Monday, August 31, 2020

 अकेला जो होता है

जीवन में अकेले होने का सत्य समझ पाता है

घिरा रहता जो भीड़ से

उसे सबके साथ होने का भ्रम हो जाता है

Friday, August 28, 2020

गद्दार ... 8. कश्मीर - रच गया नया इतिहास

गद्दार ...  

8. कश्मीर - रच गया नया इतिहास 

8. कश्मीर - रच गया नया इतिहास 


रात में नींद आने के पहले, मैं आने वाले कल को लेकर विचार में मग्न था। तब 

पाकिस्तान में संगठन प्रमुख के मोबाइल पर इनकमिंग कॉल की रिंगटोन गूँज रही थी। 

प्रमुख ने कॉल लिया, दूसरी ओर से कहा गया - 

उसके अम्मा-अब्बू रात में घर से कब निकले यह तो हमें, पता नहीं चल पाया। मगर रात 12.30 बजे बाइक से दोनों अपने घर लौटे तब, हमें शक हुआ कि शायद वह, यही कहीं है और शायद ये, उसे मिलने ही कहीं गए थे। सामान्यतः इतनी रात गए इनका, बाहर से आना कभी होता नहीं है। 

प्रमुख के चेहरे पर नाराज़गी दिखाई दी, लेकिन उसने, अपनी आवाज में नरमी रखते हुए कहा - 

कल से ऐसी लापरवाही न करना। अब तुम, उसके अब्बू के पीछे साये की तरह लगे रहो। अगर वह यहाँ कहीं है तो उसका अब्बू, फिर उससे जरूर मिलेगा। 

दूसरी ओर से कहा गया था - जी साहेब, बिल्कुल दुरुस्त। अब ऐसी लापरवाही नहीं होगी। हम कल ही उसका सुराग लगा लेंगे। 

प्रमुख ने कहा - ठीक है। (फिर काट दिया था।)

सूर्योदय के साथ ही अगली सुबह युवक, अपनी भेड़ों को लेकर, वापिस अपने गाँव लौट गया था। 

निर्धारित किये गए अनुसार, अब्बू आये थे। मैंने कपड़े बदले थे एवं गुज्जर लोगों द्वारा पहने जाने वाली वेशभूषा उतार कर उस पर जलती तीलियाँ डाल दी थीं। मैं, इतना सतर्क इसलिए था कि मेरे सहायक हुए, गुज्जर परिवार को, मेरा राज छुपाने को लेकर, कोई परेशानी न झेलने पड़े। 

मैं ऐसा कोई निशान नहीं छोड़ना चाहता था जिससे समझा जा सके कि पिछले आठ दिन मैंने, बकरवाल परिवार की सहायता से छुप कर गुजारे थे।  

मैं अब्बू के साथ बाइक में बैठा था। हम 100 मीटर ही चले होंगे कि मुझे पास ही दूसरी बाइक की आवाज सुनाई दी। उस वीरान स्थान में यह अप्रत्याशित बात थी। मेरा माथा ठनका, मैंने अब्बू से कहा - अब्बू भागो। 

अब्बू ने सुनते ही स्पीड तेज की। पीछा करने वालों ने, पीछे से हम पर फायर किया मगर, उनका निशाना चूक गया था। मैंने पलट कर देखा तो बाइक पर दो लोग, हमारे पीछे लगे हुए थे। पीछे बैठे आदमी के हाथ में गन थी। वही मौका देख कर फायर करते जा रहा था। 

अब्बू, बाइक लहराते हुए चला रहे थे। इसलिए उसके निशाने चूक रहे थे। 

दोनों ही बाइक की स्पीड 100 से अधिक थी। आगे हमारी बाइक, मोड़ पर घूम कर बढ़ी ही थी कि तभी सड़क पर पीछे, जंगल की तरफ से भेड़ों का एक झुंड आ गया। 

पीछे के बाइकर को मोड़ होने से यह झुंड, अचानक दिखाई दिया था। गति ज्यादा होने से वह संभल नहीं सका जिससे उनकी बाइक, कुछ भेड़ों को टक्कर मारते हुए, साइड के गड्ढे में जा गिरी। 

मैंने देखा कि झुंड हाँक रहे बकरवाल ने, अपनी भेड़ों का यह हाल देखा तो वह, दहाड़े मार कर रोने लगा था। कोई और समय होता तो हम रुक कर, उसकी सहायता करते। 

बाइक सवारों को गंभीर चोटें लगीं लगती थी। वे खड़े नहीं हो पा रहे लगते थे। 

बाइक पर बैठे ये लोग निश्चित ही, हमारे आतंकी समूह के लोग थे। यह दूसरी बार था कि कुछ ही अरसे में, मेरे भाग्य में किसी गुज्जर द्वारा अनायास ही मुझे बचा लिया गया था। 

मुझे यह मालूम नहीं था कि पाकिस्तानी आतंक प्रमुख ने, मेरे पीछे लगे उन लोगों को रात ही, लापरवाही नहीं करने को कहा था। तब भी वे चूक कर गए थे। उन्हें, मुझे घेरना तब चाहिए था जब मैं, कपड़े बदल रहा था। चलती बाइक से निशाना साधना अपेक्षाकृत कठिन था। उसमें ऐसे हादसे के होने का खतरा होता ही है। 

अब हमारा काम आसान था। 5 मिनट बाइक पर आराम से चलते हुए, हम थाने पहुँचे थे। वहाँ मैंने आत्मसमर्पण कर दिया था। 

वहाँ थाना इंचार्ज इंस्पेक्टर को सर्वप्रथम मैंने, अपने पीछा करने वाले आतंकियों की सूचना दी। मेरी सूचना पर दुर्घटना स्थल से, दोनों को घायल अवस्था में पकड़ लिया गया। ये उस समय मोबाइल पर अपने संगठन से मदद पहुँचाने की बात कर रहे थे। उनमें से हम पर फायर करने वाला आतंकवादी था। बाइक चला रहा लड़का, उसे मदद करने वाला घाटी का ही लड़का था।     

मेरी सूचना पर उन्हें दबोचे जाने से, पुलिस एवं सेना में मेरा अच्छा प्रभाव पड़ा। आगे के दिनों में मेरी आशा से, अत्यंत अधिक अच्छी बातें हुई थीं। 

पुलिस एवं सेना के पूछताछ में मैंने - 

निर्दोष लड़की की मेरी बाँहों में हुई मौत, होना बताया था। 

उस लड़की से अपनी प्रियतमा की तुलना से, मेरा हृदय परिवर्तन होना बताया था। 

मैंने, उसके बाद देखा गया अपना, सपना बताया था। 

यह भी बताया कि सपने से मुझे, छह शताब्दी पूर्व का, हमारा वंश एवं धर्म, हिंदू होना ज्ञात हुआ था। 

