Friday, May 31, 2013

स्तब्ध तो मै भी हूँ

स्तब्ध तो मै भी हूँ ... 
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स्तब्ध तो मै भी हूँ ... 
जिस दिशा आधुनिक सभ्यता का जहाज
हमें ले जा रहा है उसे अनुभव करके 
उस मर्यादाहीन दिशा  उन्मुख जहाज से कूद कर 
संघर्ष तूफानी लहरों से कर बच निकलते
विपरीत दिशा कुछ वीरों को तूफ़ान से लड़ने
प्रेरित हम यदि ना कर पाएंगे 
तो हेय स्वयं की दृष्टि में ही हम हो जायेंगे .. 


बटोरें हम साहस 
समाज जहाज मुख मोड़ दें 
आदर्श सिध्दांत त्याग अनमोल निधियां 
धरोहर सौपीं जो पूर्वजों ने अपने 
बचाकर उन्हें सच्चे उत्तराधिकारी 
सिध्द करें स्वयं को हम

स्वयं को मानव सिध्द करले
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तेरे गिरने में तेरी हार नहीं क्योंकि
तू मानव है अवतार नहीं
पर कब तक ना सम्ह्लेगा
जब तब गिरता जाता है
माना की भगवान नहीं
तू पर बुध्दिमत्ता दिखा और
पिछले गिरे अनुभव से सीख ले
सुधर स्वयं को मानव सिध्द करले

कैसा साथ निभाया प्रिय तुमने

कैसा साथ निभाया प्रिय तुमने
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पचास वर्ष पूर्व मै तुम्हारे घर अपढ़ नौकरानी थी
शकल सूरत से साधारण और गहरे रंग की थी

तब तुमने मुझ में ना जाने क्या देखा
विवाहिता पत्नी को अपनी छोड़ा
मुझ दीन-हीन को घर रख लिया
पचास वर्ष तक अटूट प्रेम निभाया
बच्चे जन्मा कर पूत सुख दिलाया
धोखा तुमने विवाहिता से किया   
लेकिन मुझे पत्नी सा ठाठ दिया
प्रथम श्रेणी तुम अधिकारी थे
मुझसे प्रेम निवेदन किया करते थे
अभावों में मै जन्मी ,पली थी
कल्पना नहीं बालपने में जिन सुखों की
तुमने मुझपर उनकी बरसात करी थी

पंद्रह वर्ष पूर्व हो सेवा निवृत
तुमने छोटा घर आँगन बनाया
कभी जिक्र नहीं किया मुझसे
अर्थ व्यवस्था क्या अपने बाद बनाई
घंटे भर में उस दिन तुम जो गुजरे
वज्रपात मुझ पर होने लगे
घर में नहीं बहुत धन मिला
बैंक खाते भी रिक्त से थे
तुमने कोई ना लिखा वसीयत नामा
प्रेम महल तुम्हारे नाम था प्रिय
फैमिली पेंशन का ना अधिकार मिला
बरसों हवाई झूलों में झुला रहे थे
मौत तुम्हारी होते ही प्रिय
कठिन धरातल पर आ गिरी मै
अभावों में पैदा हुई थी
अब अभावों में मरने को लाचार हुई
नहीं चखाया होता स्वाद वैभव का
आदत मेरी ख़राब ना पड़ती
प्रेम में शिकायत का मौका ना दिया था
लेकिन बुढ़ापे में दीन कर छोड़ा

तुमसे मुझे अब शिकायत है
कहूँगी अब मै बिना हिचके प्रिय
विवाहिता को तुमने छोड़ा था
मुझे भी दुर्दशा में छोड़ गए तुम
लगता है तुम बहुत स्वार्थी थे
अबला के विरुध्द अन्याय में तुमने
भागीदार बनाया था मुझ अबला को
यह कैसा साथ निभाया प्रिय तुमने ?

मेरे किसी समय बॉस रहे . एक कर्तव्य निष्ट ,ईमानदार और शर्मीले स्वभाव के रिटायर्ड अधिकारी की मौत के बाद जब संवेदना हेतू उनके घर पर हम गये तब जिन्हें हम उनकी पत्नी जानते थे उनके मुख से यह वेदना सुनने मिली .
सज्जन सा लगता पुरुष भी जब एक नहीं दो - दो अबलाओं (नारी के) का इस तरह दोषी हो सकता है तो कैसे हमारे समाज में उन्हें सही सम्मान और सुरक्षितता बोध हो सकता है ?
नारी को और अधिक सतर्क होना चाहिये , जागृति आपस में बढ़ानी चाहिये . एक उपभोग की वस्तु जैसे प्रयोग को स्वीकार्य नहीं  चाहिए .

