिस का अंश, एक स्टार अभिनेता (अब दिवंगत) से एक इंटरव्यू मैं, आपको भेज रहा हूँ। आप पढियेगा, इससे  आपके मन में उत्पन्न होते, कई प्रश्नों के उत्तर मिलेंगे।
फिर मैंने उसे बाय कहते हुए कॉल काट दिया था।
यशस्वी ने उस इंटरव्यू को पढ़ा था। अभूतपूर्व रूप से कभी लोकप्रिय हुए अभिनेता के, अंतिम दिनों में एक पत्रकार युवती के द्वारा, उनका इंटरव्यू लिया गया था, जो इस प्रकार था :-
रिपोर्टर - सर, आपकी फिल्में जितनी लोकप्रिय एवं ख्यात रही हैं, उतने ही ख्यात आपके कई तारिकाओं से प्रेम संबंध भी रहे हैं। क्या आप, हमारे समाज में अवैध माने जाने वाले आपके, ऐसे सँस्कृति निषिद्ध शौक की सच्चाई बतायेंगे।
अभिनेता - मैं, कुछ दिनों में मरने वाला हूँ। अतः मै स्पष्ट कहूँगा। मैंने जीवन में लगभग 80 युवतियों से अंतरंग संबंध  स्थापित किये हैं। इनसे वाँछित सुख अभिलाषा, मेरी मृग तृष्णा सिध्द हुई है। वस्तुतः अनेक संबंध में सुख, उस सुख से कोई अलग नहीं था जो मुझे मेरी पत्नी की अंतरंगता से प्राप्त होता था।
रिपोर्टर - सर, यह सच आपने कब अनुभव किया।
अभिनेता - यह मैंने, अपनी चरम प्रसिध्दि के समय ही अनुभव कर लिया था।
रिपोर्टर - तब आपने, अवैध अंतरंग संबंध के सिलसिले खत्म किये?
अभिनेता - नहीं, अंतरंग संबंध के सिलसिले, इससे सुख प्राप्ति की चाह में शुरू हुए थे। जो बाद में, मेरे अहं की पूर्ति के साधन हो गए थे। सफलता के शिखर पर मुझमें अहंभाव (ईगोइस्म) बहुत बढ़ गया था। जो युवतियां अपने रूप एवं प्रतिभा से, विभिन्न क्षेत्र में पहचान बना लेती थीं वे, मेरे अंतरंग चाहत की लक्ष्य होती थीं। उनसे स्थापित अंतरंगता, मेरे द्वारा उनका मान मर्दन किया जाना मानकर, मेरे ईगो को तुष्ट करने वाली होती थी
रिपोर्टर ने मजाक करते हुए पूछा - यानि अभी मैं तैयार हो जाऊँ तो आपका ईगो, इसे उपलब्धि मानेगा?
अभिनेता, रोगी होते हुए भी हँसा था पलट प्रश्न किया - आप, मेरे जैसे ईगो से तो पीड़ित नहीं?
रिपोर्टर, अभिनेता की इस हाजिर जबाबी पर मुरीद हुई, हँसकर बात टालते हुए पूछा - आपकी पत्नी ने कभी प्रतिरोध किया?
अभिनेता - किया था, इसका हल मैंने उसे, अन्य से ऐसे संबंध के लिए उकसा कर किया था।
रिपोर्टर - आपने, अपने व्यभिचार का, कभी पछतावा किया?
अभिनेता - बिलकुल किया है। आज बिस्तर से लगकर, मैं स्वयं को धिक्कारा करता हूँ।
रिपोर्टर - पछतावे में, क्या विचार आते हैं ?
अभिनेता - दो मुख्य हैं। एक मैंने परदे पर वे पुरुष चरित्र निभाये, जो सँस्कृति अनुरूप, आदर्श जीते हैं। जबकि पर्दे के पीछे वास्तविक जीवन में मैंने, इससे बिलकुल विपरीत आचरण किये। जिससे मेरे प्रशंसक दिशा भ्रमित हुए। दूसरा, ऐसा करते हुए मैंने, पत्नी एवं अन्य युवतियों के द्वारा अपने पति से, उनकी प्रतिबद्धता के साथ छल करवाया है।
रिपोर्टर - अपने अनुभव से देशवासियों को कोई संदेश देना चाहेंगे?