सपने से ही मुझे, सुल्तान प्रोत्साहित, आततायियों के अत्याचारों का पता चला था। इन अत्याचारों से पीड़ित होकर ही, हमारे पूर्वजों सहित अनेक कश्मीरियों की धर्म  परिवर्तन करने की विवशता, मैंने देखे गए सपने अनुसार उन्हें, वर्णित करके बताई थी।

मैंने यह भी बताया कि अन्य कुछ कश्मीरियों सहित, ऐसे कुछ धर्म परिवर्तित किये गए लोगों के द्वारा भी, बीसवीं शताब्दी के अंत के वर्षों में, पुनः कश्मीरी हिन्दुओं पर अत्याचार किया गया था। यह, सुल्तान के समय जैसा ही अत्याचार था। इसे, इस रूप से देखकर, मैं व्यथित हुआ हूँ। इस कारण मैं, वापिस अपने मूल धर्म को स्वीकार करने को प्रेरित हुआ हूँ। मेरा आत्मसमर्पण करने का कारण भी यही है। 

इन भावनात्मक बातों के अतिरिक्त मैंने आतंकवादी संगठन के यहाँ सक्रिय लोगों की सूचनायें दीं हुआ। इन सूचनाओं से तीन आतंकवादी मार दिए गए। छह अन्य सहित घाटी में, उनके कुछ सहायक पकड़े लिए गए। मेरे एवं पकड़े गए लोगों से, पाकिस्तान स्थित संगठन के, आगामी दिनों में की जाने वाली आतंक की वारदातों का, पर्दाफ़ाश भी हुआ। मेरा आत्मसमर्पण ऐसे देश के हित में अत्यंत उपयोगी साबित हुआ। 

मेरे, इस सहयोग के अतिरिक्त चूँकि मेरे आतंकवादी हुये, अधिक समय नहीं हुआ था। साथ ही मैंने कोई जघन्य वारदात को अंजाम नहीं दिया था। अतः मुझ पर, कोर्ट में पेश किये गए आरोप पत्र में, वादा माफ़ गवाह बनाने के अनुशंसा की गई। 

मेरे बारे में सेना एवं पुलिस से मिली सूचना के आधार पर मीडिया ने, इस पूरी स्टोरी को बार बार प्रसारित किया।

इस प्रसारण का उनका उद्देश्य, भटक गये और लड़कों को, मेरे तरह ही आत्मसमर्पण करने को प्रोत्साहित करना था।  मेरी आपबीती पर आधारित, वेबसेरीज़ भी बनाई गईं, जो भारतीय दर्शकों में अत्यंत लोकप्रिय हुई।

मेरा आत्मसमर्पण एवं मेरा हरिहर भसीन बनना, कश्मीर के इतिहास में, टर्निंग पॉइंट साबित हुआ। 

प्रारंभ में, कश्मीर घाटी में, मेरे धर्म परिवर्तन कर लिए जाने से लोगों ने, मुझे एक खलनायक की तरह देखा। 

उनके हिंसात्मक प्रतिक्रिया की आशंका से, मेरे परिवार को सेना से मिली सुरक्षा में रहना पड़ा। जेल में मुझे भी, अलग कोठरी में रखा गया ताकि कैदी के भेष में आकर, कोई आतंकवादी मुझे मार ना दे। 

मुझसे जेल में ही, एक लोकप्रिय टीवी चैनल ने, साक्षात्कार लिया। इसमें मैंने बताया कि -

मेरा धर्म परिवर्तन करना इस्लाम मज़हब का विरोध नहीं है। इस मज़हब को हमारे खानदान ने छह पीढ़ी तक निभाया है। मेरा वापिस हिंदू होना मेरे, इस विश्वास से प्रेरित है कि हम पूर्व में हिन्दू थे। 

मेरा ऐसा कोई आह्वान नहीं कि कोई और मेरे जैसे ही धर्म परिवर्तन करे।

मेरी अपील यह है कि इस्लाम मानने वाले, इस्लाम की सच्ची शिक्षा पर चलें। सच्चा मुसलमान आतंकवादी नहीं होता। सच्चा मुसलमान, इस्लाम की इबादत करते हुए किसी अन्य पर, आतंक नहीं फैलाया करता है। 

वैश्विक समाज के नए समय में आज जरूरत है कि इस्लाम मानने वाले सभी लोग, अन्य नस्ल या कौम की तरह ही शिक्षित होने को प्राथमिकता दें। 

शिक्षित होकर ही वे कुरान पाक से सच्ची सीखें, सीधे हासिल करेंगे। उस अनुसार चल कर नेक इंसान हो सकेंगे। 

उच्च शिक्षित होकर मुसलमान, अनर्गल बरगलावों से स्वयं को बचा सकेंगे। इस्लाम के नाम पर बाहरी देश के एवं यहाँ के ख़ुदग़र्ज़ लोगों की, अपने मतलब के लिए प्रचारित की जा रही गलत शिक्षा के झाँसे में आत्मघाती करतूत करने से बच सकेंगे।  

ऐसा हो सकने से, घाटी एवं समाज में शांति-सौहार्द्र बढ़ेगा। 

इसमें मुसलमान की यही नहीं, आगामी पीढ़ियाँ भी अपने सपने को साकार करते हुए ज़िंदगी जी सकने के अवसर मिलेंगे। 

कुछ कट्टरपंथी लोगों के अलावा, साधारण मुसलमान पर, इस प्रसारण का अच्छा असर पड़ा। जब ज्यादा बड़ा वर्ग उनके बरगलावों में आने से बचने लगा तब कश्मीर में आतंकवाद का विषैला वृक्ष सूख गया। 

मुसलमान पर रहती आई देश की संदिग्ध दृष्टि में भी, बदलाव आने लगा। घाटी में कुछ परिवारों ने मेरी तरह, अपने पूर्वजों के मूल धर्म में वापसी की। 

जिन्होंने ऐसी वापसी नहीं की, उनके मन में भी संशय हुआ कि वे भी परिवर्तित मुसलमान तो नहीं! 