(वास्तविक घटना को एक काव्य की तरह कहने का  प्रयास )

--राजेश जैन 

Thursday, May 30, 2013

मितभाषिता - बुद्धिमानी


मितभाषिता - बुद्धिमानी 
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जीवन में कभी बहुत अनुकुल समय होता है . कभी कठिन (विपरीत) समय भी आता है .
मितभाषी होना अकेले बुद्धिमानी का ही प्रतीक नहीं है . बल्कि मितभाषी होने से हम अपने ही बोलों से शर्मिंदा होने से भी बचते हैं .
हमारा बिना विचारे बोले शब्द हमें अनावश्यक विवादों में उलझाते हैं . हमें समय परिवर्तन के साथ आत्म-ग्लानि को भी बाध्य कर सकते हैं . 
बहुत अनुकुल समय में बडबोलेपन की प्रवृत्ति होती है इससे हमारे  स्वर में अभिमान झलक सकता है . फिर समय कभी पलटता है और जीवन में कठिन समय आता है . तो अभिमान के स्वर स्मरण करने या अन्य के द्वारा कराये जाने पर हमें ग्लानि हो सकती है .

इसके विपरीत कठिन समय में हम निराशा और दुःख की स्थिति में अन्य या परिस्थितियों को धिक्कारते  (कोसने के बोल)  हैं . विपरीत कठिन समय समाप्त होता है तो फिर अपने ही बोलों का स्मरण पछतावे के कारण होता है . तब हमें लगता है कि जीवन माला   लगभग सभी की अनुकुलता और कठिनाई के मोतियों से गूंथी होती है . हम अकारण धैर्य छोड़ कभी स्वयं को अत्यंत शक्तिशाली तो कभी असहाय समझाने की भूल करते हैं .

अगर अभिमान और कोसने दोनों के स्वर उच्चारित करने से बचें तो हम मानव रूप में ज्यादा उन्नति करते हैं . यहाँ धन वैभव की प्रगति की बात नहीं होती है  .
धन वैभव होते हुए या ना होते हुए भी एक मनुष्य मानवता को पुष्ट कर सकता है .एक अच्छा दृष्टान्त बन कर समाज हित प्रशस्त कर सकता है .

राजेश जैन 

सिगरेट से ज्यादा प्यारा परिजन और प्रियजन का साथ



सिगरेट से ज्यादा प्यारा परिजन और प्रियजन का साथ

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24-मार्च को इसी पेज पर      "व्यक्तिगत नहीं यह ..."
इस शीर्षक में एक लेख किया था जिसमें स्मोकिंग करते अपरिचित को अपने संकोचों से निकल कर उन्हें सिगरेट ना पीने के लिए मैने उन्हें कह दिया था .


आज की सभ्यता यद्यपि इस तरह की बातों को व्यक्तिगत कहती है . इसलिए मुझे लगा था कि वे अपरिचित इसे अन्यथा ले सकते हैं . पिछले दो माहों में 6 -7 बार उनके पुनः दर्शन हुए . उन्हें सिगरेट नहीं पीते हुए देख कर  प्रसन्नता हुई .


कल मुझे कुछ मेडिसिन की आवश्यकता पड़ी . मै उन्हीं की शॉप पर गया . लेकर मैंने उनसे राशि पूछी ,उन्होंने मुझे दो सौ बीस देने कहा . मैंने कॅश -मेमो और मेडिसिन बिना देखे रखी और उन्हें राशि दे दी . घर आया तब कॅश -मेमो पर ध्यान गया उसमें दो सौ पैतीस अंकित थे . अपरिचित से परिचित बने उन मित्र ने दूसरी शॉप की तुलना में मुझसे 15 रूपये कम लिए थे .


