Monday, April 11, 2022

परिचय - अरविन्द सक्सेना

 

परिचय - अरविन्द सक्सेना 

20 जून 1967 को जब जोबट जिला झाबुआ (मप्र) में आपने प्रथम पुत्र के रूप में जन्म लिया तब निश्चित ही आपके मम्मी-पापा के हृदय में, हर माँ-पिता के तरह की ही सहज आशाएं-अभिलाषाएं, आपके भविष्य को लेकर रहीं होंगीं।  

आपके पापा शिक्षक (अब सेवानिवृत्त) हैं। वे स्वयं अति आदर्शवादी, समर्पित शिक्षक रहने के साथ ही एक उत्कृष्ट समाज सेवी हैं। झाबुआ जिला जो मप्र के आदिवासी बाहुल अंचलों में से एक है, वहाँ के नागरिकों में शिक्षा एवं जाग्रति के लिए वे सदा सक्रिय एवं समर्पित रहे हैं। 

ऐसे पापा (और मम्मी) के स्नेह लाड़-दुलार की छत्र छाया में पले बढ़े आपमें, यदि सद्-गुणों की प्रधानता है तो यह अचरज की बात कदापि नहीं है। 

आपने अपने इन पालकों एवं अभिलाषाओं के अनुरूप प्रदर्शन करते हुए, प्रारंभिक शिक्षा जोबट में ही प्राप्त की थी। तत्पश्चात जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज से सिविल इंजीनियरिंग में स्नातक डिग्री (बी. ई. - सिविल) प्राप्त की और फिर इंदौर के जीएसआईटी में स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम में प्रवेश लिया था। 

कदाचित् तब आप इंजीनियरिंग कॉलेज में रीडर एवं प्रोफेसर के रूप में अपना भविष्य देख रहे थे। 

यह वह समय था जब सिविल इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स के लिए जॉब के अवसर अत्यंत बिरले हो रहे थे। ऐसे में मप्रविमं ने बोधघाट परियोजना के माध्यम से एक पनबिजली विद्युत गृह निर्माण कार्य की योजना बनाई थी। तब ही सिविल इंजीनियरों को “सहायक अभियंता” के पद में नियुक्ति के लिए लिखित परीक्षा आयोजित की गई थी। 

इसमें चूँकि अनेक ग्रेजुएट इंजीनियर भाग ले रहे थे अतः यह कठिन प्रतियोगी परीक्षा (Competitive exam) थी। अपनी विलक्षण प्रतिभा से, आपका चयन इसमें हुआ और आपने एम टेक की पढ़ाई, जिसमें प्रोजेक्ट रिपोर्ट सिर्फ जमा किया जाना शेष बचा था, छोड़कर और मप्रविमं में जॉब ज्वाइन करने का निर्णय लिया था। इस कारण आपको एम टेक की डिग्री मिलते मिलते रह गई थी। 

यह आपका नहीं हमारे विमं का भाग्य कहा जाना उचित होगा कि इस बैच में आप सहित सभी 20 चयनित इंजीनियर एक से बढ़कर एक रत्न थे। 

संयोग से जब तक आपके बैच का एकवर्षीय प्रशिक्षण पूर्ण हुआ तब पर्यावरणीय अस्वीकृति से बोधघाट परियोजना रद्द हो गई। ऐसे में आपके बैच के सभी सिविल इंजीनियर की सेवाएं विभाग के अन्य कार्यों में लिए जाने का निर्णय लिया गया। इस समय आपने कंप्यूटर क्षेत्र का चुनाव किया था। 

समय आने पर आपका विवाह “शिल्पा जी” से हुआ। जो आज जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज में केमिस्ट्री डिपार्टमेंट की प्रमुख हैं। आपकी दो प्यारी बेटियां हैं। 

आपकी बैच के रत्नों में से शिशिर तिवारी, प्रशांत गुप्ता, फारुख अहमद एवं आप से मेरा अधिक और घनिष्ट साथ रहा है। इनमें से सर्वप्रथम मेरी भेंट एवं मित्रता शिशिर तिवारी अब (सीएफओ हैं) से वर्ष 1998 में हुई थी। शेष सभी मेरा परिचय वर्ष 2004 से हुआ।  

