Thursday, June 27, 2019

मोहब्बत में नाकाम हम नहीं यारों कि
मोहब्बत हमारी वह मोहब्बत है जिसमें हसरत कोई नहीं

हर काम से अपने हम ख़ुद को अच्छा साबित करते रहे
ये और बात है कि और हमें बुरा साबित करने की जुगत में रहे

बेपरवाही से यूँ ये ज़िंदगी चलती नहीं
मोहब्बत तो हमें, नफ़रत करने वाले से भी रखनी होगी

यूँ हम भी कभी किसी की खातिर मरने वाले नहीं
क्यूँ हो फिर ख़्वाहिश कि कोई मर जाए हमारी खातिर

भी

Monday, June 24, 2019

किसी के उद्गार - "मैं बीफ खाता हूँ मुझे गर्व है"

किसी के उद्गार - "मैं बीफ खाता हूँ मुझे गर्व है"

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दरअसल, कोई क्या खायेगा क्या नहीं, यह उस वक़्त लगभग तय हो जाता है कि वह किस परिवार में जन्मा है. आशय यह कि जिस वक़्त उसे अच्छे बुरे का कोई ज्ञान तक नहीं होता। 
मैं शाकाहारी परिवार में जन्मा और शाकाहार मेरे सँस्कार में रहा। माँसाहार को मैंने तार्किक दृष्टि से उचित नहीं माना। बावज़ूद इसके मैंने माँसाहारियों को बुरा नहीं माना (पहले वाक्य में लिखित कारण से). आज दुनिया में शाकाहारी की सँख्या बहुत कम रह जाने के बाद भी मैंने माँसाहार को अच्छा नहीं माना ( दूसरे क्या-क्या करते हैं क्या-क्या सोचते हैं की नकल में, मैं अपनी कोई भी अच्छाई खोना पसंद नहीं करता। 
मैं समाज ,देश और दुनिया में ख़ुशहाली तथा अमन का पैरोकार हूँ , अतः किसी की बुराई के लिए उसे कोई ताना या चुनैती देना भी पसंद नहीं करता। मेरा हर वाक्य में इस दृष्टि से बहुत नाप तौल कर अभिव्यक्त करता हूँ ताकि हर व्यक्ति, हर जाति, हर कौम, और हर नस्ल के बीच वैमनस्य की गहरी होती जा रही खाई और गहरी नहीं होने पाए। मेरे थोड़े से सामर्थ्य में मैं मानवता का परचम फहराते हुए जीता हूँ। 
ऐसे में समाज सुधारक का टैग रखा कोई मेरा फ्रेंड यह कहे कि "मुझे बीफ खाने पर गर्व है" तो मुझे उसका यह स्टेटमेंट समाज सौहार्द्र की दृष्टि से घातक लगता है। यह भड़कने के बहाने तलाशते लोगों के लिए नफरत की प्रतिक्रिया और हिंसा को अंजाम देने के लिए सहायक होता है। जो कतई अच्छी चीज नहीं है। इस तरह की हरकतों का प्रतिफल, व्याप्त नफरत की आग में किसी निरपराधी परिवार के किसी मासूम या मुखिया को लील सकता है। 
मेरे मित्रों से मेरी प्रार्थना है कि अपने कथन/वचन या काम में कृपया ऐसे बीज, जाने/अनजाने तौर पर ना प्रसारित करें जो नफ़रत के दरख़्त बन सकते हैं, तथा अपने पूर्व कथनों की समीक्षा कर अपने आगामी कार्यों में सुधार करें जिससे इस दुनिया में जन्मा हर व्यक्ति ज़िंदगी का आनंद ले सके। नफरत /हिंसा का शिकार होने से ज़िंदगी के मजे से वंचित नहीं होने पाए या असमय किसी हादसे में मारा न जाए। 
बहुत कठिन होता नौ महीने गर्भ के कष्टों के बाद पैदा होना और ज़िंदगी से विदा लेते हुए रोग और बिस्तरों का दुःखद समय का सामना करना. इन दोनों के बीच का समय तो कम से कम आनंद का हो यह "हर मनुष्य का जन्म सिध्द अधिकार है". किसी को उससे वंचित करने की कोई भी साजिश इंसानियत नहीं, "मत भूलो कि तुम इंसान हो"। 

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
25-06-2019

Sunday, June 23, 2019

जो समझेगा, जज़्बात ख़ुद में,
जज़्बात वही औरों में
वही समझेगा, मेरे कलाम,
जो जज़्बात बयां करते हैं