जो भी हो मगर इन सब बातों से मुसलमान में नरमाई आन परिलक्षित हुई। वे, अपने पूर्वाग्रह त्याग सके एवं हिंदुओं पर अत्याचार करने एवं दिल में नफरत रखने से विमुख कर हुए। 

घाटी में परिवर्तन की इस लहर ने, कश्मीर से विस्थापित हुए पंडितों को, कश्मीर वापिस आने का साहस दिया। पूर्व में विस्थापित हुये में से, अनेक पंडित परिवार कश्मीर लौटने लगे। 

फिर मुझे कोर्ट ने माफ़ी प्रदान कर मेरी रिहाई का आदेश पारित किया। कश्मीर के स्थानीय लोगों से सपोर्ट नहीं मिलने के कारण, पाकिस्तान से प्रायोजित किये जाने वाले, आतंक की जड़ें नष्ट हो गईं। 

अब मैं, कश्मीर के नये युग का आधार बन गया था। नबीहा का परिवार भी वापिस हिंदू हो गया था। 

इस तरह नबीहा को गैर कौम में विवाह करने का साहस नहीं करना पड़ा। 

मुझसे, विवाह करते हुए नबीहा गौरवान्वित अनुभव कर रही थी। नबीहा ने इसे अपना भाग्य माना कि जिसे खो दिया लगता था, उसका वह मंगेतर (मैं) उसे फिर मिल गया था।

मुझसे विवाह करते हुए उसे गर्व हो रहा था कि उसे मिला जीवन साथी कश्मीर ही नहीं, भारत का वास्तविक नायक था।          

नबीहा ने अपना नया नाम “मातृभूमि” पसंद किया था। अब मुझ पर दायित्व था कि उसके मन में मेरी नायक की छवि अपने कार्य से सिध्द करूँ। 

अब मुझे, इस मातृभूमि (भारत, कश्मीर) एवं इस मातृभूमि (मेरी अर्ध्दागिनी) दोनों ही मेरी अपनी की, मुझसे अपेक्षाओं पर सच्चा एवं अच्छा सिध्द करना था ..     


(अभी के लिए समाप्त) 

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन

28-08-2020


Thursday, August 27, 2020

मनोबल कभी कम नहीं होने देना 

टूटते जीवन सपने पुनः जुड़ने देना 

कि यह मिला जीवन अनुपम मेरा 

इसे सहज सार्थक दिशा चलने देना  

गद्दार ... 7. ये रात - सितारों का मिलन

गद्दार ...

 7. ये रात - सितारों का मिलन

नबीहा ने पहली बार मुँह खोलते हुए पूछा - क्या हुआ था मुठभेड़ में?

तब मैंने कहा - 

सुनने के लिए आधा घंटा सबको इत्मीनान रखना होगा। मैं विस्तार से सब कहने जा रहा हूँ।

अब्बू ने कहा - 

जल्द बताओ, हमारा ज्यादा वक़्त यहाँ रुकना, निगरानी करने वालों में शक पैदा करेगा।

तब मैंने, सुरक्षा बलों के पीछे पड़ जाने के कारण, उस घर में घुसने से लेकर, बकरवाल युवक के घर में, मेरी सेवा किये जाने की, एक एक बात उन्हें बताई। मैंने यह बताने में भी संकोच नहीं किया कि मैं, लड़की की जगह, नबीहा को उस स्थिति में होने की कल्पना करता रहा था। 

चट्टान पर सोते हुए, अपने देखे सपने के जिक्र के साथ ही, मैंने यह भी बताया कि अब मैं वापिस हिंदू धर्म स्वीकार करते हुए अपना नाम हरिहर भसीन रखूँगा।

अंत में मैंने बताया कि - 

पाकिस्तान में दहशतगर्दों के अड्डे की जानकारी, भारत की पुलिस/सेना को बता कर मैं, वादा माफ़ गवाह बनने की कोशिश करूँगा। 


-ऑपरेशन मां-


तब चचा ने कहा - 

तुम्हारी योजना कारगर होगी, यह मुझे लगता है क्योंकि 370 समाप्त होने के बाद, अभी के गवर्नर, घाटी के भटके युवकों को वापिस मुख्यधारा में लाने के लिए “ऑपरेशन मां” के तहत प्रोत्साहित कर रहे हैं। इससे आत्मसमर्पण करने के बाद, उनकी कस्टडी में तो तुम शेफ रहोगे। लेकिन बाहर आने पर दहशतगर्दों के निशाने पर होगे। 

मैंने कहा - 

आप सभी निश्चिंत रहें, अब के बदले हालात में कश्मीर में, पाकिस्तान पोषित आतंक के दिन ज्यादा नहीं रह गए हैं। जो भी सजा मुझे मिलती है मैं, उसके काटने के बाद निशंक, अच्छे भारतीय नागरिक के रूप में अपना पूरा जीवन जी सकूँगा। 

मेरी बात से अम्मी की उम्मीद बनी। अब्बू ने भी मुझसे सहमति जताई, पूछा - 

फिर, कल के लिए कब और क्या, किया जाना होगा?    

मैंने कहा - 

कल आप, आज सुबह वाली जगह ही, मेरे लिए एक जोड़ा कपड़ों के साथ मिलिये। ये कपड़े बदलकर मैं आपकी बाइक पर, आपके साथ ही थाने चलूँगा। वहाँ आप मुझे पकड़वा दीजियेगा। इस तरह मैं, सरेंडर कर दूँगा।

यह तय कर लिए जाने के बाद अब्बा-अम्मी लौट गए थे। 

तब नबीहा ने, अपनी अम्मी से मुझसे, अकेले में बात करने की इजाज़त चाही थी। नबीहा के अम्मी-अब्बू जानते थे कि हममें, मोहब्बत है और आगे चलकर हम शादी करना चाहते हैं। उन्होंने इसे मंजूर कर लिया फिर वे दोनों, अन्य कमरे में चले गए। 

अब कमरे में हम दोनों ही थे। नबीहा ने रुआँसे स्वर में बताया - 

तुम्हारे आतंकवादी बन जाने के साथ ही मैंने, आशा छोड़ दी थी कि इस ज़िंदगी में मुझे, तुम्हारा साथ फिर मिल सकेगा। आज तुम्हें वापिस देख मुझे वह ख़ुशी मिल रही है जिसे, व्यक्त करने के लिए, मेरे पास शब्द नहीं हैं। 

मैंने मुस्कुराते हुए पूछा - मैं हिंदू हो जाने वाला हूँ, यह मंजूर है, तुम्हें?

नबीहा ने दृढ़ता से कहा - 

मुसलमान घर में पैदा होने से मेरी परवरिश, मुस्लिम की तरह हुई है तब भी, मुझे यह बात अजीब लगती आई है कि मुस्लिम पुरुष तो अन्य संप्रदाय की लड़कियाँ तो आसानी से ब्याह लेते हैं। जबकि मुसलमान लड़की के लिए ऐसा करने की इजाजत नहीं। मैं इस संकीर्ण तथा दोहरी मानसिकता से विद्रोह करुँगी। और तुमसे विवाह करना  अपना सौभाग्य मानूंगीं। 

मैंने प्रशंसा करते हुए कहा - इतनी साहसी!

