Sunday, October 7, 2018

गुरबत-ए-इश्क - मर्ज यूँ लाइलाज़ है
दवा-ए-महबूब - है मगर मिलती नहीं है

बड़े मन से इक आशियाना बनाया था
आशियाना बदस्तूर रहा हम चल दिये

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