कैमरे का शटर खुला, चेहरे पर का शटर बंद था
नाज़नीन, खूबसूरत ख़ुद की तस्वीर में देखे कैसे

शज़र को नहीं कोई ख़ेद, उसे फख्र है खुद पर
मुसाफिरों ने खाये फल, जो निकले थे सफर पर 
हसरतों के ग़ुलाम सभी, ज़िंदगी जीने वाले
ख़्वाहिश उनकी, दुनिया उन्हें बेमिसाल जाने

Friday, June 21, 2019

न खड़ा हो किसी दर पर सवाली होकर
न रख दिल में कोई मुराद मजबूर होकर
दिया बिन माँगे कुदरत ने बहुत है तुझे
ले ज़िंदगी का लुफ्त तू खुद्दार होकर

आज नहीं चल तू फिर,
सिर्फ अपनी हसरतों को लेकर देख तेरे बहुत से फ़र्ज़, तुझे ज़िंदगी में निभाने हैं अभी

Thursday, June 20, 2019

कुदरत ने बनाया होगा गर तुम्हें हमारे लिए
मिलोगे ख़ुद ब ख़ुद, क्यूँ माँगे ख़ुदा से तुम्हें

महफ़ूज समझते थे हम, पास जिनके होने पर
चंचलमना वे, ढूँढ़ते बहाना हमसे दूर जाने का
तन पर हो लिबास पूरे, कतई अब जरूरी नहीं
लब पर सच्ची न सही, मुस्कान इक जरूरी है

किसे पड़ी कि देखे, हँसने को तेरे पास ख़ुशी है या नहीं
रोनटा न समझे ज़माना, ख़ुद ही झूठे मुस्कुराना होगा

गलतफ़हमी के बेहद कमज़ोर लम्हें होते हैं जब
कोई समझता कि उसके बिना वह जी न सकेगा

Wednesday, June 19, 2019

हो तुमसे मुख़ातिब मैं कहता हूँ
पहचानो वो हसरत अपनी जो बदले नहीं कभी

ज्यादा दौलत और आरामदायक साधन जुटाने के लिए अधिक समय खर्च करने पर हमें खेद होता है कि
'ज़िंदगी बेहतर कुछ करने में जी जा सकती थी'

हम पर कठिन काम के चैलेंज, मजबूरी या सुअवसर आये तो
यह देख हमें सुखद आश्चर्य होता है कि
'अरे वाह हममें यह कर गुजरने की क्षमता है'

अपने गलत काम को भी,
हम अपने मन के समक्ष तर्कसंगत बताने में सफल होते हैं
साफ़ है या तो हमारा मन निरा मूर्ख है
या हम अति चतुर होते हैं




Tuesday, June 18, 2019

नींद हमें आ जाती तो रात तुम्हें भूलना होता
कसम हमने खाई है ज़िंदगी भर न भूलेंगे तुम्हें 

Monday, June 17, 2019

जिनकी संतान सिर्फ बेटे हैं, वे बेटियों के प्रति दायित्व से उदासीन नहीं रहें -
वह कोई बेटी ही होगी जो उनके घर बहू बनकर आएगी  

Sunday, June 16, 2019

मेरा दिल उसने तोड़ा फिर भी दिल में सलामत बना रहा
इसे 'तारीफ़' अगर कहें तो मेरे दिल की है
सब जो करते हैं वह साधारण होता है
और जो बिरले करते हैं वह असाधारण होता है
हम नकल करने के लिए नहीं
कुछ असाधारण करने के लिए बने हैं

