Tuesday, December 22, 2020

काश! काश! काश! (6)...

 काश! काश! काश! (6)...

नेहा जी ने कहा - यह बहुत अच्छा रहा, आप मिल गई हैं। मैं, आजकल बहुत परेशान चल रही हूँ। मन में दुःख का गुबार लिए बैठी हूँ। चाहती थी कोई अपना मिल जाए जिससे, अपनी पीड़ा कह कर कुछ हल्की हो सकूँ। 

वह कह चुकी तो मैं सोचने लगी क्या हो सकती है नेहा जी कि पीड़ा? यदि नवीन ने, मेरे साथ किये की सच्चाई, नेहा जी को बताई होती तो ये, अपने पति के किये पर शर्मिंदा होकर, खेद या माफ़ी से बात शुरू करतीं। मैंने पूछा - 

आपने, मुझे ऐसा अपना एवं हितैषी माना है कि जो आप, किसी से नहीं कह सकती वह मुझसे कह रहीं हैं, इसके लिए मैं आभारी हूँ। आप बताएं, क्या बात आपको परेशान कर रही है? मुझसे, आपकी परेशानी दूर करने के लिए जो बन सकेगा वह करने में मुझे ख़ुशी होगी। 

नेहा जी ने बिना लाग-लपेट के सीधे कहना शुरू किया - 

यह कोई 15 दिन पहले की बात है। नवीन, ऑफिस से रात देर घर आये तब व्यथित थे। उन्होंने, मुझे बताया कि एक कुलीग की लिफ्ट मांगने पर वे, अपनी बाइक पर उसे बिठाकर छोड़ने जा रहे थे। तब रास्ते में, उस कुलीग ने बाइक पर नवीन से बहुत चिपटा-चिपटी की थी। मैं, उनकी बात का उसी दिन भरोसा नहीं कर पाई थी। फिर मैं, पिछले 15 दिनों में नवीन की मनःस्थिति देखती रही हूँ। नवीन को देख कर मुझे संदेह नहीं रहा कि उन्होंने मुझे झूठ बताया है। जबकि सच कुछ और है। 

फिर चुप होकर नेहा जी मुझे देखने लगीं। मैं, नवीन की मक्कारी से आहत हुई थी। नेहा जी से अपने मनोभाव छुपाने की मैंने, असफल कोशिश की  थी। 

तब नेहा जी ने आगे कहा - 

आज आपको, यहां देख मुझे आशा बंधी है कि आप, सच क्या है? यह जानने में मेरी सहायता कर सकती हैं। आप और नवीन, ऑफिस में साथ ही काम करते हैं। हो सकता है कि उसके साथ, जो कुछ हुआ है उसे लेकर, वहाँ ऑफिस में कोई चर्चा रही हो जिसे आप भी जानती हो। 

यह नवीन की दोहरी मक्कारी थी। उसने मेरी गरिमा को क्षति पहुंचाई ही थी। मेरा विश्वास भी तोड़ा था। फिर घटना को अपने तक सीमित नहीं रखकर, अपने को निर्दोष बताने की चेष्टा करते हुए नेहा जी को, सफेद झूठ गढ़ कर सुना दिया था। वहाँ भी वह असफल ही रहा, उसकी पत्नी ही उसकी बात को सच मान नहीं सकी थी। 

यह, नवीन कैसा कापुरुष है? कामुकता वशीभूत हुई भूल स्वीकार करने के नैतिक साहस के अभाव में नवीन ने दो-दो स्त्रियों से छल किया है। क्षुब्ध हुई मैं, भूल गई कि ऋषभ ने मुझसे, नेहा जी के सामने इस तरह से पेश आने को कहा था कि जैसे मेरे साथ, नवीन ने कुछ किया ही नहीं है।  

ऋषभ और मैंने, उस रात यह तय किया था कि नेहा जी को सच बताकर, हमें, उनकी और बच्चों की खुशियों को प्रभावित नहीं करना है। मेरे नहीं बताने पर भी मगर, नेहा जी की खुशियाँ प्रभावित हो गई थीं। साफ़ था कि किसी का कुछ गलत करना, प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से कई व्यक्तियों को दुष्प्रभावित कर देता है। समाज संरचना में पारिवारिक संबंध इस रूप से ही गुने-बुने होते हैं। 

नेहा जी के कहने के बाद, जब मैंने, कुछ कहने में देर लगाई तो शायद नेहा जी को मुझ पर ही संदेह हो गया था। मेरी शक्ल पर 12 बजा हुआ देख कर उन्होंने अधीरता से पूछा - 

क्या हुआ रिया जी, मैंने जो कहा उससे आप व्यथित दिख रही हैं?         

उनके इस प्रश्न के बाद मैंने, मन ही मन कुछ तय कर लिया था। तब मैंने स्वयं को संयत करते हुए सधे स्वर में कहना शुरू किया - 

ऋषभ और मैंने जो तय किया था उस अनुसार, जो मैं, आपको आगे बताने जा रही हूँ वह मैं, आपको कभी नहीं बताती अगर, नवीन ने इस संबंध में यह झूठ आपसे नहीं कहा होता। 

यह सुनकर नेहा जी की जिज्ञासा बढ़ गई। उनके हाव भाव से दिख रहा था कि मेरा मुंह खुलता देख, उन्हें नवीन की सच्चाई शीघ्र ही पता हो जाने वाली है। तब मैंने नेहा जी के दोनों हाथ अपने हाथ में वैसे ही लिए थे जिस तरह से नवीन ने, उस शाम मेरे हाथ पकड़े थे। फिर बताया - 

नेहा जी, 15 दिन पहले नवीन ने हनुमानताल के पास बाइक रोककर मेरे हाथ ऐसे ही पकड़े थे और मुझसे कहा था -

“मेरी डार्लिंग, प्राणप्रिया, मैं, तुम को अपनी जान से ज्यादा प्यार करता हूँ।”

जी हाँ, नेहा जी वह कुलीग मैं ही थी। मैंने प्रतिरोध कर उससे पीछा छुड़ाया था। घटना का होना जैसा नवीन ने आपको सुनाया है, वह सफेद झूठ है। सच्चाई यह है कि नवीन से घर तक लिफ्ट लेने के पहले तक उसके लिए मेरे मन में जो विश्वास था, उस विश्वास का बलात्कार, मेरे साथ ऐसा करते हुए कर दिया था। 

नेहा जी यह अप्रिय सच सहन नहीं कर सकी। उन्होंने पीड़ा पूर्वक कहा - आपके साथ ऐसा करके नवीन ने मेरे विश्वास का भी बलात्कार किया है। 

फिर एकाएक नेहा जी ने रुष्टता से मुझसे कहा - 15 दिन हुए, आपने मुझसे मेरे पूछने के पहले यह क्यों छुपाये रखा, इसका क्या कारण है आप, मुझे बताओ?

मैंने कहा - ऋषभ से जब मैंने अपने पर बीती सब बताई थी तो, उन्होंने आपसे कहने को यह कहते हुए मना किया था कि, आपसे बताये जाने पर, आप दोनों में झगड़ा हो सकता है। जिसके कारण आपके और आपके बच्चे निर्दोष होते हुए भी दुःख भोगने को मजबूर हो सकते हैं। 

अब नेहा जी ने अविश्वास से मुझे देखा और पूछा - आपने ऋषभ जी से, यह सब बताया है?