वह बोली - दो कौमों में हमारा ऐसा करना समाज का पक्षपाती विभाजन है, जिससे ही शताब्दियों से ये आपसी नफरत चल रही है। 

मैंने कहा - वाह नबीहा समस्या की जड़ की इतनी पहचान प्रशंसनीय है . मगर यह तो बताओ कि यदि मेरी सजा लंबी चली तो?

नबीहा ने लंबी श्वाँस लेकर कहा - 

तुम जीवित हो यह विचार, मेरी ज़िंदगी के लिए काफी है। मैं उतना इंतजार कर लूँगी जितनी, तुम्हें सजा काटनी होगी।    

मैंने पूछा - 

सजा काटने के बाद छूटने पर आतंकवादी मुझे, टारगेट कर सकते हैं। इससे तुम्हें भय नहीं लगेगा?

नबीहा ने कहा - 

मैंने तुमसे प्यार किया है। आतंकवादी से सामना होने पर उस लड़की की तरह, तुम्हारी बाँहों में मुझे, मर जाने में भी ख़ुशी होगी। 

मैंने कहा - 

नबीहा, यद्यपि मुझे विश्वास है कि ऐसे तुम्हें मरना नहीं पड़ेगा मगर, ऐसा कह कर बहुत हद तक तुमने, लड़की के मेरे कारण मारे जाने के मेरे ग्लानि बोध से मुक्त किया है। 

मैं तुमसे दुगुना प्यार करूँगा। एक तुम्हारे स्वयं के हिस्से वाला और एक, उस लड़की को लेकर मेरी संवेदना से, उसके प्रति मेरे हृदय में उपजा वाला। अभी के लिए तुमसे, मैं यह चाहूँगा कि तुम हमारे प्यार को गोपनीय ही रखना। अन्यथा आतंकियों की तरफ से तुम्हारी जान को खतरा होगा। 

नबीहा ने कहा - हाँ, मैं ऐसा ही करुँगी। 

तब मैंने उसके माथे पर एक चुंबन लिया था। उसके सिर एवं पीठ पर, प्यार से हाथ फेरा था और फिर घर से निकला था। 

तब नबीहा की आँखों में आँसू थे। मैंने अपना चेहरा अंधेरे की तरफ करके अपने आँसूं, उससे छिपा लिए थे। 

अपनी भेड़ों के साथ डेरे पर इंतजार कर रहे युवक से, वापिस पहुँच कर मैंने, पूरी पारदर्शिता के साथ, सभी बातें बताई थी। 

अंत में, मैंने कहा था कि -

मेरा, अपने अब्बू के साथ जाकर सरेंडर करना ज्यादा उचित होगा। तुम या तुम्हारे पिता के साथ जाकर ऐसा करना, पुलिस का तुम लोगों पर शक पैदा कर सकता है, जिससे अकारण ही वे तुम लोगों पर, सख्ती कर सकते हैं। 

मैं अपने अब्बू से कहूँगा कि उनके द्वारा पकड़वाने से उन्हें,  मुझ पर की इनामी राशि मिलेगी वह, वे तुम्हारे परिवार को दे दें। 

युवक हँसा था, उसने कहा - 

दोस्त, तुम हमें पहचान नहीं पाये हो। हमें इनाम का लालच होता तो हम बहुत पहले ही, तुम्हारी जानकारी पुलिस को दे चुके होते। हमें तो तुम्हारे लिए सब करते हुए, ख़ुशी इस बात की है कि हम, एक भटके लड़के को सही मार्ग पर, आने में सहायक हुए हैं। 

गुज्जर युवक एवं उसके परिवार की राष्ट्र निष्ठा, मुझे प्रभावित कर रही थी। अपने आस पास के लोगों में ऐसी निष्ठा मैंने नहीं देखी थी। मैं अनुभव कर सका कि इन्हीं तरह के लोगों के होने से यह विशाल राष्ट्र अखंड है और विकास की राह पर चल पा रहा है। 


(क्रमशः)

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन

27-08-2020


गद्दार ... 6. मातृभूमि

 गद्दार ... 

6. मातृभूमि  

जंगल में, मैंने अगले सात दिन और रातें गुप्त रूप से काटी थीं। युवक हर दिन भेड़ें चराने आया करता। 

घर से आते हुए मेरे लिए दिन भर का खाना एवं पीसी गई जड़ी बूटियों का लेप, घावों पर लगाने के लिए ले आया करता। 

यह समय काटना किसी के लिए कठिन होता लेकिन, आगामी जीवन के लिए अपने संकल्प को स्मरण करते हुए तथा उस पर दृढ़ता लाने के लिए मैंने यह समय, एक तरह से तपस्यारत रह कर काटा। 

इस बीच जब जब मुझे यह कठिन लगता मैं, ऋषि कश्यप का तपस्या करना स्मरण करता जिससे, अपने संकल्प के लिए मुझे आत्मबल मिलता। मेरे शरीर पर के सभी घाव ठीक हो गए। 

इन सात दिनों में यहाँ अवश्य कोई बुरी बात नहीं हुई थी, किंतु पाकिस्तान स्थित आतंकवादी मुख्यालय में मेरा कोई सुराग नहीं मिलने से हड़कंप मची हुई थी। संगठन प्रमुख अपने मातहतों से कह रहा था - 

शायद वह (मैं) सेना की लगी गोली से घायल होकर वीरान में, दूर कहीं दम तोड़ चुका है या फिर हमसे बच रहा है। 

वहाँ मौजूद एक अन्य ने कहा - 

मुझे, आपकी कही दूसरी बात ही सही लग रही है अन्यथा उसका मोबाइल मुठभेड़ वाली रात से ही हमें अनरीचेबल नहीं मिलता। 

प्रमुख बोला - 

अगर यह सच है तो वह, हमारे प्लान एवं वहाँ हमारे लिए काम कर रहे, हमारे लोगों के लिए बहुत बड़ा खतरा हो गया है। हमें, हमारे लोगों को उसके घर एवं करीब के रिश्तेदारों की निगरानी करने को बताना होगा। वह निश्चित ही घर के लोगों से संपर्क करेगा। 

तब दूसरे अन्य ने कहा - उसका सुराग मिलते ही हमें, उसको खत्म करवाना होगा। ताकि वहाँ सेना उसे पकड़, उससे हमारे राज ने उगलवा सके। 

