नारी चरित्र - एवं डॉक्टरेट
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गंभीर विषय की पोस्ट पर कमेंट , कभी कभी हँसी में टालने का या दिशा मोड़ने वाला होता है। इसलिए उत्तर संतुलित रखना बेहद आवश्यक होता है। ऐसी एक पोस्ट पर 1 Comment ऐसा आया -
-- जैन साहिब नारी चरित्र पे डाक्टरेट कर रहे हैं?
December 30, 2014 at 9:59pm · Unlike · 1
Rajesh Jain सर , thanks , पुरुष - नारी चरित्र भारतीय रखने का प्रयास कर रहा हूँ
December 30, 2014 at 11:45pm · Edited · Like
लेखक ने प्रश्न का संक्षिप्त उत्तर कमेंट किया , डाक्टरेट पर उत्तर अब है। लेखक समझता है औपचारिक डाक्टरेट , , हमारे चिंतन और लक्ष्य को व्यक्तिगत उपलब्धि में सीमित करने वाला हो सकता है। इस उपलब्धि के बाद कोई डॉक्टर इसे कितना अपने व्यक्तिगत प्रगति के लिए , और कितना समाज , राष्ट्र या मानवता के पक्ष में प्रयोग करता है वह उस डॉक्टर पर निर्भर होता है।
हँसी के लिये किया कमेंट ,एक आदरणीय की हाजिरजबाबी है, लेकिन लेखक में यह मनन को ट्रिगर करता है। इसका व्यक्तिगत स्पष्टीकरण लेखक देना चाहता है। इसे कमेंट में लिखने की अपेक्षा इसी पेज से शेयर करना उचित है। लेखक का प्रयोजन , जी हाँ डाक्टरेट ही है , फॉर्मल नहीं। ऐसा डाक्टरेट जो व्यक्तिगत उपलब्धि के लिये नहीं अपितु सामाजिक उपलब्धि के लिए हो। इस डाक्टरेट में "नारी चरित्र " अकेला नहीं बल्कि पुरुष चरित्र भी सामानांतर रखा गया हो। इस तरह हमारे इस पेज के शोध का विषय है।
"नारी का यथोचित सम्मान एवं नारी (और पुरुष) में चेतना सुनिश्चित करना ,जिससे वे आपसी प्रतिद्वंदी होकर न दिखें। एक साथ सुखद जीवन यापन कर सकें "
इस शोध में बुध्दिजीवी पुरुष और नारी शोधार्थी सम्मिलित हो रहे हैं , पेज उनका आदर करता है।
वास्तव में पहले , रक्षा के तर्क पर नारी ,घरों में सीमित थी। अब समानता के तर्क पर घर के बाहर आ रही है। नारी अति आक्रामकता भी प्रदर्शित कर रही है। उसे पुरुष धूर्तता (एवं नारी मनोविकृति भी) उकसा कर गलत दिशा भी दे रही है। इसे निष्पक्षता से देखें तो नारी पहले कई प्रकरणों में शोषण से पीड़ित थी। अब अति स्वछंदता को की ओर इस तरह बढ़ती /बढ़ाई जा रही है। ऐसे में वह फिर शोषण की ओर ही उन्मुख हो रही है। इस लेखक द्वारा इस अति स्वछंदता को "नारी देह का घिनौना जूलूस " से निरूपित किया गया है। यह कथन ,इसे देख लेने पर सिध्द होता है। अति आक्रमकता की ऐसी प्रतिक्रिया नारी (और पुरुष को ) धन से तोल क्रय करने वाली वस्तु सा बना के रख देने वाली है। अभी शुभ संकेत यही है , इसे कुछ नारी और कुछ पुरुष ही कर रहे हैं। ऐसा न हो इस दिशा और गति से वर्ष 2315 में , कुछ ही इस विकृति के अपवाद रह जायें। इस पीढ़ी को यह चुनौती भी है और सुअवसर भी है , जिसको भलि-भाँति निबट कर वह मनुष्य सभ्यता इतिहास में एक मील का पत्थर जोड़ दे सकता है ।और समाज का मुख आदर्शों की तरफ मोड़ दे सकता है ।
ऐसा लिखने का प्रयोजन कहीं भी नारी को नीचा दिखाने का नहीं है और ना ही पुरुष को षणयंत्रकारी कहने का है। बल्कि वह दर्पण सभी के समक्ष उपस्थित करने का है जिसमें मनुष्य मन (पुरुष और नारी दोनों ) में विकसित होती विकृति को देखा जा सके। जिससे मनोग्रंथियाँ -मनोविकृतियों का दोष मिटाया जा सके। जिस की सहायता से अकेले तन का नहीं अपितु मन का भी सौंदर्यीकरण किया जा सके। ऐसा सौंदर्य प्रसाधन प्रस्तुत किया जा सके जिस के प्रयोग /आश्रय से पुरुष या नारी , बाल अवस्था से लेकर वृध्दावस्था तक भी किसी भी अन्य को सुंदर या भला लगता रह सके।
आयें हम समाज दायित्व को इस तरह निभा कर इनफॉर्मल डॉक्टर की डिग्री लें।
--राजेश जैन
01-01-2015
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गंभीर विषय की पोस्ट पर कमेंट , कभी कभी हँसी में टालने का या दिशा मोड़ने वाला होता है। इसलिए उत्तर संतुलित रखना बेहद आवश्यक होता है। ऐसी एक पोस्ट पर 1 Comment ऐसा आया -
-- जैन साहिब नारी चरित्र पे डाक्टरेट कर रहे हैं?
