Monday, December 10, 2018

मेरे कलाम यूँ - बेहतरीन होने से रह गये
आपकी नजरें इनायत हुईं नहीं - क़त्ल हो गये

हमारे क़त्ल का गुनाह हम -
माफ़ तुम पर करते हैं
हम जी रहे हैं जैसे -
उसे लोग ज़िंदगी नहीं कहते हैं

उस मुक़ाम से निकल आये हैं -
जिसे इश्क़ कहते हैं
अब मंज़िल है वह हमारी -
जिसे ज़िंदगी कहते हैं

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