तब मेरे विचार में आया   स्मोकिंग बंद करने से उनका जीवन कुछ ज्यादा रहेगा . ऐसे में उन्हें जीवन निर्वाह के लिए कुछ ज्यादा धन चाहिए होगा .
ऐसे में मुझे यह राहत (15 रूपये)  उचित नहीं लगा . (आगे ऐसे अवसर पर उनसे पूरी राशि लेने कहूँगा यह तय किया )
कुछ धन तो सिगरेट छोड़ने से उनका बचेगा .
कुछ धन रोग उपचार पर बचेगा .


उनके दीर्घ जीवन की कामना , ताकि वे अपने परिवार को अपना  अधिक सानिध्य दे सकने में समर्थ हों .
सिगरेट का साथ देने से ज्यादा प्यारा ज्यादा अवधि तक अपने परिजन और प्रियजन का साथ देना होगा .

जो मित्र स्मोकर हैं इसे पढ़ते हैं उनसे अनुरोध है कि वे इस दृष्टिकोण से जीवन को देखें . स्मोकिंग करना यदि वे छोड़ें तो मै अत्यंत प्रसन्नता अनुभव करूँगा ...
_/\_ ..

Wednesday, May 29, 2013

निर्दोष स्वयं को मानते

निर्दोष स्वयं को मानते 
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साधन में हम  सुख तलाशते 
स्व जीवन साधन से साधते 
साधन जुटाए किस तरह हमने 
न्याय -अन्याय गौड़ कर देते 

छल ,चतुराई का आश्रय लेते 
सुख भ्रम साधन में मानते 
अन्याय मार्ग से जुटाया साधन 
दुःख देता हम सुख समझते 
 
सुख भ्रम पाल छल हम करते 
छल परम्परा प्रौन्नत करते 
जो साधन छल से जुटाते 
दूसरों के छल से कभी खो देते 
छल परम्परा पुष्ट की हमने
रहते हाथ मलते और कोसते 
फिर भी निर्दोष स्वयं को मानते 
समय ख़राब है प्रचार ये करते 

बदलने से हमारे अकेले के 
समाज बुराई न मिटेगी मानते  
बुराई से निपटने और बुरे बन जाते 
बच्चों को ऐसे संस्कार दे देते 
चाहे जैसे वे यदि बनते तो 
उन्हें स्मार्ट कह प्रसन्न हम होते  
उदासीन हम जब दूसरा भुगते 
अपने पर आती तो रोते-चीखते 
न्याय से अगर साधन जुटाते 
जीवन साध साधन से पाते 
उचित करते पुरुषार्थ यदि अपने 
सच्चा जीवन सुख हम पा लेते 
अस्वस्थ चली छल परम्परा 
ख़त्म करें कमर कस लें 
यह समाज अपना समाज है 
मानवता से चल सुखी कर लें 

--राजेश जैन 

Tuesday, May 28, 2013

प्रेरणा मानवता और समाज हित जीवन सार्थकता

प्रेरणा मानवता और समाज हित जीवन सार्थकता
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जब नहीं था मैंने सेल फोन ले लिया
चार सौ प्रति माह का व्यय बढ़ा लिया

फिर मोटर साइकल बेच कार ले आया
दो हजार प्रति माह का व्यय बढ़ा लिया

घर के दूरभाष पर ब्राड बैंड लगा ली
और लैपटॉप नया क्रय कर ले आया

पचास हजार की बचत राशि लगा दी
आठ सौ प्रति माह का व्यय बढ़ा लिया

कूलर से चलता था काम मेरा पर
अब चलन एसी देख घर में लगवा लिया

बचत ना बची तब बैंक लोन ले लिया
सर पर किश्त पटाने का बोझ रख लिया

साधनों से स्तर ऊँचा हो गया लेकिन मै
बढ़े व्यय अनुरूप आय उपायों में खो गया

स्वच्छ साधनों से ना बढ़ सकी आय तो
भ्रष्ट तरीकों के मायाजाल में उलझ गया

सामग्रियों की उपलब्धता ने सरल जो किया
जीवन वह मानसिक तनावों से हिल गया

साधनों , वैभव से स्तर ऊँचा दिखाई दिया
आदर्श, स्वयं की दृष्टि में ही निम्न हो गया

अधेड़ , आयु से ज्यादा अस्वस्थ हो गया
सवाल तब रातों में स्वयं से करने लग गया

क्या इन उधेड़बुनों में जीवन बुनना चाहा था ?
मानव जीवन मेरा छल करने हेतु मिला था ?