प्रमुख - हाँ, हमें जल्द से जल्द ऐसा करना होगा। 

फिर उसने अपने मोबाइल से कोई नंबर मिलाया था। सामने से रिप्लाई मिलने पर, अपने उस आदमी को निर्देश देने लगा था।      

अपने पर इस मँडराने लगे खतरे का मुझे सिर्फ अनुमान ही था। अतः मैं सावधानी तो ले रहा था मगर उतनी नहीं जितनी मेरे जीवित बच पाने के लिए जरूरी थी। 

मेरे बाँह में गोली लगे वाले भाग में, भरते जा रहे घाव की बची गहराई एवं त्वचा पर गुलाबी रंगत, मुझे, गोली लगने की चुगली कर रही थी। यद्यपि उसमें पीड़ा नहीं रह गई थी। वह भाग कपड़ों में स्वाभाविक रूप से छिपता था। अतः यह, मेरी चिंता का विषय नहीं रह गया था। 

तब एक शाम युवक के साथ मैं चरवाहे की वेशभूषा में, वापिस उनके घर पहुँचा। रात के भोजन के बाद अब सबने मिल कर मेरे परिवार और मेरी नबीहा से, मेरे मिल सकने की योजना को अंतिम रूप दिया। 

मेरा इनमें से किसी को मोबाइल पर कॉल या कोई मैसेज करना खतरनाक हो सकता था। अतः उनसे मिलने के लिए, मेरा ऐसा ना करना तय किया गया। हमें उनसे मिलने का सहज कारण दिखाते हुए घर के बाहर ही कहीं मिलना था। 

तीनों ने इन सब बातों पर जिस गंभीरता से विचार करते हुए चर्चा में हिस्सा लिया, उससे मैं समझ सका कि उन्होंने, अपने से, मुझे आत्मीय रूप से जोड़ लिया है।   

यहाँ से मेरा गाँव 27 किमी था।

अगली सुबह युवक के साथ, (मैं) गुज्जर दिखते हुए, भेड़ों को लेकर, मेरे गाँव के लिए निकले थे। ख़ानाबदोश लोगों का ऐसा भ्रमण, किसी शक के दायरे में नहीं था। हम आपस में तो बात करते मगर रास्ते में, जहाँ भी कहीं किसी से बात करना होती या कोई चीज खरीदना होती तो, युवक ही यह करता रहा। 

हमें यह सावधानी रखनी थी, क्यूँकि मेरी ज़ुबान एवं लहजा गुज्जर जैसा नहीं था।  

हम जंगल के छोटे रास्तों से होकर, सूर्यास्त के समय, मेरे गाँव पहुँचे थे। संध्या के समय ही भेड़ों और हमारे, रात गुजारने के लिए, युवक ने एक पेड़ के नीचे प्रबंध किया था। 

रात को हमने, भोजन किया था। फिर मैं सोने की कोशिश करते हुए खुले आसमान के नीचे अपनी मातृभूमि की सुगंध की अनुभूति कर रहा था। आज के पूर्व, इस शिद्द्त से मैंने इस भूमि के प्रति ऐसा प्रेम अनुभव नहीं किया था। आज ऐसा कर पा रहा था उसका कारण, मन में मेरे विचारों का 180 अंश से घूम जाना था। 

मैं अब बरगलावों को भूल, इस देश एवं भूमि के प्रति, अपनत्व मानते हुए अपनी जिम्मेदारी अनुभव कर रहा था। 

अब मैं चाहता था कि अपनी पूरी आपबीती सुना कर, अपने परिवार और नबीहा को पूर्व में, अपने वंश के धर्म एवं आस्था के प्रति प्रेरित करूँ। फिर सेना के सामने अपने अपराध को स्वीकार करते हुए आत्मसमर्पण करूँ। मेरे अपराध की जो भी सजा मुझे मिले, उसे काटूँ। फिर आगे के जीवन में  मैं, अपने राष्ट्र एवं अपनी मातृभूमि के प्रति निष्ठा से रहना सुनिश्चित करूँ। 

अगले दिन, घर के पास के बाज़ार में, मैं तीन भेड़ों को बेचने के बहाने बैठा था। मैं इंतजार कर रहा था कि घर से, कोई बाजार आये। मैं गुज्जर पहनावे में था। लोग मुझे पहचान नहीं रहे थे। जबकि मैं सबको पहचान रहा था। छह माह के बाद इन्हें देखना, मुझे अच्छा लग रहा था। 

तीन लोग, मेरी भेड़ की कीमत करने आये थे। मैंने, उन्हें इतनी ऊँची कीमत बताई जिससे लोग, हैरत से मेरी सूरत देखते हुए आगे बढ़ गए थे। अब मेरा इंतजार खत्म हुआ था मुझे सामने से आते अब्बू दिखाई पड़े थे। वे जब पास आये तो मैंने, उन्हें आकर्षित करने के लिए आवाज़ लगाई -  भेड़ ले लो। 

इससे अब्बू के कदम ठिठके थे। उन्हें, मेरी आवाज़ परिचित लगी थी। 

मुझे देखते हुए जब करीब आये तो मैंने फुसफुसा कर कहा - अब्बू, मैं हूँ। 

वे घबड़ा गए थे। उन्होंने आसपास देखा कि हमें, कोई सुन-देख तो नहीं रहा है। जब उन्हें तसल्ली हुई कि किसी का ध्यान नहीं है, तब उन्होंने इशारा किया। मैं अपनी भेड़ लेकर सुनसान स्थान, जहाँ युवक ने डेरा डाल रखा था, की तरफ बढ़ गया। अब्बू कुछ देर करके, खोजते हुए वहाँ आये। 

चिंतित स्वर में उन्होंने, मुझे आगाह करने के लिए कहा - 

घर नहीं आना, पकड़े जाओगे। निगरानी हो रही है। टीवी में तुम्हारी तस्वीर दिखाई जा रही है। बहुत खतरा है। 

मैंने कहा - 

मैं, जानता हूँ। इसलिए कॉल नहीं किया है। आप बताइये मेरा, सबसे मिलना कैसे हो? 