अगर अल्पवय में नहीं हुई हो तो मौत भी बहुत अच्छी घटना होती है

Saturday, June 15, 2019

सजग,सादगी एवं सौंदर्य

सजग,सादगी एवं सौंदर्य

ईक्कीसवीं सदी के ठीक पहले दिन 1 जनवरी 2000 को वह जन्मी, उसका यह नाम 'सौंदर्य' रखा था पापा 'सजग' ने, उन्हें बेटी की सुंदरता से मैचिंग लगा था. सौंदर्य को, बचपन में ही सभी दृष्टि दूसरे बच्चों की अपेक्षा अपने लिए ज्यादा प्रशंसनीय लगती थी। अभी छोटी थी वह स्वाभाविक ही था कि उसे सिर्फ अपनी ख़ुशी की ही परवाह रहती. आरंभ में उसे वस्त्र जो मम्मी-पापा लाते वह पहनाये जाते। प्राइमरी स्कूल में जब पढ़ने लगी तो साथ के बच्चे कपड़ों पर चर्चा करते तब दूसरी लड़कियों के जो कपड़े उसे अच्छे लगते वैसे वस्त्र की जिद उसकी होती. कभी मम्मी 'सादगी' या पापा वैसे वस्त्र उसे दिला देते कभी नहीं भी दिलाते थे. फिर वह मिडिल स्कूल में आ गई. अब तक साथ के लड़कों द्वारा उसे विशेष दृष्टि से देखा जाने लगा था। उसे यह अच्छा लगता था। इस बीच वह मूवीज़ में अभिनेत्रियों को जिन आधुनिक वस्त्रों में देखती वैसे वस्त्रों की फरमाइश भी मम्मी-पापा से करने लगती। बेटी छोटी ही है यह सोचते हुए उसे आधुनिक परिधान भी दिला दिए जाते। उसे ऐसे वस्त्रों में देख साथ के लड़के उसकी हँस हँस कर तारीफ़ करते और प्यार भरी दृष्टि से उसे देखते तो उसे बेहद ख़ुशी होती। 

बालपन की तर्क शक्ति -

एक दिन मॉरल की क्लास में मेम ने एक लेसन में समझाया कि मनुष्य ने अपनी ख़ुशी के काम के साथ ही ऐसे काम भी करने चाहिए जो दूसरों को भी ख़ुशी देते हैं। तब उसका मन यह तौलने लगा कि वह कौनसे काम करती है जो दूसरों को भी खुश करते हैं।बाल सुलभ, मस्तिष्क को विचारणीय क्षमता बहुत नहीं होती, उसे लगता वह जब मॉडर्न/स्टाइलिस्ट कपड़े पहनती है तो उनमें उसे देख कितने सारे लड़के खुश होते हैं. उसे लगता यह काम वह 'मॉरल लेसन' के अनुरूप करती है। 

हँसी-ठहाकों में बताई बातें प्रशंसा जैसे लेता है बाल मन  -

मॉरल के बारे में अपने इस काम की बात सौंदर्य ने मम्मी को जब बताती तो मम्मी बहुत हँसती और हँसते हुए सादगी घर में और अपनी फ्रेंड में ये बात बताती तो दूसरों को भी सौंदर्य इस पर ठहाके लगाते हुए देखती। इन हँसी-ठहाकों को सौंदर्य का बालमन, स्वयं की प्रशंसा जैसा समझता । इस तरह से अनेक तरह के मॉडर्न वस्त्र की माँग वह रखती, अपने काम में अति व्यस्त पापा उसे दुलार करने का समय कम ही दे पाते थे अतएव उससे लाड़-दुलार की भावनावश, बेटी की ख़ुशी को उसे ऐसे कपड़े ला देते थे.

किशोर वया बेटी के मनोविज्ञान एवं - समाज में व्याप्त छल के प्रति माँ की सजगता- 

हाई-स्कूल, कक्षा दर कक्षा उसकी ख्याति बढ़ते जा रही थी। आधुनिक कपड़े, सुंदर नयननक्श एवं किशोरवय का नया नया शरीर युवावस्था की दहलीज पर नारी तन के उभारों को पुष्ट करता जा रहा था।  यह सब विशेषकर लड़कों एवं बड़ी वय के पुरुषों में भी उसे ज्यादा लोकप्रियता दिला रहा था। अपने में सबकी रूचि उसे अपने प्रति प्यार प्रतीत होती थी। उसके सहपाठी लड़के उससे अपनी प्रेमासक्ति (Crush) प्रदर्शित करते, वह सब कुछ उसे अत्यंत प्रफुल्लित करता। हालाँकि सब में अपने प्रति प्यार अर्जित करने की धुन सवार उस पर थी, किंतु अनेक लड़कों की ओर से दर्शाये जाते प्रणय निवेदनों पर सौंदर्य, उन्हें प्रोत्साहित नहीं करती।  अपने पीछे पुरुषों का यह मजमा उसे सुहाता तो बहुत था, किंतु मम्मी की इन सब के प्रति सजगता और परामर्श, उसे किसी फुसलावे में आने नहीं देते थे। इस बीच पास-पड़ोस और स्कूल में परंपरागत सँस्कारों और रीति-रिवाज के पोषक उसकी आधुनिक पोशाकों को लेकर उसके बारे में ख़राब और गंदी टिप्पणियाँ भी करने लगे थे जो कभी कभी उस तक पहुँच जाती थी. प्रारंभ में उसे ये बातें परेशान करतीं फिर "औरों का काम है कहना" एवं "जिस ज़माने को हमारी परवाह नहीं उसकी हम क्यों परवाह करें"  इन उक्तियों का स्मरण करते हुए वह ऐसी सब कानाफूसियों को दिमाग़ से झटक देती.