मेरे सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट टीम में शामिल होने से 2004 से आपसे मेरा परिचय हुआ। हमने 2004 से 2018 तक साथ बैठकर कंप्यूटर पर काम किया था। 2009 से मुझे इस टीम में लीड की भूमिका ग्रहण करनी पड़ी थी। तब छोटी सी रह गई हमारी टीम के सामने दिया गया दायित्व एक बड़ी चुनौती था। आप सहित इस टीम के सभी मेंबर से मुझे आशातीत सहयोग एवं स्नेह मिला था। 

आपके काम करने की शैली, अत्यंत ही सिस्टमैटिक एवं गंभीर जिम्मेदारी बोध सहित रहती है। इसे मैं अपना भाग्य कहूँगा कि आपका एवं टीम के प्रत्येक सदस्य का स्मरणीय योगदान मुझे मिला था। जब मैनेजमेंट मुझे इस कार्य की सफलता का श्रेय देता था तब मैं मानता था कि इसमें मेरी टीम का समर्पित कार्य कारण था। 

एक बार काम के स्ट्रेस एवं टेंशन में, तत्कालीन सीएमडी से मीटिंग में मैंने स्पष्ट शब्दों में ऐसा कह दिया जो किसी बॉस को सुनना गवारा नहीं होता है। तब सीएमडी महोदय ने इससे चिढ़कर मुझे मीटिंग से चले जाने के लिए कहा था। उस शाम जब घर आकर मैंने इस सिलसिले पर विचार किया तो मुझे लगा कि अगले दिन निश्चित ही मेरी नौकरी पर आ जाने वाली है। 

अगले दिन सुबह सीएमडी कार्यालय से ऑफिस खुलते ही कॉल करके, अरविन्द सक्सेना के साथ मुझे आने के लिए कहा गया था। तब आप और मैं कई बुरी संभावना पर चर्चा करते हुए सीएमडी महोदय के सामने गए थे।

उस दिन सीएमडी महोदय ने मुझसे कहा - 

आपके समक्ष चुनौतियों को मैं समझता हूँ। आपके कार्यों एवं प्रयासों से मैं संतुष्ट हूँ। मैं नहीं चाहता कि मेरे मातहत, निष्ठा से कार्य करने वाले कोई कर्मी चिंता एवं भय में रहें। आप अच्छे से कार्य कर रहे हैं। आगे भी निश्चिन्त रहकर अपना कार्य करते रहें। 

यह सुनने के बाद आप और मैं वापस लौट रहे थे। यह जो हुआ था हमारी आशंका के विपरीत था। लौटते हुए आप मुझसे कह रहे थे - सर, एक आईएएस अपने सब-ऑर्डिनेट से इससे अधिक स्पष्ट शब्द में सॉरी नहीं कह सकता है। 

लंबे समय तक हम साथ रहे थे। आप मेरे कार्यालीन कार्यों में तो अधिकतम सहयोगी थे ही मगर व्यक्तिगत रूप से भी मेरे सुख दुःख में हमेशा साथ थे और अब भी हैं। मेरे या परिवार के हर कठिन समय में, मुझे सर्वप्रथम आप सहित कुछ मित्रों का ही स्मरण आता था। हर ऐसे अवसर पर सहयोग एवं साथ देने के लिए, आप सदैव मेरे साथ उपस्थित रहते थे। 

हर वर्ष टैरिफ परिवर्तन होते थे। उसे समझ कर सभी टीम मेंबर एप्लीकेशन में आवश्यक बदलाव करते थे। इन बदलावों के बाद आप सभी संभावना पर विचार कर के, ऐसे कई सैंपल केस में बिलिंग के एक्साम्पल बना कर कमर्शियल कार्यालय को पुष्टि करने के लिए भेजते थे। ताकि सभी श्रेणी के बिल, टैरिफ अनुरूप त्रुटिरहत जारी हो सकें। ऐसा करने से हमारी टीम हमेशा, किसी विकट स्थिति में पड़ने से विभाग को बचाती रही थी। 

ऑफिस में मुझे मिलते साथ का आभार मानते हुए जब मैं भावुक हो जाता, तब एक गीत प्ले किया करता था - 

“एहसान मेरे दिल पर तुम्हारा है दोस्तों, ये दिल तुम्हारे प्यार का मारा है दोस्तों”