उन्होंने कहा - 

रात में छुप कर शब्बीर भट के घर आओ, खतरा न लगा तो मै तुम्हारी अम्मी को लेकर वहाँ आने की कोशिश करूँगा। उनका घर थोड़ा अलग है इस कारण वहाँ मिलना सुरक्षित होगा।

मुझे मालूम था कि शब्बीर भट, अब्बू के जिगरी दोस्त हैं। मेरी ख़ुशी इसलिए ज्यादा थी कि नबीहा उन्हीं की बेटी होने से, मुझे नबीहा से अलग से मिलने की, जरूरत नहीं बचनी थी।

सिर हिलाकर मैंने, हामी भरी।

फिर उन्होंने मुझे कहा - 

चौकन्ना रहना नहीं तो पकड़े जाओगे। फिर खुद चौकन्ने होकर सब तरफ देखते हुए वे वापिस चले गये थे।

मैंने युवक को बताया और रात तक का इंतजार करने को मनाया, उसने सहमति दी। वह बाजार से दोनों के लिए खाना ले आया। फिर हमने, दिन भर भेड़ों को जंगल में चराते हुए दिन बिताया। मेरे लिए यह एक नया एवं सुखद अनुभव था। 

शाम को पिछली रात वाले स्थान पर हमने, फिर अपना डेरा जमाया एवं जब रात गहरा गई तब, मैं नबीहा के घर पहुँचा। 

अब्बू ने शब्बीर चचा को मेरे आने के बारे में, दिन में बता दिया था। अतः गुज्जर के रूप में मुझे, अपने दरवाजे पर देख उन्हें अचरज नहीं हुआ था। उन्होंने भीतर आने कहा था फिर दरवाजे वापिस बंद कर दिए थे। अंदर कमरे में नबीहा और उसकी अम्मी थी। बच्चों एवं बाकी मेंबर को चचा ने, उस कमरे में आने को मना कर दिया गया था।

नबीहा के चेहरे पर उदासी साफ़ झलक रही थी।

हम बात शुरू करते उसके पहले ही कॉलबेल बजने लगी थी। चचा ही दरवाजे पर गए थे। मेरे अब्बू एवं अम्मी आ गए थे। चचा, उन्हें इसी कमरे में ले आये थे।

अम्मी की ममता कई दिनों बाद मुझे देख कर एकदम उमड़ आई थी। मुझसे गले लग कर वे रो पड़ी थीं। उन्हें सम्हलने में कुछ मिनट लगे थे फिर गुस्से में प्रश्न किया - तुमने, यह क्यों किया? कैसे बचा पायेंगे हम, तुम्हें?

उनके पास जाकर अब मैंने प्यार से गले लगाया फिर उल्टा प्रश्न उनसे किया - उस मुठभेड़ में, मैं वहाँ से भाग निकला था। वहाँ बाद में, हुआ क्या था?

अम्मी भाव विह्वलता में बोल न सकीं तब उत्तर अब्बू ने दिया - 

तुम्हारे तीनों साथी मारे गए थे एवं उस घर की एक लड़की भी मारी गई थी। तीन महिलायें घायल हुईं थीं। उनका इलाज कर उन्हें बचा लिया गया था।

मैंने पूछा - 

सुरक्षाबल में से भी, कोई मारा गया था या नहीं?

अब्बू ने बताया - नहीं, उनमें कोई हताहत नहीं हुआ था।

मैंने चैन की श्वाँस लेते हुए कहा - 

तब मेरा अपराध हल्का हो गया है। मैं, यह चाहूँगा कि अब्बू आप खुद ही, मुझे कल थाने पहुँचा दें। मैं, वहाँ आत्मसमर्पण कर दूँगा।

अब्बू बोले - 

वे तुम्हारा बुरा हाल करेंगे, तुम्हें समझ नहीं आ रहा है। तुम सहन ना कर सकोगे। तुम्हें भाग कर पाकिस्तान नहीं जाना चाहिए था। सरेंडर करना, अब सही बात नहीं होगी।

मैंने कहा - 

सरेंडर नहीं किया तो मारा जाऊँगा। सेना नहीं मारेगी तो आतंकवादी मार डालेंगे क्योंकि मैं उनका साथ छोड़ देना चाहता हूँ। उससे वे, मेरा ज़िंदा रहना खुद के लिए खतरा मानेंगे।

अब तक अम्मी ने स्वयं को संयत कर लिया था, शिकायती लहजे में वे बोलीं - 

तुम्हें यही करना था तो तुम उनके साथ गए ही क्यों थे? तुम नहीं समझ रहे हो मेरे बेटे, माँ होकर तुम्हारे दिख रहे अंजाम से, मेरे जान पर आ रही है।

मैंने कहा -

मैं सरेंडर करने ख्याल से, उनमें शामिल नहीं हुआ था। मगर मुठभेड़ के वक़्त से दो घटनाओं ने मेरा हृदय परिवर्तन कर दिया।


(क्रमशः)

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन

27-08-2020


गद्दार... 5. राष्ट्रनिष्ठा

गद्दार...  

5. राष्ट्रनिष्ठा 


मेरा देखा जा रहा सपना अब अंतिम चरण में था। अब मैं देख रहा था कि मैं खुद हरि प्रसाद की इक्तीसवीं पीढ़ी का वंशज था। 

यह देखते हुए, मुझे बीती ज़िंदगी में, अपने सोच और करतूतों पर अत्यंत क्षोभ हुआ। मेरे तन बदन में आग सी लग गई। मैं नींद में ही हाथ पाँव पटकने लगा था। फिर मैंने होश खो दिया था। 

मुझे जब होश आया तो मैं, एक कच्चे घर में, फर्श पर बिछी चटाई पर लेटा हुआ था। मेरे शरीर में हुई हरकत ने वहाँ मौजूद लोगों का ध्यान आकृष्ट किया था। 

वे तीन लोग थे, एक नवयुवक मेरे बराबर का एवं बाकी दो उसके माँ और बाप प्रतीत हो रहे थे।

मुझे जागते देख कर उनमें से महिला से पूछा - बेटा, अब कैसा महसूस कर रहे हो ?

मैंने कहा - शरीर में बहुत पीड़ा हो रही है एवं कमजोरी लग रही है। 

तब उन्होंने बड़ी सी प्याली में, भेड़ के दूध से बनी चाय पीने को दी। 

मैं जब चुस्कियां लेते हुए चाय पी रहा था तब नवयुवक ने बताया - हम गुज्जर, बकरवाल लोग हैं। कल जंगल में, मैं भेड़ चरा रहा था तब मैंने एक चट्टान पर नींद में तुम्हारा हाथ पाँव पटकना देखा था। 

ऐसा देख जिज्ञासा में, मैं कठिनाई से चट्टान पर चढ़ा था। तुम अर्ध चेतना में अस्पष्ट रूप से कुछ चिल्ला रहे थे। साथ ही अपने हाथ पाँव पटक रहे थे। मैंने, छूकर देखा तो तुम्हारा शरीर बहुत गर्म हो रहा था। तुम्हारे शरीर पर कई घाव एवं रगड़े जाने के निशान थे। मैंने तुम्हें जगाने की कोशिश की थी, तुम आँख खोल और मींचते तो रहे थे मगर तुम होश में नहीं थे। 

