Monday, April 11, 2022

परिचय - अरविन्द सक्सेना

 

परिचय - अरविन्द सक्सेना 

20 जून 1967 को जब जोबट जिला झाबुआ (मप्र) में आपने प्रथम पुत्र के रूप में जन्म लिया तब निश्चित ही आपके मम्मी-पापा के हृदय में, हर माँ-पिता के तरह की ही सहज आशाएं-अभिलाषाएं, आपके भविष्य को लेकर रहीं होंगीं।  

आपके पापा शिक्षक (अब सेवानिवृत्त) हैं। वे स्वयं अति आदर्शवादी, समर्पित शिक्षक रहने के साथ ही एक उत्कृष्ट समाज सेवी हैं। झाबुआ जिला जो मप्र के आदिवासी बाहुल अंचलों में से एक है, वहाँ के नागरिकों में शिक्षा एवं जाग्रति के लिए वे सदा सक्रिय एवं समर्पित रहे हैं। 

ऐसे पापा (और मम्मी) के स्नेह लाड़-दुलार की छत्र छाया में पले बढ़े आपमें, यदि सद्-गुणों की प्रधानता है तो यह अचरज की बात कदापि नहीं है। 

आपने अपने इन पालकों एवं अभिलाषाओं के अनुरूप प्रदर्शन करते हुए, प्रारंभिक शिक्षा जोबट में ही प्राप्त की थी। तत्पश्चात जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज से सिविल इंजीनियरिंग में स्नातक डिग्री (बी. ई. - सिविल) प्राप्त की और फिर इंदौर के जीएसआईटी में स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम में प्रवेश लिया था। 

कदाचित् तब आप इंजीनियरिंग कॉलेज में रीडर एवं प्रोफेसर के रूप में अपना भविष्य देख रहे थे। 

यह वह समय था जब सिविल इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स के लिए जॉब के अवसर अत्यंत बिरले हो रहे थे। ऐसे में मप्रविमं ने बोधघाट परियोजना के माध्यम से एक पनबिजली विद्युत गृह निर्माण कार्य की योजना बनाई थी। तब ही सिविल इंजीनियरों को “सहायक अभियंता” के पद में नियुक्ति के लिए लिखित परीक्षा आयोजित की गई थी। 

इसमें चूँकि अनेक ग्रेजुएट इंजीनियर भाग ले रहे थे अतः यह कठिन प्रतियोगी परीक्षा (Competitive exam) थी। अपनी विलक्षण प्रतिभा से, आपका चयन इसमें हुआ और आपने एम टेक की पढ़ाई, जिसमें प्रोजेक्ट रिपोर्ट सिर्फ जमा किया जाना शेष बचा था, छोड़कर और मप्रविमं में जॉब ज्वाइन करने का निर्णय लिया था। इस कारण आपको एम टेक की डिग्री मिलते मिलते रह गई थी। 

यह आपका नहीं हमारे विमं का भाग्य कहा जाना उचित होगा कि इस बैच में आप सहित सभी 20 चयनित इंजीनियर एक से बढ़कर एक रत्न थे। 

संयोग से जब तक आपके बैच का एकवर्षीय प्रशिक्षण पूर्ण हुआ तब पर्यावरणीय अस्वीकृति से बोधघाट परियोजना रद्द हो गई। ऐसे में आपके बैच के सभी सिविल इंजीनियर की सेवाएं विभाग के अन्य कार्यों में लिए जाने का निर्णय लिया गया। इस समय आपने कंप्यूटर क्षेत्र का चुनाव किया था। 

समय आने पर आपका विवाह “शिल्पा जी” से हुआ। जो आज जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज में केमिस्ट्री डिपार्टमेंट की प्रमुख हैं। आपकी दो प्यारी बेटियां हैं। 

आपकी बैच के रत्नों में से शिशिर तिवारी, प्रशांत गुप्ता, फारुख अहमद एवं आप से मेरा अधिक और घनिष्ट साथ रहा है। इनमें से सर्वप्रथम मेरी भेंट एवं मित्रता शिशिर तिवारी अब (सीएफओ हैं) से वर्ष 1998 में हुई थी। शेष सभी मेरा परिचय वर्ष 2004 से हुआ।  