अभिनेता - हाँ -
संदेश 1, "हमारे समाज में मर्यादा, हमें सँस्कारों में मिलती है। नारी मर्यादा निभाने को, अधिक प्रतिबध्द होती हैं। जब प्रलोभनों से कोई पुरुष, नारी को अमर्यादित होने को उकसाता है तो वे, उसे छुपाये रखने के मानसिक दबाव में रहती हैं। वे आत्मग्लानि अनुभव करती हैं। बहुसंख्य संबंधों से, कोई अतिरिक्त सुख नहीं मिलता है। अतः अपने दुष्कृत्य से कोई भी पुरुष, नारी को अनावश्यक मानसिक यंत्रणा एवं ग्लानि बोध के लिए विवश न करे।"
संदेश 2, "सफलता के रास्ते में मिलने वाला 'ईगो', एक विषैला तत्व है। जो सफल व्यक्ति को, न्यायच्युत कर देता है। जीवन के अंत समय में, यह ईगो, पश्चाताप का कारण हो जाता है। अतः सफलता के अधीन अहंकारी होने से बचना चाहिए।"
रिपोर्टर - सर, धन्यवाद, अपनी दयनीय हालत में आपने मुझे समय दिया और अपनी खराबियों को स्वीकार करने का साहस दिखाया। यह इंटरव्यू हम प्रकाशित करेंगे एवं आशा करेंगे कि समाज, आपके अनुभवों से सीख ग्रहण करेगा।
यशस्वी ने पढ़ा था। फिर मैसेज में इसे प्रेरक साहित्य, उपमा दी। यह प्रश्न भी किया कि- अभिनेता की पत्नी से इस बारे में चर्चा का, कोई रिकॉर्ड है?
मैंने मैसेज में ही रिप्लाई किया कि- मेरी बेटी ने, अपनी डॉक्टरेट की थिसिस के हवाले से उनसे निवेदन कर अभी, उनसे चर्चा के लिए समय लिया है। वैसे वह गोपनीय चर्चा होगी। तब भी उसमें सार बात आपको अपने शब्द में, बताऊँगा। 
मुझे ख़ुशी हुई कि अपने मिले नवजीवन का प्रयोग यशस्वी अत्यंत सुंदरता से कर रही है। वास्तव में यह सब, यशस्वी की उपलब्धियाँ थी मगर मुझे यह अपनी उपलब्धि सी लग रहीं थीं  ...
--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
04-07-2020

Friday, July 3, 2020

यशस्वी (9) ...
उस लड़के का नाम युवराज था। यशस्वी ने अपनी बुटीक में, दो तीन महीनों में उसके बार बार आने से, उस पर गौर किया था। बुटीक में पुरुष कम ही आते थे। अतः युवराज का आना, यशस्वी के ध्यान में आ जाने का कारण हुआ था। आरंभ में यशस्वी की युवराज से, लेन देन की बातों में ही, ऐसी भेंट खत्म हो जाया करती थी।
युवराज के बार बार आने से, यशस्वी क्रमशः उसकी बॉडी लैंग्वेज को पढ़ सकी थी। वह समझ गई थी कि युवराज, उसे लेकर विशेष सोच रहा है मगर, उन विचारों को शब्द नहीं दे रहा है।
यशस्वी को कक्षा 7-8 से, उसे पसंद करने वाले लड़के मिले थे। जो 'आई लव यू' तरह के कमेंट, स्कूल आने जाने के रास्ते में, पास किया करते थे। उनमें से, आसपड़ोस में कोई, उसके घर से बाहर दिखने की प्रतीक्षारत मिलता, तो कोई स्कूल या घर तक उसका पीछा किया करता था।
पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित रखने वाली, यशस्वी ऐसी बात माँ को कहती तो, वे प्यार से समझातीं। कहतीं, तुम इनके चक्करों को अनदेखा करो, अच्छा पढ़ लोगी तो तुम्हें, बहुत ही योग्य लड़का मिलेगा, जो अभी अपने भविष्य निर्माण के प्रति अपना चित्त, एकाग्र कर रहा होगा। वह अपना समय, इन लड़कों जैसा, लड़कियों के पीछे पड़ने में, व्यर्थ नहीं कर रहा होगा। 
यशस्वी ने माँ की बात समझ ली थी। पहले वह पढ़ाई में तल्लीन रही। उसने किसी समय, अपनी असफलता में अवसाद के अधीन, आत्महत्या का प्रयास किया था। बाद में पापा के सहायक होने, फिर पापा के न रहने पर व्यवसाय एवं घर सम्हालने की जिम्मेदारी में, किशोरी से युवती हो जाने का अपना लड़कपन, अनुभव किये बिना ही बिता दिया था।
इस तरह से युवराज पहला युवक था, जिसकी आँखों में, अपने लिए प्यार को, उसके बिना कहे अनुभव किया था। युवराज की आँखों ने कही अनुभूति से, यशस्वी के हृदय में भी, प्रेम अँकुरित हुआ सा लगा था।
अपनी माँ की शादी करवाने के साथ ही यशस्वी ने, अपने बहनों की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली थी। व्यवसाय अच्छा चल रहा था, जिसके लिए भी उसे ध्यान देना होता था। ये बातें उसे अनुमति नहीं देती थीं कि वह हृदय से मजबूर हो, अपने कदम बढ़ाये। उसे दिमाग से ही चलना था। 
अतः यशस्वी के हृदय में आकार ले रहा प्रेम का पौधा, अत्यंत धीमी गति से पनप रहा था।
फिर भी, एक दिन युवराज जब काउंटर पर पेमेंट करने आया तब, एक सामान्य वार्तालाप में यशस्वी ने, पहल कर उससे पूछ लिया - आप, क्या करते हैं ? 