ना ना ऐसा तो ना चाहा ना ही होना चाहिए था
दूसरों का वैभव उनका योग्यता उनका भाग्य था

मुझे नियंत्रण स्वयं पर होना चाहिए था
आडम्बर से ललचा कर ना गिरना चाहिए था

यदि स्वयं न गिरता ,गिरतों की प्रेरणा बनता
शयन में पड़ा अनिद्रा भोग ग्लानि में ना भरता

जो गया हाथ से उस पर ना पछताना अच्छा
बचे शेष जीवन में संभव सुधार लाना अच्छा

मानवता से भटक रहे उन्हें राह दिखाना अच्छा
बुराइयों से बिलखता समाज मेरा अपना है

लेख ,कर्म ,आचरण प्रेरणा सभी माध्यम से
हितकर समाज का सुखमय चित्र बनाना अच्छा

कसौटी पर लिखी कहानी परखो बहनों ,भैया 
प्रेरणा मानवता और समाज हित जीवन सार्थकता

Monday, May 27, 2013

चलन (Fashion)

चलन (Fashion) 
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चलन ,आज कल पुराना पड़ जाता है

नया आता तब पुराना चला जाता है

नये आने और पुराने के चले जाने का

प्राचीन काल से चलन चलता आया है



चलन परस्पर सौहाद्र और स्नेह का

पुराना पड़ समाज से जब जा रहा था

सज्जन सरल शांत मानव व्यथित था

बदलाव के चलन से तब आशान्वित था


धन पीछे आज की अंधी दौड़ का चलन

नया होने से वह आज सब पर छाया है

कल पुराना पड़ वह निश्चित ही बदलेगा

मानवता पुनर्जीवित तब समाजहित होगा


Wednesday, May 22, 2013

मानवता दूत (किसान)


मानवता दूत (किसान)
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समाज समस्याओं में घिरा देखकर 
मानवता ने  चिंतित होकर 
निर्णय किया साक्षात्कार लेने का
किन्हें बुलाया जाए
किया विचार गंभीर होकर 
तब मानवता ने सूची बनाई 
सृजन  संभावनाशील प्रबुध्दों की
जिनमें से नियुक्त किये जा सकें 
मानवता दूत समाजहित के लिए


6.किसान

यों तो बारी नारी की थी 
पर मानवता को पता चला 
साक्षात्कार को  निर्धन किसान 
विलम्ब से अब आ पहुंचा 
मानवता ने नारी को रख प्रतीक्षा में 
किसान को पहले बुलवाया 
कंठ सूखता अनुभव कर किसान का 
शीतल जल उसे पिलवाया 
किसान की स्वांस सयंत हुई तब 
मानवता ने उससे प्रश्न किया 
तुम भैय्या उदर पूर्ति के लिए सबके 
अन्न उपजाते हो कड़े श्रम से 
लगता लेकिन जैसे  तुम ना 
पर्याप्त उदर पूर्ति  स्वयं अपनी ही ना कर पाते हो 
स्वाभिमानी कृषक कह उठा 
ऐसा ना है मानवता बहन 
नित्य परिश्रम के कारण शरीर मेरा 
दिखता दुबला ,गठीला है 
उपजाया अन्न बेचता कुछ 
अपने लिए कुछ बचा लेता हूँ 
जिससे परिवार की उदर पूर्ती कर 
अगली फसल बो लेता हूँ 
मानवता ने फिर प्रश्न किया 
तुम्हारी वेशभूषा से लगती 
आर्थिक दशा नहीं ठीक तुम्हारी 
कृषक को हीनता स्वीकारने में 
स्वाभिमान फिर आड़े आया 
बोला वह मानवता से 
आपका कहना अंश -सत्य है 
ज्यादा सच यह कहना होगा 
धन से ज्यादा मुझे प्राप्त 
होता अत्यंत संतोष धन है 
जो हासिल मुझे होता तब 
ग्रहण कर उपजाये अन्न  पश्चात देखता, जब 
उल्लासित चेहरे अपने समाज बन्धु -बहनों के 
मानवता फिर बोली किसान से 

