समस्याओं का निराकरण और नारी
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नारी कोमल हृदया और दयालु होती हैं . उनके इस गुण के कारण वह कारुणिक स्थिति में बहुत उदार हो जाती हैं . यह अवसर हो जाता उन्हें छल लिए जाने का . नारी को जब यह अनुभव होता है कि वह छली जा रही है तो उचित बचाव और प्रतिरोध में उसकी शारीरिक शक्ति आड़े आ जाती है . फिर छले जाने पर उसकी चर्चा करने से डरती है . यहाँ सामाजिक वे मर्यादा और मान्यताएं होते हैं , जो उनके पीड़ित होने के किस्से चर्चित होने पर नारी जीवन और कठिन कर देते हैं .
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नारी कोमल हृदया और दयालु होती हैं . उनके इस गुण के कारण वह कारुणिक स्थिति में बहुत उदार हो जाती हैं . यह अवसर हो जाता उन्हें छल लिए जाने का . नारी को जब यह अनुभव होता है कि वह छली जा रही है तो उचित बचाव और प्रतिरोध में उसकी शारीरिक शक्ति आड़े आ जाती है . फिर छले जाने पर उसकी चर्चा करने से डरती है . यहाँ सामाजिक वे मर्यादा और मान्यताएं होते हैं , जो उनके पीड़ित होने के किस्से चर्चित होने पर नारी जीवन और कठिन कर देते हैं .
नारी का शारीरिक शक्ति- सामर्थ्य पुरुष अपेक्षा कम होता है . अतः ऐसे कार्य जो उनसे नहीं हो पाते यदि आवश्यक हो जाते हैं तो उन्हें सहायता की अपेक्षा होती है .साथ ही घर के बाहर आज भी अस्पताल ,व्यवसायिक और सार्वजनिक प्रतिष्ठानों में पुरुष ही ज्यादा संख्या में मिलते हैं .यहाँ भी नारी यदि अकेली जाती है तो उसे कई कारणों से सहायता चाहिए होती है . ऐसे में पुरुष सहायता को आगे आते हैं . सहायता जिनसे मिलती है . कई बार उनसे सम्बन्ध भी बढ़ते हैं . ऐसे में सतर्क ना रहें तो कई बार सहायता और सम्बन्धों का भी गलत लाभ नारी शोषण का कारण हो सकता है .
यही वे कारण हैं . जिसके कारण हमेशा और आज तक नारी छली जाती रही है .
दो विपरीत लिंगी प्राणी (मनुष्य के अतिरिक्त भी ) एक प्राकृतिक और सहज आकर्षण परस्पर अनुभव करते हैं . तब भी जबकि उनके मध्य कोई दैहिक सम्बन्ध या इस के कोई भाव भी नहीं होते हैं . पिता, पुत्री को पुत्र की अपेक्षा और माँ, बेटे को पुत्री की अपेक्षा ज्यादा लाड दुलार से रखते हैं . अतः जहाँ परिचय नहीं है कोई सम्बन्ध नहीं है या संबंधों की कोई अपेक्षा नहीं है तब भी नारी और पुरुष के बीच आकर्षण सम्भावना नारी के नारी के प्रति ,या पुरुष के पुरुष के प्रति आकर्षण की तुलना में अधिक होती है .
आरम्भ में संबंधों की कोई अपेक्षा नहीं होते हुए भी विपरीत लिंगी आकर्षण से उपजे सम्बन्ध कालांतर में शारीरिक संबंधों के रूप में भी परिवर्तित होने संभावित हो सकते हैं . यहाँ विशेषकर नारी को सावधानी बरतनी होती है . अन्यथा असावधानी से क्षति पुरुष की अपेक्षा नारी को ही ज्यादा आशंकित होती है . और नारी को जब क्षति होती है . तो यह मात्र उनकी ही नहीं, परिवार की ,समाज की और देश के लिए विकट समस्या बन जाती है . सभी इसके दुष्परिणाम भुगतने को बाध्य होते हैं .
