Friday, May 31, 2019


अपने स्वाभिमान की फ़िक्र में हम सभी रहते
बात तो तब हम औरों की खुद्दारी की फ़िक्र भी करते 
है ना कैसी अजीब ये ज़िंदगी, होती तो अपनी है
मगर बदलती किसी के, होने या नहीं होने से है

Wednesday, May 29, 2019

न भी मिलते तो ये वक़्त गुजर जाना था
क्या कम है इक अरसा साथ नसीब हुआ


बेबस हम, इस वक़्त को चले जाने दें

उम्मीद रहे, कि आने वाला बेहतर होगा

गम नहीं आगे वक़्त हमारे लिए न हो बेहतर वे भी अपने ही हैं जिनका वक़्त बेहतर होगा

"ना चाहने" से क्या होता है
"वक़्त आता" तब जाना होता है
उम्मीद - आशियां नया बसायेंगे
एतबार - कि मिसाल नई बनायेंगे

Tuesday, May 28, 2019


मेरे बच्चे, तू नहीं आया था तब और बात थी, मगर
अब राह, मेरी ख़ुशी की तेरी खुशियों से होकर आती है

मिट्टी ही तो है ये जिस्म? - हाँ,
मगर, इसमें अभी हम रहते हैं

Sunday, May 26, 2019

हम यूँ जायें कि हमें जाने का दुःख न हो और
सभी ख़ुश हों कि हम जीवन सार्थक कर गए

ज़माने में सफल कही जाने वाली हैसियत, हम बना लेते
मगर डर था कि खुद हम ही, खुदा हो गए मुगालता होता


Saturday, May 25, 2019

जीने की आरज़ू हमारी मौत को नामंजूर थी
अब हवा है वह जगह जो हमने घेर रखी थी

Friday, May 24, 2019

लिखने का मेरा लक्ष्य ज़माने को पढ़ाना नहीं
खुद पढ़कर समझने की कोशिश करता हूँ कि
मेरे भीतर का इंसान मरा तो नहीं

गर अपने सिर पर चढ़े जूनून उतार फेंके तो
बिंदास हम जी सकते हैं, जूनून बोझ होते हैं

पराया, कैसे अपना बने

पराया, कैसे अपना बने 

---------------------------------------

जिन्होंने लगभग 25 वर्ष पूर्व मध्य प्रदेश की सड़कों पर बस और अपने निजी वाहनों से यात्रा की हैं उन्हें याद होगा कि तब प्रदेश में किसी जिले में सड़कें अच्छी और किन्हीं में बेहद खस्ताहाल थीं। ऐसा प्रचारित था कि जहाँ जहाँ चुने प्रतिनिधि सत्ता दल के थे वहाँ की अच्छी और जहाँ नहीं, वहाँ की सड़कें ख़राब थी। इसी तरह बिजली की कटौती भी वहाँ कम थी जहाँ सत्ता दल के चुने प्रतिनिधि थे। विरोधी मत के नागरिकों से बदला लेने की यह एप्रोच दूरगामी विपरीत परिणाम वाली होनी थी।
इसके विपरीत भारत में जो दल 2014 में सत्तासीन हुआ उसकी पूर्वोत्तर राज्यों में पैठ न बराबर थी। किंतु सरकार ने वहाँ इंफ्रास्ट्रक्चर और विकास पर गंभीरता से काम किया। विरोधी मत वाली जनता से बदले का भाव नहीं दर्शाया। परिणाम आज देखने मिला है इस दल ने लगभग पूरे भारत में अपना अस्तित्व प्रदर्शित किया है।
मौजूदा सरकार ने सत्ता लोभ में नहीं अपितु भारत के समक्ष कश्मीर और वहाँ के आतंकवाद की गंभीर समस्या के हल के लिए ऐसे दल का साथ किया जिसका अंदरूनी एजेंडा अलगाव का था। ऐसा करते हुए उसे उम्मीद थी कि साथ मिल-बैठ कर वार्ता से नफ़रत को मोहब्बत में बदलने के मौके होंगे। कश्मीरियों का हित भारत में ही सुनिश्चित है यह पैगाम दे सकेंगे। इस हेतु वहाँ के इंफ्रास्ट्रक्चर और विकास पर बहुत व्यय किया गया। इससे उम्मीद थी कि वहाँ के युवाओं को रोजगार के अवसर होंगे। और रहवासियों के जीवन स्तर में सुधार से वहाँ खुशहाली होगी। लेकिन उस क्षेत्रीय दल ने अपने सत्ता सुख हमेशा बनाये रखने के लालच में अलगाव वादियों को गुप्त रूप से मदद जारी रखी। परिणाम आतंकवाद वहाँ कायम रहा। विकास अवरुद्ध हुआ।
निष्कर्ष मात्र इतना है - पराये को अपना बनाने के लिए किसी बदले की भावना यह अति स्वार्थ लोलुपता कारगर नहीं होती। बल्कि परायेपन अगर है तो अपनी ओर से अपनापन की शुरुआत करने से होती है. इसके लिए जरूरी है सरकार तो ऐसा करे ही क्योंकि उस पर सारे देश और सारे नागरिकों के हित रक्षा का दायित्व है। साथ ही इसे जनता को भी समझना चाहिए कि जो सरकार सबका साथ सबका विकास के अपनत्व के भाव से काम करती है , उसे अपनी ओर से अपनापन दे। कोई राष्ट्र सुदृढ़ तब होता है जब वहाँ की सरकार समग्र नागरिकों के हित पर कार्य करती है, और वहाँ के नागरिक अपने लिए हासिल करने के साथ साथ राष्ट्रहित में राष्ट्र के लिए अपना कुछ देने को तैयार होते हैं। ऐसा अपनत्व सरकार का नागरिकों के प्रति और नागरिकों का देश के प्रति होना अपेक्षित होता है। 

-- राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन 
25-05-2019

Wednesday, May 22, 2019

ख़ुशियाँ भी गर दिल में बाहर नहीं दिखायेंगे
मित्र हैं मेरे बहुत आज जिनके दिल उदास हैं 
अपना सारा कुछ देकर यूँ ना घबरा कि
अभी और है जो तू दे सकता है
श्वाँस है तब तक औरों के काम आते हुए
तू उनकी खुशियाँ हो सकता है

ज़िंदगी है तो हर हाल में उम्मीद और हौसला रख
निराश जो उससे आज किसी को कोई वास्ता नहीं

Tuesday, May 21, 2019

वही कहानी ना तुम भी लिख देना
सँस्कारहीन छह संतान ना दे देना
भला अपना समाज बनाना है तुम्हें
जिम्मेदारी का परिचय तुम दे देना
ये ज़िंदगी हैं इसमें वक़्त के थपेड़े यूँ पड़ते हैं
कभी तेरी याद में गमगीन होते हैं और
कभी गमगीन हों तो तुम्हें याद करते हैं

Monday, May 20, 2019

काफिले नहीं हों पीछे,
तुम परेशान मत होना
भलाई की राह,
सुहावनी मानने वाले कम हैं

ग़लत बात का प्रतिरोध तुम सहन न करते हो जो चाहे दिल कह लेना जब हम चले गये होंगे


Sunday, May 19, 2019

बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना

बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना 

कोई नेता हार जाता है तो उसकी हार में खुश क्यों होना? उसके जीतने पर क्या हमसे प्रत्यक्ष रूप से छीन लेगा वह? - नहीं। कोई नेता जीत जाता है उसकी जीत में खुश क्यों होना ? उसके जीतने पर क्या हमें प्रत्यक्ष रूप से कुछ दे देगा वह? - नहीं। कोई नेता अपराध में जेल चला गया तो खुश क्यों होना। क्या वह जेल नहीं गया होता तो हमें मारने आता? - नहीं। किसी की हार-जीत में हम एक साधारण व्यक्ति क्यों बेगानी शादी में अब्दुल्ला की तरह दीवानागी प्रदर्शित करते हैं? 
सिर्फ इसलिए कि अस्वस्थ राजनीति और सिद्धांतहीन राजनेताओं ने इस देश-समाज में एक साधारण सच्चे आदमी का सरलता से जी लेने की छोटी सी चाहत को भी मुश्किल कामना बना दिया है। आज के राजनेताओं ने अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षा से हम देशवासियों के हृदय में ऐसा वर्गीकरण कर दिया है कि किसी का साधारण हितैषी तक कोई नहीं रह जाता है जैसे ही उसे, उसकी जाति या संप्रदाय का ज्ञान होता है। साधारण तौर पर हँस बोल कर हमसे मिलने वाला कोई, आज के दुर्भाग्यपूर्ण परिवेश में  दिल में हमारे लिए दुश्मनी पाले हुए होता है। 
यही एक सीधा सा कारण है कि किसी राजनेता के दुःख में हम दुःखी होने की जगह ख़ुशी मनाते हैं और किसी की ख़ुशी में ऐसे खुश होते हैं जैसे हमें ही मंत्री बना दिया गया हो। हमारा, अब्दुल्ला की तरह दीवाना सा होना सिर्फ इस आशा से ट्रिगर होता है कि चुन के आने वाला नेता शायद देश और समाज के हालात बदलने में सफल हो जाये - जिसमें सच्चा कोई आदमी सादगी से चाहे तो बेखटके जीवन यापन कर पाए और भ्रष्टाचार या किसी के मन में कौम या जातिगत वैमनस्य के कारण से बेवजह हिंसा या लूट की चपेट में आने से बचा रहे। हम ऐसी आशा रखने का वरदान तो पा सकें कि भले ही किसी अपरिचित के दिल में हमारे लिए स्नेह न उमड़े किंतु ऐसा भी न हो कि वह हमें दुश्मन सा देखे। 

rajesh chandrani madanlal jain 
नहीं मतलब किसी को कि मेरी मजबूरियाँ क्या हैं
इन्हें अपने मकसद के लिए मेरा इस्तेमाल चाहिये