जब तुम भैया इतने संतोषी
फिर क्यों माथे पर  इतनी 
चिंता की ये गहरी लकीरें 
इस बार किसान रोक ना पाया 
और व्यथा जुबान पर ले आया 
कहा ,बहन जो
देख, पढ़ रहे हैं, बच्चे मेरे 
उससे लुभा रहा शहरी जीवन उनको 
वे नहीं करना चाहते किसानी 
बनना इंजिनियर या डॉक्टर 
सपना अब उनकी आँखों में है 
इसलिए भय सताता मुझे यह 
जीवन सुख वे ना पाएंगे 
मृग-मरीचिका सी भटकन में 
जीवन अपना व्यर्थ गवायेंगे 
लाख समझाने पर भी वे 
समझने को तैयार नहीं 
अवज्ञा और भय के कारण 
खिंच आईं लकीरें माथे पर मेरे  
मानवता ने सहानुभूति जतलाई 
तब भी एक और प्रश्न जुबान पर लाई 
बोली तुम इतना सच कहते हो 
फिर भी अन्य आरोप आप पर धरते हैं 
रासायनिक स्प्रे कर फसलों पर 
विष सम्भावना अन्न में ला देते हो 
किसान आरोप से व्यथित हुआ 
मै तो गोबर और वनस्पति खाद से 
अन्न खेत में उपजाता था
कृषि वैज्ञानिकों ने वितरित की तब 
रासायनिक स्प्रे और  
किया प्रेरित हमें उपयोग के लिए 
अगर यह हानिकर है तो 
क्यों बाजार में उपलब्ध यह है ?
मानवता ने माना यह 
किसान की शिक्षा सीमित है 
जैसा प्रशिक्षित किया जाता उसे 
कृषि उस पध्दति से करता है 
मानवता ने किसान को कह धन्यवाद 
उठ आसन से उसे विदा किया 

Monday, May 20, 2013

मानवता दूत (इंजीनियर)


मानवता दूत (इंजीनियर)
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समाज समस्याओं में घिरा देखकर 
मानवता ने  चिंतित होकर 
निर्णय किया साक्षात्कार लेने का
किन्हें बुलाया जाए
 किया विचार गंभीर होकर 
तब मानवता ने सूची बनाई 
सृजन  संभावनाशील प्रबुध्दों की
जिनमें से नियुक्त किये जा सकें 
मानवता दूत समाजहित के लिए


5.इंजीनियर 

हुआ साक्षात्कार वैज्ञानिक ,साहित्यकार ,चिकित्सक और शिक्षक  का 
आई बारी अब इंजीनियर की 
मानवता ने उससे प्रश्न किया 
क्यों निर्माण के लिए तुम करते 
महंगी कीमत की माँग सबसे 
जो ना चुका पाते महंगी कीमत 
उन हीनों को सस्ता बनाकर देते 
घटिया निर्माण से रुलाते तुम 
स्तरहीन तुम्हारे निर्माणों से 
दुर्घटनाएं भुगतते अनेकों हैं 

इंजीनियर ने सफाई में कहा 
पढ़ाने मुझे बहुत धन व्यय किया है 
मेरे पिता ने अरमानों से 
और ब्याही श्वसुर ने अपनी बेटी 
सुखी रहेगी मेरे  साथ 
रखकर इस अपेक्षा से  
अगर मै ना बनाऊ धन तो 
निराश पिता, श्वसुर होंगे 
श्रध्देय आप बतायें कृपया 
स्थिति समझकर आप मेरी 
मानवता ने इंजीनियर को समझाया 
धन जो आज तुम जुटा  रहे हो 
चूँकि वह नहीं न्याय का है 
सच्ची खुशियाँ नहीं ला सकता वह 
भ्रम में आ पड़े  तुम और  
निरर्थक जीवन कर रहे हो 
जितना जुटाया है तुमने 
सुखी जीवन के लिए नहीं जरूरी 
सार्थक तुम्हें जीवन करना चाहिए 
निर्माण उत्तम और गुणवत्ता के 
कम पारिश्रमिक के करना चाहिए 
पड़ संशय में इंजीनियर ने 
मानवता से विदा ले ली 