युवराज ने बताया - मैं, इंजीनियरिंग कॉलेज में, मैकेनिकल के फाइनल सेमेस्टर में पढ़ रहा हूँ।
यशस्वी ने पूछा - आगे क्या करोगे?
युवराज ने बताया - अभी, कैंपस प्लेसमेंट के लिए, कम्पनीज आ रही हैं। उनमें जॉब के लिए हिस्सा ले रहा हूँ। 
यशस्वी ने, उसे शुभकामनायें दी थीं। फिर युवराज चला गया था। उसके बाद रात यशस्वी सोने के समय, सोच रही थी कि पहले, यशस्वी का सपना भी उसी इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ने का था। अगर वह साकार हो सका होता तो यशस्वी भी, इस समय फाइनल सेमेस्टर में पढ़ रही होती।
यह विचार आते ही वह मन ही मन हँसी थी। यशस्वी के वहाँ पढ़ने पर उसे, प्यार करने वाला जो मिलता वह, युवराज उसकी शॉप पर आकर मिल रहा है। फिर मन में उसके प्रश्न उभरा था कि यह, कोई ईश्वरीय इक्छा तो नहीं? फिर वह नींद के आगोश में चली गई थी। 
तब दो महीने और, युवराज के नियमित अंतराल में, माँ अथवा बहन के साथ बुटीक में खरीदी के लिए आने का क्रम चला था। यशस्वी ने अलग से अपना प्यार प्रकट नहीं किया था। इतना मगर अवश्य किया था कि युवराज के आने पर, अपने सहायक के स्थान पर वह स्वयं, उन्हें ध्यान देकर उनका (युवराज की माँ या बहन का) सौदा दिया करती थी। 
दिन अच्छे बीत रहे थे, तब एक शाम युवराज अकेला आया था। उसने कुछ खरीदा नहीं था। कुछ उदास सा था। उसने बताया कि वह कल चंडीगढ़ जा रहा है। अतः जैसे अब आता रहा था वैसे, बुटीक पर नहीं आया करेगा। फिर उसने एक ग्रीटिंग एनवेलप, यशस्वी को दिया था। उस पर ऊपर 'हैप्पी फ्रेंडशिप' प्रिंट था। वह दिन यद्यपि फ्रेंडशिप डे नहीं था।
फेसबुक-व्हाट्सअप के आज के समय में युवराज-यशस्वी, आपस में यूँ नहीं जुड़े थे। युवराज का उससे प्रेम, पुराने संस्करण वाला प्रेम था।
यशस्वी ने उसे हार्दिक शुभकामनायें कहा था।
युवराज के यहाँ से जाने की सूचना ने, यशस्वी को उदास कर दिया था। तब भी यशस्वी ने, कहा कुछ नहीं था। युवराज चला गया था। देखने की अपनी तीव्र इक्छा को दबाकर, यशस्वी ने बुटीक में लिफाफा नहीं खोला था। युवराज के जाने के बाद रह रह कर उस शाम, उसे उदासी घेर लेती थी। क्या होती है, प्रेम अनुभूति? इसे यशस्वी ने उस दिन भली-भाँति जाना था। रात्रि सोने के पहले, यशस्वी ने ग्रीटिंग खोली थी। प्रिंटेड ग्रीटिंग बहुत प्यारी थी। उसे सुखद आश्चर्य यह देख हुआ था कि उसमें, हस्तलिखित एक पत्र भी रखा था।
पढ़ने से पहले, उस पत्र को यशस्वी ने, अपने हृदय से लगाया था। फिर बिस्तर पर अधलेटे उसे खोला था। सादा रूप से - यशस्वी जी, नमस्ते के साथ पत्र प्रारंभ किया गया था। आगे लिखा था -