मैंने कहा - 

मुझ पर दुःख, मेरी सहनशीलता से अधिक हो गया था। नवीन का बेड टच, मेरे शरीर को ही नहीं मेरी आत्मा को बींध रहा था। मैं, ऋषभ के विश्वास के संबल में जीती रही हूँ। इस कारण से, उसी रात मैंने, उनसे सब कह दिया था। 

मेरे पति, बहुत अच्छे हैं। कोई और पति होता तो शायद, इस बात के लिए गुस्सा करके पत्नी का मनोबल तोड़ देता। ऋषभ ने आत्मीय साथ देकर, उस रात मुझे टूटने नहीं दिया था।                

मेरे असहनीय वेदना के समय में, ऐसा साथ देकर ऋषभ ने, हम में बँधी परिणय सूत्र की गाँठ और मजबूत कर ली है। सच कहूँ तो ऐसा कहना अधिक सटीक होगा कि ऋषभ ने मुझे जन्म-जन्मातर तक के लिए अपने से जोड़ लिया। 

इतना कह -सुन लेने के बाद नेहा जी और मुझमें और किसी बात की गुंजाइश नहीं रह गई थी। हम, अपने बच्चों के पास आ बैठे थे। फिर स्कूल के समारोह की समाप्ति पर हम, अपने अपने घर के लिए चल दिए थे। 

अपने घर पहुँच कर नेहा रोबोट हो गई थी। वह, अपने सब कार्य यंत्रवत कर रही थी। मगर उसके मुख पर भावशून्यता प्रदर्शित हो रही थी। 

नवीन पिछले 15 दिन से नेहा की उपेक्षा अनुभव कर रहा था। मगर उसे समझ नहीं आ रहा था कि आज क्या हुआ है जिससे नेहा, उसके प्रति ही नहीं बल्कि बच्चों के प्रति भी बिलकुल उदासीन दिख रही है। 

उस रात नवीन को यह देखना ही बाकी रह गया था कि 15 दिन से जो नेहा, उसे हाथ नहीं रखने देते हुए भी उसके बगल में सोती थी, वह आज बच्चों के पास जाकर लेट गई थी। 

हाँ, लेटी होना ही सही शब्द था। बच्चे सो चुके थे मगर, नेहा की आँखों में नींद नहीं थी। वह गहन विचारों में डूबी हुई थी। 

वह सोच रही थी कि पुरुष दो एवं स्त्री भी दो थीं। पराये पुरुष की मर्यादाहीनता से पीड़ित रिया को, उसके पति के विश्वास और संबल ने घटना वाली रात ही संभाल लिया था।  ऐसे उनके परिवार की ख़ुशी सुनिश्चित हो गई थी।

दूसरा पुरुष नवीन था जिसने पहले रिया को अपनी मर्यादाहीनता से पीड़ित किया था। फिर पत्नी (नेहा) को प्रत्यक्ष पीड़ित ना होते हुए भी अपने कुटिल बहानेबाज़ी से परोक्ष रूप अधिक पीड़ित कर दिया था। 

रिया एवं ऋषभ जिन्होंने, नेहा और बच्चों के सुख प्रभावित ना हो जाएँ, इस उद्देश्य से अपने पर दुर्व्यवहार को ख़ामोशी से सह लिया था। जबकि नवीन ने अपनी बार बार की गई मूर्खता से, नेहा के सुख को नष्ट कर दिया था। 

रिया के द्वारा नवीन को दंडित करने का काम स्वाभाविक था, मगर नेहा ने उसे भूल सुधार का अवसर दे दिया था। यह मगर नियति को स्वीकार न हुआ कि नवीन अपनी बुरी करतूत के दंड से बच जाए। 

नवीन ने झूठे दोषारोपण के असफल हुए प्रयास से स्वयं पर अनायास दंड आरोपित कर लिया था। उस दंड की जद में परिवार में जुड़े होने से नेहा और उनके बच्चे भी आ गए थे। 

नेहा सोच रही थी, कदाचित आर्थिक रूप से आश्रित होने से, नवीन ने उसे हल्के से लेने की भूल की है। यह नवीन की गलतफहमी थी कि नेहा का आश्रित होना, नवीन का मनमाना कुछ भी किया सहन करने के लिए नेहा, को मजबूर करेगा। 

नेहा सोच रही थी कि उसे, नवीन की यह गलतफहमी इसी मौके पर दूर कर देनी चाहिए। यही उनके परिवार के हित में नेहा को उचित लग रहा था। 

उसने खूब सोचा कि क्या, नवीन, नेहा पर आश्रित है या नहीं? परिवार की दिनचर्या पर दृष्टि डालने से नेहा को स्पष्ट लग गया कि, निर्भरता - नेहा की नवीन पर जितनी है, उससे बहुत अधिक नवीन की नेहा पर है। 

तब आगे नवीन को क्या सबक/दंड जरूरी है यह नेहा ने सोने के पूर्व ही तय कर लिया था। 

सुबह वह उठी थी, यह दिन रविवार था। बच्चे एवं नवीन अवकाश होने से सोये हुए थे। नेहा ने अपने एवं बच्चों के कपड़े और जरूरी सामान, सूटकेस एवं बैग्स में पैक किये थे। फिर नाश्ता और खाना बनाया था। 

नवीन जब सोकर उठा तो उसने ये सूटकेस - बैग्स देखे थे। तब वह चिंता से नेहा के पास आया उसने पूछा - नेहा यह सब क्या है? कहाँ जाने के लिए ये पैकिंग की है?

नेहा ने सर्द स्वर में कहा - दो महीने के लिए मैं और बच्चे, शहर में ही मेरे भाई के घर रहेंगे। 

नवीन ने रिरियाते हुए पूछा - मगर क्यों, नेहा?

नेहा ने सर्द स्वर में ही आगे कहा - 

मुझे आप की खोटी करनी का पता चल गया है। अब दो महीने के समय में यदि आपने, किसी अन्य प्राणप्रिया की तलाश और उससे संबंध स्थापित नहीं किए तब, दो महीने बाद मुझे और बच्चों को लिवाने आ जाइयेगा। इस बीच बच्चे, स्कूल जाना आना, वहीं से कर लेंगे। आज के लिए मैंने, आपका नाश्ता और भोजन तैयार कर दिया है। 

नवीन अब आत्मसमर्पण कर देने वाली मुद्रा में आ चुका था, बोला - नेहा, मुझे क्षमा कर दो। अब आगे मुझसे ऐसी भूल कभी ना होगी। 

नेहा ने कहा - मैं यह अवसर देकर आपको क्षमा ही तो कर रही हूँ। आप चाहेंगे तो मैं, दो महीने बाद वापस आ जाऊंगी। यह दो महीने का समय मैं, इसलिए आपको दे रही हूँ कि आप खूब अच्छे से समझ लें कि परिवार के सुख सुनिश्चित करने के लिए “डूस एन्ड डोन्ट्स” क्या होने चाहिए। 

इस के लगभग दो घंटे बाद, नेहा ने ऑटो रिक्शा बुला लिया था। तब नवीन पश्चाताप में डूबा औरतों की तरह रो रहा था। 

मगर आज नेहा सख्त थी, उसके मन में नवीन के लिए आज कोई रियायत नहीं थी। वह, अपने बच्चों समेत, ऑटो में बैठ चुकी थी। 

बच्चे कुछ समझने योग्य हुए नहीं थे। वे, कुछ नहीं समझे थे और ऑटो में से हाथ हिलाकर कह रहे थे - बाय बाय, पापा …        

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन

22-12-2020


Monday, December 21, 2020

काश! काश! काश! (5)...