मेरे सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट टीम में शामिल होने से 2004 से आपसे मेरा परिचय हुआ। हमने 2004 से 2018 तक साथ बैठकर कंप्यूटर पर काम किया था। 2009 से मुझे इस टीम में लीड की भूमिका ग्रहण करनी पड़ी थी। तब छोटी सी रह गई हमारी टीम के सामने दिया गया दायित्व एक बड़ी चुनौती था। आप सहित इस टीम के सभी मेंबर से मुझे आशातीत सहयोग एवं स्नेह मिला था। 

आपके काम करने की शैली, अत्यंत ही सिस्टमैटिक एवं गंभीर जिम्मेदारी बोध सहित रहती है। इसे मैं अपना भाग्य कहूँगा कि आपका एवं टीम के प्रत्येक सदस्य का स्मरणीय योगदान मुझे मिला था। जब मैनेजमेंट मुझे इस कार्य की सफलता का श्रेय देता था तब मैं मानता था कि इसमें मेरी टीम का समर्पित कार्य कारण था। 

एक बार काम के स्ट्रेस एवं टेंशन में, तत्कालीन सीएमडी से मीटिंग में मैंने स्पष्ट शब्दों में ऐसा कह दिया जो किसी बॉस को सुनना गवारा नहीं होता है। तब सीएमडी महोदय ने इससे चिढ़कर मुझे मीटिंग से चले जाने के लिए कहा था। उस शाम जब घर आकर मैंने इस सिलसिले पर विचार किया तो मुझे लगा कि अगले दिन निश्चित ही मेरी नौकरी पर आ जाने वाली है। 

अगले दिन सुबह सीएमडी कार्यालय से ऑफिस खुलते ही कॉल करके, अरविन्द सक्सेना के साथ मुझे आने के लिए कहा गया था। तब आप और मैं कई बुरी संभावना पर चर्चा करते हुए सीएमडी महोदय के सामने गए थे।

उस दिन सीएमडी महोदय ने मुझसे कहा - 

आपके समक्ष चुनौतियों को मैं समझता हूँ। आपके कार्यों एवं प्रयासों से मैं संतुष्ट हूँ। मैं नहीं चाहता कि मेरे मातहत, निष्ठा से कार्य करने वाले कोई कर्मी चिंता एवं भय में रहें। आप अच्छे से कार्य कर रहे हैं। आगे भी निश्चिन्त रहकर अपना कार्य करते रहें। 

यह सुनने के बाद आप और मैं वापस लौट रहे थे। यह जो हुआ था हमारी आशंका के विपरीत था। लौटते हुए आप मुझसे कह रहे थे - सर, एक आईएएस अपने सब-ऑर्डिनेट से इससे अधिक स्पष्ट शब्द में सॉरी नहीं कह सकता है। 

लंबे समय तक हम साथ रहे थे। आप मेरे कार्यालीन कार्यों में तो अधिकतम सहयोगी थे ही मगर व्यक्तिगत रूप से भी मेरे सुख दुःख में हमेशा साथ थे और अब भी हैं। मेरे या परिवार के हर कठिन समय में, मुझे सर्वप्रथम आप सहित कुछ मित्रों का ही स्मरण आता था। हर ऐसे अवसर पर सहयोग एवं साथ देने के लिए, आप सदैव मेरे साथ उपस्थित रहते थे। 

हर वर्ष टैरिफ परिवर्तन होते थे। उसे समझ कर सभी टीम मेंबर एप्लीकेशन में आवश्यक बदलाव करते थे। इन बदलावों के बाद आप सभी संभावना पर विचार कर के, ऐसे कई सैंपल केस में बिलिंग के एक्साम्पल बना कर कमर्शियल कार्यालय को पुष्टि करने के लिए भेजते थे। ताकि सभी श्रेणी के बिल, टैरिफ अनुरूप त्रुटिरहत जारी हो सकें। ऐसा करने से हमारी टीम हमेशा, किसी विकट स्थिति में पड़ने से विभाग को बचाती रही थी। 