आप इनकम टैक्स प्रावधानों को समझते और सभी सदस्यों की ऑनलाइन रिटर्न सबमिट करते रहे थे। आप स्वास्थ्य परेशानियों एवं उनकी दवाओं एवं डॉ. के भी अच्छे जानकार हैं। मैं आपको 75% डॉ. कहता हूँ। सेविंग इन्वेस्टमेंट की भी आपकी जानकारी किसी अर्थशास्त्री से कम नहीं होती है। आपकी सलाह से किए गए इन्वेस्टमेंट पर भी मुझे अच्छा लाभ मिलता रहा है। 

आप क्लासिकल एवं गीत गजल गायन में भी कुशल एवं दक्ष हैं। आप विधिपूर्वक इसकी शिक्षा के लिए तबला, ढोलक एवं हारमोनियम संगत सहित मास्टर को घर बुलवाते हैं। अच्छा साहित्य पढ़ने में भी आपकी रूचि है। आप बागवानी (Gardening) भी पसंद करते हैं। आपके घर के गमलों में सुंदर सुगन्धयुक्त पुष्प देखने मिलते हैं। व्यस्त दिनचर्या में आप अपनी इन हॉबी के लिए भी समय निकालते हैं।  

मेरे बच्चे बड़े हो रहे थे। तब मैं उनके कोर्सेस के बारे में या बाद में विवाह आदि विषय पर, आपसे अपनी चिंता प्रकट करता था। ऐसे अवसर पर आपका सेंटेंस होता था - 

सर, आपका सब कार्य ठीक से होगा। हमेशा आपको करने वाले मिलेंगे। आपको स्वयं कुछ बहुत अधिक करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। 

इस शब्दों के कारण आज मुझे उन्हें सही भविष्यवक्ता भी मानना पड़ता है। 

बहुमुखी प्रतिभा के धनी आप (सिविल इंजीनियर) के साथ, विभाग का व्यवहार मुझे विसंगति पूर्ण लगता है। जिन कार्यों को करते हुए इलेक्ट्रिकल इंजीनियर प्रमोशन ले रहे थे। तब इन्हीं कार्यों को कुशलता से करने पर भी, सिविल की ग्रेडेशन लिस्ट अलग होने से, आपको प्रमोशन नहीं मिल रहे थे। आज भी बड़े काम करते हुए, आप उसी अतिरिक्त कार्यपालन यंत्री के पद पर ही हैं। 

आपके बारे में आपके मम्मी-पापा की भावनाओं के अनुरूप एक गीत मुझे याद आता है - 

“तुझे सूरज कहूँ या चंदा, तुझे दीप कहूँ या तारा, मेरा नाम करेगा रोशन जग में मेरा राज दुलारा”  

दुर्योग से पिछले वर्ष कोविड ने आपकी माँ की छत्रछाया से, आपके परिवार को वंचित कर दिया है। निश्चित ही वे आज जहाँ भी होंगीं उन्हें यही विचार आता होगा 

“मेरे बाद में दुनिया में जिन्दा मेरा नाम रहेगा, जो भी तुझ को देखेगा, तुझे मेरा लाल कहेगा”

उन्हें (माँ को) शत शत नमन - विनम्र श्रद्धांजलि   

आपने नैतिकता एवं मानवता से जीवन यापन करते हुए, अपने मम्मी-पापा की आशाओं-अभिलाषाओं को जीवंत किया है।  

अंत में मैं यह लिखूँगा कि यह मेरा सौभाग्य रहा है कि आप जैसे रत्न कहे जाने वाले कुछ मित्रों का जीवन में मुझे साथ मिला है। 

आशा करता हूँ कि शीघ्र ही आप कंप्यूटर विभाग के प्रमुख होंगे।


Thursday, March 31, 2022

जीवन रस

 

जीवन रस 

थाली में परोसा दिया गया जो भोजन होता है, उसे मैं खा लिया करता हूँ। उसमें क्या पसंद, क्या नहीं पसंद उसका कोई विचार किए बिना, भोज्य का आदर सहित  सेवन से अपनी पेट पूजा कर लिया करता हूँ। मेरे परिवार में सभी इस बात को जानते हैं। 

कभी कभी कोई प्रश्न करता है तो मेरा उत्तर होता है कि मैं जीवन रस, भोजन से नहीं अन्य बातों से ग्रहण करता हूँ। पौष्टिक भोजन मैं अपने जीवन को पुष्ट करने के लिए ग्रहण करता हूँ। 