 काश! काश! काश! (5)...

मुझमें, रात हुई ऋषभ से चर्चा ने तब, साहस का संचार कर दिया था। तब मुझे लगा था कि मुझे अब कोई कठिनाई नहीं बची है। कार्यालय में जाकर मुझे क्या करना, नवीन से क्या कहना है, ऋषभ के बताने पर मैंने, उस योजना पर हाँ भी कर दी थी। 

फिर, तब के आत्मविश्वास में मैंने, ऋषभ के साथ का जी भर आनंद उठाया था। रात सोते हुए मुझे सब सामान्य हुआ लग रहा था। 

सुबह जब मैं नींद से जागी तब मुझे, ऑफिस जाने के विचार ने फिर परेशान कर दिया। इस बात से कि कार्यालय में मुझे, नवीन का सामना करना पड़ेगा मेरा आत्मविश्वास डोल गया था। अपनी नित्य क्रियाओं के साथ साथ ऋषभ सहित मैंने, बच्चों को स्कूल के लिए तैयार किया था। बाद में किचन में व्यस्त रहते हुए, हमारा ऑफिस जाने का समय हो गया था। 

अपने मन में उठ रहे भय को मैंने, ऋषभ से नहीं कहा था। ऋषभ समझ रहे थे कि रात उनके समझा दिए जाने पर, मुझे कोई समस्या नहीं रहनी चाहिए। ऐसे में सुबह फिर उस चर्चा को छेड़कर, मैं ऋषभ को परेशान नहीं करना चाहती थी। 

मेरी स्कूटी ख़राब होने से, ऋषभ ने मुझे ऑफिस छोड़ा था। साथ ही सर्विसिंग वर्कशॉप में कॉल करके, स्कूटी रिपेयर करने के लिए बता दिया था। 

जब मैं, ऑफिस पहुँची तो मुझमें अंदर घबराहट भरी हुई थी। कुछ देर में पता चल गया था कि नवीन ने कुछ दिनों की छुट्टी ली है। तब मुझे अच्छा अनुभव हुआ कि कल के दुस्साहस के बाद वह, आज मेरा सामना करने का साहस नहीं कर सका है। इसलिए भी अच्छा लगा कि विश्वासघाती की (मनहूस) शक्ल, मुझे कुछ दिन नहीं देखनी पड़ेगी। 

बाद का दिन कार्यालय के कामों में व्यस्त होकर, नित दिन की भाँति बीत गया था। ऑफिस छूटने तक मैकेनिक, मेरी स्कूटी भी सुधार कर दे गया था। अपनी स्कूटी से मैं, घर पहुंची तो मानसिक रूप से शांत थी। 

कुछ देर बाद ऋषभ का कॉल आया था। उन्होंने बताया कि ऑफिस में चल रहे सेमिनार में विदेश के लोग भी आये हैं। डिनर उनके साथ करनी है अतः घर लौटने तक मुझे 11.30 बज जाएंगे। मैंने, ठीक है, कहा था। 

फिर मैं चेंज करके, बच्चों के साथ व्यस्त हो गई थी। बच्चों को खिलाते हुए मैंने भी डिनर की थी। 9.30 तक बच्चे सो गए थे। तब मैंने, टीवी चलाने की जगह, बिस्तर पर शवासन में लेटना पसंद किया था। 15 मिनट ऐसे लेटने से मेरा चित्त शांत हो गया था। 

अब मैंने सिरहाने से टिक कर डायरी और पेन ले ली और सोच रही थी कि क्या लिखना चाहिए। फिर मैंने एक विषय तय कर, उस पर सोच सोच कर लिखना शुरू कर दिया। लिख थोड़ा ही सकी थी मगर समय ज्यादा लग गया था। कॉल बेल के बजने पर, घड़ी पर निगाह डाली तो, 11.25 हुए देख, लगा कि ऋषभ आ गए हैं, मैंने द्वार खोले थे। 

ऋषभ ने पूछा - सो गई थीं, क्या? 

मैंने कहा - नहीं, डायरी का पन्ना गोद रही थी। 

ऋषभ ने पूछा - क्या, लिख रही थीं?

मैंने कहा - आप खुद पढ़ लेना। 

फिर ऋषभ वॉशरूम गए थे। वे डिनर करके आये थे अतः मुझे, कुछ करना नहीं था। मैं बेड पर आकर लेट गई थी। लेटते ही मुझे नींद आ गई थी। अतः ऋषभ का बिस्तर पर आना मुझे पता नहीं चला था। 

अगली सुबह बच्चों को तैयार कर रही थी। तब ऋषभ उठकर आये थे। प्रशंसा करते हुए बोले - वाह! रिया बहुत अच्छा लिख लेती हो। 

मुझे याद आया कि डायरी पढ़ने के लिए कल, ऋषभ से मैंने ही कहा था। 

मैंने कहा - थैंक्यू। 

ऋषभ शरारती स्वर में बोले - इससे काम नहीं चलेगा। मैं, समझ गई थी ऋषभ के मन में क्या है। 

फिर बच्चे स्कूल चले गए थे। मैड को आने में समय था। ऋषभ और मैंने तब प्यार करते हुए कुछ समय बिताया था। फिर तृप्त हुए ऋषभ ने बताया - मुझे ऑफिस थोड़ा जल्दी पहुंचना है। 

कहते हुए वे स्नान को चले गए थे। तारीफ का मैंने क्या लिखा है, यह देखने के लिए, डायरी उठा ली थी। रात मैंने लिखा था - 

“पुरुष, तुमने मुझसे कहा था - हे नारी, तुम मेरे जीवन की धुरी हो, तुम मेरे घर की इज्जत हो। 

मैं भोली-भाली, तुम्हारी बातों पर विश्वास कर बैठी थी। मैंने अपनी अभिलाषाओं के डैने समेट कर किसी धुरी जैसे ही, स्वयं को, तुम्हारे घर में स्थापित कर लिया था। 

पुरुष तुम्हें, मैं, खुले नीले आसमान में उड़ान भरते हुए आनंद से भरा देखा करती, मेरा मन तो तुम्हारी जैसी ही उड़ान का आनंद लेने को होता। मगर मुझे, तुम्हारा कहना स्मरण आता कि मैं, धुरी हूँ। तब मैं, तुम्हारी इस बात को गंभीरता से निभाने में फिर लग जाती थी। निरंतर ऐसा करते हुए मैं विस्मृत कर चुकी थी कि मेरी भी जीवन में कुछ अभिलाषायें थीं। 

ऐसा करते हुए भी मैं, कोई शिकायत नहीं रखती थी मगर, तुम में से कुछ पुरुष, हममें से कुछ नारी को घर से अगुआ कर अपने हरम में रख कर शोषित करने लगे। कुछ पुरुष, हम पर गृह हिंसा करने लगे। कुछ ने, हमारा प्रयोग, सिर्फ बच्चा पैदा करने वाली मशीन एवं अपने पैर दबाने वाले दास जैसा मान लिया। 

कुछ ने हमें अपनी आश्रिता रखने की कीमत, ‘हमसे विवाह’ करते समय दहेज लेकर वसूल करनी शुरू कर दी। कुछ ने, हममें से कुछ को अगुआ हुआ देख, अपने घर की इज्जत लुट जाने जैसी मान ली। कुछ को हमारे विवाह पर दहेज दिया जाना, भारी लग गया। 

