Saturday, November 7, 2015

रिश्तों या विवाह में वधु पक्ष को हीन मानना

8. रिश्तों या विवाह में वधु पक्ष को हीन मानना :- विवाह एक ऐसी रीति रही है , जो नए परिवार की बुनियाद होती है , जिसके बाद सामाजिक अनुमोदना से मनुष्य संतति क्रम में निरंतरता बनी रहती है। एक ही माँ और पिता से जन्में , बेटे और बेटी , भाई बहन माने जाते हैं , जिसमें पूर्व परंपराओं से पति-पत्नी जैसा नाता नहीं किया जा सकता , अब विज्ञान भी ऐसी व्यवस्था (खून के रिश्तों में विवाह ) की अनुमोदना नहीं करता। स्पष्ट है कि समाज और विज्ञान कारणों से , नारी-पुरुष के परिवार में रहने के लिए , विवाह की उम्र आने पर दो अलग-अलग , परिचित -अपरिचित परिवार के वर और वधु में संबंध किया जाना होता है। विवाह , वर-कन्या और सामान्यतः उनके परिजनों की सहमति से होता है , ऐसे में किसी एक पक्ष को ऊँचा और दूसरे को नीचा देखना लेखक की समझ में अनुचित है। यह कुरीत विवाह ही नहीं , बाद में और कई कई पीढ़ी तक कन्या पक्ष को हीन दृष्टि से ही देखती है। यह कुरीत बदलना चाहिए। संसार के दूसरे सारे व्यवहार में देने वाला , लेने वाले से बड़ा माना जाता है , यहाँ इस की दुहाई देकर , लेखक यह नहीं कहेगा कि , कन्या पक्ष को ऊँचा मानिये क्योंकि यह एक सामाजिक व्यवस्था है , सर्व सहमति से निभाई जाती है , किन्तु विवाह में जिस घर-परिवार को एक नया सदस्य , अन्य परिवार से मिला होता है , इस मिलने के निमित्त से , उस परिवार का बराबरी का मान होना तो होना ही चाहिए।
--राजेश जैन
08-11-2015
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