December 30, 2014 at 9:59pm · Unlike · 1
Rajesh Jain सर , thanks , पुरुष - नारी चरित्र भारतीय रखने का प्रयास कर रहा हूँ
December 30, 2014 at 11:45pm · Edited · Like
लेखक ने प्रश्न का संक्षिप्त उत्तर कमेंट किया , डाक्टरेट पर उत्तर अब है। लेखक समझता है औपचारिक डाक्टरेट , , हमारे चिंतन और लक्ष्य को व्यक्तिगत उपलब्धि में सीमित करने वाला हो सकता है। इस उपलब्धि के बाद कोई डॉक्टर इसे कितना अपने व्यक्तिगत प्रगति के लिए , और कितना समाज , राष्ट्र या मानवता के पक्ष में प्रयोग करता है वह उस डॉक्टर पर निर्भर होता है।
हँसी के लिये किया कमेंट ,एक आदरणीय की हाजिरजबाबी है, लेकिन लेखक में यह मनन को ट्रिगर करता है। इसका व्यक्तिगत स्पष्टीकरण लेखक देना चाहता है। इसे कमेंट में लिखने की अपेक्षा इसी पेज से शेयर करना उचित है। लेखक का प्रयोजन , जी हाँ डाक्टरेट ही है , फॉर्मल नहीं। ऐसा डाक्टरेट जो व्यक्तिगत उपलब्धि के लिये नहीं अपितु सामाजिक उपलब्धि के लिए हो। इस डाक्टरेट में "नारी चरित्र " अकेला नहीं बल्कि पुरुष चरित्र भी सामानांतर रखा गया हो। इस तरह हमारे इस पेज के शोध का विषय है।
"नारी का यथोचित सम्मान एवं नारी (और पुरुष) में चेतना सुनिश्चित करना ,जिससे वे आपसी प्रतिद्वंदी होकर न दिखें। एक साथ सुखद जीवन यापन कर सकें "
इस शोध में बुध्दिजीवी पुरुष और नारी शोधार्थी सम्मिलित हो रहे हैं , पेज उनका आदर करता है।
वास्तव में पहले , रक्षा के तर्क पर नारी ,घरों में सीमित थी। अब समानता के तर्क पर घर के बाहर आ रही है। नारी अति आक्रामकता भी प्रदर्शित कर रही है। उसे पुरुष धूर्तता (एवं नारी मनोविकृति भी) उकसा कर गलत दिशा भी दे रही है। इसे निष्पक्षता से देखें तो नारी पहले कई प्रकरणों में शोषण से पीड़ित थी। अब अति स्वछंदता को की ओर इस तरह बढ़ती /बढ़ाई जा रही है। ऐसे में वह फिर शोषण की ओर ही उन्मुख हो रही है। इस लेखक द्वारा इस अति स्वछंदता को "नारी देह का घिनौना जूलूस " से निरूपित किया गया है। यह कथन ,इसे देख लेने पर सिध्द होता है। अति आक्रमकता की ऐसी प्रतिक्रिया नारी (और पुरुष को ) धन से तोल क्रय करने वाली वस्तु सा बना के रख देने वाली है। अभी शुभ संकेत यही है , इसे कुछ नारी और कुछ पुरुष ही कर रहे हैं। ऐसा न हो इस दिशा और गति से वर्ष 2315 में , कुछ ही इस विकृति के अपवाद रह जायें। इस पीढ़ी को यह चुनौती भी है और सुअवसर भी है , जिसको भलि-भाँति निबट कर वह मनुष्य सभ्यता इतिहास में एक मील का पत्थर जोड़ दे सकता है ।और समाज का मुख आदर्शों की तरफ मोड़ दे सकता है ।
ऐसा लिखने का प्रयोजन कहीं भी नारी को नीचा दिखाने का नहीं है और ना ही पुरुष को षणयंत्रकारी कहने का है। बल्कि वह दर्पण सभी के समक्ष उपस्थित करने का है जिसमें मनुष्य मन (पुरुष और नारी दोनों ) में विकसित होती विकृति को देखा जा सके। जिससे मनोग्रंथियाँ -मनोविकृतियों का दोष मिटाया जा सके। जिस की सहायता से अकेले तन का नहीं अपितु मन का भी सौंदर्यीकरण किया जा सके। ऐसा सौंदर्य प्रसाधन प्रस्तुत किया जा सके जिस के प्रयोग /आश्रय से पुरुष या नारी , बाल अवस्था से लेकर वृध्दावस्था तक भी किसी भी अन्य को सुंदर या भला लगता रह सके।
आयें हम समाज दायित्व को इस तरह निभा कर इनफॉर्मल डॉक्टर की डिग्री लें।
--राजेश जैन
01-01-2015