ऑफिस में मुझे मिलते साथ का आभार मानते हुए जब मैं भावुक हो जाता, तब एक गीत प्ले किया करता था - 

“एहसान मेरे दिल पर तुम्हारा है दोस्तों, ये दिल तुम्हारे प्यार का मारा है दोस्तों”

आप इनकम टैक्स प्रावधानों को समझते और सभी सदस्यों की ऑनलाइन रिटर्न सबमिट करते रहे थे। आप स्वास्थ्य परेशानियों एवं उनकी दवाओं एवं डॉ. के भी अच्छे जानकार हैं। मैं आपको 75% डॉ. कहता हूँ। सेविंग इन्वेस्टमेंट की भी आपकी जानकारी किसी अर्थशास्त्री से कम नहीं होती है। आपकी सलाह से किए गए इन्वेस्टमेंट पर भी मुझे अच्छा लाभ मिलता रहा है। 

आप क्लासिकल एवं गीत गजल गायन में भी कुशल एवं दक्ष हैं। आप विधिपूर्वक इसकी शिक्षा के लिए तबला, ढोलक एवं हारमोनियम संगत सहित मास्टर को घर बुलवाते हैं। अच्छा साहित्य पढ़ने में भी आपकी रूचि है। आप बागवानी (Gardening) भी पसंद करते हैं। आपके घर के गमलों में सुंदर सुगन्धयुक्त पुष्प देखने मिलते हैं। व्यस्त दिनचर्या में आप अपनी इन हॉबी के लिए भी समय निकालते हैं।  

मेरे बच्चे बड़े हो रहे थे। तब मैं उनके कोर्सेस के बारे में या बाद में विवाह आदि विषय पर, आपसे अपनी चिंता प्रकट करता था। ऐसे अवसर पर आपका सेंटेंस होता था - 

सर, आपका सब कार्य ठीक से होगा। हमेशा आपको करने वाले मिलेंगे। आपको स्वयं कुछ बहुत अधिक करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। 

इस शब्दों के कारण आज मुझे उन्हें सही भविष्यवक्ता भी मानना पड़ता है। 

बहुमुखी प्रतिभा के धनी आप (सिविल इंजीनियर) के साथ, विभाग का व्यवहार मुझे विसंगति पूर्ण लगता है। जिन कार्यों को करते हुए इलेक्ट्रिकल इंजीनियर प्रमोशन ले रहे थे। तब इन्हीं कार्यों को कुशलता से करने पर भी, सिविल की ग्रेडेशन लिस्ट अलग होने से, आपको प्रमोशन नहीं मिल रहे थे। आज भी बड़े काम करते हुए, आप उसी अतिरिक्त कार्यपालन यंत्री के पद पर ही हैं। 

आपके बारे में आपके मम्मी-पापा की भावनाओं के अनुरूप एक गीत मुझे याद आता है - 

“तुझे सूरज कहूँ या चंदा, तुझे दीप कहूँ या तारा, मेरा नाम करेगा रोशन जग में मेरा राज दुलारा”  

दुर्योग से पिछले वर्ष कोविड ने आपकी माँ की छत्रछाया से, आपके परिवार को वंचित कर दिया है। निश्चित ही वे आज जहाँ भी होंगीं उन्हें यही विचार आता होगा 

“मेरे बाद में दुनिया में जिन्दा मेरा नाम रहेगा, जो भी तुझ को देखेगा, तुझे मेरा लाल कहेगा”

उन्हें (माँ को) शत शत नमन - विनम्र श्रद्धांजलि   

आपने नैतिकता एवं मानवता से जीवन यापन करते हुए, अपने मम्मी-पापा की आशाओं-अभिलाषाओं को जीवंत किया है।  

अंत में मैं यह लिखूँगा कि यह मेरा सौभाग्य रहा है कि आप जैसे रत्न कहे जाने वाले कुछ मित्रों का जीवन में मुझे साथ मिला है। 

आशा करता हूँ कि शीघ्र ही आप कंप्यूटर विभाग के प्रमुख होंगे।