Friday, July 30, 2021

(मेधा) लड़कपन ....

 लड़कपन .... 

मैंने तब शिकायती स्वर में मम्मी से कहा - मम्मा, मेरी उनसे इस भिन्नता का मेरी फ्रेंड्स, मजाक बनाया करती हैं। 

मम्मी ने पूछ लिया - मेधा, क्या कहती हैं तुमसे, वे फ्रेंड्स?

मैंने बताया - वे कहती हैं कि मेधा में लड़कपन तो आया ही नहीं है। बचपन के बाद सीधे ही यह मैच्योर लेडी हो गई है। 

मम्मी ने कहा - इसे तुम अनसुना कर दिया करो। उन लड़कियों की लड़कपन की परिभाषा गलत है। लड़कपन का अर्थ कदापि अनुशासनहीन, अविश्वसनीय या लापरवाह होना नहीं होता है। 

मैंने जिज्ञासु होकर पूछा - मम्मी, लड़कपन का सही अर्थ क्या होता है?

मम्मा ने कहा - अपने इस प्रश्न का उत्तर तुम ही देने की कोशिश करो, मेधा। इसकी हिंट तुम्हें, मैं देती हूँ कि तुम्हारी (मैं) मम्मा, एक मैच्योर लेडी और (तुम) किशोरवय लड़की की दिनचर्या में, क्या अंतर तुम देखती हो?

मैंने विचार किया फिर कहा - 

मैं अभी पढ़ती हूँ। मैं अभी घर के और किचन के काम का कोई सीधा दायित्व अपने पर अनुभव नहीं करती हूँ। मैं अभी कमाने के लिए कोई काम नहीं करती हूँ। ऐसा नहीं होने से मैं, पढ़ने के अपने कर्तव्य के अतिरिक्त अन्य किसी भी दायित्व से मानसिक रूप मुक्त रहती हूँ। अपने सोने, उठने कुछ भी खाने, पीने, खेलने और जो मुझे पसंद है, वह काम करने में स्वयं को स्वतंत्र पाती हूँ। यह इसलिए है कि यह उम्र मेरे लड़कपन की है। इससे भिन्न, मेरी मम्मा आप, कमाने के लिए सर्विस करती हैं। घर और किचन के दायित्व पूरे करती हैं। मेरी मम्मा होने से पापा के साथ ही, मेरे भविष्य निर्माण का कर्तव्य अपने पर अनुभव करती हैं। समाज में रहने से पारिवारिक एवं सामाजिक व्यवहार निभाती हैं। इन्हें करते हुए कई बार आप अपनी नापसंद एवं असुविधा की दिनचर्या रखने को विवश होती हैं। यह होना आपको, मैच्योर लेडी निरूपित करता है। (फिर प्रश्न करते हुए) मैंने ठीक बताया ना, मम्मा?

मम्मी ने मुझे प्रशंसात्मक दृष्टि से देखते हुए मुस्कुराते हुए कहा - कदाचित! लड़कपन की इतनी ठीक परिभाषा तो मैं भी नहीं सोच पाती, मेधा!

मैं संशय में रही थी कि मम्मी ने यह बात मुझे प्रोत्साहित करने के लिए कही है या वास्तव में, मैंने लड़कपन को इस अच्छी तरह से अभिव्यक्त किया है ...  

(बड़ी होती बेटी को जीवन दर्शन प्रदान करती माँ, इस विषयवस्तु पर लिखी जा रही मेरी उपन्यास 'मेधा' से उद्धृत अंश) 

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन

30-07-2021


Tuesday, July 27, 2021

मेधा (2) …

मेधा (2) … 

मम्मी ने कहा - तुम यह तो जानती ही हो की मौसी मुझसे बड़ी एवं मैं, तुम्हारे नाना नानी की छोटी बेटी हूँ। 

मैंने कहा - जी, मम्मी। 

मम्मी ने आगे कहना आरंभ किया - यह मुझे बाद में पता चला था कि ‘जब मेरा जन्म होने वाला था तब घर में एक बेटी होने से सब यह चाहते थे कि तुम्हारी नानी का अब बेटा पैदा हो’। 