बारहवीं कक्षा में सोशल साइट्स में सादगी से परामर्श अनुरूप उचित सेटिंग सहित सौंदर्य ने अपनी आईडी बनाई थी और कुछ अपने आधुनिक परिधानों में कुछ फोटो एल्बम उसने अपलोड किये थे। सौंदर्य को यह देख सुखद आश्चर्य हुआ कि कुछ ही सप्ताहों में उसके फॉलोवर, लाख का अंक छूने लगे थे। 

सयानी हो रही बेटी एवं पापा के मध्य पारदर्शिता-

तभी पापा 'सजग' ने अपनी व्यस्तता में भी अनुभव कर लिया कि आजकल बेटी कुछ ज्यादा ही वक़्त अपने मोबाइल पर होती है। उन्हें इस सच का बोध था कि यूँ तो बेटे की तुलना में बेटियाँ ज्यादा सरल एवं आज्ञाकारी होती हैं किंतु बेटी के किशोरवय में ज्यादा सजगता से उसे भले बुरे का ज्ञान कराना पालकों का दायित्व होता है. यहाँ बेटी के जीवन की सही दिशा दे देना हमारे कम खुले सामाजिक परिवेश में उसे अनावश्यक अपमान/चुनौतियों से बचा सकते हैं। इन विचारों ने उन्हें प्रेरित किया कि कुछ दिन बेटी को दिए जायें। उन्होंने 'सादगी' (सौंदर्य की मम्मी), एवं सौंदर्य के साथ राजस्थान भ्रमण की एक ट्रिप बनाई। भ्रमण में प्राकृतिक सुंदरता का आनंद लेते हुए सजग ने चतुराई से सौंदर्य (आभास दिए बिना कि उसका परीक्षण कर रहे हैं) से हँसी-मज़ाक और स्नेहयुक्त संवादों में अपनी कई जिज्ञासाओं की गोपनीय पुष्टि कर ली। फिर ट्रिप के बीच एक दिन सौंदर्य से सजग ने सीधे पूछा - सौंदर्य आप मोबाइल पर किन चीजों के लिए इतना वक़्त खर्च करती हैं? तब सौंदर्य ने सोशल साइट्स और अपने फॉलोवर की विशाल सँख्या के बारे में सहज गर्वोक्ति में बताया। सजग ने तब उससे पूछा कि क्या उसके आई-डी पासवर्ड वह शेयर कर सकती है? सौंदर्य ने बेझिझक, इसकी हामी करते हुए सजग को सब बता दिये। अपनी आधुनिक सी दिखने वाली बेटी की इस बेबाकी और पारदर्शिता ने सजग और सादगी दोनों को प्रभावित किया। ट्रिप खत्म करने तक सजग ने सौंदर्य के सोशल साइट्स के सारे विवरण देख डाले। उसकी फेसबुक तथा अन्य साइट्स की सेटिंग यथा अपरिचितों के कमेंट,मैसेंजर और टैगिंग आदि कि परमिशन सही सेट हैं, पुष्टि करली. सजग को सौंदर्य के परिचितों के उसके पोस्ट हर फोटो पर टिप्पणियाँ बेहद गरिमामय देखने मिले। उन्होंने सौंदर्य से इस बात की तारीफ की। सौंदर्य ने इस पर बताया कि उसके परिचित/अपरिचित फ्रेंड्स को यह संदेश भली-भाँति ज्ञात है कि उसकी सूची में उनका समावेश तभी तक है जबकि वे उससे गरिमा का व्यवहार रखें। इस पर हँसते हुए उन्होंने प्रशंसा में बेटी के कंधे थपथपाये। इन सबसे उन्हें बेहद राहत हुई कि अपनी व्यस्तता में बेटी के तरफ से बेपरवाह रहने और बेटी की खुलेपन के लालन पालन के बावज़ूद उनकी बेटी के विचार, मनोदशा एवं जीवन दिशा अत्यंत सधी हुई है। इसके लिए निजी संवाद में उन्होंने पत्नी सादगी की प्रशंसा की जिन्होंने बेटी को भले-बुरे का समुचित ज्ञान कराते हुए उसे बड़ा किया है।