Sunday, May 19, 2013

ह्रदय में करुणा अनुरूप बाह्य व्यवहार


ह्रदय में करुणा अनुरूप बाह्य व्यवहार
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बेटी को जयपुर ट्रेन में पहुचाने हम कल स्टेशन गए थे . ट्रेन प्लेटफार्म पर कोई आधा घंटे खड़ी रही थी . ट्रेन जब चलना आरम्भ कर चुकी तब 2 महिलायें ,1 बच्चा और दो पुरुष ट्रेन पकड़ने दौड़ने लगे एक पुरुष ,बच्चा और 1 महिला तो ट्रेन में जैसे तैसे चढ़ गए पर चढ़ने के प्रयास में दूसरी महिला गेट पर लड़खड़ा गई . उसी समय ट्रेन में चढाने आये पुरुष की चप्पल टूट गई . एक पल लगा वह महिला ट्रेन के नीचे आ जायेगी . किन्तु भाग्य किसी तरह गिरने से बची . 
मै पत्नी सहित दृश्य देख महिला पर जान की बनते देख एकाएक जड़ हो अपनी जगह खड़ा रह गया . भारत में अपर्याप्त व्यवस्थाओं और मध्यम वर्गी विवशताओं पर अत्यंत दुःख हुआ .

लेकिन ह्रदय के अन्दर उठ रही करुणा से विपरीत ऊपर की प्रतिक्रिया स्वरूप उस पुरुष पर जो इस तरह खतरा उठा उन्हें चलती ट्रेन में चढ़ा रहा था  पर क्रोध आया एक दो अपशब्द भी उसके प्रति मुख पर आये . मुझे स्वयं पर बाद में ग्लानि हुई . अपने ह्रदय के अन्दर के भाव और उपरी प्रतिक्रिया में कोई सामंजस्य नहीं अनुभव कर . 

होना यह चाहिए था कि उन को इतनी खतरनाक दशा में देख मेरे पैरों में (जड़ होने की जगह ) हरकत होती में उनको सहायता के लिए दौड़ पड़ता . सहायता कर पाना या ना कर पाना अलग बात थी . लेकिन इसके विपरीत में पुरुष पर क्रोधित हो रहा था .

वह पुरुष और परिवार आर्थिक  रूप से विपन्न था . जिस भी साधन , सिटी बस या अन्य से वह स्टेशन पहुंचा था , किसी कारण से विलंबित हुई होगी . या ट्रेफिक जाम में कहीं फंसे होंगे . इन परिस्थिति में ट्रेन का छूटना अफोर्ड ना कर सकते होंगे . अतः प्राण पर खतरा ( आशावाद भी हो सकता है हमें कुछ ना होगा ) उठा चलती ट्रेन में वे चढ़ रहे थे .

घटना उल्लेख का आशय यह है हम भारतीय ह्रदय में करुणा रखते हैं . पर बाह्य रूप से उस करुणा अनुरूप व्यवहार आज नहीं कर पाते हैं . आगे में इन खतरनाक स्थिति में ह्रदय में करुणा अनुरूप बाह्य व्यवहार का यत्न करूँगा . 

हमारा यह भी प्रयास होना चाहिए कि  हमारी सीमित भारतीय व्यवस्थाओं को हम सपोर्ट करें . हमारे कारण सार्वजनिक साधनों को कोई अड़ंगा ना हो .शहर में लगते जाम में अपने ओर से सहयोग करें . ताकि हम और हमारे साथी मानव तुलनात्मक कुशलता से जीवन यापन कर सकें . 
मान्यवर ,आप (पढने वाले )  थोडा ध्यान इस तरह प्रसंग के लिए कीजियेगा .

राजेश जैन 

Saturday, May 18, 2013

मानवता दूत (शिक्षक)



मानवता दूत (शिक्षक)
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समाज समस्याओं में घिरा देखकर 
मानवता ने  चिंतित होकर 
निर्णय किया साक्षात्कार लेने का
किन्हें बुलाया जाए विचार किया गंभीर होकर 
तब मानवता ने सूची बनाई 
सृजन  संभावनाशील प्रब्दुध्दों  की
जिनमें से नियुक्त किये जा सकें 
मानवता दूत समाजहित के लिए