मैंने कहा - हाँ, मम्मी सब ऐसा चाहते थे तो इसमें गलत क्या था। मुझे भी लगता है कि यदि हमारे यहाँ भी मुझसे छोटा कोई आता तो उसका भाई होना ही मुझे भी पसंद आता। 

मम्मी ने कहा - 

अपनी छोटी समझ और तुम्हारी अपनी इच्छा में ऐसा होना कोई गलत बात तो नहीं है। मगर तुम मेरी सोचो कि जब सब चाहते थे बेटा हो ऐसे में मेरा बेटी जन्मना यह बात सबके लिए कितनी कटु हुई थी। बड़े होने पर जिस दिन मुझे यह सब पता चला तो मैं बहुत रोई थी कि मैं अपने दादा, दादी, पापा और मम्मी की अवाँछित (Unwanted) बेटी हूँ। 

मैंने कहा - ओह्ह, आई सी! फिर तो सबसे जितना लाड़ प्यार, मुझे मिलता है उतना आपको नहीं मिला होगा।   

मम्मी ने बताया - मेधा, ऐसा भी नहीं था। अपने बच्चे तो मम्मी पापा को प्रिय होते हैं। मुझे भी प्यार मिलने लगा था। बस मुझे यह बात बुरी लगती थी कि घर के बड़ों की लड़के की मन्नत होने पर, मैंने आकर उसे अधूरी रहने दिया था। दादा-दादी ने तब मेरी मम्मी, तुम्हारी नानी से यह चाहा था कि वे तीसरी संतान, बेटा पैदा करें। 

मैंने कहा - मम्मी, फिर यह क्यों नहीं हो पाया। आपके कोई भाई तो हैं, नहीं।  

मम्मी ने बताया - 

मेरे पापा प्रगतिशील आधुनिक विचार के थे। उन्होंने तीसरा बच्चा करना, जनसंख्या की दृष्टि से मातृ भूमि से अन्याय करने का अपराध जैसा माना था। तब मेरी दादी ने उनसे कहा था, ‘तुम्हारा एक बेटा हो जाए तो मैं शांति से परलोक जा सकूँ’। इस पर उन्हें पापा ने कह दिया था, बेटा ही हो इसकी संभावना 50% की है ऐसे में तीसरी भी बेटी हुई तब? इस पर उनकी माँ ने कहा था मैं तीर्थ धाम की यात्रा कर आती हूँ तब लड़का ही होगा। पापा ने मना कर दिया था कि माँ इस बात के लिए धाम की यात्रा से कुछ नहीं होगा। विज्ञान के अनुसार इसमें माँ-पिता भी कुछ नहीं कर सकते हैं। 

मैं सोचने लगी थी कि जन्मने वाला बच्चा लड़का या लड़की कैसे तय होता है। मुझे सोच में पड़ा देखकर मम्मी ने कहा -

बड़ी कक्षाओं में बच्चे के जन्मने की पूरी प्रक्रिया तुम्हें जीव विज्ञान में पढ़ने मिलेगी। तब तुम्हें पता चलेगा कि गर्भ स्थापना के पल में होने वाले प्राकृतिक संयोग से बच्चे का लिंग स्वतः ही तय होता है। पूजा पाठ या अन्य कोई बात इसे प्रभावित नहीं करती है। 

मैं चाह रही थी कि अभी मम्मी ही मुझे यह बताएं तो अच्छा हो, फिर मैंने स्वयं को समझाया कि मम्मी यदि मुझे अभी बताना उचित नहीं समझती हैं तो मुझे कोई जल्दबाजी नहीं होनी चाहिए। विश्वास करना चाहिए कि मित्र मम्मी, यदि नहीं बता रही हैं तो अभी इसमें ही मेरी भलाई होगी। फिर मैंने अपनी मम्मी की यह बात जानने के बाद की मनोदशा की कल्पना की और पूछा -

आप, मेरी इतनी सुंदर मम्मी तो फिर मन ही मन दुखी रहती होगी कि आपके होने से घर में बेटे की आस पूर्ण नहीं हुई। 

मम्मी ने बताया - 

हाँ मेधा, यह सच है। मेरे लालन पालन में कोई कमी नहीं होने पर भी मुझे शिकायत समाज संरचना से रहती थी कि प्रकृति से प्रदत्त समान महत्व की मनुष्य होने पर भी, मानव निर्मित परंपरा और संस्कृति में नारी को पुरुष से इस तरह से हीन क्यों माना जाता है कि कोई माँ, खुद एक नारी भी अपनी संतान का बेटी नहीं बेटा होने की कामना को विवश होती है। 

मुझे जितना कुछ समझ आया था उस आधार पर मैंने पूछ लिया -

मम्मी, क्या आप यह बताना चाह रही हैं कि मैं भी आपकी बेटी की जगह बेटा होती तो आपको अच्छा लगता? ....