तब भेड़ों के साथ लौटते हुए, मुश्किल से तुम्हें टाँग कर मैंने, अपने इस घर में लाया था। मेरी अम्मा, कल से तुम्हारी देखरेख कर रही है। तुम्हारा, बुखार-ताप मिटाने के लिए काढ़े बना बना कर पिलाती रही है, मेरे साथ मिलकर उसने, तुम्हारे गंदे हुए, कपड़े बदलें हैं। गर्म जल से तुम्हारा शरीर एवं घाव धोये हैं एवं जंगली जड़ी-बूटियों को पीस कर उन पर लेप लगाये हैं। 

यह सुनकर मैंने, अपने शरीर पर नज़र की तो मैंने पाया कि मेरे कपड़े नवयुवक की तरह किसी गुज्जर जैसे थे। मुझे अब पिछले दिनों की घटनाओं का स्मरण आ गया।

मुझे राहत महसूस हुई कि इस वेश में एवं इन लोगों के बीच में होना, इस समय मेरे लिए सर्वाधिक सुरक्षित है। 

मुझे स्पष्ट अनुभव हो रहा था कि दो दिन पूर्व की रात को हुई घटना के बाद अब मैं, ना सिर्फ सेना के निशाने पर होऊंगा, अपितु मेरे खोज खबर लेने की कोशिश, हमारा आतंकी संगठन भी कर रहा होगा।

मुझे पिछले दिन की नींद में देखा सपना याद आ गया था जो मुझे यथार्थ एवं सच्चा लग रहा था। मुझे, मेरी बाँहों में हुई लड़की की मौत भी याद आई थी। 

वेदनादायी घटना एवं सपने के कारण अब मैं, साथी आतंकियों से पीछा छुड़ाना चाहता था। मेरे इस विचार की भनक उन्हें होते ही, सुरक्षा बल से बढ़कर वे, मेरी जान के दुश्मन हो जाने वाले थे। ऐसे में अपने घर की तरफ मेरा, मुहँ करना मेरी मौत का कारण हो जाना था।

मैं यही सब सोच में डूबा था कि नवयुवक के पिता ने पहली बार मुहँ खोला एवं पूछा - कल से टीवी समाचार में, एक आतंकवादी की तस्वीर दिखाई जा रही है जिसकी तलाश में  भारतीय सुरक्षा बल हैं। वह तस्वीर काफी कुछ, तुम्हारे हुलिये की है। क्या तुम वही आतंकवादी हो?

यह परिवार कल से मेरी देखभाल में रहा है, इनका यह एहसान अनुभव करते हुए मैं झूठ नहीं कह सका, मैंने कहा - आपका अनुमान सही है मैं वही आतंकवादी हूँ।

मेरी साफगोई ने उन्हें चकित किया, उन्होंने सोचते हुए कहा - फिर तो तुम्हें ले जाकर हमें, पुलिस को सौंपना होगा।

मैंने पूछा - आपको, मुझ पर घोषित इनाम की राशि का लोभ है?

उन्होंने जबाब दिया - 

इनाम की राशि मिलेगी यह भी अच्छा है। मगर उससे ज्यादा एक गद्दार को, पुलिस के हवाले करके अपना राष्ट्र के प्रति दायित्व पूरा करने की ख़ुशी ज्यादा होगी। तुम वह नीच काम करते हो जिसकी वजह से, घाटी की शांति खत्म हुई है। तुम्हारे (आतंकवादियों) द्वारा कर रखे खूनखराबे से यहाँ विकास अवरोधित हुआ है। यहाँ पर्यटक आने बंद होने से घाटी में जो कमाई आती थी वह नहीं आ रही है। घाटी की अभी हुई बदहाली की वजह तुम जैसे गद्दार हैं। तुम्हारी गद्दारी, हमारे दुश्मन देश के ख़राब मकसद को मदद करती है। 

मैंने कहा - आप सही कह रहे हैं। आप चाहें तो मुझे पुलिस के हवाले कर दीजिये। लेकिन मेरा अनुरोध है कि उसके पहले, मेरी सच्चाई जरूर सुन लीजिये। 

अब तक युवक और उसकी अम्मा भी पास गए थे। और हम दोनों में हो रही बातों को सुनने लगे थे। 

अधीर होकर अम्मा ने कहा- बताओ, क्या कहना चाहते हो? 

मैंने बताना शुरू किया - 

चच्चा ने मुझ पर जो आरोप लगाये हैं, वह सब दो दिन पूर्व तक मेरा सच था। मैं पड़ोसी मुल्क एवं उसके दुष्ट लोगों के उकसावे वाली बातों से दुष्प्रभावित, बहुत बुरा आदमी बन रहा था। 

मगर परसों रात, मेरे कारण से जब एक निर्दोष लड़की ने मेरी बाँहों में दम तोड़ा और मौत जिस तरह एक युवा लड़की को मेरी बाँहों से उठा ले गई, हृदय दहला देने वाली उस  वारदात ने मेरा ह्रदय द्रवित कर दिया। 

उसकी मौत मेरे जीवन के लिए टर्निग पॉइंट है। मारी गई उस लड़की की अभी पूरी ज़िंदगी, जी जानी बाकी थी। इस अहसास ने मुझे बहुत पीड़ा दी है। 

शायद आप यह जानते हैं कि आपके बेटे को जब मिला हूँ, मेरे पास तब कोई हथियार और गोला बारूद नहीं था। मैंने जान बचा कर भागते हुए, यह सभी कुछ नदी में फेंक दिया है। यहाँ तक की मैंने, अपने मोबाइल से वह सिम निकालकर नष्ट कर दी है जिससे मेरे साथी रहे आतंकवादी, मुझसे संपर्क कर सकते थे।  

मैं स्वयं अब इन सबसे छुटकारा पाना चाहता हूँ और अच्छा एवं देश भक्त नागरिक होना चाहता हूँ। यह होना ही, मेरे में बदलाव प्रेरित कर रहा था। अगर आप मेरा विश्वास कर  पा रहे हो तो एक और बात आपसे बताना चाहता हूँ। 

अब युवक बोला - 

तुम्हारी कही बात सच है। जब मुझे, चट्टान पर बुखार में तपते तुम, अचेत मिले तब तुम्हारे शरीर पर गोली का घाव तो था। मगर ऐसे कोई हथियार आदि नहीं थे।  तुम्हारे मोबाइल में सिम नहीं थी। तुम्हें लगी गोली से तुम्हारा आतंकवादी होना संदिग्ध था। मगर अन्य बात तुम्हारे आतंकवादी होने जैसी नहीं थी। 