इतना बताने पर एक सहज प्रश्न उठता है कि क्या वे बातें होतीं हैं जिनसे मुझे अपने जीवन में रस मिलता है? ये बातें, विषय अनेक हो सकते हैं। उनमें से कुछ यहाँ लिख रहा हूँ। 

मुझे जीवन की अलग अलग अवस्था में अलग अलग विषयों में रस (आनंद) मिलता रहा है। बचपन में निश्चित ही मुझे स्वादिष्ट नाश्ता, भोजन एवं पेय और तरह तरह की खाद्-य सामग्री के माध्यम से रस मिल करता था। खेलना, बाल साहित्य पढ़ना, क्रिकेट कमेंट्री सुनना एवं समाचार पत्रों का खेल पृष्ठ एवं संपादकीय पढ़ने में भी मुझे रस आया करता था। 

किशोर वय में गणित के प्रश्न एवं अन्य विषयों के संख्यात्मक प्रश्न (Numericals) हल (Solved) करना भी मुझे किसी गेम खेलने जैसा आनंद देते थे। 17 वर्ष की उम्र में बुलेट (बाइक) चलाना भी मुझे रस देता था। तब स्कूल की पढ़ाई से समय निकाल कर उपन्यास पढ़ना भी मुझे पसंद था।  

किशोर वय से लेकर लगभग पचपन की आयु तक मेरा प्रमुख आनंद विषय, प्रेम रस था। विवाह उपरांत मैं अपनी पत्नी एवं बच्चों में मग्न रहने के पलों में प्रसन्न रहता था। 

37 से लेकर 58 वर्ष के बीच की उम्र में मुझे कंप्यूटर पर काम करने एवं कंप्यूटर सॉफ्टवेयर के ज्ञान वृद्धि के लिए पढ़ना अच्छा लगता था। इसी बीच मैंने अपनी कार मारुति ज़ेन ली थी। तब अवकाश में अपने परिवार के साथ गृहनगर जाना भी मेरे लिए रसमय अनुभव होता था। इसमें ड्राइव करते हुए सांसारिकता (Worldliness) से अलग होकर, अपने पत्नी-बच्चों के साथ रिलैक्स होकर बातें करना मुझे अच्छा लगता था। 

मुझे याद है, बच्चों ने मुझे इतने फुर्सत में एवं बिलकुल अलग तरह से बात करते हुए, ऐसे ही समय में देखा था। कभी आश्चर्य से पूछा भी था - पापा, आप इतने अनूठे तरह से विचार करते हो? 

शायद उनने यह तब कहा था जब एक बार कार चलाते हुए मैं उन्हें बता रहा था - 

एक सामान्य मनुष्य, जीवन में 70 हजार से अधिक बार खाकर भी अतृप्त रहता है। वह हर 4-5 घंटे में फिर भूखा हो जाता है। जब ऐसे ही अतृप्त हमें रह जाना है तो क्यों (यूँ तृप्त होने के असफल प्रयासों के बावजूद) हमें इस बात को अधिक महत्व देना चाहिए कि हमें खाने के लिए क्या क्या चाहिए है। हमें जो सर्व किया गया हो (हम शाकाहारी परिवार से हैं) या जो उपलब्ध हो उसी से उदर पोषण कर लेना चाहिए। तथा आजीविका कमाने में भ्रष्ट या अनैतिक नहीं होना चाहिए। 

यहाँ यह उल्लेख प्रासंगिक होगा कि मैंने आरंभ से ही अपनी दादी, माँ, बहनों सहित पत्नी रचना के द्वारा, इस विवेक से पाक सामग्रियाँ बनाते देखा है कि क्या और कब खाना स्वास्थ्य की दृष्टि से अच्छा होता है।     

मैंने अच्छी बहुत सी बातें पढ़ीं हुईं थीं। कभी एक प्रसंग यह भी पढ़ा था कि -

एक घर में पति, अपनी पत्नी के बनाए भोजन की अत्यंत प्रशंसा करते हुए, उस भोज्य का कम सेवन करता तो पत्नी शिकायत करते हुए कहती - आप जिस भी सामग्री की अधिक प्रशंसा करते हो उसे कम खाते हो। 