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन

27-07-2021


Wednesday, July 14, 2021

मेधा …

 

मेधा … 

मैं यह सुनती हुई अब 12 वर्ष की हुई थी कि मैं अपनी मम्मी की कॉपी हूँ। जब छह सात की हुई तब मुझे कॉपी क्या होती है, समझ में आना आरंभ हुआ था। तब मैं मिरर के सामने जब मम्मी के साथ होती तो मुझे, ऐसे कहे जाने में सत्यता का पता चल गया था। मैं मम्मी का मुखड़ा देखकर तुलना स्वयं से करती तो मुझे पता चल जाता कि मेरा मुख, उनके मुख का नया और छोटा संस्करण है। 

मैं कुछ और बड़ी हुई तो जो सुन्दर शब्द सुना करती थी उसका अर्थ मुझे समझ आने लगा था। और मुझे यह अहसास करके ख़ुशी मिलती कि मैं मम्मी की कॉपी हूँ और चूँकि मेरी मम्मी अत्यंत रूपवान हैं इसलिए मैं भी रूपवान लड़की हूँ। 

पिछले दो तीन वर्षों से अपने रिश्ते, परिचित तथा साथी लोगों से मुझे मेरे रूप की प्रशंसा सुनने मिलती तो मुझे गर्व होता था। 

आज मैंने अपने इसी गर्व बोध की चर्चा मम्मी से करते हुए कहा था - मम्मी, कितनी अच्छी बात है आप इतनी सुन्दर हो और आप की बेटी होने से आप जैसा रूप मुझे भी मिला है। 

मम्मी उस समय मोबाइल पर कुछ पढ़ रहीं थीं। पता नहीं उनका मूड कुछ ठीक नहीं था। उन्होंने कहा - मेधा, यह अच्छी बात भी है और बुरी बात भी है। 

मुझे सुंदरता को बुरी बात कहा जाना समझ नहीं आया था। मैंने पूछा - मम्मी, जब सुंदरता को सब पसंद करते हैं और उसकी तारीफ़ करते हैं तो सुन्दर होना बुरी बात कैसे होती है?

मम्मी ने कहा - बेटी, अब तुम टीनेजर (Teener) होने जा रही हो। जल्दी समझने लगोगी कि जब कोई लड़की सुन्दर होती है तो सब उसकी सुंदरता देखते हैं। उस पर आकर्षित होते हैं। 

मैंने कहा - हाँ, मम्मी यह तो मैं अभी ही अनुभव करने लगी हूँ। मुझे यह अच्छा भी लगता है। 

मम्मी ने कहा - कुछ बड़ी होने पर तुम्हें, तुम्हारी यह सुंदरता कभी कभी बुरी भी लगा करेगी। जब तुम देख और समझने लगोगी कि तुम्हारे आस पास के लोग-लड़कों को सिर्फ तुम्हारी सुंदरता से लेना देना है। जब उनके बीच होने पर तुम्हें लगेगा कि उनमें से अधिकांश, की दृष्टि तुम्हारे रूप को देखने तक पर सीमित हो जाती है। वे देख नहीं पाते हैं कि इस रूप-लावण्य युक्त तन के अंदर, एक मन भी है उसमें कुछ उत्कंठा हैं कुछ अभिलाषाएं हैं, लड़की के मन में कुछ महत्वाकांक्षाएं हैं साथ ही लड़की का कोई स्वाभिमान भी होता है। 

मैं समझने का प्रयास कर रही थी। मगर मुझे कुछ विशेष समझ नहीं आ रहा था। मैं स्कूल में पढ़ती थी अतः मुझे लगा था मम्मी ने अब तक मेरे पढ़े गए से अधिक पढ़ा है इसलिए यह जानती हैं। मैंने कहा था - 