इन समस्याओं के समाधान के लिए, पुरुष तुमने, हम पर पदों की मोटी असुविधाजनक परतें लादने और कहीं कन्या भ्रूण को गर्भ में ही मारने में मान लिया।  

हमारा अगुआ होना, हमारे साथ दहेज का आवश्यक किया जाना, तुमसे बड़ी स्वयं हमारी विपत्ति थी। 

तुमने हमें अपने जीवन की धुरी बताया था। ऐसे में हम पर ऐसी विपत्तियां  आशंकित ना हों, इस हेतु समाज के कर्ताधर्ता बने तुमसे, अपेक्षा यह थी कि तुम अपनी धुरी पर आये संकट के समाज के चलन को ठीक करते। 

हमें अगुआ होने से बचाते, हम पर बलात्कार की आशंकायें ना रहें यह व्यवस्था बनाते। दहेज़ जैसी बुराई का उन्मूलन करते, मगर तुमने घर में बेटियों का उन्मूलन शुरू कर दिया। 

यह देख मेरा, पुरुष तुम पर से विश्वास उठ गया। मुझे तुम्हारे समाधान की योग्यता पर से विश्वास उठ गया।

मुझे लगा कि अपने जीवन की धुरी बताना एवं हमें अपने घर की इज्जत निरूपित करना, यह समाधान, तुम्हारी एकतरफा स्वार्थ अपेक्षा से प्रभावित था। 

सदियों तुम्हारे छल को ना समझ कर मैंने जी लेने के बाद, मुझे अब और छला जाना स्वीकार ना रहा है। 

मैंने स्वयं से तर्क किया कि अगर, जीवन से अपनी अभिलाषाओं की पूर्ति के लिए जब तुम्हें, अपनी धुरी कही गई नारी की जीवन अभिलाषाओं की कदर नहीं तो मुझे, तुम्हारे घर के मान की कदर में, अपने हित क्यों त्याग करने चाहिए। 

मैं, अपने पर से परदों को एकबारगी में परे कर उठ खड़ी हुई हूँ। मैंने घर में कैद रह जाने की विडंबना से विद्रोह कर दिया है। मैंने अपने डैनों को फैला कर, स्वयं खुले आसमान में, तुम्हारी तरह उड़ान भरना आरंभ कर दिया है। 

पहले वस्त्रों में लदी होते हुए भी तुम्हारी दृष्टि अपने पर देख मैं, लजा जाया करती थी। अब मैंने, अपने पर आधुनिक परिधान सुशोभित करना आरंभ कर दिया है। जिनके होने से अब मैं, तुम्हारी कामुक, ललचाई दृष्टि अपनी देहयष्टि पर देखती हूँ। 

मैं, अब बदल गई हूँ पहले की तरह मुझे इससे लाज अनुभव नहीं होती है। मेरा तर्क कहता है कि जब तुम कुछ भी पहनने, करने को स्वतंत्र हो तो मैं भी ऐसा क्यों ना करूं? 

मैं अब अगर अपने पर, तुम्हारी दृष्टि ख़राब देखती हूँ तो मुझे यह मेरी समस्या नहीं लगती है। इस दृष्टि से अगर तुम्हारे भीतर खराबी आती है, तुम मेरे बारे में सोचकर अपना समय व्यर्थ करते हो तो, इससे मेरा कुछ ख़राब नहीं होता है। मैं, मुझे जो पसंद है उसे करके प्रसन्न रहती हूँ।”

यद्यपि ऋषभ ने, इसे पढ़कर मेरे लेखन की प्रशंसा की थी। तब भी भावावेग में मेरा ऐसा लिखना उचित था या नहीं मैं, खुद नहीं जानती थी। फिर उस दिन ऋषभ और मैं बारी बारी से तैयार होकर ऑफिस चले गए थे। 

तीन दिन और ऐसे बीते थे। 

चौथे दिन जब मैं, ऑफिस में काम कर रही थी तब अपराह्न, मुझे मेरे नाम का एक लिफाफा दिया गया। क्या है इसमें, इस जिज्ञासा में मैंने, लिफाफा खोला था। उसमें अंदर मेरे, ट्रांसफर का आदेश था। मुझे, कल से सिविल लाइन्स वाले कार्यालय में काम पर उपस्थित होने को निर्देशित किया गया था। 

मुझे स्मरण आया था कि छह महीने पूर्व, हमारे क्रय किये गए नए फ्लैट से पास होने के कारण मैंने, बॉस से सिविल लाइन्स कार्यालय में ट्रांसफर किये जाने का निवेदन क्या था। आज यह आदेश पाकर मैं, प्रसन्न हुई थी। 

इस आदेश की टाइमिंग बहुत अच्छी थी। शायद कल से ही नवीन, वापस ड्यूटी पर आने वाला था। इस आदेश की प्राप्ति के बाद मुझे, कल से इस कार्यालय में नहीं आना था। अर्थात जो मैं चाहती थी वह परिस्थिति निर्मित हो गई थी। मुझे विश्वासघाती नवीन का, नित दिन मुंह देखने की विवशता ना रही थी। 

मैं नहीं जानती थी कि इस आदेश की पृष्ठभूमि, मेरा निवेदन नहीं कुछ और था। मैं, बॉस को धन्यवाद कहने गई थी। बॉस ने मेरे धन्यवाद का मुस्कुरा कर उत्तर देते हुए कहा - रिया आप, मेरे अधीनस्थ कार्य करने की विवशता से मुक्त होकर  खुश हो?

मैं, बॉस के सेंस ऑफ ह्यूमर से खुल कर हँस पड़ी थी। मैंने उन्ही के लहजे में उत्तर दिया था - जी, सर बहुत खुश हूँ। 

तब बॉस ने बताया - रिया, दरअसल मुख्यालय से निर्देश थे कि हमारे कार्यालय में लंबे समय से पदस्थ में से, कुछ कर्मी स्थानांतरित किये जायें। आप और नवीन इस कार्यालय में सब में पुराने कर्मी थे। किसी एक को ट्रांसफर करने के विकल्प में मैंने, तुम्हारे पूर्व निवेदन का स्मरण आने पर तुम्हारा ट्रांसफर उचित समझा है। 

मैंने कहा था - सर बहुत बहुत आभार, फिर उनसे हाथ जोड़कर विदा ली थी। अब मुझे खुलासा हुआ था कि बॉस ने, मेरी नहीं स्वयं अपनी चिंता की है। मैं जानती थी कि अपनी कार्य क्षमता के कारण नवीन, बॉस के लिए मेरी अपेक्षा ज्यादा उपयोगी अधीनस्थ है। 

खैर कारण जो भी था। मेरे मनोनुकूल होने से मैं, उस दिन ख़ुशी ख़ुशी घर लौटी थी। नवीन भी इस आदेश के मालूम पड़ने पर खुश हुए थे। मेरा सिविल लाइन्स कार्यालय, मेरे फ्लैट से पैदल चल सकने जितनी दूरी पर था। 

इस अवधि में मेरा, नेहा से संपर्क व्हाट्सएप संदेशों के माध्यम से बच रह गया था। पहले तो कभी कभी हम, कॉल कर लिया करते थे मगर, इधर कुछ दिनों से, ना नेहा जी ने और ना ही मैं, कॉल कर सकी थी। 

