हों सजींदा हम अमन की जुस्तजू करें
नफ़रत के सिलसिले का आज पार करें
तुम नफ़रत को चिता में राख करो
हम नफ़रत को सुपुर्द ए ख़ाक करें
अभी ही तो भरी थी वक़्त की रेत से मुट्ठी
अभी ही देखा कि काफ़ी रेत खिसक गई है
नफ़रत के सिलसिले का आज पार करें
तुम नफ़रत को चिता में राख करो
हम नफ़रत को सुपुर्द ए ख़ाक करें
अभी ही तो भरी थी वक़्त की रेत से मुट्ठी
अभी ही देखा कि काफ़ी रेत खिसक गई है
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