4.शिक्षक
हुआ साक्षात्कार वैज्ञानिक ,साहित्यकार और चिकित्सक का 
आई बारी अब शिक्षक की 
समक्ष देख शिक्षक को 
किया प्रणाम आसन से उठ मानवता ने  
कहा तब विनम्र स्वर में  
माता पिता से पहले मिलता 
मान तुम्हें शिष्यों से 
फिर भी तुम स्वार्थी बन रहे हो 
कक्षा में शिष्यों को ठीक से नहीं पढ़ाते 
तुम्हारी इस उदासीनता से 
उन्हें जाना पड़ रहा है महँगी कोचिंग में 
यह सुन शिक्षक ने रुआसें होकर 
मानवता को बतलाया 
मान बहुत मिलता था गुरु होने पर  पहले 
किन्तु यह सिर्फ धनिकों  को अब मिलता है
शिक्षक रहकर ना उठाता हूँ 
यदि में अपना आर्थिक स्तर 
बच्चे पत्नी उदास रहते हैं  
इसलिए मै रहता असमंजस में 
बिना धन अर्जन के पदाने को मन न होता है
कोचिंग खोलता अतः बाध्य होकर  हूँ 
सुनकर ये मानवता बोली 
तुमने शिक्षा यदि दी होती 
सच्चे भाव और सच्चे ज्ञान से 
शिष्य एक दिन सभी तुम्हारे थे 
धन लोलुप वे कभी ना होते 
और मान तुम्हें मिलता रहता 
शिक्षक तुम हो ,मै क्या  दूं तुम्हें शिक्षा
जाओ कर्तव्यों पर तुम स्वयं गौर करो 
और कर्मों  में अपने सुधार करो 
दुविधा शेष मन में रखकर 
वहां से  शिक्षक यों  विदा हुआ 




Wednesday, May 15, 2013

माँ (जीजाजी की माँ) -विनम्र श्रध्दांजली

माँ (जीजाजी की माँ) -विनम्र श्रध्दांजली 
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79 वह वर्ष जब मेरी बड़ी बहन किरण , उनकी बहु बन उनके मातृत्व की छाया में उनके (तब नागपुर में थे ) घर पहुँची . तभी से हमें उनका स्नेहाशीष अब तक निरंतर मिला .
12 मई जब मदर्स डे था .उनको क्रिटीकल कंडीशन के कारण वेंटीलेटर सपोर्ट सिस्टम पर रखना पड़ा . और हमें निराशा और दुःख मिला 14 को उन्हें नहीं बचाया जा सका .
माँ , हां यही संबोधन लिखूंगा उनके लिए ऐसा ही स्नेह उनसे मुझे मिलता आया था इन 34 वर्षों मे. मेरे पिताजी उन्हें सान जू साहब संबोधित करते हैं . उनके आतिथ्य के बारे में कहते हैं .. उनका आग्रह भोजन करते समय हमेशा ऐसा होता है कि ओवर ईटिंग के बिना उठना असंभव होता है . यही राय सभी की उनके बारे में रही है जिन्होंने भी उनके आतिथ्य का सौभाग्य पाया है .
माँ ,उन्हें 10 वर्ष पूर्व बाबूजी के निधन से पति विछोह और पिछले वर्ष पुष्पेन्द्र जी की मौत से पुत्र विछोह का गहन दुःख सहना पड़ा . वे इन दुखद घड़ी में अत्यन्त मातम में रहीं . उनका सामान्य स्वभाव स्वयं प्रसन्न रहने का और अपने आसपास प्रसन्नता का वातावरण रखने का था .
स्मरण है आकाश उनका प्रपोत्र (मेरा भानजा ) 4 -5 वर्ष का था . मै उनके घर पहुंचा तो उन्होंने कहा आकाश को देखो , उन्होंने आकाश से कहा आकाश ,बेटा जा ऊपर से कपडे सूख गए होंगे उठा ला . आकाश ऊपर से कपडे उठा कर लाया तो मुझसे बोलीं देखो सिर्फ अपने पापा ,मम्मी और स्वयं के कपडे लेकर आया है ,जबकि सभी के कपडे सूख रहे हैं .. खूब हँसती और आकाश से लाड करती .
अभी 5 महीने पहले आकाश के विवाह पर हम सपरिवार आये थे बरोडा . मेरा रिजर्वेशन कन्फर्म ना होने से मुझे 2 दिन अतिरिक्त रुकना पड़ा . उस समय रिजर्वेशन कन्फर्म ना होना अखर रहा था .लेकिन आज सोचता हूँ अच्छा हुआ वही अंततः उनसे आखरी बार मिलना सिध्द हुआ आज वे नहीं हैं .