फिर मेरे बच्चों के स्कूल का ‘वार्षिक दिन’ आया था। सांस्कृतिक कार्यक्रम पर आमंत्रित होने के कारण, हम पेरेंट्स स्कूल गए थे। मेरा ध्यान नहीं गया था मगर हमें वहाँ देख, नेहा जी अपने बच्चों सहित, हमारी पास वाली सीट पर आकर बैठ गई थीं। नेहा जी, अपने बच्चों के साथ अकेली थीं, जबकि मैं ऋषभ के साथ थी। 

कार्यक्रम चल रहे थे। मेरे और नेहा जी के बच्चे आपस में मिल जाने पर ख़ुशी से बतिया रहे थे। तब नेहा जी ने, मुझसे अलग चलकर बैठने का आग्रह किया था। मैंने ऋषभ को हमारे और नेहा जी के बच्चों पर ध्यान देने कहा था। फिर नेहा जी और मैं, पीछे की कतार में रिक्त पड़ीं सीट्स में से दो पर आ बैठी थीं। 

यहाँ स्पीकर की आवाज का शोर भी कम था। अर्थात नेहा जी और मैं आपस में, आराम से बतिया सकते थे …                         

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन

21-12-2020


Sunday, December 20, 2020

काश! काश! काश! (4)...

 काश! काश! काश! (4)...

नेहा उस रात, अपने पति नवीन की बातों पर विश्वास ना करते हुए उधेड़बुन में थी कि क्या बात है, नवीन अपनी सहकर्मी रिया के बारे में ऐसी शिकायत करते हुए क्यों आया है! 

नेहा ने, मूवीज, टीवी धारावाहिक एवं क्राइम पेट्रोल में कई बार देखा था इसलिए जानती थी कि कुछ पति ऐसे भी होते हैं जो, अपनी पत्नी के साथ प्यार से रहते हुए किसी ‘वह’ (अन्य युवती) के साथ एन्जॉय करते हैं। 

ऐसे में नवीन का बताया गया विवरण, नेहा को मनगढ़ंत और झूठ लग रहा था। उसे लग रहा था कि साथ में लेटा हुआ उसका पति नवीन ही आज, रिया के साथ कुछ गड़बड़ करके आया है। 

अब नेहा यह सोच रही थी कि कैसे, वह सच्चाई की तह तक जाए? नवीन से इस बारे में अधिक पूछताछ करने से अगर वह सही है तो नेहा के संदेह को समझ कर वह उस, पर नाराज हो सकता है। 

रिया से सीधे पूछना भी नेहा को सही नहीं लग रहा था। अगर नवीन, ही रिया के साथ कुछ गड़बड़ करके आया है तो रिया की नाराज़गी ताजी ताज़ी होने से नेहा को, उसकी सख्त प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ सकता है। वैसे तो यह संभावना कम है मगर रिया ने ही अगर, ऐसा किया है तो रिया, कोई झूठी मनगढ़ंत बात कह सकती है। ऐसे में नेहा की उलझन दूर नहीं हो सकेगी। 

नेहा ने सोचा अभी के लिए ऐसा ही ठीक रहेगा कि वह, रिया के आगे दो तीन दिनों में मोबाइल कॉल या व्हाट्सएप मैसेज की प्रतीक्षा करे। उनके आधार पर सच्चाई की परख करे। 

ऐसे ही उद्वेलित कर रहे विचारों के कारण नेहा को, अगले कई घंटे नींद नहीं आई थी। 

इस बीच बगल में लेटा नवीन, करवटें बदलता रहा था। ऐसा लग रहा था कि वह सो नहीं पा रहा रहा था। नेहा ने खुद सोने का बहाना करते हुए, नवीन को बार बार उठते देखा था। कभी वह जल पीने उठता, कभी वॉशरूम जाता इस बीच उसने दो बार सिगरेट भी पी थी। जबकि नेहा उसे रेयर स्मोकर ही जानती थी। 

यह सब देख कर नेहा सोच रही थी कि अगर नवीन कोई गंदा काम करके नहीं आया है तो उसे कोई टेंशन नहीं होना चाहिए था। जबकि नवीन पर तनाव साफ़ दिखाई पड़ रहा था। जिससे प्रतीत हो रहा था कि हो ना हो, नवीन ही आज कोई ख़राब काम करके आया है। 

इससे नेहा का गुस्सा बढ़ गया था। नवीन ने ऐसे में ही, नेहा को अपनी तरफ खींचा था। नेहा गुस्से से भरी हुई थी। उसने, नवीन से झिड़कते हुए कहा था - 

क्या है? आप, मुझे सोने भी नहीं दे रहे हैं जबकि आप जानते हैं कि मुझे बच्चों को स्कूल भेजने और आपके, नाश्ता एवं टिफ़िन तैयार करने के लिए सुबह जल्दी उठना होता है। 

नेहा की इस उग्र प्रतिक्रिया से अपराध बोध से दबे नवीन ने सकपका कर, अपने हाथ वापस खींच लिए थे। नेहा ने मन ही मन तय कर लिया था कि सच्चाई जाने बिना वह, नवीन की यह बात, अपने पर चलने नहीं देगी। 

फिर किस समय नेहा को नींद आई थी उसे याद नहीं रहा था। सुबह अलार्म जब बजा तब, उसकी नींद पूरी नहीं होने से उस पर आलस्य छाया हुआ था। 

उसे रात की बात स्मरण हो आई थी। तब, वह बिस्तर पर निस्तेज पड़ी रहना चाहती थी मगर एक गृहिणी चाहकर भी ऐसा कहाँ कर पाती है। 

बच्चों के स्कूल के लिए तैयार करने के विचार से, उसे विवश होकर उठना पड़ा था। उसने, केजी में जाने वाले अपने दोनों बेटों को जगाया था। स्वयं नित्य कर्म से निबटते हुए वह, उन्हें भी वह तैयार कर रही थी। उसने बच्चों को नाश्ता कराते हुए, खुद चाय पी थी। 

नेहा ने, बच्चों का बेग एवं टिफ़िन तैयार करके, उन्हें स्कूल बस स्टॉप तक छोड़ने जाने के पूर्व, नवीन पर नज़र डाली थी। यूजूअली, इस समय तक नवीन भी उठ जाया करता था। मगर आज अभी, उसके जागने के कोई चिन्ह दिखाई नहीं पड़ रहे थे। 

कोई और दिन होता तो नेहा, नवीन को प्यार से आवाज देकर उठने कहती मगर आज, नेहा के हृदय में वितृष्णा भरी हुई थी। नेहा ने, नवीन को उठाने का कोई प्रयास नहीं किया था। वह बाहर से लॉक कर, बच्चों को छोड़ने चली गई थी। 

बस स्टॉप से वापिस लौट रही थी तब उसे, व्हाट्सएप पर, रिया का गुड मॉर्निंग विश का एक प्यारा सा पिक आया था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि यह सब हो क्या रहा है। उसकी फ्रेंड रिया तो नॉर्मल बिहेव कर रही है। जबकि नवीन, रिया पर पर आरोप लगा रहा है।  

ऐसे ही ऊहापोह में नेहा स्नान-पूजा करती रही थी। जब वह किचन में काम कर रही थी तब नवीन, 9.30 पर उठकर किचन में आया उसने, नेहा से पीने के लिए गुनगुना पानी माँगा था। 

तब नेहा ने पूछा - आज आपको ऑफिस नहीं जाना है, क्या? 