इसलिए बेटी ,बहन और पत्नी पर कई तरह के रोक टोक लागू होती हैं . जैसे इस तरह वस्त्र ना पहिनो , इस समय बाद घर के बाहर ना रहो . अकेले कहीं ना जाओ और इस तरह की कई .
इस वास्तविकता को ध्यान में रख नारी यदि कुछ तरह की सख्ती व्यवहार में लाये तो अपने और परिवार पर आ सकने वाली समस्या का स्वयं समाधान कर सकती है . कोई भी पुरुष से संबंधों की सीमा के अतिरिक्त किसी भी यत्न को कडाई से रोक देना .नशे से अपना नियंत्रण स्वयं पर नहीं रहता है अतः मदिरा या अन्य नशे की सामग्री कहीं भी कभी भी ना लेना . वार्तालाप में भावुकता से बचना और कम परिचितों और अ
परिचितों आवश्यकता से अधिक हँसी -ठिठोली से बचना आदि .यही वे कारण हैं . जिसके कारण हमेशा और आज तक नारी छली जाती रही है .
दो विपरीत लिंगी प्राणी (मनुष्य के अतिरिक्त भी ) एक प्राकृतिक और सहज आकर्षण परस्पर अनुभव करते हैं . तब भी जबकि उनके मध्य कोई दैहिक सम्बन्ध या इस के कोई भाव भी नहीं होते हैं . पिता, पुत्री को पुत्र की अपेक्षा और माँ, बेटे को पुत्री की अपेक्षा ज्यादा लाड दुलार से रखते हैं . अतः जहाँ परिचय नहीं है कोई सम्बन्ध नहीं है या संबंधों की कोई अपेक्षा नहीं है तब भी नारी और पुरुष के बीच आकर्षण सम्भावना नारी के नारी के प्रति ,या पुरुष के पुरुष के प्रति आकर्षण की तुलना में अधिक होती है .
आरम्भ में संबंधों की कोई अपेक्षा नहीं होते हुए भी विपरीत लिंगी आकर्षण से उपजे सम्बन्ध कालांतर में शारीरिक संबंधों के रूप में भी परिवर्तित होने संभावित हो सकते हैं . यहाँ विशेषकर नारी को सावधानी बरतनी होती है . अन्यथा असावधानी से क्षति पुरुष की अपेक्षा नारी को ही ज्यादा आशंकित होती है . और नारी को जब क्षति होती है . तो यह मात्र उनकी ही नहीं, परिवार की ,समाज की और देश के लिए विकट समस्या बन जाती है . सभी इसके दुष्परिणाम भुगतने को बाध्य होते हैं .
इसलिए बेटी ,बहन और पत्नी पर कई तरह के रोक टोक लागू होती हैं . जैसे इस तरह वस्त्र ना पहिनो , इस समय बाद घर के बाहर ना रहो . अकेले कहीं ना जाओ और इस तरह की कई .
इस वास्तविकता को ध्यान में रख नारी यदि कुछ तरह की सख्ती व्यवहार में लाये तो अपने और परिवार पर आ सकने वाली समस्या का स्वयं समाधान कर सकती है . कोई भी पुरुष से संबंधों की सीमा के अतिरिक्त किसी भी यत्न को कडाई से रोक देना .नशे से अपना नियंत्रण स्वयं पर नहीं रहता है अतः मदिरा या अन्य नशे की सामग्री कहीं भी कभी भी ना लेना . वार्तालाप में भावुकता से बचना और कम परिचितों और अ
अगर आत्मावलोकन कर अपने में से इस तरह की कमियों को प्रत्येक नारी स्वयं कम करें तो समाज और देश की समस्याएं काफी कम हो सकती हैं .ज्यादातर बुराइयाँ और द्वेष की जड़ में पुरुष और नारी के बीच अनैतिक सम्बन्धों का होना या इनकी अपेक्षा का होना मूल कारण होता है .
नारी दृढ और सतर्क रहेगी तो पुरुष उन्हें मन बहलाने के वस्तु जैसा प्रयोग करने के अवसर नहीं पा सकेगा .इस तरह नारी समस्याओं के निराकरण का मार्ग प्रशस्त कर सकेगी .
--राजेश जैन
01-03-2013
--राजेश जैन
01-03-2013