बड़े होते बच्चों को घर में ही माँ-पिता की मित्रवत मौजूदगी, बच्चों का भविष्य सुनिश्चित करता है -

राजस्थान भ्रमण के समाप्ति यात्रा में कार में उन्होंने सौंदर्य से कहा- सौंदर्य, आपका पापा होने का मुझे गौरव है, आप बड़ी हो गई हो, मम्मी तो आपकी मित्र हैं ही, अब मुझे भी आप अपना पापा कम, फ्रेंड ज्यादा समझते हुए सभी तरह की बात की चर्चा कर सकती हो। आज, हम दोनों से बड़ा आपका शुभेक्छु कोई नहीं है। सौंदर्य जो कार में पापा के साथ अगली ही सीट पर बैठी थी ने पापा के अनुराग को अनुभव करते हुए अपना सर साइड से उनके कंधे पर रखा इन भावुक पलों में पापा ने कार की गति धीमी की, और दुलार से अपना एक हाथ स्टेयरिंग पर रखे हुए दूसरे हाथ से उसके सिर और चेहरे पर स्नेहयुक्त थपकी दी और सौंदर्य के माथे पर हल्का चुंबन दिया।

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
14-06-2019

क्यूँ छिपा रखा है ख़ुद को यूँ पर्दे के पीछे
नायाब तेरा चेहरा तुझे रहमत है खुदा की

फ़ख्र, तेरी हस्ती ऐसी कि ज़िक्र सबकी जुबां पर है
दिल मासूम, मगर बुरा मानता औ जला करता है

सच के सिवा-
हैसियत नहीं, कोई क़ायम हमेशा रहे
आज है जो, कभी उसे खत्म होना ही है

Friday, June 14, 2019

जो दिल में होती हर बात लिख देना भी मुनासिब तो नहीं
जो करने की चाह हर बात कर लेना भी मुनासिब तो नहीं

मोहब्बत में खेल लेना भी कम खुशनसीबी तो नहीं
हारे, तो मोहब्बत की खातिर हुई - जीते, तो मोहब्बत से ख़ुशी भी मिल गई

कोई ज़ागीर नहीं वह कि उसे
कोई पा लेता या खो देता है
हाँ जरूर, वक़्त होता जब ख़ुद पर
वह किसी को हक़ दे देता है

Tuesday, June 11, 2019

मर्द तुझे-
पापा, भाई या पति के मेरे हितों के प्रति समर्पण के लिए 'आभारी'
या जीवन को तबाह करने वाले 'दरिंदे',
के नज़रिये में देखूँ?

Monday, June 10, 2019

बेज़ार ख़ुद ज़िंदगी से अपनी,
वह औरों को हिम्मत देता है
एतबार ख़ुद पर कायम कर,
वह अपनी ज़िंदगी जी लेता है

कुछ बनी रहने दें खुशफहमियाँ, दोस्तों की कि है यह मुश्क़िल सफ़र, उन्हें तय करना है

Sunday, June 9, 2019

लगता नहीं,
मासूम से दुराचार से इन्हें हासिल कुछ होता होगा
ये इंसान नहीं,
इन्हें परिवेश ख़ुशहाली का हो बर्दाश्त नहीं होता

क्या चाहिए है? - जब ख़ुद से मैंने यह सवाल कर लिया
जबाब मिला - बच्चों के लिए ख़ुशहाल परिवेश चाहिए है

Saturday, June 8, 2019

हमारी भागीदारी/योगदान

हमारी भागीदारी/योगदान  

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मानव सभ्यता के लिए वह प्रवृत्ति बेहद घातक है जो दूसरे के धर्म(मज़हब) या उनके मानने वालों में उसके रीति रिवाज की तथाकथित बुराइयों को लक्ष्य करके कही/लिखी/प्रचारित की,  जा रही हैं। किसी के ऐसे दुष्प्रयत्नों से किसी ने हिंदू, मुसलमान या ईसाई होना नहीं छोड़ा है. धर्म के अनुसरण करने वाले बहुधा अपने अंध-रीति रिवाजों की कमी/खराबी जानते हुए भी, दूसरे धर्म के अनुयायियों द्वारा उसका रेखांकित या दुष्प्रचार करना पसंद नहीं कर पाते हैं। अपितु रहस्य उद्घाटन तरह से किये जाने वाले दूसरों के ऐसे कार्य से विभिन्न धर्मावलंबियों के बीच खाई और गहरी हो रही है, जो मानव सभ्यता और उनके अपने जीवन आनंद उठाने की दृष्टि से कदापि उचित नहीं है। वास्तव में ऐसी रूढ़ियाँ अनकहे ही समाप्त करने की आवश्यकता है। भावनाओं या आस्थाओं पर दूसरों के द्वारा ऐसी चोट एक जिद पैदा करती है जो स्वयं सहमत नहीं होते हुए भी औरों को चिढ़ाने या उन पर अपना प्रभुत्व दर्शाने के लिए ऐसे कार्य को अंजाम देने का कारण होती है। 