नवीन बोला - बहुत दिन हो गए छुट्टी नहीं ली है। बहुत छुट्टियाँ लेप्स हो जाने वाली हैं। सोच रहा हूँ 5 दिन की छुट्टी ले लूँ। 

नेहा ने कोई उत्तर नहीं दिया। उसे हल्का गर्म पानी दे दिया था। नेहा, सोचने लगी थी कि कल तक नवीन की ऐसी कोई योजना नहीं थी। आज नवीन का अचानक ऑफिस ना जाना, बीते कल में किसी अनहोनी को इंगित कर रहा था।

नवीन दिन भर गुमसुम ही रहा था। तनाव में घर में खाली बैठने से, वह खाने के लिए कभी यह, कभी वह फरमाइश कर रहा था। रुखाई से ही सही मगर नेहा, एक आज्ञाकारी पत्नी की तरह सब तैयार करके देते जा रही थी। 

बच्चे स्कूल से घर लौटे थे। वे, पापा को घर पर ही देख कर खुश हुए थे। मगर नवीन ने, असहज रूप से बच्चों में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई थी। नेहा यह सब भांप रही थी। 

अब पूछने से नेहा, खुद को रोक नहीं सकी थी। उसने जानबूझकर पूछा था -  क्या बात है, आप परेशान दिख रहे हैं? क्या कल की घटना भुला नहीं पा रहे हैं?

इस अचानक से पूछे गए नेहा के प्रश्न से, नवीन के चेहरे पर ऐसे भाव आये थे जैसे किसी चोर की चोरी पकड़े जाने पर होते हैं। वह सिटपिटा गया था। घबरा कर बोला था - 

नहीं नहीं नेहा, ऐसी कोई बात नहीं है। अभी मुझे, हल्का सिर दर्द हो रहा है। 

तब नेहा ने पैन किलर स्प्रे ला कर उसके सामने रख दिया था, और कहा था - यह लगा लीजिए, आराम आ जाएगा। 

फिर अन्य काम करते हुए नेहा, कनखियों से नवीन को देखते जा रही थी। नवीन ने स्प्रे लगाने में कोई रुचि नहीं ली थी। इससे स्पष्ट था कि उसे सिर में दर्द नहीं था। 

नेहा को अब एक बात और साफ़ हो गई थी कि जैसा नवीन परेशान दिख रहा था, वह इंगित करता था कि उसने कल, जो भी गलत काम किया है, वह पहली बार किया है। कोई आदतन अपराधी, गलती करने के बाद यूँ विचलित नहीं रहता है। 

दिन भर घर पर रहने के बाद, शाम को नवीन बाहर जाने लगा था। नेहा ने पूछा - आप बाजार जा रहे हैं, क्या?            

नवीन ने कहा - नहीं, एक जरूरी काम याद आया है। उसके लिए बॉस से मिलने जा रहा हूँ।  

नवीन सीधे ऑफिस पहुंचा था। वह जानता था कि बॉस, देर तक ऑफिस में रहते हैं। जब नवीन ऑफिस पहुंचा तब, पूरा स्टॉफ जा चुका था। बॉस और एक चपरासी ही उस वक़्त वहाँ थे। नवीन यही चाहता भी था। वह दरवाजा खोल कर बॉस के चेंबर में प्रविष्ट हुआ था। 

बॉस ने नवीन को इस समय आया देख अचरज से पूछा - क्या बात है नवीन सब ठीक तो है, ना?

नवीन ने उनके सामने पड़ी कुर्सियों में से एक पर बैठते हुए कहा - नहीं सर एक परेशानी में पड़ गया हूँ। अभी, आपको वही बताने आया हूँ। 

बॉस ने अपने सामने खुली फाइल को एक तरफ सरकाते हुए पूछा - बताओ क्या बात है?    

नवीन ने कहा - सर, मुझसे कल एक बड़ी भूल हो गई है। रिया मैडम का मुझसे, अपनापन वाला व्यवहार मैंने, गलत समझ लिया था। इस गलतफहमी में, मैंने कल ऑफिस से लौटते में उनसे, उनके हाथ पकड़कर अपने प्रेम की बात कह दी। रिया, इससे बहुत गुस्सा हो गई थी। कल वह रोते हुए अपने घर गई थी। 

इसे सुनकर बॉस, तनाव एवं आक्रोश में दिखाई दिए, उन्होंने कहा - 

नवीन यह हरकत तुम कैसे कर गए। तुम और रिया दोनों ही विवाहित हो। दोनों के दो दो बच्चे भी हैं। 

नवीन दुःख प्रकट करते हुए बोला - सर भूल हो गई, कल मेरी मति भ्रष्ट हो गई थी। अब आप ही मेरी सहायता कीजिये, वरना में बड़ी परेशानी में पड़ जाऊँगा। 

तब बॉस ने कुछ सोचने के बाद कहा - आज आप ने छुट्टी ली थी मगर रिया दिन भर ऑफिस में थी। रिया का व्यवहार मुझे और दिनों जैसा ही सामान्य अनुभव हुआ है। नेहा ने, मुझसे ऐसी कोई चर्चा नहीं की, ना ही मेरे सामने उसका कोई शिकायत पत्र आया है। 

बॉस ने फिर दो पल चुप रहने के बाद पूछा - बताओ आप, मुझसे क्या सहायता चाहते हो?

नवीन ने लगभग गिड़गिड़ाते हुए कहा - 

सर, रिया मुझे बहुत सम्मान देते रही है। मेरी कल की गई घिनौनी हरकत के बाद, मैं उसकी नज़रों से गिर गया हूँ। मुझे अपने किये पर बहुत ग्लानि है। ऐसे में, रिया का सामना करना मेरे लिए अत्यंत अवसाद देने वाली बात होगी। सर, मैं प्रार्थना करता हूँ कि आप मेरा ट्रांसफर, सिविल लाइन्स वाले ऑफिस में कर दें। ऐसा होने पर हम दोनों को, आमने सामने नहीं पड़ना होगा।    

बॉस को यह सुनकर राहत अनुभव हुई कि नवीन ने कोई कठिन बात उनसे नहीं चाही है। उन्होंने नवीन से कहा - 

अगले एक दो दिन में पता चल जाएगा कि रिया तुम्हारे विरुध्द कोई शिकायत तो नहीं कर रही है। यह तय होने के बाद, जैसा उपयुक्त होगा, मैं, तुम्हारे निवेदन पर उचित कार्यवाही करूँगा। लेकिन अभी जाने के पहले तुम कसम खाओ कि आगे अपने बच्चों के भविष्य की खातिर ऐसी गंदी हरकत कभी ना करोगे। 

 नवीन ने तब खड़े होकर अपने दोनों कान पकड़ते हुए कहा था - 

सर, मुझे इस बुरे समय में अभी बचा लीजिये। मैं कसम खाता हूँ कि आगे कभी ऐसा गलत काम कभी ना करूँगा। 

तब बॉस ने पूछा - आपने कितने दिन की छुट्टी अप्लाई की है। 

नवीन ने बताया - सर, पाँच दिन की छुट्टी का आवेदन किया है। इस बीच में ही मेरा ट्रांसफर कर दीजिए। मेरी, अभी हाल में रिया को फेस करने की हिम्मत नहीं है। 

बॉस ने कहा - अब आप जाओ। मैं, देखता हूँ कि आपके लिए क्या करना अच्छा होगा। 

नवीन तब लौट आया था। बॉस पर, उसके काम का अच्छा प्रभाव था। वह, उसे बहुत चाहते थे। इसलिए नवीन को आशा हो गई थी कि यदि रिया, लिखित में कुछ नहीं देती है तो बॉस उसकी सहायता अवश्य कर सकेंगे …          

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन

20-12-2020


Friday, December 18, 2020

काश! काश! काश! (3)...

