सुरक्षित,शांत समाज -नारी की सम्मान रक्षा एक जरुरत
विभागीय दौरे के बीच मुझे 4 -5 घंटे का सफ़र एक ऐसी बस में करना पड़ा
जो रास्ते में ग्रामों में रुक सवारी लेते छोड़ते जाती थी.जहां में बस में
सवार हुआ वहां सीट खाली मिलने पर मैं बैठ गया .आगे एक ग्राम में ज्यादा
यात्री चढ़े तो कुछ खड़े खड़े यात्रा कर रहे थे .उनमें एक बूढी महिला मैंने
अपनी सीट पर बैठा मैं खुद खडा हो गया.रास्ते में यात्रियों के बस में चढ़ने
-उतरने के क्रम में परिचालक ने एक खाली सीट पर मुझे बैठा दिया .आगे किसी
जगह फिर यात्री बढ़ जाने से कुछ लोग खड़े रह यात्रा कर रहे थे उनमें एक
युवती माता अपने दूध-मुँहे बच्चे को गोद में लिए खड़ी देख मैंने अपनी सीट
उसे दे दी.टिकट के लिए घूमते जब परिचालक ने मुझे खड़े पाया तो उसके चेहरे पर
अजीब से भाव थे .कारण ये था कि वहां सफ़र करने वाले महिलाओं के लिए सीट
खाली कर देने की आदत छोड़ चुके थे और ये ग्रामीण नारियां भी छोटी छोटी
दूरियों का बस सफ़र खड़े रहकर करने की अभ्यस्त थीं. मेरे सर पर से बालों ने
विदाई ले ली थी जो थोड़े बचे थे उनमें सफ़ेद रंगत आने लगी है ऐसे में
परिचालक मेरी ज्यादा उम्र मान आदर भाव अथवा कमजोर मान बैठा के सफ़र कराने
का यत्न कर रहा था . 2 -3 बार बैठने खड़े होने के साथ लगभग आधी दूरी खड़े
रह कर मेरी यात्रा ख़त्म हुयी .मुझे कुछ शारीरिक परेशानी जरुर हुई पर मानसिक संतोष
ज्यादा रहा.जरुरतमंद कमजोर के लिए छोटी छोटी परेशानी उठाने के लिए मेरा
अंतर्मन संकेत करता है .नारी के बारे में मैं मानता हूँ कि प्रकृति ने
पक्षपात किया है उसे शारीरिक ताकत तो कम दी है लेकिन परिक्ष्रम और वेदना
उसके हिस्से में ज्यादा आई हैं.अतः उनके प्रति मेरी संवेदना रहती है.नारी
आधुनिकता के इस दौर में गृहणी के अतिरिक्त धनोपार्जन भी करने लगी है और
उसे कदम घर के बाहर भी रखने पड़े हैं.
मुझे याद है 16 -18 वर्ष पूर्व मेरे छोटे बच्चों को घर में छोड़ कार्यालय
को निकलते मुझे कष्टकर अनुभूति होती थी .नारी आज के परिवेश में अपने
दूध-मुँहे बच्चे को घर में छोड़ बड़ी मानसिक वेदना की हालत में बाहर निकलती
होगी इसका अनुमान हम लगा सकते हैं.ऐसे में मुझे लगता है जो किशोरवय में
स्कूल /कोलेज जाती बेटियाँ आगामी समय में बाहर की जिम्मेदारी के लिए खुद
को तैयार करने में जुटी हैं,नवजात बच्चों की माता युवतियां कार्यालयीन या
अन्य व्यावसायिक कार्य से घर से बाहर आती हैं और प्रोढ़ता को बढती और
कमजोर होती नारियां किसी बाध्यता में बाजारों /कार्यालयों में भटकती
हैं.ऐसी सभी नारियों को हम बलशाली पुरुषों द्वारा अधिक से अधिक सुविधा
,सम्मान दिया जाना चाहिए .मुझे अत्यंत करुणा होती है जब उनसे बदसलूकी
,छेड़छाड़ की जाती है,उनपर फब्तियां और फ़िल्मी गानों से लक्ष्य कर उन्हें
अपमानजनक हालत में डाला जाता है.हम अबला के इस अनादर में कोई वीरता
प्रदर्शित नहीं कर रहे होते हैं.हम बहाने करते हैं की उनके कपडे ऐसे हैं
,या वह तो है ही इस लायक या वह तो इसे पसंद करती है.ऐसा नहीं है अपवाद में
ही ऐसा अपमानजनक हमारा व्यवहार किसी को रुचता हो सकता है ,और इसकी
प्रष्ठभूमि में भी हमारा अनैतिक बहलाना -फुसलाना या किसी रूप में उन्हें
लालच दिया जाना मूलतः जिम्मेदार मिलेगा जिससे नारी अपने लाज-मर्यादा के
प्रकृति प्रदत्त स्वभाव को त्यागने को बाध्य होती है प्रकृति ने पुरुष को
बलशाली बनाया है हमें शक्तिहीन अबला का सहायक होना चाहिए अपनी शक्ति उसके
सम्मान रक्षा में लगानी चाहिए यह वीरोचित व्यवहार होता है.जिस दिन समाज
में नारी को यथोचित सम्मान मिलना आरम्भ हो जायेगा समाज की अधिकाँश
समस्याएँ स्वमेव निराकृत हो जाएँगी वीर प्रबुद्धजन कहलाते ही वही हैं जो
समस्याओं का उचित निदान कर उसका निर्मूलन/रोकथाम करने में समर्थ होते
है.हमें सही मायनों में अपने को वीर और प्रबुद्ध सिध्द करना है.