दिसंबर में उनके स्वास्थ्य के कारण भोजन के परहेज थे .लेकिन मीठे पर उनकी आसक्ति थी . जीजाजी सख्ती से कभी रोकते तो वे मेरी बेटी रिची की ओर शिकायती दृष्टि से देखती और उससे कहती ... 'देखो ' . ऐसे ही एक अवसर पर मैंने उनसे कहा मम्मी जी आप जीजाजी की सौतेली माँ हो क्या ... तो जोर से हंसती कहती नहीं . हमारा बेटा है ,खूब देखभाल रखता है हमारी .
जब हम लौटने लगे तो रिची को अपने पास से सौ रुपये निकाले और दिए जबकि अपने नाती पोतों को उन्होंने जीजाजी या उन्हीं के पापा से रुपये लेकर दिए थे , कहने लगीं गुड़िया अब नहीं मिलेंगे हम . उनका कहा ही सच सिध्द हुआ .काश यह झूठ होता .

मौत अगर मेरी सुने तो उससे यही विनय पूर्ण अनुरोध है .. किसी के माँ -पिता की आयु सवा सौ वर्ष से कम ना दे और उनके प्राण कष्टकर स्थिति में ना तजने पड़ें

माँ संसार में किसी की सबसे बड़ी हितैषी होती है आज उनके जाने से जीजाजी , सुधीर जी ,कमलेश जी के साथ पूरे परिवार को सबसे बड़ी क्षति हुई है सर पर से मातृ-छाया चली गई है . उनके दुःख में हम उनके साथ हैं .आत्मिक संवेदना रखते हैं .
भगवान माँ की आत्मा को शांति दें ...
धन्यवाद ...

Monday, May 13, 2013

स्वपनदीप और पूनम राष्ट्र की लाडली बेटियों

स्वपनदीप और पूनम राष्ट्र की लाडली बेटियों
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स्वपनदीप और पूनम दोनों तुम 
दुर्भाग्यवश पितृ प्रेम को बचपन से ही 
पिता होते भी वंचित रही दोनों तुम 

पिता सरबजीत निरपराधी होकर भी 
बाईस वर्षों तक पाकिस्तान जेल में 
निर्मम यातना भुगतते रहे वहां कैद में 

युवावस्था कैद में बीत गई 
जीवन शेष बिताने मातृभूमि अंचल में 
ऐसा भी ना छोड़ा दुर्भाग्य ने वीर को 
पशु क्रूरता से सरबजीत को मार डाला
कायरों ने जब वह था निहत्था और अकेला   

पिता तुम्हारे थे सपूत मातृभूमि के
वीर पुरुष की बेटियों तुम दोनों 
पिता मौत मातमी दुःख में हो
अश्रु पोंछने तुम्हारे परिवार के 
राष्ट्र प्रकट संवेदना कर रहा है 
 
अभागे तुम्हारे परिवार का सहारा बनने 
ऋणी राष्ट्र  नियुक्त करता है 
तुम दोनों को शिक्षक ,तहसीलदार बनाकर 

व्यवस्था देश की बिगड़ रही है 
तुम दोनों बेटी मातृभूमि सपूत की हो 
कृपया पोंछ लो अपने आँखों के आँसू 
दायित्व साहस और न्याय से दोनों 
सम्हलो स्वयं और राष्ट्र को सम्हालो 

तुमने विकट बचपन जिया है 
विपरीत स्थिति में पली बड़ी हो 
विकट स्थिति में राष्ट्र है अपना 
दायित्व सही मायनों में 
आज नहीं निभाये जा रहे हैं 
अन्याय और अविश्वास की ओर 
पीढ़ी भटक कर जा रही है 
तुम दोनों ने विषम जीवन देखा है 
अपने अन्दर के विकट साहस से 
तुम ठान लो और उसे राह दिखाओ 

मातृभूमि सपूत बेटे की लाडली बेटियों
यद्यपि खो चुकी अपने पिता को तुम 
तुम नहीं अनाथ समझना स्वयं को 
सिर पर शहीद सरबजीत की बेटियों तुम पर 
अनुग्रही नागरिकों का आशीर्वाद पिता सा है