 काश! काश! काश! (3)...

मैं घर पहुँची थी। मेरे उस सहकर्मी के लिए मेरे मन में आदर एवं विश्वास था। उसी ने मेरे साथ बुरी हरकत की थी। जिससे मेरा हृदय संताप से भरा हुआ था। 

हमारे दोनों बच्चे, नैनी के साथ खेल रहे थे। मैं, प्रतिदिन घर आकर पहले, उन्हें चूमकर प्यार करती थी, मगर आज मैं ऐसा नहीं कर सकी थी। आज मैंने, उन्हें देखकर सिर्फ मुस्कुरा दिया था। फिर मैं, सीधे वॉशरूम में घुस गई थी। पहले गीज़र ऑन किया था फिर, लगातार 15-20 मिनट तक शॉवर लिया था। 

उसने, मेरे हाथों को गंदी भावना से छुआ था।  इस कारण मुझे, अत्यंत  ग्लानि हो रही थी। मैं कई कई बार, अपने हाथों को साबुन से धो रही थी मगर वह बुरी चुभन, मेरे मन से निकल नहीं पा रही थी।   

वॉशरूम से निकली थी तब भी मैंने बच्चों को, स्वयं भोजन नहीं खिलाया  था बल्कि नैनी से कहा था - 

शालू, आज मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा है। बच्चों को, तुम ही खिला दो, और हाँ! आज उन्हें सुला कर ही तुम घर जाना। इससे तुम्हें देर हो जाएगी इसलिए मैं, साहब से, साथ में तुम्हें घर तक छोड़ने कह दूँगी। 

शालू ने कहा था - ठीक है दीदी। 

उस दिन ऋषभ को घर आने में देर हो गई थी। रात 9.30 बजे जब ऋषभ लौटे तो बच्चे सो चुके थे। मैंने कहा - ऋषभ, आज शालू को मैंने रोक रखा था। इसे आप, घर तक छोड़ आओ। 

ऋषभ को थकान के कारण, यह पसंद तो नहीं आया था। तब भी वे शालू को छोड़ कर आये थे। फिर वॉशरूम से आने के बाद ऋषभ, डाइनिंग टेबल पर आये थे। उन्होंने, मेरा उदास होना अनुभव कर लिया था। ऋषभ ने पूछा - 

क्या बात है, तुम आज उदास दिख रही हो?

मैं, अब तक अपने को रोके हुए थी। पति के सामने होने एवं उनके इस प्रश्न से, मेरे हृदय में रुकी हुई गहन दुःख की सरिता, आंखों के माध्यम से बह निकली थी। 

मेरे झर झर बहते अश्रुओं को देख ऋषभ सकते में आ गए थे। वे उठकर मेरे पास आये थे। उन्होंने, मेरे चेहरे को अपनी हथेली में लेने का प्रयास किया तो मैंने, इशारे से उन्हें रोक दिया था। फिर रोते हुए, संध्या से अब तक अपने पर बीती हर बात कह सुनाई थी। 

अंत में मैंने, अपने हाथों को देखते हुए कहा - मुझे समझ नहीं आ रहा है कि इनका, मैं क्या करूँ? मुझे, गंदे हुए इन हाथों से बच्चों एवं आपको छूने तक में अपराध करना सा प्रतीत हो रहा है। 

अब ऋषभ मेरे पास ही कुर्सी खींचकर बैठ गए। उन्होंने अपने हाथों में, मेरे दोनों हाथ ले लिए थे। और मेरी हथेलियों को दबाते हुए 5-7 मिनट तक ख़ामोशी से थामे रखा था। फिर मुझसे कहा था - लो, अब तुम सब भूल जाओ। 

ऋषभ कुछ पल चुप रहे थे, फिर कहा था - उसके बुरे स्पर्श का प्रभाव, तुम्हारे पति के प्रेम भरे स्पर्श से, अब खत्म हो गया है। 

मैंने, उन्हें प्यार से यूँ देखा था जैसे कि उनके द्वारा नाराज़गी न दिखाने पर, उनका आभार, आँखों के माध्यम से प्रकट कर रही हूँ। 

ऋषभ ने थके होने के बावजूद, भोजन स्वयं परोसा था। पहले कुछ कौर उन्होंने, अपने हाथों से मुझे खिलाये थे। तब हम दोनों ने चुप रहकर ही भोजन समाप्त किया था। 

उस दिन रोज की तरह, टीवी पर हमने कुछ नहीं देखा था। हम दोनों बिस्तर पर, सिरहाने से टिक कर पास पास बैठे थे। मेरे मन को ठीक करने के लिए बात ऋषभ ने आरंभ की थी, कहा - 

यह बहुत अच्छी बात है कि तुमने दो बच्चों के होने के बाद, जीवन में पहली बार, ऐसे बेड टच का सामना किया है। वरना तो, हमारे समाज में लड़कियों को इस बुराई से, समान्यतः किशोरवय में ही दो चार होना पड़ जाता है। यह द्योतक है इस बात का कि तुम्हारी परवरिश, तुम्हारे पेरेंट्स ने पूर्ण सजगता के साथ की है। 

मैंने कहा - जी हां, यह बात तो है। हमारे पापा, मम्मी हमेशा यह ध्यान रखते रहे थे कि हम बच्चे, किससे मिलते हैं, कहाँ मिलते हैं और किसी से हमारे मिलने का स्थान एकांत तो नहीं होता है। उन्होंने हमारे स्कूल-कॉलेज जाने आने के दिनों में यह भी ध्यान रखा था कि हम अधिक भीड़-भरे साधनों से जाएं-आयें नहीं। 

तब ऋषभ ने मुझे समझाने की मुद्रा में आते हुए पूछा - 

तुम्हारे मन में उस आदमी के बुरे व्यवहार की टीस मिट सके, इसके लिए तुम्हें कुछ विचारों को, अपने ध्यान में लाना होगा। 

मैंने तब पूछा - कौन सी बातें? कृपया शीघ्र बताइये। मैं, ग्लानि से मरी जा रही हूँ।  

तब ऋषभ ने मुझसे पूछा - तुम यह बताओ कि, जो पाश्चात्य संस्कृति अब, हमारे समाज में भी अपनाई जाने लगी है, जानती हो उसमें क्या होता है?