प्यार होना क्या होता है, यह मुझे, आपसे, आपकी बुटीक में देख-मिल कर अनुभव हुआ। इसे कहने के लिए, मैं सोचता था कि कैंपस में, अच्छे पैकेज के साथ, अच्छी कंपनी में चयन होने के बाद मैं, आपसे कहूँगा। आपने अपनी एक पोजीशन बनाई है। ऐसे में, स्वयं अर्निंग होने के पहले कहना, मैं उचित नहीं समझता था। अपनी हैसियत के बिना कहना मैं, आपके अनादर करने जैसा मानता था। 
प्यार होने का समय मगर थोड़ा ठीक सिध्द नहीं हुआ। यही समय, मेरे कैंपस प्लेसमेंट के टेस्ट/इंटरव्यू एवं फाइनल सेमेस्टर के एक्साम्स की तैयारी का था। यही समय, मेरे आपके योग्य बन सकने का था। मगर, मैं कुछ पढ़ने बैठता तो, किताब के पन्नों पर आपका चित्र उभर आता। पढ़ने की जगह मैं, आपके ख्यालों एवं आपको लेकर अपने दिवास्वप्न में खो जाता। परिणाम स्वरूप, एग्जाम में मार्क्स अच्छे रहते हुए भी मैं, कैंपस प्लेसमेंट में, सफल नहीं हो सका।
आपको, कहने की जल्दबाजी में न होना एवं शरीर में विचित्र सी सिहरन जिसमें, आपको अपने बाहुपाश में लेने की इक्छा जागती उसे भी नियंत्रण कर सकना, इससे मुझे, आपसे हुआ अपना एकतरफा प्यार, आत्मिक लगता है। 
आत्मिक प्यार, शारीरिक निकटता के बिना भी बना रहता है। आत्मिक प्यार में विशेषता होती है कि वह कुछ ले लेना नहीं अपितु सर्वस्व दे देना चाहता है।
साहस कर, मैं यह सब लिख रहा हूँ, आप बुरा न मानियेगा। मैं चंडीगढ़ जाकर अब मेरी पसंदीदा एक कंपनी में जॉब की कोशिश करूँगा। अगर आपके योग्य बन सका तो आपसे, मुझे लेकर, आप क्या सोचती हैं, यह जानने के लिए संपर्क करूँगा। 
हम कभी मिलेंगे या नहीं? आप मुझे लेकर प्यार अनुभूति रखती हैं या नहीं? इन प्रश्नों से विलग, इस जीवन में मेरा आत्मिक प्रेम बना रहेगा। जो अपने लिए कुछ पाने का नहीं, आपको देने का अभिलाषी रहेगा।
मेरी माँ-बहन आपकी बुटीक कस्टमर बनी रहेंगी। मुझे लेकर यदि आप कोई, सॉफ्ट फीलिंग्स रखती हैं तो उसे भुला दीजियेगा। ऐसा नहीं है तो और अच्छी बात है। मन में आया इसलिए लिखा है।
अलविदा,
युवराज 
यशस्वी को पढ़कर धक्का सा लगा। बहनों की जिम्मेदारी के कारण उसे बुटीक चलाये रखना थी। वह अभी शादी कर भी नहीं सकती थी। उसने फिर दिल की जगह, दिमाग से काम लेना ठीक समझा। सोचा, युवराज को कोई और न मिली, मेरे जीवन में कोई और न आया एवं जीवन ने हमें, पुनः मिलाया तो ठीक अन्यथा युवराज से मेरा अव्यक्त प्रेम, युवराज की भाँति ही, आत्मिक प्रेम बना रहेगा। जिसे कोई जान और समझ न सकेगा।
ये सब बातें यशस्वी ने प्रिया को बताई थी। यह सब, प्रिया ने एक रात मुझे कहा था।
इसे सुन मैं, बाद में सोचता रहा कि वासनाओं से ऊपर उठ, प्रेम की परंपरा अभी भी जारी है यद्यपि इसे निभाने वाले बिरले बच रहे हैं  .... 


--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
03-07-2020