मम्मी, ऐसा भी कुछ हो सकता है मुझे तो समझ ही नहीं पड़ता है। तुम कैसे यह समझ पाई हो? क्या आगे की क्लास में यह सब पढ़ाया जाता है। 

मम्मी ने मुझे, अपने सीने से लगाया था। फिर मेरे ललाट पर चुम्मी ली थी। उनके द्वारा यह सब करते हुए भी मुझे लग रहा था कि वे अनमनी हैं। उन्होंने एक आह सी भरते हुए कहा था - 

मेधा, यह स्कूल या किसी कॉलेज की क्लास में नहीं पढ़ाया जाएगा। यह पाठ जीवन की क्लास में, मैंने पढ़ा और समझा है। तुम भी इसे वहीं से पढ़ सकोगी। 

मुझे कुछ समझ आया था। मैंने मम्मी का मूड ठीक करने के लिए कहा - 

मम्मी, आपकी पढ़ाई अधिक है आप अधिक जानती हैं। जैसे टीचर के अधिक जानने के कारण मैं उनकी क्लास में पढ़ती हूँ ऐसे ही जीवन के बारे में आपका ज्ञान अधिक है। इस पाठ को समझने के लिए क्या मैं आपसे ट्यूशन लिया करूं? कैसा है यह मेरा आईडिया?

मेरा प्रयास सफल हुआ था। मेरी बात पर मम्मी खिलखिला कर हँसी थीं। फिर से उन्होंने मेरे गालों पर पड़ते सुन्दर डिम्पल को किस किया था। और बोलीं थीं - आहा, वाह मेरी बेटी सिर्फ सुन्दर ही नहीं जीनियस भी है। 

मैंने भोली सी शक्ल बनाई थी। अपने भोलेपन में मैंने प्रश्न किया था - 

मम्मी, मेरी सुंदरता पर प्रशंसा से मुझे खुश नहीं होना चाहिए यह तो समझ गईं हूँ पर क्या आपने मुझे जीनियस कहा है इस प्रशंसा से मुझे खुश होना चाहिए?

मम्मी ने कहा - मेधा इससे ना सिर्फ तुम्हें खुश होना चाहिए अपितु हम सबको, तुम्हारे पापा को भी खुश होना चाहिए। 

मैं हँसी थी कहा था - थैंक यू मम्मी। 

मम्मी ने कहा था - तुम मुझसे जो ट्यूशन लोगी उसमें मैं, तुम्हें यह भी बतलाऊँगी कि किस की और कैसी प्रशंसा पर तुम्हें खुश होना चाहिए और किसकी प्रशंसा के पीछे के आशय को पहचान कर, उस पर प्रसन्न होने की जगह, सतर्क होना चाहिए। 

मैंने पूछ लिया - मम्मी, आप मुझे ट्यूशन देना कब से शुरू करोगी। 

मम्मी ने कहा - मेधा, तुम समझ नहीं सकी हो। मैंने, यह ट्यूशन तो तुम्हारे जन्म से ही जारी रखी है। यह जो अभी हम में हो रहा है यह भी ट्यूशन है। अब जब तुम किशोरवय में प्रवेश कर रही हो तो अब से मैं आज जैसे कठिन पाठ भी इसमें लेना, समझाना शुरू करुँगी। 

इस बार मैंने मम्मी के सुंदर ओंठों पर हल्के से किस किया था। और कहा - मम्मी, प्रॉमिस आपकी यह जीनियस बेटी, यह पाठ आपसे ही पढ़ा करेगी। 

मम्मी ने कहा - बिलकुल बेटी। जब पाठ और कठिन हो जाएंगे तब मैं, तुम्हारे पापा की भी सहायता लिया करुँगी।  

मैंने कहा - हाँ, मम्मी मेरे डिअर पापा भी तो मेरे आदर्श हैं। 

फिर मम्मी अपने लैपटॉप पर (शायद ऑफिस के) काम में लग गईं थी। और मैं टीचर का दिया होम असाइनमेंट करने लगी थी।   

(बड़ी होती बेटी को जीवन दर्शन प्रदान करती माँ, यह आज लिखना आरंभ की गई मेरी नई उपन्यास का विषयवस्तु है) 

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन

14-07-2021