मैंने प्रश्नात्मक उत्सुकता से ही ऋषभ को देखा था। 

ऋषभ ने तब बताया - 

पाश्चात्य संस्कृति में स्त्री पुरुष भी, मिलने पर परस्पर हाथ मिलाया करते हैं। थोड़े अधिक परिचित अगर होते हैं तो वे, आपस में हल्के से आलिंगन भी किया करते हैं। कुछ अवसर पर उन्हें एक दूसरे के गाल पर चुम्मी लेते हुए भी देखना आम बात होती है।  

मैंने अब कहा - हाँ, हॉलीवुड मूवीज में मैंने, यह देखा है। 

तब ऋषभ ने कहा - ऐसे औपचारिक मिलन में कई बार, वहाँ युवतियों को बेड टच का सामना भी करना पड़ जाता है। अब अगर वो पश्चिमी युवतियाँ, तुम्हारी तरह मानसिक रूप से आहत हो जाएं तो वे हर दिन बाथटब में ही पड़ी रहें। 

मैंने समझ लिया था कि ऋषभ, क्या कहना चाहते हैं। 

ऋषभ ही आगे बोले थे - तुम इस हादसे को अब भूल जाओ। यह तुम्हारी नहीं उस आदमी की समस्या है। 

मैंने कहा - 

मेरा भूलना तो, किसी शुतुरमुर्ग की तरह, रेत में सिर छुपाने जैसा होगा। वह तो मेरे लिए नित दिन की मुसीबत रहेगा। एक ही ऑफिस में काम करते हुए मुझे, नित दिन उसका सामना करना है।

मेरा ध्यान नहीं देना उसके दुस्साहस में बढ़ोतरी का कारण हो जाएगा। इससे वह मुझे ही नहीं अन्य युवतियों को भी अपनी बुरी करतूत के दायरे में लेने लगेगा। आपकी दृष्टि में इसका क्या समाधान है?

तब ऋषभ ने कुछ मिनट विचार करने में लिए, फिर कहा - 

देखो, मैं भी अपने ऑफिस में कुछ लड़कियों एवं महिलाओं के साथ काम करता हूँ। कुछ प्रकरण हमारे कार्यालय में भी इस प्रकार के होते हैं। अतएव जब मैं, तुम्हें काम पर जाते देखता हूँ तो यह जानता हूँ कि कुछ ऐसी बातों का सामना तुम्हें भी करना पड़ता होगा। 

अतएव तुम्हें इस बात का दबाव अपने हृदय पर नहीं रखना चाहिए कि किसी की ऐसी बुरी हरकतों के लिए मैं, तुमसे कुछ कहूँगा। 

मैंने कहा - आपके, यह खुले विचार मैंने अनुभव किये हैं। 

ऋषभ ने इसकी अनसुनी करते हुए आगे कहा - 

दूसरी बात तुम्हें यह भी समझना चाहिए कि किसी भी व्यक्ति में सभी गुण ख़राब ही नहीं होते हैं। वह हर समय ख़राब काम ही नहीं करता रहता है। 

इसी प्रकरण में तुम देखो वह व्यक्ति बुद्धिमान है जो अपने कार्यालयीन काम बहुत अच्छे से जानता है। यही कारण है कि कई बार तुम, उससे परामर्श करते हुए, अपने दायित्व एवं काम पूरे करती हो। 

मैंने विचारणीय मुद्रा में कहा - हाँ, यह आप सही कह रहे हैं। मगर जब उसने मेरा विश्वास तोड़ दिया तब मुझे क्या करना चाहिए?

ऋषभ ने कहा - 

कल ही तुम, उससे ऑफिस के केंटीन में मिलो। उसके साथ चाय या कॉफी लो। ऐसा करते हुए तुम, उसे, तुमसे क्षमायाचना कर सके यह अवसर दो। कैंटीन में अन्य टेबल पर और भी लोग होंगे। यह ध्यान तुम्हें रखना है कि, अब से एकांत में, उससे कभी नहीं मिलना है।

मैंने सहमति में सिर हिलाते हुए पूछा - अगर वह क्षमायाचना करता है तो मुझे क्या कहना चाहिए। 

ऋषभ ने कहा - तब तुम्हें, उससे यह कहना है कि 

“मैं, यह मानते हुए कि मेरे साथ की गई घिनौनी हरकत, आपकी किसी भी नारी के साथ अंतिम बुरी करतूत है मैं, आपको क्षमा करती हूँ। आपको ध्यान रखना है कि आगे कभी किसी भी सहकर्मी या अन्य युवती को तुमसे ऐसी कोई परेशानी नहीं होना चाहिए”।   

मैंने कहा - 

अभी तो उस पर यह दबाव है कि मैं उसकी शिकायत एचआर में कर सकती हूँ इस कारण वह सहमत कर लेगा। मगर इस बात की क्या गारंटी है कि कुछ समय गुजरने पर, भविष्य में कभी ऐसी कामुकता, अपने पर हावी न होने देगा?

ऋषभ ने कहा - क्षमा करते हुए उसे, तुम अवगत करा देना कि उसकी हरकत तुमने मुझे (पति ऋषभ को) बता दी है। 

तब मैंने कहा - हाँ, ऐसा कहने से मुझे लगता है कि उस पर आशा अनुकूल अच्छा प्रभाव पड़ेगा। 

मैं चुप हुई थी फिर विचार करते हुए आगे ऋषभ से, मैंने पूछा - किंतु अगर उसने माफ़ी नहीं माँगी तब क्या होगा?

ऋषभ ने कहा - आज तुमने उस की हरकत पर जैसे रियेक्ट किया है वह, तुमसे माफ़ी अवश्य माँगेगा। 

मैंने सहमत करते हुए पूछा - अब मुझे, आपसे एक और बात पूछना है। 

ऋषभ ने कहा - बताओ।

मैंने कहा - उसकी पत्नी नेहा जी से, मेरी मोबाइल पर बात होती हैं। उनसे मैं, कैसा व्यवहार करूँ? वो तो बहुत अच्छी महिला हैं। 

ऋषभ ने कहा - उन के सामने तुम्हें, यह दिखाना ही नहीं है कि कुछ हुआ है। वरना उनके और उनके निर्दोष बच्चों पर, उसकी बुरी करतूत की बुरी छाया पड़ सकती है। हाँ, मगर याद रखना कि अब, उनके घर तुम्हें कभी नहीं जाना है। 

ऋषभ से इतनी बात करने के बाद मेरे हृदय पर से लगभग सारे संताप मिट गए थे। मैं ऋषभ के सोचने के तरीके से सहमत हुई थी। मैंने उचित माना कि उसे, भूल सुधार का एक मौका दिया जाना चाहिए। मैंने ऋषभ से कहा - 

आपने मुझे, मेरी बिगड़ी मानसिक दशा को, अपने आत्मीय साथ से, कुछ समय में सामान्य कर दिया है। 

पहले मेरी ऑफिस जाने की हिम्मत ही नहीं रही थी। मगर अब मुझ में साहस एवं आत्मविश्वास का पुनः संचार हो गया है। मैं. कल से ही फिर ऑफिस जाऊँगी। 

“जब मैंने कोई बुरा काम किया ही नहीं है तब मुझे किसी से डरना क्यों चाहिए”।

ऋषभ ने खुश होकर कहा - ये हुई ना ऋषभ की पत्नी वाली बात!  

मैं उनके कहने के अंदाज़ से हँस पड़ी थी।  

फिर मेरी कही गई बात से ऋषभ का मन, शरारत पर उतर आया था। वे मुस्कुराये थे। फिर कहा - 

मेरे साथ तो तुम बहुत खराबी से पेश आती हो। चलो अपना मूड ठीक करने के लिए तुम अब, मेरे साथ वह ख़राब बात कर लो। 

कहते हुए उन्होंने, मुझे अपनी बांहो में दबोच लिया था और ऊपर, लिहाफ खींच लिया था …. 

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन

18-12-2020