पति का उत्तर होता - मेरी प्राणप्रिया, मैं चाहता हूँ जो आपने अच्छा बनाया है उसका रसास्वादन का अवसर परिवार एवं पड़ोस के अधिक से अधिक लोगों को मिले। 

ऐसे ही एक और प्रसंग भी पढ़ा था कि -

एक ऋषि के पास एक माँ, अपने बच्चे की अधिक गुड़ खाने की आदत छुड़ाने का उपाय पूछने गई थी। 

तब ऋषि ने उसे सात दिन बाद आने के लिए कहा था। सात दिन बाद वह माँ फिर पहुँची तब ऋषि ने उसे उपाय बता दिया था। 

माँ ने कहा - आचार्य जी, इतनी सी बात तो आप मुझे उसी दिन बता सकते थे। 

ऋषि ने कहा - उस दिन तक मैं स्वयं, बहुत गुड़ खाया करता था। जब मैं ही कोई काम कर रहा था तब उसे छोड़ने का कोई उपदेश अन्य को कैसे दे सकता था। 

ऐसे छोटे छोटे अच्छे प्रसंगों से, मैंने अपनी आदत बनाई है कि मैं वही बात कहूँ या लिखूँ, जिसे अच्छी मानकर मैं स्वयं अपने आचरण एवं कर्मों में अंगीकार करता हूँ। 

अभी पिछले महीने 23 फरवरी से 7 मार्च तक रचना (मेरी पत्नी) अपनी माँ से मिलने गईं थीं। इस बीच मैंने बचपन से लगी चाय पीने की अपनी आदत त्याग दी है। कारण यह था कि रचना, चाय कुछ वर्ष पूर्व छोड़ चुकीं थीं और ऐसे में उन्हें अब चाय अलग से सिर्फ मेरे लिए बनाना होता था। रचना को तो चाय बनाने में परेशानी नहीं थी, मगर मुझे मेरे अकेले के लिए उन्हें यह करता देखना अच्छा नहीं लगता था। ऐसे जीवन की अंतिम चाय मैंने 23 फरवरी 2022 को पी है। 

बात रस की है तो मुझे अब उन बातों में भोजन से अधिक रस आता है जिनमें मेरे कारण, दूसरों को प्रसन्नता एवं आनंद मिलता है। यह भी एक कारण है कि मैं अब अच्छे साहित्य सृजन में रस लिया करता हूँ। 

मैं सोचता हूँ जीवन कभी तो ऐसा भी जिया जाए जिसमें हमारे लिए, अपनी प्रसन्नता से अधिक दूसरों की प्रसन्नता का महत्व रहे। 


Friday, February 4, 2022

पॉजिटिव वाइब्स (Positive vibes)

 

पॉजिटिव वाइब्स (Positive vibes)

यह घटना 16-17 वर्ष पूर्व की है। हम (अरविंद सर और मैं) ग्वालियर टूर के बाद महाकौशल एक्सप्रेस से जबलपुर लौट रहे थे। हम एसी 2 शयनयान में थे। सतना आने तक क्षितिज से ऊपर उदय होते, तब लालिमा का गोला बने सूर्य ने, नव प्रभात की नई किरणें बिखेरना आरंभ कर दिया था। सतना से जब ट्रेन रवाना हुई तो मुझे अपने बाजू के कूपे के सहयात्रियों की चर्चा स्पष्ट सुनाई पड़ने लगी थी। 

ये लोग थर्मस से चाय कॉफी एवं अपने साथ रखा नाश्ता करते हुए वार्तालाप कर रहे थे। इनमें शायद एक महिला एवं तीन पुरुष थे। मुझे, वार्तालाप में प्रयुक्त की जा रही सधी हुई भाषा और शब्द, अत्यंत सुंदर लग रहे थे। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वह समूह कदापि साहित्यकारों का था जो किसी संपन्न हुए कार्यक्रम के बाद या आगामी कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए यात्रा कर रहा था। 

इतने वर्ष हुए उनकी चर्चा का विषय एवं अंतर्वस्तु (Contents) का ध्यान मुझे नहीं रह गया है। मुझे सिर्फ यह स्मरण रह गया है कि जीवन में अपने आसपास वैसा वार्तालाप मुझे कम ही सुनने को मिला है। मुझे स्मरण है कि उनकी चर्चा से मेरी यात्रा अत्यंत सुखद लग रही थी। 