अतः धर्म जैसे अति संवेदनशील विषय पर बिना कहे उसमें बुराई को समाप्त करना और बिना बाध्य किये दूसरे धर्मों की अच्छाई को अंगीकार करना ही सर्वश्रेष्ठ मार्ग है। जो सच में मानव सभ्यता विकसित करने में हमारी भी भागीदारी/योगदान  कही जा सकती है। 

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
09-06-2019

एक मानव मन में किसी पल की योग्यता-
परिपूर्ण आनंद उठा सकने और
ऐसे विचार की उत्सर्जन की है
जो पीढ़ियों की सद्प्रेरणा बन सके

Friday, June 7, 2019

कुछ व्यक्तियों को सफल मान कर उन जैसा होने का विचार अपने पर हावी कर खुद कुंठित होते हैं एवं अपना जीवन, सहज स्वरूप में नहीं जीते हैं

Wednesday, June 5, 2019

युक्ति

युक्ति
सामान्य जन की चारित्रिक विशेषतायें आजीवन उनके मन में चलती युक्तियों से बताई जा सकती हैं -
1. युक्ति सर्वप्रथम - उदर पोषण की होती है
2. युक्ति - हर समय सुविधा भोगों की होती है
3. युक्ति - जीवन में मनोरंजन की होती है
4. युक्ति फिर - ज्ञान अर्जन की होती है
5. युक्ति तब- प्रशंसा अर्जन की होती है
6. युक्ति बाद - कामवासना पूर्ति की होती है
7. युक्ति - परिजनों के सुख-समृध्दि संपन्न जीवन की होती है
8. युक्ति तत्पश्चात - धन-वैभव के लिए होती है
9. युक्ति और - मान प्रतिष्ठा की होती है
10. युक्ति एक - रूप लावण्य तथा स्वास्थ्य बनाये रखने की होती है
11. युक्ति एक और - परोपकारी कार्यों की होती है
12. युक्ति अंततः - पर भव सुधार की होती है


मानवीय चेतन मन का अधिकाँश समय इन सभी में से कोई कोई न युक्तियों व्यतीत होता है। इन में किसी तरह की युक्तियों की कमी-बेसी उसे कुछ विभिन्न श्रेणियों में वर्गीकृत करता है। एक अच्छे या महान व्यक्ति के जीवन में उपरोक्त में से 4 एवं 12 की युक्तियों की अधिकता होती है।
--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
06-06-2019

Monday, June 3, 2019

ख़ुदकुशी का ख्याल किसी का 'राजेश', यूँ मुफ़ीद नहीं
ग़र न हुई वो दुनिया बेहतर, फिर वहाँ क्या करेगा वो

जां है जब तक इस जिस्म में, आप बनाओ ये जहां बेहतर
कि जो यहाँ आने की कतार में हैं, मिले उन्हें ये जहां बेहतर

हिस्से में आई ज़िंदगी जितनी, हमें पूरी जीना चाहिए
गर न हो हिस्से में ख़ुशी, औरों की ख़ुशी बनना चाहिए


Saturday, June 1, 2019

हम अपने तन्हा होने का इल्जाम किसे दें
काफ़िले में यहाँ हर कोई तन्हा है बेचारा

शुक्र मेरी ये खुशफहमियाँ कि अदना सा मैं
सीना तान ज़िंदगी का सफर तय करता रहा

ख़ुद के अकेलेपन का एहसास हमें उतना नहीं सताता
बेचारे ज़माने के अकेलेपन को देख दर्द जितना होता है

क्यूँ लुभायें हम किसी को अपनी तरफ 'राजेश'
हैसियत नहीं कि हम किसी का भला कर सकें

अलसाये दिमाग से कम समझते,
मुझे ज़माने को देख लेने दो
ग़र संजीदगी से देखूँ,
ज़माने के दर्द देख मुझे दर्द बहुत होता है 

हैं तन्हा हम मगर
खुशफ़हमी का आलम यह है
कि बहुत हैं 'हमारे अपने',
हमें डर क्या है