Sunday, October 18, 2015

पुरुष चेतना

पुरुष चेतना
--------------
आँखें हैं कामुकता दर्शन को बेताब
कर्णों को मादक ध्वनि सुनने की चाह
नासिका रतिज गंध तलाशती
तन को प्रियतमा स्पर्श की चाह
जिव्हा ललायित मादक रस सेवन को
हृदय धड़कन को प्रियतम साथ की चाह
प्रजनन अंग सक्रिय रति में सुख ढूँढने
मन में निरंतर वासना संबंधों की चाह

नारी को भोगता पुरुष , वस्तु मानकर
कहीं प्रस्तुत है स्वयं नारी वस्तु बनकर
क्या ,यही है आधुनिक सभ्यता ? और
इतना ही होता , मनुष्य यौवनकाल ?

नहीं-नहीं ,नहीं-नहीं सुखद समाज रचना हेतु
पुरुष को चेतना जरूरी ,अब नारी के साथ साथ
--राजेश जैन
18-10-2015
https://www.facebook.com/narichetnasamman

No comments:

Post a Comment