शीर्षक के रूप में मेरे लिखे शब्द अँग्रेजी के हैं। इनका प्रयोग लिखने, सुनने एवं देखने में अब आम हुआ है। आरंभ में मुझे इसका अर्थ ही नहीं पता था। तब मैंने गूगल करके इसका अर्थ पढ़ा-समझा था। 

लिखना न होगा कि उन साहित्यकारों की उस समय की चर्चा, ट्रेन के उस कोच में पॉजिटिव वाइब्स निर्मित कर रही थी। मुझे लगता है आज हम यह अच्छी तरह जानते हैं कि पॉजिटिव वाइब्स (Which create positive emotion/thought vibrations), सकारात्मक भावना/विचार कंपन पैदा करने से सभी को सुखद लगते हैं। यह होते (जानते) हुए भी हम सकारात्मक भावना/विचार युक्त वातावरण कम ही देखते या औरों के लिए निर्मित कर पाते हैं।  

अब मैं मेरे अपने बारे में लिख रहा हूँ। गणित मेरा प्रिय विषय रहा है। अपने जीवन में मैंने अनेकों गणित लगाए हैं। गणित की शब्दावली (Terminology) में एक शब्द “मात्रा” (Limit) का बहुत प्रयोग होता है। 

जीवन में किस बात की कितनी मात्रा होनी चाहिए मैंने यह समझते हुए, लिमिट तय करना अपना स्वभाव बनाया है। मैं संतोषी प्राणी भी हूँ। इससे अब जब मुझे जीवन यापन के लिए आवश्यक एक ठीकठाक सी संपन्नता लगती है तब से मैं धन अर्जन के पीछे नहीं लगता हूँ।  

बहुत से काम हमसे हमारी बाध्यताएं कराती हैं। जब हमारे साथ बाध्यताएं नहीं होती हैं तब हम वह काम करना पसंद करते हैं जो हमारे साथ ही सब को आनंद देते हैं। 

हालांकि भाषा मेरा मुख्य पढ़ने का विषय नहीं रहा था। तब भी मेरा साहित्य के प्रति रुझान किशोर वय से ही रहा था। अब अपने इस शौक (Hobby) के लिए मैं समय लगाया करता हूँ। साहित्य लेखन मेरे शौक एवं जीवन उद्देश्य दोनों की पूर्ति करता है। 

मुझे सामाजिक वातावरण में पॉजिटिव वाइब्स की मात्रा कम लगती है। मैं अपने सृजित साहित्य में वे बातें लिखता हूँ जो पढ़ने वाले के हृदय/मन को पढ़ते समय पॉजिटिव वाइब्स प्रदान करती हैं। 

मैं हास्य-विनोद (Humor) पसंद करता हूँ मगर ऐसा हास्य-विनोद मेरे साहित्य में नहीं होता जो किसी कॉमेडी शो जैसा फूहड़ मनोरंजन (Cheap Entertainment) उपलब्ध कराता है। मेरे साहित्य के पाठक को कहानी में आवश्यक होने पर अच्छे एवं स्वस्थ हास परिहास (Healthy Humor) का आनंद मिलता है। 

धन उपार्जन के लक्ष्य से बनाई जाने वाली वेब सीरीज या सिनेमा जैसी हिंसा, गाली गलौज, क्रोध एवं प्रतिक्रिया की अधिकता एवं सेक्स चर्चा भी मेरे साहित्य में नहीं होती। ये सब इतनी ही मात्रा में होते हैं, जितनी एक सामान्य नागरिक, परिवार-समाज में अनुभव और देखा-सुना करता है। 

मेरे साहित्य में हर बात हो सकती है मगर उसकी मात्रा कितनी हो इस पर मैं पर्याप्त विचार देता हूँ। मेरा साहित्य इस लक्ष्य से निर्मित किया जाता है कि पाठक कोई कोई एक ही नहीं अपितु सर्व पक्ष को देख/समझ पाए। 

मैं सोचता हूँ वह कृति साहित्य नहीं हो सकती है, जो पाठक के मन में पॉजिटिव वेव्स का अनुभव उसके स्वयं के आनंद के लिए तथा उसके माध्यम से औरों का प्रदान करने की प्रेरणा का साधन (Cause) नहीं बनती है।