Sunday, October 29, 2017

यदि ...


यदि ...
भारतीय परिवार में ग्रह-कलह के कारणों पर सर्वेक्षण किया जाए तो अनुमान है कि प्रमुख रूप से दो कारण सामने आयेंगें -
1. घर के पुरुष जो (सामान्यतः कमाऊ सदस्य) हैं - वे इतना पर्याप्त धन गृहिणियों को उपलब्ध नहीं करा पाते - जितना घर में पुरुष की सुविधाजनक अपेक्षा के लिए आवश्यक होता है। और ऐसी व्यवस्था न दे पाने के लिए नित गृहिणियों से वे नाराजी जतलाते हैं।
2. अपनी व्यस्तताओं और बाहरी तनावों से प्रायः पुरुष यह भूल करता है कि गृहिणी का जितना शारीरिक सामर्थ्य और उनके पास दिन भर में जितना समय है उसमें वह कितने गृहकार्य बिना मानसिक दबावों में कर सकती है। ऐसे में कोई कार्य नहीं हो सकने का दोषारोपण गृहणी पर वेदनाकारी होता है।
--राजेश जैन
30-10-2017
https://www.facebook.com/narichetnasamman/

Saturday, October 7, 2017

आधा जब तक सुखी नहीं - पूरा सुखी कैसे होगा???

आधा जब तक सुखी नहीं - पूरा सुखी कैसे होगा???
आज पर्व है - जिसमें अनेक , पत्नी अपने पति के दीर्घ जीवन और अगले जन्मों में भी उनके साथ के लिए व्रत करेंगीं। स्पष्ट है कि यह पर्व नारी द्वारा - पुरुष के सुखद जीवन की कामना , उसके आदर हेतु रखा जाता है। जब नारी के तरफ से ऐसा हमेशा से होता आया है तो पुरुष कर्तव्य होता है कि वह नारी पक्ष की भी सोचे - उनके मन को समझे - उनके सम्मान की फ़िक्र और उपाय करे। निम्न कुछ तथ्यों पर विचार करे.
1. पुरुष जाये अथवा नहीं - कम से कम प्रसव हेतु , नारी को अस्पताल में एडमिट होना होता ही है , अर्थात जीवन -मौत के प्रश्न का सामना युवावस्था में ही करना होता है।
2. पुरुष के हों अथवा नहीं हों -लेकिन नारी के प्राण - अपने पति और बच्चे में होते ही हैं।
3. नारी पर जीवन बचाने की समस्या जन्म के पहले से ही खड़ी हो जाती है ,भ्रूण कन्या है तो हत्या संभावित , दहेज के प्रश्न पर हत्या संभावित , परिवार के मान के प्रश्न पर हत्या संभावित , पूरे जीवन भर , उनके जीवन पर , समाज प्रदत्त आशंकायें।
4. नारी- कहीं देवदासी होने को , कहीं सती होने को , कहीं एक पति की अनेक पत्नियों में से एक होने को , कहीं ग्रह हिंसा के शिकार तथा कहीं काम-वासना की शिकार हो समाज सम्मान गँवाने को बाध्य - यह भी हैं नारी जीवन की विवशतायें।
5. नारी पर समाज में बिगड़े होने के सारे दोष सरलता से मढ़ दिए जाते हैं , जबकि यदि पुरुष नहीं बिगड़ता तो नारी बिगड़ नहीं सकती थी , इस तथ्य को सरलता से भुला दिया जाता है।
इन सारी बातों के कारण नारी जो कि समाज का आधा हिस्सा है , वह सुखी नहीं रह पाती है।  विचार कीजिये - आधा समाज जब तक सुखी नहीं - पूरा समाज सुखी कैसे होगा??? परिवार में पुरुष और नारी साथ पिरोये हुए हैं - अतः जिस परिवार में नारी सुखी नहीं वह परिवार कदापि सुखी नहीं हो सकता।
-- राजेश जैन
08-10-2017
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Friday, October 6, 2017

यूँ गूँजती जैसे झरने ...

यूँ गूँजती जैसे झरने ...
पचास वर्ष पहले एक परिवार में सुंदर एक बालक का जन्म हुआ - बड़े लाड़-दुलार से लालन-पालन हुआ उसका - उससे अरमान माँ-पिता का यह कि अच्छे कार्यों से वह अपने कुल-परिवार और उनका नाम रोशन करेगा।
इसी तरह छत्तीस वर्ष पहले एक सुंदर कन्या का जन्म अन्य परिवार में हुआ - बचपन में जब हँसती वह तो लगता - सुंदर पुष्प झर रहे हैं। उसके नन्हें पैरों में पाजेब , घर आँगन में यूँ गूँजती जैसे झरने के बहते जल से मधुर संगीत उत्पन्न हो रहा है। माँ -पिता ने इस सपने में बड़ा किया कि सीता सा चरित्र लेकर - इस तरह बड़ी होगी जो उनका ही नाम नहीं बल्कि जिस परिवार में बहू होगी उनका भी नाम करेगी।
परिवार के ऐसे सपनों में पले-बड़े , बच्चे - जब बड़े हुए तो उनसे अपेक्षित कर्म -आचरण और व्यवहार के विपरीत वे व्यभिचार की मिसाल बन गए।
समय उन पर घृणा - तानों और निंदा की बरसा करने का नहीं। यह समय है कि उन कारणों , उन परिस्थितियों , उस जहरीले वातावरण से हम अपने घर में पल रहे बच्चों का बचाव करें , जिनमें हमारा पाल्य जब युवा और बड़ा हो तो - कलंक के गर्त में पहुँचाने वाली ग्लैमर की चकाचौंध से बच सके। अपने पुरुषार्थ वह परिवार - समाज और राष्ट्र बनाने के लिए लगाये।
अन्यथा आज की दूसरे पर हमारी निंदा - कल हम पर ही वापिस न आये।
--राजेश जैन
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07-10-2017