उस समय अगर मुझे तुम आतंकवादी लगते तो मैं, तुम्हें अपने घर नहीं लाता। तुम्हें पुलिस थाना पहुँचाता। तुम्हारी कही बातों पर, मैं विश्वास कर पा रहा हूँ अतः तुम बताओ, जो भी और बात, तुम बताना चाहते हो। 

युवक के पिता तब असमंजस में दिखाई पड़ रहे थे। फिर भी युवक एवं उसकी अम्मा को अपने प्रति नरम देख, मैंने फिर कहना शुरू किया - 

वस्तुतः जब तुमने मुझे चट्टान पर पाया उसके पूर्व तक, नींद में, मैं एक सपना देख रहा था। जो यद्यपि था तो एक सपना ही, लेकिन मुझे लग रही मेरी वास्तविकता थी। मुझे लगता है, यह सब सपने के माध्यम से दिखाने में, ईश्वर की कोई भूमिका है। 

ऐसा कहते हुए मैंने कुछ पल की चुप्पी ली, फिर सविस्तार अपने देखे सपने की एक एक बात उन्हें सुना दी। 

अंत में मैंने कहा - 

इस सपने से मुझे ज्ञात हो सका है कि मैं किस हिंदू परिवार का वंशज हूँ। अब ना तो मैं, आतंकवादी और ना ही मुसलमान रहना चाहता हूँ। मैं उस धर्म का अनुयायी हो जाना चाहता हूँ जिसे, छह शताब्दी पूर्व तक मेरे पूर्वज मानते रहे थे। 

तीनों लोगों ने मेरी एक एक बात ध्यान से सुनी थी। अब वे विचार करने वाली मुद्रा में थे। 

उन्हें विचार में डूबा देख मैंने ही पुनः आगे कहा - 

अब यह आप पर है कि आप, मुझे अभी पुलिस के हवाले करते हो या ऐसा करने के पूर्व मुझे कुछ समय दे सकते हो?

चच्चा ने इस पर पूछा - 

कुछ समय से तुम्हारा, आशय क्या है? क्यों, यह मोहलत तुम लेना चाहते हो?

मैंने कहा - 

मैं अपने बारे में नई जानी गई, अपनी यह सच्चाई, अपने परिवार एवं अपनी प्रियतमा नबीहा से कहना चाहता हूँ। फिर स्वतः ही सेना के समक्ष आत्मसमर्पण करना चाहता हूँ। मैं, दुश्मन देश के आतंकवादी संगठन की खुफिया जानकारी, उन्हें देकर वादा माफ़ गवाह होना चाहता हूँ। ऐसे अपने अपराध की (कम) सजा भुगत कर मैं, देश की मुख्यधारा से जुड़ कर, शेष जीवन जीना चाहता हूँ। 

अब युवक के पिता ने हँसते हुए कहा - 

पुलिस को सौंप कर जिस सही राह पर तुम्हें ले आने की अपेक्षा मैं कर रहा था, उस राह पर तुम स्वयं आना चाह रहे हो, यह ख़ुशी की बात है। परंतु पुलिस को सौंपने से तुम पर घोषित इनाम, जो हमें मिलना चाहिए उसका तो हमें नुकसान हो जाने वाला है। 

उनके यूँ हँसने से मुझे हौसला मिला मैंने कहा - 

चच्चा, मेरे परिवार एवं माशूका से मिल लिए जाने के बाद मैं, यह अवसर आपको ही दूँगा। तब आप ही मुझे पुलिस के हवाले करना एवं मुझ पर घोषित राशि प्राप्त कर लेना। 

मेरी इस बात पर अम्मा ने कठोरता से कहा - 

हम गुज्जर लोग दौलत के यूँ भूखे नहीं हैं। हम इस माटी, इस मातृभूमि से प्रेम करते हैं, इसमें हम जीवन जीते और मरते हैं। हम मातृभूमि के प्रति निष्ठावान जाति के हैं। तुम जैसी गद्दारी ना हम करते हैं ना ही किसी को करते देखना पसंद करते हैं। तुम्हारी बातों का विश्वास करके, हम तुम्हारा चाहा गया मौका देंगे।  

फिर नरमाई से आगे बोलीं - 

बस एक काम करना, तुम मेरे बेटे जैसे ही हो। एक माँ को झूठी बात कह कर दगा नहीं दे जाना। धरती के स्वर्ग हमारी धरती को अपनी गद्दारी वाली करतूतों से, और रक्तरंजित ना करना। 

अब मैंने अम्मा के चरण छूते हुए कहा - 

आपके, मुझे बेटा कहने के पूर्व ही, आपके द्वारा की गई देखभाल से मैं, आप में अपनी माँ ही देख रहा हूँ। अपनी माँ के साथ मैं कोई धोखा नहीं कर सकता। मैं जब अपने धर्म में ही वापसी कर रहा हूँ तब ऐसा दोगला नहीं रहूँगा, जो कहता कुछ और, करता कुछ और है। 

अब चच्चा ने कहा - 

तुम्हारा अभी परिवार से मिलना तुम पर, तीन तरह के खतरे आशंका उत्पन्न करेगा। तुम्हारे घर पर सुरक्षा बलों की ख़ुफ़िया नज़र होगी। जिस संगठन को तुम छोड़ना चाहते हो वह भी, तुम्हारे घर पर नज़र रखेंगे कि तुम्हें खत्म कर सकें। तुम्हारे मारे जाने से उनकी गुप्त साजिशें, भारतीय सेना तक नहीं पहुँच सकेंगी। तुम इश्तहारी आतंकवादी भी हो गए हो, इस कारण आम आदमी भी मुखबिरी करके इनाम पाने के लिए तुम्हारी जानकारी, पुलिस तक पहुँचाने को उत्सुक होगा। 

मैंने कहा - यह सब मैं भी समझ रहा हूँ। 

चच्चा ने कहा - 

इन खतरों से दूर रहने के लिए तुम्हें, अपने सभी घाव भरने तक का इंतजार करना होगा। हमारी गुज्जर वाले पहनावे में ही, अपने परिवार से मिलने की कोशिश करना होगा। 

यह तय कर लिये जाने के बाद अगली सुबह उजाला होने के पूर्व ही मैं, जंगल में उसी चट्टान पर रहने के लिए आ गया। ऐसा करना सावधानीवश आवश्यक था। उनके घर में मुझ अजनबी को रहते देख लेने पर, कोई पड़ोसी मुखबिरी कर सकता था। 


(क्रमशः)

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन

27-08-2020