Friday, May 17, 2019

नफरत मिटाने चले, नफरत करते हुए
नफरत, नफरत से नहीं प्यार से मिटेगी

हम हैं तो अहमियत है 
नहीं हैं तो कोई बात नहीं 
बदस्तूर चलती है ये दुनिया 
कोई हो या नहीं कोई बात नहीं 

Thursday, May 16, 2019

स्वयं को अच्छा साबित करने की हमारी सब कोशिशें बेकार हैं
हमें अच्छा या बुरा समझना औरों का जन्मसिध्द अधिकार है

Wednesday, May 15, 2019

वक़्त, कुछ लम्हे किसी दीवानगी में रंग दिया करता है
वक़्त की धूप, ज़िंदगी में से वह रंग उड़ा दिया करती है

दीवानगी ने ज़िंदगी में करीब ला दिया होता है जिनको
दीवानगी जहाँ ख़त्म वहाँ उनमें फ़र्ज़ की शुरुआत होती है

मेहबूब तेरे जाने ने शायर बना दिया
मेहबूब तेरी अब हमें जरूरत क्या है

Tuesday, May 14, 2019

किसी के किये का अहसान मानते हैं तो
 बेगम के लिए हिचक कैसी?
वज़ूद ही जिसने सारा ख़ुद का,
तुममें मिला दिया होता है

किसी के विचारों की अधीनता-चाहरदीवारियों में जीवन का अधिकाँश समय बिता देना आपको गवारा है? यदि नहीं तो नारी को आदर दीजिये,वह करती है

Monday, May 13, 2019

वह भूल थी मेरी, फिर भूल की मैंने, और मुझसे एक भूल आज हुई
भूल करके समझने का सिलसिला रहा ज़िंदगी मंजिल पर पहुँचते गई
हम मज़ा कैसे ले सकते थे, ओ ज़िंदगी
तुझे समझने की कोशिश में मशरूफ थे

Sunday, May 12, 2019

अच्छा कोई इसे कहता अच्छा कोई उसे कहता
इस-उस के विवाद में बस अच्छा कोई न करता

बहुत सा समझा हमने थोड़ा कुछ और समझ जायेंगे
फिर भी ज़िंदगी के अनेक रहस्य नासमझे रह जायेंगे

Friday, May 10, 2019

एक सच्ची बात, किसी की ज़िंदगी बदलने के लिए काफी होती है
इस लक्ष्य से लिखीं कई बात की, लिखने वाले के लिए माफ़ी होती है

ख़ुद से जो मुलाकात करले बिरले ही कुछ होते हैं
ख़ुद को जिसने जान लिया खुदा उनको कहते हैं

Wednesday, May 8, 2019

देर न लगेगी तुम दुनिया से गुम हो जाओगे
गुम हो जाना मगर तुम उसूल न गुमने देना

हमारी ज़िंदगी में तुम क्यूँ हमारे राज हुए
राजदार होकर हर कोई हम पर हँसता है

हमारी ज़िंदगी में तुम क्यूँ हमारे राज हुए
राजदार हमारा जो होता वही हम पर हँसता है

यह गुलिश्तां डिज़ाइन कुछ यूँ है कि
महकने के लिए नई कली होना होता है 

Saturday, May 4, 2019

कई मायूस कि - हम मशरूफ उनके ख्यालों में हैं
हम मायूस कि - वे मशरूफ़ किन्हीं और ख्यालों में हैं

Friday, May 3, 2019

चार दिनी ज़िंदगी के इस सफ़र में एहतियात रखी
कि मेरी ख़ुशियाँ औरों की ख़ुशी की राह नहीं काटें

जब सवाल तेरी मेरी ख़ुशियों में तकरार का आया
अपने लिए थोड़ी ख़ुशी मंजूर कर तकरार को टाला 

Thursday, May 2, 2019

तुमसे मोहब्बत की थी हमने, यह जिम्मेदारी थी तुम पर
निकाह करते-न करते, हमारी ख़ुशी का तुम इंतजाम करते

बेपनाह मोहब्बत हमसे महज़ शेखी थी तुम्हारी
निक़ाह न कर सके तो ज़माने में रुसवा कर दिया

तेरा साथ था हासिल मुझे
मैं खौफ़जदा रहता था
बदकिस्मती साथ खोया,
ख़ुशकिस्मती बेख़ौफ़ जिया करता हूँ


Wednesday, May 1, 2019

ज़िंदगी के पर्चे में कई सवाल और विकल्प जबाब थे
अब जाँच रहे हैं कि हमने कितने विकल्प ग़लत चुने

ख़्वाहिश नहीं कि मेरी मय्यत में भीड़ का सैलाब लगे
गर दो अश्क़ तन्हाई में तुम बहाओ ये मेहरबानी होगी