काश ये होता कि
हम मरते या जीते
मगर हमारी
आशायें,
उम्मीदें,
अपनापन,
अच्छाइयां,
सुख,
या प्रतिभा,
जीते बनीं रहतीं,
ना मालूम मगर
ईश्वर ने, क्यूँ?
यह डिज़ाइन न बना
ज़िंदगी की
वह डिज़ाइन बना दी
जिसमें हमारी
आशायें,
उम्मीदें,
अपनापन,
अच्छाइयां,
सुख,
या प्रतिभा,
नित
मर जाया करते हैं
पैदा तो हम इंसान होकर
मगर मरते
इंसान नहीं बचकर हैं
मानव सभ्यता उस मंज़िल को हासिल करे
जहाँ पैदा हुआ इंसान, इंसान रह कर ही मरे